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रंगों का डर


जीवन में रंग जरूरी हैं
रंगों के बिना जिंदगी अधूरी है.
लेकिन इन दिनों
डरने लगा है
रंगों से मेरा मन.

यदि लाल मेरी पसंद है
लोग मुझे कामरेड बताते हैं
नीला मुझे भाता है
तो यकीनन मेरा दलितों से नाता है.
केसरिया पहनते ही मैं हिंदूवादी
घोषित हो जाता हूं
हरा बताते ही
मुस्लिमों में खो जाता हूं.
काला रंग मुझे सत्ता विरोधी बताता है
गुप्तचर एजेंसियों को
बिना बात मेरा भय सताता है.

और सफेद !
वो तो अब रंग ही नहीं है
क्योंकि शांति से जीने का 
हमारे पास ढंग ही नहीं है.

सच पूछिए
सफेद कुरते-पायजामे
अब इतना शर्मसार करते है
पहनते ही लोग मेरा नाम भूल जाते हैं
नेताजी कहकर प्रहार करते हैं

तुम्ही कहो
मैं रंगों से डरूं नहीं
तो क्या करूं
बेरंग होना मुझे भाता नहीं है
मगर सच कहता हूं
मेरा सियासत से
कोई नाता नहीं है.
                     -रूंख

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