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Thursday, 30 March 2023

उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है !


(जिला बनाओ अभियान का संघर्ष )

आज का घटनाक्रम कुछ यूं चला कि रात्रि लगभग 3:00 बजे 8 दिन से 'सूरतगढ़ जिला बनाओ' अभियान के अंतर्गत आमरण अनशन कर रहे उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ को पुलिस ने उठा लिया. संवेदनहीन प्रशासन ने उन्हें जिला चिकित्सालय, श्रीगंगानगर रैफर कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली. इन योद्धाओं को गाड़ी में बिठाकर भगवान भरोसे छोड़ दिया गया. यहां तक कि उनकी देखरेख के लिए कोई पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. जिला चिकित्सालय में वे दोनों अव्यवस्था के मारे अकेले बैठे रहे. नर्सिंग स्टाफ ने उनकी सुध तक नहीं ली और थक हार कर वे रोडवेज बस में बैठकर आठ बजे सूरतगढ़ लौट आए.



घटना की जानकारी मिलते ही शहर के संघर्षशील लोग, विधायक पूर्व विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि धरना स्थल पर पहुंचे और प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया. जिला कलेक्टर से लेकर एसडीएम, तहसीलदार और पुलिस प्रशासन सबको इस घोर लापरवाही के लिए लताड़ा गया. गुस्साए साथियों ने प्रताप चौक पर जैसे ही जाम लगाया अधिकारी और पुलिस सभी दौड़े आए और अपनी गलती स्वीकारने लगे. जनाक्रोश को देखकर मौके पर उपस्थित उपखंड अधिकारी ने माफी मांगते हुए दोषी तहसीलदार और कर्मचारियों की लापरवाही के खिलाफ विभागीय जांच का भरोसा दिलाया और भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना होने की बात कही.

परिणाम यह रहा कि पुलिस ने दोनों आंदोलनकारियों को पूरी जिम्मेदारी के साथ अब सूरतगढ़ ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवा दिया है जहां इलाज के साथ-साथ उनका अनशन भी जारी है. सूरतगढ़ जिला बनेगा या नहीं, मुझे नहीं पता, लेकिन इतना तय है कि उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है. अन्याय और संवेदनहीन प्रशासन को चेताने के लिए संभावनाओं के शहर में योद्धाओं की कमी नहीं है. इस संघर्ष में खड़े हर व्यक्ति को सादर प्रणाम, जिसने अपना योगदान दिया, और लगातार दे रहे हैं. अब आमरण अनशन की डोर जुझारू नेता बलराम वर्मा ने संभाली है अपनी घोषणा के मुताबिक उन्होंने आज से भूख हड़ताल शुरू की है. पूजा छाबड़ा द्वारा जगाई गई इस अलख में उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ सहित चार लोग आमरण अनशन पर हैं और धरना स्थल पर क्रमिक अनशन भी जारी है. देखें आगे क्या होता है !

Wednesday, 29 March 2023

राइट टू हेल्थ कानून पर आक्रोशित है डॉक्टर्स, सरकार करे पुनर्विचार


राजस्थान में चिकित्सक और सरकार राइट टू हेल्थ बिल को लेकर आमने-सामने हैं. डॉक्टरों की हड़ताल से आम आदमी की परेशानी बढ़ती ही जा रही है लेकिन चुनावी साल के मद्देनजर सरकार सुनने को ही तैयार नहीं है. इस बिल में अनेक ऐसे प्रावधान हैं जिनकी पालना हो पाना संभव ही नहीं है. इन प्रावधानों के चलते चिकित्सा व्यवस्था में विवाद और लड़ाई झगड़े बढ़ने तय हैं. एक ओर जहां सरकार के मंत्री चिकित्सकों को कसाई बता रहे हैं वहीं दूसरी और आरटीएच के नाम पर जनता को बेवकूफ बना कर वाहवाही लूट रहे हैं.


आईएमए की सूरतगढ़ शाखा ने कल इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी भावनाएं और परेशानियां लोगों के सामने रखी. वरिष्ठ चिकित्सकों ने इस कानून को लेकर अनेक शंकाएं व्यक्त की और सरकार से यह कानून वापस लेने की मांग की. आइए, इस बिल और विवाद को समझने की कोशिश करते हैं.

राइट टू हेल्थ (RTH) बिल में प्रावधान है कि कोई भी हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इलाज के लिए मना नहीं कर सकता है। इमरजेंसी में आए मरीज का सबसे पहले इलाज करना होगा। ये बिल कानून बनने के बाद बिना किसी तरह का पैसा डिपॉजिट किए ही मरीज को पूरा इलाज मिल सकेगा। एक्ट के बाद डॉक्टर या प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज को भर्ती करने या उसका इलाज करने से मना नहीं कर सकेंगे। ये कानून सरकारी के साथ ही निजी अस्पतालों और हेल्थ केयर सेंटर पर भी लागू होगा।

'इमरजेंसी' परिभाषित में होना सबसे बड़ा विवाद

सबसे बड़ा विवाद 'इमरजेंसी' शब्द को लेकर है। डॉक्टर्स की चिंता है कि इमरजेंसी को परिभाषित नहीं किया गया है। इमरजेंसी के नाम पर कोई भी मरीज या उसका परिजन किसी भी प्राइवेट हॉस्पिटल में आकर मुफ्त इलाज की मांग कर सकता है। इससे मरीज, उनके परिजनों से अस्पतालों के स्टाफ और डॉक्टर्स के बीच विवाद बढ़ेंगे। पुलिस एफआईआर, कोर्ट-कचहरी मुकदमेबाजी और सरकारी कार्रवाई में डॉक्टर्स और अस्पताल उलझ कर रह जाएंगे।

ये हैं बिल के प्रावधान

- हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इमरजेंसी में फ्री इलाज उपलब्ध करवाएंगे।

- मरीज या उसके परिजनों से कोई फीस नहीं ली जाएगी।

- इलाज के बाद ही मरीज या उसके परिजनों से फीस ली जा सकती है।

- अगर मरीज या परिजन फीस देने में असमर्थ रहते हैं, तो बकाया फीस और चार्जेज़ सरकार चुकाएगी।

- मरीज को किसी दूसरे अस्पताल में भी शिफ्ट किया जा सकता है।

- इलाज करने से इनकार किया, तो अस्पताल पर जुर्माना लगेगा

- मरीज का इलाज करने से इनकार करने पर पहली बार में 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा, दूसरी बार मना करने पर जुर्माना 25 हजार रुपये वसूला जाएगा। 

चिकित्सकों का पक्ष जानना भी जरूरी

कानून वापस नहीं होने तक आंदोलन और विरोध प्रदर्शन पर डॉक्टर्स अड़े हैं। चिकित्सकों का आरोप है कि यह बिल लागू होने पर प्राइवेट अस्पतालों में भी सरकारी अस्पतालों जैसी अव्यवस्थाएं और भीड़ बढ़ जाएगी। निजी अस्पतालों के कामकाज और उपचार में सरकार का सीधे दखल बढ़ जाएगा।

डॉक्टर्स का आरोप है कि इमरजेंसी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। कोई भी मरीज या उसका परिजन इमरजेंसी की बात कहकर किसी भी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंच जाएगा। फ्री इलाज करने की बात करेगा।

इससे अस्पताल, डॉक्टर्स और मरीज के परिजनों में झगड़े और टकराव बढ़ेंगे। कोर्ट-कचहरी और मुकदमेबाजी आम हो जाएगी। इसलिए बिल को वापस लिया जाए।

RTH लागू होने पर हर मरीज के इलाज की गारंटी डॉक्टर की हो जाएगी। कोई गंभीर मरीज अस्पताल पहुंचा और अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, तो स्वाभाविक रूप से मरीज को बड़े या संबंधित स्पेशलाइजेशन वाले अस्पताल में रेफर करना पड़ेगा।रेफर के दौरान बड़े अस्पताल पहुंचने से पहले अगर मरीज की मौत हो गई, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा और उसकी गारंटी कौन लेगा ?

सार यह है कि बंद एसी कमरों में बैठकर ब्यूरोक्रेट्स द्वारा बनाया गया यह कानून राहत देने की बजाय परेशानियां खड़ा करता दिखाई दे रहा है. यदि सरकार वाकई राइट टू हेल्थ के प्रति गंभीर है तो उसे देश के प्रधानमंत्री की तरह एक कदम आगे बढ़कर इस कानून को वापस लेना चाहिए. अशोक गहलोत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लाई गई चिरंजीवी योजना एक बेहतरीन योजना है, उसकी खामियां दूर कर बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था बनाई जा सकती है. 

अनशनकारी उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ के साथ पुलिस और प्रशासन का घोर दुर्व्यवहार


उमेश मुद्गल

विष्णु तरड़

(
सूरतगढ़ जिला बनाओ अभियान )

राजस्थान सरकार सूरतगढ़ जिला बनाओ आंदोलन के प्रति कितनी गंभीर और संवेदनशील है, इसका अंदाजा पुलिस प्रशासन की कार्यशैली से लगाया जा सकता है. रात्रि 3:00 बजे 7 दिन से आमरण अनशन पर बैठे उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ को पुलिस ने उठाकर श्रीगंगानगर चिकित्सालय रेफर करवा दिया। वहां किसी भी प्रकार की व्यवस्था ना होने के कारण वे दोनों अकेले चिकित्सालय में बैठे रहे जहां किसी ने उनकी सुध नहीं ली. यहां तक कि उनकी देखरेख के लिए कोई पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. ऐसी परिस्थिति में थक हार कर संघर्ष के दोनों योद्धा बस में बैठकर सूरतगढ़ लौट रहे हैं.

क्या पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि आमरण अनशन पर बैठे संघर्षशील युवाओं की गंभीरता से देखरेख करते ? खुदा ना खाश्ता आठ दिनों से भूखे बैठे इन नौजवानों को कुछ हो जाता तो किसकी जवाबदेही होती ? जिला बनाओ आयोजन समिति की कार्यशैली भी सवालों के कटघरे में है. रात्रि जब इन दोनों को पुलिस गंगानगर रेफर कर रही थी तब समिति का कोई सदस्य वहां उपस्थित नहीं था. ना ही किसी ने इन दोनों योद्धाओं के साथ श्रीगंगानगर जाना मुनासिब समझा. कम से कम अब आयोजन समिति को इस गंभीर मामले पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए और नई रणनीति बनानी चाहिए. 

सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार मधु आचार्य आशावादी को


राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के विविध पुरस्कारों-सम्मानों की घोषणा


# बावजी चतर सिंह अनुवाद पुरस्कार राजूराम बिजारणियां को 


इक्कीस एकेडमी फॉर ऐक्सीलेंस  की छात्रा कल्पना रंगा को मनुज देपावत पुरस्कार 

बीकानेर, 29 मार्च। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने वर्ष 2022-23 के लिए अकादमी के विविध पुरस्कारों तथा सम्मानों की घोषणा की है। अकादमी कार्यसमिति की बुधवार को होटल ढोला मारू सभागार में आयोजित बैठक में छंगाणी ने विभिन्न पुरस्कारों के निर्णायकों की संस्तुतियों के आधार पर पुरस्कार निर्णयों की जानकारी दी।
          अकादमी अध्यक्ष ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए 71,000 रुपए का सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार (पद्य) बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी को उनकी पुस्तक ‘पीड़ आडी पाळ बाध’ पर, 51,000 रुपए का गणेशीलाल व्यास उस्ताद पद्य पुरस्कार बारां के मूल निवासी व ठाणे के निवासी ओम नागर को उनकी पुस्तक ‘बापू : एक कवि की चितार’ पर, 51,000 रुपए का शिवचंद भरतिया गद्य पुरस्कार बीकानेर के कमल रंगा को उनकी पुस्तक ‘आलोचना रै आभै सोळह कलावां’ पर व 51,000 रुपए का मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार अलवर के डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी को उनकी पुस्तक ‘भरखमा’ पर दिया जाएगा। 
          अकादमी सचिव शरद केवलिया ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए 31,000 रुपए का बावजी चतर सिंह अनुवाद पुरस्कार लूणकरणसर के राजूराम बिजारणियां को उनकी पुस्तक ‘झोकड़ी खावतो बगत’ पर, 31,000 रुपए का सांवर दइया पैली पोथी पुरस्कार भीलवाड़ा के मोहन पुरी को उनकी पुस्तक ‘अचपळी बातां’ पर, 31,000 रुपए का जवाहरलाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार रायसिंहनगर
किरण बादल

की किरण बादळ को उनकी पुस्तक ‘टाबरां री दुनियां’ पर, 31,000 रुपए का प्रेमजी प्रेम राजस्थानी युवा लेखन पुरस्कार लूणकरणसर के देवीलाल महिया को उनकी पुस्तक ‘अंतस रो ओळमो’ पर, 31,000 रुपए का राजस्थानी महिला लेखन पुरस्कार बीकानेर की डॉ. कृष्णा आचार्य को उनकी पुस्तक ‘नाहर सिरखी नारियां’ पर तथा 31,000 रुपए का रावत सारस्वत राजस्थानी साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार ‘राजस्थली’ पत्रिका श्रीडूंगरगढ़ (सम्पादक- श्याम महर्षि) को दिया जाएगा। 
         केवलिया ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए भतमाल जोशी महाविद्यालय पुरस्कार के तहत प्रथम स्थान प्राप्त राजकीय डूंगर महाविद्यालय बीकानेर के छात्र योगेश व्यास को उनकी कहानी ‘गैरी नींद’ पर 11,000 रुपए का व द्वितीय स्थान प्राप्त जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्र व फालना निवासी अभिमन्यु सिंह इंदा को उनके व्यंग्य ‘थांरो-म्हारो भविष्य’ के लिए 7,100 रुपए का पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इसी प्रकार मनुज देपावत पुरस्कार के तहत प्रथम स्थान प्राप्त राजकीय सार्दुल उच्च माध्यमिक विद्यालय बीकानेर के छात्र अरमान नदीम को उनकी लघुकथा ‘खोखो नीं हटसी’ पर 7,100 रुपए का व द्वितीय स्थान प्राप्त इक्कीस एकेडमी फॉर ऐक्सीलेंस गोपल्याण की छात्रा व महाजन निवासी कल्पना रंगा को उनकी कहानी ‘कंवळै मन री डूंगी पीड़़’ पर 5,100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।
सम्मान- अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने बताया कि 51,000 रुपए का राजस्थानी भाषा सम्मान अजमेर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. चन्द्रप्रकाश देवल को, 51,000 रुपए का राजस्थानी साहित्य सम्मान जोधपुर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अर्जुन देव चारण को, 51,000 रुपए का राजस्थानी संस्कृति सम्मान बीकानेर के ब्रजरतन जोशी को व 51,000 रुपए का राजस्थानी प्रवासी साहित्यकार सम्मान मुंबई के रामबक्स को प्रदान किया जाएगा।
        अकादमी का 31,000 रुपए प्रत्येक का आगीवाण सम्मान प्रदेश के 14 वरिष्ठ साहित्यकारों को प्रदान किया जाएगा। इनमें नंदकिशोर शर्मा (जैसलमेर), मेहरचंद धामू (परलीका, हनुमानगढ़), चांदकौर जोशी (जोधपुर), दीनदयाल ओझा (जैसलमेर), सोहनदान चारण (जोधपुर), भोगीलाल पाटीदार (डूंगरपुर), भंवरलाल भ्रमर (बीकानेर), गौरीशंकर भावुक (तालछापर, सुजानगढ़), पुरुषोत्तम पल्लव (उदयपुर), श्याम जांगिड़ (चिड़ावा, झुंझुनूं), गोपाल व्यास (बीकानेर), मुकट मणिराज (कोटा), बिशन मतवाला (बीकानेर), उपेन्द्र अणु (ऋषभदेव, उदयपुर) शामिल हैं। 
        छंगाणी ने बताया कि विविध पुरस्कारों के निर्णायकों में अर्जुनदेव चारण, मंगत बादळ, ब्रजरतन जोशी, अब्दुल समद राही, डॉ. नवजोत भनोत, डॉ. लक्ष्मीकान्त व्यास, मधु आचार्य, उपेन्द्र अणु, शंकरसिंह राजपुरोहित, उम्मेद गोठवाल, हाकम अली, संजय पुरोहित, कमल रंगा, गीता सामोर, सुचित्रा कश्यप, हरीश बी शर्मा, मनीषा डागा, विश्वामित्र दाधीच, माधव हाड़ा, सीमा भाटी, रामबक्ष जाट, पूर्ण शर्मा ’पूर्ण’, डॉ. भंवर भादाणी, धीरेन्द्र आचार्य, आशीष पुरोहित, निर्मल रांकावत, उमाकान्त गुप्त, रमेश पुरी, ऋतु शर्मा, जयश्री सेठिया, किरण बादल, कौशल्या नाई शामिल थे। छंगाणी ने बताया कि चिकित्सकीय सहायता के तहत साहित्यकार गोरधन सिंह शेखावत (सीकर) व देवकर्ण सिंह (उदयपुर) को 11,000 रुपए की चिकित्सकीय सहायता राशि दी जाएगी।

बैठक में अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. भरत ओळा, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र जोशी, सदस्य डॉ. घनश्यामनाथ कच्छावा, डॉ. मीनाक्षी बोराणा, अम्बिका दत्त, दिनेश पंचाल, डॉ. सुखदेव राव, डॉ. शारदा कृष्ण, डॉ. कृष्ण कुमार आशु, डॉ. सुरेश सालवी, देवकरण जोशी व सचिव शरद केवलिया उपस्थित थे।

Monday, 27 March 2023

जानिए तहसील में प्रचलित शब्दावली


राजस्थान के राजस्व विभाग में, आजादी से भी पहले जो शब्दावली प्रचलित थी, आज भी वही प्रयोग में ली जा रही है. आम आदमी इन शब्दों का भावार्थ समझ ही नहीं पाता है. लिहाजा साधारण जन के लिए इन शब्दों का भावार्थ एक संकलन के रूप में प्रस्तुत है.


