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Thursday, 31 December 2020
Wednesday, 23 December 2020
विधायक कासिनया के कार्यकाल पर जनमत सर्वेक्षण
कैसा है आपके विधायक का कार्यकाल, आज ही वोट करें.
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पोल 31 दिसम्बर 2020 की मध्यरात्रि तक खुला है.
विधायक रामप्रताप कासनिया-एक परिचय
सूरतगढ़ के विधायक रामप्रताप कासनिया अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर चुके हैं. राजस्थान की भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके कासनिया कुशल राजनीतिज्ञ माने जाते है. ठेठ देहाती अंदाज और अपनी स्पष्टवादिता के चलते क्षेत्र की राजनीति में उनकी विशिष्ट पहचान है. पूर्व में वे पीलीबंगां विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे लेकिन 2008 में परिसीमन के बाद उन्होंने सूरतगढ़ का रूख किया. 2008 में उन्होंने भाजपा की टिकट पर सूरतगढ़ से भाग्य आजमाया लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. 2013 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. 2018 में वे न सिर्फ टिकट पाने में कामयाब हुए बल्कि भाजपा के विरूद्ध बने असंतोष के माहौल के बावजूद जीतने में कामयाब हुए. हालांकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और कासनिया को विपक्ष में बैठना पड़ा लेकिन विधायक तो विधायक होता है.
ओपिनियन पोल यानी जनता की राय
कैसे भाग लें ?
इस पोल बाॅक्स पर अपना वोट करें.
Sunday, 20 December 2020
सिटी हंड्रेड ने हाट बाजार में किया श्रमदान
- शराबियों का अड्डे बने हाट बाजार में चला स्वच्छता अभियान
- वार्ड विकास कमेटी के प्रयासों से उत्साहित हैं वार्डवासी
- सिटी हंड्रेड आयोजित करेगी देशभक्ति गीतों का कार्यक्रम
Friday, 18 December 2020
कलह और कोरोना के बीच कांग्रेस सरकार के 2 साल पूरे
- उतरने लगा है गहलोत का जादू
- बिजली बिलों का बोझ और बेरोजगारी की मार
- प्रदेश की राजनीति में नई करवट के आसार
नहीं हो सका अनुभव और युवा जोश का संगम
2018 में जब मोदी लहर चरम पर थी, उस वक्त राजस्थान की राजनीति में प्रदेश भाजपा की आंतरिक गुटबाजी के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जनाक्रोश का अच्छा खासा वातावरण तैयार हो गया था. इसी का परिणाम था कि दिसंबर 2018 में सम्पन्न हुए 15वीं विधानसभा के मुद्दाविहीन चुनावों में कांग्रेस ने सामान्य बहुमत से बाजी मार ली. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत के नेतृत्व में पांच साल बाद फिर कांग्रेस की सरकार बनी जिसमें युवा नेता पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
उम्मीद की जा रही थी कि गहलोत के अनुभव और पायलट के युवा जोश का यह संगम प्रदेश के विकास में नए आयाम स्थापित करेगा लेकिन नतीजे ठीक इसके उलट हुए. सत्ता में स्थापित होने के बावजूद मई 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई. इन चुनावों में गहलोत ने पुत्र मोह में फंस कर वैभव को जोधपुर से टिकट दिलाई जहां हुई हार से उनकी और पार्टी दोनों की फजीहत हुई. गहलोत यहीं नहीं रुके बल्कि पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के लिए उसे आरसीए का अध्यक्ष भी बना दिया गया. इसका खामियाजा गाहे-बगाहे उन्हें भुगतना ही होगा.
