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Tuesday, 26 September 2023

राजस्थान साहित्य अकादमी के पुरस्कारों में छाए 'इक्कीस' के विद्यार्थी


अकादमी द्वारा वर्ष 2023-24 के घोषित वार्षिक पुरस्कारों में पांच पुरस्कार लेकर रचा नया इतिहास


उदयपुर। 26 सितंबर। ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगा रहे इक्कीस संस्थान के विद्यार्थियों ने राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा मंगलवार को घोषित हुए वार्षिक पुरस्कारों में से पांच पुरस्कार जीतकर नया इतिहास रच दिया है। बीकानेर संभाग में यह पहला अवसर है जब एक ही शिक्षण संस्थान के पांच विद्यार्थी साहित्य के क्षेत्र में पुरस्कृत होंगे। 

इक्कीस कॉलेज के दामोदर शर्मा, पवन गोसांई,और कौशल्या जाखड़ तथा इक्कीस एकेडमी फॉर एक्सीलेंस की छात्र द्रौपदी जाखड़ और करुणा रंगा को साहित्य की अलग-अलग विधाओं में वर्ष 2023-24 के पुरस्कार देने की घोषणा हुई है।


अकादमी सचिव डॉ. सोलंकी ने बताया कि संचालिका-सरस्वती बैठक अनुमोदन के पश्चात अकादमी अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण ने विद्यालयी-महाविद्यालयी पुरस्कार की घोषणा की। विजेता विद्यार्थियों में चंद्रदेव शर्मा पुरस्कार के तहत कविता के लिए दामोदर शर्मा, इक्कीस कॉलेज गोपल्याण-लूनकरनसर, कहानी के लिए सुरेंद्र सिंह, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, एकांकी के लिए अमनदीप निर्वाण, एसएसएस कॉलेज, तारानगर, निबंध के लिए पवन कुमार गुसांई, इक्कीस कॉलेज, गोपल्याण को दिया जाएगा। वहीं परदेशी पुरस्कार के तहत कविता के लिए शुंभागी शर्मा, राउमावि भवानीमंडी-झालावाड़, कहानी के लिए परी जोशी, द स्कोलर्स एरिना, उदयपुर, निबंध के लिए करुणा रंगा, इक्कीस एकेडमी फॉर एक्सीलेंस, गोपल्याण, लघुकथा के लिए द्रोपती जाखड़, इक्कीस एकेडमी फॉर एक्सीलेंस, गोपल्याण को दिया जाएगा। वर्ष 2023-24 का सुधा गुप्ता पुरस्कार निबंध के लिए इक्कीस कॉलेज, गोपल्याण की कौशल्या को दिया जाएगा।

संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती आशा शर्मा ने विद्यार्थियों की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह सही मायने में टीम वर्क का प्रयास है। संस्था सचिव डॉ. हरिमोहन सारस्वत ने विद्यार्थियों के प्रयासों की प्रशंसा की और मंजिल पाने की दिशा में इसे बड़ा कदम बताया। संस्था के प्राचार्य राजूराम बिजारणियां ने इसे साहित्य की जमीन में नवांकुरों का ऊगना बताया है।

इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर सरोकार से जुड़े डॉ.मदन गोपाल लढ़ा ने खुशी का इज़हार करते हुए बताया कि गत कई वर्षों से लूणकरणसर में सरोकार संस्थान के माध्यम से साहित्यिक वातावरण बना है, यह गौरवान्वित करने वाला है। सरोकार संस्थान से जुड़े ओंकारनाथ योगी, गोरधन गोदारा, रामजीलाल घोड़ेला, छैलूदान चारण, दलीप थोरी, जगदीशनाथ भादू, केवल शर्मा, दुर्गाराम स्वामी, कमल पीपलवा, कान्हा शर्मा, रामेश्वर स्वामी, भूपेन्द्र नाथ सहित विभिन्न जनों ने बधाई प्रेषित की।

Sunday, 24 September 2023

पालिका की बिगड़ी व्यवस्था को सुधारना मेरी प्राथमिकता : भाटिया

 

- प्रेस क्लब, की 'संवाद' श्रृंखला में पालिकाध्यक्ष हुए रूबरू


सूरतगढ़, 24 सितंबर। 'यह सच है कि नगर पालिका में व्यवस्थाएं बिगड़ी हुई हैं लेकिन मैं उन्हें दुरुस्त करने का भरसक प्रयास कर रहा हूं। मुझे जिस विश्वास के साथ नगरपालिका की कमान सौंपी गई है उस भरोसे को टूटने नहीं दूंगा।' यह कहना है नगरपालिका सूरतगढ़ के नवनियुक्त अध्यक्ष परसराम भाटिया का।


रविवार को व्यापार मंडल, सूरतगढ़ के सभागार में आयोजित प्रेस क्लब के कार्यक्रम 'संवाद' में बोलते हुए भाटिया ने गंभीरता पूर्वक प्रेस के सवालों के जवाब दिए और अपनी कार्य योजनाओं की जानकारी दी। सड़कों और नालियों से लेकर सीवरेज तक के मुद्दों पर उन्होंने साफगोई से अपनी बात कही। उनका कहना था कि पदभार संभालने के साथ ही उन्होंने बिना किसी भेदभाव के शहर के सभी 45 वार्डों में विकास कार्यों के टेंडर जारी किए हैं। उन्होंने इस तथ्य को भी स्वीकारा कि नियम कायदों के बावजूद पालिका कई पार्षद ठेकेदारी में लिप्त है। शहर में बढ़ते अतिक्रमणों को लेकर भी वे चिंतित दिखाई दिए। कमीशन के सवाल पर उनका कहना था कि पद संभालने से लेकर आज तक उन्होंने एक रूपया भी कमीशन में नहीं लिया है। कार्यक्रम में शहर के गणमान्य नागरिकों, व्यापारियों और प्रेस के लोगों ने भी पालिकाध्यक्ष से सवाल-जवाब किये। भाटिया ने उन्हें भरोसा दिलाया कि यदि उन्हें काम करने के लिए पर्याप्त समय मिला तो वह शहर की सड़कों और सीवरेज व्यवस्था को सुधारने की भरसक कोशिश करेंगे।


कार्यक्रम में समाजसेवी ललित सिडाना, व्यवसायी प्रवीण अरोड़ा, भूषण भठेजा, सुमन मील, रजनी मोदी, डॉ विशाल छाबड़ा, शिक्षाविद पी.डी. शर्मा बार संघ अध्यक्ष एडवोकेट अनिल भार्गव,एडवोकेट पूनम शर्मा,श्रीकांत शर्मा,पार्षद मदन औझा, जनता मोर्चा के ओम राजपुरोहित,रमेश माथुर, मेडिकल एसोसिशन सचिव देवेंद्र शर्मा, पवन तावनिया,मानव सेवा समिति के देवचंद दैया, राजकुमार सैन, किशन स्वामी, योगेश स्वामी, आकाश दीप बंसल सहित गणमान्य लोग मौजूद रहें।


गौरतलब है कि प्रेस क्लब, द्वारा प्रशासन और जनसामान्य के बीच व्याप्त संवादहीनता को समाप्त करने के उद्देश्य से संवाद श्रृंखला शुरू की गई है। क्लब के अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन सारस्वत के अनुसार इस श्रृंखला में प्रत्येक माह किसी एक जनसेवक अथवा पुलिस-प्रशासन के अधिकारी को आमंत्रित कर संवाद किया जाएगा। संवाद के बाद जनसामान्य भी अपने सवाल उठा सकेंगे और सुझाव दे सकेंगे।

Monday, 18 September 2023

मायतां रै करजै सूं उऋण होवण री खेचळ है सिरजण साख रा सौ बरस

(नंद भारद्वाज री अन्नाराम सुदामा साहित माथै सम्पादित ‘पोथी सिरजण साख रा सौ बरस’ बांचता थकां......)

धिन-धिन अे धोरां री धरती राजस्थानी मावड़ी

वीर धीर विद्वान बणाया खुवा खीचड़ो राबड़ी।


हिंदी सिनेमा जगत रै चावै गीतकार स्व. भरत व्यास रो ओ दूहो मरूधर रै मानवी री खिमता रो बखाण करै। लगोलग पड़तै अकाळ बिच्चाळै जियाजूण री अबखायां सूं बांथेड़ा करतो मरूधर रो मानवी आपरी मैणत अर खिमता सूं धर री सोभा बधावण रा अगणित कारज करया है। कदास इणी कारण कानदान ‘कल्पित’ सिरखै लोककवियां बां मिनखां नै आभै रा थाम्बा कैय’र बिड़दायो है जिकां रै पड़्यां आभो ई हेठै आय पड़ै।


राजस्थानी साहित में इणी ढाळै रै अेक मानवी अन्नाराम सुदामा रो नांव आवै जिकां रै सिरजण रो जस सात समदरां पार जा पूग्यो है। आधुनिक राजस्थानी भासा अर साहित्य रै किणी पख री बात होवै तो सुदामा री चरचा बिना पूरी नीं हो सकै जिकां आपरी निरवाळी रळियावणी भासा, बुणगट अर कथ्य रै पाण राजस्थानी साहित्य में अळघो मुकाम बणायो। आपरी कैबत अर ओखाणां लियां बांरी घड़त सैं सूं न्यारी, संवेदना रा सुर इत्ता ऊंडा, कै सीधा पाठकां रै काळजै उतरै। कहाणी होवै चायै उपन्यास, कविता होवै का पछै निबंध, सुदामा रै रचाव में गंवई सादगी अर सरलता तो लाधै ई, धरती री सोरम अर मानवीय मूल्यां नै परोटती बांरी रचनावां री पठनीयता गजब है। जातरा संस्मरण तो अेक’र सरू करयां पछै पाठक छोड़ ई नीं सकै। सांची बात तो आ, कै सुदामा आपरै रचाव सूं राजस्थानी साहित्य रै भंडार नै जिकी सिमरधी अर ऊंचाई दी है, उणी हेमाणी नै अंवेरता थकां घणकरा कूंतारा अर पारखी बान्नै राजस्थानी रो प्रेमचंद मानै। 


राजस्थानी रै इणी प्रेमचंद यानी अन्नाराम सुदामा री जलमशती-2023 रै मौकै अेक घणी अमोलक पोथी आई है ‘सिरजण साख रा सौ बरस’। आ अेक संचयन पोथी है जिणमें राजस्थानी रा सिरैनांव रचनाकार अन्नाराम सुदामा री साहित्य जातरा री विवेचना है, विद्वजनां रा आलोचनात्मक आलेख है अर रचनावां री बानगी है। इण पोथी रो सम्पादन चावा-ठावा कवि, कथाकार अर समालोचक नंद भाऱद्वाज करयो है। भारद्वाज आपरी भूमिका पेटै लिखै कै किणी समर्थ सिरजणहार रौ शताब्दी बरस उणरै सिरजण-अवदान नै चितारण, अंवेर-परख करण अर बांनै आदरमाण देवणै रो सगळां सूं ओपतो सुअवसर मानीजै। म्हूं जाणूं कै हर औलाद पर आपरै मायत रो अेक करजो होवैे जिण सूं उऋण होवण री खेचळ सगळा ई आपरै डोळ सारू करै। नंद भारद्वाज री आ खेचळ ई उणी करजै नै उतारण री अेक सबळी सोच है जठै बै मायत सरीखै आपरै आगीवाण रचनाकार रो रचाव, उण रचाव माथै आलोचनात्मक दीठ अर सिरजण रा निरवाळा पख अेक संचयन में सामीं लावै। सुदामा सूं मिली सीख नै आगै बधावण री बात ई इण पोथी रो सार है।

