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Tuesday 5 November 2024

भाषायी लालित्य लिए मन को छूनेवाली कहानियां


- मनोहर सिंह राठौड़

(पांख्यां लिख्या ओळमा की समीक्षा) राजस्थानी और हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर सिंह जी राठौड़ का कला और संस्कृति से गहरा नाता है। लेखक होने के साथ-साथ वे एक कुशल चित्रकार और प्रतिबद्ध समीक्षक भी हैं। शेखावाटी की ठसक और जोधपुर की मिठास को एक साथ संजोने वाले राठौड़ साहब पिछले कई दिनों से स्वास्थ्य लाभ पर थे। उन्होंने 'पांख्यां लिख्या ओळमा' की कहानियों पर सारगर्भित टिप्पणी की है। लखदाद राठौड़ साहब, आपका आशीर्वाद सिर माथे ! आप मित्र लोग भी उनकी समीक्षा को बांचिए-

कहानीकार - डा. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

पुस्तक - पांख्यां लिख्या ओळमा [राजस्थानी ]


पिछले साल छपा यह कहानी संग्रह नौ कहानियों को 80 पेज में समेटे हुए है। राजस्थानी भाषा की मान्यता के जुझारु सिपाही डा.सारस्वत मूल रूप से कवि हैं लेकिन उन्होंने राजस्थानी भाषा में बहुत सुंदर कहानियां भी लिखी हैं। 

इस संग्रह की टाइटल कहानी '' पांख्यां लिख्या ओळमा '' मानवीय भावना से ओतप्रोत है। खाड़ी देश में कमाने गए व्यक्ति को उस समय की मजबूरी के हिसाब से उसकी पत्नी अनेक बार में रिकार्ड किए गए मनोभावों की कैसेट किसी के साथ भेजती है।वह कस्बे से निकलते ही बस में रह जाती है। लेखक को कैसेट मिलती है। पेंतीस बरस बीत गए। इस बीच कथा नायक की पत्नी की मृत्यु हो जाती है।लेखक द्वारा फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर सूचना भेजने से कथा नायक आकर कैसेट प्राप्त करता है। मृत पत्नी की आवाज पैंतीस बरस बाद कैसेट से सुनकर भावुक हो जाता है।कहानी का अंत सुखांत परिस्थिति उत्पन्न कर मानवीय कोमलतम भावों को बड़ी मार्मिकता से उजागर करता है।


इसी प्रकार पहली कहानी, '' संकै री सींव '' में प्राचीन परंपरा से बंधे छोटे से गांव की मानसिकता का अंकन सुंदर ढंग से किया है।गांव में परिवार नियोजन के सुरक्षा कवच की फैक्ट्री लगने की बात पर बवाल मचता है। गांव की औरतों को फैक्ट्री में काम मिलने व आर्थिक विकास की बात समझाने पर भी सहमति न होना फिर नाटकीय ढंग से महिला सरपंच द्वारा आगे आकर स्वीकृति देना, मजबूत कदम साबित होता है। गांव की मानसिकता, महिला सशक्तिकरण, विकास की दौड़, देश की योजना में सहयोगी बनना आदि कई मुद्दे सामने आते हैं।


' प्रीत रो परचो ' कहानी में आज की प्रमुख समस्या पेपर लीक को बड़े सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया है। इसमें एक नवयुवक और नवयुवती के बीच पनपने वाले प्यार के कोमल तंतुओं को बहुत कोमलता, शालीनता से उजागर किया है।सारी यातनाएं झेलने के पश्चात उनका प्रेम विवाह नवयुवती के साहसिक कदम से आकार लेता है। संग्रह की सभी कहानियों को डा. सारस्वत ने राजस्थानी जन जीवन की गरिमा को बनाए रखते हुए पूरी संजीदगी, सावधानी से प्रस्तुत किया है।आज के कथानकों को बहुत खूबसूरती से आगे बढा कर मन को छूनेवाली कहानियां लिखी हैं।ये सभी कहानियां अपने आस-पास की लगती हैं।पात्रों का शानदार चयन, सटीक संवाद, सुंदर शैली और भाषा का लालित्य मन मोह लेता है। हनुमान गढ, श्री गंगानगर जिलों की भाषा का प्रभाव , कहावतों-मुहावरों के नगीने राजस्थानी भाषा के एक अनूठे तेवर को प्रस्तुत करते हैं। उस क्षेत्र की माटी की खुशबू सर्वत्र फैली हुई हे।


राजस्थान के सभी क्षेत्रों के पाठक इन कहानियों की भाषायी सरलता, शब्दों के चयन के कारण इनके मर्म तक आसानी से पहुंच सकते हैं। किसी भी कृति की पठनीयता उसे पाठकों के आकर्षण का केन्द्र बिंदु बनाती है। यह कथा संग्रह एक बार पढ़ना प्रारंभ करने पर पूरा पढे बिना हाथ से छूट नहीं सकेगी।

Wednesday 30 October 2024

लोटे से टॉयलेट जैट तक का सफ़र

इस बात पर बेसाख्ता हंसी छूट गई, ख़्यालों में उन दिनों की परतें उघड़ने लगी जब शौचकर्म के लिए इतनी सुविधाएं विकसित नहीं हुई थी। वो पगडंडियों के दिन थे। सच पूछिए, लोटे से टॉयलेट जैट स्प्रे तक आने में हमें लगभग आधी सदी लगी है ! आज उसी यात्रा के कुछ पन्ने पलटते हैं जिसमें मध्यमवर्गीय परिवारों की विकास गाथा के चिन्ह बिखरे पड़े हैं।


पोतड़ियों का जमाना तो याद नहीं, हां, 1977-78 का वक्त रहा होगा। हनुमानगढ़ जंक्शन की लोको कॉलोनी में स्थित घर के बाहर बनी नाली पर बैठने की कुछ धुंधली सी यादें आज भी ज़ेहन में हैं। नाली के दोनों तरफ पैर रखकर बैठना, शर्ट को ऊंचा कर दोनों हाथों से पकड़ना, पास में एक डंडा रखना, मां का पूछना, 'जा लियो के !', जावूं......!! इसी बीच गली में घूमते आवारा सुअरों को देख भाग खड़े होना जैसी टुकड़ा-टुकड़ा स्मृतियां उभरती हैं। आवारा सुअर उन दिनों छोटे बच्चों के लिए जी का जंजाल हुआ करते थे। खास तौर पर नाली पर बैठते बच्चों के साथ तो मानो उनका वैर ही था। हुरड़-हुरड़ करते कब पास आ धमकें, कौन जाने ! पता नहीं सच था या झूठ, मां अक्सर डराया करती थी, आज सूअर ने फलां बच्चे के बटका भर लिया। यह सुनने के बाद बाल मन की कल्पनाओं में डर के साथ उत्सुकता भी जाग उठती थी।


फिर जब कुछ समझ पकड़ी तो नाली पर जाना छूट गया। यादों का अगला पन्ना पलटता हूं जहां मैं बचपन के दोस्त पवन के साथ लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर शौच के लिए जाया करता था। हनुमानगढ़ में आज जहां कलेक्ट्रेट और सिविल लाइंस का गुलज़ार इलाका है, उन दिनों वहां वीरानी पसरी थी। हास-परिहास में यूं कहा जा सकता है, 'आज जहां कलेक्टर बैठते हैं, वहां कभी देश की भावी पीढ़ी लोटा लिए बैठा करती थी !' पगडंडियों के उस जमाने में शौच के लिए हाथ में लोटा या लोहे का डिब्बा उठाए पवन और मैं घर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर जाया करते थे। निक्कर के उस जमाने में सुख-दु:ख करते हुए दो छोटे दोस्त बिना किसी झिझक के पास-पास बैठकर ही फारिग हो लेते थे।


उन दिनों रेलवे क्वार्टर्स के शौचालयों में 'पॉट' की व्यवस्था होती थी जहां पानी के लिए पुराना मटका और एक डिब्बा रखा जाता था। लोहे का बना यह पॉट रेलवे का सेनेटरी डिपार्मेंट उपलब्ध करवाता था। हम लोग इसे पाट कहा करते थे। सुबह सवेरे रेलवे की एक महिला सफाईकर्मी, जो अपने मुंह और नाक को दुपट्टे से ढक कर रखती थी, आकर इस पाट में पड़े मल को झाड़ू से लोहे के एक पीपे में भर लेती थी। उसे सिर पर उठाए वह घर-घर पहुंचती और पीपा भरने के बाद दूर कहीं ले जाकर खाली करती थी। 


जीवन के इस मोड़ पर आज मैं मैला ढोने वाली उस जननी तुल्य दलित महिला की बड़ी शिद्दत के साथ चरण वंदना करना चाहता हूं। सोचता हूं, कितना घृणित कार्य करने को विवश थी वो महिलाएं, मानव समाज में ऐसी विद्रूप व्यवस्था का यह इतिहास अत्यंत घिनौना है । ओमप्रकाश वाल्मीकि की 'जूठन' और सूरजपाल चौहान की 'संतप्त' कृतियों में मैला ढोने की प्रथा का जो वर्णन किया गया है, वह पाठकों को झकझोर कर रख देता है। आज जो लोग दलित वर्ग के आरक्षण पर सवाल उठाते हैं, उन्हें पता ही नहीं है कि जीवन के निम्नतर स्तर को झेलने वाले इस वर्ग को कितनी प्रताड़ना मिली है, उन्होंने जो कुछ सहा है उसके मुकाबले आरक्षण तो कुछ भी नहीं है । लोकतंत्र की सराहना इस मायने में अवश्य की जानी चाहिए कि उन दलित लोगों को भी समाज की मुख्य धारा में जोड़ा गया है जो कभी उच्च वर्ग का मैला ढोने का काम करते थे।