रकबा- क्षेत्रफल,
खसरा- भूमि क्रमांक,
पांचसाला- पिछले पांच' साल का खसरा
चांदा- सीमा चिन्ह,
मुनारा- सर्वेक्षण चिन्ह,
उपकर - अबवाब (मुख्य कर का उपकर)
मौसूली- वसूली प्राप्त करना,
नस्ती- खात्मा,
अलामत- छोटे-छोटे चिन्ह,
मसाहती ग्राम- जिसकी सीमा न हो
मीजान- कुल,
सकूनत- निवास
वाजिब-उल-अर्ज- निजी जमीन में सार्वजनिक उपयोग दर्शाने वाला रिकार्ड
गिरदावरी- खेतों व फसलों का निरीक्षण कर रिकार्ड करना,
तितम्मा मिलान- हल, बैल, कृषि यंत्र की गणना,
गोशवारा- महायोग,
रूढ़ अलामात- परंपरागत सीमा,
हलफनामा- शपथ पत्र,
बैनामा- विक्रय पत्र,
बयशुदा- खरीदी,
काबिज- कब्जा है,
दीगर- अन्य,
वारिसान- उत्तराधिकारी,
बख्शीश- उपहार या दान,
फौत - मौत,
रहन- गिरवी,
कैफियत- स्पष्टीकरण/विवरण
साकिन- निवासी
मौजा बेचिराग - बिना आबादी का गांव
फकुल रहन - गिरवी रखी भूमि को छुड़ा लेना
तबादला - भूमि के बदले भूमि लेना
बैय - जमीन बेच देना
मुसन्ना - असल रिकॉर्ड के स्थान पर बनाया जाने वाला रिकॉर्ड
फर्द - नक़ल
फर्द बदर - राजस्व रिकॉर्ड में होने वाली गलती को ठीक करना
मिन - भाग
साम्बिक - भूतपूर्व
पुख्ता औसत झाड़ - पैदावार के अनुसार पक्की फसल
फसल रबी - आसाढ़ की फसल
फसल खरीफ - सावनी की फसल
जिंसवार- फसलवार जिंस का जोड़
जलसाआम - जनसभा
बशनाखत - की पहचान पर
वल्दियत - पिता का नाम बतलाना
हमशीरा - बहन
हद - सीमा
हदूद - सीमाएं
सिहद्दा - तीन गांवों को एक स्थान पर मिलाने वाला सीमा पत्थर
बनाम - के नाम
मिन जानिब - की ओर से
बिला हिस्सा - जिसमें भाग न हो
नीलाम - खुली बोली द्वारा बेचना
दस्तक - मांग का अधिकार
तकाबी - फसल ऋण
कुर्की - किसी वस्तु को सरकारी अधिकार में लेना
बदस्तूर - हमेशा की तरह या पूर्ववत
हाल - वर्तमान
खाका - प्रारूप
कारगुजारी - प्रगति रिपोर्ट
झलार - नदी नाले से पानी देने का साधन
जमा - भूमिकर
तरमीम - बदल देना या सुधार देना
मालगुजारी - भूमिकर
जदीद - नया
खुर्द - छोटा
कलां - बड़ा
खुश हैसियत - अच्छी हालत
इकरारनामा - आपसी फैसला
गोरा देह भूमि – गांव के साथ लगी भूमि
दो फसली - वर्ष में दो फसलें उत्पन्न करने वाली भूमि
सकूनत - निवास स्थान
शजरा परचा - कपड़े पर बना खेतों का नक्शा
शजरा किस्तवार - ट्रेसिंग पेपर पर बना हुआ खेतों का नक्शा
मुसावी - मोटे कागज पर खेतों की सीमाएं दर्शाने वाला नक्शा
पैमाना पीतल - मसावी बनाने के पीतल का बना हुआ इंच
फरेरा - दूर झंडी देखने के लिए बांस पर बंधा तिकोना रंग-बिरंगा कपड़ा
झंडी - लाइन को सीधा रखने के लिए 12 फीट का बांस
क्रम - 66 इंच लम्बा जरीब का दसवां भाग
गट्ठा - 57.157 इंच, जरीब का दसवां भाग
अड्डा - जरीब की पड़ताल करने के लिए भूमि पर बनाया गया माप
गज - भूमि नापने का पैमाना
पैमाइश - भूमि का नापना
शजरा नसब - भूमिदारों की वंशावली
लाल किताब - गांव की भूमि से सम्बंधित पूर्ण जानकारी देने वाली पुस्तक
मिसल हकूकियत - बंदोबस्त के समय विस्तार साथ तैयार की गई जमाबंदी
जमाबंदी - भूमि की मिल्कियत और अधिकारों की पुस्तक
खसरा गिरदावरी -
हदबस्त - तहसीलवार गावों के नम्बर
मिनजुमला – मिला-जुला भाग
नवैयत या नौइयत- भू उपयोग
पिसर मुतबन्ना - दत्तक पुत्र
जोजे- पत्नी
बेवा - विधवा
वल्द - पुत्र
कौमियत - जाति
चाह आबनोशी- आबादी में पीने के उपयोग का कुआँ
चाह आब पाशी- सिंचाई के लिए कुआँ
साकिन -निवासी
साकिन देह - भू अभिलेख से संबंधित उसी गांव का निवासी
साकिन पाही - अन्य गांव का निवासी
मुतवल्ली - मुस्लिम धार्मिक संपत्ति का कर्ता
लगान - भूमिकर
हदबंदी - सीमांकन
बिलमुक्ता - इस खसरा नंबर के भूराजस्व मे अन्य नंबर का भूराजस्व जुड़ा हुआ है
बकसरत दरखतान- अनगिनत वृक्ष
मिन्हा - मिलाना
इन्तकाल - मलकियत की तबदीली का आदेश ।
जरीब - भूमि नापने की लम्बी लोहे की जंजीर ।
रकबा बरारी - नम्बर की चारों भुजाओं की लम्बाई व चौडाई क्षेत्रफल निकालना
रकबा- खेत का क्षेत्रफल
गोशा - खेत का हिस्सा
बिसवा- 20 बिसवांसी
बिघा -20 बिसवा
शर्क - पूर्व
गर्व - पश्चिम
जनूब- दक्षिण
शुमाल - उत्तर
खेवट- मलकियत का विवरण
खतौनी - कशतकार का विवरण
पत्ती तरफ ठोला - गॉंव में मालकों का समूह
गिरदावर - पटवारी के कार्य का निरीक्षण करने वाला RI
दफ्तर कानूनगो - तहसील कार्यालय का कानूनगो
नायब दफतर कानूनगो - सहायक दफतर कानूनगो
सदर कानूनगो - जिला कार्यालय का कानूनगो ।
वासिल वाकी नवीस -राजस्व विभाग की वसूली का लेखा रखने वाला कर्मचारी
मालिक- भूमि का भू-स्वामी
कास्तकार- भूमि को जोतने वाला एवं कास्त करने वाला ।
शामलात - सांझाी भूमि
शामलात देह- गॉंव की शामलात भूमि
शामलात पाना - पाने की शामलात भूमि
शामलात पत्ती - पत्ती की शामलात भूमि
मुजारा - भूमि को जोतने वाला जो मालिक को लगान देता हो ।
मौरूसी - बेदखल न होने वाला व लगान देने वाला मुजारा
गैर मौरूसी -बेदखल होने योग्य कास्तकार
नहरी -नहर के पानी से सिंचित भूमि ।
चाही नहरी - नहर व कुएं द्वारा सिंचित भूमि
चाही -क्एं द्वारा सिंचित भूमि
चाही मुस्तार - खरीदे हुए पानी द्वारा सिंचित भूमि ।
बरानी - वर्षा पर निर्भर भूमि ।
आबी - नहर व कुएं के अलावा अन्य साधनों से सिंचित भूमि ।
बंजर जदीद - चार फसलों तक खाली भूमि ।
बंजर कदीम - आठ फसलों तक खाली पडी भूमि ।
गैर मुमकिन - कास्त के अयोग्य भूमि ।
नौतौड -कास्त अयोग्य भूमि को कास्त योग्य बनाना ।
क्लर -शोरा या खार युक्त भूमि ।
चकौता -नकद लगान ।
सालाना - वार्षिक
बटाई - पैदावार का भाग ।
तिहाई - पैदावार का 1/3 भाग ।
निसफ - पैदावार का 1/2 भाग ।
पंज दुवंजी - पैदावार का 2/5 भाग ।
चहाराम -पैदावार का 1/4 भाग ।
तीन चहाराम - पैदावार का 3/4 भाग ।
मुन्द्रजा - पूर्वलिखित (उपरोक्त)
मजकूर- चालू
राहिन - गिरवी देने वाला ।
मुर्तहिन - गिरवी लेने वाला ।
बाया -भूमि बेचने वाला ।
मुस्तरी - भूमि खरीदने वाला ।
वाहिब -उपहार देने वाला ।
मौहबईला - उपहार लेने वाला ।
देहिन्दा - देने वाला ।
गेरिन्दा - लेने वाला ।
लगान - मुजारे से मालिक को मिलने वाली राशी या जिंस
पैमाना हकीयत - शामलात भूमि में मालिक का अधिकारी ।
सरवर्क - आरम्भिक पृष्ठ ।
नक्शा कमीबेशी -पिछली जमाबन्दी के मुकाबले में क्षेत्रफल की कमी या वृद्वि
हिब्बा - उपहार ।
बैयहकशुफा - भूमि खरीदने का न्यायालय द्वारा अधिकार ।
रहन बाकब्जा - कब्जे सहित गिरवी ।
आड रहन - बिला कब्जा गिरवी ।
रहन दर रहन - मुर्तहिन द्वारा कम राशि में गिरवी रखना ।
तबादला - भूमि के बदले भूमि लेना ।
पडत सरकार - राजस्व रिकार्ड रूम में रखी जाने वाली प्रति ।
पडत पटवार - रिकार्ड की पटवारी के पास रखी जाने वाली प्रति
फर्द बदर - राजस्व रिकार्ड में हुई गलती को ठीक करना ।
पुख्ता औसत झाड - पैदावार के अनुसार पक्की फसल
साबिक - पूर्व का या पुराना या पहले का
हाल -वर्तमान, मौजूदा ।
बिला हिस्सा -जिसमें भाग न हो ।
मिन जानिब -की ओर से ।
बशिनाखत - की पहचान पर ।
पिसर या वल्द →पुत्र
दुखतर - सुपुत्री
वालिद - पिता
वालदा -माता
महकूकी - काटकर दोबारा लिखना
मसकूकी - बिना काटे पहले लेख पर दोबारा लिखना
बुरज - सरवेरी सर्वेक्षण का पत्थर
चक तशखीश - बन्दोबस्त के दौरान भूमि की पैदावार के अनुसार तहसील की भूमि का निरधारण
दुफसली →वर्ष में दो फसलें उत्पन्न करने वाली भूमि
मेड़ →खेत की सीमा
गोरा देह भूमि →गॉंव के साथ लगती भूमि
हकदार→ मालिक भूमि
महाल →ग्राम
जदीद →नया
इन्तकाल →मलकियत की तबदीली का आदेश ।
जरीब →भूमि नापने की लम्बी लोहे की जंजीर ।
रकबा बरारी →नम्बर की चारों भुजाओं की लम्बाई व चौडाई क्षेत्रफल निकालना
रकबा→ खेत का क्षेत्रफल
गोशा →खेत का हिस्सा
बिसवा→ 20 बिसवांसी
बिघा →20 बिसवा
शर्क →पूर्व
गर्व→ पश्चिम
जनूब→ दक्षिण
शुमाल→ उत्तर
खेवट→ मलकियत का विवरण
खतौनी→ कशतकार का विवरण
पत्ती तरफ ठोला→ गॉंव में मालकों का समूह
गिरदावर→ पटवारी के कार्य का निरीक्षण करने वाला RI
दफ्तर कानूनगो →तहसील कार्यालय का कानूनगो
नायब दफतर कानूनगो→ सहायक दफतर कानूनगो
सदर कानूनगो→ जिला कार्यालय का कानूनगो ।
वासिल वाकी नवीस→
राजस्व विभाग की वसूली का लेखा रखने वाला कर्मचारी
मालिक→ भूमि का भू-स्वामी
कास्तकार→ भूमि को जोतने वाला एवं कास्त करने वाला ।
शामलात →सांझाी भूमि
शामलात देह→ गॉंव की शामलात भूमि
शामलात पाना →पाने की शामलात भूमि
शामलात पत्ती →पत्ती की शामलात भूमि
मुजारा→ भूमि को जोतने वाला जो मालिक को लगान देता हो ।
मौरूसी →बेदखल न होने वाला व लगान देने वाला मुजारा
गैर मौरूसी →बेदखल होने योग्य कास्तकार
नहरी →नहर के पानी से सिंचित भूमि ।
चाही नहरी→ नहर व कुएं द्वारा सिंचित भूमि
चाही →क्एं द्वारा सिंचित भूमि
चाही मुस्तार →खरीदे हुए पानी द्वारा सिंचित भूमि ।
बरानी→ वर्षा पर निर्भर भूमि ।
आबी →नहर व कुएं के अलावा अन्य साधनों से सिंचित भूमि ।
बंजर जदीद→ चार फसलों तक खाली भूमि ।
बंजर कदीम →आठ फसलों तक खाली पडी भूमि ।
गैर मुमकिन →कास्त के अयोग्य भूमि ।
नौतौड→ कास्त अयोग्य भूमि को कास्त योग्य बनाना ।
क्लर →शोरा या खार युक्त भूमि ।
चकौता →नकद लगान ।
सालाना →वार्षिक
बटाई →पैदावार का भाग ।
तिहाई →पैदावार का 1/3 भाग ।
निसफी→ पैदावार का 1/2 भाग ।
पंज दुवंजी→ पैदावार का 2/5 भाग ।
चहाराम →पैदावार का 1/4 भाग ।
तीन चहाराम→ पैदावार का 3/4 भाग ।
मुन्द्रजा→ पूर्वलिखित (उपरोक्त)
मजकूर→ चालू
राहिन →गिरवी देने वाला ।
मुर्तहिन →गिरवी लेने वाला ।
बाया →भूमि बेचने वाला ।
मुस्तरी →भूमि खरीदने वाला ।
वाहिब →उपहार देने वाला ।
मौहबईला →उपहार लेने वाला ।
देहिन्दा→ देने वाला ।
गेरिन्दा →लेने वाला ।
लगान→ मुजारे से मालिक को मिलने वाली राशी या जिंस
पैमाना हकीयत →शामलात भूमि में मालिक का अधिकारी ।
सरवर्क →आरम्भिक पृष्ठ ।
नक्शा कमीबेशी →पिछली जमाबन्दी के मुकाबले में क्षेत्रफल की कमी या वृद्वि
हिब्बा - उपहार ।
बैयहकशुफा - भूमि खरीदने का न्यायालय द्वारा अधिकार ।
रहन बाकब्जा - कब्जे सहित गिरवी ।
आड रहन - बिला कब्जा गिरवी ।
रहन दर रहन - मुर्तहिन द्वारा कम राशि में गिरवी रखना ।
तबादला - भूमि के बदले भूमि लेना ।
पडत सरकार -राजस्व रिकार्ड रूम में रखी जाने वाली प्रति ।
पडत पटवार- रिकार्ड की पटवारी के पास रखी जाने वाली प्रति
फर्द बदर - राजस्व रिकार्ड में हुई गलती को ठीक करना ।
पुख्ता औसत झाड- पैदावार के अनुसार पक्की फसल
साबिक- पूर्व का या पुराना या पहले का
हाल - वर्तमान, मौजूदा ।
बिला हिस्सा -जिसमें भाग न हो ।
मिन जानिब - की ओर से ।
बशिनाखत - की पहचान पर ।
पिसर या वल्द -पुत्र
दुखतर - सुपुत्री
वालिद- पिता
वालदा - माता
महकूकी -काटकर दोबारा लिखना
मसकूकी -बिना काटे पहले लेख पर दोबारा लिखना
बुरजी - सरवेरी सर्वेक्षण का पत्थर
चक तशखीश -बन्दोबस्त के दौरान भूमि की पैदावार के अनुसार तहसील की भूमि का निरधारण
दुफसली - वर्ष में दो फसलें उत्पन्न करने वाली भूमि
मेड़ -खेत की सीमा
गोरा देह भूमि -गॉंव के साथ लगती भूमि
हकदार - मालिक भूमि
महाल - ग्राम
जदीद - नया