 

पोथी री भूमिका में नंद भारद्वाज सुदामजी रै सिरजण रै न्यारै-न्यारै पख री बात करै। सुदामा री कविता रै पेटै बै लिखै कै सुदामा री पिछाण अर चरचा भलांई कथाकार रै रूप में रैयी होवै पण कविता सूं बांरो मनचींतो लगाव सदांई गाढो रैयो। भारद्वाज री इण बात री साख सुदामा रा च्यारूं कविता संग्रै ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’, ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’, ’ओळभो जड़ आंधै नै’ अर ’ऊंट रै मिस: कीं थारी म्हारी’ भरै। सुदामा री कविता ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ तो आज भी साहित रसिक लोग घणै चाव सूं पढै अर सुणा बो’करै। इण पोथी में सम्पादक भारद्वाज सुदामा री कहाणियां, उपन्यासां अर दूजी विधावां माथै बात करी है। सुदामा री रचनावां रा सबळा पख पाठकां सामीं राख्या है। इण रै साथै ई बां सुदामा-साहित्य पर राजस्थानी रै इग्यारा चावै-ठावै कूंतारां रा कीं जूनां, अर कीं नवा आलेख ई इण संचयन में राख्या है जिण सूं ओ संकलन घणो महताऊ बण्यो है। आं आलेखां नै बांचां तो ठाह पड़ै, कै सुदामा रो मुकाम आपरै समकालीन लिखारां सूं निरवाळो क्यूं है। आं आलेखां में सुदामा री कहाणी, सातूं उपन्यासां अर निबंधां माथै सांतरी आलोचनात्मक विवेचना होई है। खुद सम्पादक सुदामा रै जगचावै जातरा संस्मरण ‘दूर दिसावर’ माथै ‘फौड़ां सूं फायदौ’ नांव रो आलेख लिख्यो है। लगै-टगै सै कूंतारा अेक सुर में सुदामा नै राजस्थानी साहित्य रो मोटो थाम्बो मानै, कदास आ पिछाण ई सुदामा री सैं सूं ठावी ओळखाण है।

संचयन रै सरूपोत में सुदामाजी रै मोभी बेटै डाॅ. मेघराज शर्मा री बात ई छप्योड़ी है, जिण में बै सुदामाजी रै व्यक्तित्व बाबत पाठकां नै रूबरू करावै। संचयन रै पैलड़ै आलेख में डाॅ. नीरज दैया सुदामाजी री कहाणियां मुजब लिखै कै सुदामा रै राजस्थानी कथा साहित्य रा केई पख है। ग्रामीण जनजीवन सूं जुड़ी बांरी कहाणियां मांय सामाजिक सरोकार, जीवण मूल्य, संस्कार अर मिनखपणै री जगमगाट जाणै बगत नै दीठ दे रैयी है। बै प्रगतिषील अर जूनी मानसिकता रा अेकठ कहाणीकार है। डाॅ. आईदानसिंह भाटी सुदामाजी नै राजस्थानी उपन्यास रो ‘इकथंभियौ-म्हल’ बतावै। ‘समाजू बदळाव रा सजग चितेरा अन्नाराम सुदामा’ सिरेनांव सूं लिख्योड़ै आलेख में भाटी लिखै कै सुदामा जी रै उपन्यासां रै कथानकां री नींव में स्त्री है। बां रै सिरजण में स्त्री री मानसिकता रा सबळा अर दूबळा दोवूं रूप मांडिज्या है। इण रै साथै ई सुदामा दलित समाज री दसा अर उत्थान री बात नै भोत सांवठै ढंग सूं पाठकां सामीं राखै। इण रचाव में सुदामा री भासा शैली री बात करां तो बा समकालीन ग्रामीण राजस्थानी भाषा है जिणमें लोक प्रचलित अरबी-फारसी, पंजाबी अर संस्कृत रा तत्सम सबदां रो ई प्रयोग मिलै पण उण नै समझणै में कोई अबखाई नीं होवै।

डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित रो कैवणो है कै राजस्थानी उपन्यास विधा नै सुदामाजी जिकी ऊंचाइयां दिराई, आमजन में राजस्थानी उपन्यास री जिकी पिछाण कायम करी बा लोक रै चित्त में ‘आंधी अर आस्था’ का ‘मेवै रा रूंख’ रै रूप में आज लग उणीज भांत मंडियोड़ी है। इण उजळी ओळखाण दिरावण सारू ई  राजस्थानी उपन्यासकारां में  सुदामा रो नांव सैं सूं सिरै है। गजेसिंह आपरै आलेख में सुदामाजी रै सातूं राजस्थानी उपन्यासां री पड़ताल करै अर बांरी लेखन शैली सूं सीख लेवण री बात बतावै। डाॅ. गजादान चारण रै मुजब सुदामा रै रचाव री नायिकावां नारी जूण री अबखायां सूं आंख मिलावती, पग-पग माथै ऊभै अवरोधां नै ठोकरां सूं उडावती, लायकी सामीं लुळती अर नालायकी माथै कटकती संघर्ष री लाम्बी सड़की नापै पण ईमान अर अस्मत माथै आंच नीं आवण देवै।

डाॅ. पुरूषोत्तम आसोपा सुदामा नै धरती री आस्था रो कथाकार मानै। बां रै मुजब धरती सूं छेड़ै नीं बां रो कोई कथाछेत्र है अर नीं किणी भांत रै जीवण री आचार संहिता। बां रै रचाव में नीं तो धोरां रो अणूतो सिणगार दिखै नीं किणी कामण गोरड़ी री बांकी छवियां, नीं तो प्रेमकथा रा सबड़का, नीं जोधारां रा कळा करतब। बस सो कीं धरती रै ओळै-दोळै घूमै। आसोपा अेक और ठावी बात बतावै, कै सुदामा फगत कड़वै जथारथ रा ई चितेरा लेखक कोनी, बांरै मांय आदर्स री भावना ई कूट-कूट नै भरियोड़ी है। इण दीठ सूं बांरी चेतना जूनी पीढ़ी रा मूल्यां नै घणो मान देवै। सुदामा रै उपन्यास ‘मेवै रै रूंख’ नै माधोसिंह इंदा समाजू बदळाव री करूण कथा बतावै। बां रै मुजब ओ उपन्यास अेक गांव री कथा रो सांचो दस्तावेज है जिणमें करसां री करूण दसा रा चितराम सामीं आवै।

पोथी में सामल आलेखां में डाॅ. गीता सामौर रो ‘मैकती काया, मुळमती धरती’ उपन्यास माथै लिखिज्योड़ो आलेख ई सरावण जोग है। सुदामा रै इणी उपन्यास में डाॅ. गौरीशंकर प्रजापत नै लोकजीवन रा न्यारा-न्यारा तत्व लाधै। बांरै आलेख मुजब इण में बैम, सक, हेत-समानता, भाईचारो, धरमेला, तंतर-मंतर, अंधविस्वास, कुंठावां, विकार, सुगन-अपसुगन आदि लोकतत्वां रा लूंठा दरसण होवै।  श्याम जांगीड़ आपरै आलेख में सुदामा रै उपन्यास ‘आंधी अर आस्था’ री विवेचना करी है अर इण रचाव नै काळ सूं कळीजतै मानखै री गाथा बतायो है। बै लिखै कै इण उपन्यास री सगळां सूं लूंठी खासियत इणरी रळियावणी भासा है जिण में माटी री सोरम निगै आवै। डाॅ. अरूणा व्यास रै मुजब सुदामा रो रचाव लोक जीवन रो जीवतो जागतो चितराम है। बै आपरै साहित्य में समाजू रीत-कायदां नै बांरी व्यापकता में बरततां थकां उणसूं उपजण वाळै लखाव नै आपरै पाठकां तांई पुगावण रो काम करै। 

अेक जूनो आलेख बुलाकी शर्मा रो ई सामल करीज्यो है जिण मांय बां सुदामा रो इंटरव्यू लेवता थकां री बंतळ लिखी है। अेक सवाल रै पड़ुत्तर में सुदामा जी कैवै, ‘म्हानै लिखणै में रस आवै, लिखतो रैवूं। लोगां सूं मिल’र खुद नै अेक्सपोज करणो म्हानै कोनी आवै।’ बांरी आ साफगोई बान्नै समकालीन रचनाकारां सूं अळघो मुकाम दिरावै। इणी बंतळ में सुदामा आलोचना रै पेटै कैवै, ‘आलोचना भासा, भाव अर कथ्य री दीठ सूं होवणी चाइजै पण राजस्थानी में ओ पख कमजोर है।

पोथी रै दूजै खंड में सुदामाजी री टाळवीं रचनावां रो संचयन है जिणमें बानगी रै तौर पर कविता, कहाणी, उपन्यास, जातरा संस्मरण भेळै निबंध ई सामल करीज्या है। इण खंड रै सरूपोत में सुदामा रै दूजै कविता संग्रै ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’ री दोय रचनावां ‘आंधी लालसा’ अर ‘अेक उदास संज्ञा’ पढण नै मिलै। बांरी काव्य पोथी ‘ऊंट रै मिस थारी: म्हारी सगळां री’ सूं ई दो अंस सामल करीज्या है। अठै कैवणो चाइजै कै कवितावां रै पेटै सम्पादक रै चयन री आपरी दीठ है। इणी भांत कहाणी खंड में सुदामा री चावी-ठावी कहाणी आंधै नै आंख्यां तो है ई, उण रै साथै ’सुलतान: नेकी रो सम्राट’ अर ’अखंडजोत’ ई सामल होई है। अे कहाण्यां सुदामाजी रै कथा साहित्य री प्रतिनिधि रचनावां कैयी जा सकै। उपन्यासां री बात करां तो ‘मैकती काया, मुळकती धरती’, ‘मेवै रा रूंख’ अर ‘घर-संसार’ रा अंस सामल करीज्या है। लोकचावै जातरा संस्मरण ‘दूर-दिसावर’ रो ई अेक भाग इण संचयन में पढण नै मिलै। सुदामाजी री निबंध पोथी ‘मनवा थारी आदत नै’ रा दो निबंध भी है जिण सूं ओ संचयन अेक समग्र रै नेड़ै-तेड़ै जा पूग्यो है। 

संचयन में रचनावां रो चयन घणो अबखो काम होवै, सम्पादक कुणसी रचना लेवै अर कुणसी छोड़ै ! अर जे काम ई सुदामाजी सिरखै सिरजक री साहित्य जातरा रो होवै तो पछै हाथ घालै ई कुण ! साहित्य री लगैटगै सगळी विधावां में लिखणियै सुदामाजी री रचनांवां सूं संचयन सारू छंटाई करणी घणी दोरी, पण नंद भारद्वाज इण काम नै आपरी ऊंडी अर पारखी दीठ सूं पार घाल्यो है। बांरी खेचळ रो सार ओ है कै सुदामाजी री जलमशती रै मौकै राजस्थानी रै पाठकां अर शोधार्थियां सारू अेक महताऊ दस्तावेजी पोथी सामीं आई है जिण में सुदामा-साहित्य रै लगटगै सगळै पखां नै परोटिज्यो है। लखदाद है नंदजी नै, बांरी खेचळ नै !

