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Thursday 7 April 2022

मनगत रै भतूळिया नै परोटणै रो नांव है 'अटकळ'


(डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा का राजस्थानी लघुकथा संग्रह 'अटकळ')


शिव बटालवी एक पंजाबी गजल मांय कैयो है कै-

जाच म्हानै आ गई गम खाण री
हौळै हौळै रो'र जी परचा'ण री
आछो होयो थे पराया होयग्या
चिंता निवड़ी आपनै अपणान री...


खरो सांच है कै मनगत रै भतूळिया नै परोटणै री अटकळ जिण खन्नै है फगत बो ही जियाजूण री घुळगांठ रा आंटा खोल सकै. सांवटणै री इणी कला सूं कथ अर कविता जलमैं जिकी आखी जगती नै सीख दिरावै. राजस्थानी रा चावा-ठावा लिखारा डॉ. घनश्यामनाथ कच्छावा मनगत री बात नै कथणै री सांगोपांग खिमता राखै. लघुकथावां री वांरी दूजी पोथी 'अटकळ' इण बात री साख भरै. 2006 मांय छपी कच्छावा री पैली आसूकथा पोथी 'ठूंठ' रो सिरजण ई राजस्थानी मांय खासो सराज्यो. इण रो सीधो कारण है कै वांरी कथावां री बुणगट जाबक ई ओपरी नीं लागै. सुजानगढ़ री धरती सूं सेठिया जी री सिरजण परम्परा नै रूखाळता घनश्याम जी खन्नै आपरो कथ्य अर रचाव है जिको वान्नै अळघी ठौड़ दिरावै. पाठक आं कथावां नै आपरै ओळै-दोळै सोधतां थकां रचाव रो आनंद लेवै अर लिखारै री दीठ साथै सगपण जोड़ै. 

एक कथा री बानगी देखो-

'ओ घर किण रो है ?'
'म्हारो!'- घरधणी बोल्यो।
'ओ खेत किण रो है ?'
म्हारो!'- किरसो बोल्यो।
'आ जमीं किण री है ?'
म्हारी!'- जमींदार बोल्यो।
'ओ धन किण रो है ?'
म्हारो!'- साहूकार बोल्यो।
'पछै, ओ देस किण रो है ?'
सगळा चुप व्हग्या.
देस रो कोई धणी धोरी नीं बण्यो.

राजस्थानी साहित मांय वात शैली री न्यारी निरवाळी ठौड़ है. जूनै बगत रो राजस्थानी लोक आसू कथा घड़नो खूब जाणतो पण बातां रै टमरकां रो वो टैम बायरियां रै साथै ई गयो परो. जणाई आधुनिक राजस्थानी साहित मांय इण विधा री पोथ्यां रो टोटो सो ई रैयो है. कदे कदास इक्की दुक्की पोथ्यां साम्ही तो आई, पण चित्त नीं चढ सकी. अबै 'अटकळ' बांच्यां पछै लागै है कै राजस्थानी मांय भी लघुकथा रै बिगसाव रा सांतरा सैनाण मण्ड रैया है. 

आस राखणी चाईजै कै कच्छावा जी री कलम सूं सांतरै रचाव री साहित धारा बैंवती रैयसी जिकी मानखै नै दिसा देंवतां थकां मिनखपणै रो बिगसाव करसी.

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Tuesday 5 April 2022

धरा की जिजीविषा है घग्घर


 
( डॉ. मदन गोपाल लढ़ा के कविता संग्रह 'सुनो घग्घर' को बांचते हुए...)


नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया, घाट घाट से कहना
मीठी मीठी है मेरी धार
खारा खारा सारा संसार...

कवि प्रमोद तिवारी की यह कविता अनायास ही अवचेतन मस्तिष्क से उभरने लगती है जब आप घग्घर नदी को संबोधित कविताएं बांच रहे होते हैं.

'दरअसल, घग्घर केवल नदी भर नहीं है, धरा की जिजीविषा है.' यह कहना है थार के संवेदनशील रचनाकार डॉ मदन गोपाल लढ़ा का, जिनका ताजा कविता संग्रह 'सुनो घग्घर' इन दिनों चर्चा में है.