Saturday, 25 March 2023

मैं सूरतगढ़ बोल रहा हूं !

( एक शहर का दर्द भरा आह्वान )


मैं सूरतगढ़ बोल रहा हूं ! एक लंबे अरसे मैं तुम सबके लड़ाई-झगड़े, शिकवे-शिकायत और आचरण चुपचाप देखता सुनता चला आ रहा हूं लेकिन मेरे बच्चों, आज मुझे भी तुमसे कुछ कहना है. सुनो-


समर शेष है नहीं पाप के भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध.

तुलसी रामायण में राम सेतु निर्माण का एक प्रसंग है. जब समूची वानर सेना समुद्र पर सेतु बांधने में व्यस्त थी तब भगवान राम ने देखा कि एक नन्ही गिलहरी भी भागदौड़ कर रही है. वह गिलहरी समुद्र के पानी में खुद को भिगोती और किनारे पड़ी रेत में लोटपोट होकर पुन: समुद्र की ओर दौड़ पड़ती. रेत के कणों को समुद्र में डालने का उसका क्रम अनवरत जारी था. भगवान राम ने उसे हथेली में उठाया और बड़े प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेर कर बोले, " ओ नन्हीं प्यारी गिलहरी ! इतने बड़े सेतु के निर्माण में, जहां वानर सेना बड़े भारी भरकम पत्थरों को ढो रही है वहां तुम्हारे इन रेत के कणों से क्या होगा ? तुम व्यर्थ खुद को कष्ट क्यों दे रही हो ?"

गिलहरी ने उत्तर दिया, "प्रभु, मुझे मेरी लघुता और क्षुद्र प्रयासों का भान है लेकिन जब राम सेतु का इतिहास लिखा जाएगा तो कोई यह नहीं कह पाएगा कि उस वक्त गिलहरी क्या कर रही थी !"

मेरे बच्चों, मैं जिला बनूंगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक ऐसे वक्त में, जब शहर के बीचोबीच मुट्ठी भर जिंदा लोग आमरण अनशन के साथ धरना प्रदर्शन पर डटे हैं और एक जायज मांग के लिए सरकार से भिड़ने को तैयार हैं, उस समय मेरे इलाके के हर जाये जलमे को रामसेतु की गिलहरी से सबक लेना चाहिए.
मेरे मान सम्मान के लिए लड़ने वाले सभी बच्चों से मैं कहना चाहता हूं, लोकतंत्र में अपनी आवाज उठाना सीखो. मीन मेख निकालना बहुत आसान है लेकिन मोर्चे पर डटे रहना बड़ा कठिन है. एक बेटी पूजा छाबड़ा आमरण अनशन पर बैठी तो मुझे सुकून मिला. कोई तो है जिसे अपने पिता की प्रतिष्ठा की फिक्र है, कोई तो है जो मेरा जयघोष चाहता है. इसी क्रम में जब उमेश मुद्गल ने कंधे से कंधा मिलाते हुए भूख हड़ताल शुरू की तो लगने लगा कि अब मेरे बच्चे सूरतगढ़ की पताका को नीचे नहीं गिरने देंगे. उनकी हौसला अफजाई कर रहे कुछ संघर्षशील नौजवानों के जयघोष सुनकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. मैं जानता हूं, मदांध सत्ता का हुक्म बजाते हुए पुलिस और प्रशासन इन बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करेगा, एक के बाद एक अनशनकारी को उठाकर ले जाएगा लेकिन फिर भी संघर्ष जिंदा रहेगा क्योंकि मैं अपने बच्चों से अभी निराश नहीं हुआ हूं.


दुकानों और घरों में दुबके मेरे बच्चे-बच्चियों, यह वक्त हाथ पर हाथ धरकर बैठने का नहीं है, सड़क पर उतर कर अपना हक मांगने का है. तुम्हारे बाप के साथ कड़ूम्बे की पंचायत ने अपमानजक दुभांत की है, यदि आज तुम नहीं चेते तो सरकार का यह भेदभाव तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा. संघर्ष की राह पर तुम भी सोचना शुरू करो. बाजार पूरे नहीं तो आधे दिन के लिए भी बंद किए जा सकते हैं, प्रशासन को ठप किया जा सकता है, नगरपालिका, पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों में पेन डाउन स्ट्राइक हो सकती है, न्यायालयों का बहिष्कार किया जा सकता है, बिजली बोर्ड के बिल भरने से मना किए जा सकते हैं, सरकार के नुमाइंदों को घेरा जा सकता है आदि आदि.....जाने कितने ऐसे लोकतांत्रिक तरीके हैं जिनसे सरकारों को झुकाया जा सकता है. अपने बाप पर यकीन नहीं तो किसान आंदोलन का इतिहास एक बार फिर देख लो.

मुझे पता है, मेरे कुछ बेटे-बेटियां राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए अपना भविष्य संवारने की सोचते हैं. सोचना भी चाहिए, लेकिन जब सवाल बाप की प्रतिष्ठा से जुड़ा हो तब बच्चों का खून खौलना चाहिए. यदि तुम अपने पिता और परिवार की गरिमा के लिए जमाने से लड़ नहीं सकते, भिड़ नहीं सकते तो यकीन मानो बड़ी जल्दी तुम नष्ट हो जाओगे. तुम्हारी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं धरी रह जाएंगी. इतिहास तुम्हें उठा कर उस 'अकुरड़ी' पर फेंक देगा जिस पर कुकुरमुत्ते भी उगने से शर्माते हैं. याद रखो, संघर्षशील लोग ही इतिहास में दर्ज होते हैं, दुनिया में रेंग कर चलने वालों के फन हमेशा कुचल दिये जाते हैं. इसलिए अभी भी वक्त है मेरे बच्चों संभल जाओ, राजनीति करो लेकिन अपने परिवार के लोगों से गद्दारी मत करो. दलगत राजनीति से ऊपर उठो, अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए हर सत्ता से भिड़ने का माद्दा रखो, फिर भले ही वह तुम्हारी अपनी पार्टी की सरकार क्यों ना हो !

मैं यह भी जानता हूं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था ने मेरे कुछ बच्चों को भ्रष्ट और निकृष्ट बना दिया है. उन्हें सिर्फ स्वार्थ सिद्धि के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता. वे शायद भूल चुके हैं कि उनका अस्तित्व मुझसे ही है, मेरा मान सम्मान बचेगा तभी उनकी दुकानदारी कायम रह पाएगी. मैं उनकी सारी गलतियां माफ कर सकता हूं बशर्ते वे आज घड़ी परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए जूझ रहे बच्चों के साथ खड़े हों, उनके साथ लड़ने मरने को तैयार हों. यदि इनका जमीर अभी नहीं जागा तो उन हरामियों से मुझे कुछ नहीं कहना !

संघर्ष की राह पर चलने वाले सिरफिरों से कहना चाहता हूं, " मेरे प्यारे बच्चों, क्रांति की राह पर जोश अक्सर होश खो देता है, तुम्हारा दिल आग पर और दिमाग बर्फ पर होना चाहिए. अनुशासित और मर्यादित संघर्ष ही सफल हो पाते हैं. अपने मन को बार-बार मजबूती दो, तुम्हें सफल होना है."

जब-जब तुम्हारे कदम लड़खड़ाने लगेंगे, आस्था और विश्वास डगमगाने लगेंगे, मैं तुम्हें जगाने के लिए फिर आऊंगा. इस बात के साथ कि-

मैं तुमको विश्वास दूं
तुम मुझको विश्वास दो
शंकाओं के सागर हम लंघ जाएंगे मरुधरा को मिलकर स्वर्ग बनाएंगे.

