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Thursday 23 November 2023

पृथ्वी मील की लोकप्रियता ने बिगाड़े सारे समीकरण, जेजेपी रच सकती है नया इतिहास

 

प्रचार के अंतिम दिन शहर में घर-घर पहुंचे जेजेपी कार्यकर्ता

सूरतगढ़, 23 नवंबर। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन जननायक जनता पार्टी के सैकड़ो कार्यकर्ताओं ने मुख्य बाजार में डोर टू डोर जनसंपर्क कर पार्टी प्रत्याशी पृथ्वीराज मील के समर्थन में चुनाव प्रचार किया। पार्टी के हरियाणा कैडर के कार्यकर्ताओं के साथ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने व्यापारियों और दुकानदारों से स्वच्छ राजनीति के लिए वोट की अपील की।
वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और प्रत्याशी पृथ्वीराज मील नें थर्मल क्षेत्र के गांव में धुआंधार जनसंपर्क किया। इस दौरान मील नें आधा दर्ज़न से अधिक गांवों में दौरा कर वोट मांगे। ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्थानों पर मील का जोरदार स्वागत किया गया। पृथ्वीराज मील ने ग्रामीणों से पार्टी की चाबी के निशान का बटन दबाने की अपील करते हुए कहा कि इलाके में स्वच्छ राजनीति इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। इसलिए स्वच्छ राजनीति की मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए जननायक जनता पार्टी को वोट करें। मील ने कहा कि सूरतगढ़ उनकी कर्मभूमि है। उन्होंने कहा कि चुनाव का नतीजा कुछ भी हो। वे ग्रामीणों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहेंगे
जननायक जनता पार्टी के पक्ष में पार्टी प्रत्याशी पृथ्वीराज मेल की पत्नी सुमन मील भी लगातार चुनाव प्रचार मैदान में सक्रिय है। आज उन्होंने लाइन पार क्षेत्र के वार्डों में अपनी टीम के साथ डोर टू डोर जाकर वार्ड वासियों से मुलाकात की ओर पार्टी के पक्ष में मतदान के लिए अपील की। सुमन मील ने पार्टी के चुनाव चिन्ह चाबी के निशान का बटन दबाकर पार्टी को मजबूत करने का आह्वान किया।

Thursday 19 October 2023

सूरतगढ़ सीट पर कैसे बचेगी कांग्रेस की साख !

 

( विधानसभा चुनाव 2023, तथ्यों का विश्लेषण भाग-1)

कांग्रेस की टिकट भले ही हनुमान मील को मिले अथवा डूंगर राम गेदर को, इतना तय है कि कांग्रेस की राहें सूरतगढ़ में आसान नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि आखिर कांग्रेस की राहों में इतने कांटे किसने बिछाए ? क्यों कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व लगातार सूरतगढ़ की अनदेखी करता रहा ? क्या इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस की गिरती हुई साख का अंदाजा आला कमान को नहीं है ?


उपलब्ध तथ्यों के प्रकाश में हम इन्हीं सवालों की क्रमवार पड़ताल करेंगे। आज इस चुनावी विश्लेषण की पहली कड़ी पढ़िए-


2018 में जब कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े हनुमान मील को 10235 मतों से हार का सामना करना पड़ा, उस वक्त हार का मार्जिन इतना अधिक भी नहीं था कि कांग्रेस बैक फुट पर चली जाती। इसकी पुष्टि कुछ दिन बाद हुए नगर पालिका चुनाव के नतीजे से की जा सकती है जिसमें कांग्रेस अपना बोर्ड बनाने में सफल रही। विधानसभा चुनाव में हार के बाद जो खीझ और निराशा कांग्रेस के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में देखी जा रही थी, वह ओमप्रकाश कालवा के पालिकाध्यक्ष बनने के बाद काफी हद तक दूर हो चुकी थी। पार्टी का स्थानीय आलाकमान तो कालवा की तारीफ करता नहीं अघाता था लेकिन उस वक्त उन्हें अंदेशा ही नहीं था कि कांग्रेस की जड़ें खोदने की तैयारी शुरू हो चुकी है।


नगर पालिका में फैली भ्रष्ट व्यवस्था और कालवा के कारनामों पर मीडिया लगातार तथ्यपरक समाचार उजागर करती रही लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। कोरोना संकट काल में तो इस कदर लूट मची मानो 'आपदा में अवसर' का खजाना सूरतगढ़ नगरपालिका को ही मिला हो। कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया और पार्टी के कई पार्षद पालिकाध्यक्ष के क्रियाकलापों का पुरजोर विरोध करते रहे लेकिन उनकी अनदेखी की गई। नतीजा यह हुआ कि गंगाजल मील की छत्रछाया में बैठे ओमप्रकाश कालवा एक दिन कांग्रेस को छोड़ भाजपा की गोदी में जा बैठे और कांग्रेस के हाथ से नगरपालिका की सत्ता फिसल गई। उल्लेखनीय है कि दो चुनावी हार के बाद कांग्रेस में शामिल हुए डूंगर राम गेदर भी इस भ्रष्ट उठा-पटक के घटनाक्रम पर मूकदर्शक बने रहे। लिहाजा उनके आने से सूरतगढ़ में कांग्रेस मजबूत होने की बजाय और कमजोर होती चली गई।

पूरे राजस्थान में यह एक अप्रतिम उदाहरण था जब पालिकाध्यक्ष ने ही पाला बदल लिया हो। कांग्रेस का नेतृत्व कर रहा मील परिवार कालवा के इस आचरण से ठगा सा रह गया। उसके बाद परस्पर आरोप-प्रत्यारोपों का एक ऐसा दौर शुरू हुआ जिसमें कांग्रेस की फजीहत हुई। कालवा ने तो दो-दो प्रेस कांफ्रेंस कर मील परिवार की प्रतिष्ठा को तार-तार कर दिया।

पब्लिक यह सब खुली आंखों से देख रही थी। इसीलिए जन चर्चा यह है कि कांग्रेस नगरपालिका को ही नहीं संभाल पाई, तो पूरे विधानसभा क्षेत्र को किस प्रकार व्यवस्थित कर पाएगी ? लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व राज्य मंत्री का दर्जा पा चुके डूंगर राम गेदर भी पार्टी को मजबूत करने की बजाय अपना कद सुधारने में लग रहे। उन्हें शायद याद ही नहीं रहा कि पार्टी मजबूत होगी, तभी वे विधानसभा में पहुंच पाएंगे। इस सारे घटनाक्रम का असर यह हुआ कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल धीरे-धीरे टूटने लगा। अमित कड़वासरा और गगन विडिंग जैसे युवा चेहरे भी पृष्ठभूमि में चले गए।
सार यह है कि हनुमान हो या गेदर, सूरतगढ़ नगरपालिका में व्याप्त भ्रष्ट व्यवस्था से उठे जनाक्रोश का खामियाजा तो चुनाव में कांग्रेस को भुगतना ही पड़ेगा। सूरतगढ़ शहर में लगभग 55 हजार वोट हैं जो यहां के चुनाव परिणाम में हमेशा निर्णायक सिद्ध होते हैं। देखना यह है कि कांग्रेस वर्तमान चुनावी दौर में किस रणनीति से शहरी मतदाताओं को लुभा पाती है।

-डॉ.हरिमोहन सारस्वत
अध्यक्ष-प्रेस क्लब, सूरतगढ़



Wednesday 18 October 2023

समदरां पार है मरूधर रै मेवां री सोरम

(संस्मरणात्मक आलेख)
सार्थक रूंख
एमबीबीएस-द्वितीय वर्ष, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, मदुरै

कानदानजी कल्पित एक लोकचावै गीत में कैवै-

काचर, बोर, मतीर मेवा मिस्टान्न जठै
मुरधर म्हारो देस, झोरड़ो गांव जठै...


आ बात सोळा आना सांच है। मरूधर रा काचर, सूकेड़ा बेरिया, मतीरा, कैर, सांगरी, फोफळिया अर खेलर्यां मेवां सूं घाट कोनी। किणी रै जचै नंई तो काजू-बदाम मुलायां पछै सांगरी अर कैरिया मुला’र देखो दिखाण ! काजू किसमिस जे आठ सौ हजार रिपियां किलो मिलै तो चोखी सांगरी हजार सूं पैली कोई हाथ कोनी घालण देवै। बारीक कैरियां रो कैवणो ई कांई ! मॉल में पीसेड़ी काचरी मुलावो तो ठाह पड़ै सौ ग्राम रो डबियो पचास रिपियां रो है। भाव री तो छोडो, साची बात आ कै आज घड़ी आ मेवां री सोरम अर मिठास आखी दुनिया में जा पूगी है। म्हूं थार सूं तीन हजार किलोमीटर रै आंतरै बैठ्यो इण बात री पड़तख साख भर सकूं। कदास आं मेवां रै पाण ई राजस्थानी जीमण आखै जगत में सराइजै। काचरी री चटणी हो का सांगरी री सब्जी, बां रै सामीं एक’र तो काजू करी अर कड़ाही पनीर ई फीको लागै !  

अबार म्हूं दक्षिण भारत में हूं, मदुरै रै जगत प्रसिद्ध कांची मिंदर री छियां। दो बरस पैलां सरकारू मेडिकल कॉलेज में म्हारा दाखलो होयो अर म्हानै थळवट छोड़ अठै आवणै रो सौभाग मिल्यो। धोरा लारै रैयग्या अर ठाठां मारतै समदर रा दरसन होया। एक समचो बदळाव देखण नै मिल्यो। न्यारो अर निरवाळौ। भासा सूं लेय’र जीमण, पैरावै सूं लेय’र तीज तिंवार, और तो और रूंखड़ा ई न्यारा। पण अठै भाजती नाठती जियाजूण बिच्चाळै एक ब्याव रै मांय मरूधर रै मेवां री सोरम लाधी तो म्हारो रूं-रूं मुळक्यो। काचर अर सांगरी री नवी अर जूनी बातां रा भतूळिया चेतै में उडण लाग्या।

लारली दियाली रै पछै कॉलेज जावता बगत म्हूं आपरै एक भायलै साथै मदुरै री ट्रेन में हो, म्हारै सामली सीट पर  एक दादी सा बैठ्या हा अर साथै बां रो पोतो। बूझîो तो ठाह लाग्यो, बै चेन्नई जासी। दादी सा घड़ी-घड़ी सीट रै हेठै रख्योड़ै आपरै समान नै संभाळै हा। अटेची अर बैग भेळै एक प्लास्टिक रो मोटो कटियो ई हो। भायलै दादी सा नै समान संभाळते देख’र पूछ्यो-

‘दादी सा, इण में कांई है ?’

‘काचरी अर फोफळिया है बेटा, अठै आवां जणां लेय जावां।’ दादी जी भायलै रो मूंडो जोवता थकां कैयो।

पछै तो सांगरी-कैरिया ई लाया होस्यो ?’ म्हूं मुळकतै सै बूझîो।

‘बै तो लावणा ई हा। आजकलै मिलै तो बठै ई है पण अठै जिस्यो स्वाद अर बरकत कोनी....।’ दादी सा कटियै रै खुलतै मूं नै सावळ जरू कर दियो।

इणी ढाळै एक’र दिल्ली एयरपोर्ट पर एक भाई साब मिलिया जिका लगेज चैकिंग आळी जिग्यां माथो मारै हा। बां अेक मोटै थेलियै में मरूधर रा सागी मेवा भर राख्या हा जिका भार में तो हळका हा पण बां रो थेलो खासा मोटो हो। बान्नै लगेज बिच्चाळै आपरी सांगरी, फोफळिया अर खेलरîां रै किचरीजणै रो डर हो, इण सारू बो थेलो आपरै सागै ले जावणो चावता। भागजोग सूं बां री सीट म्हारै सारै ई ही। प्लेन टेकऑफ रै पछै म्हूं जाणता थकां ई बां नै बूझîो-

‘भाईजी, बीं थेलै में के हो जिण सारू थे रिसाणा हो रैया हा ?’

बै म्हानै गौर सूं तकायो पण राजस्थानी बोलतां देख बां नै लखायो, छोरो है तो थळी रो। राजी होवता बोल्या-

‘मुरधर रा मेवा !’

