एक आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना कई बार देखना.
... हमारे आसपास कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जिन्हें हम ठीक ढंग से पहचान भी नहीं पाते. जिंदगी की भागमभाग में औपचारिक अभिवादनों पर टिके संबंधों के पीछे कभी झांकने का मौका मिले तो आप पाएंगे कि ऐसे चेहरे अपनी गंभीरता और स्मित मुस्कान के पीछे कितना कुछ महत्वपूर्ण समेटे हुए हैं. इन व्यक्तियों में कई बार आपको छिपे हुए मानस के राजहंस मिल जाएंगे.
ऐसे ही राजहंस हैं गोपी राम वर्मा. सूरतगढ़ के शक्ति नगर निवासी और राजस्थान सरकार के राजस्व विभाग में पटवारी के पद से सेवानिवृत्त गोपी राम जी 'रूंख भायला' होने के साथ-साथ संस्कृत के प्रकांड अध्येता हैं. देव भाषा के प्रति उनका अगाध प्रेम ही है कि उन्होंने अपने तीनों बच्चों को संस्कृत शिक्षा में पारंगत कर दिया है. उनकी विवाहित पुत्री ने हाल ही में संस्कृत अध्ययन में पीएचडी की डिग्री हासिल की है. बिंदु देवी द्वारा महाकवि भृतहरि रचित नीतिशतक की सरल शब्दों में व्याख्या की गई है. वे हरियाणा में महाविद्यालय व्याख्याता के रूप में सेवाएं दे रही हैं. वर्मा का बड़ा पुत्र राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में प्राचार्य के पद पर कार्यरत है और संस्कृत अध्यापन में पारंगत है. विश्व संस्कृत सम्मेलन में संस्कृत की वाचन परंपरा में उसने अपनी प्रतिभा सिद्ध की है. उससे छोटा पुत्र भी संस्कृत शिक्षक है.
गोपीराम जी बताते हैं कि उन्हें संस्कृत अध्ययन का शौक बचपन में अपने ननिहाल से हुआ जहां उनके नाना आयुर्वेद के बड़े वैद्य थे. उनके सानिध्य में रहकर उन्होंने संस्कृत का उच्चारण और वाचन परंपरा सीखी. उनके अनुसार परिवारिक परिस्थितियों के चलते पांचवी कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई 16 वर्षों तक बाधित रही. उसके बाद अपनी रुचि के कारण उन्होंने पुन: अध्ययन आरंभ किया और हिंदी और संस्कृत साहित्य में स्नातक की पढ़ाई पूरी की.
अध्ययनशील व्यक्ति सदैव पुस्तक प्रेमी होता है. गोपी राम वर्मा के पास उपलब्ध ग्रंथों और पुस्तकों का भंडार भी इस बात की साख भरता है. उनके निजी पुस्तकालय में हिंदी व संस्कृत साहित्य के अलावा आयुर्वेद और वन औषधियों के अनेक हस्तलिखित ग्रंथ उपलब्ध है. हस्तलिखित पांडुलिपियों के संबंध में वर्मा जी बताते हैं कि अमरपुरा गांव में एक जमींदार परिवार के पास ये पुश्तैनी ग्रंथ पड़े थे. परिवार का मुखिया इन पुस्तकों को रद्दी में बेच कर पीछा छुड़ाना चाहता था. अपनी पटवारी की सेवा के दौरान अनायास ही वे उस घर में पहुंचे तो दीमक का शिकार हो रही उन पांडुलिपियों को आंगन में फैलाया हुआ था. उन्होंने घर मालिक से निवेदन किया कि वे इन पुस्तकों को ले जाएंगे. बस फिर क्या था. रद्दी में बिकने को तैयार पुस्तकें आज उनके पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रही हैं.
वर्मा जी आयुर्वेद और वन औषधियों के गहरे जानकार हैं. उन्होंने अपने घर और मोहल्ले के पार्क में अनेक आयुर्वेदिक औषधियों वाले पेड़-पौधे लगा रखे हैं जिनकी पूरे मनोयोग से देखभाल करते हैं. इनमें इलायची, अपराजिता, पारिजात, शतावरी, ब्राह्मी, अमलतास, सहजन, अर्जुन, सर्पगंधा, मैदा छाल, पलाश, पत्थरचट्टा आदि शामिल हैं. वे मोहल्ले के पार्क में भी सीजनल पौधों की पौध तैयार करते हैं और उसे सब जगह बंटवाते हैं ताकि वातावरण हरा भरा रहे. पार्क में जब कभी कोई पौधों को नुकसान पहुंचाता है तो वर्मा जी उससे लड़ने पर उतारू हो जाते हैं यह पौधों के प्रति उनका अंतस प्रेम है जिस पर कोई लाख बुरा मनाए उनकी बला से.
सच पूछिए तो ऐसे मानस पुत्रों की उपस्थिति से ही यह पृथ्वी हरियाली की चादर ओढ़े है. इन रूंख भायलों ने चुपचाप निर्विकार भाव से असंख्य पेड़ पौधों का संरक्षण किया है. उसी का परिणाम है कि हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं. गोपी राम जी वर्मा ! हम आपके ऋणी हैं.
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