उपलब्धियों की बात करें तो बीते दो वर्ष सरकार के लिए उथल-पुथल भरे रहे हैं. कोरोना संकट और आंतरिक कलह से जूझ रही गहलोत सरकार लगभग दो महीनों तक तो खुद को बचाने की जुगत में लगी रही. पायलट की बगावत के चलते मुख्यमंत्री अपने गुट के विधायकों की बाड़ाबंदी किए पांचसितारा होटलों में बैठे रहे. आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंसी खुद सरकार का भविष्य अधर झूल में हो गया तो जनता की सुध लेता ही कौन ! जैसे तैसे इस सियासी ड्रामे का अंत हुआ और एक बार फिर गहलोत कुर्सी बचाने में कामयाब हुए. लेकिन इतना तय है कि प्रदेश राजनीति से गहलोत का जादू उतरने लगा है. इसका परिणाम यह है कि निकट भविष्य में यहां राजनीतिक करवट बदलने के आसार दिख रहे हैं
कोरोना और आचार संहिता से प्रभावित हुआ कामकाज
यह भी सच है कि इन्हीं 2 वर्षों के कार्यकाल में प्रदेश में पंचायती राज और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए आठ माह की आचार संहिता भी लगी रही जिससे सरकार को अपनी नाकामी छुपाने का एक और अवसर मिल गया. रही सही कसर कोरोना ने निकाल दी जिससे सरकार का कामकाज प्रभावित हुआ. संकट के इस दौर में केंद्र से मिलने वाली मदद में भी कमी आई जिसके चलते अनेक योजनाओं को सरकार चाहकर भी अमलीजामा नहीं पहना सकी है.
2 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर बोलते हुए गहलोत ने कहा कि भाजपाइयों ने धनबल और बाहुबल से उनकी सरकार को गिराने के बहुत से प्रयास किए हैं लेकिन विधायकों की एकजुटता और जनता के आशीर्वाद से हमारी सरकार पांच साल पूरे करेगी. उन्होंने कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की बात भी कही है. उनकी मानें तो सरकार दो साल में अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों में से आधे से ज्यादा वादे पूरे कर चुकी है. सरकार का दावा है कि उसने 501 वादों में से 252 पूरे कर दिए हैं जबकि 173 घोषणाओं पर काम जारी है. किसानों की लगभग 8000 करोड़ रूपये की ऋण माफी का वे बड़े गर्व से बखान करते हैं.
यथार्थ का धरातल
सरकार के दावों से इतर यथार्थ के धरातल पर प्रदेश की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और लचर कार्यशैली के चलते आज भी आम आदमी सरकार को कोसता नजर आता है. आए दिन उजागर हो रहे एसीबी के मामले इस बात की साख भरते हैं कि प्रदेश में भ्रष्टाचार किस कदर पांव जमाए हुए है. कोरोना संकट काल में सरकार द्वारा विद्युत बिलों में की गई 20% की बढ़ोतरी एक बड़ा मुद्दा है जिसने आम आदमी को बुरी तरह से प्रभावित किया है. वस्तुत: से यह बिजली कंपनियों की नाकामियों का बोझ है जो जनता पर डाल दिया गया है. सरकार का स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों से दोबारा टोल वसूली शुरू करने का निर्णय किसी भी ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता. प्रदेश का युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहा है सरकार ने अपने घोषणा पत्र में जिस बेरोजगारी भत्ते की बात की थी उसे मजाक बनाकर रख दिया गया है. सरकारी भर्तियों का आलम यह है कि आरपीएससी सालों से अटके हुए परिणाम तक जारी नहीं कर पा रही है. आरएएस 2018 का मामला ही ले लीजिए जिसके मुख्य परीक्षा परिणाम को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. मुख्यमंत्री गहलोत ने दावा किया है कि 25 अप्रैल को रीट की परीक्षा आयोजित की जाएगी लेकिन यह परीक्षा अभ्यर्थियों के जी का जंजाल बनी हुई है. सही मायनों में प्रदेश का युवा मानसिक तनाव और कुंठा में जी रहा है. सरकारी नौकरियों के अलावा उसके लिए अन्य विकल्प तलाशने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए हैं. कोरोना संकट के चलते प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था आज तक शुरू नहीं हो पाई है. इसके चलते लाखों शिक्षक और स्कूल परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.
