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Saturday, 15 April 2023

मानवीय व्यवहार का बखूबी परीक्षण करती हैं पटियालवी की लघु कथाएं


( दविंदर पटियालवी के नए लघुकथा संग्रह 'उड़ान' के बहाने...)


दविंदर पटियालवी पंजाबी के सुपरिचित लघुकथाकार है। एक समर्पित रचनाकार के तौर पर वे लघु कथा के क्षेत्र में पिछले 30 सालों से काम कर रहे हैं। 'उड़ान' उनका दूसरा लघु कथा संग्रह है। ये कहानियां मूलत: पंजाबी में कही गई हैं, जिनका हिंदी अनुवाद हरदीप सब्बरवाल ने किया है। इससे पूर्व इसी विधा में 'छोटे लोग' शीर्षक से उनका एक और लघु कथा संग्रह प्रकाशित है। उनकी रचनाएं विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं । रेडियो और टीवी पर भी पटयालवी की उपस्थिति रहती है। पंजाबी साहित्य सभा, पटियाला के सक्रिय सदस्य के रूप में 'कलम काफिला' और 'कलम शक्ति' का उन्होंने संपादन किया है । वर्ष 2012 से वे पंजाबी की प्रतिष्ठित लघुकथा पत्रिका 'छिण' का संपादन कर रहे हैं।

कम शब्दों में सार्थक अभिव्यक्ति लेखक को विशिष्ट पहचान देती है। लोक में कहा भी जाता है कि 'बात रा तो दो ई टप्पा होवै...।' लघु कथा इसी दृष्टि से उपजी एक साहित्यिक विधा है जिसमें लेखक किसी एक संदर्भ को पकड़ कर पाठक की संवेदना तक पहुंचना चाहता है। जीवन की आपाधापी में पल- प्रतिपल हम अनेक ऐसी बातों, घटनाओं, और तथ्यों से गुजरते हैं जो घड़ी भर के लिए हमारी संवेदना को छूती है, हमें विचलित करती है। अगले ही पल जीवन आगे बढ़ जाता है लेकिन इन घटनाओं और तथ्यों में छिपी किसी एक बिंदू को अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से पकड़कर कलमबद्ध करना ही लघुकथा का आधार है। आज के दौर में लघु कथाएं आधुनिक साहित्य की पसंदीदा विधा बन चुकी हैं।

पाकिस्तान के लघु कथाकार और वरिष्ठ पत्रकार मुब्बशिर जैदी इस विधा को व्यक्ति की तात्कालिक संवेदना से जोड़ने की बात कहते हैं जो दिलो दिमाग पर देर तक छाई रहती है । उनके अनुसार यूरोप में तो पचपन शब्दों की लघुकथाओं के प्रयोग बेहद सफल रहे हैं और इस विधा में बेहतर सृजन हुआ है।

एक उपन्यास में घटनाओं और तथ्यों की श्रंखला का विस्तार रहता है जबकि कहानी विधा इस विस्तार को सीमित दायरे में बांधती है। लघुकथा तो इस सीमित दायरे को भी छोटा बनाकर देखने में यकीन रखती है। इस विधा की खूबी यह है कि एक समय में व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति और संवेदनाएं किसी एक खास बिंदु अथवा घटना पर केंद्रित कर पाने में सफल होता है।

दविंदर पटियालवी
'उड़ान' संग्रह की लघु कथाओं की बात करें तो इसमें कुल 51 लघु कथाएं सम्मिलित हैं। इन कथाओं को पढ़ते हुए पाठक का अनायास ही लेखकीय दृष्टि से परिचय हो जाता है जो सरल, संयमित और समर्पित है। इसी दृष्टिकोण के चलते ये लघुकथाएं भौतिक यथार्थ को अभिव्यक्त कर पाने में सफल हुई हैं। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, एलिंग भेद और माननीय व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को लेकर रची गई इन कथाओं से पाठक स्वत: ही जुड़ता चला जाता है। बानगी के तौर पर उनकी लघुकथा 'फर्क' को देखिए -

