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सीमांत क्षेत्र का भूमि आंदोलन-1970(3)

 

अलवर जेल में बंद गंगानगर के आंदोलनकारियों ने हड़ताल कर सुधरवाई थी जेल व्यवस्थाएं

1969-70 के गंगानगर भूमि आंदोलन को देश के बड़े आंदोलनों में शुमार किया जाता है. सरकार अपना खजाना भरने के लिए राजस्थान नहर से सिंचित होने वाली बेशकीमती जमीनों को अपने चहेतों और पूंजी पतियों के हाथों बेचने पर तुली थी जबकि यहां का भूमिहीन किसान इन जमीनों के सरकारी आवंटन की मांग कर रहा था. प्रदेश की सत्ता के विरुद्ध आमजन के हक की लड़ाई लड़ रहे इस आंदोलन को बिना किसी जात-पांत और वर्ग भेद के जनता का साथ मिला. यही कारण था कि इस आंदोलन के चलते समूचे बीकानेर संभाग की कानून व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी. गंगानगर जिले में तो सेना, आरएसी और मध्य प्रदेश पुलिस भी तैनात की गई थी.

दस्तावेजी आंकड़ों के अनुसार 7 जनवरी 1970 को संगरिया और भादरा मैं हुए गोलीकांड के बाद यह आंदोलन प्रदेश भर में फैल गया. इस आंदोलन में 15,000 से अधिक लोगों ने सामूहिक गिरफ्तारियां दी. इन्हें दूरदराज स्थित अलवर, सिरोही, बीकानेर, नागौर, जोधपुर और भरतपुर की विभिन्न जेलों में रखा गया. पुलिस द्वारा आंदोलन के अगुआ नेताओं को भी गिरफ्तार कर अलग-अलग जेलों में ठूंस दिया गया.

गंगानगर जिले के अधिकांश बंदियों को अलवर और सिरोही जेल में रखा गया था. अलवर जेल में इन बंदियों ने तो भूमि आंदोलन के बीच जेल सुधार आंदोलन और शुरू कर दिया. जिसने सरकार की परेशानी बढ़ाई और अंततः सरकार को जेल व्यवस्थाओं में सुधार के लिए मजबूर होना पड़ा.

उपलब्ध तथ्यों के अनुसार घटनाक्रम कुछ इस ढंग से चलता है. अलवर जेल में 19 जनवरी 1970 तक इस आंदोलन में सामूहिक गिरफ्तारी देने वाले 140 सत्याग्रही लोगों को भेजा गया था. 25 और 26 जनवरी को गंगानगर जिले में विभिन्न स्थानों से गिरफ्तार हुए 187 और लोगों को भी यहां भेजा गया. 28 जनवरी को नोहर से गिरफ्तार 300 राजनैतिक कार्यकर्ताओं को अलवर जेल में शिफ्ट किया गया जिसमें संसोपा नेता महावीर प्रसाद कंदोई भी शामिल थे. इस प्रकार कुल मिलाकर 627 आंदोलनकारी में बंद थे.

इस जेल की हालत अत्यंत दयनीय थी. कैदियों की आवास समस्या तो थी ही, शौचालयों की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी. सफाईकर्मी भी नहीं आता था. भोजन व्यवस्था तो और ज्यादा खराब थी. न तो राशन पूरा मिलता था न ही भोजन की कोई गुणवत्ता थी. जेल में चिकित्सकीय सुविधाओं का भी अभाव था. इन व्यवस्थाओं को दुरुस्त करवाने के लिए जेल में एक संघर्ष समिति बनाई गई जिसमें सूरतगढ़ के गंगाजल जाखड़ को अध्यक्ष, मन्नी वाली के लादूराम तरड़ को मंत्री, और नोहर के संसोपा नेता महावीर प्रसाद कंदोई को कोषाध्यक्ष बनाया गया.

26 सदस्यीय इस समिति ने गठन के तुरंत बाद जेल अधीक्षक को व्यवस्थाओं में सुधार और नए मैनुअल के हिसाब से प्रति बंदी को 6.25 पैसे प्रतिदिन की दर से खाने हेतु दिए जाने का नोटिस दिया. संयोगवश उसी दिन शाम को प्रथम श्रेणी दंडनायक वेद प्रकाश गोयल और अन्य अधिकारी जेल में आए. समिति के सदस्यों और अन्य कार्यकर्ताओं ने उन्हें जेल के भीतर ही घेर लिया. मांगों के संबंध में पहले तो उनसे कोई बात नहीं की गई लेकिन अचानक समिति अध्यक्ष गंगाजल जाखड़ द्वारा कह दिया गया कि समाधान होने तक आपको बाहर नहीं जाने दिया जाएगा. स्थिति बिगड़ती देख दंड नायक ने जिलाधीश से फोन पर बात की और उसके बाद जेल अधीक्षक को सभी मांगे मान लेने के निर्देश दिए. देर रात्रि 12 बजे घेराव समाप्त कर दिया गया. सत्याग्रहियो का जेल में यह पहला कदम सफल रहा.