पण अबै सुदामाजी री सीख नै आगै बधावां। बांरै मुजब हर पोथी अर रचनाकर्म रै आलोचनात्मक पख माथै बात करणी जरूरी है, इण सूं साहित संसार रो बिगसाव होवै। इण पोथी में सैं सूं मोटी बात जिकी अखरै, बा आ कै सुदामा साहित रै सबळै पख रै पेटै खूब लिखिज्यो है पण आलोचना रै पेटै भोत कमती बात होई है जद कै सुदामाजी सदांई कैवता, ‘सरायोड़ी खीचड़ी दांतां रै लागै’। सांची बात तो आ कै जिका आलोचनात्मक आलेख पोथी में सामल होया है बां में सूं घणकरा बरसां पुराणा है अर कई ठौड़ छप्योड़ा है। जद किणी रचनाकार रै सिरजण साख रै सौ बरसां री बात करां तो नवा आलेख सामीं आवणा चाइजै, क्यूंकै बगत रै साथै सन्दर्भ बदळ जाया करै। जूनै आलेखां में सम्पादन रै बगत सामयिक बदळाव री दरकार ही जिकी नीं हो सकी। सम्पादक आं आलेखां नै, हुवै ज्यूं ई पुरस दिया है जद कै आं री निरख-परख कर’र सामयिक सुधार होवण सूं पोथी री छिब और घणी निखरती।  

पोथी री भूमिका में नंद भारद्वाज लिखै, सुदामाजी रो कविता सूं मनचींतो लगाव सदांई गाढो रैयो पण संचयन में सुदामाजी रै सैं सूं सबळै कविता संग्रै ’ओळभो जड़ आंधै नै’ माथै कोई टीप कोनी, कोई आलेख कोनी, न ही संचयन में इण कविता संग्रै री कोई बानगी है जद कै इण संग्रै री कवितावां बांचां तो ठाह पड़ै कै इण कवि कन्नै अेक न्यारी वैश्विक दीठ है जिण रै पाण बो बारीक सी बात सूं सरू होय’र काव्य संवेदना नै आकासां लग लेय जावै। लिखारा तो पग-पग छेड़ै लाधै पण आ निरवाळी दीठ भोत कमती निगै आवै। इण संग्रै री कविता ‘पाती उग्रवादी री मा री’ अर ‘विस्व सुंदरी रै मिस’ वैश्विक कविता सूं कठैई कमती कोनी। अे कवितावां सुदामाजी नै विस्व स्तरीय कवियां री पांत में खड़्या करै। संचयन में इण माथै चरचा होवण सूं सुदामा रै कवित्व रो अलायदो पख पाठकां रै सामीं आवतो।

सुदामा रै रचाव रो अेक भोत सबळो पख बां री बगत-बेगत लिखियोड़ी भूमिकावां है जिण में साहित अर सिरजक पेटै बांरी निरवाळी सोच सामीं आवै। वैश्विक साहित में कई पोथ्यां री भूमिकावां ई इत्ती चावी-ठावी होई है बै किताब नै ई कड़खै बिठावै। सुदामाजी रै सम्पादन में शिक्षा विभाग कानी सूं छप्योड़ी पोथी ‘कोरणी कलम री’ री भूमिका ई इण बात री साख भरै। इण भूमिका में सुदामाजी फगत नवै लिखारां नै कथ्य, बुणगट अर विषयां रै चयन री सीख ई नीं देवै बल्कि भासा रै मानक स्वरूप पेटै ई भोत ऊंडी बात बतावै। राजस्थानी साहित्य में लिखिजी भूमिकावां में आ सैं सूं सिरै भूमिका मानी जा सकै। नंद भारद्वाज ‘कोरणी कलम री’ रो प्रकासन बरस 1997 बतावै जद कै आ पोथी 1982 री है। सुदामाजी री लिख्योड़ी इणी तरां री निरवाळी भूमिकावां पिरोळ में कुत्ती ब्याई होवै, त्रिभुवन को सुख लागत फीको अर दूजी पोथ्यां में लाधै जिकी आपोआप में अेक मुकम्मल रचना कैयी जा सकै। सुदामा साहित रै मांय इण भूमिका पख माथै ई चरचा होवती तो पोथी री सोभा सवाई होवती।

पण सम्पादक अर सम्पादन री भी अेक सींव होया करै। उण री अबखायां नै कुण जाणै, कदै-कदै सो कीं जाणता, मानता अर चावता थकां ई मनचींती नीं हो सकै, ओ दोस तो  बिधना रै पेटै ई खतावणो पड़ै नीं पछै बात आगै कियां बधै ! कैवणो चाइजै कै ‘सिरजण साख रा सौ बरस’ पोथी नंद भारद्वाज रो अेक अमोलक संचयन है जिको सुदामा रै साहित संसार में नवा पान्ना जोड़या है। नंदजी नै इण सारू घणा-घणा रंग ! इण पोथी रै छेकड़ में सुदामाजी रै साहित्य अर बान्नै मिलिया मान-सम्मान री अेक विगत ई छप्योड़ी है जिकी घणी महताऊ है। सूर्य प्रकासन मंदिर, बीकानेर सूं छपी इण पोथी रो आवरण अर छपाई सरावणजोग है। 

-डाॅ.हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’


Tuesday, 29 August 2023

अंतस रै आंगणै उठतै भतूलिया रो रचाव

(पूनमचंद गोदारा री पोथी अंतस रै आंगणै बांचतां थकां...)

हिंदी रा जगचावा कवि गोपालदास 'नीरज' रो एक दूहो है-

आत्मा के सौंदर्य का, 
शब्द रूप है काव्य
मानव होना भाग्य है,
कवि होना सौभाग्य।

म्हारी जाण में इण सौभाग रै साथै कवि नै आखै जगती पीड़ री एक मिणिया माळा अर दरद रो दुसालो ई ओढण नै मिलै, उण सूं मुगत नीं हो सकै बो कदेई। दरद अर पीड री आ पोट उण नै बेताल दांई ढोवणो ई पड़ै। जे कोई आखतो होय'र आं भारियां नै छोड छिटका देवै, तो पछै उणनै कवि कैवै ई कुण !

सांची बात तो आ कै हर कवि रै अंतस आंगणै घरळ-मरळ चालती रैवणी चाइजै। इणी अळोच सूं मोती निपजै। सबदां रा सोनलिया मोती, जिकां री छिब मिनखपणै में बधेपो करै। कवि नै म्हूं गोताखोर मानूं जिको आपरै अंतस में गोता लगा बो'करै। गोता खावणा सोरा कोनी, सांस अर काळजा दोनूं ठामणा पड़ै एकर तो ! फेरूं ई जरूरी कोनी, मोती लाध ई जावै। कणाई चिलकता मोती, कणाई कादो अर गार, घणी बिरियां तो खाली हाथ बावड़नो पड़ै। पण सांची बात आ कै जित्ता ऊंडा, जित्ता लाम्बा गोता लागसी, बित्तो ई सांतरो रचाव सामीं आसी। किनारै उभ्यै लिखारां नै तो खंख भरिज्योड़ी सिप्यां अर फूट्योड़ा संख ई पल्लै पड़सी, जिका नै धो-पूंछ'र मेळा-मगरियां में भलंई बेच लो, अमोलक अर जगचावा नीं बण सकै बै ! अबै बात आं लिखारां माथै ई छोड़ देवां कै बान्नै कांई चाइजै !

पूनमचंद गोदारा
राजस्थानी में आं दिनां लगोलग पोथ्यां आ रैयी है । रचाव री इण कड़ी में नवी पीढी रो एक नांव है पूनमचंद गोदारा ! बीकानेर जिलै रै बडोड़ै गुसाईंसर गांम रा जाया जलम्या गोदारा अबार शिक्षा विभाग में सेवा देवै। बां री फुटकर रचनांवां तो पत्र पत्रिकावां में निगै आवती रैवै, अबै बां री पैली पोथी 'अंतस रै आंगणै' छपी है।

इण पोथी में 80 कवितावां है जिकां रा तार कणाई कसीजै अर कठैई मोळा पड़ै। पण सरावणजोग बात आ है कै गोदारा कन्नै आपरी एक निरवाळी दीठ है जिणमें कविता री संवेदना है। बान्नै लिखणै सारू अठी-उठी जोवणो नीं पड़ै, अंतस सूं उठता भतूळिया नै बै आपरी कलम रै मिस ढाबै अर कविता रचीजै । बां रा सबद चितराम छोटा होवतां थकां ई पाठकां रै हियै ऊंडा उतरै अर सोचण सारू मजबूर करै। गोदारा आं कवितावां में घर परिवार, प्रेम, प्रकृति, काण कायदा, मिनखपणो, मायड़ भासा अर आपरै ओळै-दोळै रै चितरामां नै लेय'र आपरा मंडाण मांडै। आं कवितावां में थळी री सोरम भेळै पसवाड़ा फोरती अंतस री चींत ई लाधै। बानगी देखो-

सुणां कै/बै ढक्योड़ा मतीरा है/पण मतीरा कित्ता'क दिन रैसी ढक्योड़ा/अर कित्ता'क दिन/दबसी/लड़ सूं लड़/साच है कै/ छेकड़ तो/उघड़ना है पोत/अर उघड़ना है लड़ !

मिनख रै हारयोड़ै सुभाव नै बतावती दूजी कविता 'चीकणो घड़ो' ई सांतरो रचाव है-

अब/रीस कोनी आवै/ना ई आवै कदै बांवझळा/ना घुटै मन/ना आवै झाळ/ना काढूं गाळ !/स्सो कीं सैवतां-खैवतां/नीं ठाह म्हूं/कद बणग्यो चीकणो घड़ो !

सूत रो मांचो बुणतां देख कवि गिरस्ती नै ई मांचै री उपमा देवै।
मांचै अर गिरस्त री बुणगट इण बात पर टिक्योड़ी है कै कुण सी लड़ नै दाबणो अर कुण सी नै उठावणो। मिनखा जियाजूण ईं इणी ढाळै आगै बधै।

मांचै री उठती दबती लड़ां में जियाजूण रै रंगां अर ब्याध्यां नै सोधणो ई तो कविता कानीं बधणै रो पांवडो हुवै। सबदां री न्हाई में तप्यां ई तो सरावणजोग घड़त बणै।

'अंतस रै आंगणै' री कवितावां रा सैनाण देखता भरोसै सूं कैयो जा सकै, कै आवतै बगत में गोदारा री दीठ दिनोदिन और ऊंडी होवैला, बां री कलम सूं ऊजळो रचाव सामीं आवैला। पैली पोथी सारू मायड़ भासा रा हेताळू पूनमचंद गोदारा नै घणा-घणा रंग, गाडो भर बधाइयां !
-रूंख

Thursday, 24 August 2023

ब्याधि रै निरवाळै रंगां री पुरसगारी है 'ब्याधि उच्छब'

(डाॅ. कृष्णकुमार ‘आशु रै व्यंग्य उपन्यास ‘ब्याधि उच्छब’ नै बांचता थकां...)


व्यंग्य कैवणो अर परोटणो सोरो काम कोनी, तीखी दांती सी धार भेळै बाढणै री चतराई राखणी पड़ै। थोड़ा सा ऊक-चूक होया, धार देवण री ठौड़ लेवणी पड़ै ! ओ फगत हांसी ठट्ठो कोनी, बात कैवण रो बेजोड़ ढंग है जिको खासा जगचावो है। आपणै लोक में तो पग-पग छेड़ै इण बाबत निरवाळा रंग लाधै। कुण ई कैयो, थारै ढुंगां में खेजड़ो उगग्यो, ऊथळो मिल्यो-आछी बात, छियां बैठस्यां ! दूजै बूझ्यो, कियां हो ? जवाब  मिल्यो, कियां होवणो हो ! धणियाणी बोली, रोटी जीमस्यो के ? धणी बोल्यो-थूं जीमण री बात करै, म्हूं रंधास्यूं बैंगण री सब्जी ! थे ही बतावो, कोई कांई करल्यै। सांची बात तो आ कै बात नै व्यंग्य री धार लागतां ई आकासां चढज्यै पण संकट ओ है कै बात करणिया लोग रैया ई कित्ताक ! आज घड़ी इण सूं मोटी ब्याधि किसी ?