दलित चेतना, जन विरोध और लोकतांत्रिक सुधारों के चलते रेलवे ने कुछ समय बाद क्वार्टर्स में पॉट परंपरा को समाप्त कर सेफ्टी टैंक का निर्माण प्रारंभ कर दिया था। शौचालय में सिरेमिक सीट लगाकर उनके कनेक्शन टैंक से जोड़ दिए गए थे। 'हमारे तो सीट लग गई, तुम्हारी क्यों नहीं लगी !' पंचायत वेब सीरीज से कहीं बहुत पहले यह डायलॉग हमारे मोहल्ले में हिट हो गया था। पहली बार उस चमचमाती सीट पर बैठने का अहसास किसी बड़ी उपलब्धि से कम न था।


उपलब्धि तो गांव और ननिहाल के पैतृक घरों में धमाका कुई का बनना भी कहा जा सकता है। जब कभी छुट्टियों में गांव जाना होता तो वहां शौच के लिए खुले में जाना पड़ता था। रेत के टीलों पर कहीं भी ओट देखी, बैठ गए। उन दिनों इंदिरा गांधी नहर के निर्माण का काम जोरों पर था, गांव में नहर की एक छोटी वितरिका बन चुकी थी। इस वितरिका में सप्ताह में तीन दिन पानी आया करता था। शौचादि के लिए लोग उसके आसपास ही जाया करते थे। खेतों में जब पानी लगने लगा तो लोगों ने खुले में जाना कम कर दिया। आर्थिक स्तर सुधरा तो घरों में कुइयों का निर्माण होने लगा। इससे घर की महिलाओं को बहुत सुविधा हो गई। हम जैसे फितरती बच्चों के लिए तो कुई भी मनोरंजन का साधन थी। धड़ाम की एक आवाज सुनने के लिए उसमें भरा हुआ लोटा, डिब्बा, कंकड़, पत्थर, न जानें क्या-क्या डाल देते थे ! 


दिन और मैं दोनों आगे बढ़ रहे थे। हां, विकास की इस यात्रा में अब हम चल नहीं रहे थे, बल्कि दौड़ रहे थे। इसी दौड़ में घरों के शौचालय भी खासा संवरने लगे थे। पानी के लिए ब्राश टोंटी, सिस्टन से लेकर पंखे तक के इंतजाम टॉयलेट में होने लगे। शुरू शुरू में जो सीट तेजाब से साफ होती थी, उसके लिए बाजार में टॉयलेट क्लीनर और ब्रश आ गए। टॉयलेट के लिए अलग से परफ्यूम और ओडोनिल जैसे उत्पाद बिकने लगे। फ्लोरिंग टाइल्स से लेकर वॉल टाइल्स तक में आधुनिकता झलकने लगी। बटन पुश करते ही गंदगी साफ, और भला क्या चाहिए ! इंडियन सीट को वेस्टर्न कमोड में तब्दील होते भी ज्यादा वक्त नहीं लगा। सुविधाजनक होने के कारण यह कमोड बीमार और बुजुर्गों की ही नहीं, बल्कि युवाओं की भी पहली पसंद बन गया। जैट स्प्रे के चलते हाथ का तो काम बचा ही नहीं, अब तो वहां आराम से बैठकर नेटफ्लिक्स पर अक्षय कुमार की मूवी 'टॉयलेट- एक प्रेमकथा' तक देखी जा सकती है। अब तो देहात में भी कमोड का चलन हो गया है।

लोटे से जेट स्प्रे तक की इस विकास गाथा में अल्ट्रा मॉडर्न जमाने ने टॉयलेट का नया नामकरण भी कर दिया है। संडास, कुई, शौचालय, लैट्रीन या टॉयलेट कहना तो गुजरे जमाने की बातें हो गई, अब तो अमेरिकन अंदाज में वॉशरूम कहने भर से ही आधुनिकता की फीलिंग आ जाती है। चमचमाता वॉशरूम, स्टाइलिश कमोड, सेंसिटिव जेट, वॉल माउंटेड सिस्टन और सेंसर यूरिनल्स जैसे शब्द अब घर की शान दर्शाते हैं। 'लोटे से टॉयलेट जैट तक का सफर' सही मायनों में मानवीय विकास की अनूठी कहानी है।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख


Wednesday 16 October 2024

खेजड़ी मंदिर की अद्भुत छटा, शरद पूर्णिमा के दिन लाल रोशनी से जगमग है बालाजी का दरबार


 लाल देह लाली लसै, अरि धर लाल लंगूर

वज्र देह दानव दलन जय जय कपि सूर 

शरद पुर्णिमा ! सूरतगढ़ का श्रंगार कहे जाने वाले खेजड़ी दरबार की छटा आज विशेष दर्शनीय है। हो भी क्यों ना, आज शरद पूर्णिमा का खास आयोजन है। मंदिर परिसर में सजाई गई लाल लड़ियों के प्रकाश में ऐसा लगता है जैसे  सीता माता का स्नेह ‘लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल..’ बरस रहा रहा है। सर्वविदित है कि हनुमानजी महाराज को लाल सिंदूर से लगाव है, इसी को ध्यान में रखकर इस बार मंदिर कमेटी द्वारा मंदिर की सजावट में लाल रंग की थीम से सजावट की गई है। इसके लिए समिति की पूरी टीम बधाई की पात्र है। इस बार धौलपुर पत्थरों से सुसज्जित मंदिर को सुनहरी लड़ियों से सजाया गया है। खास बात यह है कि तराशे गए पत्थरों पर सजी इन सुनहरी लड़ियों के प्रकाश की विपरीत दिशा में लाल रंग परावर्तित करने वाली खास लाइटें लगाई गई हैं जिससे सुनहरी रोशनी लाल रंग में बदल गयी है । इस लाइटिंग में मंदिर की शोभा बेहद आकर्षक बन पड़ी है। शरद पूर्णिमा की रात में आसमान में चमकता पूरा चांद है, मौसम भी सुहावना है, ऐसे में शहर भर के श्रृद्धालु आस्था और विश्वास लिए खेजड़ी दरबार में पहुंच रहे हैं। धोरों में बीच स्थित बालाजी के दरबार की यह शोभा अवर्णनीय है।


 गौरतलब है कि बालाजी महाराज की कृपा और मंदिर कमेटी के समर्पित प्रयासों से विगत कुछ ही वर्षों में खेजड़ी मंदिर का कायाकल्प हो गया है। कमेटी अध्यक्ष नरेन्द्र राठी ने अपनी टीम के साथ पूरे परिसर को भव्य रूप देने में कसर नहीं छोड़ी है। मंदिर में आज भव्य रात्रि जागरण भी है, यदि आस्था और मन हो तो आपको खेजड़ी दरबार में आज अवष्य हाजिर लगानी चाहिए। 


Friday 4 October 2024

सफलता है मेहनत का प्रतिफल

 


राजकीय विद्यालय मकड़ासर में सम्पन्न हुआ 'गर्व अभिनंदन', विद्यार्थियों का हुआ सम्मान

लूनकरनसर, 4 अक्टूबर। कोई भी सफलता मेहनत का ही प्रतिफल है। विद्यार्थियों की नज़र हमेशा लक्ष्य पर रहनी चाहिए। यह बात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.हरिमोहन सारस्वत ने कही वे शुक्रवार को उपखंड लूनकरनसर के मकड़ासर गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में आयोजित 'गर्व अभिनंदन' कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम में विद्यालय के 20 विद्यार्थियों का सम्मान किया गया जो 'अंतर्दृष्टि' परीक्षा में सफल रहे। इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार राजूराम बिजारणियां ने कहा कि लूनकरनसर क्षेत्र के प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बशर्ते उन्हें सही दिशा दी जाए। इक्कीस कॉलेज, गोपल्याण से जुड़ी आशा शर्मा ने बताया कि गत दिनों संस्थान द्वारा इस परीक्षा का आयोजन किया गया। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मकड़ासर के प्रधानाचार्य नेतराम जाट, श्यामसुंदर शर्मा, मोहिनी चौधरी, कृष्णा ने विद्यार्थियों की उपलब्धि पर ख़ुशी जाहिर करते हुए उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वहीं सुदेश बिश्नोई ने तकनीकी शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डाला। सभी सफल विद्यार्थियों को सर्टिफिकेट देकर सम्मान किया गया। इक्कीस कॉलेज की तरफ से सरस्वती प्रतिमा विद्यालय को भेंट की गई।

चिकित्सालय प्रभारी और पुलिस की कार्यशैली के खिलाफ शहरवासी हुए लामबंद, झूठे मुकदमे के खिलाफ आंदोलन की तैयारी

 


सूरतगढ़, 15 सितम्बर। राजकीय चिकित्सालय प्रभारी द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार डॉ. हरिमोहन सारस्वत, उमेश मुदगल और 30-40 अन्य रोगी वरिष्ठजनों के खिलाफ संगीन धाराओं में मामला दर्ज करवाने के विरोध आज प्रबुद्ध नागरिकों की बैठक आयोजित की गई। सैन मंदिर में आयोजित इस बैठक में बड़ी संख्या में भाजपा, कांग्रेस, माकपा, बसपा और आम आदमी पार्टी सहित सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख नेताओं सहित गणमान्य नागरिक मौजूद रहे। प्रेस क्लब सूरतगढ़ के आह्वान पर बुलाई गई इस बैठक में उपस्थित सभी लोगों ने एक सुर में घटना की निंदा की। वक्ताओं ने राजकीय चिकित्सालय की अव्यवस्थाओं और चिकित्सा प्रभारी के रवैया पर रोष व्यक्त किया।

