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सीमांत क्षेत्र का किसान आंदोलन-1970(2)

 

रायसिंहनगर में लाठीचार्ज के बाद नीलामी स्थगित, सरकार सकते में !


( सितंबर 1969 के मध्य में शुरू हुई हल्की ठंड के बीच)


सुबह सवेरे सुरजाराम किसी काम से मंडी आया था. बाजार में स्थित तहसील के पास जब उसने बैरीकेड्स और चूने की लाइनिंग देखी तो उत्सुकतावश वह भी वहां खड़ी भीड़ का हिस्सा बन गया. भीड़ में अधिकांश लोग काश्तकार और मजदूर थे जो आस-पास के गांवों से आए थे. सरकारी आदेश के मुताबिक आज रायसिंहनगर तहसील परिसर में राजस्थान नहर से सिंचित होने वाली कमांड जमीनों की खुली बोली की जानी थी. पड़ोसी राज्यों के अनेक पूंजीपति और जमींदार बड़ी-बड़ी गाड़ियों में इन बेशकीमती जमीनों की बोली देने पहुंचे थे. वहीं बोली का विरोध कर रहे प्रोफेसर केदार, कामरेड श्योपत सिंह, कामरेड हेतराम बेनीवाल, राम चंद्र आर्य, योगेंद्रनाथ हांडा, सांसद कुंभाराम आर्य, गुरदयाल सिंह, दौलत राम और हरचंदसिंह सिधू आदि खाड़कू नेता भी बैरीकेड्स के पास खड़े मंत्रणा कर रहे थे. ठेठ देहाती अंदाज में सुरजा राम ने कुछ आगे बढ़ कर हरचंद सिंह से पूछा-


'थे के तोड़न तूड़ाण गी बात कर रया हो ?'


युवा वकील हरचंदसिंह ने बताया कि आज सरकार राजस्थान नहर से सिंचित होने वाली जमीनों की नीलामी करने जा रही है. बैरिकेट्स के उस तरफ धारा 144 लगी हुई है. यदि यह नहीं टूटी तो सरकार जीत जाएगी और हमारी हार होगी. बरसों से काश्त कर रहे किसानों की जमीनें पूंजी पतियों के हाथ में चली जाएंगी.


यह सुनकर सुरजा राम ने वहां खड़े सभी नेताओं को गाली निकाली और साइड में जाकर अपनी जूती और कंबल उतार कर रख दिया. प्रोफेसर केदार ने हरचंदसिंह से पूछा यह आदमी क्या कह रहा है. हरचंद ने हंसते हुए कहा कि यह हम सबको 'गंडमरा' बता रहा है. 


अचानक सब ने देखा कि सुरजाराम कबड्डी खेलने के अंदाज में अपनी जांघ पर थाप देकर बैरीकेड्स पर जा चढ़ा और ललकारते हुए तहसील परिसर तरफ कूद गया जहां धारा 144 लगी हुई थी. उसे कूदते देख पुलिस के जवान दौड़े और एक लाठी उसके सिर में जचाकर ठोकी. यह देख नेताओं सहित उपस्थित भीड़ को भी जोश आ गया और सब ने बैरिकेड्स तोड़ते हुए पुलिस घेराबंदी को ध्वस्त कर दिया. अब पुलिस लाठियां भांज रही थी और लोग चीखते चिल्लाते हुए इधर उधर दौड़ रहे थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बिना प्लान किए यह सब कैसे हो गया. सुरजाराम के सिर से बहुत ज्यादा खून बह रहा था. हरचंद सिंह ने जब पास जाकर उसे संभालना चाहा तो उसने अनदेखी करते हुए पूछा-


'रै सरदार, सिर की छोड, आ बता तेरी धारा धूरा टूटगी के, या कोई सी बचगी !'


हरचंद ने उसे बताया कि सब कुछ टूट गया है, बस किसी भी ढंग से यहां से निकलो. जैसे ही हरचंद ने उसका हाथ पकड़ कर उठाने की कोशिश की तो एक पुलिस वाले ने सुरजा राम की पीठ में लाठी का जोरदार वार किया. इस अफरातफरी में हाय तौबा मच गई. जिसको जहां जगह मिली, वहीं भाग छूटा. तहसील परिसर की पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी थी.


सितंबर 1969 ! राजस्थान की सुखाड़िया सरकार ने राजस्थान नहर के नक्शे में स्थित अनूपगढ़-घड़साना क्षेत्र की कमांड अनकमांड जमीनों को खुली नीलामी के जरिए बेचकर अपना खजाना भरने का मानस बना रखा था. उसी संबंध में आज रायसिंहनगर तहसील में नीलामी रखी गई थी जिसका क्षेत्र के किसान और जागरूक नेता लगातार विरोध कर रहे थे. यही कारण था कि सरकार ने नीलामी स्थल पर पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था की थी.


