1. अहसास
खेत जाते हुए
गाडे पर बैठी
घर बहुओं ने
बड़े चाव से
चीढ और मिणियों के साथ
पूरे डेढ़ माह में
गूंथा था मेरा गोरबन्द
कितना फबा था मुझ पर
कौन जाने !
इतना याद है
उस दिन
पडौसी की स्याण्ड (ऊंटनी) ने
सींव पर मिलते वक्त
मेरी गर्दन में पड़े गोरबंद को
अपनी थूथन से छुआ था
सच कहूं,
मुझे पहली बार
अपने होने अहसास हुआ था.
2. डर
सड़क किनारे
बोर्ड पर लगी
गोडावण की फोटो देख
गाडा खींचते हुए
उस दिन ठिठक गई थी मैं
डर गई थी भीतर से
मेरे टोडिये की फोटो
न लग जाए कहीं
किसी रोड पर.....
मालिक की टिचकारी से जागी थी
मुझे याद है
उस दिन बहुत तेज भागी थी
पता नहीं क्यों ?
3.हेत
बाबा की अर्थी उठते देख
दूर खूंटे से बंधे
बूढ़े ऊंट की आंखों में
उतर आया था पानी
जिसे कोई नहीं देख पाया था
पर बाबा के साथ
उसने भी तो
इस घर की गिरस्ती को
अपने कांधों ढोया था
सच में
उस दिन ऊंट
बहुत रोया था.
4. रूदन
म्यूजियम में टंगे
शीशे के फ्रेम मे बंद
गोरबंद
उम्मीद से तकता है
हर आगंतुक को
आदम की भीड़ में
दिख जाए
कभी तो कोई ऊंट
जिसके गले लग कर
घड़ी भर ही सही
जी भर कर रो तो ले
कि उसका होना भी
सार्थक हो सके.
5. नहर
बरसों उडीकने के बाद
थार में आई थी नहर
गधों के साथ मिल
दिन रात हमने ही तो ढोयी थी
नहर की माटी
कोसों पसरे बियाबान में.
तब सब ने कहा था
थार में सिर्फ ऊंट है
सपनों का साथी
कितना खुश हुए थे हम !
जीवन में पहली बार
नहर से पिया था
भरपेट पानी
गर्व से तन गई थी गर्दन
गाडे पर टंकियां ढो-ढोकर
भर दिया था मैंने
बरसों से खाली पड़ा
पालर पानी वाला कुंड.
उस दिन धणियाणी ने चूम कर
दी थी मुझे गुड़ की डली
गीतों में गाया था
थार का मोभी बेटा.
घर में गुवाड़ में
खेत में खलिहान में
अब हमारे पास भी पानी था
पहाड़ से उतर
थार में आया
कलकल करता पानी
पानीदार मालिक
हो गए थे पानी के मालिक.
मगर अब....
बरसों बाद लगता है
नहर के पानी ने
उतार लिया है
पानीदार मालिकों का पानी
पहना दिये हैं उन्हें
लोभ और स्वार्थ के मुखौटे
तभी तो बात बात पर
मुझे बेचने की बात करते हैं
ऊंट अब काम के नहीं
पड़े पड़े ठाण चरते हैं.
लगता है अब
हम पर ही टूटेगा कहर
तू ही बता नहर
हम पानी लाए थे
या जहर ?
6. नासमझ
झैह झैह झैह
खेत जोतती मां का
दूध चूंघते हुए
तुरन्त समझ गया था
आदम की बात को.
और मैंने भी
मां की तरह
झैह के साथ बैठना
टिचकारी से उठना
शुरू कर दिया था
मानने लगा था
घरधणी के हुक्म सारे
पहचानते हुए
उसकी आंख के इशारे
घर अपना जो था.
मगर अब
जीवन के आखिरी मोड़ पर
बंधे पैरों के साथ
इसी घर से
जबरन चढाए गए ट्रक में
पड़ा-पड़ा सोच रहा हूं
उस दिन झट समझ गया था
आदम की बात को
पर क्यों नहीं समझ पाया
आदम की जात को ?
7. दबे पांव
थार की सेवा करते
नहीं थका था कभी
घरधणी के साथ
भूख, प्यास और अकाल
सहा था सभी.
अब मालिक की
उदासीन आंखें देख
हार गया हूं
कौन विश्वास करेगा
जान जोखिम में डाल
बीसों बार सरहद के पार गया हूं.
मगर अब दम उखड़ने लगा है
गद्दीदार पांव
डगमगाने लगे हैं
पगडंडियों के रास्ते
जाने कहां गुम हुए
मालिक अब
सड़कों पर चलाने लगे हैं.
मोटरों के शोर ने
मेरे गोरबंद और नेवरिये
उतार दिये हैं
कबाड़ में बदल चुकी है
घर के कोने में पड़ी पिलाण
अर्से से नहीं लीपा है
किसी ने मेरा ठाण
घर का कोई बच्चा
नहीं डालता मेरे गले में बांहें
कौन सुनेगा
मेरे अंतस की आहें
पालतू से फालतू हो गया हूं
मेरे हिस्से का सूरज ढलने लगा है
थार का भरोसेमंद साथी
सबको खलने लगा है
बिना किसी चैनल चर्चा के
मुझे चुपचाप जाना होगा
ऊंट अब
गुजरे जमाने का फ़साना होगा.
8.
सुनो, जल्द ही
तुम्हारे शब्दकोश
हल्के हो रहे हैं
कुछ जरूरी शब्दों की मैय्यत पर
गैर जरूरी शब्द
बुक्का फाड़ कर रो रहे हैं
छाटी, पिलाण, पटिया
मोहरी, पीनणी, मींगणा,
तांगड़, पेटी, गोरबंद
डाग, टोडिया, सांढ के साथ
और बहुत सी स्मृतियां
सब के सब ले जाऊंगा
फटी हुई फड़ में बांधकर
तुम बांचते रहना
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर
ऊंटों का इतिहास !
9.
हां, मैं जाऊंगा
दूर बहुत दूर
तुम सिर्फ देख सकोगे
कैमरे में कैद मेरे वीडियो
नहीं छू सकोगे
मेरी थूथन, मेरी परछाई
मैं ले जाऊंगा उसे
मेरे साथ
हमेशा के लिए.
अहसानफरोशों के लिए
कुछ नहीं छोड़ना मुझे
इस धरती पर !
सुनो, जल्द ही
तुम्हारे शब्दकोश
हल्के हो रहे हैं
कुछ जरूरी शब्दों की मैय्यत पर
गैर जरूरी शब्द
बुक्का फाड़ कर रो रहे हैं
छाटी, पिलाण, पटिया
मोहरी, पीनणी, मींगणा,
तांगड़, पेटी, गोरबंद
डाग, टोडिया, सांढ के साथ
और बहुत सी स्मृतियां
सब के सब ले जाऊंगा
फटी हुई फड़ में बांधकर
तुम बांचते रहना
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर
ऊंटों का इतिहास !
9.
हां, मैं जाऊंगा
दूर बहुत दूर
तुम सिर्फ देख सकोगे
कैमरे में कैद मेरे वीडियो
नहीं छू सकोगे
मेरी थूथन, मेरी परछाई
मैं ले जाऊंगा उसे
मेरे साथ
हमेशा के लिए.
अहसानफरोशों के लिए
कुछ नहीं छोड़ना मुझे
इस धरती पर !
-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
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