Search This Blog

बामुलाहिज़ा


कुछ आंखों में किरकिरी बन रड़कता हूं मैं
उठते बैठते उनके बाएं अंग में फड़कता हूं मैं

शोर बहुत करती हैं अधजल छलकती गगरियां
कोलाहल में शंकर के डमरू सा खड़कता हूं मैं

यूं तो कटे-फटे नोट भी बाजार में चल जाते हैं
आशिक की जेब में पड़े नोट सा कड़कता हूं मैं

प्रेम से गर्दन उतारे ये हक है हर चाहने वाले का
मुखौटों में छिपे दगाबाजों पर भड़कता हूं मैं

नफरतों के दौर में सियासत क्या डराएगी मुझे
मनमौजी, मोहब्बत भरे दिलों में धड़कता हूं मैं.

#रूंख

No comments:

Post a Comment

आलेख पर आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है. यदि आलेख पसंद आया हो तो शेयर अवश्य करें ताकि और बेहतर प्रयास किए जा सकेंं.

एपेक्स विमैंस क्लब ने लगाई शरबत की छबील

- निर्जला एकादशी के पहले दिन जन सेवा का कार्यक्रम आयोजित सूरतगढ़, 17 जून । निर्जला एकादशी के पहले दिन अपेक्स विमेंस क्लब द्वारा मीठे शरबत की...

Popular Posts