देश के प्रसिद्ध नेताजी हेलीकॉप्टर उड़ान के वक्त अचानक खराब हुए मौसम की वजह से लापता हो गए। प्रदेश की पुलिस फौज और सारा प्रशासनिक अमला हेलीकॉप्टर की तलाश में जी जान से जुट गया ।चारों और इस बात को लेकर हाहाकार मच गई ।

इतने में खबर आई कि पास ही उफनती नदी की चपेट में 2 गांव डूब चुके हैं। शाम हो चुकी थी, लिहाजा प्रशासन ने अगले दिन सुबह कार्यवाही करने का आदेश दिया और खुद रात के अंधेरे में पीड़ितों को मौत के मुंह में छोड़कर गायब हो गया।

इसी प्रकार खिलौने, हिसाब-किताब, सबक, कंस, आदर, प्रश्न, एक नई शुरुआत और अपशकुन लघु कथाएं पाठक के समक्ष बेहतर बिंब खड़ा करती हैं। लघु कथा 'पछतावा' में माननीय व्यवहार को बेहद शानदार ढंग से प्रस्तुत किया गया है तो वहीं 'उड़ान' शीर्षक की कथा एक पिता की अपनी बेटी के प्रति दोघाचिंती से रूबरू करवाती है।

चूंकि पटियालवी खुद लंबे समय से लघु कथाओं का संपादन करते रहे हैं, इसलिए वे साहित्यिक बारीकियों को बखूबी जानते हैं। उनका यह लेखकीय अनुभव इस संग्रह में झलकता है। सुकून देने वाली बात यह है कि इस संग्रह के माध्यम से हिंदी का पाठक पंजाब की लघुकथाओं से परिचित हो रहा है। अनुवादक हरदीप सब्बरवाल भी इस मायने में बधाई के पात्र हैं।

बोधी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'उड़ान' लघु कथा संग्रह अपनी विशिष्ट पहचान बनाएगा, यही कामना है उम्मीद की जानी चाहिए, आने वाले दिनों में दविंदर पटियालवी और बेहतर रचाव से साहित्य संसार को समृद्ध करेंगे।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Monday, 10 April 2023

बीड़ी जलई ले जिगर से पिया, जिगर में बड़ी आग है !


(मीडिया के आइने में चेहरा देख बौखलाए विधायक के नाम चिट्ठी)


शुक्रिया कासनिया जी !

आपने प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष राजेंद्र पटावरी को पढ़ा तो सही, पढ़कर तिलमिलाना तो स्वाभाविक है। इतनी खरी-खरी सुनने के बाद, वजूद और जमीर रखने वाले हर आदमी को कीड़ियां सी चढ़नी चाहिए, आपको चढ़ी, भाई राजेंद्र का लिखना सार्थक हुआ।

आपकी उम्र और राजनीतिक अनुभव का सम्मान अवश्य होना चाहिए, यही हमारे संस्कार हैं। लेकिन विधायक के रूप में आपके इस कार्यकाल की कमियां सबको अखरती हैं। सच्चाई यह है कि विपक्षी विधायक के तौर पर आप खरे उतर ही नहीं पाए। जिले के लिए चल रहे संघर्ष में एक विधायक यदि पत्थर मारकर लाठीचार्ज करवाने की बात करे तो उसे नौसिखिया बयान ही कहा जाएगा। यदि वाकई आप में कुछ करने का माद्दा होता तो 19 जिलों की घोषणा के वक्त विधानसभा में ही सत्ता के मुंह पर अपना त्यागपत्र दे मारते और जनता के बीच संघर्ष की हूंकार भरते। कम से कम सूरतगढ़ की आवाज बुलंद होती और इलाके की जनता आपको सर आंखों पर बिठा लेती। लेकिन आप जाने किस अज्ञात भय के चलते निर्णय ले ही नहीं पाए। दूसरों के वक्तव्य को आप छींट पाड़ने की उपमा देते हैं, खुद आप लट्ठा भी नहीं पाड़ पाए, लट्ठ ही पाड़ लेते !