पछै तो चेन्नई पूगणै तांई सूकेड़ा बोरिया, काचरी, सांगरी, कैर अर कूमठां री बातां चाल ई बोकरी। बां आपरै हैंडबैग सूं मतीरियै रै सेकेड़ै बीजां सूं भरी एक थेली काडी अर म्हारी मनवार करी। म्हानै लाग्यो जाणै म्हूं सांचाई ड्राई फ्रूट खा रैयो हूं। भाईजी बतायो कै अे मेवा आपणै गांव अर ढाण्यां सूं निसर’र फाइवस्टार होटलां रै मीनू में जा पूग्या है। आं मेवां री तासीर आ है कै आं में कोई पेस्टीसाइड का खाद रो प्रयोग नीं होवै, ओ धन तो थार री माटी में मतैई निपजै।

इयांई साल भर पैली चेन्नई में अंतर्राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट होयो तो म्हानै मेजबान भारतीय टीम में सामल होवण रो मौको मिल्यो। पंदरा दिनां रै इण उच्छब में दुनिया भर रा खिलाड़ी अर शतरंज रा रसिया पूग्या। इण इंटरनेशनल आयोजन में भारत सरकार भोत सांतरी व्यवस्था करी, ठैरणै सूं लेय’र जीमण तांई। जीमण रै हॉल में जद म्हूं काचरी री चटणी अर कैर सांगरी री सब्जी देखी तो म्हानै भोत गुमेज होयो। मेजबान होवण रै नातै म्हूं कई विदेसी खिलाड़ियां नै चटणी अर सांगरी रै साग बाबत बूझîो, तो बां सगळा उण नै भोत सराई। हंगरी री विस्व चैस चैम्पियन जुडिथ पोल्गर आपरी बंतळ में म्हानै बतायो, बुडापेस्ट में एक इंडियन रेस्टोरेंट है जठै लोग राजस्थानी काचरी री चटणी रा दीवाना है।

बां पंदरा दिनां में म्हूं चेन्नई रै लगैटगै सगळै फाइव स्टार होटलां में गयो जठै खिलाड़ी ठमेड़ा हा। बां होटलां रै मीनू में कैर-सांगरी अर बेसण गट्टा त्यार लाध्या। खास बात आ कै बठै काजू करी सूं मूंघी सब्जी कैर सांगरी ही।

जद कद तमिल भायलां रै पारिवारिक ब्यावां में जावण रो मौको मिलै तो बठै री पार्टी फंक्शन में नारेळ री भांत-भांत री चटण्यां, सांभर बड़ा, डोसा, रसम चावळ, परोटा भेळै और ई कांई ठाह कांई लाधै। पण बां रै बिच्चाळै जद सांगरी री सब्जी देखंू तो जी घणो राजी होवै। म्हूं बां नै बतावूं, अे म्हारै मुरधर रा मेवा है, ड्राई फ्रूट्स ऑफ राजस्थान !

आप सोचता होवोला, म्हूं कोई फूडी चैनल चलावूं जिण मांय देस-दुनिया रै स्वाद अर जीमण री बात होवै। पण इसी कोई बात कोनी। हां, म्हानै मरूधर रा मेवा अर मिनखां नै देख कन्हैयालाल जी सेठिया रो ओ दूहो घणी बार चेतै आ बो करै, कांई ठाह क्यूं ?

थे मुरूधर रा बाजस्यो बसो कठैई जाय
सैनाणी कोनी छिपै बिरथा करो उपाय।

Wednesday 11 October 2023

मनगत रै भतूळियां बिच्चाळै जागतो ‘भळै भरोसो भोर रो’


(डॉ. गौरीशंकर प्रजापत री पोथी भळै भरोसो भोर रो’ बांचता थकां......)

कोई ओळी कद कविता बणै, इण बाबत कैवण में घणी अबखाई ! परम्परागत अर जूनी कविता रै पेटै तो घणी बातां हो सकै पण गद्य होवती आधुनिक कविता नै तोलण रा बाट जिग्यां अर बगत सारू बदळता रैवै। कठैई तो भासा अर बोली री ठसक सूं कविता रा काण कायदा पूरा होवै तो कठैई रीत रै रायतां सूं पाणी सरीखी बैवती बात कविता रो रूप धर लेवै। आप कैस्यो, भाव रो पछै कांई मोल ? भाव तो मूळ है कविता रो, पण उण नै तो भाव सूं ई कीं बेसी चाइजै। फगत भाव री ओळयां सूं गद्य री घड़त तो हो सकै पण कविता तो अेक लय मांगै, रागात्मक विन्यास चावै। लीकोलीक चालता छंद, दूहा, सोरठा का चौपाई होवै या फेर किणी अलायदै विषय माथै लिख्योड़ी भाव भरी बात, जद तांई उण में अेक मांयली लय नीं है, उण लय सूं जागतो अंतसभेदू चिंतन नीं है, उण नै आपां कविता नीं कैय सकां। भासा कोई होवो, अतुकांत कवितावां में भी आपां नै अेक सांगोपांग लय लाधै जिकी उण नै कविता रो रूप दिरावै। आ लय बा सागी राग है जिकी सांसां रै सगपण में है, कुदरत रै काण कायदां में है, दुःख में, दरद में, हांसी में, रळी में.......आखी जगती माया में है। सबद जद इण राग नै पकड़ै तो गीत जलमै, कविता बणै अर मानखो मिनख बणै। बारूद सामीं, आ कविता अर उण री लय री ताकत ही तो है कै गीत उगेरतो मिनख कदेई गोळी नीं दाग सकै ! 


जिकी कविता भोर रो भरोसो जगावै, आपरी संस्कृति रा अळोप होवता सैनाण सामीं लावै, प्रीत री रीत रो बधेपो करै, बां कवितावां माथै  बंतळ होवणी बित्ती ई जरूरी है जित्ती कोई लिखारै सारू कविता या कहाणी रो रचाव। बात आपरै समकालीन कवियां री होवै तो ओ दायित्व दूणो हो जावै। इणी बात नै बधावता थकां कविता रै पेटै आज बात करणी है डॉ. गौरीशंकर प्रजापत रै नवै कविता संग्रै ‘भळै भरोसो भोर रो’। 


डॉ. प्रजापत मायड़ भासा मानता आन्दोलन में अेक जाण्यो पिछाण्यो नांव है जिको सदांई हरावळ दस्तै मांय उभ्यो लाधै अर सगळां री हूंस बधावै। संसद सूं लेय’र विधानसभा तांई डॉ. प्रजापत राजस्थानी री मानता सारू खेचळ खावै, छेवट कदेई तो पार पडै़ला। ओपती बात आ है कै बै बरसां सूं कॉलेजां में राजस्थानी साहित्य भणा रैया है। बांरां आलेख ठावै पत्र-पत्रिकावां में लगोलग छपता रैवै, राष्ट्रीय अर अंतर्राष्ट्रीय कार्यषालावां में भी बां बीसूं बार साहित्यिक शोधपानां बांच्या है। बां रा कई निबंध संग्रै छप्योड़ा है अर अनुवाद रै पेटै ई  सरावणजोग काम है। 


‘भळै भरोसो भोर रो’ बांरो नवो कविता संग्रै है। इण पोथी रै फ्लैप माथै चावा-ठावा लिखारा मधु आचार्य लिखै, कै मानखो आपरै मांयलै उजास नै भूलतो जा रैयो है अर कविता रो धरम है उण उजास नै बणायां राखणो। गौरीशंकर री अे कवितावां उणी मांयलै उजास कान्नी ले जावै अर जूण रै आछै मारग माथै चालण खातर उणरी हूंस बधावै। हरीश बी. शर्मा पोथी री भूमिका में कैवै, गौरीशंकर री कविता राजस्थानी कविता में बदळाव रा अेनाण है। आं कवितावां रो महताऊ पख इण रो कहण है। लखावै है कै आं कवितावां री पोथी बणन सूं पैली सीझण री अेक लाम्बी आफळ होई है। पोथी बांचा तो ठाह पड़ै, आं कवितावां में कोई खतावळ नीं है, कवि भोत साफगोई सूं आपरी मनगत नै परोसै, कविता रै तम्बूरै रा तार कठैई कसीजै अर कठैई मोळा पड़ै, पण खरी बात आ कै ओ कवि भावां रै भतूळियां नै ढाबणो जाणै, जणाई उण री दीठ अबखायां बिच्चाळै ई भोर रो उजास सोध लेवै। 


इण संग्रै में तीन खंड है। पैलो खंड ‘जूण’ नांव सूं है जिणमें छोटी-मोटी 33 कवितावां है। अे कवितावां मिनखा जियाजूण री अंवेर करती आगै बधै। प्रेम रा न्यारा-निरवाळा रूप ही आं कवितावां रो मूळ है। पैली कविता ‘हेत रा आखर’ में कवि आपरै हियै री पोथी में दब्योड़ै भावां नै सामीं लावण री बात करै। प्रीत री ओळूं रै मिस बो आपरी मनगत नै सबदां रै पाण परोटै। ‘खरी नदी, खारो समदर’ इणी मनगत नै दरसावती सांतरी कविता है। प्रेम में खुद नै गमाय देवणो ई नदी नै खरी बणा देवै, अर भावना रो भख लेवणियै नै खारो समदर। पसरती सोरम, सिराणै-पगाणै, अटूट बंधन, प्रेम रो पागी आदि कवितावां भी प्रीत रै ओळै-दौळै रो रचाव है। आं कवितावां री भासा सरस है अर बुणगट ई ओपती, कीं नवा प्रयोग करण री खेचळ ई कवि करी है। जद गीतकार गुलजार ‘सुरीली अखियां’ री उपमा ले सकै तो गौरीषंकर प्रजापत री ‘इमीं भरी आंख्यां’ मांखर पसरती प्रीत ई सराणी चाइजै। 


‘म्हारी मा’ नांव री रचना में कवि भोत सांतरै अर सरल ढंग संू मा रो नेह बखाण्योे है। अनपढ़ होवता थकां ई मा टाबर रै हियै रा अेकोअेक हरफ पढ़ जाणै, गाळभेळ भलंई उण नै नीं आवती होवै पण आपरै टाबरां सारू बा आखै जगत सूं झगड़ सकै। ‘ओळावां री पोथी’ कविता मांय कवि उडीकती मनगत में उठ्यै सवालां रो ऊथलो चावै। आछो-माड़ो सिरैनांव री कविता में कवि मिनखपणै नै सामीं राखतो कैवै-


थारी निजरां में/म्हैं माड़ो हूं/पण म्हानै माड़ो बतायां/थूं आछो साबित नीं होवै/जियां थारी भूंडाई करतां/म्हारी भलाई सिद्ध नीं होवै..।


दूजो खंड ‘जथारथ’ नांव सूं है जिण में डॉ. प्रजापत री दीठ रो पकाव सामीं आवै। पैली कविता ‘सीख’ में थ्यावस री बात है तो ‘आतमा रो मोल’ में कवि धिरजाई सूं बूझै, कांई ओळमां, तानां अर गुणां रो बखाण ई फगत आतमा रो मोल होवै ? दरपण सिरैनांव सूं इण खंड में सात कवितावां है।  दुनियावी मायाजाळ सूं आखतै होयोड़ै कवि रो चैरो खुद सूं सवाल करै-


अबै दरपण में/देखण री/अर देखता रैवण री/ हंूस नीं रैयी/स्यात अबै बच्यो ई कोनी/बो बच्यो खुच्यो हेत/खुद सूं ई !


इण खंड में कई कवितावां रा बिम्ब कुदरत रै रंगां सूं ई आकार लेवै। आं कवितावां पेटै शंकरसिंह राजपुरोहित लिखै, गौरीषंकर प्रजापत प्रकृति रा ई चितेरा कवि है। इण चितेर मांय प्रकृति रो मानवीकरण करण मांय ई बै बिम्ब अर प्रतीकां री रचना इण भांत करै पाठकां रै मन मांय कविता रा चितराम मतैई मंडाण लेवै। फळसै उभी सांझ इस्यै चितराम री ही अेक कविता है।


संग्रै रो तीजो खंड ‘जीवण-सार’ नांव सूं है। इण खंड में 28 कवितावां है। हेत सिरैनांव सूं पांच चितराम है जिकां री बुणगट सांतरी है। बानगी देखो-


हेत रंग नीं/पाणी नीं/उजाळो नीं/ताप नीं/ बिरखा नीं/फगत मैसूस करण सारू/होवै हेत।


बिडरूप होवती संस्कृति में कवि अपणायत सोधणो चावै पण उण नै कोई सैनाण नीं लाधै, पछै बो आपरी पीड़ कविता में उतारै। रचाव देखो-


अठै नीं है मा जाया बीरा/ना ई है कड़ाई रा सीरा/अठै तो मिलै बर्गर नै चाउमीन/हर पळ बदळै अठै रिस्तां रा सीन/म्है दो म्हारै अेक/ रैया तीन रा तीन! 


