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Sunday 31 May 2020

विष्णु से 'आर्ट ऑफ लिविंग' सीखें हमारे अधिकारी

ईमानदारी की गूंज हमेशा बड़ी होती है जिसका प्रभाव दीर्घकाल तक चलता है. राजगढ़ के थानाधिकारी विष्णुदत्त बिश्नोई की मौत के मामले में यह गूंज सामाजिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय बंधनों को लांघती हुई विदेशों तक जा पहुंची है. सब हैरान हैं कि आखिर इस सुपर कॉप में ऐसा क्या था जो राजस्थान का ही नहीं बल्कि देश में भी सबका चहेता बन गया. लंबे समय बाद किसी पुलिस अधिकारी की संदिग्ध मौत पर जनता आंदोलन की तैयारियां कर रही हैं. निस्संदेह यह उस अधिकारी की कर्तव्य परायणता और ईमानदारी की गूंज है.

राजस्थान पुलिस और प्रशासन में कार्यरत सभी अधिकारियों को इस शहादत से सीख लेने की जरूरत है. ईमानदार अफसर को जनता जो मान सम्मान देती है वह करोड़ों रुपए की रिश्वत से भी नहीं खरीदा जा सकता. जनता के दिलों में जगह बनाने के लिए लोक सेवक बनना पड़ता है. कम से कम अब थानों और दफ्तरों में बैठे अधिकारियों को रिश्वत की कमाई हाथ में लेने से पहले एक बार विष्णु दत्त का चेहरा और उसकी मौत पर रोते लाखों लोगों के आंसुओं को अवश्य याद करना चाहिए. शायद उनकी अंतरात्मा जाग उठे और उनमें भी उसी मान-सम्मान से जीने की इच्छा बलवती हो जिसे विष्णु दत्त ने अपने जीवन काल में पाया था. यदि लोक सेवकों में आत्मसम्मान और कर्तव्यनिष्ठा का भाव जागृत हो जाए तो देश की तस्वीर बदल सकती है. अन्यथा जीवन यापन तो कुकुरमुत्तों का भी होता है जो परजीवी के रूप में जीते हुए खरपतवार की मौत मर जाते हैं. मैंने अपने जीवन काल में किसी भी पुलिस अधिकारी की मौत पर इस कदर और इतने लोगों को मातम मनाते हुए नहीं देखा है जैसा विष्णु दत्त के मामले में हुआ है. यह आर्ट ऑफ लिविंग आज के लोक सेवक को सीखने और सिखाने की जरूरत है.

उनकी मौत के बाद उभरे परिदृश्य ने ड्यूटी के प्रति ईमानदारी और सेवा भाव के अनूठे मापदंड खड़े कर दिए हैं. कहा जा रहा है कि यदि कोरोना संकट के हालात ना होते तो इस मामले में आक्रोश स्वरूप लाखों लोग सड़कों पर उतर आते. लॉकडाउन के प्रतिबंधों के बावजूद विष्णु की पार्थिव देह राजगढ़ और उनके पैतृक गांव लूणेवाला के बीच में जहां-जहां से गुजरी उनके सम्मान में सैकड़ों लोग सड़कों पर खड़े थे. जिस गमगीन माहौल में उनका अंतिम संस्कार किया गया उसने वहां खड़े हर आदमी की आंखों को नम कर दिया.

विश्नोई की मौत का मामला जांच में फंसा हुआ है. पुलिस प्रशासन ने तो क्राइम ब्रांच को मामला सुपुर्द कर जांच शुरू कर ही दी है जबकि विपक्ष सहित कांग्रेस के कई नेता और अनेक स्थानों से उठ रहे जन आंदोलन सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। गहलोत सरकार इस दबाव के सामने क्या निर्णय लेती है यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है. लेकिन इतना तय है कि एक ईमानदार पुलिस अधिकारी की शहादत के चर्चे लंबे समय तक लोगों के जेहन में जिंदा रहेंगे.

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