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Tuesday, 25 May 2021

फिक्र कैसी, नरेन्द्र भाई है ना !


 (मानस के राजहंस)
नरेंद्र चाहर ! एक ऐसा नाम, जो सूरतगढ़ ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके में चिकित्सा मित्र के रूप में जाना जाता है. हमेशा मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ मिलने वाले मृदुभाषी नरेंद्र चाहर अपने कर्तव्य के प्रति इतने समर्पित हैं कि आधी रात को आप उन्हें फोन कर लीजिए वे आपके लिए हमेशा तैयार मिलेंगे. दरअसल, नर्सिंग के पेशे से जुड़े लोगों में जिन मानवीय गुणों की अपेक्षा की जाती है उनसे कहीं बढ़कर योग्य है नरेंद्र भाई !

सूरतगढ़ में नेत्रदान की मुहिम को जगाने और उसे विस्तार देने के लिए नरेंद्र चाहर का नाम सबसे ऊपर आता है. शुरुआती दिनों में नेत्रदान के लिए लोगों को प्रेरित करना बड़ी बात थी लेकिन मृत्योपरान्त नेत्र उत्सर्जित करना और उन्हें नियत समय के भीतर जिम्मेदारी के साथ जगदंबा अंध विद्यालय एवं चिकित्सालय, श्रीगंगानगर तक पहुंचाना वाकई जिम्मेदारी का काम होता है. नरेंद्र चाहर ने बरसों तक इस महत्वपूर्ण दायित्व को निभाया है ताकि नेत्रहीन लोग भी यह सुंदर दुनिया देख सकें. इस पुनीत कार्य के लिए उनकी भरपूर सराहना हुई है.

सूरतगढ़ में जब रक्तदान की विधिवत शुरुआत हुई थी उस समय श्री चिरंजीलाल गर्ग और उनकी टीम ने सिटीजन चैंबर्स नामक संस्था में शानदार काम किया था. उनके प्रयासों को गति देने के लिए भी नरेंद्र चाहर को नींव के पत्थर के रूप में देखा जाता है जिन्होंने महावीर इंटरनेशनल के जरिए इस सेवाभावी काम को जन-जन तक पहुंचाया. महावीर इंटरनेशनल की सूरतगढ़ शाखा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में जिस टीम का हाथ रहा है उसके सेंटर फारवर्ड नरेंद्र चाहर ही कहे जा सकते हैं. हालांकि कुछ समय पूर्व नरेंद्र महावीर इंटरनेशनल छोड़ चुके हैं लेकिन इसके बावजूद उनके समर्पित सेवा कार्य निरंतर जारी हैं.

उन्होंने शहर की श्री गौशाला में भी अपनी सेवाएं दी है. गौशाला की व्यवस्थाएं बेहतर बन सकें, इसके लिए वे आज भी प्रयासरत हैं. 

प्रचार प्रसार और सोशल मीडिया से दूर रहने वाले नरेंद्र सही मायनों में अपने नाम को चरितार्थ कर रहे हैं. संस्थागत छल-छंदों और निरर्थक चलती राजनीतिक बहस से दूर नरेंद्र शहर के प्रतिष्ठित बंसल नर्सिंग होम में लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वे हमेशा की तरह आज भी ऊर्जावान हैं और मानव मात्र की सेवा के लिए हर वक्त तैयार हैं. उनकी इस निष्ठा को देखकर एक शेर याद आता है -

वो जहां भी जाएगा, रोशनी फैलाएगा 
किसी चिराग का अपना कोई मकां नहीं होता.

लगे रहो मेरे प्यारे नरेंद्र भाई, ताकि दुनिया और सुंदर बन सके !
-रूंख

माता सीता की अग्निपरीक्षा का सच -1 (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)

प्रोफेसर रजनीरमण झा हिंदी और संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान हैं। वैदिक साहित्य का विश्लेषण और उस पर सारगर्भित टीकाएं उनके अध्ययन -लेखन की...

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