भाजपा जिलाध्यक्ष शरणपाल सिंह मान ने कहा कि इस मुद्दे पर वे जल्द ही चिकित्सा विभाग के आला अधिकारियों से बात करेंगे और जो भी दोषी चिकित्सक है उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे। पूर्व विधायक अशोक नागपाल ने कहा कि डॉ. हरिमोहन सारस्वत अपने निजी काम के लिए प्रभारी के पास नहीं गए थे। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो को देखकर कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि सरकारी डॉक्टर के साथ किसी तरह की हिंसा या कोई और घटना हुई है। नागपाल ने कहा कि जो भी हुआ है वह गलत हुआ है हम उसकी निंदा करते हैं। कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि राजकीय चिकित्सालय में अव्यवस्थाओं का मामला नया नहीं है। जरूरत पड़ी तो हम चिकित्सालय में भी धरना लगाएंगे। जनता मोर्चा के ओम पुरोहित ने कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर जिस तरह से प्रहार करने की कोशिश की गई है उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अगर इस मामले को लेकर सड़कों पर भी उतरना पड़ा तो सबसे आगे खड़े मिलेंगे। उन्होंने पुलिस के कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बलराम वर्मा ने कहा कि भाजपा नेताओं को पार्टी बाजी से हटकर अपने शीर्ष नेतृत्व से बात प्रभारी डॉक्टर को तुरंत हटाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संगीन धाराऐं इस मामले में जोड़ी गई है अगर ऐसे मुकदमे होंगे तो फिर आमजन की लड़ाई कौन लड़ेगा। भाजपा महिला नेता रजनी मोदी ने कहा कि कोई भी आम आदमी अव्यवस्थाओं के खिलाफ बोलेगा और उस पर मुकदमा होता है तो जनता को लामबंद होना पड़ेगा। किसान नेता राकेश बिष्नोई ने कहा कि कहा कि इस सब का उद्देश्य है डर का माहौल पैदा करना ताकि लोग अव्यवस्था के खिलाफ बोलना बंद कर दे। उन्होंने कहा कि इस तरह के डॉक्टरों की सूरतगढ़ में जगह नहीं है।

बार संघ न्यायिक के अध्यक्ष एडवोकेट अनिल भार्गव ने कहा कि चिकित्सा प्रभारी डॉ सुखीजा हमेशा से ही विवादित रहे हैं तथा पूर्व में भी एपीओ हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में पुलिस भी बराबर की दोषी है। घटनाक्रम में राजकार्य में बाधा जैसा कुछ था ही नहीं, पुलिस को मुकदमा दर्ज करने से पहले पूरी जांच करनी चाहिए थी। इसके लिए जागरूक लोगों को एकत्रित होकर प्रभारी को सबक सिखाना होगा। कांग्रेस के युवा नेता गगन वींडिंग ने कहा कि प्रभारी को सूरतगढ़ का इतिहास देख लेना चाहिए कि यहां पर विवादित अधिकारियों को किस तरह से विदा किया गया है।

क्रांतिकारी महावीर भोजक ने कहा यह चिकित्सा प्रभारी की हठधर्मिता और घोर लापरवाही है कि वो अपने कक्ष में बैठे रहे और सीनियर सिटीजंस के लिए दवा वितरण की माकूल व्यवस्था नहीं करवा पाए। आप नेता और पूर्व ईओ पृथ्वीराज जाखड़ ने कहा कि चिकित्सा प्रभारी की बदतमीजी के वें खुद भुक्तभोगी हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सा प्रभारी को बोलने की तमीज भी नहीं है। जाखड़ ने कहा कि एक जूनियर डॉक्टर को प्रभारी बना दिया है जिसकी वजह से सीनियर डॉक्टरों को इसकी जी हजूरी करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि अगर हरिमोहन जी बुजुर्गों को दवाई दिलाने के लिए प्रभारी के पास ले भी गए तो कौन सा गुनाह हो गया। लोग तो उनके पास जाएंगे ही। सामाजिक कार्यकर्ता और आंदोलनकारी महावीर तिवारी ने कहा कि राजकीय चिकित्सालय के डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं जाते और घरों में मरीजों को देखते हैं। उन्होंने संगीन धाराओं में मामला दर्ज करने पर पुलिस पर भी सवाल उठाए। हनुमानगढ

बैठक में भाजपा में पूर्व नगरमंडल अध्यक्ष जयप्रकाष सरावगी, वर्तमान अध्यक्ष सुरेश मिश्रा, पूर्व महिला जिलाध्यक्ष रजनी मोदी, पूर्व नगर पालिकाध्यक्ष बनवारी लाल मेघवाल, कामरेड सखी मोहम्मद, बसपा नेता अमित कल्याना ने भी अपनी बात रखी और चिकित्सा प्रभारी के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाने का आह्वान किया। बैठक में किरयाणा यूनियन के अध्यक्ष किशोर गाबा, पूर्व व्यापार मंडल अध्यक्ष दीपक भाटिया, भाजपा नेता अशोक आसेरी, समाजसेवी, विजय मुदगल, वली मोहम्मद, कॉटनसिटी प्रेस क्लब के अध्यक्ष नवल भोजक, पत्रकार रामप्रवेष डाबला, जितेन्द्र खालिया, वृक्ष मित्र राजेन्द्र सैनी, नरेन्द्र शर्मा, कांग्रेसी नेता जगदीष बिष्नोई, बिश्नोई समाज के सीताराम बिश्नोई, पूर्व पार्षद चरणजीत चन्नी, पार्षद हरीश दाधीच, सुरेन्द्र राठौड़, राजीव चौहान, कृष्ण छिम्पा, त्रिमूर्ति मार्केट एसोसिएशन के प्रमोद ज्याणी, गौरीषंकर निमीवाल, एडवोकेट राकेष नायक, एडवोकेट अविनाष महर्षि, डॉ. हर्ष भारती, अली कादरी, टैक्स बार संघ के श्रीकांत सारस्वत, युवा नेता गौरव बलाना, पवन छाबड़ा, अजय सिसोदिया, छात्र नेता रामू छिम्पा, एडवोकेट राजकुमार सेन, राहुल सहारण, सुमित चौधरी, शक्ति सिंह भाटी, अश्वनी भांभू, अनिल ठाकराणी, सिकंदर स्वामी, कृष्ण जालप, अमरनाथ लंगर सेवा समिति के किषन स्वामी, योगेष स्वामी, विकास सारस्वत, सरदूलसिंह भाटी, प्रो. आईएस चेतिवाल, बृजलाल पटवारी, डॉ. जगदीष कस्वा, भागीरथ मेघवाल, सुखदेव सरपंच खूबचंद नायक, वकील राजकुमार सेन, रतन पारीक, ललित शर्मा, एडवोकेट विमल सिंह परिहार, रमेश आसवानी, विकास मदान सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक मौजूद थे।

बैठक के बाद उपस्थित जनों ने पुलिस उपाधीक्षक कार्यालय पहुंचकर सीओ प्रतीक मील को इस मामले में अपना विरोध दर्ज करवाया। लोगों का कहना था कि पुलिस ने इस मामले में एकतरफा कार्यवाही करते हुए मामला दर्ज किया है जो नाकाबिले बर्दाष्त है। उन्होंने सीओ को सामुहिक रूप से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मांग की गई है कि व्रिष्ठजनों के प्रति असंवेदनशील और डयुटी निष्पादन में घोर लारपवाही के दोषी प्रभारी चिकित्सक को प्रभारी पद से तुरंत हटाया जाए तथा इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करवाएं।


उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरुरी है !

 

(राजकीय चिकित्सालय और राजकाज में बाधा का मुकदमा)


13 सितंबर । आज की घटना और मुद्दे की जानकारी उन सब लोगों के लिए जरूरी है, जो अपने शहर से प्यार करते हैं, यहां फैली अव्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उन्हें जान लेना चाहिए कि यदि वे मुंह खोलेंगे तो उनके खिलाफ राज कार्य में बाधा के मुकदमें दर्ज होंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या मुकदमा दर्ज करने से चिकित्सालय की व्यवस्थाएं सुधर जाएगी ? क्या मुकदमे के भय से लोग संघर्ष करना छोड़ देंगे ?

घटना के तथ्य जानिए

आज सुबह करीब 10 बजे राजकीय चिकित्सालय, सूरतगढ़ में डॉ. लोकेश अनुपाणी से मां की दवाई लिखवाने के लिए पहुंचा था तो सोचा, चिकित्सालय की व्यवस्थाओं का जायजा भी लिया जाए। दरअसल 2-3 दिन पहले दैनिक भास्कर में इसी चिकित्सालय के दवा वितरण की अनियमितताओं को लेकर एक बड़ा समाचार प्रकाशित किया गया था, पत्रकार होने के नाते उसकी पड़ताल करनी चाहिए।

इस चिकित्सालय भवन के पिछले हिस्से में सीनियर सिटीजन के लिए दवा वितरण के दो काउंटर बने हुए है। वहां लगभग 40-50 बुजुर्ग पुरुष और महिलाएं हाथ में पर्चियां लेकर खड़े थे। उन मरीजों से पूछताछ की तो पता चला कि दोनों काउंटर की खिड़कियां सुबह से ही बंद हैं। दूर दराज के गांव से आए हुए बड़े बुजुर्ग परेशान हो रहे हैं, लिहाजा चिकित्सालय के प्रभारी डॉ. नीरज सुखीजा को फोन किया। डॉक्टर साहब ने जवाब दिया कि आज स्टेट हॉलीडे है, कर्मचारी छुट्टी पर हैं। बड़ा अचरज हुआ, कम से कम इन बेचारे बुजुर्गों को बता तो दिया जाता या कोई सूचना लगा दी जाती की आज यहां दवाई नहीं मिलेगी। इस पर डॉक्टर साहब से चेंबर में जाकर मुलाकात की तो उन्होंने स्पष्ट जवाब दिया, आप फालतू की पत्रकारिता कर रहे हो, खिड़कियां खुली है, दवाई मिल रही है, मरीज से कह दो दूसरे काउंटर से दवाई ले लें। वहां उपस्थित नर्सिंग स्टाफ सुरेंद्र पारीक ने उल्टे शालीनता से का कहा, 'भाई साहब, अभी कोई व्यवस्था करवाते हैं।' कोई बात नहीं, समस्या का समाधान हो तो अपने कहां दिक्कत है। इस विषय पर प्रभारी चिकित्सा की छोटी सी बाइट लेकर बाहर आ गया।