नए कृषि कानूनों की खामियों को लेकर देशव्यापी किसान आंदोलन चल रहा है. प्रदेश सरकार चाहे तो किसानों के हितों की रक्षा के लिए इसमें भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अरविंद केजरीवाल और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकारें पूरे जोश से किसानों के साथ खड़ी है लेकिन राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान से लेकर स्थानीय स्तर तक पार्टी के कारिंदे सिर्फ फोटो खिंचवाने और विज्ञप्तियां जारी करने तक ही सीमित हैं. कांग्रेस के विधायकों और जनप्रतिनिधियों में भी इस आंदोलन को लेकर कोई विशेष हलचल दिखाई नहीं देती.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि कागजी जमा खर्च के भरोसे कांग्रेस कब तक जिंदा रहेगी. पंचायती और स्थानीय निकाय चुनावों में सरकार की कार्यशैली के परिणाम आने शुरू हो गए हैं जहां भाजपा पुन: अपना जनाधार खड़ा करने लगी है. पायलट की बगावत के सुर भले ही चुप दिखाई देते हों लेकिन अंदर खाते वे सुलग रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
कुल मिलाकर कहना चाहिए कि 2 साल के कार्यकाल में प्रदेश सरकार भले ही खासा कुछ नहीं कर पाई हो लेकिन भविष्य उनके हाथ में है. यदि सरकार चाहे तो प्रदेश की तकदीर बदल सकती है अन्यथा समय आने पर जनता तो उन्हें बदल ही देगी !
Sunday, 13 December 2020
सिटी हंड्रेड ने की अनूठी पहल
- वार्ड 42 में हुआ विकास समिति का गठन - हाट बाजार में करेंगे श्रमदान
- ढाब पर बैठने वाले असामाजिक तत्वों पर होगी कार्रवाई
- वार्ड में लगेंगे जागरूकता सूचना पट्ट
'हमारा वार्ड हमारे मुद्दे' अभियान के तहत वार्ड नंबर 42 में संगठन की लगातार दूसरी साप्ताहिक सभा आयोजित हुई. बैठक में सिटी हंड्रेड की टीम के साथ वार्डवासियों ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. विस्तृत चर्चा के बाद वार्ड विकास योजना के मुद्दे तय किए गए और 'सिटी हंड्रेड वार्ड-42 विकास समिति' का गठन किया गया. 21 सदस्यों की यह समिति वार्ड विकास के लिए योजना बनाएगी और उन्हें सिटी हंड्रेड टीम के साथ मिलकर लागू करवाएगी. इस समिति में वार्ड पार्षद बबलू सैनी सहित राजविंदर सिंह, संजय कटारिया, कैलाश मोदी, प्रवीण सेन, देवीदयाल छाबड़ा, अशोक सुखीजा, मोहम्मद अली को शामिल किया गया है. वार्ड 42 का कोई भी जागरूक नागरिक इस समिति से जुड़ने के लिए सिटी हंड्रेड से संपर्क कर सकता है.
बैठक में गणेश मंदिर ढाब पर एकत्रित होने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्यवाही पर भी चर्चा की गई. इस संबंध में सिटी हंड्रेड द्वारा पुलिस को असामाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ी और त्वरित कार्यवाही करने हेतु ज्ञापन भी दिया गया.
लगेंगे जागरूकता सूचना पट्ट
बैठक में चर्चा के बाद निर्णय लिया गया कि वार्ड भर में 'जागरूकता सूचना पट्ट' लगवाए जाएंगे जिन पर पार्षद, वार्ड के जमादार, सहित सिटी हंड्रेड के प्रभारी सदस्यों के नाम और मोबाइल नंबर लिखे जाएंगे. वार्ड की सामान्य सार्वजनिक समस्याओं के समाधान हेतु सूचना पट्ट पर दिए गए नंबरों पर संपर्क किया जा सकेगा.