फेर ब्याधि तो ब्याधि होवै जिण में सौ टंटा अर दोय सौ टंटेर, घणी छेड़ो तो बधती ई जावै। बा ब्याधि उच्छब कद गिणीजै ! हां, जे निजरां कठैई डाॅ. कृष्णकुमार ‘आशु’ सिरखै व्यंग्यकार री होवै तो उण ब्याधि नै उच्छब बणतां कांई जेज लागै। बो आपरी ऊंडी दीठ सूं ब्याधि रा इतरा रंग सणै सैनाण सोध लेवै कै उच्छब री रंगत लाग्यां ई सरै। डाॅ. आशु कन्नै व्यंग्य रै साथै अेक सूझवान पत्रकार री दीठ ई है जिकी आपरै ओळै-दोळै री सैंग बातां नै निरवाळै सिगै सूं बिचारै। इणी दीठ सूं डाॅ. आशु समाजू अबखायां बिच्चाळै मिनखपणै नै जीवतो राखणै री खेचळ करता, कोरोना री जगत ब्याधि नै उच्छब रो नांव देय’र व्यंग्य उपन्यास सामीं लाया है। कोरोना सूं कुण अणजाण, मिनखां री छोड़ो, सणै जिनावरां सगळा रै  गळै में आयोड़ी ! लखायो जाणै ‘पैनेडेमिक’, ‘लाॅकडाऊन’ अर ‘क्वरंटिन’ नांव रै तीन सबदां सामीं सबदकोसां रा सै सबद पांगळा होग्या। पण बीं अबखी बेळा में ई डाॅ. आशु रै मांयलो पत्रकार आपरी व्यंग्य दीठ सूं भांत-भांत रा चितराम मांड मेल्या जिकां रै पाण  ‘ब्याधि उच्छब’ पाठकां रै सामीं आयो है।

 पोथी री भूमिका लिखतां थकां चावा-ठावा लिखारा डाॅ. मंगत बादळ इण नै राजस्थानी रो पैलो व्यंग्य उपन्यास बतायो है। आ ओपती बात है क्यूंकै मायड़ भासा में फुटकर व्यंग्य रचनावां तो खासा लाधै, पोथ्यां ई ठीक-ठाक छप्योड़ी है पण उपन्यास में व्यंग्य री ओ नवो पांवडो है।

डाॅ. आशु रो ओ रचाव कोरोना ब्याधि रै दिनां री पड़ताल करतो आगै बधै। बै कोरोना नै शोले फिल्म रै खलनायक ‘गब्बर’ सूं जोड़’र देखै।  उपन्यास में 13 पाठ राखिज्या है। गोकळचंद नांव रो पत्रकार इण व्यंग्य उपन्यास रो नायक तो नीं, सूत्रधार कैयो जा सकै। बो महामारी नै देखै, उण रा रंग देखै, लोगां रा ढंग देखै अर सरकारू अेलकारां रै हिवड़ै बाजता चंग देखै। मौत रै मंडाण बिच्चाळै ई मिनख आपरी कुजात बतायां बिना नीं रैवै, इण बात नै परोटणै री खेचळ है ओ ब्याधि उच्छब !

लोकराज री भ्रष्ट व्यवस्था रा पोत उघाड़तो ओ उपन्यास उण बगत रो अेक महताऊ दस्तावेज बण्यो है। महामारी में जठै अेकै कान्नी लोग सांस लेवण सारू ताफड़ा तोड़ रैया है तो दूजै खान्नी इण ब्याधि नै उच्छब दांई मनावणियां रा भोत सा चैरा सामीं आवै। आपरी गळफांस काढणै सारू अेक महाभ्रष्ट कलेक्टर रातोरात दूजै प्रांत सूं आयोड़ै भोळै-ढाळै मिनखां नै दूजै जिलै री सींव में डांगरां दांई तगड़ देवै। अेक बाणियै रो परिवार सगळै गळी-मोहल्लै नै करोना री पुरसादी बांट देवै तो  पांच हजार रिपिड़ा देय’र बस में सफर करणियो बिस्यो ई अेक दूजो चैरो कोरोना रो कैरियर बणै अर सगळै बास नै ल्याड़ देवै।

इण उपन्यास में डाॅ. आशु गोकळचंद नांव रै किरदार साथै पूरो न्याव करयो है जिको डाक्टरां सूं लेय’र खुद आपरी बिरादरी री सांगोपांग खबर लेवतो जाबक ई नीं संकै। आज घड़ी उण सिरखा पत्रकार अणबसी सूं सै छळ-छंद देखै अर बांरा पोत उघाड़नै री जबरी खेचळ करै पण सत्ता रा चींचड़ बान्नै जाबक ई नीं धारै। आशु रो गोकळचंद ई पूरै उपन्यास में घणाई ताफड़ा तोड़ै पण कलेक्टर सूं लगाय’र सत्ता रा दलाल उण री पार ई नीं पड़न देवै।

इण उपन्यास रो सूत्रधार सोसल मीडिया रै खतरां सूं सावचेत रैवण री सीख ई देवै जो कोई लेवै तो ! उणरी दीठ में व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी तो चालती फिरती धारा तीन सौ दो है जिकी चावै जणाई किणी नै भी अंदर करवा सकै। लाॅकडाऊन री आछी-माड़ी बातां रै मिस इण उपन्यास रो कथानक पीड नै परोटता थकां मिनखपणै रा पोत उघाडै़ अर हळंवै-हळंवै आगै बधै। छेवट म्हे तो चाल्या म्हारै गांम... री तर्ज माथै आपरी बात पूरी करै।

‘डाॅ. आशु’ इण पोथी रो समर्पण महामाया रै नांव सूं करयो है ज्यांरै पुन परताप सूं ब्याधि अर पोथी दोनूं बापरी। इण उपन्यास री बुणगट सांतरी है अर भासा ई सरावण जोग है। अठै इण बात रो जिकरो करणो जरूरी है कै डाॅ. आशु री मायड़ भासा पंजाबी है पण बै बाळपणै सूं ई राजस्थानी माहौल में पाळ्या पोखिज्या, जिण सूं बान्नै राजस्थानी लिखणै बाबत कोई अबखाई नीं। आ गुमेज री बात है। इंडिया नेटबुक्स सूं छप्योड़ी इण पोथी री छपाई अर छिब सरावणजोग है। पोथी रो मोल ई फगत 200 रिपिया राखिज्यो है जिको समैं देखतां कीं घणो कोनी। बात रा टका लागै ई पछै !

-डाॅ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’

Monday, 24 July 2023

युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं गहलोत : दुष्यंत चौटाला


-जेजेपी की किसान महापंचायत में उमड़ा किसानों और समर्थकों का सैलाब


- पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वी मील ने अपार जनसमर्थन के साथ दिखाई अपनी राजनीतिक ताकत

सूरतगढ़। जननायक जनता पार्टी
(जेजेपी) की यहां पुरानी धान मंडी में आयोजित किसान महापंचायत में प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वीराज मील ने अपनी राजनीतिक ताकत दिखा दी है। उमस और गर्मी के बावजूद इस सभा में हजारों समर्थकों ने उपस्थिति दी। इस महापंचायत में राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष व हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला सहित कई पदाधिकारियों ने शिरकत की।


इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने राजस्थान के बदत्तर हालात के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए अशोक गहलोत को फेलियर मुख्यमंत्री करार दिया है। उन्होंने कहा कि इस सरकार को न किसानों की चिंता है और ना ही युवाओं व महिलाओं की फीक्र है पेपर लीक, खनन माफिया, महिला अत्याचार आदि में यह सरकार अव्वल है। साढ़े चार साल के कार्यकाल में कांग्रेस सरकार ने राजस्थान को गर्त मे डाल दिया है। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि एक ही घर से कई जनों का पुलिस भर्ती में चयन होना ईमानदारी से तैयारी करने वाले युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ है। इसी तरह एक संत के सत्याग्रह पर गहलोत सरकार ने एक बारगी तो दिखावे के लिए खनन माफिया पर नकेल कसी, लेकिन बाद में पिछले दरवाजे से एंट्री करवाकर वापिस माफियाओं का राज कर दिया।


चौटाला ने कहा कि नेशनल क्राईम ब्यूरो की रिपोर्ट में राजस्थान में महिला अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। हरियाणा सरकार को किसानों की मसीहा बताते हुए दुष्यंत चौटाला ने कहा कि वहां पर एक एकड़ फसल खराब होने पर 30 दिनों में 15 हजार रुपए का मुआवजा सीधे खाते में आरटीजीएस करवा दिया जाता है और 19 तरह की फल-सब्जी के कम दाम मिलने पर सरकार भरपाई करती हैं। इसके अलावा 13 तरह की फसल को समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है। जबकि राजस्थान में ऐसा कुछ भी नहीं है। इसी कारण किसानों को फसलों की लागत भी नहीं मिलने से उनकी हालत खराब होती जा रही है। उन्होंने कहा कि हरियाणा की सत्ता में 50 फीसदी भागीदारी महिलाओं को दी जाती है और सभी तरह प्राईवेट संस्थानों में दो-तिहाई भर्ती हरियाणा के युवाओं की होती है और वृद्धावस्था पेंशन भी राजस्थान के एक हजार रुपए के मुकाबले 2750 रूपए प्रतिमाह दी जाती है। चौटाला ने कहा कि ये सभी सुविधाएं राजस्थान में लेने के लिए जेजीपी की सत्ता में भागीदारी होनी जरूरी है। इसलिए पृथ्वीराज मील को यहां से विजयी बनाकर भेजे, फिर राजस्थान में किसानों, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों की हितैषी सरकार सुलभ हो सकेगी। उन्होंने गांवों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए वहां के देवालयों में खाली पड़े कमरों में पुस्तकालय खोलने का सुझाव दिया।



प्रदेशाध्यक्ष पृथ्वीराज मील ने उपस्थित जनसमूह का आभार जताते हुए कहा कि उनके छोटे से बुलावे पर हजारों की तादाद में लोगों ने पहुंच कर उनकी जिम्मेदारी व जवाबदेही और बढ़ा दी है। उन्होंने कहा कि वे कोई वादा नहीं करेंगे, सिर्फ बुलंद व सकारात्मक इरादे लेकर आपके बीच आए हैं और आपके सहयोग से सूरतगढ़ का राजनीतिक परिदृश्य बदलेंगे। मील ने कहा कि उन्होंने जिला प्रमुख के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगने दिया। और विश्वास दिलाता हूं कि आपकी भावनाओं को कभी ठेस नहीं लगने दूंगा।

कार्यक्रम में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव संजय चोपड़ा, राष्ट्रीय प्रधान महासचिव दिग्विजय सिंह, प्रदेश प्रधान महासचिव रामनिवास यादव, युवा प्रदेशाध्यक्ष प्रतीक महरिया, अल्पसंख्यक मोर्चा के मोहम्मद फारूख, हरियाणा प्रभारी अशोक वर्मा आदि ने भी शिरकत की।

उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का विशाल माला पहनाकर गर्मजोशी से स्वागत किया गया। अंत में सालासर बालाजी की तस्वीर भेंट कर सम्मान किया गया। महापंचायत की शुरुआत में लाफ्टर चैम्पियन ख्याली सहारण, विख्यात हरियाणवी पॉप सिंगर एमडी, आरजे-13 जगजीत सिंह, जिन्नी सिंगर ने अपनी प्रस्तुतियों से समा बांध दिया। 

Tuesday, 18 July 2023

पृथ्वी मील बदल सकते हैं सूरतगढ़ के समीकरण

- जेजेपी और भाजपा के राष्ट्रीय गठबंधन से उड़ी स्थानीय भाजपा नेताओं की नींद


- व्यक्तिगत लोकप्रियता के मामले में सबसे आगे हैं पृथ्वी मील


कहावत है, कभी-कभी चींटी भी हाथी पर भारी पड़ जाती है और देखते ही देखते संभावित परिणाम बदल जाते हैं. जननायक जनता पार्टी के प्रवेश के बाद सूरतगढ़ की राजनीति में भी यदि ऐसा कुछ हो जाए तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए. राजनीति में छोटे क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को आप भले ही हवा में उड़ाने की कोशिश करें लेकिन हकीकत यह है कि भारतीय राजनीति में इन दलों का महत्व निरंतर बढ़ रहा है. बंगाल और दक्षिण की राजनीति तो क्षेत्रीय दल ही तय करते रहे हैं. पड़ोसी राज्य हरियाणा और पंजाब में भी शिरोमणि अकाली दल और जेजेपी का अपना वोट बैंक है जो सत्ता को प्रभावित करता है.