लाइन में लगे बुजुर्गों को मैंने जाकर बताया कि आज स्टाफ छुट्टी पर है आप दूसरे काउंटर से दवाई ले लें। बुजुर्गों का टोला दूसरे काउंटर पर गया तो वहां स्पष्ट मना कर दिया गया कि आपको यहां से दवाई नहीं मिलेगी। इस पर वे मरीज प्रभारी के चेंबर में पहुंच गए और दवा देने की मांग करने लगे। प्रभारी चिकित्सक व्यवस्था को सुधारने की बजाय उल्टे मुझे धमकाने लगे कि आप इनको ''प्रोवोक'' (उकसाकर) करके लेकर आए हो, और वहां से उठ कर चले गए। बेचारे मरीज अपना सा मुंह लेकर बाहर निकल आए। श्री भगवान, अनिल ठाकरानी सहित वहां उपस्थित लोग डॉक्टर के इस व्यवहार से बड़े खफा हुए। हम सब परिसर में लगे नीम के पेड़ की छाया में खड़े होकर बात करने लगे।

थोड़ी देर में डॉ. दीपेश सोनी और और नर्सिंगकर्मी सुरेंद्र पारीक मेरे पास आए, बोले भाई साहब, असुविधा तो हुई है लेकिन कोई बात ही नहीं है, अपने समाधान के लिए प्रभारी के चेंबर में चलकर बात करते हैं। बातचीत से समाधान निकाले, उससे बेहतर कोई रास्ता नहीं ! यही मेरी सोच है लिहाजा उनके साथ चेंबर में पहुंचे। डॉक्टर साहब ने तब तक वहां पुलिस को बुला लिया था। दो-तीन अन्य चिकित्सक भी रहे होंगे। मैंने और अन्य लोगों ने प्रभारी चिकित्सक को चिकित्सालय में व्यवस्थाएं सुधारने के लिए कहा था क्योंकि बुजुर्ग लोग घंटों से परेशान थे। प्रभारी का कहना था कि डॉ. विजय भादू के समय आप में से कोई पत्रकार नहीं आता था, हमें परेशान करते हो। डॉ. रिद्धकरण नामक चिकित्सक ने तो सलाह देने डाली, कि आपको इंदिरा सर्किल या एसडीम ऑफिस जाकर पत्रकारिता करनी चाहिए लेकिन आप यहां आकर हमें परेशान करते हैं। खैर थोड़ी देर बाद इस बहस बाजी का अंत यह हुआ था कि डॉक्टर साहब चिकित्सालय की व्यवस्था सुधारेंगे और प्रेस उनका सहयोग करेगी। चिकित्सकों की तरफ से आग्रह किया गया कि इस घटनाक्रम को खबरों का तूल न दिया जाए, जिसे मान भी लिया गया।

आगे की कहानी इतनी सी है कि डॉक्टर नीरज सुखीजा अपने तीन-चार चिकित्सकों के साथ पुलिस स्टेशन पहुंचे और मेरे खिलाफ राज कार्य में बाधा का मुकदमा दर्ज करवा दिया है। मजे की बात यह है कि उमेश मुद्गल जिसे शायद डॉ. नीरज सुखीजा जानते ही नहीं उसका नाम भी लिखवा दिया गया है जबकि वह तो वहां किसी निजी काम से हुआ था।

मुझे इस झूठे मुकदमे से कोई परेशानी नहीं है। प्रभारी चिकित्सक द्वारा किए गए दुर्व्यवहार को लेकर मुकदमे से पहले ही एक परिवाद हमारे द्वारा पुलिस को सोंप दिया गया था, उस पर भी पुलिस कार्यवाही करेगी, ऐसा मेरा मानना है।

लेकिन इतना तय है कि साधारण दबी कुचली जनता के हितों के लिए मैं ताउम्र संघर्ष करता रहूंगा। मुझे पूरा भरोसा है, इस संघर्ष में सूरतगढ़ क्षेत्र से प्रेस के समर्पित साथियों के साथ विवेकवान और जागरूक लोग मेरे साथ खड़े होंगे।

- डॉ. हरिमोहन सारस्वत


Wednesday 28 August 2024

प्रधान, ओ सूरतगढ़ है !


- पालिका बैठक में उघड़े पार्षदों के नये पोत
(आंखों देखी, कानों सुनी)
- डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'


पालिका एजेंडे के आइटम नंबर 07 पर आप खूब पढ़ चुके हैं । बैठक में इससे इतर जो कुछ हुआ, उसे भी जानिए। पालिका के पार्षदों ने एक दूसरे के कुछ नये पोत उघाड़े हैं। बिना किसी भूमिका कुछ तथ्य आपके समक्ष प्रस्तुत है :

- पूर्व पालिकाध्यक्ष परसराम भाटिया ने बैठक में सबके सामने पार्षद राजीव चौहान को कहा, ''भूलग्या, मैं थान्नै अर तााखर नैै तीन-तीन लाख दिया हा, खागे हराम करग्या !''

- पार्षद यास्मीन ने परसराम भाटिया को कहा, ''तुम सबसे बड़े भ्रष्ट हो, मेरे वार्ड में पंप हाउस की जमीन का पट्टा जारी कर दिया।'' इस पर पार्षद वसंत बोहरा ने यास्मीन को कहा, ''थे बोलण नै मरो ! आंगनबाड़ी में 5 लाख खाग्या।''

- पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा ने पार्षद कमला को कहा, ''थे आपगो पट्टो बणायो, फेर छोरै गै नांव गै बणायो, फेर दूसरै छोरै गै नांव गो बणायो, पार्षद होवता थारा पट्टा बण ई कोनी सकै !"

- परसराम भाटिया ने ओम कालवा को कहा, '' बसंत विहार के यूटिलिटी वाले मामले में तुम एक करोड़ रुपए खा गए और पट्टा जारी कर दिया, डूब मरो !"

- आइटम नंबर 7 के समर्थन में बोल रहे पार्षदों ने परसराम भाटिया और धर्मदास सिंधी पर इस मामले में 50 लाख की डील सिरे न चढ़ने के आरोप लगाए। उनका कहना था इसलिए आप ज्यादा कूद रहे हो !

- विधायक डूंगर राम गेदर ने एजेंडे से पहले शहर की सफाई व्यवस्था पर चर्चा करनी चाही लेकिन ओम कालवा ने कहा, ''चर्चा तो एजेंडे के अनुसार ही होगी।'' हालांकि बाद में खुद कालवा बैठक के बीच में ही पत्रकारों को प्लॉट देने का नया प्रस्ताव ले आए, मजे की बात पार्षदों पर मेजें भी थपथपा दी। कालवा की इस चतुराई पर किसी पार्षद की टिप्पणी सुनाई दी 'आप गुरूजी बैंगण खावै, दूसरां नै....!"

- बैठक में यह पता लगाना बड़ा मुश्किल था कि कौन सा पार्षद कांग्रेसी है और कौन सा भाजपा का। पत्रकारों में कानाफूसी हुई, "ये सब सिट्टासेक पार्षद हैं !"

हमेशा की तरह महिला पार्षदों की भूमिका इस बैठक में भी मूकदर्शक की रही। सिवाय इक्का-दुक्का प्रतिक्रिया और आरोप के ये महिलाएं चुपचाप देखती रही।

अब जनता ही तय कर ले कि उसने कैसे-कैसे जनप्रतिनिधि चुने हैं ! सफाई व्यवस्था हो या बरसाती पानी की निकासी का मामला, टूटी सड़कों का मुद्दा हो या पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार, कहीं कोई उम्मीद मत पालिए बस देखते जाइए।

अंत में......ठहाका लगाइए-

प्रधान, ओ सूरतगढ़ है ! 