टीम ने किया वार्ड भ्रमण
सभा के पश्चात संगठन सदस्यों ने वार्ड का दौरा किया और लोगों से मिलकर वार्ड की समस्याओं को जाना. वार्ड में बनाए गए हाट बाजार का भी मौका मुआयना किया गया. सदस्यों द्वारा तय किया गया कि अगले रविवार इस हाट बाजार में श्रमदान किया जाएगा और यहीं वार्ड विकास समिति की बैठक आयोजित की जाएगी.
Friday, 11 December 2020
शहर में नरभक्षी की दस्तक !
- हाईवे पर हर घड़ी मंडरा रही मौत- सैकड़ों जिंदगियां लापरवाही की भेंट- अखरती जनप्रतिनिधियों की चुप्पी
शहर में पसरा हुआ खतरा
नरभक्षी की दास्तान
लगभग 5 वर्ष पूर्व इस कंपनी को बीकानेर से सूरतगढ़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 62 के निर्माण का ठेका दिया गया था. हाईवे अथॉरिटी द्वारा देश में नेशनल हाईवे निर्माण के कड़े सुरक्षा मानक तय हैं. इन मानकों में निर्माण के दौरान पर्याप्त संकेतकों की व्यवस्था, रेडियम पटि्टयां, खतरे के चिन्ह, गति सीमा निर्धारक, स्पीड ब्रेकर, सड़क के दोनों साइड सोल्डरिंग आदि शामिल है जिनकी निर्माण से पूर्व व्यवस्था करनी जरूरी है. लेकिन इस कंपनी द्वारा हमेशा सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई जिन का नतीजा यह हुआ कि हाईवे पर हादसों की संख्या बढ़ती गई. पिछले 5 सालों के दुर्घटना आंकड़ों को देखें तो इस हाईवे पर बड़ी संख्या में मौतें हुई है. प्रशासनिक मिलीभगत के चलते आज तक इस कंपनी के खिलाफ कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हुई न ही किसी ने हाईवे के हादसों में हताहत हुए लोगों के परिजनों का दर्द समझने की कोशिश की. हर हादसे को वाहन चालकों की लापरवाही और नियति जानकर स्वीकार कर लिया गया जबकि नियमानुसार इस कंपनी के सभी निदेशकों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए, यानी लापरवाही से दुर्घटना कारित करने के प्रथम दृष्टया मुकदमे दर्ज होने चाहिए थे.
कोई बोलता क्यों नहीं ?
- डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
रोटरी इनरव्हील क्लब द्वारा गौशाला में वाटर स्टोरेज टैंक भेंट
रोटरी क्लब की महिला विंग इनरव्हील, सूरतगढ़ द्वारा निराश्रित गोवंश शिविर में वाटर स्टोरेज टैंक भेंट किए गए हैं. इन वाटर टैंकों के आने से शिविर में जल संकट से राहत मिल सकेगी.
बीकानेर रोड पर राजकीय चिकित्सालय में पिछले 10 सालों से संचालित हो रहे हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर में क्लब के सदस्यों द्वारा 2000 लीटर पानी की क्षमता वाली दो टंकियां भेंट की गई है. इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में क्लब की अध्यक्ष सोनू बाघला ने कलयुग में गौ सेवा को सर्वोपरि बताया और इनरव्हील की गतिविधियों पर चर्चा की. पूर्व पालिकाध्यक्ष काजल छाबड़ा इनरव्हील क्लब के सभी सदस्यों की भावनाओं की सराहना करते हुए ऐसे प्रकल्प निरंतर जारी रखने की बात कही. कार्यक्रम में क्लब की सदस्य अनीता धुवा व ममता गर्ग भी उपस्थित रही. इनरव्हील क्लब की सचिव निशा धुवा ने जानकारी देते हुए बताया कि इस प्रकल्प की धनराशि सभी सदस्यों के सहयोग से जुटाई गई है. भविष्य में भी क्लब द्वारा जनहित की ऐसी गतिविधियां आयोजित की जाएंगी.
इस अवसर पर हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर की संचालक श्रीमती आशा शर्मा ने इनरव्हील क्लब को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए आभार जताया.