तुम्हारा पिता
सूरतगढ़

ग्रामीण क्षेत्र प्रतिभाओं की खान है, बस उचित अवसर और सही मंच मिले

अकादमी पुरस्कार घोषित होने पर इक्कीस कॉलेज की छात्रा निर्मला का गांव में हुआ सम्मान

लूणकरणसर, 25 मार्च। 'ग्रामीण क्षेत्र प्रतिभाओं की खान है, बस उचित अवसर और सही मंच मिलना जरूरी है। यह बात मलकीसर बड़ा निवासी सीताराम सारस्वत ने कही। अवसर था गांव की बेटी निर्मला शर्मा के सम्मान समारोह का, जिसकी वे अध्यक्षता कर रहे थे। 
ज्ञात रहे निर्मला शर्मा को राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर ने अपना राज्य स्तरीय चंद्रदेव शर्मा साहित्य पुरस्कार देने की घोषणा की है। उसकी इस उपलब्धि पर शनिवार को ग्राम मलकीसर बड़ा के सामुदायिक भवन में ग्रामीणों द्वारा सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस दौरान साफा पहनाकर तथा सम्मान प्रतीक देकर शर्मा का अभिनन्दन किया गया। ग्रामीण विकास पब्लिक शिक्षण संस्थान के व्यवस्थापक मामराज कूकणा ने कहा कि यह पुरस्कार सिर्फ गांव की ही उपलब्धि नहीं बल्कि सम्पूर्ण जिले के लिए गौरव की बात है। गौरतलब है कि निर्मला ने अपनी विद्यालय शिक्षा ग्रामीण विकास शिक्षण संस्थान से ग्रहण की है।


इक्कीस संस्थान के चेयरमैन आशा शर्मा ने कहा कि हमें गर्व है हमारे कॉलेज की बेटी ने कलम उठाई है।
साहित्यकार राजूराम बिजारणियां ने कहा कि यह क्षेत्र साहित्य की दृष्टि से उर्वर है। साहित्य महोपाध्याय नानूराम संस्कर्ता की साहित्यिक विरासत में निर्मला का नाम शामिल होना गौरवान्वित करता है। इक्कीस कॉलेज के डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख' ने बेटियों को निरंतर तालीम दिलवाने पर जोर दिया ताकि पठन-लेखन का स्तर और बेहतर हो। सम्मान समारोह में उपस्थित पूर्व सरपंच हीराराम गोदारा, ताराचंद सारण, पंचायत समिति, लूणकरणसर उप प्रधान कैलाश शर्मा, द्वारका प्रसाद सारस्वत, रामेश्वरलाल सारस्वत, जमनाराम, ओमप्रकाश शर्मा, लीलाधार सारस्वत, किशन शास्त्री, भगवानाराम सारस्वत, दिनेशकुमार, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संतोष एवं राधा सिद्ध ने इस पुरस्कार को गांव की नन्ही प्रतिभाओं के लिए प्रेरणास्रोत बताया। गौरतलब है कि निर्मला को यह पुरस्कार कहानी विधा के लिए उनकी कहानी "कोई चारा नहीं" को दिया जाएगा।

Friday, 24 March 2023

अकादमी साहित्य पुरस्कार इक्कीस कॉलेज की निर्मला शर्मा को


लूणकरणसर उपखण्ड में पहली बार मिला है किसी को यह पुरस्कार

लूणकरणसर, 24 मार्च। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर  का राज्य स्तरीय चंद्रदेव शर्मा साहित्य पुरस्कार इस बार इक्कीस कॉलेज, गोपल्याण की छात्रा निर्मला शर्मा को दिए जाने की घोषणा की गई है। साहित्य अकादमी अध्यक्ष डॉ.दुलाराम सारण और डॉ.सचिव बसंतसिंह सोलंकी ने शुक्रवार को वर्ष 2022-23 के विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों की घोषणा उदयपुर में अकादमी कार्यालय से की।

निर्मला को यह पुरस्कार कहानी विधा के लिए मिलेगा। पिछले दिनों हुए लम्पी रोग को केंद्र में रखकर लिखी गई उनकी कहानी "कोई चारा नहीं" के लिए यह पुरस्कार घोषित हुआ है। यह पुरस्कार उनको आगामी दिनों में आयोजित अकादमी के भव्य समारोह में दिया जाएगा। इसके अलावा एकांकी विधा के लिए तनिष्का पड़िहार, तारानगर, कविता विधा के लिए हिमांशु भारद्वाज, चूरू, निबन्ध विधा के लिए मैना कंवर सुजानगढ़ को यह पुरस्कार दिया जाएगा।

गौरतलब है कि निर्मला शर्मा स्नातक द्वितीय वर्ष की विद्यार्थी है। मलकीसर बड़ा गांव की निर्मला के पिता ओमप्रकाश खेती करते है वहीं मां कृष्णा देवी गृहणी है। साहित्य से सरोकार रखने वाली निर्मला कॉलेज के साहित्यिक वातावरण को अपने लेखन का आधार मानती है।


● इनको देती है श्रेय-

निर्मला का कहना है कि "इक्कीस कॉलेज का वातावरण साहित्यिक है। यहाँ की लाइब्रेरी समृद्ध है। कॉलेज के  डॉ.हरिमोहन सारस्वत, राजूराम बिजारणियां और आशा शर्मा का सानिध्य लेखन के प्रति हमेशा प्रेरित करता है।"

● खुशी का इज़हार-

निर्मला शर्मा को चन्द्रदेव शर्मा पुरस्कार मिलने पर साहित्यकार राजूराम बिजारणियां, हरिमोहन सारस्वत 'रूंख', आशा शर्मा, कैलाश कुमार, हरिसिंह, संतोष, भीमसेन, ओंकारनाथ योगी, रामजीलाल घोड़ेला, जगदीशनाथ भादू, दुर्गाराम स्वामी, कान्हा शर्मा, नन्दकिशोर सारस्वत सहित विभिन्न जनों ने बधाई दी।

Monday, 27 February 2023

'आधुनिक बाल साहित्य:दशा एवं दिशा' पर जोधपुर में हुआ विमर्श


आयोजन में बिजारणियां और लढ़ा ने की शिरकत

तकनीकी युग में बाल साहित्य ही बचा सकता है संस्कारों की थाती

लूणकरणसर, 27 फरवरी राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर एवं चनणी फाउण्डेशन, जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में जोधपुर आयोजित साहित्यिक आयोजन में लूणकरणसर उपखण्ड के साहित्यकार राजूराम बिजारणियां और मदनगोपाल लढ़ा ने शिरकत की। जोधपुर के होटल चंद्रा इन में आयोजित इस कार्यक्रम में राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल और अकादमी अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। लूणकरणसर के कवि, चित्रकार राजूराम बिजारणियां ने "वर्तमान में बाल साहित्य लेखन और चुनौतियां" विषय पर पत्रवाचन करते हुए कहा कि तकनीकी युग में बाल साहित्य ही संस्कारों की थाती को बचा सकता है। महाजन के डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने प्रथम सत्र में अध्यक्षता का दायित्व निभाते हुए कहा कि घर में किताब का कोना होना चाहिए ताकि पठन की संस्कृति बची रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में सरदार व.भा. पुलिस वि.वि., जोधपुर, कुलसचिव, श्वेता चौहान (आई.ए.एस.) का सानिध्य रहा। कार्यक्रम संयोजक संतोष चौधरी ने फाउंडेशन की ओर से आभार प्रकट किया।

फूल वाली पार्टी ने किसे बनाया 'फूल' !


(स्वागत की फूल मालाओं के बहाने)


अनजाने होठों पे
क्यों पहचाने गीत हैं
कल तक जो बेगाने थे
जन्मों के मीत हैं
क्या होगा कौन से पल में
कोई जाने ना ....

लगभग 55 वर्ष पूर्व लिखा गया इंदीवर का यह गीत सूरतगढ़ की वर्तमान राजनीतिक पर सटीक बैठता है। पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा को पानी पी-पीकर कोसने वाले भाजपाई आज उनके स्वागत के लिए बेताब हुए जा रहे हैं। वैसे उन्हें खुशियां मनाने का हक भी है क्योंकि कालवा के बहाने उन्होंने कांग्रेस को पटखनी दी है, गंगाजल मील को आईना दिखाया है। लेकिन इस घटनाक्रम से जनता के समक्ष भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है। सच्चाई यह है कि अनुशासन, स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम का दंभ भरने वाली भाजपा राजनीतिक स्वार्थों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

बहुत दिन नहीं हुए जब यही ओम कालवा विधायक रामप्रताप कासनिया को पालिका की बैठकों में बोलने तक नहीं दिया करते थे, वरिष्ठ होने के बावजूद उन्हें साइड में एक कुर्सी पर बिठाया करते थे और बहसबाजी में तू-तड़ाक पर उतर आते थे। कासनिया तो अपने वक्तव्य में हमेशा कालवा पर दोषारोपण करते थे कि उसने पूरे शहर की ऐसी-तैसी कर दी है। लेकिन वक्त ऐसा बदला कि आज दोनों गलबहियां डालकर एक दूसरे की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। हकीकत दोनों जानते हैं कि उनके बीच उमड़ता प्रेम सिर्फ जरूरत का सौदा है, और कुछ नहीं। कासनिया जैसे चतुर राजनीतिज्ञ ओम कालवा पर कितना भरोसा करेंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना वे जरूर जानते होंगे कि जो व्यक्ति अपार मान सम्मान देने वाली पार्टी और स्टैंड करने वाले अपने राजनीतिक आकाओं का ही नहीं हो सका वह उनका कैसे हो सकता है !

दरअसल, कालवा हो या कासनिया, राजनीति की बिसात पर सब मोहरे हैं। कौन कब किसको मात देकर कहां जा मिले, कुछ नहीं कहा जा सकता। विश्वास और भरोसे जैसे शब्द सामाजिक जीवन में होते हैं राजनीति तो सर्वप्रथम इन शब्दों का गला घोंटती है। भरोसा टूटने के बाद साधारण आदमी तो आंख मिलाने की हिम्मत नहीं कर सकता जबकि राजनीति तो आंखों की शर्म और लिहाज पहले ही ताक पर रख चुकी होती है।

इस घटनाक्रम का लब्बोलुआब भी यही है कि सूरतगढ़ का भविष्य ताक पर रख दिया गया है। राज्य की कांग्रेस सरकार कैसे बर्दाश्त करेगी कि उनका एक प्यादा दगाबाजी करते हुए राजनीतिक प्रतिद्वंदी से जा मिले। गंगाजल मील, जिन्होंने कालवा को पाल-पोस कर खड़ा किया, चोट खा कर चुप थोड़े ही बैठने वाले हैं ! वे भी अपने दांव चलेंगे। पालिका के ईओ से तो कालवा की पहले ही ठनी हुई है, तिस पर ईओ ठहरा कांग्रेस सरकार का मुलाजिम ! सीवरेज घोटाले का जो मुकदमा अब तक सीआईडी सीबी में ठंडे बस्ते में था अब उस पर कार्यवाही होना भी तय है। 'आज तेरी, तो कल मेरी !' यही राजनीति है।

ऐसी परिस्थितियों में सवाल उठता है कि नगरपालिका में आए डेडलॉक का खामियाजा कौन भुगतेगा ! फुल वाली पार्टी ने आखिर किसे फूल बनाया ? कांग्रेस को, गंगाजल मील को, ओमप्रकाश कालवा को या फिर खुद अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को ! इतना तय है कि दोनों सवालों के बीच सबसे बड़ा फूल जनता ही बनी है। एक पावरलेस चेयरमैन को पाकर भाजपा खुश भले ही हो ले लेकिन शहर की जनता को देने के लिए उनके पास सिवाय थोथे वायदों के कुछ नहीं है।

डॉ. हरिमोहन सारस्वत

Sunday, 26 February 2023

मीलों के आत्ममंथन का वक्त !