विश्व साहित्य में नदियों को संबोधित करते हुए पहले भी अनेक कविताएं लिखी गई हैं लेकिन जब थार का कोई कवि मन किसी नदी के नाम से अपनी अभिव्यक्ति दे तो उसे जानने की ललक उठना स्वाभाविक है. रेगिस्तान और नदी के संबंध को चुंबक के समान ध्रुवों की स्थिति से बेहतर समझा जा सकता है जो एक दूसरे से विकर्षित होते हैं. प्यास भर पानी को सहेजता थार नदी के स्वप्न अवश्य देखता है लेकिन उसकी किस्मत में हमेशा मृग मरीचिका ही रहती है.


.. इसे मेरी खुशकिस्मती ही कहिए कि मेरा बचपन घग्घर के बहाव क्षेत्र में गुजरा है जहां भूपत भाटी द्वारा स्थापित भटनेर के ऐतिहासिक किले पर पत्थर फेंकते हुए हमने कभी अठखेलियां की थी. हिमालय पर्वत श्रंखला की शिवालिक पहाड़ियों से निकलने वाली इस नदी के बहाव क्षेत्र को नाली के नाम से जाना जाता है. अखंड भारत में यह नदी पटियाला, अंबाला के रास्ते बीकानेर रियासत के गंगानगर जिले में प्रवेश करती थी. उन दिनों सरहद पार तक इस नदी का बहाव क्षेत्र था जो अब धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है.

लेकिन इस संग्रह में संकलित कविताओं में घग्गर एक बार फिर पुनर्जीवित हो उठी है. मरु मन के सपनों में हरदम बहती घग्गर इतिहास के साथ कदमताल करती नजर आती है. इन कविताओं की बानगी देखिए-

पानी के मिस 
लेकर जाती है सरहद पार 
कथाएं पुरखों की 
अतीत के उपन्यास 
निबंध गलतियों के 
और रिश्तो की कविताएं 
कितना कुछ कहना चाहती है कितना कुछ सुनना चाहती है 
सृजन धर्मी घग्गर !

कवि घग्गर को धीरज और संबल के प्रतीक रूप में देखता है. उसे नदी के लुप्त हुए स्वर में वर्तमान के साथ-साथ भूत और भविष्य के संकेत स्पष्ट नजर आते हैं. तभी तो वह कहता है-
जो कहना चाहते हो 
पुरखों से 
घग्गर को कहो 
वह पहुंचा देगी संदेश 
अनंत लोक में भी..

इस संग्रह की कविताओं को तीन भागों में बांटा गया है. 'बिसरी हुई तारीखें' फूल से झरी हुई पंखुड़ी और 'घर-बाहर' नामक इन खंडों में वर्तमान और विरासत को जोड़ने वाली रचनाएं हैं. कालीबंगा के चित्र शीर्षक से लिखी गई कविताएं भाव और शिल्प सौंदर्य की दृष्टि से बेहतरीन कही जा सकती हैं. 'दर्द की लिपि को बांचना/आसान कहां होता है भला..., या फिर, केवल घग्घर जानती है/ खुदाई में मिली काली चूड़ियों की पीर.. सरीखी पंक्तियां इन कविताओं को सार्थक वक्तव्य में बदल देती हैं.

राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग और बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह कविता संकलन संग्रहणीय है. उम्मीद की जानी चाहिए कि डॉ. लढ़ा की लेखनी से अभी और बेहतरीन कविताएं रची जानी है जो जीवन को और सुंदर बनाने का काम करेंगी.

- डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Saturday 2 April 2022

दक्षिण एशिया में भारत


( भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर डॉ. नंदकिशोर सोमानी का महत्वपूर्ण  संकलन)


दक्षिण एशिया दुनिया का वह मोहल्ला है जिस पर रूस और अमेरिका ही नहीं, अपितु यूरोप के दिग्गजों की भी हमेशा नजर लगी रहती है. इसी मोहल्ले में सदियों से भारत का परिवार आबाद है जिसने जीवन के जाने कितने रंग देखते हुए अपने अस्तित्व को बचाए रखा है. यह दीगर बात है कि भारत के कई बेटे अपने अलग घर बसा कर अब उसके परिवार के 'शरीके' बन चुके हैं. और 'शरीका' यानी कुटुंब के लोग, कैसा व्यवहार करते हैं, इसका अनुभव कमोबेश हर सामाजिक प्राणी को होता है. देशों के संदर्भ में इन्हीं अनुभवों की पड़ताल को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विश्लेषण का नाम दिया जाता है. 'दक्षिण एशिया में भारत' शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक भी इन्हीं मुद्दों पर प्रकाश डालती है.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉ. नंदकिशोर सोमानी के संपादन में प्रकाशित यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो विश्व मानचित्र पर इस भूभाग की वर्तमान परिस्थितियों का सारगर्भित विश्लेषण करती है. इस कृति में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञों द्वारा भारत के संदर्भ में लिखे गए आठ शानदार आलेख हैं. पड़ोसी मुल्कों से भारत के संबंधों की पड़ताल करते ये आलेख न सिर्फ शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि हिंद महासागर से हिमालय के बीच पसरे समूचे भारतीय उपमहाद्वीप को समझने के महत्वपूर्ण दस्तावेज बन पड़े हैं.

डॉ.अमित कुमार सिंह का भारत-पाक संबंधों पर लिखा गया 'अविश्वास और आशा की गाथा' एक बेहतरीन आलेख है जो भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मी वाई. थिनले के संदेश से शुरू होता है. थिनले कहते हैं 'हर दक्षिण एशियाई जानता है कि घर में लड़ते झगड़ते रहने वाला कोई परिवार खुश नहीं रह सकता और झगड़ालू पड़ोसियों के रहते कोई समुदाय समृद्ध नहीं हो सकता.'

डॉ. दीपक कुमार पांडे अपने आलेख में भारत-बांग्लादेश संबंधों में गर्माहट तलाशते हैं तो वहीं विवेक ओझा भारत म्यांमार के समक्ष अवसर, चुनौतियों और समाधान पर बात करते हैं. डॉक्टर नीलम शर्मा अपने आलेख में भूटान के साथ भारत के संबंधों की विवेचना करती हैं और वैश्विक परिदृश्य में दोनों देशों की भूमिका पर प्रकाश डालती हैं.

भारत अफगानिस्तान के ताजा संबंधों पर बृजेश कुमार जोशी का लिखा आलेख इतिहास के पन्नों की परतें खोलता है. इसमें महाभारत कालीन गांधार जनपद और कभी अशोक के मगध साम्राज्य का हिस्सा रहे अफगानिस्तान की वर्तमान परिस्थितियों का बखूबी वर्णन किया गया है. पिछले दो दशक से भारत और नेपाल के रिश्ते कैसे हैं, इसे डॉ. राकेश कुमार मीणा के आलेख से जाना जा सकता है. लंबे समय तक तमिल और सिंहली संघर्ष से जूझता रहा श्रीलंका आज भारत के साथ कैसा व्यवहार रखना चाहता है इसकी पड़ताल डॉ. रितेश राय अपने आलेख में करते हैं.

संकलन के संपादक डॉ. सोमानी ने संपादन के साथ-साथ मालदीव के और भारत के रिश्ते पर एक सूक्ष्मावलोकन आलेख प्रस्तुत कर पुस्तक की महत्ता में इजाफा किया है.

सार रूप में कहा जा सकता है कि विकास प्रकाशन बीकानेर द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'दक्षिण एशिया में भारत' अंतरराष्ट्रीय संबंध और राजनीति विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण संकलन है. डॉ. सोमानी साहित्य सृजन और पत्रकारिता से निरंतर जुड़े रहे हैं, इसका प्रभाव उनके शैक्षणिक और शोधपरक लेखन में स्पष्ट रूप से झलकता है. संकलन में विषयों का चयन और उनका बेहतर प्रस्तुतीकरण पाठकों को बांधे रखता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में पाठकों को डॉ. सोमानी के संपादन में ऐसी कई कृतियों के रसास्वादन का आनंद मिलेगा.

- डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

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