सांची बात तो आ है कै आं कवितावां रो कवि हांसणो तो चावै पण दुनियावी अबखायां अर रंग-ढंग देख उण रै मूंडै हांसी री ठौड़ चिंतावां री लकीरां पसरी रैवै। बो कैवणो तो भोत कीं चावै पण बगत अर दुनियादारी उण रा होठ सीड़ देवै। ‘हियै हेत री गांठ’ कविता इण बात री साख भरै। जठै बो आपरी मनगत रै पानां में अणूतो, अथाग हेत बतावै, जिण रै अेक गांठ लाग्योड़ी है। आ गांठ भोत मायावी है, दुनियावी है, छळगारी है। कवि बार-बार बूझै, इण जिनगाणी में इत्तरी गांठां क्यूं है, जेकर कोई इण गांठां नै खोलै तो मतैई मिनखपणै रो उजास पसर जासी अर सो कीं सैंचन्नण हो जावैलो। कदास, इण गांठ रै खुलणै सूं ई भोर रो भरोसो जागै।


सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर सूं छप्योड़ी इण पोथी री छपाई अर छिब ओपती है पण मोल 300 रिपिया होवण सूं आम पाठक बेगो सोक नीं जुड़ सकै। प्रकाशक नै ई बाबत थोड़ो सजग होवणो चाइजै। इण पोथी नै बांच्यां पछै साररूप सूं कैयो जा सकै कै अे कवितावां राजस्थानी री आधुनिक कविता रो अेक पड़बिम्ब है जिणरो भविष्य उजळो दीसै। उम्मीद राखां, डॉ. गौरीशंकर प्रजापत री काव्य जातरा रा और सांतरा, घणी ऊंडी दीठ रा रचाव पाठकां सामीं आसी। 


डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’



Sunday 8 October 2023

प्रदेश की सत्ता का ताला हमारी चाबी से खुलेगा: चौटाला


- जननायक जनता पार्टी का प्रदेश कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित


- प्रदेश भर में आयोजित होंगे रोड शो

जयपुर, 8 अक्टूबर। "हम यहां राजनीति करने नहीं बल्कि राजनीति सिखाने आए हैं। भरोसा रखिए, राजस्थान में सत्ता का ताला जेजेपी की चाबी से खुलेगा।


पूर्व सांसद और जननायक जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ अजय सिंह चौटाला ने पार्टी के प्रदेश कार्यकर्ता सम्मेलन में ये उद्गार व्यक्त किये। स्वर्ण पैलेस सिरसी रोड पर आयोजित इस सम्मेलन में भरतपुर, सीकर, जयपुर, नागौर और बीकानेर संभाग से बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ता पहुंचे। इस अवसर पर चौटाला ने कार्यकर्ताओं से योजनाबद्ध ढंग से चुनाव मैदान में उतारने का आह्वान किया। उन्होंने पार्टी द्वारा प्रदेश भर में रोड शो आयोजित किए जाने की घोषणा भी की। पार्टी द्वारा प्रथम चरण में सूरतगढ़, कोटपूतली, नवलगढ़ और भरतपुर में रोड शो आयोजित किए जाएंगे।


युवा नेतृत्व संभाल रहे पार्टी महासचिव और राजस्थान प्रभारी दिग्विजय सिंह चौटाला ने पार्टी की रीति और नीतियों की चर्चा करते हुए युवाओं का आह्वान किया कि वे भ्रष्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने में सहयोग करें। उन्होंने हरियाणा की तर्ज पर सभी जन कल्याणकारी योजनाएं राजस्थान में लागू करने की अपनी वचनबद्धता को दोहराया पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पृथ्वी मोटाराम मील ने सम्मेलन में उपस्थित कार्यकर्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि राजस्थान की जनता सत्ता परिवर्तन का मन बनाकर बैठी है। जननायक जनता पार्टी इस सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाएगी। इस अवसर पर पूर्व विधायक मनीराम सियाग, श्रीमती प्रतिभा सिंह, पार्टी की महिला मोर्चा अध्यक्ष रीटा चौधरी, पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रामकिशन यादव, गुजरात राज्य संयोजक बच्चन सिंह गुर्जर, अल्पसंख्यक मोर्चा के फारूक मोहम्मद सहित बड़ी संख्या में नेताओं ने सम्मेलन को संबोधित किया।
कार्यक्रम में बीकानेर के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का साफा पहनाकर स्वागत किया। इस अवसर पर डॉ.अजयसिंह चौटाला ने बड़ी संख्या में दर्जनों लोगों ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवाई

Thursday 5 October 2023

पगलिया समै री रेत पर


(अन्नाराम सुदामा री कवितावां माथै शोध रो परचो)

धिन-धिन अे धोरां री धरती राजस्थानी मावड़ी

वीर धीर विद्वान बणाया खुवा खीचड़ो राबड़ी


हिंदी सिनेमा जगत रै जगचावै गीतकार स्व. भरत व्यास रो ओ दूहो मरूधर रै मानवी री खिमता रो बखाण करै। लगोलग पड़तै अकाळ बिच्चाळै जियाजूण री अबखायां सूं बांथेड़ा करतो, मरूधर रो मानवी आपरी मैणत अर खिमता सूं धर री सोभा बधावण रा अलेखूं कारज करîा है। कदास इणी कारण कानदान ‘कल्पित’ सिरखै लोककवियां, बां मिनखां नै आभै रा थाम्बा कैय’र बिड़दायो है जिकां रै पड़îां आभो ई हेठै आय पड़ै।


राजस्थानी साहित में इणी ढाळै रै अेक मानवी अन्नाराम सुदामा रो नांव आवै जिकां रै सिरजण रो जस सात समदरां पार जा पूग्यो है। आधुनिक राजस्थानी भासा अर साहित्य रै किणी पख री बात होवै तो सुदामा री चरचा बिना पूरी नीं हो सकै। सुदामाजी आपरी निरवाळी रळियावणी भासा, बुणगट अर कथ्य रै पाण राजस्थानी साहित्य में अळघो मुकाम बणायो। आपरी कैबत अर ओखाणां लियां बांरी घड़त सैं सूं न्यारी, संवेदना रा सुर इत्ता ऊंडा, कै सीधा पाठकां रै काळजै उतरै। कहाणी होवै चायै उपन्यास, कविता होवै का पछै निबंध, सुदामा रै रचाव में गंवई सादगी अर सरलता तो लाधै ई, धरती री सोरम अर मानवीय मूल्यां नै परोटती बांरी रचनावां री पठनीयता गजब है। सांची बात तो आ, कै सुदामा आपरै रचाव सूं राजस्थानी साहित्य रै भंडार नै जिकी सिमरधी अर ऊंचाई दी है, उणी हेमाणी नै अंवेरता थकां घणकरा पारखी बान्नै राजस्थानी रो प्रेमचंद मानै। 


राजस्थानी रै इणी प्रेमचंद यानी अन्नाराम सुदामा री जलमषती रै मौकै म्हानै बांरै कवित्व पख पर बात राखणी है। आलोचक नंद भारद्वाज आपरी संकलन पोथी ‘सिरजण साख रा सौ बरस’ मांय सुदामा री कविता रै पेटै लिखै कै सुदामा री पिछाण अर चरचा भलांई कथाकार रै रूप में रैयी होवै पण कविता सूं बांरो मनचींतो लगाव सदांई गाढो रैयो। भारद्वाज री इण बात री साख तो सुदामा रो गद्य रचाव ई भरै जिणमें अेक काव्यात्मक लय अर कविता री ओळयां रा विन्यास पग-पग छेड़ै लाधै। ओ आदमी जद गद्य रचै तो पद्य रो लागै अर पद्य रचै तो उणमें कथा/कहाणी सिरखो आनंद आबो करै। बुणगट री आ शैली सुदामा नै आपरै समकालीन रचनाकारां सूं अळघो मुकाम दिरावै। 


सुदामाजी रा चार कविता संग्रै ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’, ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’, ’ओळभो जड़ आंधै नै’ अर ’ऊंट रै मिस: कीं थारी म्हारी’ छप्योड़ा है। सै अेक सूं अेक बधता ! ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ तो आज भी साहित रसिक लोग घणै चाव सूं पढै अर सुणा बो’करै। ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’ अर ‘ओळभो जड़ आंधै नै’ संग्रै री कवितावां बांचां तो ठाह पड़ै कै इण कवि कन्नै अेक न्यारी वैष्विक दीठ है जिण रै पाण बो बारीक सी बात सूं सरू होय’र काव्य संवेदना नै आकासां लग लेय जावै। लिखारा तो पग-पग छेड़ै लाधै पण आ निरवाळी दीठ भोत कमती निगै आवै। आं री रचना ‘पगलिया समै री रेत पर, ‘पाती उग्रवादी री मा री’ अर ‘विस्व सुंदरी रै मिस’ वैष्विक कविता सूं कठैई कमती कोनी। अे कवितावां सुदामाजी नै विस्व स्तरीय कवियां री पांत में खड़îा करै।


डॉ. पुरूषोत्तम आसोपा सुदामाजी नै धरती री आस्था रो रचनाकार मानै। बां रै रचाव में नीं तो धोरां रो अणूतो सिणगार दिखै नीं किणी कामण गोरड़ी री बांकी छवियां, नीं तो प्रेमकथा रा सबड़का, नीं जोधारां रा कळा करतब। बस सो कीं धरती रै ओळै-दोळै घूमै। आसोपा अेक और ठावी बात बतावै, सुदामा फगत कड़वै जथारथ रा ई चितेरा लिखारा कोनी, बांरै मांय आदर्स री भावना ई कूट-कूट नै भरियोड़ी है। इण दीठ सूं बांरी चेतना जूनी पीढ़ी रा मूल्यां नै घणो मान देवै।

इण शोधपानै में सुदामाजी रा पैला दो कविता संग्रै ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ अर ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’ री निरख-परख होई है। किणी रचना री परख रो महताऊ पख ओ होवै कै आपां नै सोध परख करतां थकां उण रै रचाव रो कालखंड अवस चेतो राखणो चाइजै, इण सूं भी बेस्सी बात आ कै कूंतारै में उण लारलै बगत तांई पूगण री दीठ अर खिमता ई होवणी घणी जरूरी, जणाई बो किणी सिरजण रै निरख-परख में न्याव कर सकै। सुदामाजी खुद कैयो है कै समीक्षा साधना चावै अर गैरो अध्ययन। 


पैली पोथी ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’


बात आगै बधावां, 1968 में सुदामाजी रो पैलो कविता संग्रै ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ सामीं आवै जिण पर राजस्थान साहित्य अकादमी संगम रो सनमान मिल्यो। ओ बगत आधुनिक राजस्थानी साहित रो बाळपण कैयो जा सकै जिणरा पगलिया समकालीन साहित्य जगत में आपरा मंडाण देखणै री हूंस पाळ राखी ही। बीं घड़ी, समचै देस में गिणती रा राजस्थानी लिखारा हा तो बांचणिया नै तो दियो लेय’र सोधणो पड़तो। पण सुदामाजी री पोथी ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ नै पाठकां घणो मान दियो। देस-परदेस बैठ्या मायड़ भासा रा हेताळू संग्रै री सिरैनांव कविता नै सुण अर सुणाबो करता। कदास जणाई 1982 में इण पोथी रो दूजो संस्करण छपण में आयो।


इण कविता पोथी री भूमिका ई बांचण जोग है। अठै कैवणो चाइजै कै सुदामा रै रचाव रो अेक पख बांरी मौकै-बेमौकै लिख्योड़ी भूमिकावां भी है जिण माथै अेक पूरो सोधपानांे त्यार हो सकै। इण पोथी री भूमिका री पैली लैण देखो-


पोथी पोळाई नंई, जिकै सूं पैलां ई नांव राख लियो, ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’। घर बसणै सूं पैली ई गीगलै रो नांव गुटियो राजा ! इसी गळती तो कोई सेखचिल्ली ई नीं करतो होसी। 


इण भूमिका में कवि पोथी री रचाव प्रक्रिया अर छपणै में आई अबखायां भोत साफगोई सूं पाठकां रै सामीं राखै जिण सूं बांचणियां में अेक उत्सुकता जागै। संग्रै में कुल छः कवितावां है, सै आपरी निरवाळी छिब लियां।


पैली कविता ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ में कवि रो भाव है, कै मिनख नै अेक लालसा पनपावण सारू कित्ती आस्थावां री बळि देवणी पड़ै। इण कविता री नायिका गळी री अेक पांवली कुतड़ी है जिण रो नांव है ‘टिंवली’। आ ‘टिंवली’ ना कोई अल्सेसियन, ना पिटबुल, फगत गळी-बास में फिरती डोळबायरी कुतड़ी, जिकी सुदामा रै परस सूं किरपारामजी खिड़िया रै राजियै दांई ई साहित में अमर होगी। टिंवली रै मिस कवि कैवैै, कै जद आदमी-लुगाई री माणस पिरोळ में, तृष्णा री कुत्ती ब्यावै तो लोभ-लिप्सा, बैर-विरोध अर कामना रा कुकरिया जलमै। बा कुत्तड़ी फेर, धरती खातर ईं स्थूल कुत्ती सूं घणी भयावह होवै।


हास्य अर व्यंग्य रो पुट लियोड़ी आ कविता पाठकां नै गिदगिदावता थकां आगै बधै। बुणगट तो देखो-

तीखा कान, पांख सी पतळी/लम्बो झबरो पूंछ/ नांव हो टिंवली/दीखत री करड़ी कोझी/ पेट चिप्योड़ो, राफां ढीली/धक्का खाती, बास में फिरती बांझ मरै ही, पांवली न्यारी/पण किरपा करी किरतार/भाग री बात/टिंवली री बेळा आई.....