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जिस हिसाब से छोटे क्षेत्रीय दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रणनीति तैयार करने के लिए आमंत्रित किया है उससे यह स्पष्ट है कि भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का महत्व कम नहीं आंका जा सकता. विपक्ष तो अधिकांशत: क्षेत्रीय दलों का ही गठजोड़ हैं. भारत की विविधता को देखते हुए क्षेत्रीय दलों के यह गठजोड़ समय की आवश्यकता कहे जा सकते हैं.

सूरतगढ़ की राजनीति में जननायक जनता पार्टी ने पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वी मील का नाम उछाल कर सभी संभावित प्रत्याशियों के खलबली मचा दी है. पार्टी ने उन्हें न सिर्फ प्रदेशाध्यक्ष घोषित किया है बल्कि उनके समर्थन में 24 जुलाई को पुरानी धान मंडी में किसान महापंचायत भी आयोजित कर रही है. इस सभा में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अजय सिंह चौटाला और हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला समेत कई दिग्गज नेताओं के आने की उम्मीद है. संभावनाएं जताई जा रही है कि जेजेपी और पृथ्वी मील का यह शक्ति प्रदर्शन सूरतगढ़ के समीकरण बदल सकता है.


सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में यदि किसी विधायक की व्यक्तिगत लोकप्रियता की बात करें तो विजयलक्ष्मी विश्नोई का नाम सबसे ऊपर आता है. उनके बाद जितने भी विधायक बने उन सबकी लोकप्रियता एक वर्ग विशेष तक सीमित रही, कभी भी वे साधारण जनमानस में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए. यही कारण है कि पार्टियां उन पर अगले चुनाव में दांव लगाने से बचती रही. जहां तक पृथ्वी मील की बात है, उन्हें भले ही विधायक बनने का मौका ना मिला हो लेकिन उनकी लोकप्रियता दूसरे प्रत्याशियों के मुकाबले कहीं बेहतर है. जिला प्रमुख के रूप में उनका कार्यकाल आज भी लोग याद करते हैं. बच्चे हों या बड़े बूढ़े, स्त्री हो या पुरूष, नौजवानों से लेकर सभी आयु वर्गों और जातियों में उनकी बराबर पैठ है. उनकी मिलनसारिता और व्यवहार कुशलता सबको प्रभावित करती है. सबसे बड़ी बात आमजन की सहानुभूति उनके प्रति हमेशा रही है जिसका सीधा फायदा उन्हें मिल सकता है. उनकी ग्रामीण जन सभाओं में उमड़ रही भीड़ यही संकेत देती है.

राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. सभी राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नरेंद्र मोदी 2024 के चुनाव में अपनी पार्टी को जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. लोकसभा चुनाव से पूर्व होने वाले बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ की कोई संभावना नहीं छोड़ना चाहती. फिर जेजेपी के साथ तो हरियाणा में उनका पुराना गठबंधन है, लिहाजा राजस्थान चुनाव में समझौते के तौर पर भाजपा यदि दो तीन सीटें छोड़ भी दे तो बदले में उन्हें लोकसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है. जेजेपी के लिहाज से सूरतगढ़ सीट सर्वाधिक उपयुक्त भी है जहां कांग्रेस और भाजपा दोनों को साधना अधिक आसान है. यहां कांग्रेस में कमजोर संगठनात्मक ढांचे के चलते नगरपालिका मंडल भी उनके हाथ से निकल चुका है वहीं भाजपा में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है. ऐसी स्थिति में पृथ्वी मील जेजेपी के लिए एक उपयुक्त प्रत्याशी हैं जो राजस्थान विधानसभा में उनका खाता खोल सकते हैं.

चुनाव परिणाम चाहे कुछ भी रहे लेकिन इतना तय है कि पृथ्वी मील की उपस्थिति ने सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र के समीकरण बदल दिए हैं.

-डॉ.हरिमोहन सारस्वत

Thursday, 6 July 2023

चारण के राजस्थानी काव्य संग्रह ‘अगनसिनान’ के हिंदी अनुवाद का लोकार्पण


विख्यात समालोचक डॉ. नीरज दइया ने किया है अनुवाद

बीकानेर, 6 जुलाई। राजस्थानी के महत्त्वपूर्ण कवि डॉ. अर्जुन देव चारण की कविताओं को अनुवाद के माध्यम से हिंदी के समृद्ध पाठक वर्ग तक पहुंचाने का डॉ. नीरज दइया ने सराहनीय कार्य किया है। अनुवाद दो भाषाओं के मध्य सेतु का कार्य करता है, यह प्रक्रिया निरंतर गतिशील रहनी चाहिए।

प्रतिष्ठित कवि-चिंतक डॉ. नंदकिशोर आचार्य ने ये उद्गार सुपरिचित कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया द्वारा डॉ. अर्जुन देव चारण के राजस्थानी काव्य संग्रह ‘अगनसिनान’ के हिंदी अनुवाद-कृति के लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए।

डॉ. आचार्य ने कहा कि साहित्यिक रूप से राजस्थानी को मान्यता मिली हुई है। साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष राजस्थानी कृतियों को पुरस्कृत करती रही है किंतु संवैधानिक मान्यता के लिए राजस्थानी साहित्यकार वर्षों से संघर्षरत हैं। उन्होंने कहा कि कविता, कहानी आदि साहित्यिक विधाओं में निरंतर सृजन करने के साथ-साथ राजस्थानी लेखकों को विज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, आर्थिकशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर भी मौलिक लेखन करना चाहिए तथा अनुवाद के माध्यम से भी इन विषयों की पुस्तकें राजस्थानी पाठकों तक पहुंचाने के प्रयास करने चाहिए।

नेगचार संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि सरल विशारद ने कहा डॉ. नीरज दइया प्रतिभाशाली साहित्यकार हैं जो मौलिक लेखन के साथ-साथ अनुवाद कार्यों को भी गंभीरतापूर्वक करते रहे हैं। आपने नंदकिशोर जी की कविताओं का हिंदी में राजस्थानी में अनुवाद किया है जो एक बहुत बड़ा कार्य है इसी प्रकार अर्जुन देव चारण की कविताओं का हिंदी में आना एक बड़ा कार्य है।

विशिष्ट अतिथि पंडित जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष बुलाकी शर्मा ने कहा कि  डॉ नीरज दइया वर्षों से अनुवाद कार्य में संलग्न हैं। उन्होंने राजस्थानी और हिंदी में परस्पर अनुवाद से देश में जहां राजस्थानी साहित्य को दूर दूर तक पहुंचाया है वहीं भारतीय साहित्य को राजस्थानी में लाकर अनुवाद को सृजनात्मकता के अनेक आयाम प्रस्तुत किए हैं। अगनसिनान की लंबी कविताएं हिंदी के माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं में जाएगी तब निसंदेह यह प्रमाणित होगा कि राजस्थानी में श्रेष्ठतम साहित्य सृजन हो रहा है।

डॉ नीरज दइया ने अनुवाद-कार्य के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि इस संग्रह में डॉ. अर्जुन देव चारण की पौराणिक और ऐतिहासिक स्त्री चरित्रों के मनोभावों को लेकर सृजित लंबी कविताएं हैं। इनका अनुवाद करते यूं लगता रहा जैसे ये स्त्री चरित्र साक्षात उपस्थित होकर अपनी व्यथा-कथा बता रहीं हैं। ये कविताएं हिंदी पाठकों को निःसंदेह गहरे तक संवेदित और उद्वेलित करेंगी।

युवा आलोचक डॉ ब्रज रतन जोशी ने कहा कि डॉ. अर्जुन देव चारण को प्रमुखत एक नाटककार के रूप में जाना-पहचाना जाता है किंतु वे बड़े कवि और आलोचक के साथ चिंतक के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। अगनसिनान की कविताएं उनके कवि रूप को दूर दूर तक ले जाने में सहयोग कर राजस्थानी कविता की कीर्ति में श्रीवृद्धि करेगी। आभार प्रदर्शन सूर्यप्रकाशन मंदिर के निदेशक डॉ प्रशांत बिस्सा ने व्यक्त किया

Monday, 15 May 2023

'मंडी गैंग' : सपनों की रिंग रोड का सुहाना सफर


(प्रेमलता के उपन्यास को पढ़ते हुए...)