( कालवा दलबदल के बहाने)

जिस आदमी को आप सहारा देकर खड़ा करते हैं, उसे चलना सिखाते हैं, भागदौड़ के बीच प्रतिद्वंद्वियों को पटकना सिखाते हैं, एक दिन वही आदमी आप द्वारा सिखाए गए दांव पेच इस्तेमाल करते हुए आपको ही पटक देता है तो सोचिए आप कैसा महसूस करेंगे ? यदि बात राजनीति की हो तो यह दर्द और गहरा हो जाता है।

सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी की धूरी कहे जाने वाले मील परिवार के साथ कमोबेश ऐसा ही कुछ हुआ है। पूर्व विधायक गंगाजल मील द्वारा आशीर्वाद प्राप्त नगर पालिका चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा ने उन्हें धोबी पछाड़ दांव लगाकर ऐसी ही पटखनी दी है। 'गाय तो गई, सागै गल़ावंडो ई लेयगी' की तर्ज पर कालवा अपने चहते पार्षदों को भी भाजपा में ले गए। नगर पालिका मंडल में कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत एक झटके से अल्पमत में बदल गया, और विडंबना देखिए, अविश्वास प्रस्ताव की गेंद कांग्रेस के पाले में आ गई है। परिस्थितियां भी ऐसी बनी हैं कि कांग्रेस का कुछ भी बंटता दिखाई नहीं देता। मीलों के प्रभाव से यदि राज्य सरकार कुछ हस्तक्षेप करेगी तो कालवा को न्यायालय से राहत मिलना तय है।


कालवा का भाजपा में पदार्पण कोई बड़ी बात नहीं है, राजनीतिक गलियारों में ऐसा होता आया है। लेकिन कालवा ने मील परिवार पर जो गंभीर आरोप लगाए हैं वे उन्हें बड़ा राजनीतिक नुकसान दे सकते हैं। कालवा के अनुसार पूर्व विधायक गंगाजल मील परिवारवाद की राजनीति कर रहे थे और उन पर गलत कामों के लिए दबाव डाल रहे थे, ऐसे में कांग्रेस को अलविदा कहने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। जनमानस में सवाल उठना स्वाभाविक है कि मीलों द्वारा आखिर कौनसे गैर कानूनी काम करवाने का दबाव डाला जा रहा था ?

गौरतलब है कि गंगाजल मील और हनुमान मील के रूप में मील लगातार दो चुनाव हार चुके हैं, तीसरा चुनाव सिर पर है। ऐसी स्थिति में अपना राजनीतिक कद बनाए रखने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि मील अपना आत्म मंथन करें। यदि 2023 के चुनाव में वह जीत का स्वाद चखना चाहते हैं तो उन्हें अपनी कमजोरियों और गलतियों से सबक सीखना होगा अन्यथा क्षेत्र की राजनीति उन्हें खारिज कर देगी।

ताजा मामले का ही उदाहरण ले लें। पिछले दो वर्ष से मीडिया लगातार ओमप्रकाश कालवा की भ्रष्ट कार्यशैली को उजागर कर रहा था। खबरनवीसों ने बहुत पहले ही चेता दिया था कि यह आदमी आप की जड़ों में मट्ठा डालने का काम कर रहा है लेकिन उसके बावजूद मील कानों में तेल डाले बैठे रहे, गंगाजल मील खुद कालवा को कांग्रेस का समर्पित कार्यकर्ता और सच्चा सिपाही बताते रहे मगर मौका मिलते ही कालवा अपना रंग दिखा गए। दरबारी सलाहकारों से घिरा मील परिवार भांप ही नहीं पाया कि उनके चहते ही उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं। नगरपालिका की लचर कार्यशैली को वे कभी नियंत्रित ही नहीं कर पाए फिर मामला चाहे अवैध कब्जों का हो या कर्मचारियों के तबादले का, व्यापारियों से विवाद का हो या मीडिया कर्मियों से उलझने का। कालवा अपनी मनमानी करता रहा, मीलों के दरबारी सलाहकारों को मैनेज कर उन्हें गुमराह करता रहा। हकीकत यह है कि चिलम चाटूकारों के जमावड़े से मील जमीनी हकीकत देख ही नहीं पाए। सच्चाई यही है कि दूसरों का चश्मा हमेशा भ्रम पैदा करता है।

पानी जब सिर से गुजरता दिखाई दिया तब हेतराम मील कुछ प्रयास करते दिखे, लेकिन कालवा की घाघ राजनीति के चलते वे भी नाकाम रहे। दरबारियों की कानाफूसी के बीच हनुमान मील चाह कर भी नगर पालिका में चल रही अव्यवस्था का मुखरता से विरोध नहीं कर पाए, जिसका समग्र परिणाम हुआ कि शहरी राजनीति में मील परिवार की किरकिरी हुई है। जाते-जाते कालवा ने गंभीर आरोप लगाकर फजीहत का पूरा ठीकरा मीलों के सिर फोड़ दिया है।

देखना यह है कि गंगाजल मील और उनका परिवार इस दगाबाजी से हुए राजनीतिक नुकसान की भरपाई कैसे करता है। इसके लिए उन्हें गंभीरता से आत्म चिंतन करना होगा। अभी भी उनके हाथ में कुछ पत्ते ऐसे हैं जिन्हें यदि सोच समझकर फेंका जाए तो बाजी पलट सकती है। वक्त हार की कगार पर खड़े सभी सूरमाओं को एक मौका अवश्य देता है।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Friday, 24 February 2023

कांग्रेस के सिपाही कालवा के पोत चौड़े, दलबदल कर वार्ड 26 की जनता से की सबसे बड़ी गद्दारी

खुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही और कर्मठ कार्यकर्ता बताने वाले ओमप्रकाश कालवा के पोत चौड़े आ गए हैं। पालिका में चल रहे संक्रमण काल के दौरान उन्होंने दल बदल कर साबित कर दिया है कि वह स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। पूर्व विधायक गंगाजल मील को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे कालवा का यह कदम स्थानीय राजनीति में क्या गुल खिलाता है यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इस निर्णय से नगरपालिका मंडल में उथल-पुथल और पार्षदों की खरीद-फरोख्त बढ़ना तय है।


भाजपा का दामन थामने वाले कालवा ने कांग्रेस के साथ गद्दारी की है या नहीं, यह तो वही जानें, लेकिन इतना तय है की वार्ड 26 की जनता के साथ उन्होंने गद्दारी की है। कालवा द्वारा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने से वार्ड की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है। पार्षद से चेयरमैन तक का सफर कालवा ने इसी वार्ड के लोगों के वोटों के बूते तय किया था।

गौरतलब है कि यह वार्ड नगर पालिका चुनाव में सामान्य सीट का वार्ड था। लाइनपार सूर्य नगरी से आकर इस मोहल्ले में नये बसे कालवा ने लोगों के समक्ष गुहार लगाई कि यदि वार्ड के लोग उसे मौका दें तो जीतने के बाद उसे चेयरमैन बनाया जा सकता है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वह वार्ड के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। चापलूसी भरी बातें और पूर्व में शिक्षक होने के चलते वार्डवासियों ने न सिर्फ उन पर भरोसा किया बल्कि अनुसूचित जाति होने के बावजूद सामान्य वार्ड से ओमप्रकाश कालवा को कांग्रेस की टिकट पर भारी मतों से जिताया था।

आज वार्ड के लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हुए कालवा ने वार्ड की जनता के साथ गद्दारी की है । जिस जनता ने कांग्रेस के नाम पर कालवा को वोट दिये और चेयरमैन बनाया, उनसे बिना किसी चर्चा के दल बदल कर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे अपने वार्डवासियों के ही नहीं हुए तो शहर के हितैषी कैसे हो सकते हैं ! भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कालवा ने अपना असली रंग दिखाते हुए गंगाजल मील की पीठ में छुरा भोंकने का काम किया है। वही गंगाजल मील, जो यह कहते नहीं अघाते थे कि हमने कांग्रेस के एक सच्चे सिपाही को पालिकाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया है, एक ईमानदार शिक्षक को शहर का मुखिया बनाया है, खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

बहरहाल, राजनीतिक स्वार्थों के चलते इस कदर जनभावनाओं की अनदेखी करने की सजा कालवा को मिलना तय है। भाजपा जैसी पार्टी में जहां पहले ही एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है, में जाकर अपना मुकाम बनाना या फिर सांसद और विधायकी के सपने देखना मुसद्दीलाल की कल्पनाएं मात्र हैं।

Monday, 20 February 2023

लंबी लकीर खींची है मधु आचार्य ने !


(साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के कार्यकाल की समीक्षा)


साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल का कार्यकाल मार्च 2023 को समाप्त हो रहा है। इस पंचवर्षीय कार्यकाल की अवधि में दो वर्ष तो कोरोना की भेंट चढ़ गए लेकिन उसके बावजूद मंडल के समन्वयक मधु आचार्य साहित्य संपादन, लेखन और प्रोत्साहन की गतिविधियों को लेकर एक लंबी लकीर खींचने में कामयाब रहे हैं।

चूंकि मधु आचार्य पत्रकारिता के क्षेत्र से हैं और उनके पास हिंदी के शीर्ष समाचारपत्र दैनिक भास्कर के संपादन का लम्बा अनुभव है, लिहाजा उनके कमान संभालने से यह तो लगभग तय ही था कि साहित्य अकादमी में राजस्थानी परामर्श मंडल को तुलनात्मक दृष्टि से बेहतरीन नेतृत्व मिलेगा, लेकिन कोरोना संकट के चलते किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि उनके कार्यकाल के दौरान सृजन, लेखन, अनुवाद और संपादन सहित साहित्य के अनछुए विषयों पर महत्वपूर्ण काम होगा।

आचार्य के इस कार्यकाल में साहित्य अकादमी की गतिविधियों ने राजस्थानी साहित्य के सृजन और विकास में एक अनूठा मुकाम बनाया है। परामर्श मंडल द्वारा अकादमी के देश भर में आयोजित कार्यक्रमों में विविधता और निरंतरता बनी रही है। कोरोना काल में जहां विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर लगातार ऑनलाइन सेमिनार्स आयोजित हुए वहीं आजादी के 'अमृत महोत्सव' के दौरान राजस्थानी साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर विमर्श और सृजन के समानांतर आयोजन हुए। खास बात यह रही कि इन आयोजनों में अनेक नए और युवा रचनाकारों को सृजन के अवसर मिले हैं। महिला लेखन को प्रोत्साहन दिया जाना भी मंडल की नई पहल कहा जा सकता है।