अर पूछ बधी तो इसी बधी/टोळी दिवानां री लारै फिरती/मजनूं केई घायल होया/कइयां री टांग टूटगी/फ्रि लव में किसा पंडत बैठै/कुण लेवै फेरा/ किसी जान अर किसा जान रा डेरा/आप-आप री करणी पार उतरणी/टिंवली बण योरोप री लेडी/बिन फेरां पार करी बैतरणी...।


थोड़ै दिनां में टिंवली  ब्यावै अर उण रो पगफेरो गळी बास में सुभ गिणीजण लागै। बास री लुगायां स्वारथवष उण नै गुलगला अर सीरो जिमावणो सरू कर देवै अर टिंवली हो जावै घुराण। आवतै-जावतै री पिंडी पकड़ती टिंवली जद सब नै परसाद देवण लागै तो कवि आखतो होय’र अेक दिन उण नै दूर रोही में छुड़वा देवै। 


बरसां पछै कवि री चेतना में टिंवली भळै जागै अर इण कविता रो उत्तरार्ध रचीजै। इण अंस  में  कवि मिनखपणै री तिस्णा रै पेटै अेक गंभीर चिंतन अर सवाल खड़îो करै। जद कोई धनी आपरै पेट सूं आगै नीं देखै, जद कोई सत्ताधारी कुर्सी री चमक में आपरी निजर गमा बैठै, जद कोई साधु संत, विद्वान विचारक विद्या अर अर विवेक नै बिसरा’र टुकड़ां पर पूंछ हिलावण लाग ज्यावै तो समझ लेवणो चाइजै कै बां सगळां री तृष्णा में कोई सूगली कुत्ती प्रसार पावण लाग रैयी है। धरती रै मंगळ सारू बा रूकणी चाइजै। बानगी देखो-


सत्ता री कुत्ती/धाप सकी ना धापी। विस्वासघात री कुत्ती/पद टुकडां पर पूंछ हिलाती/कुत्ती धोखै री/फूट रै कीचड़ में ले डूबी।


कुत्ती रै मिस तृष्णा रै प्रसार रा सांगोपांग चितराम है इण कविता में।


संगै्र री दूजी कविता ‘आकांक्षा’ में सुदामाजी गंवई अर सहरी जियाजूण रो सांतरो विष्लेषण करîो है। महानगरीय जीवन शैली में जूझतो आदमी कियां कसीजै, मुसीजै अर घाणी रै बळद दांई भूंबो करै, इण बाबत सांतरा चितराम है। बानगी देखो,-


सड़कां लागै है साप दियोड़ी/आंधी अर अपराधण/गौतम नारी सी /किचरयोड़ी काळी नागण सी/मरी पड़ी...। सरम रा कपड़ा खोल किनारै/केई मळ-मळ न्हावै/पण रात अंधारै/अणमैली काया/ कर-कर मैली पाछो काट लगावै...। भेड़ां करै सिलाम/ जणा अचम्भो आवै।


कविता में सत्ता नै नगरप्रेत री उपमा देय सुदामाजी कैवै,-अब कहो-कहो थे/नगरप्रेत री छियां नीचै/ कियां आवड़ै अर कियां बसीजै ? इण सत्ता रै परिवर्तन सूं ई बै घणी उम्मीद नीं राखै। कविता में बै कैवै, संज्ञा बदळै पण/विसेसण सागी पोतीजै/हीणै स्वारथ रो तेल घाल/कूटनीत री बळै कड़ाही/ जीवतै नै तळै मोकळा/मरया देवै वाहीवाही/आ नीती है नगरप्रेत री। 


सुदामा री बुणगट में व्यंग्य री धार ई सरावण जोग है। माइक पर चीखतै नेतावां रा रोळा सुण कवि मन उचकै- 


माथो दूखै जद सोचूं, ईंरा होठ सीड़ दूं/पण जनतंत्र री मणिहारी में इसी सस्ती सुई मिलै कठै ? 


कवि री बेबस मनगत तो देखो, छेवट जावतै कियां गरळावै। म्हूं गांम गरभ रो डेडरियो/ महानगर रै महासागर में तिसा मरूं....। 


‘भाग री बात’ कविता में सुदामाजी देसी संस्कृति रै अपदूसण री बात घणै निरवाळै ढंग सूं उठाई है। कवि सरकारू स्कूल में मास्टर है जिको सदांई धोती कुड़ता पैरै पण भायला उण नै पैंट पैरण सारू उकसाबो करै। छेवट अेक दिन बो मास्टर पैंट सिड़वा लेवै अर पछै उण री जिकी फजीती होवै, मत पूछो। बास-गळी रा कुतिया ई उण नै नीं ओळखै, पिंडी पाड़’र परसादी दे न्हाखै। अठै पैंट पष्चिमी संस्कृति री प्रतीक है जिण सामीं आज देस री युवा पीढ़ी आंधी होय’र भाज रैयी है। ‘स्टेंडर्ड री ममता’ नांव री कविता में ई कवि री पीड़ सागी है। आज रै टाबरां नै बडेरां रो स्टेंडर्ड लो लागै पण बै आपरा डोळ नीं देखै। दूध-दही रै पूगतै घर में पोडर रो दूध अर रंगीजेड़ी राफां सूं स्टेंडर्ड बणावती नवी पीढी नै देख कविमन घणो अचम्भो करै।


कुल मिलाय’र कैय सकां कै ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ कविता संग्रै हास-परिहास बिच्चाळै बिडरूप होवती सनातनी संस्कृति अर संस्कारां पेटै पाठकां में नवी चेतना जगावै।  

 

दूजी पोथी  ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’


सुदामाजी रो दूजो कविता संग्रै ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’ है जिको 1981 में धरती प्रकासन, बीकानेर सूं छप्यो। इण पोथी में कवि री दीठ घणी ऊंडी अर पकाव लियां है। पोथी में कुल आठ कवितावां हैै। अे कवितावां बांचां तो ठाह लागै कै अे ‘व्यथा कथा’ क्यूं कहिजी है। हर कविता में अेक लयात्मक कहाणी है, कहाण्यां में समाजू पीड़ नै देखती कवि री अंर्तव्यथा है, चिरणामृत सो करूण रस है जिण रा छांटा पाठकीय चेतना पर पड़ै, अर बा ई घड़ी स्यात कीं जागृत होवै। सुदामाजी खुद भूमिका में लिखै कै अे कवितावां सौखिया नीं लिखिजी, जदकद ही कवि री पोखरी में सामाजिक पीड़ रो कोई अणचायो भाठो आ पड़îो अर चेतना रो पाणी मथिज्यो, का अव्यवस्था रै अंधेरै में जवाब मांगती कोई उदास लौ सामीं आ खड़ी होई, जद कलम आप मतैई उभी होगी। सुदामाजी आं कवितावां बाबत लिखै कै नां आं में कोई ऊंचो दरसण, ना कोई आकासी उड़ान अर ना अटपटै अरथां सारू कोई दुरूह सबदावली। अे कवितावां आपरो रोवणो ई को रोवै नीं, पाठक अर सुणनियां सूं ई कीं पूछै, कै उण री भूमिका धरती री पीड़ कम करणै में है का बींनै बधावण में। जे कम करणै में है तो बींरो अैसान नहीं, दायित्व है। अर जे बधावण में है तो बो पीड़क अर सोसक है इण धरती रो। खाली आप सारू पकावै, बो साव ढोंगी है, बो कदेई सामाजिक नीं बण सकै, चावै कोई कित्तो ई बड़ो बिस्पत होवै का कुबेर ! 


पोथी बांचा तो ठाह पड़ै कै ओ सगळो रचाव मानखै रै सुभाव नै निरखतो-परखतो आगै बधै, पोथी रै मूळ में अेक वैस्विक चिंतन है, आखी धरती री पीड़ सामीं लावण रो, विसमता री बधती खाई बूरणै रो, मिनख री अंतस चेतना नै जगावण रो। सुदामाजी री पिछाण अेक समर्पित गुरू री रैयी है, अर इण संगै्र री पैली कविता व्यथा कथा में ई बै टाबरां री भणाई नै लेय’र अेक गुरू री अंतस पीड़ पाठकां सामीं राखै। आ कविता देस री षिक्षा व्यवस्था में सरकारू अर प्राइवेट स्कूलां रा पोत उघाड़ता थकां आगै बधै। कविता में  सरकारू मास्टरां रै व्यवहार अर आचरण रो ई सांगोपांग उल्लेख है। कविता में व्यंग्य अर घड़त री बानगी देखो-


.....मास्टर क्लास में बड़तां ई/मेज पर डंडो पटकै/फेर होवै घोषणा/खबरदार कोई बोलग्यो, तो टेर देस्यूं/कर टांगां ऊंची, माथो नीचो/आ रोज री गीदड़ भभकी/बूसी रोटी बासी कड्ढी.....


सामली भींत पर बैठा/ मोटा आखर मुळकै/‘मच्छर जहां-जहां, मलेरिया वहां-वहां/आता-जाता टाबर पढै/मास्टर पढै/ पण कथा रा बैंगण/बै आंख सूं पी कान सूं काढै....


टाबर/दिनभर इयां ई /बणतो कूकड़ो/कूटीजै, पींचीजै/सावळ सोचो ज्ञान कमाई पल्लै बींरी कित्तीक पड़ै...।


सुदामाजी इण धरती पर फिरता अलेखूं अनाथ अर अणबस टाबर, जिकां नै रोटी रा दो टुकड़ा ई पांती नीं, बां री चिंता ई करै। आं टाबरां री भणाई कियां होवै, ओ सवाल कविता रै मूळ में है।


लाख-लाख बाळक/अभाव रै गैण में/ अमूजता जद उदास दीसै/तो सर्वे सुखिनो भवंतु/पुत्रोहं पृथिव्याः/सै छीजै, ढकीजै, फूस नीचै/फेर राम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा/आग मांगै/ बैठ बाळकां रै काळजै....।


इण संग्रै में अेक सबळी कविता है ‘पगलिया समै री रेत पर’। आ कविता फ्रंेज काफ्का रै अर्न्तभेदू रचाव रो अेक सबळो उदाहरण है। काफ्का मुजब रचाव इस्यो होवणो चाइजै जिको बांचणियै रै सिर में दोहत्थड़ पटीड़ दांई पड़ै अर बो केई ताळ उण पीड़ नै पंपोळबो करै। इस्या ई भाव अर संवेदना इण कविता में लाधै जिका आपरी बुणगट रै पाण पाठकां रै हियै में ऊंडी उतर जावै।


अेक अणबस मा अर उण रै दो नान्है टाबरियां री पीड़ सूं भरीजी आ कविता इत्ती मार्मिक है कै बांचणियै रो अंतस ई गळगळो नीं होवै, आंख्यां सूं पाणी झरîां ई सरै। अठै हिंदी रा चावा-ठावा कवि सुमित्रानंदन पंत चेतै आवै, जिकां कैयो है, कविता फगत विचार अर तथ्य सूं नीं बणै, बा तो अंतस री अनुभूति सूं निपजै। पंतजी लिखै-


वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान

निकलकर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान


सुदामा री आ कविता इण बात री साख भरै। दुखां री पोट भरी इण कविता में अेक विधवा मा री अणबसी, अर उण पर पड़ता करमां रा अंतहीन घमीड़ा री व्यथा कथा है। आथूणै राजस्थान रै अेक छोटै सै गांम रो दिरसाव लियां, इण कविता रो कथ भोत साधारण ढंग सूं उठै अर छेवट जावता पीड़ रो समदर बण पाठकां रै रूं-रूं सामीं धरती नै बिडरूप करती विसमता माथै सवाल खड़îा करै। कविता में कमठाणै जावती अेक बेबस मा है सुक्खी, जिण रै बारह बरसां री छोरी सुगणी अर पांच बरसां रो लाडेसर सिवलो है। आ मा जियां-तियां आपरी जियाजूण रो गाडो घींसै। अेक रात छोरी आपरी मा सूं जिद पकड़लै, कै काल निर्जला ग्यारस है अर कमठाणै री छुट्टी, इण सारू मा काल उण नै खोखा चुगण जावण दै। बैन रै लारै-लारै छोटकियो सिवलो ई खोखा ल्यावण री जिद करै। मा बेटी री बंतळ में सुदामाजी री ऊंडी दीठ सूं रचीजी बुणगट देखो-


मा/निर्जला है काल/ कमठाणो बंद है नीं/ 

हां बेटी/

तो दिनुगै बैगी/ला सूं खोखा/जा सूं रोही।

काल तो थारै पड़ी ही ईंट/ पग पर/हुगी आंगळयां भेळी/छूटगी तूरकी लोही री/

बरसै दिन में लाय/हुसी उबाणी/ दूखै पग/ खोड़ावै न्यारी......जा सी खोखा लावण नै !