सुरजाराम के देहाती दुस्साहस ने पल भर में ही इस व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया और पुलिस को लाठीचार्ज करने के लिए मजबूर कर दिया. इस उपद्रव का परिणाम यह हुआ कि सरकार को नीलामी स्थगित करनी पड़ी. लेकिन सरकार ने अपना सख्त रवैया दिखाया और 03 नवंबर 1969 को अनूपगढ़ में फिर नीलामी करने की घोषणा जारी कर दी.


वस्तुतः स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह प्रदेश का सबसे बड़ा किसान आंदोलन था जो रायसिंहनगर से शुरू होकर पूरे प्रदेश में फैल गया था. आंदोलन के समर्थन में संभाग के चारों जिलों से हजारों लोगों ने अपनी गिरफ्तारियां दी थी. इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वालों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा,), भारतीय क्रांति दल, दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां, किसान यूनियन और आंदोलन के दौरान गठित की गई किसान संघर्ष समिति शामिल थी.


उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक सरकार द्वारा इन जमीनों की नीलामी घोषणा के बाद असाधारण ढंग से लगभग 96 हजार दरख्वास्तें लगी थी. लोगों में भूमि खरीद के प्रति जबरदस्त रुझान को देखते हुए सरकार का उत्साह बढ़ गया था. प्रोफेसर केदार, जो उस समय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के विधायक थे, ने भारतीय क्रांति दल के विधायक रामचंद्र आर्य के साथ मिलकर सरकार के इस निंदनीय कार्य का घोर विरोध किया. इन दोनों ने अपने डेरे रायसिंहनगर में लगा लिए और नीलामी को येन केन प्रकरेण रोकने के लिए गंगानगर किसान संघर्ष समिति का गठन करने में अहम भूमिका निभाई.


राम चंद्र आर्य को समिति का अध्यक्ष बनाया गया. श्रीनिवास थीरानी, उपाध्यक्ष और सेवा सिंह किसान संघर्ष समिति के संचालक बने. समिति में जमीन से जुड़े 11 बड़े नेताओं को भी शामिल किया गया. समिति द्वारा अपनी 33 सूत्री मांगों का ज्ञापन सरकार को सौंपा गया. दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा संचालित किसान सभा ने भी अपनी मांगों के समर्थन में संघर्ष समिति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस आंदोलन की लड़ाई लड़ी. कम्युनिस्ट इन मांगों में सीलिंग एक्ट को लागू किए जाने पर जोर दे रहे थे. तत्कालीन सांसद कुंभाराम आर्य ने सत्याग्रह का आह्वान करते हुए प्रतिदिन सांकेतिक गिरफ्तारियां देने की बात की लेकिन कामरेडों ने सामूहिक गिरफ्तारियों का आह्वान कर संघर्ष को तेज कर दिया. इस निर्णय से जनमानस में अपूर्व जोश का संचार हुआ और आंदोलन को नई गति मिली. कामरेड श्योपतसिंह, योगेंद्रनाथ हांडा, हेतराम बेनीवाल सरीखे अगुआ नेताओं की समर्पित कार्य शैली का परिणाम था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस आंदोलन में हस्तक्षेप करना पड़ा. प्रदेशभर में हो रही गिरफ्तारियां और उग्र ढंग से फैलते जा रहे आंदोलन को समाप्त करवाने के लिए इन नेताओं को वार्ता के लिए दिल्ली बुलाया गया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद आंदोलनकारियों के नेताओं से बातचीत की और तुरंत प्रदेश सरकार को भूमि नीलामी प्रक्रिया बंद करने के निर्देश दिए.


इस आंदोलन के दौरान संगरिया और भादरा गोलीकांड में हुए शहीदों के अलावा सैकड़ों लोग पुलिस गोलाबारी और लाठीचार्ज में घायल हुए. हजारों लोगों को महीनों जेल में बंद रहना पड़ा. प्रदेश की पुलिस और प्रशासन व्यवस्था पूरी तरह से अस्त-व्यस्त रही लेकिन एक लंबे संघर्ष के बाद अंततः इस जन आंदोलन की जीत हुई. इस जीत के लिए चुकाई गई बड़ी कीमत का ही परिणाम है कि आज इंदिरा गांधी नहर द्वारा सिंचित यह जमीनें प्रदेश के काश्तकारों के स्वामित्व में है.

-रूंख


( जानकारी का स्रोत - तत्कालीन समाचार पत्रों की रिपोर्ट, प्रत्यक्षदर्शियों के वक्तव्य, सत्याग्रह स्मारिका, आंदोलन के संबंध में लिखे गए लेख और पुलिस रिपोर्ट)

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