इस कार्यकाल की उपलब्धियां देखें तो ''राजस्थानी में गांधी' विषय पर पहली बार 'सिंपोजियम' आयोजित हुआ जिसका सकारात्मक परिणाम यह रहा कि राजस्थानी में महात्मा गांधी पर एक बेहतरीन पुस्तक प्रकाश में आई। आचार्य द्वारा संपादित यह पोथी शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार
कहानी विधा पर आलोचना के महत्वपूर्ण शोधपत्रों की संपादित पुस्तक 'राजस्थानी कहाणी' (परंपरा री दीठ अर आधुनिकता री ओल़खाण) भी महत्वपूर्ण है।

आचार्य के प्रयासों से अकादमी द्वारा 'इक्कीसवीं सइकै री राजस्थानी कहाणी' (कहानी संग्रह), 'इक्कीसवीं सइकै री राजस्थानी कविता', 'रेत सागै हेत', (कविता संग्रह), 'राजस्थानी बाल काव्य', 'राजस्थानी बाल कथा साहित्य' रेवतदान चारण की कविताओं का संचयन' और 'कन्हैयालाल सेठिया की कविताओं का संचयन' जैसी संग्रहणीय पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है।

अनुवाद की बात करें तो आचार्य के कार्यकाल में साहित्य अकादमी की 24 भाषाओं में सबसे अधिक काम राजस्थानी में हुआ है। उनके नेतृत्व में पंजाबी विश्वविद्यालय, अमृतसर में महत्वपूर्ण अनुवाद कार्यशाला का आयोजन संभव हो पाया जिसके फलस्वरुप पंजाबी से राजस्थानी और राजस्थानी से पंजाबी अनुवाद के दो महत्वपूर्ण कहानी संग्रह तैयार हुए हैं। इसके अतिरिक्त अनेक नए युवा अनुवादकों द्वारा विभिन्न भाषाओं की अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का राजस्थानी अनुवाद संभव हो सका है।

अकादमी द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों पर यदि चर्चा ना हो तो बात पूरी नहीं हो सकती। साहित्यकारों के एक धड़े द्वारा हमेशा इनकी आलोचना की जाती रही है। अकादमी पुरस्कारों के अपने मानदंड होते हैं लेकिन इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि पूर्व में दिए गए पुरस्कारों की तुलना में मंडल द्वारा तुलनात्मक रूप से काफी हद तक पारदर्शिता बरती गई है। निर्णयन प्रक्रिया में राजस्थान भर के साहित्यकारों को सहभागी बनाया जाना इस बात का द्योतक है कि मंडल ने बेहतर करने का प्रयास किया।

समाहार स्वरूप यह कहा जा सकता है कि आचार्य की यह खेचल़ नयी टीम के लिए प्रेरणादायी होने के साथ-साथ चुनौती का काम भी करेगी। इसे लांघने के लिए नई कार्यकारिणी को भरपूर ऊर्जा के साथ बेहतर प्रदर्शन करना होगा।

- डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Wednesday, 8 February 2023

जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है !

(हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर के बहाने)


कुदरत ने दुनिया की हर शह के प्रारंभ और अंत का वक्त मुकर्रर कर रखा है. इसी कड़ी में राजकीय पशु चिकित्सालय, सूरतगढ़ में पिछले 14 वर्षों से निरंतर चल रहे 'हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर' के समापन का वक्त भी आ गया है. पशुपालन विभाग की इस जमीन पर अब न्यायालय परिसर का निर्माण होगा, जिसके लिए भू अंतरण की कार्यवाही पूरी हो चुकी है. इसी परिसर में संचालित मत्स्य विभाग और आयुर्वेदिक चिकित्सालय पहले ही अंतरित किये जा चुके हैं. अंतिम रूप से इस गोवंश शिविर को जाना है. यहां के पशुओं को दूसरी गौशाला में भेजे जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. नई कोंपलों के लिए पुराने पीले पत्तों का झरना जरूरी है, यही नियति है, जिसका स्वागत होना चाहिए. विदाई वक्त आज मन भारी है. आपसे इस शिविर के आरम्भ और यहां संचालित हुई गतिविधियों को साझा करता हूं. 



नवंबर 2008 का समय रहा होगा जब राजकीय पशु चिकित्सालय में 'हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर' प्रारंभ हुआ था. उस दिन सर्द कोहरे के मौसम में, रात्रि साढे़ ग्यारह के करीब सिटी पुलिस स्टेशन और गुरुद्वारे के बीच लगभग 200-250 गौवंश, जिनमें ज्यादातर कमजोर गोधे और छोटे बछड़े थे, जाने कौन लोग छोड़ गए थे. भारी धुंध में सड़क पर जाम लगा था, तत्कालीन एसडीएम राहुल गुप्ता, जो ताजा-ताजा आईएएस बने थे, मैंने.उन्हें फोन कर मौके पर बुलवाया. किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाजा अस्थाई व्यवस्था के लिए एक बार इन निराश्रित पशुओं को हमने प्रशासन और पुलिस के सहयोग से राजकीय पशु चिकित्सालय की टूटी-फूटी बिल्डिंग में बने दो बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया. चुनावी मौसम था, लिहाजा सुबह चारे-पानी की व्यवस्था में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. 



हाईलाइन की पूरी टीम ने प्रशासन के सहयोग से इस शिविर को चलाने का जिम्मा उठाया. जब किसी पुनीत कार्य की शुरुआत होती है तो हाथ स्वत: ही जुड़ते चले जाते हैं. दैनिक हाईलाइन ने इस गोवंश शिविर में सहयोग की अपील प्रकाशित करनी प्रारम्भ की तो कारवां बनता गया. शहर के प्रबुद्ध लोगों ने अपने स्वजनों के जन्मदिन, पुण्यतिथि और मांगलिक अवसरों पर सहयोग की निरंतरता बनाए रखी, जिसके चलते निराश्रित पशुओं के लिए बेहतर व्यवस्था बन पाई. बीकानेर रोड पर गुरुद्वारे के सामने लगे शेड के नीचे प्रतिवर्ष सर्दी के मौसम में इन बेजुबान पशुओं के लिए गरमा-गरम दलिये की सेवा भी जारी रहती थी जिसमें सभी प्रबुद्ध जनों का सहयोग मिलता था. यहां तक कि जैतसर विजयनगर, अनूपगढ़ और घड़साना के पाठकों का सहयोग भी इस शिविर को मिलता रहा. इसी शिविर से हमने सूरतगढ़ में पर्यावरण संरक्षण के लिए 'रूंख भायला' अभियान की शुरुआत की थी, जो आज वृक्ष मित्रों के प्रयासों में दूर-दूर तक जा पहुंचा है।


कोरोनाकाल में इस शिविर को भी संकट का सामना करना पड़ा, लेकिन ईश्वर की कृपा से पशुओं के चारे पानी की व्यवस्था में कमी नहीं आई. इसीलिए लगता है कि शिविर में सहयोग करने वाले सभी जागरूक लोगों के लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है.



यदि कुछ चेहरों का जिक्र न किया जाए तो बात अधूरी होगी. इस शिविर के संचालन में सबसे महती भूमिका जिस व्यक्ति की रही वह है आंचल प्रन्यास की अध्यक्ष श्रीमती आशा शर्मा, जिन्होंने अपनी व्यस्तता के बावजूद न सिर्फ नियमित सेवा दी बल्कि बेहतर व्यवस्था बनाने के हर संभव प्रयास किए. सर्द मौसम में प्रातः 6 बजे उठकर पशुओं के लिए दलिया तैयार करवाना
, हरे चारे की व्यवस्था करना, कोरोना संकट काल में प्रत्येक अमावस्या पर सहयोगियों के साथ चौक पर खड़े होकर आर्थिक सहयोग एकत्रित करना, बीमार पशुओं की देखरेख करना, पानी के टैंकरों की व्यवस्था करना आदि छोटे-मोटे बहुत से काम ऐसे हैं, जिनमें सेवा भाव के साथ निरंतरता बनी रहना अत्यंत कठिन है लेकिन आशा जी ने इस दायित्व को बखूबी निभाया. यही कारण है कि उन्हें इस सेवा के लिए हमेशा भरपूर सराहना मिली और प्रशासन द्वारा भी समय-समय पर सम्मानित किया जाता रहा है. इसी कड़ी में स्वर्गीय विजय शर्मा, स्वर्गीय पवन सोनी, श्री रमेश चंद्र माथुर, श्री विजय मुद्गल, आयुर्वेद चिकित्सालय के श्री गोविंद सिंह, डॉ. एम एस राठौड़, दिलीप स्वामी उर्फ बबलू व संचालन सेवा दल के जगदीश नायक, असगर अली और जुम्मे खान का उल्लेख भी जरूरी है जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दी. इस शिविर में पशु चिकित्सालय के स्टॉफ और सिटी पुलिस थाने का सहयोग भी निरंतर मिलता रहा है. हाल ही में ट्रांसफर हुए थानाधिकारी रामकुमार लेघा तो नित्य प्रति इस शिविर में सेवा देते रहे हैं. जाने कितने ऐसे चेहरे हैं जो मुझे याद नहीं, लेकिन उनकी निस्वार्थ सेवा के बिना यह सब संभव नहीं था. आज घड़ी उन सबका आभार इस बात के साथ कि-

देहों शिवा बर मोहे ईहे, 

शुभ करमन ते कबभुं न टरूं

न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं..

O Supreme Lord! May I never deviate from straight path. May I never fear enemies. Make me winner every time I enter the battlefield. 

-Guru Gobind Singh Ji


डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'




Friday, 20 January 2023

सनातन को सहेजने का आधार है संस्कृत

 


(विरासत संभालने का वक्त)

जब हम किसी भाषा को सहेजने और उसके उन्नयन की बात करते हैं तो सही मायने में उस वक्त हम एक सांस्कृतिक विरासत और मानवी सभ्यता को संरक्षित करने का महत्वपूर्ण काम कर रहे होते हैं। संस्कृति, जिसमें हमारे संस्कार सिमटे हैं, हमारा साहित्य रचा जाता है, हमारी कलाएं, हमारे गीत-संगीत पनपते हैं, हमारे लोकरंग और हमारा लोकजीवन रचता-बसता है, उस समग्र को पीढ़ी दर पीढ़ी अग्रसर करने का काम भाषा ही तो करती है।


इस मायने में जब देव भाषा संस्कृत की बात हो तो अर्थ और गहरे हो जाते हैं। एक ऐसी भाषा जिसमें सनातनी संस्कार पल्लवित हुए हों, जिसमें प्राचीनतम सभ्यताओं ने सांस ली हो, जिसे देवों, ऋषियों और मुनियों ने गाया हो, रामायण और महाभारत सरीखे अनूठे वैश्विक ग्रंथ रचे गए हों, उस भाषा का लोक चलन से बाहर होना एक दु:खद आश्चर्य है।