जासूं म्हूं आप/ मा सागै सूतो/ बरस पांच रो सिवलो

नां बेटा/ जूतिया थारै ही कठै/ कंवळी पगथळयां/ नीचै भोभर/ ऊपर खीरा/ करसूं म्हूं थारा हीड़ा/ का लासूं पइसा पावलै रा ? चइजसी पेट नै तो आटो/ देसी कुण बता बो ?..


मा घणी बरजै पण बाळहठ आगै पींघळ’र छेवट हंकारो भर देवै। दोनूं टाबर कोड रै घोड़ै पर असवार, खोखां रा सुपनां लेवता नींद री गोद्यां जा बड़ै। सुक्खी टाबरां रो सिर पळूंसती आपरी जियाजूण रा पानां फरोळबो करै। काल कमठाणै पर जद सेठ  ढिगली पर बजरी उछाळतै सिवलै रै थाप री मेली तो मा रै बाकी नीं रैयी। पण सुदामाजी री कारीगरी देखो, सुक्खी सामीं सेठ किस्योक ऊथळो देवै-


सुक्खी/छोरै नै डरायो हो थोड़ो/कूटूं/ म्हूं किस्यो अज्ञानी/ किसो गूंगो ? टाबर री नंई सुणनी/ सुण्यां बिगड़ै बो ! ओळभो आज बजरी रो/तो ढोळदै काल घड़ो बो घी रो/सोच तूं ही/होसी पछै मुस्किल कीं रै ?घाल्यां डर/ रैसी चेतो/ सुधरसी बो/ करसी कमाई / थारै /का म्हारै ?


इण सेठ सूं सुक्खी जद आपरी मजूरी मांगै तो देखो, बो कियां टरकावै-

कै आज तो बिस्पत/है सोगन देवण री/अर काल निरजला/राखै किरपा/मांगणै री सुक्खी/मोटो आदमी/ चाइजै पइसा सगळां नै/पण भांगै गुड़, सै गोथळी में.....


मार्क्स रै मुजब ईं सेठ जिस्या सोसक मुखौटा आखी दुनिया में लाधै जिका सुक्खी सिरखै कित्ता ई मजूरां रो हक दाब्यां बैठ्या है। 


सुक्खी री अळोच में कविता आगै बधै। आगलै दिन बखावटै ई दोनूं टाबर उबाणै पगां खोखा रै लालच में गांम सूं डेढ़ कोस दूर तांई आ पूगै। बळती लाय अर खीरा उछाळती रेत में टाबर खोखा घणाई भेळा करै, राजी होवै। पण छेवट घरै पूगण सूं पैली उणी रोही में तिस्साया हो जावै अर कदे खींप, कदे बूई री छियां लेवता, पाणी-पाणी करता प्राण छोड़ देवैै। कवि खोखा चुगता टाबरां री अणचायी मौत रै मिस बिधना री विसमता रो सांगोपांग दिरसाव मांडै। सिवलै अर सुगणी नै सोधती बांरी मा जद रोही में पूगै अर आपरै बचियां री ल्हासां देखै तो कीं बाकी नीं रैवै। कविता रा रंग देखो-


सिवला, उघाड़ आंख्यां/ मा हूं थारी/पण सिव/ पी विसमता रो विस/छोड दी धरती/ली समाधी लम्बी/खापण नीचै/लास ऊपर/छोड सब/ हुग्यो सिव विसधर....।


बाको फाड़ती मा कूकी किसी थोड़ी। आई ना सासू/ना धणी/कठै सिवलो/कठै सुगणी ? पण जूझणो धर्म है। उदास-उदास लागगी बा भळै काम में....। कविता आगै बधै तो सुक्खी नै गांव में सुणनो पड़ै कै दोनूं टाबर निर्जला ग्यारस नै पाणी-पाणी करता मरîा है, अवस ई भूत होसी, भटकसी रोही में। टैम बेटैम आवता-जावता ई डरसी। अेक मा रै कानां जद अे बातां पड़ै तो सोचो, उण रै जीवण में सार कठै ! पण कवि सुदामा सुक्खी नै आपरै टाबरां तांई पूगण रो अेक मारग देवै, जठै कविता भळै उठ खड़ी होवै। ज्यूं हरिवंषराय बच्चन ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर/ नेह का  आह्वान फिर-फिर’ री सीख दिरावै, उणी तर्ज पर सुक्खी गांव रै अगूणै पासै अेक बूढी खेजड़ी हेठै पाणी री पौ लगावै, तगारी सूं घसीज्यै आपरै सिर माथै रोज सात-आठ घड़ा ढो’र ल्यावै/रमता टाबर, अेवड़ रा गुवाळिया अर आवता जावता सगळा उण पौ रो पाणी इमरत मिस पीवै अर जीवै। इणी जियाजूण नै ढोवती, पाणी पावती सुक्खी रो सूवटो, अेक दिन उडारी ले लेवै। सुक्खी रा पगलिया समै री रेत पर मंडै, समाजू विसमता पर सवाल खड़îा करै...।


बात नै सावळ जचा’र कैणी सगळां रै बस में कोनी। आं मायनां में सुदामाजी रो कवित्व अेक पूरो इंस्टीटयूषन लखावै। हर कवि चितराम ई तो मांडै, सबद चितराम जिकां रो आभो कदे-कदे इत्तो विस्तार लेय लेवै कै बा कविता वैष्विक हो जावै।  ज्यूं धर्मवीर भारती ‘गुनाहों का देवता’ उपन्यास रै उत्तरार्ध में पाठकां नै चंदर अर सुधा रै मिस पग-पग छेड़ै रूणा’र छोड़ै, उण सूं ई बेसी, सुदामाजी तो ईं कविता री पैली लैण सूं ई बांचणियै रै अंतस तांई जा पूगै, उण री आंख्यां में बरसणो सरू कर देवै।


इणी संगै्र में मिनख रै लोभ अर लालच री वृत्ति नै लेय’र लिखिजी कविता ‘आंधी लालसा’ में सुदामाजी बांबी बैठ्यै मिणधर बासक नाग अर गोह री बंतळ सूं कविता सरू करै। मणि रूखाळतो बासक गोह नै कैवै-


मणि धन नै/हूं किसो खावूं/चाटूं का डील चोपड़ूं /गैली, गिटलूं जे/ घणा नीं/ दो चार नग ही/तो बता मन्नै/लागै ताळ कित्ती/ पूगतां आगलै घर...। 


आपरी पीड़ बतावतै मिणधर नै लागै, बो लारलै जलम में धणियाणी ही/ किणी काळै धन री/का जोरू किणी महाघूसखोर आंधै नेता अफसर री-


कारण/बणावै आंधी लालसा ई /आदमी नै सांप काळो/अर विस्व नै बांबी अंधेरी।


संग्रै वृत्ति है आदमी री, पण संग्रै सूं विसमता जलमै, दूजै रो हक मारीजै/लोभ अर लालच बधै जिण सूं धरती रो रूप बिगड़ै। इण विसमता नै मेटण रो समाधान ई कविता रै छेवट में लाधै जिण सूं आ अेक जनवादी रचाव कही जा सकै। 


‘दुविधा रै दळदळ में’ कविता गांम अर सैर री जिनगाणी रा दूबळा पख सामीं राखै। छत्तीस बरसां पछै कवि जद आपरै गांम पूगै तो बिगसाव रै नांव माथै उण नै सागी अबखायां अर ब्याध्यां लाधै तो उण में कीं बाकी नीं रैवै। उण रो मन पाछो पड़ै, दुविधा रै दळदळ में बो डूबै, अर तर-तर ऊंडो बैठै।


‘मानचित्र री ममता’ कविता अखंड विस्व री बात करै। आज घड़ी जठै कठैई अलगाव अर न्यारा होवण रा सुर उठ रैया है बठै आ कविता उभी होय’र सवाल करै। इण कविता में स्कूल रा टाबर आपसी लड़ाई में कार्डबोर्ड में फिट होयोड़ै मानचित्र सूं टुकड़ा काढ’र लेवै। रीसां बळता बोलै, ओ डब्बी में राखो सगळो/रचस्यां म्हे अेक-अेक टुकड़ै सूं/नवो न्यारो मानचित्र/थारै सूं घणो फूटरो, घणो भलेरो...।


गुरू नै जद इण बात रो ठाह लागै तो सुर गूंजै, ‘घूमो पाछा/जे रूस-रूस’र/अेक-अेक टुकड़ो/इण चित्र सूं टुर पड़सी तो खांडै मानचित्र में लारै बंचसी जूंवा/दीखसी खालेड़ घणेरी/ओ मानचित्र सगळां री पूंजी/सगळां रो साथी। 


मानखै री चेतना जगावण रा सुर तो देखो-


होसी जे ओ मानचित्र खंडित/तो मोटी चिंता/धरती पर साबत कुण बचसी ? इण धरती पर नीं चाइजै कांचळी बदळू अणगिण मौसमी कसटीडा/बस जरूरत है/आजादचित्र री पूर्णता सूं प्रेरित/भाईचारै रै नवै छितिज पर /कोई अणदागी गुरू आभा।


सार रूप सूं कैयो जा सकै कै सुदामाजी रा अे दोनूं कविता संगै्र राजस्थानी साहित्य री सांची हेमाणी है। इण रचाव में आखै जगत री चिंता करतै कवि रो अेक वैष्विक चिंतन है, पद्य में गद्य री रंगत है, रंगत में मिनख रै मिस मिनखपणै नै बचावण री अमोलक सीख है। इस्यो रचाव समै री खंख सूं कदेई बोदो नीं  पड़ै, बो तो तर-तर निखरतो जावै। सुदामाजी रै कवित्व पख नै उजागर करती आं सबळी कवितावां नै जन-जन तांई पूगावणो भी अेक लेखकीय दायित्व है।  


-डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’

Tuesday 26 September 2023

राजस्थान साहित्य अकादमी के पुरस्कारों में छाए 'इक्कीस' के विद्यार्थी


अकादमी द्वारा वर्ष 2023-24 के घोषित वार्षिक पुरस्कारों में पांच पुरस्कार लेकर रचा नया इतिहास


उदयपुर। 26 सितंबर। ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगा रहे इक्कीस संस्थान के विद्यार्थियों ने राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा मंगलवार को घोषित हुए वार्षिक पुरस्कारों में से पांच पुरस्कार जीतकर नया इतिहास रच दिया है। बीकानेर संभाग में यह पहला अवसर है जब एक ही शिक्षण संस्थान के पांच विद्यार्थी साहित्य के क्षेत्र में पुरस्कृत होंगे। 

इक्कीस कॉलेज के दामोदर शर्मा, पवन गोसांई,और कौशल्या जाखड़ तथा इक्कीस एकेडमी फॉर एक्सीलेंस की छात्र द्रौपदी जाखड़ और करुणा रंगा को साहित्य की अलग-अलग विधाओं में वर्ष 2023-24 के पुरस्कार देने की घोषणा हुई है।


अकादमी सचिव डॉ. सोलंकी ने बताया कि संचालिका-सरस्वती बैठक अनुमोदन के पश्चात अकादमी अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण ने विद्यालयी-महाविद्यालयी पुरस्कार की घोषणा की। विजेता विद्यार्थियों में चंद्रदेव शर्मा पुरस्कार के तहत कविता के लिए दामोदर शर्मा, इक्कीस कॉलेज गोपल्याण-लूनकरनसर, कहानी के लिए सुरेंद्र सिंह, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, एकांकी के लिए अमनदीप निर्वाण, एसएसएस कॉलेज, तारानगर, निबंध के लिए पवन कुमार गुसांई, इक्कीस कॉलेज, गोपल्याण को दिया जाएगा। वहीं परदेशी पुरस्कार के तहत कविता के लिए शुंभागी शर्मा, राउमावि भवानीमंडी-झालावाड़, कहानी के लिए परी जोशी, द स्कोलर्स एरिना, उदयपुर, निबंध के लिए करुणा रंगा, इक्कीस एकेडमी फॉर एक्सीलेंस, गोपल्याण, लघुकथा के लिए द्रोपती जाखड़, इक्कीस एकेडमी फॉर एक्सीलेंस, गोपल्याण को दिया जाएगा। वर्ष 2023-24 का सुधा गुप्ता पुरस्कार निबंध के लिए इक्कीस कॉलेज, गोपल्याण की कौशल्या को दिया जाएगा।

संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती आशा शर्मा ने विद्यार्थियों की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह सही मायने में टीम वर्क का प्रयास है। संस्था सचिव डॉ. हरिमोहन सारस्वत ने विद्यार्थियों के प्रयासों की प्रशंसा की और मंजिल पाने की दिशा में इसे बड़ा कदम बताया। संस्था के प्राचार्य राजूराम बिजारणियां ने इसे साहित्य की जमीन में नवांकुरों का ऊगना बताया है।

इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर सरोकार से जुड़े डॉ.मदन गोपाल लढ़ा ने खुशी का इज़हार करते हुए बताया कि गत कई वर्षों से लूणकरणसर में सरोकार संस्थान के माध्यम से साहित्यिक वातावरण बना है, यह गौरवान्वित करने वाला है। सरोकार संस्थान से जुड़े ओंकारनाथ योगी, गोरधन गोदारा, रामजीलाल घोड़ेला, छैलूदान चारण, दलीप थोरी, जगदीशनाथ भादू, केवल शर्मा, दुर्गाराम स्वामी, कमल पीपलवा, कान्हा शर्मा, रामेश्वर स्वामी, भूपेन्द्र नाथ सहित विभिन्न जनों ने बधाई प्रेषित की।

Sunday 24 September 2023

पालिका की बिगड़ी व्यवस्था को सुधारना मेरी प्राथमिकता : भाटिया

 

- प्रेस क्लब, की 'संवाद' श्रृंखला में पालिकाध्यक्ष हुए रूबरू


सूरतगढ़, 24 सितंबर। 'यह सच है कि नगर पालिका में व्यवस्थाएं बिगड़ी हुई हैं लेकिन मैं उन्हें दुरुस्त करने का भरसक प्रयास कर रहा हूं। मुझे जिस विश्वास के साथ नगरपालिका की कमान सौंपी गई है उस भरोसे को टूटने नहीं दूंगा।' यह कहना है नगरपालिका सूरतगढ़ के नवनियुक्त अध्यक्ष परसराम भाटिया का।


रविवार को व्यापार मंडल, सूरतगढ़ के सभागार में आयोजित प्रेस क्लब के कार्यक्रम 'संवाद' में बोलते हुए भाटिया ने गंभीरता पूर्वक प्रेस के सवालों के जवाब दिए और अपनी कार्य योजनाओं की जानकारी दी। सड़कों और नालियों से लेकर सीवरेज तक के मुद्दों पर उन्होंने साफगोई से अपनी बात कही। उनका कहना था कि पदभार संभालने के साथ ही उन्होंने बिना किसी भेदभाव के शहर के सभी 45 वार्डों में विकास कार्यों के टेंडर जारी किए हैं। उन्होंने इस तथ्य को भी स्वीकारा कि नियम कायदों के बावजूद पालिका कई पार्षद ठेकेदारी में लिप्त है। शहर में बढ़ते अतिक्रमणों को लेकर भी वे चिंतित दिखाई दिए। कमीशन के सवाल पर उनका कहना था कि पद संभालने से लेकर आज तक उन्होंने एक रूपया भी कमीशन में नहीं लिया है। कार्यक्रम में शहर के गणमान्य नागरिकों, व्यापारियों और प्रेस के लोगों ने भी पालिकाध्यक्ष से सवाल-जवाब किये। भाटिया ने उन्हें भरोसा दिलाया कि यदि उन्हें काम करने के लिए पर्याप्त समय मिला तो वह शहर की सड़कों और सीवरेज व्यवस्था को सुधारने की भरसक कोशिश करेंगे।


कार्यक्रम में समाजसेवी ललित सिडाना, व्यवसायी प्रवीण अरोड़ा, भूषण भठेजा, सुमन मील, रजनी मोदी, डॉ विशाल छाबड़ा, शिक्षाविद पी.डी. शर्मा बार संघ अध्यक्ष एडवोकेट अनिल भार्गव,एडवोकेट पूनम शर्मा,श्रीकांत शर्मा,पार्षद मदन औझा, जनता मोर्चा के ओम राजपुरोहित,रमेश माथुर, मेडिकल एसोसिशन सचिव देवेंद्र शर्मा, पवन तावनिया,मानव सेवा समिति के देवचंद दैया, राजकुमार सैन, किशन स्वामी, योगेश स्वामी, आकाश दीप बंसल सहित गणमान्य लोग मौजूद रहें।


गौरतलब है कि प्रेस क्लब, द्वारा प्रशासन और जनसामान्य के बीच व्याप्त संवादहीनता को समाप्त करने के उद्देश्य से संवाद श्रृंखला शुरू की गई है। क्लब के अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन सारस्वत के अनुसार इस श्रृंखला में प्रत्येक माह किसी एक जनसेवक अथवा पुलिस-प्रशासन के अधिकारी को आमंत्रित कर संवाद किया जाएगा। संवाद के बाद जनसामान्य भी अपने सवाल उठा सकेंगे और सुझाव दे सकेंगे।

Monday 18 September 2023

मायतां रै करजै सूं उऋण होवण री खेचळ है सिरजण साख रा सौ बरस

(नंद भारद्वाज री अन्नाराम सुदामा साहित माथै सम्पादित ‘पोथी सिरजण साख रा सौ बरस’ बांचता थकां......)

धिन-धिन अे धोरां री धरती राजस्थानी मावड़ी

वीर धीर विद्वान बणाया खुवा खीचड़ो राबड़ी।


हिंदी सिनेमा जगत रै चावै गीतकार स्व. भरत व्यास रो ओ दूहो मरूधर रै मानवी री खिमता रो बखाण करै। लगोलग पड़तै अकाळ बिच्चाळै जियाजूण री अबखायां सूं बांथेड़ा करतो मरूधर रो मानवी आपरी मैणत अर खिमता सूं धर री सोभा बधावण रा अगणित कारज करया है। कदास इणी कारण कानदान ‘कल्पित’ सिरखै लोककवियां बां मिनखां नै आभै रा थाम्बा कैय’र बिड़दायो है जिकां रै पड़्यां आभो ई हेठै आय पड़ै।


राजस्थानी साहित में इणी ढाळै रै अेक मानवी अन्नाराम सुदामा रो नांव आवै जिकां रै सिरजण रो जस सात समदरां पार जा पूग्यो है। आधुनिक राजस्थानी भासा अर साहित्य रै किणी पख री बात होवै तो सुदामा री चरचा बिना पूरी नीं हो सकै जिकां आपरी निरवाळी रळियावणी भासा, बुणगट अर कथ्य रै पाण राजस्थानी साहित्य में अळघो मुकाम बणायो। आपरी कैबत अर ओखाणां लियां बांरी घड़त सैं सूं न्यारी, संवेदना रा सुर इत्ता ऊंडा, कै सीधा पाठकां रै काळजै उतरै। कहाणी होवै चायै उपन्यास, कविता होवै का पछै निबंध, सुदामा रै रचाव में गंवई सादगी अर सरलता तो लाधै ई, धरती री सोरम अर मानवीय मूल्यां नै परोटती बांरी रचनावां री पठनीयता गजब है। जातरा संस्मरण तो अेक’र सरू करयां पछै पाठक छोड़ ई नीं सकै। सांची बात तो आ, कै सुदामा आपरै रचाव सूं राजस्थानी साहित्य रै भंडार नै जिकी सिमरधी अर ऊंचाई दी है, उणी हेमाणी नै अंवेरता थकां घणकरा कूंतारा अर पारखी बान्नै राजस्थानी रो प्रेमचंद मानै। 


राजस्थानी रै इणी प्रेमचंद यानी अन्नाराम सुदामा री जलमशती-2023 रै मौकै अेक घणी अमोलक पोथी आई है ‘सिरजण साख रा सौ बरस’। आ अेक संचयन पोथी है जिणमें राजस्थानी रा सिरैनांव रचनाकार अन्नाराम सुदामा री साहित्य जातरा री विवेचना है, विद्वजनां रा आलोचनात्मक आलेख है अर रचनावां री बानगी है। इण पोथी रो सम्पादन चावा-ठावा कवि, कथाकार अर समालोचक नंद भाऱद्वाज करयो है। भारद्वाज आपरी भूमिका पेटै लिखै कै किणी समर्थ सिरजणहार रौ शताब्दी बरस उणरै सिरजण-अवदान नै चितारण, अंवेर-परख करण अर बांनै आदरमाण देवणै रो सगळां सूं ओपतो सुअवसर मानीजै। म्हूं जाणूं कै हर औलाद पर आपरै मायत रो अेक करजो होवैे जिण सूं उऋण होवण री खेचळ सगळा ई आपरै डोळ सारू करै। नंद भारद्वाज री आ खेचळ ई उणी करजै नै उतारण री अेक सबळी सोच है जठै बै मायत सरीखै आपरै आगीवाण रचनाकार रो रचाव, उण रचाव माथै आलोचनात्मक दीठ अर सिरजण रा निरवाळा पख अेक संचयन में सामीं लावै। सुदामा सूं मिली सीख नै आगै बधावण री बात ई इण पोथी रो सार है।

 

पोथी री भूमिका में नंद भारद्वाज सुदामजी रै सिरजण रै न्यारै-न्यारै पख री बात करै। सुदामा री कविता रै पेटै बै लिखै कै सुदामा री पिछाण अर चरचा भलांई कथाकार रै रूप में रैयी होवै पण कविता सूं बांरो मनचींतो लगाव सदांई गाढो रैयो। भारद्वाज री इण बात री साख सुदामा रा च्यारूं कविता संग्रै ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’, ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’, ’ओळभो जड़ आंधै नै’ अर ’ऊंट रै मिस: कीं थारी म्हारी’ भरै। सुदामा री कविता ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ तो आज भी साहित रसिक लोग घणै चाव सूं पढै अर सुणा बो’करै। इण पोथी में सम्पादक भारद्वाज सुदामा री कहाणियां, उपन्यासां अर दूजी विधावां माथै बात करी है। सुदामा री रचनावां रा सबळा पख पाठकां सामीं राख्या है। इण रै साथै ई बां सुदामा-साहित्य पर राजस्थानी रै इग्यारा चावै-ठावै कूंतारां रा कीं जूनां, अर कीं नवा आलेख ई इण संचयन में राख्या है जिण सूं ओ संकलन घणो महताऊ बण्यो है। आं आलेखां नै बांचां तो ठाह पड़ै, कै सुदामा रो मुकाम आपरै समकालीन लिखारां सूं निरवाळो क्यूं है। आं आलेखां में सुदामा री कहाणी, सातूं उपन्यासां अर निबंधां माथै सांतरी आलोचनात्मक विवेचना होई है। खुद सम्पादक सुदामा रै जगचावै जातरा संस्मरण ‘दूर दिसावर’ माथै ‘फौड़ां सूं फायदौ’ नांव रो आलेख लिख्यो है। लगै-टगै सै कूंतारा अेक सुर में सुदामा नै राजस्थानी साहित्य रो मोटो थाम्बो मानै, कदास आ पिछाण ई सुदामा री सैं सूं ठावी ओळखाण है।

संचयन रै सरूपोत में सुदामाजी रै मोभी बेटै डाॅ. मेघराज शर्मा री बात ई छप्योड़ी है, जिण में बै सुदामाजी रै व्यक्तित्व बाबत पाठकां नै रूबरू करावै। संचयन रै पैलड़ै आलेख में डाॅ. नीरज दैया सुदामाजी री कहाणियां मुजब लिखै कै सुदामा रै राजस्थानी कथा साहित्य रा केई पख है। ग्रामीण जनजीवन सूं जुड़ी बांरी कहाणियां मांय सामाजिक सरोकार, जीवण मूल्य, संस्कार अर मिनखपणै री जगमगाट जाणै बगत नै दीठ दे रैयी है। बै प्रगतिषील अर जूनी मानसिकता रा अेकठ कहाणीकार है। डाॅ. आईदानसिंह भाटी सुदामाजी नै राजस्थानी उपन्यास रो ‘इकथंभियौ-म्हल’ बतावै। ‘समाजू बदळाव रा सजग चितेरा अन्नाराम सुदामा’ सिरेनांव सूं लिख्योड़ै आलेख में भाटी लिखै कै सुदामा जी रै उपन्यासां रै कथानकां री नींव में स्त्री है। बां रै सिरजण में स्त्री री मानसिकता रा सबळा अर दूबळा दोवूं रूप मांडिज्या है। इण रै साथै ई सुदामा दलित समाज री दसा अर उत्थान री बात नै भोत सांवठै ढंग सूं पाठकां सामीं राखै। इण रचाव में सुदामा री भासा शैली री बात करां तो बा समकालीन ग्रामीण राजस्थानी भाषा है जिणमें लोक प्रचलित अरबी-फारसी, पंजाबी अर संस्कृत रा तत्सम सबदां रो ई प्रयोग मिलै पण उण नै समझणै में कोई अबखाई नीं होवै।

डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित रो कैवणो है कै राजस्थानी उपन्यास विधा नै सुदामाजी जिकी ऊंचाइयां दिराई, आमजन में राजस्थानी उपन्यास री जिकी पिछाण कायम करी बा लोक रै चित्त में ‘आंधी अर आस्था’ का ‘मेवै रा रूंख’ रै रूप में आज लग उणीज भांत मंडियोड़ी है। इण उजळी ओळखाण दिरावण सारू ई  राजस्थानी उपन्यासकारां में  सुदामा रो नांव सैं सूं सिरै है। गजेसिंह आपरै आलेख में सुदामाजी रै सातूं राजस्थानी उपन्यासां री पड़ताल करै अर बांरी लेखन शैली सूं सीख लेवण री बात बतावै। डाॅ. गजादान चारण रै मुजब सुदामा रै रचाव री नायिकावां नारी जूण री अबखायां सूं आंख मिलावती, पग-पग माथै ऊभै अवरोधां नै ठोकरां सूं उडावती, लायकी सामीं लुळती अर नालायकी माथै कटकती संघर्ष री लाम्बी सड़की नापै पण ईमान अर अस्मत माथै आंच नीं आवण देवै।

डाॅ. पुरूषोत्तम आसोपा सुदामा नै धरती री आस्था रो कथाकार मानै। बां रै मुजब धरती सूं छेड़ै नीं बां रो कोई कथाछेत्र है अर नीं किणी भांत रै जीवण री आचार संहिता। बां रै रचाव में नीं तो धोरां रो अणूतो सिणगार दिखै नीं किणी कामण गोरड़ी री बांकी छवियां, नीं तो प्रेमकथा रा सबड़का, नीं जोधारां रा कळा करतब। बस सो कीं धरती रै ओळै-दोळै घूमै। आसोपा अेक और ठावी बात बतावै, कै सुदामा फगत कड़वै जथारथ रा ई चितेरा लेखक कोनी, बांरै मांय आदर्स री भावना ई कूट-कूट नै भरियोड़ी है। इण दीठ सूं बांरी चेतना जूनी पीढ़ी रा मूल्यां नै घणो मान देवै। सुदामा रै उपन्यास ‘मेवै रै रूंख’ नै माधोसिंह इंदा समाजू बदळाव री करूण कथा बतावै। बां रै मुजब ओ उपन्यास अेक गांव री कथा रो सांचो दस्तावेज है जिणमें करसां री करूण दसा रा चितराम सामीं आवै।

पोथी में सामल आलेखां में डाॅ. गीता सामौर रो ‘मैकती काया, मुळमती धरती’ उपन्यास माथै लिखिज्योड़ो आलेख ई सरावण जोग है। सुदामा रै इणी उपन्यास में डाॅ. गौरीशंकर प्रजापत नै लोकजीवन रा न्यारा-न्यारा तत्व लाधै। बांरै आलेख मुजब इण में बैम, सक, हेत-समानता, भाईचारो, धरमेला, तंतर-मंतर, अंधविस्वास, कुंठावां, विकार, सुगन-अपसुगन आदि लोकतत्वां रा लूंठा दरसण होवै।  श्याम जांगीड़ आपरै आलेख में सुदामा रै उपन्यास ‘आंधी अर आस्था’ री विवेचना करी है अर इण रचाव नै काळ सूं कळीजतै मानखै री गाथा बतायो है। बै लिखै कै इण उपन्यास री सगळां सूं लूंठी खासियत इणरी रळियावणी भासा है जिण में माटी री सोरम निगै आवै। डाॅ. अरूणा व्यास रै मुजब सुदामा रो रचाव लोक जीवन रो जीवतो जागतो चितराम है। बै आपरै साहित्य में समाजू रीत-कायदां नै बांरी व्यापकता में बरततां थकां उणसूं उपजण वाळै लखाव नै आपरै पाठकां तांई पुगावण रो काम करै। 

अेक जूनो आलेख बुलाकी शर्मा रो ई सामल करीज्यो है जिण मांय बां सुदामा रो इंटरव्यू लेवता थकां री बंतळ लिखी है। अेक सवाल रै पड़ुत्तर में सुदामा जी कैवै, ‘म्हानै लिखणै में रस आवै, लिखतो रैवूं। लोगां सूं मिल’र खुद नै अेक्सपोज करणो म्हानै कोनी आवै।’ बांरी आ साफगोई बान्नै समकालीन रचनाकारां सूं अळघो मुकाम दिरावै। इणी बंतळ में सुदामा आलोचना रै पेटै कैवै, ‘आलोचना भासा, भाव अर कथ्य री दीठ सूं होवणी चाइजै पण राजस्थानी में ओ पख कमजोर है।

पोथी रै दूजै खंड में सुदामाजी री टाळवीं रचनावां रो संचयन है जिणमें बानगी रै तौर पर कविता, कहाणी, उपन्यास, जातरा संस्मरण भेळै निबंध ई सामल करीज्या है। इण खंड रै सरूपोत में सुदामा रै दूजै कविता संग्रै ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’ री दोय रचनावां ‘आंधी लालसा’ अर ‘अेक उदास संज्ञा’ पढण नै मिलै। बांरी काव्य पोथी ‘ऊंट रै मिस थारी: म्हारी सगळां री’ सूं ई दो अंस सामल करीज्या है। अठै कैवणो चाइजै कै कवितावां रै पेटै सम्पादक रै चयन री आपरी दीठ है। इणी भांत कहाणी खंड में सुदामा री चावी-ठावी कहाणी आंधै नै आंख्यां तो है ई, उण रै साथै ’सुलतान: नेकी रो सम्राट’ अर ’अखंडजोत’ ई सामल होई है। अे कहाण्यां सुदामाजी रै कथा साहित्य री प्रतिनिधि रचनावां कैयी जा सकै। उपन्यासां री बात करां तो ‘मैकती काया, मुळकती धरती’, ‘मेवै रा रूंख’ अर ‘घर-संसार’ रा अंस सामल करीज्या है। लोकचावै जातरा संस्मरण ‘दूर-दिसावर’ रो ई अेक भाग इण संचयन में पढण नै मिलै। सुदामाजी री निबंध पोथी ‘मनवा थारी आदत नै’ रा दो निबंध भी है जिण सूं ओ संचयन अेक समग्र रै नेड़ै-तेड़ै जा पूग्यो है। 

संचयन में रचनावां रो चयन घणो अबखो काम होवै, सम्पादक कुणसी रचना लेवै अर कुणसी छोड़ै ! अर जे काम ई सुदामाजी सिरखै सिरजक री साहित्य जातरा रो होवै तो पछै हाथ घालै ई कुण ! साहित्य री लगैटगै सगळी विधावां में लिखणियै सुदामाजी री रचनांवां सूं संचयन सारू छंटाई करणी घणी दोरी, पण नंद भारद्वाज इण काम नै आपरी ऊंडी अर पारखी दीठ सूं पार घाल्यो है। बांरी खेचळ रो सार ओ है कै सुदामाजी री जलमशती रै मौकै राजस्थानी रै पाठकां अर शोधार्थियां सारू अेक महताऊ दस्तावेजी पोथी सामीं आई है जिण में सुदामा-साहित्य रै लगटगै सगळै पखां नै परोटिज्यो है। लखदाद है नंदजी नै, बांरी खेचळ नै !

पण अबै सुदामाजी री सीख नै आगै बधावां। बांरै मुजब हर पोथी अर रचनाकर्म रै आलोचनात्मक पख माथै बात करणी जरूरी है, इण सूं साहित संसार रो बिगसाव होवै। इण पोथी में सैं सूं मोटी बात जिकी अखरै, बा आ कै सुदामा साहित रै सबळै पख रै पेटै खूब लिखिज्यो है पण आलोचना रै पेटै भोत कमती बात होई है जद कै सुदामाजी सदांई कैवता, ‘सरायोड़ी खीचड़ी दांतां रै लागै’। सांची बात तो आ कै जिका आलोचनात्मक आलेख पोथी में सामल होया है बां में सूं घणकरा बरसां पुराणा है अर कई ठौड़ छप्योड़ा है। जद किणी रचनाकार रै सिरजण साख रै सौ बरसां री बात करां तो नवा आलेख सामीं आवणा चाइजै, क्यूंकै बगत रै साथै सन्दर्भ बदळ जाया करै। जूनै आलेखां में सम्पादन रै बगत सामयिक बदळाव री दरकार ही जिकी नीं हो सकी। सम्पादक आं आलेखां नै, हुवै ज्यूं ई पुरस दिया है जद कै आं री निरख-परख कर’र सामयिक सुधार होवण सूं पोथी री छिब और घणी निखरती।  

पोथी री भूमिका में नंद भारद्वाज लिखै, सुदामाजी रो कविता सूं मनचींतो लगाव सदांई गाढो रैयो पण संचयन में सुदामाजी रै सैं सूं सबळै कविता संग्रै ’ओळभो जड़ आंधै नै’ माथै कोई टीप कोनी, कोई आलेख कोनी, न ही संचयन में इण कविता संग्रै री कोई बानगी है जद कै इण संग्रै री कवितावां बांचां तो ठाह पड़ै कै इण कवि कन्नै अेक न्यारी वैश्विक दीठ है जिण रै पाण बो बारीक सी बात सूं सरू होय’र काव्य संवेदना नै आकासां लग लेय जावै। लिखारा तो पग-पग छेड़ै लाधै पण आ निरवाळी दीठ भोत कमती निगै आवै। इण संग्रै री कविता ‘पाती उग्रवादी री मा री’ अर ‘विस्व सुंदरी रै मिस’ वैश्विक कविता सूं कठैई कमती कोनी। अे कवितावां सुदामाजी नै विस्व स्तरीय कवियां री पांत में खड़्या करै। संचयन में इण माथै चरचा होवण सूं सुदामा रै कवित्व रो अलायदो पख पाठकां रै सामीं आवतो।

सुदामा रै रचाव रो अेक भोत सबळो पख बां री बगत-बेगत लिखियोड़ी भूमिकावां है जिण में साहित अर सिरजक पेटै बांरी निरवाळी सोच सामीं आवै। वैश्विक साहित में कई पोथ्यां री भूमिकावां ई इत्ती चावी-ठावी होई है बै किताब नै ई कड़खै बिठावै। सुदामाजी रै सम्पादन में शिक्षा विभाग कानी सूं छप्योड़ी पोथी ‘कोरणी कलम री’ री भूमिका ई इण बात री साख भरै। इण भूमिका में सुदामाजी फगत नवै लिखारां नै कथ्य, बुणगट अर विषयां रै चयन री सीख ई नीं देवै बल्कि भासा रै मानक स्वरूप पेटै ई भोत ऊंडी बात बतावै। राजस्थानी साहित्य में लिखिजी भूमिकावां में आ सैं सूं सिरै भूमिका मानी जा सकै। नंद भारद्वाज ‘कोरणी कलम री’ रो प्रकासन बरस 1997 बतावै जद कै आ पोथी 1982 री है। सुदामाजी री लिख्योड़ी इणी तरां री निरवाळी भूमिकावां पिरोळ में कुत्ती ब्याई होवै, त्रिभुवन को सुख लागत फीको अर दूजी पोथ्यां में लाधै जिकी आपोआप में अेक मुकम्मल रचना कैयी जा सकै। सुदामा साहित रै मांय इण भूमिका पख माथै ई चरचा होवती तो पोथी री सोभा सवाई होवती।

पण सम्पादक अर सम्पादन री भी अेक सींव होया करै। उण री अबखायां नै कुण जाणै, कदै-कदै सो कीं जाणता, मानता अर चावता थकां ई मनचींती नीं हो सकै, ओ दोस तो  बिधना रै पेटै ई खतावणो पड़ै नीं पछै बात आगै कियां बधै ! कैवणो चाइजै कै ‘सिरजण साख रा सौ बरस’ पोथी नंद भारद्वाज रो अेक अमोलक संचयन है जिको सुदामा रै साहित संसार में नवा पान्ना जोड़या है। नंदजी नै इण सारू घणा-घणा रंग ! इण पोथी रै छेकड़ में सुदामाजी रै साहित्य अर बान्नै मिलिया मान-सम्मान री अेक विगत ई छप्योड़ी है जिकी घणी महताऊ है। सूर्य प्रकासन मंदिर, बीकानेर सूं छपी इण पोथी रो आवरण अर छपाई सरावणजोग है। 

-डाॅ.हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’


Tuesday 29 August 2023

अंतस रै आंगणै उठतै भतूलिया रो रचाव

(पूनमचंद गोदारा री पोथी अंतस रै आंगणै बांचतां थकां...)

हिंदी रा जगचावा कवि गोपालदास 'नीरज' रो एक दूहो है-

आत्मा के सौंदर्य का, 
शब्द रूप है काव्य
मानव होना भाग्य है,
कवि होना सौभाग्य।

म्हारी जाण में इण सौभाग रै साथै कवि नै आखै जगती पीड़ री एक मिणिया माळा अर दरद रो दुसालो ई ओढण नै मिलै, उण सूं मुगत नीं हो सकै बो कदेई। दरद अर पीड री आ पोट उण नै बेताल दांई ढोवणो ई पड़ै। जे कोई आखतो होय'र आं भारियां नै छोड छिटका देवै, तो पछै उणनै कवि कैवै ई कुण !