जब किसी रचना में कथ्य और बिंब सहज होने के साथ परिचित से लगने लगें तो उसमें पाठकीय उत्सुकता जागना स्वाभाविक है। ऐसे कथानक साधारण होने के बावजूद पाठक को बांधने की क्षमता रखते हैं। यूं भी कहा जा सकता है कि साधारण चीजों में ही विशिष्टता छिपी रहती है। बात लेखन की हो तो यह तथ्य और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

प्रेमलता सोनी का नया उपन्यास 'मंडी गैंग' इसी बात की साख भरता है। अपने पहले उपन्यास में ही प्रेमलता जी ने लेखकीय कौशल का परिचय दिया है। उपन्यास की भाषा और शिल्प सरल होने के साथ सुग्राह्य है तथा अनावश्यक जटिलता से बचा गया है। जरूरत के अनुसार 'बोल्ड' शब्द भी काम में लिए गए हैं। उपन्यास का कथानक कहीं भी टूटता नहीं है और मंथर गति से पाठक को साथ बहा ले जाता है।


सब्जी मंडी से शेयरबाजार तक की महत्वाकांक्षी उड़ान भरते इस उपन्यास के किरदारों को बेहद खूबसूरती के साथ गढ़ा गया है। हर पात्र का अपना एक अलग अंदाज है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति है जो किसी दूसरे पर आश्रित नहीं है। कथानक में एक ओर सब्जी मंडी का आंतरिक वातावरण प्रस्तुत किया गया है तो वहीं ब्याज का धंधा करने वाले छोटे फायनेंसर्स की चाल और चरित्र को उभारा गया है। सामाजिक रूप से कमोबेश हर शहर में ऐसे किरदार देखे जा सकते हैं।

उपन्यास का नायक जितेश है जिसकी जिंदगी को रिंग रोड के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस रोड पर उसे मंचन, गीता, इंदिरा, ओमी, इरशाद, रूपेश और पंकज सरीखे किरदार मिलते हैं जिनके साथ कथानक आगे बढ़ता है। पैसा कमाने की लालसा किसे नहीं होती लेकिन उसके लिए जुनून पैदा करना पड़ता है। इस जुनून का एक रास्ता अति महत्वाकांक्षा के रूप में बर्बादी की तरफ भी जाता है। जितेश का किरदार इसका जीवंत उदाहरण है। जितेश की पत्नी बरखा के रूप में लेखिका ने मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों में महिलाओं की स्थिति का बखूबी चित्रण किया है। सब्जी मंडी में मजदूरी करने वाली महिलाओं के चरित्र भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं । उनके जीवन संघर्ष को बेहतर ढंग से उभारा गया है।

इस उपन्यास को पढ़ते समय पाठक अनायास ही जयपुर के माहौल से परिचित हो जाता है। चांदपोल, नाहरी का नाका, गोविंद देव जी मंदिर और आमेर महज शब्द भर नहीं हैं बल्कि एक पूरी सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए हैं। उनके आसपास पसरे हुए यथार्थ और संवेदनाओं को इस उपन्यास के ताने-बाने में बखूबी पिरोया गया है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जयपुर के कलमकार मंच द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास महिला लेखन के क्षेत्र में नई उम्मीद जगाता है। प्रेमलता जी ने इस उपन्यास के माध्यम से अपनी लेखन प्रतिभा परिचय दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए आने वाले दिनों में उनकी कलम से और बेहतर रचाव पढ़ने को मिलेगा।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Saturday, 15 April 2023

मानवीय व्यवहार का बखूबी परीक्षण करती हैं पटियालवी की लघु कथाएं


( दविंदर पटियालवी के नए लघुकथा संग्रह 'उड़ान' के बहाने...)


दविंदर पटियालवी पंजाबी के सुपरिचित लघुकथाकार है। एक समर्पित रचनाकार के तौर पर वे लघु कथा के क्षेत्र में पिछले 30 सालों से काम कर रहे हैं। 'उड़ान' उनका दूसरा लघु कथा संग्रह है। ये कहानियां मूलत: पंजाबी में कही गई हैं, जिनका हिंदी अनुवाद हरदीप सब्बरवाल ने किया है। इससे पूर्व इसी विधा में 'छोटे लोग' शीर्षक से उनका एक और लघु कथा संग्रह प्रकाशित है। उनकी रचनाएं विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं । रेडियो और टीवी पर भी पटयालवी की उपस्थिति रहती है। पंजाबी साहित्य सभा, पटियाला के सक्रिय सदस्य के रूप में 'कलम काफिला' और 'कलम शक्ति' का उन्होंने संपादन किया है । वर्ष 2012 से वे पंजाबी की प्रतिष्ठित लघुकथा पत्रिका 'छिण' का संपादन कर रहे हैं।

कम शब्दों में सार्थक अभिव्यक्ति लेखक को विशिष्ट पहचान देती है। लोक में कहा भी जाता है कि 'बात रा तो दो ई टप्पा होवै...।' लघु कथा इसी दृष्टि से उपजी एक साहित्यिक विधा है जिसमें लेखक किसी एक संदर्भ को पकड़ कर पाठक की संवेदना तक पहुंचना चाहता है। जीवन की आपाधापी में पल- प्रतिपल हम अनेक ऐसी बातों, घटनाओं, और तथ्यों से गुजरते हैं जो घड़ी भर के लिए हमारी संवेदना को छूती है, हमें विचलित करती है। अगले ही पल जीवन आगे बढ़ जाता है लेकिन इन घटनाओं और तथ्यों में छिपी किसी एक बिंदू को अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से पकड़कर कलमबद्ध करना ही लघुकथा का आधार है। आज के दौर में लघु कथाएं आधुनिक साहित्य की पसंदीदा विधा बन चुकी हैं।

पाकिस्तान के लघु कथाकार और वरिष्ठ पत्रकार मुब्बशिर जैदी इस विधा को व्यक्ति की तात्कालिक संवेदना से जोड़ने की बात कहते हैं जो दिलो दिमाग पर देर तक छाई रहती है । उनके अनुसार यूरोप में तो पचपन शब्दों की लघुकथाओं के प्रयोग बेहद सफल रहे हैं और इस विधा में बेहतर सृजन हुआ है।

एक उपन्यास में घटनाओं और तथ्यों की श्रंखला का विस्तार रहता है जबकि कहानी विधा इस विस्तार को सीमित दायरे में बांधती है। लघुकथा तो इस सीमित दायरे को भी छोटा बनाकर देखने में यकीन रखती है। इस विधा की खूबी यह है कि एक समय में व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति और संवेदनाएं किसी एक खास बिंदु अथवा घटना पर केंद्रित कर पाने में सफल होता है।

दविंदर पटियालवी
'उड़ान' संग्रह की लघु कथाओं की बात करें तो इसमें कुल 51 लघु कथाएं सम्मिलित हैं। इन कथाओं को पढ़ते हुए पाठक का अनायास ही लेखकीय दृष्टि से परिचय हो जाता है जो सरल, संयमित और समर्पित है। इसी दृष्टिकोण के चलते ये लघुकथाएं भौतिक यथार्थ को अभिव्यक्त कर पाने में सफल हुई हैं। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, एलिंग भेद और माननीय व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को लेकर रची गई इन कथाओं से पाठक स्वत: ही जुड़ता चला जाता है। बानगी के तौर पर उनकी लघुकथा 'फर्क' को देखिए -

देश के प्रसिद्ध नेताजी हेलीकॉप्टर उड़ान के वक्त अचानक खराब हुए मौसम की वजह से लापता हो गए। प्रदेश की पुलिस फौज और सारा प्रशासनिक अमला हेलीकॉप्टर की तलाश में जी जान से जुट गया ।चारों और इस बात को लेकर हाहाकार मच गई ।

इतने में खबर आई कि पास ही उफनती नदी की चपेट में 2 गांव डूब चुके हैं। शाम हो चुकी थी, लिहाजा प्रशासन ने अगले दिन सुबह कार्यवाही करने का आदेश दिया और खुद रात के अंधेरे में पीड़ितों को मौत के मुंह में छोड़कर गायब हो गया।

इसी प्रकार खिलौने, हिसाब-किताब, सबक, कंस, आदर, प्रश्न, एक नई शुरुआत और अपशकुन लघु कथाएं पाठक के समक्ष बेहतर बिंब खड़ा करती हैं। लघु कथा 'पछतावा' में माननीय व्यवहार को बेहद शानदार ढंग से प्रस्तुत किया गया है तो वहीं 'उड़ान' शीर्षक की कथा एक पिता की अपनी बेटी के प्रति दोघाचिंती से रूबरू करवाती है।

चूंकि पटियालवी खुद लंबे समय से लघु कथाओं का संपादन करते रहे हैं, इसलिए वे साहित्यिक बारीकियों को बखूबी जानते हैं। उनका यह लेखकीय अनुभव इस संग्रह में झलकता है। सुकून देने वाली बात यह है कि इस संग्रह के माध्यम से हिंदी का पाठक पंजाब की लघुकथाओं से परिचित हो रहा है। अनुवादक हरदीप सब्बरवाल भी इस मायने में बधाई के पात्र हैं।

बोधी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'उड़ान' लघु कथा संग्रह अपनी विशिष्ट पहचान बनाएगा, यही कामना है उम्मीद की जानी चाहिए, आने वाले दिनों में दविंदर पटियालवी और बेहतर रचाव से साहित्य संसार को समृद्ध करेंगे।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Monday, 10 April 2023

बीड़ी जलई ले जिगर से पिया, जिगर में बड़ी आग है !


(मीडिया के आइने में चेहरा देख बौखलाए विधायक के नाम चिट्ठी)


शुक्रिया कासनिया जी !

आपने प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष राजेंद्र पटावरी को पढ़ा तो सही, पढ़कर तिलमिलाना तो स्वाभाविक है। इतनी खरी-खरी सुनने के बाद, वजूद और जमीर रखने वाले हर आदमी को कीड़ियां सी चढ़नी चाहिए, आपको चढ़ी, भाई राजेंद्र का लिखना सार्थक हुआ।

आपकी उम्र और राजनीतिक अनुभव का सम्मान अवश्य होना चाहिए, यही हमारे संस्कार हैं। लेकिन विधायक के रूप में आपके इस कार्यकाल की कमियां सबको अखरती हैं। सच्चाई यह है कि विपक्षी विधायक के तौर पर आप खरे उतर ही नहीं पाए। जिले के लिए चल रहे संघर्ष में एक विधायक यदि पत्थर मारकर लाठीचार्ज करवाने की बात करे तो उसे नौसिखिया बयान ही कहा जाएगा। यदि वाकई आप में कुछ करने का माद्दा होता तो 19 जिलों की घोषणा के वक्त विधानसभा में ही सत्ता के मुंह पर अपना त्यागपत्र दे मारते और जनता के बीच संघर्ष की हूंकार भरते। कम से कम सूरतगढ़ की आवाज बुलंद होती और इलाके की जनता आपको सर आंखों पर बिठा लेती। लेकिन आप जाने किस अज्ञात भय के चलते निर्णय ले ही नहीं पाए। दूसरों के वक्तव्य को आप छींट पाड़ने की उपमा देते हैं, खुद आप लट्ठा भी नहीं पाड़ पाए, लट्ठ ही पाड़ लेते !


इसी मंच से कुछ रोज पहले आपने कहा था कि आपको कांग्रेस में शामिल होने की शर्त पर सूरतगढ़ को जिला बनाने का न्योता दिया गया था। यदि यह वाकई सच है तो आपने सूरतगढ़ का वो नुकसान कर दिया, जो सदियों तक याद रखा जाएगा। आज लोग निजी स्वार्थों के लिए पार्टियां बदल रहे हैं लेकिन आप इलाके के लिए ऐसा अनूठा त्याग करते तो नया इतिहास लिखा जाता। अफसोस, आपने पार्टी हितों के लिए अपने विधानसभा क्षेत्र की अनदेखी करते हुए एक बेहतरीन मौका गंवा दिया।

यदि आप प्रेस की आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकते तो आपको विधायकी त्याग कर कपड़े की दुकान खोल लेनी चाहिए या नरमा बीज लेना चाहिए। जिस जनता ने आपको सिर माथे पर बिठाकर विधानसभा में भेजा है उसे आप बेवकूफ बनाने की कोशिश करेंगे तब सुनना तो पड़ेगा ! समझना भी पड़ेगा कि -

तुमसे पहले जो शख्स यहां तख्तानशीं था
उसे भी अपने खुदा होने का इतना ही यकीं था.