भाषाओं के मामले में प्राचीन भारत अत्यंत समृद्ध रहा है। यहां कमोबेश हर क्षेत्र, जाति और समुदाय की अपनी-अपनी भाषा और उसकी बोलियां रही हैं। विरासत स्वरूप इन भाषाओं की हमारे पास लाखों-लाख साहित्यिक पांडुलिपियां उपलब्ध है जो इस बात की साख भरती हैं कि यह भाषाई विविधता कोरी कपोत कल्पना नहीं है। भाषाओं और बोलियों का इतना विषद् भंडार होते हुए भी संस्कृत सहित अनेक समृद्ध भाषाओं का चलन से बाहर होना चिंतनीय है।

संस्कृत की बात करें तो कुछ विद्वान साथी इसकी वर्तमान दशा को भारतीय उपमहाद्वीप पर पिछले 2 हजार वर्षों में हुए मध्य एशियाई और यूरोपीय आक्रमणों से जोड़कर देखते हैं, जबकि यह एक पहलू भर है। तथ्य यह है कि नालंदा और तक्षशिला में सुदूरपश्चिमी देशों से आने वाले विद्यार्थियों ने न केवल संस्कृत में अध्ययन किया बल्कि उसे दूर-दूर तक प्रसारित करने में महती भूमिका निभाई। यदि सिर्फ बाह्य आक्रमण से संस्कृत का चलन कम होता तो हमारी द्रविड़ियन भाषाएं भी विलुप्त होने की कगार पर होती। मगर हम देखते हैं कि अन्य विदेशी भाषाओं की उपस्थिति के साथ दक्षिण की भाषाएं निरंतर उत्तरोत्तर प्रगति करती रही हैं।

दरअसल, किसी भाषा के विलुप्त होने में बहुत से कारक होते हैं। भौगोलिक उथल-पुथल ने टेथिस सागर को जब थार के रेगिस्तान में बदल दिया तो फिर भाषा का मुद्दा तो बहुत गौण है। संस्कृत के चलन से बाहर होने में बाह्य आक्रमणों के
साथ-साथ प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों को भी शामिल किया जाना जरूरी है। यह कटु सत्य है कि सामाजिक विसंगतियां भी भाषाओं को प्रभावित करती हैं और संस्कृत भी इससे अछूती नहीं रही। वर्तमान में उदासीन लोकचेतना और तथाकथित शिक्षाविदों की भाषाई अज्ञानता के चलते संस्कृत भाषा भारतीय जनमानस में अपना चलन खो चुकी है। बोलचाल की तो बात छोड़िए, साहित्य सृजन में भी संस्कृत पिछड़ गई है। जो भाषा कभी भारतीयता का प्रतीक रही हो, उसे खुद अपने देश में तृतीय भाषा का दर्जा मिलना अत्यंत दु:खद है।
उन विद्वजनों का धन्यवाद करना चाहिए जो भावी भारतीय पीढ़ियों के लिए इसे जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।

यहां हंस के पूर्व संपादक राजेंद्र यादव की बात याद आती है । उनका मानना था कि जो भाषाएं सिर्फ संवेदना से जुड़ी हैं उनका भविष्य अच्छा नहीं है। भाषा की समृद्धि के लिए संवेदना के साथ-साथ उसे व्यवहार में उतारना भी जरूरी है। भारतीय संस्कृति और सनातन को यदि सहेजना है तो उसकी आधार भाषा संस्कृत को न सिर्फ संरक्षण देना होगा बल्कि उसके उन्नयन की बात भी करनी होगी। यह दायित्व सिर्फ सरकार का नहीं है बल्कि सभी जागरूक और विद्वान शिक्षाविदों का है जो संस्कृत की महत्ता को भारतीय जनमानस पर पुनः स्थापित करें। ब्रिटिश काल में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा दिया गया नारा ,'वेदों की ओर लौटो' आज भी प्रासांगिक है । भारत जिस संक्रमण काल से गुजर रहा है, उस दौर में संस्कृत और उसकी विरासत एक पथ-प्रदर्शक के रूप में काम कर सकती है, बस इसे समझने की जरूरत है।

डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
(भाषाविद् और वरिष्ठ साहित्यकार)

Wednesday, 11 January 2023

बालमन की खूबसूरत अभिव्यक्ति 'झगड़ बिलौणो खाटी छा' के बहाने



(बाल साहित्य की पाठशाला-1)

बाल साहित्य सृजन कोई हंसी-खेल नहीं है कि जो हल्का-फुल्का मन में आए, लिख दिया जाए। वर्तमान दौर की अधिकांश बाल रचनाओं में कमोबेश ऐसी ही भावाभिव्यक्ति दिखती हैं जिनमें बच्चों को सिर्फ हंसाने या गुदगुदाने के उद्देश्य की प्रधानता रहती है। ज्यादा हुआ तो आदर्शवाद की चाशनी में लपेटकर साधारण गद्य या तुकबंदी को परोसना ही बाल साहित्य मान लिया गया है। यही कारण है कि ऐसा साहित्य बाल पाठकों के मन में उतर ही नहीं पाता।

कुछ रचनाकार मानते हैं कि बाल साहित्य रचने के लिए बच्चे जैसा मन होना चाहिए। इस कथन में कितनी सत्यता है, यह अपने-अपने अनुभव की बात है। मेरा समझ में तो बाल रचनाओं के लिए बाल मन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण रचनाकार की गहन दृष्टि है जो अपनी क्षमता से तात्कालिक भावों को शब्दों में बांधने की कला जानती है। सृजन का यह नियम सार्वभौमिक है।


हकीकत में बाल साहित्य साधकों को अपने रचाव में कहीं अधिक सजग होना पड़ता है। अक्सर देखा जाता है कि लिखते समय बाल रचनाकारों के मन में शब्दों के चयन और संयोजन के साथ आदर्शवादी भावाभिव्यक्ति के विचार उमड़ते हैं। विचारों के इस महासागर में डूबने के बाद अधिकांश बाल साहित्यकार चाह कर नहीं उबर पाते। नतीजा यह होता है कि अधिकांश बाल रचनाएं परंपरागत रूप से 'मंचीय चुटकुला या आदर्शवादी सीख' बनकर रह जाती है। लेकिन जो रचनाकार इस वैचारिक महासागर को लांघने की क्षमता रखते हैं, उनका सृजन देर तक अपना प्रभाव बनाए रखता है और शब्द साधना की कसौटी पर खरा उतरता है। विश्व की हर भाषा में ऐसी अनेक बाल रचनाएं विद्यमान है जो इस बात की साख भरती हैं।

आज बानगी स्वरूप राजस्थानी लोक साहित्य के एक ऐसे ही बालगीत के माध्यम से विमर्श को आगे बढ़ाते हैंं। 'झगड़ बिलौणो खाटी छा' नामक यह प्रसिद्ध बालगीत न सिर्फ बालमन की सशक्त अभिव्यक्ति है बल्कि थार के संस्कारित परिवेश और विसंगतियों के प्रति उपजे बाल आक्रोश को भी उजागर करता है। इस लोकगीत में बाल मनोविज्ञान बड़ी खूबसूरती के साथ गूंथा गया है।

जल संकट के बावजूद घी-दूध की उपलब्धता थार के रेगिस्तान का अजूबा है। यहां का मानवी अपने पशुधन को परिवार का सदस्य मानकर जीवन यापन करता है। ऐसे ही परिवार का एक बच्चा अपने घर में सुबह दही बिलौने के दृश्य को देखता है, उसके मन में जो भाव उठते हैं, उन्हें रचनाकार ने अपनी गहन दृष्टि से साधते हुए इस गीत के मुखड़े में पिरोया है-

झगड़ बिलौणो खाटी छा
झरड़-झरड़ झर चालै झेरणो
मथै चूंटियो मेरी मा...


थार के लोकगीतों की खास बात यह है कि वहां भाषाई सौन्दर्य का विशेष ध्यान रखा गया है । साधारण शब्दों से सजे इस गीत के मुखड़े में भी 'बैण सगाई' अलंकार देखा जा सकता है।

गीत के पहले अंतरे में बच्चा अपनी व्यस्तता के साथ-साथ उसके प्रति हो रहे बाल अन्याय को उजागर करता है। उसकी शिकायत का अंदाज भी किसी बड़े होते बच्चे की तरह है। वह कहता है, भाग्यवानों के बच्चे तो मक्खन के लौंदे (चूंटियो) चाट रहे हैं और मुझे सिर्फ दही खाने को कहा जा रहा है। जीवन की विसंगतियों को बाल रचनाओं में व्यक्त कर पाना ही इस गीत की खूबसूरती है। देखिए जरा-

उठ तड़कै म्हूं रोही जावूं
दिनभर गा अर भैंस चरावूं
सिंझ्या पड़ियां घर नै आवूं
लूखी आली रोटी खावूं
भागी रा टाबरिया चाटै चूंटियो
मन्नै कैवै दहियो खा
मथै चूंटियो मेरी मा...

दूसरे अंतरे में वह अपनी मां के प्रति समर्पण भाव रखते हुए उसके हर आदेश को पालता है । लेकिन यहां भी वह अपने मन की बात कहने से नहीं चूकता। जब मां दही मथने के बाद बिलोने में से घी का लोंदा तो रसोई के अंदर ले जाती है और उसे सिर्फ थोड़ा सा फिदड़का मिलता है। ऐसे में उसके गुस्से को महसूस कीजिए-

मा रो कैयो म्हूं कदी ना टाळूं
उठ झांझरियै दही नै ठारूं
बैठ्यो बैठ्यो बिन्नै रूखाळूं
आवै बिलड़ी तो चूंपी मारूं
घी रो लोधो माऊ मां ले जावै
कोरो फिदड़को देवै मन्नै ल्या
मथै चूंटियो मेरी मा...


बचपन में पालतू पशुओं के प्रति स्नेह और अपनेपन का भाव स्वाभाविक है। उम्र बढ़ने के साथ मनुष्य अपनी व्यस्तता के चलते ऐसे प्राकृतिक संबंधों से स्वत: ही दूर चला जाता है। इस परमानंद की अभिव्यक्ति गीत के तीसरे अंतरे में गूंथी गई है। इतना होने के बावजूद जब बच्चे के हिस्से का दूध कोई और पी जाता है तो बालमन विद्रोह करने पर उतारू हो जाता है। अंतरा देखिए-

गोरी गा नै गुवार खुवावूं
खाज करूं म्हूं हाथ फिरावूं
छोटै मूमलियै नै गळै लगावूं
दे पुचकारी लाड लडावूं
दूध गटागट पीवै दूसरा
जद हो जावै मेरी भ्यां
मथै चूंटियो मेरी मा...


आदर्शवादी सृजन से इतर दृष्टि रखने वाला यह गीत बाल साहित्यकारों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हो सकता है बशर्ते उनमें सीखने की ललक बाकी हो।
-रूंख

उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है !

(जिला बनाओ अभियान का संघर्ष ) आज का घटनाक्रम कुछ यूं चला कि रात्रि लगभग 3:00 बजे 8 दिन से 'सूरतगढ़ जिला बनाओ' अभियान के अंतर्गत आम...

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