(रेख़्ता फाऊंडेशन द्वारा आयोजित अंजस महोत्सव के बहाने)
जब हम अपनी भाषा को सहेजने और उसके उन्नयन की बात करते हैं तो सही मायने में उस वक्त हम अपनी सांस्कृतिक विरासत और मानवी सभ्यता को संरक्षित करने का महत्वपूर्ण काम कर रहे होते हैं. संस्कृति, जिसमें हमारे संस्कार सिमटे हैं, हमारा साहित्य रचा जाता है, हमारी कलाएं, हमारे गीत-संगीत पनपते हैं, हमारे लोकरंग और हमारा लोकजीवन रचता-बसता है, उस समग्र को पीढ़ी दर पीढ़ी अग्रसर करने का काम भाषा ही तो करती है.
इस मायने में जोधपुर में आयोजित 'अंजस महोत्सव' ने राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास की दिशा में एक मजबूत कदम रखा है. 29-30 अक्टूबर को 'गढ़ गोविंद रिसोर्ट' में सम्पन्न इस दो दिवसीय आयोजन में सिनेमा, संगीत और साहित्य का अनूठा संगम देखने को मिला. राजस्थानी साहित्य में 'डिंगल दरबार', 'कविता कोटड़ी', 'साहित्यिक पत्रकारिता में भासा' और 'गद्य की घड़त' सरीखे गंभीर सत्र आयोजित किये गए.
कार्यक्रम में उपस्थित हजारों कला प्रेमियों के बीच लोक संगीत को नई ऊंचाइयां देने वाले गायक पदमश्री अनवर खान, युवा दिलों की धड़कन मामे खां और मुख्त्यार खान ने खूब रंग जमाया. आयोजन में 'बाड़मेर बॉयज' को सुनना सुकून भरा था तो वही 'राहगीर' के गीत ' तुम उड़ तो पाओगे...' ने सबको झूमने के लिए मजबूर कर दिया. हिंदी कविता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाले शैलेश लोढ़ा और अभिनेत्री इला अरुण ने भी अपनी प्रस्तुति में दर्शकों को राजस्थानी संस्कृति के अनछुए पहलुओं से रूबरू करवाया. कॉरपोरेट और फिल्म जगत की हस्तियों ने भी इस आयोजन में दर्शकों से अपने अनुभव साझा किए.
इस सांस्कृतिक मेले में राजस्थानी साहित्य साधकों से मिलना भी एक सुखद संयोग था. आदरणीय तेज सिंह जोधा, डॉ. अर्जुनदेव चारण, आईदान सिंह भाटी, मधु आचार्य, लक्ष्मणदान कविया, अंबिकादत्त, डॉ. जितेंद्र सोनी, मनोहर सिंह राठौड़, पदम मेहता, श्याम महर्षि, कुमार अजय, घनश्यामनाथ, मोनिका गौड़, संतोष चौधरी, डॉ. गजादान चारण, भरत ओला, सत्यनारायण सोनी, डॉ. मदनगोपाल लड्ढा, राज बिजारणिया, छैलूदान चारण, डॉ. राजेंद्र बारहठ, सुरेंद्र स्वामी राजेंद्र देथा, देवीलाल गोदारा और रूप सिंह राजपुरी की संगत ने समय को सुखद बना दिया.
इस सफल आयोजन के लिए रेख़्ता फाउंडेशन के संस्थापक संजीव सराफ निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं जिन्होंने दूरदृष्टि रखते हुए राजस्थानी भाषा को 'अंजस' वेबसाइट के रूप में एक बेहतरीन डिजिटल प्लेटफॉर्म दिया है. अंजस महोत्सव के उद्घाटन सत्र में ही इस वेबसाइट का लोकार्पण हुआ. इस प्लेटफार्म पर राजस्थानी भाषा साहित्य और संस्कृति को सहेजने का अनूठा काम हुआ है. राजस्थानी के लगभग 400 रचनाकारों का गद्य और पद्य साहित्य इस वेबसाइट पर उपलब्ध है जो निस्संदेह प्रशंसनीय है. रेख़्ता फाऊंडेशन द्वारा इस वेबसाइट पर निरंतर रचनात्मक सामग्री डाली जा रही है जो इसे और बेहतर बनाने का साझा प्रयास है.
राजस्थानी आंदोलन को लंबे समय से व्यक्तिगत और संस्थानिक स्तर पर मजबूत करने के काम चल रहे हैं. उन्हीं सभी प्रयासों का परिणाम है कि आज राजस्थानी की बात संसद और विधानसभा में ही नहीं, सात समंदर पार तक गूंजने लगी है. इसी कड़ी में कॉरपोरेट स्तर पर 'अंजस' का आयोजन एक सुखद एहसास है जिसने हमारे भीतर अपनी मातृभाषा और संस्कृति के प्रति गौरव का भाव पुनर्स्थापित किया है. राजस्थान और राजस्थानियों के लिए अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की दृष्टि से यह एक शुभ संकेत है.
डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
kapurisar@gmail.com
पुनश्च:
(यह पोस्ट राजस्थानी में भी लिखी जा सकती थी लेकिन रेख़्ता के संजीव सराफ की साफगोई ने हिंदी में लिखने को प्रेरित किया. बातचीत में उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें राजस्थानी बोलना नहीं आता, लेकिन उसके बावजूद वे पूरे मनोयोग से राजस्थानी के लिए काम करना चाहते हैं. सच है, भाषा कोई भी हो, कट्टर बंधनों में कहां ठहर पाती है !)