Tuesday, 17 November 2020
प्रदर्शन के बाद हादसों के हाईवे पर निर्माण बंद
- सड़क सुरक्षा मानक पूरे होने के बाद ही शुरू होगा निर्माण
- कॉटन सिटी लाइव की खबर का हुआ असरप्रदर्शन का असर, सुरक्षा व्यवस्था पर काम शुरू
Monday, 16 November 2020
आपका 'मंगल' कहीं 'अमंगल' न हो जाए !
-सूरतगढ़ में हादसों का हाईवे हुआ और रिस्की
- लचर प्रशासनिक व्यवस्था के चलते निर्माण ठेकेदार के सौ खून माफ
सावधान ! यदि आप इंदिरा सर्किल से खेजड़ी मंदिर रोड की तरफ जा रहे हैं तो जान हथेली पर रख लीजिए. यह मजाक नहीं, हालात ही कुछ ऐसे हैं. हाईवे ठेकेदार की घोर लापरवाही के कारण इन दिनों यह मार्ग जानलेवा बन गया है है. यकीन ना हो तो आप जाकर देख लीजिए.
क्या हैं सुरक्षा नियम
Thursday, 12 November 2020
तीसरा आदमी !
जो न रोटी खाता है न बेलता है
वो सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं
वो तीसरा आदमी कौन है
मेरे देश की संसद मौन है...
लोकतंत्र में देश को दीमक की भांति निकलता और उगलता यह 'तीसरा आदमी' साम, दाम, दंड, भेद की नीति पर आपका वोट हड़पना चाहता है ताकि वह पांच साल तक आप की 'रोटी' से खेल सके. यह 'तीसरा आदमी' आपके घर भी अपना 'पैकेज' लेकर पहुंच सकता है. जी हां, यह मजाक नहीं बल्कि एक कड़वी सच्चाई है. पालिका 'चेयरमैन' का ख्वाब देख रहे एक प्रत्याशी ने तो वोटों की संख्या के हिसाब से 'पैकेज' तैयार करने की रणनीति भी बना ली है.
तो फिर क्या करें ?
अगर मैं कहूंगा कि भाई 'पैकेज' लेकर वोट बेचना गलत है, ऐसा ना करें तो आप मेरी बात पर कान थोड़े ही धरेंगे. उल्टा आप कहेंगे कि 'आखिर हम भी तो इंसान हैं. 'पैकेज' पर दीन ईमान डोल ही जाता है.' और बिना 'पैकेज' के यदि किसी को वोट दे भी देंगे तो इस बात की क्या गारंटी है कि वो तीसरा आदमी हमारी 'रोटी' से नहीं खेलेगा ?
मैं आपकी भावनाएं समझता हूं. इसलिए ऐसा कुछ नहीं कहूंगा. बस इतनी सी अर्ज है कि इसी तीसरे आदमी से थोड़ी सी चालाकी सीख लीजिए. फिर उसी अंदाज में उसका 'पैकेज' स्वीकार कीजिए. आश्वासन के नाम पर उसके मुख में बातों की मिठास से भरी ऐसी चूसनी थमा दीजिए कि वह मतदान के दिन तक चूसता फिरे. और मतदान के दिन वो कीजिए जो आपको करने की जरूरत है। यानी इस 'तीसरे आदमी' को तीसरी दुनिया में भेजिए और एक स्वच्छ छवि के ईमानदार व्यक्ति को अपना पार्षद चुनिए ताकि आप की 'रोटी' से कोई खिलवाड़ न कर सके.
मर्जी है आपकी, आखिर वोट है आपका !
Friday, 30 October 2020
संघर्षशील नेताओं से डरी हुई सरकारें !
