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रेलवे रामलीला क्लब के रंग


पगडंडियों के दिन (7 ) - रूंख भायला

'बोल सियापति रामचंद्र की जय'

जय.....' . दर्शकों की आवाज गूंजती.

'पांच रूपये लीलाशंकर, दो रूपये हरनेक सिंह, पांच रूपये गुलाम नबी रावण के रोल पर खुश होकर रामलीला को भेंट करते हैं, भगवान उनकी मनोकामना पूरी करें.

चिरंजी परमार ! रेलवे रामलीला क्लब के स्थाई एंकर, जब स्टेज पर माइक थामे अगले सीन की उद्घोषणा करते तो पूरा दर्शक समूह क्लब के प्रांगण को तालियों से गुंजायमान कर देता. चिरंजी चाचा जी के पास कार्यक्रम संचालन का शानदार अनुभव था जो उन्हें विशिष्ट पहचान दिलाता था. आज जब भी भीड़ भरे किसी आंदोलन अथवा स्टेज पर मुझे मंच संचालन करना पड़ता है तो मेरे भीतर कहीं ना कहीं चाचाजी से प्रेरित आत्मविश्वास का रंग स्वतः ही जाग उठता है. रेलवे के छोटे क्वार्टर्स में वे हमारे पड़ोसी हुआ करते थे. उनका लड़का प्रद्युमन परमार, जो बार संघ हनुमानगढ़ का अध्यक्ष रह चुका है, मेरे बचपन के मित्रों में सबसे मस्त-मौलड़ हुआ करता था, .

रेलवे अथॉरिटी द्वारा स्टेशन और लोको शेड के बीच में रेलवे क्लब बनाया गया था जो उस समय रेलकर्मियों के मनोरंजन का एकमात्र केंद्र हुआ करता था. क्लब में रामलीला स्टेज के अलावा दो बड़े लॉन थे जिनकी पश्चिमी दिशा में गुलाबी कनेर लगी हुई थी. इन लॉन में बच्चों के झूले और फिसलनी भी थी. स्कूल से आने के बाद रेलवे कॉलोनी के अधिकांश बच्चे क्लब में खेलते और झूलते रहते. शाम के वक्त क्लब में ताश खेलने वाले रेलकर्मियों का जमावड़ा रहता. 'सीप' उन दिनों ताश का प्रसिद्ध खेल था जो शायद आज भी अपना प्रभाव बनाए हुए है. सुरापान के बाद गाली गलौज के अनोखे दृश्य मैंने पहली बार क्लब में ही देखे थे. क्लब की पूर्वी दीवार से सटा हुआ एक बेरी का पेड़ हुआ करता था जिस पर भूत होने की बात उन दिनों चर्चा में होती थी. रामलीला के दिनों में बच्चे सांझ ढलने के साथ ही बैठने के लिए बोरियां और लकड़ी के पट्टे लेकर रामलीला क्लब की तरफ चल पड़ते. पहले पहुंचने वाले अग्रिम पंक्ति में सीट रोक कर बैठ जाते और लेटलतीफों को पीछे खड़ा रहना पड़ता.

आइए, इस रामलीला क्लब के किरदारों से कुछ परिचय कर लें. फायरमैन श्री इंदरसेन वालिया, जब रावण के रोल में स्टेज पर सीता हरण का सीन करने उतरते तो स्टेज थरथराने लगता. इतना जीवंत अभिनय कि दर्शक बंध कर रह जाते. रामजी का किरदार श्री चंद्रभान निभाते और श्री जगदीशचंद्र लक्ष्मणजी बना करते थे. राम बने चंद्रभान जी की मुस्कुराहट के सामने मुझे अरुण गोविल की मुस्कान भी फीकी लगती है. श्री बनवारी लाल दशरथजी का अभिनय किया करते थे. रामलीला मंचन के दौरान हुई एक दुर्घटना भी कुछ-कुछ याद आती है जब देवी का रोल कर रहे छाजू राम अंकल जी के करंट लगा और उनका असामयिक निधन हो गया. इस हृदय विदारक दुर्घटना के अगले साल रामलीला का मंचन नहीं हुआ. अगले कुछ सालों तक श्री मुलखराज भी राम का शानदार अभिनय करते रहे. उनके साथ श्री प्रेम दायमा, जो प्रथम श्रेणी के ड्राइवर बन गए थे, ने कुछ साल हनुमान जी और उसके बाद लक्ष्मणजी की भूमिका निभाई. उनके पिता श्री बृज लाल दायमा कलाकारों का मेकअप किया करते थे और स्टेज साज-सज्जा का जिम्मा संभालते थे.

रामलीला के इसी स्टेज से उभरने वाले दो कलाकारों का जिक्र किए बिना बात पूरी हो ही नहीं सकती. गोविंद अकेला और बिल्ला भाई साहब ! कहने को तो 'नकलिए' थे लेकिन सच पूछिए तो पूरी रामलीला का आकर्षण और तालियां तो गोविंद और बिल्ला भाई साहब के छोटे-छोटे कॉमेडी से भरपूर नाटक ही लूट कर ले जाते. सीमांत अंचल के साहित्यिक फलक पर मुक्तिबोध से चमकते अग्रज प्रमोद कुमार शर्मा भी उन दिनों गोमदिया भाई साहब की टीम के चिर परिचित नकलिए थे. गोविंद भाई साहब राजस्थानी के कॉमेडी किंग हुआ करते तो बिल्ला भाई साहब अपनी शानदार पंजाबी कॉमेडी से दर्शकों को लोटपोट कर डालते. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि कपिल शर्मा, राजू श्रीवास्तव जैसे फूहड़ लाफ्टर अभिनेता उनकी जूती की भी होड़ नहीं कर सकते.

रेलवे क्लब रामलीला के कुछ सीन तो दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे. ताड़का वध, सीता स्वयंवर, लंका दहन और देवी का सीन देखने तो पूरा लोको, गांधीनगर, आरसीपी कॉलोनी के साथ दुर्गा कॉलोनी के लोग भी पहुंचते. दुर्गा कॉलोनी में भी उन दिनों रामलीला मंचन हुआ करता था लेकिन रोमांच हमेशा कल्ब की रामलीला में ही बना रहता. अहिरावण के पाताललोक में जब देवी का सीन होता तो माहौल अत्यंत डरावना लगता. राम-लक्ष्मण जी पाश में बंधे हुए देवी के आगे पड़े हैं और राक्षस मदिरापान कर नृत्य के साथ देवी रिझा रहे हैं. 1980 में आई शान फिल्म का गीत
'यम्मा यम्मा, यम्मा, यम्मा, ये खूबसूरत समां, बस आज की रात है जिंदगी, कल हम कहां, तुम कहां...' जब अंधेरे और मध्यम प्रकाश के बीच बजता तो दर्शक सांस रोक कर बैठ जाते.

आज जब कोरोना लॉकडाउन के चलते रामानंद सागर की रामायण देशभर में प्रसारित हो रही है तो मुझे बचपन के राम आनंद के सागर किनारे लेकर खड़े हैं. क्लब की रामलीला के किरदारों की उपस्थिति में राम की वेशभूषा धरे चंद्रभान अंकल जी बार-बार मुझसे पूछते हैं -

'क्या टिकटोक और आभासी दुनिया के बीच तुम भी नहीं लिखोगे हमारी राम कथा !

'रूंख'


 

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