Saturday 17 August 2024

गिराने की लाख कोशिशों के बीच निरंतर उभर रहे हैं गेदर

- नगरपालिका चुनावों में बना सकते हैं कांग्रेस का बोर्ड 

- भाजपा से लोकसभा सीट छीनने में महत्वपूर्ण भूमिका


कभी-कभी ऐसा होता है जब सारी दुनिया आपको गिराने में लगी होती है, उस वक्त एक अज्ञात शक्ति चुपचाप आकर आपके साथ खड़ी हो जाती है। देखते ही देखते पूरी तस्वीर बदल जाती है, आप और बेहतर ढंग से उभरने लगते हैं। आध्यात्मिक शब्दावली में इसी को 'डिवाइन जस्टिस' कहा जाता है। राजनीति की बात करें तो सूरतगढ़ के विधायक डूंगर राम गेदर 'डिवाइन जस्टिस' का बेहतरीन उदाहरण है।

यह ईश्वरीय न्याय उन्हें भी समझ आ गया है, शायद इसीलिए वे पूरे मनोयोग से अपना काम कर रहे हैं। हालांकि एक वर्ग विशेष के लोग आज भी उन्हें विधायक मानने से गुरेज करते हैं लेकिन जैसा कि ट्रकों के पीछे लिखा रहता है 'जिसके सिर ऊपर तू स्वामी, सो दुख कैसा पावे'।

गेदर की विधायकी के अब तक के कार्यकाल पर नजर डालें तो पाएंगे कि उन्होंने गंभीरता से काम किया है। विपक्षी विधायक के रूप में उन्होंने विधानसभा में शानदार ढंग से शुरुआत की थी। शपथ ग्रहण के समय ही उन्होंने पुरजोर ढंग से राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग उठा कर अपने तेवर दिखा दिए थे। हाल ही में समाप्त हुए विधानसभा सत्र में क्षेत्रीय जन समस्याओं के साथ-साथ प्रदेश स्तरीय मुद्दों पर भी गेदर ने सरकार से न केवल तीखे सवाल-जवाब किए बल्कि कई बार तो मंत्रियों को भी बैक फुट पर आना पड़ा। विधानसभा में पूरी तैयारी के साथ अपनी बात रखना यह दिखाता है की गेदर का 'होमवर्क' कैसा है। उनकी कार्यशली जातिगत राजनीति के आरोपी को नकारती है जब वे जनता के हर वर्ग के साथ खड़े नजर आते हैं। याद कीजिए, जब कुछ दिन पूर्व गेदर ने जन भावनाओं के साथ जुड़कर सिटी पुलिस थानाधिकारी की कार्य शैली के खिलाफ न सिर्फ धरने पर बैठने की बात कही, बल्कि उस मुद्दे को विधानसभा में भी उठा दिया। उनके कड़े रुख का परिणाम ही रहा कि सीआई को लाइन हाजिर कर दिया गया। इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्ववर्ती विधायक की तरह उनके मुंह से कभी यह नहीं सुना गया, 'आपणी तो चालै कोनी या फिर अपनी तो सरकार ही नहीं है !'

श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस को जिताने में भी गेदर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस जीत से न सिर्फ देश-प्रदेश के राजनीतिक समीकरण बदले हैं बल्कि गेदर का कद भी बढ़ा है। इसी के चलते चर्चा चल रही है कि नगर पालिका चुनाव में भी कांग्रेस अपना बोर्ड बनाने में कामयाब होगी।

गेदर को गिराने की कितनी कोशिशें हुई, इसकी पड़ताल के लिए थोड़ा पीछे लौटते हैं । कांग्रेसी दिग्गजों के बीच गेदर को पार्टी का टिकट मिलना कोई आसान बात नहीं थी। शांत और धीर स्वभाव के गेदर को यह कहकर बड़े हल्के में लिया जाता था कि वे सिर्फ दलित वर्ग की राजनीति करते हैं। फिर बसपा से आमजन की दूरी भी किसी से छिपी नहीं थी । लेकिन बसपा से कांग्रेस में आए गेदर की निष्ठा और समर्पण को अशोक गहलोत ने भली-भांति पहचान लिया था, जब गेदर ने प्रदेश में कांग्रेस के लिए जनसंपर्क अभियान में तन, मन, धन से काम किया था । इसी के चलते उन्हें प्रदेश माटी कला बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। विधानसभा चुनाव से पहले ही उनकी मांग पर बीरमाना में सरकारी कॉलेज और सहायक अभियंता विद्युत का कार्यालय खुलने की घोषणा हो गई थी। उस वक्त भी गेदर पर एक जाति और क्षेत्र विशेष के लिए काम करने के बेतुके आरोप लगे थे। जन सामान्य भी दिग्गजों के समक्ष गेदर को टिकट मिलने की बात को संशय से देखता था। बसपा के कुछ पुराने कार्यकर्ता तो गेदर को दगाबाज बताया करते थे। उनका दावा था कि उसे टिकट भले ही मिले दलितों के वोट नहीं मिलने वाले। लेकिन तमाम दावों और संदेहों से परे डूंगर राम ने न सिर्फ़ टिकट हासिल की बल्कि रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे। हर जाति और वर्ग से उन्हें भरपूर समर्थन मिला। उनके विरोधियों की तमाम चालें और कयास धरे के धरे रह गए।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद डूंगर राम गेदर राजनीति में एक लंबी पारी खेलने के लिए तैयार हैं। यदि इसी कार्यशैली से वे मैदान में डटे रहते हैं तो उन्हें जनता का आशीर्वाद भी मिलता रहेगा।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Monday 17 June 2024

एपेक्स विमैंस क्लब ने लगाई शरबत की छबील


- निर्जला एकादशी के पहले दिन जन सेवा का कार्यक्रम आयोजित

सूरतगढ़, 17 जून । निर्जला एकादशी के पहले दिन अपेक्स विमेंस क्लब द्वारा मीठे शरबत की छबील लगाई गई। राजकीय चिकित्सालय के सामने आयोजित इस कार्यक्रम में क्लब के सदस्यों द्वारा राहगीरों को रूहअफजा और दूध मिश्रित मीठा शरबत पिलाया गया। बस स्टैंड से बाजार की तरफ आ रहे सैकड़ो राहगीरों ने तपती धूप के बीच इस छबील पर ठंडा शरबत पीकर प्यास बुझाई । इस अवसर पर अपेक्स क्लब के सदस्यों के अलावा शहर के गणमान्य नागरिक भी उपस्थित हुए । 


जन सेवा के इस प्रकल्प में विमैंस क्लब की अध्यक्ष डॉ. पूनम गगनेजा, सचिव आशा शर्मा, कोषाध्यक्ष साक्षी छाबड़ा, सदस्य सुनीता मनचंदा, सुनीता भठेजा, नीरज कामरा, कविता अग्रवाल, सुनीता गोयल ने अपनी सेवाएं दी।

Sunday 16 June 2024

बाइस्कोप पर आँख गढ़ाकर दुनिया को देखने और जानने की कोशिश

 गुलेरी की गलियों से गुज़रते हुए...

अतुल कनक राजस्थानी और हिंदी साहित्य में एक सुपरिचित नाम है । उनके सामयिक आलेख और साहित्यिक रचनाएं समाचार पत्रों में निरंतर पढ़ने को मिलते हैं। बतौर समीक्षक उनकी टीप रचनाकर्म के उन अनछुए पक्षों को उजागर करती है जो लेखकों के दायित्व को बढ़ाने का काम करते हैं। इसका सीधा सा कारण है कि वे एक प्रतिबद्ध पाठक हैं। उन्होंने मेरे संस्मरणों की पोथी 'गुलेरी की गलियों से गुजरते हुए' पर अपनी बात कही है। यार-भायले भी इस सारगर्भित समीक्षा को पढे़ंगे तो अग्रज अतुल जी की तथ्यों पर पकड़ और गहन साहित्यिक दृष्टि से परिचित हो सकेंगे...।


डाॅ हरिमोहन सारस्वत 'रूंख' राजस्थान के एक चर्चित और प्रतिष्ठित रचनाकार हैं। 'गुलेरी की गलियों से गुज़रते हुए' उनके संस्मरणों का संग्रह है। 1970 के दशक में जिये हुए बचपन के ये चित्र उन पाठकों को भी स्मृतियों के उस स्पंदन की दुनिया में ले जाते है जिन्होंने बाइस्कोप पर आँख गढ़ाकर दुनिया को देखने और जानने की कोशिश की है। तब आज की तरह दुनिया मोबाइल में सिमटकर नहीं आई थी। लेकिन उस दुनिया में जितना प्रेम, जितना उत्साह और जितना अपनत्व था- वह आज दुर्लभ हो गया है। "क्या आप पड़ौसी से कभी सब्जी माँगकर लाए हैं" शीर्षक वाला संस्मरण इस दर्द को रेखांकित करता है। लेखक बताता है कि आज से करीब चालीस साल पहले एक ही मौहल्ले के लोगों में इतना अपनापन होता था कि बच्चे अपने घर में बनी सब्जी पसंद नहीं आने पर बेहिचक पड़ोस के किसी घर से अपनी पसंद की सब्जी माँगकर ले आते थे। अब जबकि बच्चे अपने पड़ौसी की छत तक पर जाने में असहज महसूस करते हों, यह सब्जी माँग कर लाने वाला रिश्ता अटपटा सा लग सकता है। लेकिन जिन लोगों ने उस सुख को जिया है, इसका आनंद वो ही महसूस कर सकते हैं। लेखक कहता है - सिर्फ सब्जियों का आदान प्रदान ही नहीं था, बल्कि छोटे मोटे दुख सुख भी लोग आपस में बाँट लिया करते थे। अब पड़ौसी और हमारे घर की दीवारें बहुत ऊँची हो चुकी हैं। हमने इन दीवारों में अपनी अपणायत और हेत को जिन्दा चिनवा दिया है।आज हमारे पास घर तो आलीशान और पक्के हैं लेकिन हमारे दिल बहुत छोटे हो गए हैं। ..आइए , अपने पड़ौसी के घर जाना शुरू करें।" (पृ 26, 27)