सांची बात तो आ कै हर कवि रै अंतस आंगणै घरळ-मरळ चालती रैवणी चाइजै। इणी अळोच सूं मोती निपजै। सबदां रा सोनलिया मोती, जिकां री छिब मिनखपणै में बधेपो करै। कवि नै म्हूं गोताखोर मानूं जिको आपरै अंतस में गोता लगा बो'करै। गोता खावणा सोरा कोनी, सांस अर काळजा दोनूं ठामणा पड़ै एकर तो ! फेरूं ई जरूरी कोनी, मोती लाध ई जावै। कणाई चिलकता मोती, कणाई कादो अर गार, घणी बिरियां तो खाली हाथ बावड़नो पड़ै। पण सांची बात आ कै जित्ता ऊंडा, जित्ता लाम्बा गोता लागसी, बित्तो ई सांतरो रचाव सामीं आसी। किनारै उभ्यै लिखारां नै तो खंख भरिज्योड़ी सिप्यां अर फूट्योड़ा संख ई पल्लै पड़सी, जिका नै धो-पूंछ'र मेळा-मगरियां में भलंई बेच लो, अमोलक अर जगचावा नीं बण सकै बै ! अबै बात आं लिखारां माथै ई छोड़ देवां कै बान्नै कांई चाइजै !

पूनमचंद गोदारा
राजस्थानी में आं दिनां लगोलग पोथ्यां आ रैयी है । रचाव री इण कड़ी में नवी पीढी रो एक नांव है पूनमचंद गोदारा ! बीकानेर जिलै रै बडोड़ै गुसाईंसर गांम रा जाया जलम्या गोदारा अबार शिक्षा विभाग में सेवा देवै। बां री फुटकर रचनांवां तो पत्र पत्रिकावां में निगै आवती रैवै, अबै बां री पैली पोथी 'अंतस रै आंगणै' छपी है।

इण पोथी में 80 कवितावां है जिकां रा तार कणाई कसीजै अर कठैई मोळा पड़ै। पण सरावणजोग बात आ है कै गोदारा कन्नै आपरी एक निरवाळी दीठ है जिणमें कविता री संवेदना है। बान्नै लिखणै सारू अठी-उठी जोवणो नीं पड़ै, अंतस सूं उठता भतूळिया नै बै आपरी कलम रै मिस ढाबै अर कविता रचीजै । बां रा सबद चितराम छोटा होवतां थकां ई पाठकां रै हियै ऊंडा उतरै अर सोचण सारू मजबूर करै। गोदारा आं कवितावां में घर परिवार, प्रेम, प्रकृति, काण कायदा, मिनखपणो, मायड़ भासा अर आपरै ओळै-दोळै रै चितरामां नै लेय'र आपरा मंडाण मांडै। आं कवितावां में थळी री सोरम भेळै पसवाड़ा फोरती अंतस री चींत ई लाधै। बानगी देखो-

सुणां कै/बै ढक्योड़ा मतीरा है/पण मतीरा कित्ता'क दिन रैसी ढक्योड़ा/अर कित्ता'क दिन/दबसी/लड़ सूं लड़/साच है कै/ छेकड़ तो/उघड़ना है पोत/अर उघड़ना है लड़ !

मिनख रै हारयोड़ै सुभाव नै बतावती दूजी कविता 'चीकणो घड़ो' ई सांतरो रचाव है-

अब/रीस कोनी आवै/ना ई आवै कदै बांवझळा/ना घुटै मन/ना आवै झाळ/ना काढूं गाळ !/स्सो कीं सैवतां-खैवतां/नीं ठाह म्हूं/कद बणग्यो चीकणो घड़ो !

सूत रो मांचो बुणतां देख कवि गिरस्ती नै ई मांचै री उपमा देवै।
मांचै अर गिरस्त री बुणगट इण बात पर टिक्योड़ी है कै कुण सी लड़ नै दाबणो अर कुण सी नै उठावणो। मिनखा जियाजूण ईं इणी ढाळै आगै बधै।

मांचै री उठती दबती लड़ां में जियाजूण रै रंगां अर ब्याध्यां नै सोधणो ई तो कविता कानीं बधणै रो पांवडो हुवै। सबदां री न्हाई में तप्यां ई तो सरावणजोग घड़त बणै।

'अंतस रै आंगणै' री कवितावां रा सैनाण देखता भरोसै सूं कैयो जा सकै, कै आवतै बगत में गोदारा री दीठ दिनोदिन और ऊंडी होवैला, बां री कलम सूं ऊजळो रचाव सामीं आवैला। पैली पोथी सारू मायड़ भासा रा हेताळू पूनमचंद गोदारा नै घणा-घणा रंग, गाडो भर बधाइयां !
-रूंख

Thursday 24 August 2023

ब्याधि रै निरवाळै रंगां री पुरसगारी है 'ब्याधि उच्छब'

(डाॅ. कृष्णकुमार ‘आशु रै व्यंग्य उपन्यास ‘ब्याधि उच्छब’ नै बांचता थकां...)


व्यंग्य कैवणो अर परोटणो सोरो काम कोनी, तीखी दांती सी धार भेळै बाढणै री चतराई राखणी पड़ै। थोड़ा सा ऊक-चूक होया, धार देवण री ठौड़ लेवणी पड़ै ! ओ फगत हांसी ठट्ठो कोनी, बात कैवण रो बेजोड़ ढंग है जिको खासा जगचावो है। आपणै लोक में तो पग-पग छेड़ै इण बाबत निरवाळा रंग लाधै। कुण ई कैयो, थारै ढुंगां में खेजड़ो उगग्यो, ऊथळो मिल्यो-आछी बात, छियां बैठस्यां ! दूजै बूझ्यो, कियां हो ? जवाब  मिल्यो, कियां होवणो हो ! धणियाणी बोली, रोटी जीमस्यो के ? धणी बोल्यो-थूं जीमण री बात करै, म्हूं रंधास्यूं बैंगण री सब्जी ! थे ही बतावो, कोई कांई करल्यै। सांची बात तो आ कै बात नै व्यंग्य री धार लागतां ई आकासां चढज्यै पण संकट ओ है कै बात करणिया लोग रैया ई कित्ताक ! आज घड़ी इण सूं मोटी ब्याधि किसी ?

फेर ब्याधि तो ब्याधि होवै जिण में सौ टंटा अर दोय सौ टंटेर, घणी छेड़ो तो बधती ई जावै। बा ब्याधि उच्छब कद गिणीजै ! हां, जे निजरां कठैई डाॅ. कृष्णकुमार ‘आशु’ सिरखै व्यंग्यकार री होवै तो उण ब्याधि नै उच्छब बणतां कांई जेज लागै। बो आपरी ऊंडी दीठ सूं ब्याधि रा इतरा रंग सणै सैनाण सोध लेवै कै उच्छब री रंगत लाग्यां ई सरै। डाॅ. आशु कन्नै व्यंग्य रै साथै अेक सूझवान पत्रकार री दीठ ई है जिकी आपरै ओळै-दोळै री सैंग बातां नै निरवाळै सिगै सूं बिचारै। इणी दीठ सूं डाॅ. आशु समाजू अबखायां बिच्चाळै मिनखपणै नै जीवतो राखणै री खेचळ करता, कोरोना री जगत ब्याधि नै उच्छब रो नांव देय’र व्यंग्य उपन्यास सामीं लाया है। कोरोना सूं कुण अणजाण, मिनखां री छोड़ो, सणै जिनावरां सगळा रै  गळै में आयोड़ी ! लखायो जाणै ‘पैनेडेमिक’, ‘लाॅकडाऊन’ अर ‘क्वरंटिन’ नांव रै तीन सबदां सामीं सबदकोसां रा सै सबद पांगळा होग्या। पण बीं अबखी बेळा में ई डाॅ. आशु रै मांयलो पत्रकार आपरी व्यंग्य दीठ सूं भांत-भांत रा चितराम मांड मेल्या जिकां रै पाण  ‘ब्याधि उच्छब’ पाठकां रै सामीं आयो है।

 पोथी री भूमिका लिखतां थकां चावा-ठावा लिखारा डाॅ. मंगत बादळ इण नै राजस्थानी रो पैलो व्यंग्य उपन्यास बतायो है। आ ओपती बात है क्यूंकै मायड़ भासा में फुटकर व्यंग्य रचनावां तो खासा लाधै, पोथ्यां ई ठीक-ठाक छप्योड़ी है पण उपन्यास में व्यंग्य री ओ नवो पांवडो है।

डाॅ. आशु रो ओ रचाव कोरोना ब्याधि रै दिनां री पड़ताल करतो आगै बधै। बै कोरोना नै शोले फिल्म रै खलनायक ‘गब्बर’ सूं जोड़’र देखै।  उपन्यास में 13 पाठ राखिज्या है। गोकळचंद नांव रो पत्रकार इण व्यंग्य उपन्यास रो नायक तो नीं, सूत्रधार कैयो जा सकै। बो महामारी नै देखै, उण रा रंग देखै, लोगां रा ढंग देखै अर सरकारू अेलकारां रै हिवड़ै बाजता चंग देखै। मौत रै मंडाण बिच्चाळै ई मिनख आपरी कुजात बतायां बिना नीं रैवै, इण बात नै परोटणै री खेचळ है ओ ब्याधि उच्छब !

लोकराज री भ्रष्ट व्यवस्था रा पोत उघाड़तो ओ उपन्यास उण बगत रो अेक महताऊ दस्तावेज बण्यो है। महामारी में जठै अेकै कान्नी लोग सांस लेवण सारू ताफड़ा तोड़ रैया है तो दूजै खान्नी इण ब्याधि नै उच्छब दांई मनावणियां रा भोत सा चैरा सामीं आवै। आपरी गळफांस काढणै सारू अेक महाभ्रष्ट कलेक्टर रातोरात दूजै प्रांत सूं आयोड़ै भोळै-ढाळै मिनखां नै दूजै जिलै री सींव में डांगरां दांई तगड़ देवै। अेक बाणियै रो परिवार सगळै गळी-मोहल्लै नै करोना री पुरसादी बांट देवै तो  पांच हजार रिपिड़ा देय’र बस में सफर करणियो बिस्यो ई अेक दूजो चैरो कोरोना रो कैरियर बणै अर सगळै बास नै ल्याड़ देवै।

इण उपन्यास में डाॅ. आशु गोकळचंद नांव रै किरदार साथै पूरो न्याव करयो है जिको डाक्टरां सूं लेय’र खुद आपरी बिरादरी री सांगोपांग खबर लेवतो जाबक ई नीं संकै। आज घड़ी उण सिरखा पत्रकार अणबसी सूं सै छळ-छंद देखै अर बांरा पोत उघाड़नै री जबरी खेचळ करै पण सत्ता रा चींचड़ बान्नै जाबक ई नीं धारै। आशु रो गोकळचंद ई पूरै उपन्यास में घणाई ताफड़ा तोड़ै पण कलेक्टर सूं लगाय’र सत्ता रा दलाल उण री पार ई नीं पड़न देवै।

इण उपन्यास रो सूत्रधार सोसल मीडिया रै खतरां सूं सावचेत रैवण री सीख ई देवै जो कोई लेवै तो ! उणरी दीठ में व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी तो चालती फिरती धारा तीन सौ दो है जिकी चावै जणाई किणी नै भी अंदर करवा सकै। लाॅकडाऊन री आछी-माड़ी बातां रै मिस इण उपन्यास रो कथानक पीड नै परोटता थकां मिनखपणै रा पोत उघाडै़ अर हळंवै-हळंवै आगै बधै। छेवट म्हे तो चाल्या म्हारै गांम... री तर्ज माथै आपरी बात पूरी करै।

‘डाॅ. आशु’ इण पोथी रो समर्पण महामाया रै नांव सूं करयो है ज्यांरै पुन परताप सूं ब्याधि अर पोथी दोनूं बापरी। इण उपन्यास री बुणगट सांतरी है अर भासा ई सरावण जोग है। अठै इण बात रो जिकरो करणो जरूरी है कै डाॅ. आशु री मायड़ भासा पंजाबी है पण बै बाळपणै सूं ई राजस्थानी माहौल में पाळ्या पोखिज्या, जिण सूं बान्नै राजस्थानी लिखणै बाबत कोई अबखाई नीं। आ गुमेज री बात है। इंडिया नेटबुक्स सूं छप्योड़ी इण पोथी री छपाई अर छिब सरावणजोग है। पोथी रो मोल ई फगत 200 रिपिया राखिज्यो है जिको समैं देखतां कीं घणो कोनी। बात रा टका लागै ई पछै !

-डाॅ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’

सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और साहित्यकार मधु आचार्य के जन्मदिवस पर एक यादगार शाम का आयोजन

कभी तो आसमान से चांद उतरे ज़ाम हो जाए  तुम्हारा नाम की भी एक सुहानी शाम हो जाए.... सोमवार की शाम कुछ ऐसी ही यादगार रही. अवसर था जाने-माने रंग...

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