श्रीगंगानगर के संघर्षशील नेता
Friday, 23 October 2020
अन्नदाता की उम्मीदों पर मंडराती नई आशंकाएं
(कृषि कानूनों से उपजे विवाद पर कवर स्टोरी )
मुद्दा यह है कि मोदी सरकार कृषि विकास और सुधारों के नाम पर लागू किए गए नए कानूनों के जरिए खेत और खलिहानों को पश्चिमी देशों जैसी खुली बाजार व्यवस्था के अंतर्गत लाने की बात कर रही है जो सिर्फ लाभ के लिए काम करते हैं. सरकार का कहना है इन कानूनों के लागू होने से भारतीय किसान को बिचौलियों के बंधन से आजादी मिली है और अब वह अपनी फसल कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र है. जबकि यह सर्वविदित है कि खुली बाजार व्यवस्था हमेशा कॉरपोरेट्स द्वारा संचालित की जाती है जो लाभ के उद्देश्य से आरम्भ में गलाकाट प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करते हैं और अंततः अपना एकाधिकार स्थापित कर लेते हैं.
इन कानूनों को लेकर देशभर में बवाल मचा है और विरोध में उत्तर भारत से लेकर बंगाल और दक्षिण के किसान सड़कों पर हैं. पंजाब और हरियाणा में तो हालात बेहद नाजुक हैं. भाजपा सरकार के सहयोगी रहे अकाली दल ने भी इन कानूनों का पुरजोर विरोध किया है. केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल तो किसानों के पक्ष में अपना त्यागपत्र भी दे चुकी है. नए कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों और विपक्षी दलों का आरोप है कि ये कानून किसानों के हित में कतई नहीं है बल्कि कॉरपोरेट को कृषि क्षेत्र में सुनियोजित प्रवेश देने के लिए बनाए गए हैं. संभावना जताई जा रही है कि इससे किसानों के खेतों और कृषि उत्पाद के बाजारों पर बड़े कॉरपोरेट घरानों का कब्जा हो जायेगा जो सिर्फ मुनाफे के लिए काम करते हैं.
क्या नये कृषि कानून किसान हित में है ?
इसी प्रकार आवश्यक वस्तु और सेवा (संशोधन) अधिनियम 2020 के नये प्रावधानों ने कृषि उत्पादों की जमाखोरी और कालाबाजारी के रास्ते खोल दिए हैं. भंडारण के नाम पर होने वाली बाजार व्यवस्था को सरकार कैसे नियंत्रित कर पाएगी, यह समझ से परे है.
Wednesday, 30 September 2020
नगरपालिका की नीलामी को न्यायालय की ना !
'कॉटन सिटी लाइव' ने उठाया था मामला
आखिरकार न्यायालय ने नगरपालिका द्वारा की जा रही बहुचर्चित नीलामी पर वाद के निस्तारण तक स्थगन आदेश जारी कर दिया है. बीकानेर रोड पर स्थित करोड़ों रुपए मूल्य की इस व्यवसायिक जमीन को आवासीय के रूप में बेचने के गड़बड़झाले को सर्वप्रथम कॉटनसिटी लाइव पोर्टल पर उजागर किया गया था जिसके बाद शहर के जागरूक लोगों ने नीलामी रुकवाने के लिए न्यायालय की शरण ली थी.

यही लोकतंत्र की खूबसूरती है जनाब ! सत्ता कितनी भी ताकतवर हो, अपने मंसूबे पूरे करने के लिए लाख छल छंद रचे मगर संवैधानिक व्यवस्था में न्यायपालिका का हथोड़ा एक बार तो बड़े-बड़े सत्ताधारियों का गुरूर तोड़ देता है.
गौरतलब है कि पालिका द्वारा बड़े जोर-शोर से शहर में इन कीमती भूखंडों की नीलामी हेतु मुनादी करवाई गई थी. लेकिन समाचार पत्रों में नीलामी सूचना प्रकाशित होते ही कॉटनसिटी लाइव पोर्टल पर 25 अगस्त को इस गड़बड़झाले को उजागर किया गया था.
बाजार के ठीक बीच में स्थित व्यावसायिक भूमि को आवासीय के रूप में बेचने की योजना किसी भी दृष्टि से शहर हित में नहीं थी लेकिन पालिका प्रशासन तो अपनी मनमानी पर तुला था. अब न्यायालय द्वारा इस नीलामी को वाद के निस्तारण होने तक रोकने के आदेश जारी कर दिए गए हैं. स्पष्ट है कि प्रथम दृष्टया: नगरपालिका द्वारा प्रस्तावित नीलामी अवैध थी.