इस जेल में 263 बंदियों को 3 घुड़सालों में रखा गया था जो चारों तरफ से खुली थी. जनवरी की सर्दी में वहां बंदी बहुत परेशान थे. संघर्ष समिति की एक मांग पर उन्हें तुरंत सरिस्का जेल में शिफ्ट कर दिया गया. समिति के कोषाध्यक्ष महावीर प्रसाद कंदोई ने जेल अधीक्षक को अखबार और खेलों का सामान उपलब्ध करवाने का ज्ञापन अलग से सौंपा जिस पर त्वरित कार्रवाई हुई.

इसी बीच बीकानेर जेल में बंद विधायक प्रो. केदार के आह्वान पर राजस्थान की समस्त जेलों में बंद आंदोलनकारियों द्वारा व्यवस्थाओं को सुधारने हेतु जेल में ही धरना आयोजित किया गया. इस धरना प्रदर्शन में निम्न मांगें उठाई गई :-
1. जयपुर केंद्रीय कारावास की समस्त महिला सत्याग्रहियों को बी श्रेणी की सुविधा प्रदान की जाए.
2. जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को उनके घरों से बाहर गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है, उन्हें पहनने के कपड़े और रोजमर्रा की जरूरत का सामान उपलब्ध करवाया जाए.
3. गंगानगर जिले से सेना आरएसी और मध्य प्रदेश पुलिस को तुरंत हटाया जाए.
4. गिरफ्तारी के स्थान से लेकर जेल तक के रास्ते का खर्च नियमानुसार दिया जाए.
5. आंदोलनकारियों की तारीख पेशी बार-बार न बदली जाए.
प्रदेशभर की जेलों में हुए इस धरना प्रदर्शन के चलते आंदोलनकारियों की सभी मांगें मान ली गई. अलवर जेल में बंद आंदोलनकारियों से उसी दिन संसद सदस्य मधु लिमए मिलने के लिए पहुंचे.
उन्होंने इस ऐतिहासिक आंदोलन को सफल बनाने के लिए सभी लोगों का आभार व्यक्त किया.

सूरतगढ़ नगरपालिका में लगातार सात बार पार्षद बनने वाले सत्यनारायण छिंपा इसी जेल में बंद थे. वे बताते हैं कि उनके पिता को सिरोही जेल में रखा गया था. दोनों के जेल चले जाने से घर और खेत को संभालने वाला कोई नहीं था. लेकिन एक आश्चर्यजनक तथ्य वह बताते हैं कि उस साल हमारे खेत में सबसे ज्यादा अनाज हुआ था. अलवर जेल में ही सूरतगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार माल चंद जैन भी आंदोलनकारियों के साथ बंद थे. मजेदार वाकया देखिए कि जैनसाहब की शादी की तारीख तय की हुई थी लेकिन उनके अचानक गिरफ्तार होने से गड़बड़ हो गई. परिजनों द्वारा भागादौड़ी कर जैनसाहब के विवाह का निमंत्रण पत्र प्रस्तुत किया गया और बड़ी मुश्किल से जमानत करवाई गई. जेल में ही महावीर प्रसाद कंदोई ने गंगानगर किसान आंदोलन पर एक सत्याग्रह स्मारिका प्रकाशित करवाने का प्रस्ताव रखा था जिसे सब ने स्वीकार किया. आंदोलनकारियों के साथ ही जेल में बंद सूरतगढ़ के एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार दिलात्म प्रकाश जैन को स्मारिका के संपादन का दायित्व सौंपा गया. यह स्मारिका आज भी आंदोलन के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है.


इस ऐतिहासिक भूमि आंदोलन के जाने कितने किस्से हैं जो समय की फाइलों में बंद हैं. जरा सोचिए, अनूपगढ़ क्षेत्र की जमीनों के लिए रायसिंहनगर से आंदोलन शुरू होता है. संगरिया में गोलियां चलती है. भादरा में नौजवान मरते हैं सूरतगढ़ के कार्यकर्ता गिरफ्तारी देते हैं. अलवर जेल में उन्हें बंद किया जाता है. जयपुर में बैठी सरकार झुकती है और दिल्ली से आदेश आता है. यह आंदोलन की ताकत होती है जिसमें कभी-कभी व्यक्ति ही समूचा देश बन जाता है.
-रूंख

( जानकारी का स्रोत - तत्कालीन समाचार पत्रों की रिपोर्ट, प्रत्यक्षदर्शियों के वक्तव्य, सत्याग्रह स्मारिका, आंदोलन के संबंध में लिखे गए लेख और पुलिस रिपोर्ट)

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