दरअसल, अपनेपन के खो जाने का दर्द और सर्वे भवन्तु सुखिनः की चेतना को बचाने का मोह ही इस किताब के प्रणयन का प्रस्थान बिन्दु है। रचनाकार ने राजस्थानी के रूंख शब्द को अपना उपनाम चुना है, जिसका अर्थ होता है पेड़। रूंख से मोहब्बत की कहानी भी इस पुस्तक में है। बचपन में रचनाकार के दोस्त के घर वाली कालोनी में एक शहतूत का पेड़ था, जो बच्चों को बहुत प्यारा था। शहतूत के पेड़ को लेकर लिखे गए तीन किस्से किताब में हैं।"जड़ें उखड़ने का दर्द एक दरख्त से बेहतर भला कौन समझ सकता है?" (पृ 10) / "स्त्री जात का अंतस भीगे बिना नहीं रहता, तिस पर मैं तो मीठे बेर देने वाली बोरटी ठहरी" (पृ 12)/ "कहीं वह दर्द के समंदर में डूबा प्रेम की प्रार्थना न बुदबुदा रहा हो" (पृ 34)/"हम एक दूसरे के हौंसले में जिंदा रहते हैं (पृ 48)/ "सिक्कों का ज़माना भी क्या ज़माना था। सब खनकते थे। यहाँ तक कि जिसकी जेब में पड़े होते वह भी बाकायदा खनक रहा होता" (पृ 52) /"उंगलियों को मुंह में दबाकर सीटी बजाने की कला सबके पास नहीं थी। इसे सीखने के लिए हम जैसे नौसिखिए उस ज़माने के महारथी गुरुओं के चरण में बैठते थे" (पृ 74) जैसे प्रसंग बताते हैं कि रचनाकार ने उस दौर के छोटे छोटे सुखों या अहसासों को कितनी संवेदना के साथ स्मृतियों की माला में पिरोया है।

लेखक राजस्थानी भाषा के समकाल के महनीय रचनाकार हैं और पंजाब से सटे हिस्से के नागरिक होने के कारण उनकी भाषा में पंजाबियत भी बहुत ठसके से उतर आती है। भाषाओं का यह संगम अभिव्यक्ति के तीर्थ की ताकत बन जाता है।

यह किताब मुझे कुछ समय पहले मिल गई थी। लेकिन पता नहीं कैसे पुस्तकों के ढेर के नीचे दब गई। अचानक हाथ लगी तो पढ़ना शुरु किया और फिर पूरी पढ़े बिना नहीं छोड़ सका।शायद इसीलिए मान्यता है कि सुखों के शगुन सँभाल पाने का सुख भी कई बार हमारी सामर्थ्य से फिसलकर संयोगों की गोदी में जा बैठता है।विलंब से ही सही डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख' जी को बधाई
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गुलेरी की गलियों से गुज़रते हुए/ संस्मरण/ डाॅ हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'/ बोधि प्रकाशन, जयपुर/ 2023/ पृ 100/ मूल्य 200/_
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Sunday 5 May 2024

अनूठी कहाणियां रौ संग्रै — ‘पांख्यां लिख्या ओळमां’

 

(समीक्षा-प्रेमलता सोनी)

"हथाई रै गोळी कुण ठोकी ?"

"चैटिंग !"

"ओ हो, वा अठै कद पूगी ?"...

‘गरागाप’ कहाणी सूं ही लेखक आपरो मकसद पाठकां रै सांम्‍ही राख दियो। सबदां रा इसा बाण चलाया है कहाणीकार, कै सीधा जाय'र पाठकां रै दिमाग में धंस जावै। आ कहाणी पढ्या पाछै हिवड़ो याद करण लाग जासी कै कद भायलां-भायली सागै हथाई होयी। सगळी खोज-खबर बातां-चीतां तो फेसबुक अर व्हाट्सएप ग्रुप में ही होयी। लेखक परभातियै सुपनै सूं सगळां नै चेतावै "सबदां री बैकुंठी त्यार है !‘’ 

नौ कहाणियां रै इण झूमकै में सगळी कहाणियां मांय लेखक रै कैवण रो ढंग इस्यो सांतरो कै कहाणी कठैई सुस्त कोनी पड़ै। कहाणी रो अनूठो विषय अर सागै ही किरदार इसा लागै जाणै घणी जाण-पि‍छांण हुवै। कहाणी पढ़तां थकां लागै जाणै कहाणी रा किरदार आंख्यां सांम्‍ही आय'र खड़ा हो जावै अर हाथ पकड़ियां ठिरड़'र ले जावै आप नै कहाणी रै मांय !

"संकै री सींव" अेक छोटै सै गांव री कहाणी, जठै त्यारी चाल रही ही कंडोम फैक्ट्री री, इत्तौ घणो हुवै गांव में चरचा तांई। अेक कहाणी, पण अंत दो गांव रै बिगसाव सागै लुगाई जात रा बदळियोड़ा तेवर। 

'पांख्यां लिख्या ओळमां' कहाणी में लेखक दो जमानां नै अेक सागै राख'र अेक अनूठो प्रेम दरसावै। तीस-पैंतीस बरस पुराणों संदेस ऑडियो कैसट में रिकॉर्ड हुयोड़ो फेसबुक अर इंस्टाग्राम सूं होय'र धणी तंई पूग्‍यो। 

Premlata Soni
'प्रीत रो परचो' कहाणी री लिछमां जाणै खुद आपरी कहाणी सुणा रही हुवै। पेपरलीक रै मुद्दे सागै अेक सोहणी प्रेम कहाणी, इसो प्रयोग कोई सबदो रो सिरजणहार ही कर सकै। "निरभागण" इण संग्रै री सैं सूं मार्मिक कहाणी है, जिण में लेखक चेतावै के आज रै बखत में माईतां रै दियोड़े नांव सूं ज्यादा जरूरी है कागद-पांनां में दरज नांव। चुणावां रो बखत अर दिहाड़ी मजूरां पर लिख्योड़ी, व्यंग्य रा छींटा मारती कहाणी है "बात बैठी कोनी!" 

‘मा कूड़ बोलै!’ कहाणी सूं लेखक मां ने ओळमों देवै, आपरै बखत री बातां बतावती मां सगळां नै साव कूड़ बोलती दीसै। मां री बातां भेजै नै कठै जचै ? पाठक इण कहाणी सूं खुद नै जुड़तौ मैसूस करै ।

"कुमांणस" कहाणी अेक मिस्त्री रो दरद बतावै के किंयां चूनै-ईंट-भाठै रो काम करातां थकां धणी रो काळजो भाठै सरीखो होय जावै।

रोडवेज बस मांय उपराथळी सवारियां, थापा-मुक्की..झींटम-झींटा..गाळियां रा गुचळकां सागै हरेक बात री खाल उतारतो लेखक, जाणै कहाणी नीं कविता रौ करतब दिखावतो हुवै। लेखक सबदां रा जोरदार चबड़का मारतो बोलै, "जावण द्यो ,के पड़्यो है !" 

हरिमोहन सारस्‍वत 'रूंख' रो औ अेक न्‍यारी भांत रौ जबरो कहाणी संग्रै है, जिण री कहाणियां राजस्‍थानी पाठकां में तो कोतुहळ जगावै ई, हिन्‍दी अर दूजी भारतीय भासावां में ई राजस्‍थानी कहाणी री साख नै बधावै। आ बात पण लागै के जे 'पांख्यां लिख्या ओळमां', री अै कहाणियां हिन्‍दी अर दूजी केई भासावां में अनुवाद रै जरियै बडै पाठक वरग तांई पूगै तो निस्‍चै ई कहाणी रा पाठकां नै राजस्‍थानी कहाणी री मिठास अर अनूठैपण री आछी पिछांण हो सकै। 

-प्रेमलता सोनी 

( समीक्षक हिंदी और राजस्थानी की नवोदित उपन्यासकार और बेहतरी कथाकार हैं)


* पांख्‍यां लिख्‍या ओळमां (कहाणी संग्रह) – डाॅ हरिमोहन सारस्‍वत 

* सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर संस्‍करण 2023, पृष्‍ठ --- 80

* मूल्‍य --- ₹250

Sunday 28 April 2024

कुछ शब्द भीतर तक डराते हैं !

 

दोस्त कहते हैं, मैं शब्द का आदमी हूं. हां, थोड़ा बहुत लिख पढ़ लेता हूं, शायद इसी वजह से वे मुझे शब्द का साधक मान बैठते हैं. शब्द भी कहीं सधते हैं भला ! मन तो कदास सध भी जाए, शब्द का सधना तो संसार साधना हुआ. संसार तो बड़े-बड़े ऋषियों, मुनियों से नहीं सधा, तो अपनी औक़ात ही क्या !
सच कहूं तो शब्दों से निकटता के बावजूद कुछ शब्द बहुत डराते हैं, आदमी भीतर तक सिहर जाता है. 'एक्यूट' भी ऐसा ही एक शब्द है जिसकी उपस्थिति की संभावना मात्र से मेरे होठों पर प्रार्थनाएं आकर बैठ जाती हैं. अनसुनी प्रार्थनाओं के बीच भय के सायों से घिरा मैं खुद को बड़ा असहाय महसूस करता हूं, मेरे पास पत्थरों की तरह अपलक ताकने के अलावा कोई चारा नहीं होता...... !

(अधखुले पन्नों के बीच...)
दिनांक 25 मई 2022

जी, नमस्कार.....

नमस्कार !

मैं राकेश बोल रहा हूं, बसंत जी ने आपका नंबर दिया है...

हां कहिए सर, क्या हुकुम है मेरे लिए...

जी, दरअसल बात यह है कि मेरे मौसाजी की तबीयत खराब है. उनकी ब्लड रिपोर्ट आई है जिसमें कैंसर डिटेक्ट हुआ है. सच पूछिए पूरा परिवार घबराया हुआ है.

ओह ! पर घबराइए नहीं, अब तो कैंसर का इलाज उपलब्ध है.

सर, आप मार्गदर्शन कीजिए ना. डॉक्टर्स की एडवाइज समझ ही नहीं आ रही है. बसंत जी ने कहा है कि आप इस बीमारी में बेहतर सलाह दे सकते हैं.

?????...............

हैलो......हैलो......सर, सुन पा रहे हैं ना ?

.....ओ.... हां,........ आप ऐसा करें उनकी रिपोर्ट मुझे व्हाट्सएप कर दें, उसके बाद हम आगे का लाइनअप देखते हैं.

ठीक है, आप रिपोर्ट भेजिए....