इसी मंच से कुछ रोज पहले आपने कहा था कि आपको कांग्रेस में शामिल होने की शर्त पर सूरतगढ़ को जिला बनाने का न्योता दिया गया था। यदि यह वाकई सच है तो आपने सूरतगढ़ का वो नुकसान कर दिया, जो सदियों तक याद रखा जाएगा। आज लोग निजी स्वार्थों के लिए पार्टियां बदल रहे हैं लेकिन आप इलाके के लिए ऐसा अनूठा त्याग करते तो नया इतिहास लिखा जाता। अफसोस, आपने पार्टी हितों के लिए अपने विधानसभा क्षेत्र की अनदेखी करते हुए एक बेहतरीन मौका गंवा दिया।

यदि आप प्रेस की आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकते तो आपको विधायकी त्याग कर कपड़े की दुकान खोल लेनी चाहिए या नरमा बीज लेना चाहिए। जिस जनता ने आपको सिर माथे पर बिठाकर विधानसभा में भेजा है उसे आप बेवकूफ बनाने की कोशिश करेंगे तब सुनना तो पड़ेगा ! समझना भी पड़ेगा कि -

तुमसे पहले जो शख्स यहां तख्तानशीं था
उसे भी अपने खुदा होने का इतना ही यकीं था.

एक बात और, मौके के विधायक आप हैं न कि राजेंद्र भादू, अशोक नागपाल, या गंगाजल मील। कहा तो आपको ही जाएगा क्योंकि आपका दायित्व इन सबसे कहीं बड़ा है। अपने कद को मजबूत करने के लिए कुछ ठोस निर्णय लेने की सोचिए।

संघर्ष के इस दौर में होना तो यह चाहिए था कि आप सबसे बड़े जनप्रतिनिधि होने के नाते आंदोलन का नेतृत्व करते, उसे सही दिशा प्रदान करते लेकिन आप अपना वोट बैंक को बचाने की जुगत में लगे रहे जबकि सच्चाई यह है कि आपका वोट बैंक कब खिसक गया आपको पता ही नहीं चला। खुद आपकी पार्टी में इतने गुट बन गए कि आप गिनती नहीं कर सकते।

मीडिया ने अपना काम कैसा किया है, उसे किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। आज भी इस देश की जनता आप नेताओं से कहीं अधिक, खबरनवीसों की बात पर यकीन करती है। आपने राजेंद्र पटावरी को गोदी मीडिया मानने की भूल कर दी है, जो ना काबिले बर्दाश्त है।

खुद सक्षम होने के बावजूद आप आयोजन समिति का मुंह ताकते हैं। उनसे बचकाना सवाल पूछते हैं, 'कितने आदमी, कितने दिन लाने हैं।' आप खुद तय क्यों नहीं करते ? संघर्षशील लोगों को जयपुर ले जाकर सरकार से सीधे मुद्दे की बात क्यों नहीं करते ? याद रखिए, जयपुर का विधायक निवास आपका नहीं, इस इलाके की जनता का है, यदि वहां 10 दिन रुकना भी पड़े, तो कहां दिक्कत है ! अमराराम जैसे संघर्षशील विधायकों से सीख लीजिए जिन्हें उनके इलाके के लोग आंखों का तारा बनाकर रखते हैं। सूरतगढ़ जिला बनाओ के संघर्ष में लगे मुट्ठी भर लोगों का मार्गदर्शन तो ठीक ढंग से कर दीजिए।

अगर कुछ ज्यादा कह दिया है तो दिल पर ना लें। जिस दिन आप वाकई जिम्मेदार जनप्रतिनिधि होने का दायित्व निभाएंगे, यही प्रेस आप के सम्मान में खड़ी होगी। प्रेस का मुंह खुलवाने की बजाय यथार्थ के धरातल पर काम करना शुरू कीजिए। सूरतगढ़ जिला बनेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना जान लें-

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध.