दरअसल नीलामी का यह मामला शुरू से ही संदेह के घेरे में आ गया था जब पालिका द्वारा बाजार के बीच में स्थित विशुद्ध रूप से व्यवसायिक भूमि को आवासीय बता कर बेचने की योजना बनाई गई थी. पालिका प्रशासन का तर्क है कि यह जमीन मास्टर प्लान में आवासीय दर्शाई गई है इसलिए मजबूरी वश उसे आवासीय बेचा जा रहा है. लेकिन पालिका के तर्क किसी के गले नहीं उतरते. इस मामले में दिए गए आदेशानुसार पालिका खुद मास्टर प्लान की अवहेलना करती दिख रही है.
लेकिन साहब हठ तो हठ है. फिर राज हठ के क्या कहने ! सब कुछ जानते हुए भी जब पालिका प्रशासन अपनी फजीहत करवाने पर तुला हो तो उसे कौन रोक सकता है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर पालिका को यह जमीन बेचने की इतनी जल्दी क्यों है ?
खैर इस पूरे प्रकरण में एडवोकेट पूनम शर्मा और पूर्व पालिकाध्यक्ष बनवारी मेघवाल ने विपक्ष की भूमिका निभाकर नीलामी को रुकवा दिया है. इसके लिए वे पुन: बधाई के पात्र हैं. पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा और पालिका मंडल को अदालत के इस निर्णय से सबक लेना चाहिए. इस मामले में हुई फजीहत से सीख लेकर वे अपने भावी निर्णयों को सुधार सकते हैं.
Tuesday, 22 September 2020
क्या आप पड़ौस के घर से कभी सब्जी मांग कर लाए हैं !
पगडंडियों के दिन (13)
हमारी विरासत
'मासीजी, सब्जी के बणाई है ?'
'आलू शिमला मिर्च है, पा दयां !'
अंगीठी पर रोटियां सेकती कुंती मासी बोली.
'दे दयो, आलू ज्यादा घाल्या.' बिना किसी हिचक और शर्म के मैंने अपनी कटोरी को मासी के हाथों में थमा दिया. मासी ने सब्जी से कटोरी भर दी. ज्यों ही मैं आंगन में मंज्जे पर बैठे रोटी जीम रहे मासड़ तारा सिंह के पास से गुजरा.
'ओ, टोनी, तेरी मां ने की चाड़या है अज ?'
'मासोजी, बड़ी बणाई है, मन्नै तो कोनी भावै...'
'यार कमाल है, बड़ियां नीं भांदी तैन्नू ! जा मेरे वास्ते फड़ी ल्या छेती जिही.'
'ल्यायो मासोजी....' और मैं दौड़ता हुआ घर जाकर मासड़ तारा सिंह के लिए बड़ी की तरीदार सब्जी ले आता जिस पर मां ननीहाल से आया हुआ दो चम्मच देसी घी डाल देती. उस वक्त सब्जी मांगने में जरा सी भी शंका या शर्म नहीं आती थी. पता नहीं क्यों ?
मगर आज, कल्पना कीजिए आपके घर मनपसंद सब्जी नहीं बनी है तो क्या आपके बच्चे कटोरी लेकर पड़ोसी के घर सब्जी मांगने जा सकते हैं ?
आप में से अधिकांश का उत्तर होगा.
'सब्जी......! हमारे बच्चे तो कभी प्लास पेचकस भी मांगना पड़ जाए, तो पड़ोसी के घर जाने से कतराते हैं. हम तो खुद ही पडौसियों के घर नहीं जा पाते हैं.'