एक बात और, मौके के विधायक आप हैं न कि राजेंद्र भादू, अशोक नागपाल, या गंगाजल मील। कहा तो आपको ही जाएगा क्योंकि आपका दायित्व इन सबसे कहीं बड़ा है। अपने कद को मजबूत करने के लिए कुछ ठोस निर्णय लेने की सोचिए।

संघर्ष के इस दौर में होना तो यह चाहिए था कि आप सबसे बड़े जनप्रतिनिधि होने के नाते आंदोलन का नेतृत्व करते, उसे सही दिशा प्रदान करते लेकिन आप अपना वोट बैंक को बचाने की जुगत में लगे रहे जबकि सच्चाई यह है कि आपका वोट बैंक कब खिसक गया आपको पता ही नहीं चला। खुद आपकी पार्टी में इतने गुट बन गए कि आप गिनती नहीं कर सकते।

मीडिया ने अपना काम कैसा किया है, उसे किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। आज भी इस देश की जनता आप नेताओं से कहीं अधिक, खबरनवीसों की बात पर यकीन करती है। आपने राजेंद्र पटावरी को गोदी मीडिया मानने की भूल कर दी है, जो ना काबिले बर्दाश्त है।

खुद सक्षम होने के बावजूद आप आयोजन समिति का मुंह ताकते हैं। उनसे बचकाना सवाल पूछते हैं, 'कितने आदमी, कितने दिन लाने हैं।' आप खुद तय क्यों नहीं करते ? संघर्षशील लोगों को जयपुर ले जाकर सरकार से सीधे मुद्दे की बात क्यों नहीं करते ? याद रखिए, जयपुर का विधायक निवास आपका नहीं, इस इलाके की जनता का है, यदि वहां 10 दिन रुकना भी पड़े, तो कहां दिक्कत है ! अमराराम जैसे संघर्षशील विधायकों से सीख लीजिए जिन्हें उनके इलाके के लोग आंखों का तारा बनाकर रखते हैं। सूरतगढ़ जिला बनाओ के संघर्ष में लगे मुट्ठी भर लोगों का मार्गदर्शन तो ठीक ढंग से कर दीजिए।

अगर कुछ ज्यादा कह दिया है तो दिल पर ना लें। जिस दिन आप वाकई जिम्मेदार जनप्रतिनिधि होने का दायित्व निभाएंगे, यही प्रेस आप के सम्मान में खड़ी होगी। प्रेस का मुंह खुलवाने की बजाय यथार्थ के धरातल पर काम करना शुरू कीजिए। सूरतगढ़ जिला बनेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना जान लें-

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध.

सादर
डॉ. हरिमोहन सारस्वत
अध्यक्ष,
प्रेस क्लब, सूरतगढ़

Saturday, 1 April 2023

जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है !


(सूरतगढ़ जिला बनाओ संघर्ष)

कल अपेक्स मीटिंग हॉल में जिला बनाओ संघर्ष समिति की स्टेयरिंग कमेटी की बैठक में प्रेस क्लब की ओर से सूरतगढ़ के सभी नेताओं को मर्यादित ढंग से समझाने की कोशिश की थी. उस चेतना का असर यह हुआ कि शाम होते होते आंदोलन का स्वरूप बदल गया. कुछ युवा और जुझारू लोग पुराने हाउसिंग बोर्ड की टंकी पर जा चढ़े और सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग का नारा बुलंद किया.


प्रशासन और पुलिस इस घटनाक्रम से एक बार तो सकते में आ गए. आनन-फानन में फायर ब्रिगेड की गाड़ी, एंबुलेंस, नागरिक सुरक्षा के सेवा कर्मी, पुलिस जाब्ता सभी चुस्त-दुरुस्त होकर घटनास्थल पर पहुंच गए. टंकी पर छात्र नेता रामू छिंपा, टिब्बा क्षेत्र के जुझारू नौजवान राकेश बिश्नोई, शक्ति सिंह भाटी, सुमित चौधरी अशोक कड़वासरा, अजय सारण, कमल रेगर 100 फुट ऊंची टंकी पर चढे नारे बुलंद कर रहे थे. इन युवाओं के इस कदम ने आंदोलन को एक नया रूप दिया है.

देखते ही देखते वार्ड नंबर 25-26 सूरतगढ़ जिला बनाओ आंदोलन का एक नया केंद्र बन गया जहां भीड़ जुटने लगी. वार्ड के लोगों ने आंदोलनकारियों के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था की. रात को इंद्र भगवान ने भी अपने रंग दिखाए, तेज बारिश के साथ सर्द हवाएं भी चली लेकिन नौजवानों ने सूरतगढ़ को जिला बनाने के आंदोलन में गर्मी ला दी है.

इस आंदोलन में अब 4 केंद्र बन चुके हैं. बीकानेर पीबीएम अस्पताल में पूजा छाबड़ा लगातार आमरण अनशन पर है. सूरतगढ़ के ट्रॉमा सेंटर में जुझारू उमेश मुद्गल की भूख हड़ताल दसवे दिन पहुंच गई है. प्रताप चौक पर संघर्षशील नेता बलराम वर्मा ने कमाल संभाल रखी है. चौथा और मजबूत केंद्र नौजवानों ने बना दिया है. युवाओं की इच्छा शक्ति को देखते हुए लगता है कि आंदोलन का यह केंद्र आने वाले दिनों में और मजबूत होगा.

देखना यह है कि सूरतगढ़ में विधायक बनने का सपना देख रहे दूसरे नेता और अन्य जनप्रतिनिधि इस आंदोलन में अपनी कैसी भागीदारी निभाते हैं. इस यज्ञ में सभी जागरूक लोगों को अपना योगदान देने की जरूरत है. चुनावी साल में कांग्रेस सरकार जन भावनाओं को कितना महत्व देती है उनका यह निर्णय आगामी सरकार बनाने में होगा. अशोक गहलोत लोकप्रिय और जन नेता के रूप में जाने जाते हैं, उन्हें सूरतगढ़ के मामले में संवेदनशील होकर निर्णय लेना चाहिए. 

Thursday, 30 March 2023

उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है !


(जिला बनाओ अभियान का संघर्ष )

आज का घटनाक्रम कुछ यूं चला कि रात्रि लगभग 3:00 बजे 8 दिन से 'सूरतगढ़ जिला बनाओ' अभियान के अंतर्गत आमरण अनशन कर रहे उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ को पुलिस ने उठा लिया. संवेदनहीन प्रशासन ने उन्हें जिला चिकित्सालय, श्रीगंगानगर रैफर कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली. इन योद्धाओं को गाड़ी में बिठाकर भगवान भरोसे छोड़ दिया गया. यहां तक कि उनकी देखरेख के लिए कोई पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. जिला चिकित्सालय में वे दोनों अव्यवस्था के मारे अकेले बैठे रहे. नर्सिंग स्टाफ ने उनकी सुध तक नहीं ली और थक हार कर वे रोडवेज बस में बैठकर आठ बजे सूरतगढ़ लौट आए.



घटना की जानकारी मिलते ही शहर के संघर्षशील लोग, विधायक पूर्व विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि धरना स्थल पर पहुंचे और प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया. जिला कलेक्टर से लेकर एसडीएम, तहसीलदार और पुलिस प्रशासन सबको इस घोर लापरवाही के लिए लताड़ा गया. गुस्साए साथियों ने प्रताप चौक पर जैसे ही जाम लगाया अधिकारी और पुलिस सभी दौड़े आए और अपनी गलती स्वीकारने लगे. जनाक्रोश को देखकर मौके पर उपस्थित उपखंड अधिकारी ने माफी मांगते हुए दोषी तहसीलदार और कर्मचारियों की लापरवाही के खिलाफ विभागीय जांच का भरोसा दिलाया और भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना होने की बात कही.

परिणाम यह रहा कि पुलिस ने दोनों आंदोलनकारियों को पूरी जिम्मेदारी के साथ अब सूरतगढ़ ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवा दिया है जहां इलाज के साथ-साथ उनका अनशन भी जारी है. सूरतगढ़ जिला बनेगा या नहीं, मुझे नहीं पता, लेकिन इतना तय है कि उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है. अन्याय और संवेदनहीन प्रशासन को चेताने के लिए संभावनाओं के शहर में योद्धाओं की कमी नहीं है. इस संघर्ष में खड़े हर व्यक्ति को सादर प्रणाम, जिसने अपना योगदान दिया, और लगातार दे रहे हैं. अब आमरण अनशन की डोर जुझारू नेता बलराम वर्मा ने संभाली है अपनी घोषणा के मुताबिक उन्होंने आज से भूख हड़ताल शुरू की है. पूजा छाबड़ा द्वारा जगाई गई इस अलख में उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ सहित चार लोग आमरण अनशन पर हैं और धरना स्थल पर क्रमिक अनशन भी जारी है. देखें आगे क्या होता है !

Wednesday, 29 March 2023

राइट टू हेल्थ कानून पर आक्रोशित है डॉक्टर्स, सरकार करे पुनर्विचार


राजस्थान में चिकित्सक और सरकार राइट टू हेल्थ बिल को लेकर आमने-सामने हैं. डॉक्टरों की हड़ताल से आम आदमी की परेशानी बढ़ती ही जा रही है लेकिन चुनावी साल के मद्देनजर सरकार सुनने को ही तैयार नहीं है. इस बिल में अनेक ऐसे प्रावधान हैं जिनकी पालना हो पाना संभव ही नहीं है. इन प्रावधानों के चलते चिकित्सा व्यवस्था में विवाद और लड़ाई झगड़े बढ़ने तय हैं. एक ओर जहां सरकार के मंत्री चिकित्सकों को कसाई बता रहे हैं वहीं दूसरी और आरटीएच के नाम पर जनता को बेवकूफ बना कर वाहवाही लूट रहे हैं.


आईएमए की सूरतगढ़ शाखा ने कल इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी भावनाएं और परेशानियां लोगों के सामने रखी. वरिष्ठ चिकित्सकों ने इस कानून को लेकर अनेक शंकाएं व्यक्त की और सरकार से यह कानून वापस लेने की मांग की. आइए, इस बिल और विवाद को समझने की कोशिश करते हैं.

राइट टू हेल्थ (RTH) बिल में प्रावधान है कि कोई भी हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इलाज के लिए मना नहीं कर सकता है। इमरजेंसी में आए मरीज का सबसे पहले इलाज करना होगा। ये बिल कानून बनने के बाद बिना किसी तरह का पैसा डिपॉजिट किए ही मरीज को पूरा इलाज मिल सकेगा। एक्ट के बाद डॉक्टर या प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज को भर्ती करने या उसका इलाज करने से मना नहीं कर सकेंगे। ये कानून सरकारी के साथ ही निजी अस्पतालों और हेल्थ केयर सेंटर पर भी लागू होगा।

'इमरजेंसी' परिभाषित में होना सबसे बड़ा विवाद

सबसे बड़ा विवाद 'इमरजेंसी' शब्द को लेकर है। डॉक्टर्स की चिंता है कि इमरजेंसी को परिभाषित नहीं किया गया है। इमरजेंसी के नाम पर कोई भी मरीज या उसका परिजन किसी भी प्राइवेट हॉस्पिटल में आकर मुफ्त इलाज की मांग कर सकता है। इससे मरीज, उनके परिजनों से अस्पतालों के स्टाफ और डॉक्टर्स के बीच विवाद बढ़ेंगे। पुलिस एफआईआर, कोर्ट-कचहरी मुकदमेबाजी और सरकारी कार्रवाई में डॉक्टर्स और अस्पताल उलझ कर रह जाएंगे।

ये हैं बिल के प्रावधान

- हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इमरजेंसी में फ्री इलाज उपलब्ध करवाएंगे।

- मरीज या उसके परिजनों से कोई फीस नहीं ली जाएगी।

- इलाज के बाद ही मरीज या उसके परिजनों से फीस ली जा सकती है।

- अगर मरीज या परिजन फीस देने में असमर्थ रहते हैं, तो बकाया फीस और चार्जेज़ सरकार चुकाएगी।