सादर
डॉ. हरिमोहन सारस्वत
अध्यक्ष,
प्रेस क्लब, सूरतगढ़

Saturday, 1 April 2023

जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है !


(सूरतगढ़ जिला बनाओ संघर्ष)

कल अपेक्स मीटिंग हॉल में जिला बनाओ संघर्ष समिति की स्टेयरिंग कमेटी की बैठक में प्रेस क्लब की ओर से सूरतगढ़ के सभी नेताओं को मर्यादित ढंग से समझाने की कोशिश की थी. उस चेतना का असर यह हुआ कि शाम होते होते आंदोलन का स्वरूप बदल गया. कुछ युवा और जुझारू लोग पुराने हाउसिंग बोर्ड की टंकी पर जा चढ़े और सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग का नारा बुलंद किया.


प्रशासन और पुलिस इस घटनाक्रम से एक बार तो सकते में आ गए. आनन-फानन में फायर ब्रिगेड की गाड़ी, एंबुलेंस, नागरिक सुरक्षा के सेवा कर्मी, पुलिस जाब्ता सभी चुस्त-दुरुस्त होकर घटनास्थल पर पहुंच गए. टंकी पर छात्र नेता रामू छिंपा, टिब्बा क्षेत्र के जुझारू नौजवान राकेश बिश्नोई, शक्ति सिंह भाटी, सुमित चौधरी अशोक कड़वासरा, अजय सारण, कमल रेगर 100 फुट ऊंची टंकी पर चढे नारे बुलंद कर रहे थे. इन युवाओं के इस कदम ने आंदोलन को एक नया रूप दिया है.

देखते ही देखते वार्ड नंबर 25-26 सूरतगढ़ जिला बनाओ आंदोलन का एक नया केंद्र बन गया जहां भीड़ जुटने लगी. वार्ड के लोगों ने आंदोलनकारियों के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था की. रात को इंद्र भगवान ने भी अपने रंग दिखाए, तेज बारिश के साथ सर्द हवाएं भी चली लेकिन नौजवानों ने सूरतगढ़ को जिला बनाने के आंदोलन में गर्मी ला दी है.

इस आंदोलन में अब 4 केंद्र बन चुके हैं. बीकानेर पीबीएम अस्पताल में पूजा छाबड़ा लगातार आमरण अनशन पर है. सूरतगढ़ के ट्रॉमा सेंटर में जुझारू उमेश मुद्गल की भूख हड़ताल दसवे दिन पहुंच गई है. प्रताप चौक पर संघर्षशील नेता बलराम वर्मा ने कमाल संभाल रखी है. चौथा और मजबूत केंद्र नौजवानों ने बना दिया है. युवाओं की इच्छा शक्ति को देखते हुए लगता है कि आंदोलन का यह केंद्र आने वाले दिनों में और मजबूत होगा.

देखना यह है कि सूरतगढ़ में विधायक बनने का सपना देख रहे दूसरे नेता और अन्य जनप्रतिनिधि इस आंदोलन में अपनी कैसी भागीदारी निभाते हैं. इस यज्ञ में सभी जागरूक लोगों को अपना योगदान देने की जरूरत है. चुनावी साल में कांग्रेस सरकार जन भावनाओं को कितना महत्व देती है उनका यह निर्णय आगामी सरकार बनाने में होगा. अशोक गहलोत लोकप्रिय और जन नेता के रूप में जाने जाते हैं, उन्हें सूरतगढ़ के मामले में संवेदनशील होकर निर्णय लेना चाहिए. 

भाषायी लालित्य लिए मन को छूनेवाली कहानियां

- मनोहर सिंह राठौड़ ( पांख्यां लिख्या ओळमा की समीक्षा ) राजस्थानी और हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर सिंह जी राठौड़ का कला और संस्कृति ...

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