थोड़ी देर बाद व्हाट्सएप पर उसी नंबर से एक पीडीएफ पहुंचती है.

उसे खोलने से पहले मैं मन ही मन प्रार्थना करता हूं. पता नहीं क्यों...

लेकिन कभी-कभी प्रार्थनाएं सिर्फ करने के लिए होती हैं, सुने जाने के लिए नहीं....

महेश शर्मा..... उम्र 55 वर्ष....... बोन मैरो स्टडी रिपोर्ट....... मेरी नजरें तेजी से इंप्रेशन को ढूंढती है और कुछ क्षणों में ही सारी तलाश खत्म हो जाती है...... निस्तेज..... निढाल..... अंतहीन निराशा..... 'एक्यूट मायोलॉयड ल्यूकेमिया'

एक लंबी सांस छोड़कर आंखें बंद कर लेता हूं......

स्क्रीन पर फिर वही नंबर चमकता हैं........ कभी-कभी रिंगटोन कितनी डरावनी हो जाती है !

सर, आपने रिपोर्ट देखी ?

ओ हां, राहुल जी, मैंने रिपोर्ट देख ली है......

तो सर........

ठीक नहीं है.

डॉक्टर्स भी यही कह रहे हैं. सर, मौसा जी का पूरा परिवार उन्हीं पर आश्रित है. उनकी आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है. अब क्या करना ठीक रहेगा ?

देखें, इन परिस्थितियों में सबसे बड़ी बात है पेशेंट का होसला बनाए रखना. हमारे शरीर में बहुत से पावरफुल हार्मोन हमारी पॉजिटिविटी पर निर्भर करते हैं. उन्हें बार-बार एक वाक्य की तरफ मोड़ें, 'कोई बात नहीं.' वैसे क्या मौसा जी को पता है ?

पता नहीं सर. मैं हॉस्पिटल जा कर आपकी बात करवाता हूं.

जरूर, मेरी बात करवाएं....!

ख्याल बड़ी तेजी से दौड़ते हैं. चेहरे उभरते हैं, भाप बनकर उड़ते रहते हैं. उड़ते-उड़ते जाने कब बादलों में बदल जाते हैं. गरजते बादल.... बरसते बादल....आंख से......मन से........ बिजली कड़कड़ाती है और फिर ....... तूफानी बारिश के बाद का मंजर.... कितना कुछ बह जाता है....... बिखर जाता है...... कांच के किरचों से झांकते डरावने अक्स मेरा वजूद लील जाते हैं.... सब कुछ शून्य में विलीन हो जाता है.
-रूंख

Saturday 27 April 2024

कॉलर खड़े किए हाथों में घड़ियों वाले दिन !

 

आज लगभग बीस बरस बाद एक बार फिर हाथ घड़ी पहनी है ! सोचा, इस घड़ी के बहाने ही सही, पगडंडियों के दिनों की कुछ यादों को संजोया जाए।

दरअसल, कुछ रोज पहले अचानक एक ख्याल उमड़ा था, क्यों ना ब्लैक स्ट्रेप वाली हाथ घड़ी पहनी जाए ! ख्याल तो ख्याल था, जिस गति से आया था उससे दुगुनी चाल में लौट गया। दो-तीन दिन से तबियत कुछ नासाज़ थी। घर पर थर्मामीटर तलाशा तो पता चला उसकी बैटरी डाउन है। बैटरी चेंज करवाने के लिए जनसंघर्ष के साथी राजवीर भाजी की दुकान पर पहुंचा। वहां घड़ियों को देख एक बार फिर पुराने ख्याल ने दस्तक दी।

बस भाई राजवीर ने तुरंत अपनी पसंद की हाथ घड़ी पहना दी। स्मार्ट वॉच के जमाने में एचएमटी की सुइयों वाली घड़ी ! सच पूछिए तो स्मार्ट वॉच मुझे कभी पसंद ही नहीं आयी। मेरा दिल तो हमेशा टिक-टिक करने वाली सुइयों वाली घड़ी पर ही रीझता है। फिर एचएमटी से तो स्वदेशी वाली फीलिंग भी आनी है !

1982-83 का वक्त रहा होगा। उन दिनों हाथ घड़ी का बड़ा क्रेज हुआ करता था। अपने-अपने रुतबे के हिसाब से लोग घड़ी पहना करते थे। मैं हनुमानगढ़ के रेलवे स्टेशन पर स्थित सरकारी स्कूल में सातवीं जमात का विद्यार्थी था। स्कूल में कुछ बच्चे घड़ियां पहन कर आते थे, उन्हें देखकर मेरा भी मन घड़ी पहनने को ललचाया करता। उन्हीं दिनों पापाजी एचएमटी की नई घड़ी ले आए थे, सो उनकी सफेद डायल वाली पुरानी वेस्टर्न वॉच मेरी लालसा और अकड़ की तुष्टि करने के लिए पर्याप्त थी। संयोगवश मेरे जिगरी दोस्त संजय गुप्ता के पास भी अपने दादाजी से मिली वैसे ही घड़ी थी। हम दोनों उन एंटीक घड़ियों को पहनकर बेवजह इतराया करते थे। उस घड़ी में नियमित रूप से चाबी भरनी पड़ती थी। काले स्ट्रेप में गोल डायल मेरी नन्ही कलाई पर क्या खूब फबता था ! उन दिनों जब राह चलता कोई समय पूछता तो एक अनूठी अनुभूति का एहसास होता। वह घड़ी भले ही पूरा दिन टिक-टिक करती थी लेकिन बकौल मां के, उन दिनों मेरे पैर घर में टिकते ही नहीं थे। अन्नाराम 'सुदामा' के शब्दों में कहूं तो गधा पच्चीसी उम्र थी वह !

फिर 1986 में मैट्रिक परीक्षा में जब स्कूल टॉप किया तो वादे के मुताबिक पापाजी ने गुरुद्वारा गली स्थित प्रहलाद जी मोदी की दुकान से गोल्डन कलर की एचएमटी 'जयंत' घड़ी दिलवाई थी। उसमें सुनहरी चैन लगी थी। जाने कितने दिन तक मैं उस नयी घड़ी के नशे में झूमता फिरा था। भटनेर फोर्ट स्कूल से नेहरू मेमोरियल कॉलेज तक के सफ़र में मेरे पास वही घड़ी थी। यादों भरा बेहद शानदार वक्त बिताने वाली उस घड़ी के साथ मैंने सफलता के कई आयाम छुए थे।

उसके बाद तीसरी घड़ी सौगात के रूप में ससुराल से मिली। विवाहोत्सव में समठणी के वक्त टाइटन की खूबसूरत सुनहरी घड़ी पहनाई गई जिसमें बैटरी लगी थी। यानी चाबी भरने का झंझट ही नहीं ! उसे पहनते ही जीवन बड़ी तेजी से दौड़ने लगा था। जाने कितने दिनों तक उसे पहना होगा याद ही नहीं ! हां, इतना जरूर याद है कि 2003 के आसपास हनुमानगढ़ में मोबाइल फोन आने के बाद से घड़ी की जरूरत ही महसूस नहीं हुई। 

आज एक बार फिर जब हाथ में घड़ी पहनी है तो गुजरे वक्त का शुक्रिया अदा करने को जी चाहता है ! प्रमोद तिवारी की कविता की कुछ पंक्तियां याद आती है-

याद बहुत आते हैं गुड्डे-गुड़ियों वाले दिन 

दस पैसे में दो चूरण की पूड़ियों वाले दिन 

बात-बात पर छूट रही फुलझडियों वाले दिन

कॉलर खड़े किए हाथों में घड़ियों वाले दिन....!

-रूंख

Monday 22 April 2024

सावधान ! पुलिस के नाम पर ब्लैकमेल करने का नया गोरखधंधा

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 पुलिस अधिकारियों की डीपी लगे व्हाट्सएप नम्बरों से आती है कॉल


- साइबर क्राइम मामलों पर पुलिस और गृह मंत्रालय की बेबसी

'हैलो'
कौन ?
'हैलो, एसएचओ सदर विजय शर्मा बोल रहा हूं. मेरी बात राकेश अरोड़ा से हो रही है ?'
'जी, बोल रहा हूं !'
'सुनो अरोड़ाजी, तुम्हारा लड़का सोनू इस वक्त पुलिस कस्टडी में है. रेप का चार्ज है. चार लड़कों के साथ पकड़ा गया है. ऐसे ही संस्कार दिए तुमने ?
'क्या, क्या ?'
'क्या क्या मत कर. तुरंत पुलिस स्टेशन पहुंच !'
'सर, सर ! आप कौन बोल रहे हैं ?
'साले, एक बार में समझ नहीं आता, सदर पुलिस स्टेशन से बोल रहे हैं. तुम्हारे लड़के को उल्टा लटका कर वो सजा देंगे कि सात पीढियां याद रखेंगी.....'

जरा सोचिए, इस तरह की कॉल्स यदि आपके पास आए तो आपकी मनोदशा कैसी हो जाएगी. यकीनन एक बारगी तो आप घबरा ही जाएंगे और कॉल करने वाले फर्जी अधिकारी से ही मदद की गुहार लगाने लगेंगे. फेक कॉल करने वाला आपको अपने जाल में फंसा पाकर पैसे की डिमांड करेगा. आप अपनी इज्जत प्रतिष्ठा को बचाने के लिए पैसे भी देंगे और मामला रफा-दफा करने के लिए के लिए गिड़गिड़ाएंगे. लेकिन जब वास्तविकता का पता चलेगा तो आपके चूना लग चुका होगा.