- मरीज को किसी दूसरे अस्पताल में भी शिफ्ट किया जा सकता है।

- इलाज करने से इनकार किया, तो अस्पताल पर जुर्माना लगेगा

- मरीज का इलाज करने से इनकार करने पर पहली बार में 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा, दूसरी बार मना करने पर जुर्माना 25 हजार रुपये वसूला जाएगा। 

चिकित्सकों का पक्ष जानना भी जरूरी

कानून वापस नहीं होने तक आंदोलन और विरोध प्रदर्शन पर डॉक्टर्स अड़े हैं। चिकित्सकों का आरोप है कि यह बिल लागू होने पर प्राइवेट अस्पतालों में भी सरकारी अस्पतालों जैसी अव्यवस्थाएं और भीड़ बढ़ जाएगी। निजी अस्पतालों के कामकाज और उपचार में सरकार का सीधे दखल बढ़ जाएगा।

डॉक्टर्स का आरोप है कि इमरजेंसी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। कोई भी मरीज या उसका परिजन इमरजेंसी की बात कहकर किसी भी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंच जाएगा। फ्री इलाज करने की बात करेगा।

इससे अस्पताल, डॉक्टर्स और मरीज के परिजनों में झगड़े और टकराव बढ़ेंगे। कोर्ट-कचहरी और मुकदमेबाजी आम हो जाएगी। इसलिए बिल को वापस लिया जाए।

RTH लागू होने पर हर मरीज के इलाज की गारंटी डॉक्टर की हो जाएगी। कोई गंभीर मरीज अस्पताल पहुंचा और अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, तो स्वाभाविक रूप से मरीज को बड़े या संबंधित स्पेशलाइजेशन वाले अस्पताल में रेफर करना पड़ेगा।रेफर के दौरान बड़े अस्पताल पहुंचने से पहले अगर मरीज की मौत हो गई, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा और उसकी गारंटी कौन लेगा ?

सार यह है कि बंद एसी कमरों में बैठकर ब्यूरोक्रेट्स द्वारा बनाया गया यह कानून राहत देने की बजाय परेशानियां खड़ा करता दिखाई दे रहा है. यदि सरकार वाकई राइट टू हेल्थ के प्रति गंभीर है तो उसे देश के प्रधानमंत्री की तरह एक कदम आगे बढ़कर इस कानून को वापस लेना चाहिए. अशोक गहलोत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लाई गई चिरंजीवी योजना एक बेहतरीन योजना है, उसकी खामियां दूर कर बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था बनाई जा सकती है. 

अनशनकारी उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ के साथ पुलिस और प्रशासन का घोर दुर्व्यवहार


उमेश मुद्गल

विष्णु तरड़

(
सूरतगढ़ जिला बनाओ अभियान )

राजस्थान सरकार सूरतगढ़ जिला बनाओ आंदोलन के प्रति कितनी गंभीर और संवेदनशील है, इसका अंदाजा पुलिस प्रशासन की कार्यशैली से लगाया जा सकता है. रात्रि 3:00 बजे 7 दिन से आमरण अनशन पर बैठे उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ को पुलिस ने उठाकर श्रीगंगानगर चिकित्सालय रेफर करवा दिया। वहां किसी भी प्रकार की व्यवस्था ना होने के कारण वे दोनों अकेले चिकित्सालय में बैठे रहे जहां किसी ने उनकी सुध नहीं ली. यहां तक कि उनकी देखरेख के लिए कोई पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. ऐसी परिस्थिति में थक हार कर संघर्ष के दोनों योद्धा बस में बैठकर सूरतगढ़ लौट रहे हैं.

क्या पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि आमरण अनशन पर बैठे संघर्षशील युवाओं की गंभीरता से देखरेख करते ? खुदा ना खाश्ता आठ दिनों से भूखे बैठे इन नौजवानों को कुछ हो जाता तो किसकी जवाबदेही होती ? जिला बनाओ आयोजन समिति की कार्यशैली भी सवालों के कटघरे में है. रात्रि जब इन दोनों को पुलिस गंगानगर रेफर कर रही थी तब समिति का कोई सदस्य वहां उपस्थित नहीं था. ना ही किसी ने इन दोनों योद्धाओं के साथ श्रीगंगानगर जाना मुनासिब समझा. कम से कम अब आयोजन समिति को इस गंभीर मामले पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए और नई रणनीति बनानी चाहिए. 

सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार मधु आचार्य आशावादी को


राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के विविध पुरस्कारों-सम्मानों की घोषणा


# बावजी चतर सिंह अनुवाद पुरस्कार राजूराम बिजारणियां को 


इक्कीस एकेडमी फॉर ऐक्सीलेंस  की छात्रा कल्पना रंगा को मनुज देपावत पुरस्कार 

बीकानेर, 29 मार्च। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने वर्ष 2022-23 के लिए अकादमी के विविध पुरस्कारों तथा सम्मानों की घोषणा की है। अकादमी कार्यसमिति की बुधवार को होटल ढोला मारू सभागार में आयोजित बैठक में छंगाणी ने विभिन्न पुरस्कारों के निर्णायकों की संस्तुतियों के आधार पर पुरस्कार निर्णयों की जानकारी दी।
          अकादमी अध्यक्ष ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए 71,000 रुपए का सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार (पद्य) बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी को उनकी पुस्तक ‘पीड़ आडी पाळ बाध’ पर, 51,000 रुपए का गणेशीलाल व्यास उस्ताद पद्य पुरस्कार बारां के मूल निवासी व ठाणे के निवासी ओम नागर को उनकी पुस्तक ‘बापू : एक कवि की चितार’ पर, 51,000 रुपए का शिवचंद भरतिया गद्य पुरस्कार बीकानेर के कमल रंगा को उनकी पुस्तक ‘आलोचना रै आभै सोळह कलावां’ पर व 51,000 रुपए का मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार अलवर के डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी को उनकी पुस्तक ‘भरखमा’ पर दिया जाएगा। 
          अकादमी सचिव शरद केवलिया ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए 31,000 रुपए का बावजी चतर सिंह अनुवाद पुरस्कार लूणकरणसर के राजूराम बिजारणियां को उनकी पुस्तक ‘झोकड़ी खावतो बगत’ पर, 31,000 रुपए का सांवर दइया पैली पोथी पुरस्कार भीलवाड़ा के मोहन पुरी को उनकी पुस्तक ‘अचपळी बातां’ पर, 31,000 रुपए का जवाहरलाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार रायसिंहनगर
किरण बादल

की किरण बादळ को उनकी पुस्तक ‘टाबरां री दुनियां’ पर, 31,000 रुपए का प्रेमजी प्रेम राजस्थानी युवा लेखन पुरस्कार लूणकरणसर के देवीलाल महिया को उनकी पुस्तक ‘अंतस रो ओळमो’ पर, 31,000 रुपए का राजस्थानी महिला लेखन पुरस्कार बीकानेर की डॉ. कृष्णा आचार्य को उनकी पुस्तक ‘नाहर सिरखी नारियां’ पर तथा 31,000 रुपए का रावत सारस्वत राजस्थानी साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार ‘राजस्थली’ पत्रिका श्रीडूंगरगढ़ (सम्पादक- श्याम महर्षि) को दिया जाएगा। 
         केवलिया ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए भतमाल जोशी महाविद्यालय पुरस्कार के तहत प्रथम स्थान प्राप्त राजकीय डूंगर महाविद्यालय बीकानेर के छात्र योगेश व्यास को उनकी कहानी ‘गैरी नींद’ पर 11,000 रुपए का व द्वितीय स्थान प्राप्त जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्र व फालना निवासी अभिमन्यु सिंह इंदा को उनके व्यंग्य ‘थांरो-म्हारो भविष्य’ के लिए 7,100 रुपए का पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इसी प्रकार मनुज देपावत पुरस्कार के तहत प्रथम स्थान प्राप्त राजकीय सार्दुल उच्च माध्यमिक विद्यालय बीकानेर के छात्र अरमान नदीम को उनकी लघुकथा ‘खोखो नीं हटसी’ पर 7,100 रुपए का व द्वितीय स्थान प्राप्त इक्कीस एकेडमी फॉर ऐक्सीलेंस गोपल्याण की छात्रा व महाजन निवासी कल्पना रंगा को उनकी कहानी ‘कंवळै मन री डूंगी पीड़़’ पर 5,100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।
सम्मान- अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने बताया कि 51,000 रुपए का राजस्थानी भाषा सम्मान अजमेर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. चन्द्रप्रकाश देवल को, 51,000 रुपए का राजस्थानी साहित्य सम्मान जोधपुर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अर्जुन देव चारण को, 51,000 रुपए का राजस्थानी संस्कृति सम्मान बीकानेर के ब्रजरतन जोशी को व 51,000 रुपए का राजस्थानी प्रवासी साहित्यकार सम्मान मुंबई के रामबक्स को प्रदान किया जाएगा।
        अकादमी का 31,000 रुपए प्रत्येक का आगीवाण सम्मान प्रदेश के 14 वरिष्ठ साहित्यकारों को प्रदान किया जाएगा। इनमें नंदकिशोर शर्मा (जैसलमेर), मेहरचंद धामू (परलीका, हनुमानगढ़), चांदकौर जोशी (जोधपुर), दीनदयाल ओझा (जैसलमेर), सोहनदान चारण (जोधपुर), भोगीलाल पाटीदार (डूंगरपुर), भंवरलाल भ्रमर (बीकानेर), गौरीशंकर भावुक (तालछापर, सुजानगढ़), पुरुषोत्तम पल्लव (उदयपुर), श्याम जांगिड़ (चिड़ावा, झुंझुनूं), गोपाल व्यास (बीकानेर), मुकट मणिराज (कोटा), बिशन मतवाला (बीकानेर), उपेन्द्र अणु (ऋषभदेव, उदयपुर) शामिल हैं। 
        छंगाणी ने बताया कि विविध पुरस्कारों के निर्णायकों में अर्जुनदेव चारण, मंगत बादळ, ब्रजरतन जोशी, अब्दुल समद राही, डॉ. नवजोत भनोत, डॉ. लक्ष्मीकान्त व्यास, मधु आचार्य, उपेन्द्र अणु, शंकरसिंह राजपुरोहित, उम्मेद गोठवाल, हाकम अली, संजय पुरोहित, कमल रंगा, गीता सामोर, सुचित्रा कश्यप, हरीश बी शर्मा, मनीषा डागा, विश्वामित्र दाधीच, माधव हाड़ा, सीमा भाटी, रामबक्ष जाट, पूर्ण शर्मा ’पूर्ण’, डॉ. भंवर भादाणी, धीरेन्द्र आचार्य, आशीष पुरोहित, निर्मल रांकावत, उमाकान्त गुप्त, रमेश पुरी, ऋतु शर्मा, जयश्री सेठिया, किरण बादल, कौशल्या नाई शामिल थे। छंगाणी ने बताया कि चिकित्सकीय सहायता के तहत साहित्यकार गोरधन सिंह शेखावत (सीकर) व देवकर्ण सिंह (उदयपुर) को 11,000 रुपए की चिकित्सकीय सहायता राशि दी जाएगी।

बैठक में अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. भरत ओळा, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र जोशी, सदस्य डॉ. घनश्यामनाथ कच्छावा, डॉ. मीनाक्षी बोराणा, अम्बिका दत्त, दिनेश पंचाल, डॉ. सुखदेव राव, डॉ. शारदा कृष्ण, डॉ. कृष्ण कुमार आशु, डॉ. सुरेश सालवी, देवकरण जोशी व सचिव शरद केवलिया उपस्थित थे।

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