1.
अब खत़ नहीं आते
तो खुशबू भी कैसे आएगी
उस पार की.
भूल गया हूं
रंगीन खतों में छिपे
हरफों की शक्लें
जब कभी गाहे-बगाहे
खुलती है बंद दराजें
मासूम बच्चों से झांकते हुए
कुछ पुराने खत़ कहते हैं
आओ, हमें एक बार फिर पढ़ लो
आंखों में प्यास भर कर
तुम्हारी रूह सुकून पा जाएगी
हम भी जी लेंगे
जिंदगी के आखिरी मुकाम को
रद्दी में दफन होने से पहले !
2.
डाकिया
जब गली के मोड़ से
मुड़ता था
उम्मीद जागती थी
उसके झोले में छिपा होगा
मेरा पता लिखा कोई ख़त
पर चिट्ठियां कहां होती है
सबकी किस्मत में
हां, चिट्ठियों का इंतजार
यकीनन है
आपके हाथ में
3.
ख़त ही तो आया था
और पिताजी ने
भांप लिया था
बिना पढ़े
ख़त का मजमून
उनकी आंखों का पानी
कोरों तक उतर आया था
पी लिया था उन्होंने जिसे
लंबी आह के साथ.
सामने बैठी मां
ने भी नहीं बूझी थी
अपने मन की शंका
पिताजी के चेहरे को देख
साड़ी का पल्लू मुंह में दबा
फफककर रो पड़ी थी मां
उसे भी मिल गया था उत्तर
खत के फटे हुए कोने से...
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