(डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा का राजस्थानी लघुकथा संग्रह 'अटकळ')
शिव बटालवी एक पंजाबी गजल मांय कैयो है कै-
जाच म्हानै आ गई गम खाण री
हौळै हौळै रो'र जी परचा'ण री
आछो होयो थे पराया होयग्या
चिंता निवड़ी आपनै अपणान री...
खरो सांच है कै मनगत रै भतूळिया नै परोटणै री अटकळ जिण खन्नै है फगत बो ही जियाजूण री घुळगांठ रा आंटा खोल सकै. सांवटणै री इणी कला सूं कथ अर कविता जलमैं जिकी आखी जगती नै सीख दिरावै. राजस्थानी रा चावा-ठावा लिखारा डॉ. घनश्यामनाथ कच्छावा मनगत री बात नै कथणै री सांगोपांग खिमता राखै. लघुकथावां री वांरी दूजी पोथी 'अटकळ' इण बात री साख भरै. 2006 मांय छपी कच्छावा री पैली आसूकथा पोथी 'ठूंठ' रो सिरजण ई राजस्थानी मांय खासो सराज्यो. इण रो सीधो कारण है कै वांरी कथावां री बुणगट जाबक ई ओपरी नीं लागै. सुजानगढ़ री धरती सूं सेठिया जी री सिरजण परम्परा नै रूखाळता घनश्याम जी खन्नै आपरो कथ्य अर रचाव है जिको वान्नै अळघी ठौड़ दिरावै. पाठक आं कथावां नै आपरै ओळै-दोळै सोधतां थकां रचाव रो आनंद लेवै अर लिखारै री दीठ साथै सगपण जोड़ै.
एक कथा री बानगी देखो-
'ओ घर किण रो है ?'
'म्हारो!'- घरधणी बोल्यो।
'ओ खेत किण रो है ?'
म्हारो!'- किरसो बोल्यो।
'आ जमीं किण री है ?'
म्हारी!'- जमींदार बोल्यो।
'ओ धन किण रो है ?'
म्हारो!'- साहूकार बोल्यो।
'पछै, ओ देस किण रो है ?'
सगळा चुप व्हग्या.
देस रो कोई धणी धोरी नीं बण्यो.
राजस्थानी साहित मांय वात शैली री न्यारी निरवाळी ठौड़ है. जूनै बगत रो राजस्थानी लोक आसू कथा घड़नो खूब जाणतो पण बातां रै टमरकां रो वो टैम बायरियां रै साथै ई गयो परो. जणाई आधुनिक राजस्थानी साहित मांय इण विधा री पोथ्यां रो टोटो सो ई रैयो है. कदे कदास इक्की दुक्की पोथ्यां साम्ही तो आई, पण चित्त नीं चढ सकी. अबै 'अटकळ' बांच्यां पछै लागै है कै राजस्थानी मांय भी लघुकथा रै बिगसाव रा सांतरा सैनाण मण्ड रैया है.
आस राखणी चाईजै कै कच्छावा जी री कलम सूं सांतरै रचाव री साहित धारा बैंवती रैयसी जिकी मानखै नै दिसा देंवतां थकां मिनखपणै रो बिगसाव करसी.
-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'