लेकिन छोटे पर्दे के आगमन से पहले ऐसा वक्त नहीं था. 70-80 के दशक में मोहल्ले भर के घरों से सब्जी मांग कर लाने का भी एक हसीन दौर था. आज आपको घर में बनी सब्जी से ही काम चलाना पड़ता है जबकि उन दिनों ठरके के साथ हम पड़ोसियों के घर कटोरी ले कर जा धमकते थे. दिनभर की धमाचौकड़ी के बाद जब शाम को घर में घुसते तो मां की डांट-डपट भोजन का हिस्सा हुआ करती थी. 'मा री गाळ, घी री नाळ' कहावत का अर्थ हमने बखूबी समझ लिया था. इसलिए ज्यादा गौर नहीं करते थे. हां, यदि रसोई में सब्जी मनपसंद नहीं बनी होती तो हमारा बालमन भुनभुनाकर विद्रोह कर देता.
इस पर मां बेझिझक कहती- 'जा, कुंती मासी के घर से सब्जी ले आ, उसने शायद आलू बनाए हैं.'
और हम कटोरी उठाकर बिना किसी शर्म के कुंती मासी के घर से सब्जी की कटोरी भरवा लाते. ऐसा नहीं कि सब्जी मांगना सिर्फ हमारा काम था बल्कि कुंती मासी, सक्सेना आंटी, गेजो मासी, संजय, राणी, सुनीता आदि की कटोरियां प्राय: हमारे घर से सब्जी या दाल की भरकर जाती थी. मां की बनाई हुई गट्टे की सब्जी और मूली के पराठें मोहल्ले में प्रसिद्ध थे. इस चक्कर में हमारे घर में पड़ोसियों की कटोरियांं और अन्य बर्तन पड़े रहते थे. यकीनन हमारे बर्तन भी उनके घर की शोभा बढ़ाते होंगे.
उस दौर में सिर्फ सब्जियों का आदान-प्रदान ही नहीं था बल्कि छोटे-मोटे दु:ख सुख भी लोग आपस में बांट लिया करते थे. गुजरे हुए दिनों को याद कर मां कहती है कि उन दिनों जब विवाह शादियां हुआ करती थी तो पडौस की महिलाएं एक दूसरे के कपड़े तक मांग कर पहन जाया करती थी. एक बार फलानाराम की पत्नी मेरी झूमकी और जेठाराम ताईजी का घाघरा मांग कर ले गई थी. झुमकी तो दो-चार दिनों बाद उसने लौटा दी थी लेकिन ताई जी का घाघरा विवाह में गुम कर आई.
मैंने पूछा- 'फिर ताई जी ने क्या किया ?'
'क्या करती ! तेरे ताऊजी से चार गालियां खाई...' मां ने हंसते हुए बताया.
दरअसल, आज दिन पड़ोसियों और हमारे घर की दीवारें बहुत ऊंची हो चुकी हैं. हमने इन दीवारों में अपनी अपणायत और हेत जिंदा चिनवा दिया है. आज हमारे पास घर तो पक्के और आलीशान हैं लेकिन दिल बहुत छोटे हो गए हैं. कड़वी सच्चाई यह है कि हम ओढ़ी हुई रंगहीन आधुनिकता के चक्कर में अपने मोहल्ले के घरों से कोई चीज मांग कर लाना अपनी तौहीन समझते हैं. साग सब्जी की तो सोचिए ही मत, छोटी मोटी चीजें भी अगर पड़ोसियों से मांगी जाएं तो हमारी इज्जत घट जाती है. दुख:द बात यह भी है कि यही मानसिकता हमने अपने बच्चों के दिलों में भी पैदा कर दी है जिसके दुष्परिणाम यकीनन उन्हें झेलने होंगे और वे झेल भी रहे हैं.
आइए, अपने पड़ोसी के घर जाना शुरू करें. शायद प्रेम और प्यार का वही दौर हम लौटा ला सकें तो....!
-रूंख
भाषायी लालित्य लिए मन को छूनेवाली कहानियां
- मनोहर सिंह राठौड़ ( पांख्यां लिख्या ओळमा की समीक्षा ) राजस्थानी और हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर सिंह जी राठौड़ का कला और संस्कृति ...

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