ऐसी ही एक कॉल प्रेस क्लब सूरतगढ़ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन सारस्वत के पास सोमवार सुबह आई जिसमें कॉलर ने खुद को सदर पुलिस स्टेशन, दिल्ली का अधिकारी बताया. पाकिस्तान आईसीडी नंबर (9234410648330) से की जा रही इस कॉल के जरिए उन्हें

ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई और पैसों की डिमांड की गई. चूंकि बात एक पत्रकार से हो रही थी इसलिए अपराधियों की दाल ज्यादा गली नहीं, लिहाजा फोन काट दिया गया. सिटी पुलिस सूरतगढ़ को इस संबंध में परिवाद देखकर तथ्यों से अवगत करवाया गया है.

पिछले कुछ दिनों से साइबर क्राइम के अपराधियों ने ठगी करने के नये ढंग निकाले हैं. इस तरीके में वे आम जन की भावनाओं से खिलवाड़ करते हुए उन्हें डराने का प्रयास करते हैं. ये अपराधी विशेष रूप से उन लोगों को शिकार बनाते हैं जिनके बच्चे घर से बाहर पढ़ रहे हैं। यह कॉल ज्यादातर पाकिस्तान के मोबाइल नंबर से आती है जिन्हें पहचान पाना बड़ा कठिन रहता है.

गंभीर बात यह है कि इन कॉल नंबर्स पर व्हाट्सएप डीपी में भारत के पुलिस अधिकारियों के चेहरे लगे रहते हैं. एसपी और आईजी स्तर के अधिकारियों के फोटोज इस्तेमाल कर डर का धंधा फैलाया जा रहा है. पुलिस और गृह मंत्रालय को सुरक्षा और निजता से जुड़े ऐसे मामलों पर गंभीरता से कार्यवाही करने की जरूरत है.

यदि आपके पास भी इस तरह की कोई कॉल आए तो सावधान रहें घबराएं नहीं बल्कि स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना दें.

Tuesday 9 April 2024

सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और साहित्यकार मधु आचार्य के जन्मदिवस पर एक यादगार शाम का आयोजन


कभी तो आसमान से चांद उतरे ज़ाम हो जाए 

तुम्हारा नाम की भी एक सुहानी शाम हो जाए....

सोमवार की शाम कुछ ऐसी ही यादगार रही. अवसर था जाने-माने रंगकर्मी, वरिष्ठ साहित्यकार और भास्कर में लंबे समय तक संपादक रहे अग्रज मधु जी आचार्य के 65वें जन्मदिवस का. बीकानेर के मित्रों ने इस अवसर पर एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया. एक ऐसी शाम, जिसके आनंदोल्लास में बीकानेर शहर के तो समर्पित रंगकर्मी और शब्दसाधक थे ही, राजस्थान भर से भी मित्र लोग पधारे. 


मेरा सौभाग्य रहा, मुझे रंगकर्म और साहित्य के संवाहक आदरणीय डॉ. अर्जुनदेव चारण, हिंदी के विद्वान डॉ. माधव हाडा और राजस्थानी के विभागाध्यक्ष डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित के सानिध्य में मधुजी आचार्य के कथा सृजन पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलने का अवसर प्राप्त हुआ. मधुरम परिवार और बीकानेर के स्नेहीजनों ने इस अवसर पर भरपूर मान सम्मान दिया, उसके लिए आभार. ऊर्जावान लाडेसर हरीश बी. शर्माजी को इस स्नेह भरे नूंते के लिए लखदाद !

मुझे कहना चाहिए कि शताधिक पुस्तकों के रचयिता मधु आचार्य का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना विस्तार लिए है कि हम सोचने को विवश हो जाते हैं कि आखिर यह आदमी एक साथ इतना कुछ कैसे कर पाता है. राष्ट्रीय स्तर के दैनिक समाचार पत्र में गंभीरता से पत्रकारिता और संपादन, रंगकर्म में नित नवप्रयोग और साहित्य की अलग-अलग विधाओं में भरपूर सृजन का एक साथ होना अत्यंत कठिन है. एक समर्पित पत्रकार की दिनचर्या अत्यंत व्यस्त रहती है, दिन भर फील्ड में काम करना और देर रात तक डेस्क संभालने के बाद समय बचता ही कहां है लेकिन इसके बावजूद मधु आचार्य ने वर्षों से अपने सृजन में निरंतरता बनाए रखी है, यह वाकई कमाल है. साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के समन्वयक के रूप में मधु आचार्य ने न सिर्फ नए युवा रचनाकारों को अवसर देकर प्रोत्साहित किया बल्कि लेखन, संपादन और अनुवाद के साथ प्रदेश भर में सेमिनार्स/कार्यशालाओं के आयोजन कर नए आयाम स्थापित किए हैं. इतना कुछ होने के बावजूद उनकी खासियत यह है कि वह कभी अपनी विद्वता को ओढ़ते नहीं. उनकी सरलता और सादगी मिलने वाले को प्रभावित करती है. यही कारण है कि सिर्फ बीकानेर ही नहीं, देशभर में उनके मुरीद हैं. 

इस कार्यक्रम के बहाने बीकानेर के लगभग सभी मित्रों से मुलाकात हुई, उनके साथ 'जीमण' का आनंद लिया. यह भी एक सुखद उपलब्धि रही. कार्यक्रम के यादगार छायाचित्र भेजने के लिए ऊर्जावान बीकानेरी भायले संजय पुरोहित का आभार. यारियां जिंदाबाद !

Sunday 7 April 2024

'राम से सीता करे सवाल...' ने बांधा समां


- लोकप्रिय कवि नंद सारस्वत स्वदेशी के सम्मान में गोष्ठी का आयोजन


सूरतगढ़ 7 अप्रैल। " भाषा और साहित्य संस्कृति के संवाहक हैं जो मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों को निरंतर सहेजने का काम करते हैं।" दक्षिण भारत में हिंदी की अलख जगा रहे लोकप्रिय कवि नंद साारस्वत ने इक्कीस संस्थान ये उद्गार व्यक्त किये।

रविवार को 'आंचल प्रन्यास' और 'स्वर फाउंडेशन' के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित काव्य गोष्ठी में बोलते हुए मुख्य अतिथि ने कहा कि कविता और किताब समाज को पथभ्रष्ट होने से रोकते हैं। इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने अपनी छंदबद्ध रचनाओं से कार्यक्रम में समां बांध दिया। उनकी रचना 'राम से सीता करे सवाल...' को भरपूर सराहना मिली। गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार रामेश्वर दयाल तिवाड़ी ने की और विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ शायर परमानंद 'दर्द' उपस्थित रहे।

डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने मुख्य अतिथि का माल्यार्पण के साथ स्वागत किया। गोष्ठी में रामकुमार भांभू, डॉ.हर्ष भारती नागपाल, महेंद्र नागर, श्योपत मेघवाल, परमानंद दर्द, रामेश्वर दयाल तिवारी डॉ. मदन गोपाल लढा, राजेश चड्ढा, हरिमोहन सारस्वत ने काव्य पाठ किया। पंकज शर्मा और देवेंद्र आर्य ने अपने गीतों से कार्यक्रम को रोचक बना दिया। कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि को शाल और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन राजेश चड्ढा ने किया और उमेश मुद्गल ने सभी अतिथियों, साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया ।

Sunday 31 March 2024

सूरतगढ़ के लाल ने जयपुर में ठोकी ताल

-जयपुर शहरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं नरेंद्र शर्मा


सूरतगढ़/जयपुर। चुनाव कोई भी हो, लड़ने के लिए जिगरा चाहिए। और बात जब लोकसभा चुनाव की हो तो हौसले के साथ-साथ तन, मन धन का समर्थन भी जरूरी है। राजधानी की सामान्य सीट से इस बार सूरतगढ़ के लाल ने ताल ठोकी है। वार्ड नंबर 23 के रहने वाले नरेंद्र शर्मा ने राष्ट्रीय सनातन पार्टी के प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है। इतना ही नहीं, वे अपने समर्थकों के साथ जोरों-शोरों से जयपुर की सड़कों पर धुआंधार प्रचार कर रहे हैं। गौरतलब है कि राजस्थान में वे अपनी पार्टी के प्रदेशध्यक्ष भी हैं।
नरेंद्र शर्मा का नाम सूरतगढ़ के लिए अपरिचित नहीं है। उच्च शिक्षा प्राप्त नरेंद्र शर्मा भू राजस्व कानूनों के गहन जानकार हैं। यह खूबी उन्हें विरासत में मिली है। उनके पिता श्री ताराचंद शर्मा इलाके भर में योग्य और कुशल पटवारी के रूप में जाने जाते थे। उनके ताऊ श्री भगवती प्रसाद शर्मा राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे।

नरेंद्र शर्मा जन समस्याओं के समाधान हेतु जूझते नेताओं की अग्रणी पंक्ति में खड़े नजर आते हैं । उन्होंने शहर में हुए अवैध कब्जों और गैर कानूनी ढंग से काटी गई कॉलोनी को लेकर राजस्थान उच्च न्यायालय में रिट लगा रखी है जिससे भूमाफियाओं में खलबली मची हुई है।

उल्लेखनीय है कि जयपुर शहरी लोकसभा सीट पर 8 प्रत्याशियों ने नामांकन भरे हैं। कांग्रेस की तरफ से पूर्व परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और भाजपा की मंजू शर्मा मैदान में है। चुनाव परिणाम चाहे कुछ भी रहे लेकिन इतना तो तय है कि नरेंद्र शर्मा के रूप में सूरतगढ़ की आवाज राजधानी में गूंज रही है।


भाषायी लालित्य लिए मन को छूनेवाली कहानियां

- मनोहर सिंह राठौड़ ( पांख्यां लिख्या ओळमा की समीक्षा ) राजस्थानी और हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर सिंह जी राठौड़ का कला और संस्कृति ...

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