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Monday, 27 February 2023

'आधुनिक बाल साहित्य:दशा एवं दिशा' पर जोधपुर में हुआ विमर्श


आयोजन में बिजारणियां और लढ़ा ने की शिरकत

तकनीकी युग में बाल साहित्य ही बचा सकता है संस्कारों की थाती

लूणकरणसर, 27 फरवरी राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर एवं चनणी फाउण्डेशन, जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में जोधपुर आयोजित साहित्यिक आयोजन में लूणकरणसर उपखण्ड के साहित्यकार राजूराम बिजारणियां और मदनगोपाल लढ़ा ने शिरकत की। जोधपुर के होटल चंद्रा इन में आयोजित इस कार्यक्रम में राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल और अकादमी अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। लूणकरणसर के कवि, चित्रकार राजूराम बिजारणियां ने "वर्तमान में बाल साहित्य लेखन और चुनौतियां" विषय पर पत्रवाचन करते हुए कहा कि तकनीकी युग में बाल साहित्य ही संस्कारों की थाती को बचा सकता है। महाजन के डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने प्रथम सत्र में अध्यक्षता का दायित्व निभाते हुए कहा कि घर में किताब का कोना होना चाहिए ताकि पठन की संस्कृति बची रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में सरदार व.भा. पुलिस वि.वि., जोधपुर, कुलसचिव, श्वेता चौहान (आई.ए.एस.) का सानिध्य रहा। कार्यक्रम संयोजक संतोष चौधरी ने फाउंडेशन की ओर से आभार प्रकट किया।

फूल वाली पार्टी ने किसे बनाया 'फूल' !


(स्वागत की फूल मालाओं के बहाने)


अनजाने होठों पे
क्यों पहचाने गीत हैं
कल तक जो बेगाने थे
जन्मों के मीत हैं
क्या होगा कौन से पल में
कोई जाने ना ....

लगभग 55 वर्ष पूर्व लिखा गया इंदीवर का यह गीत सूरतगढ़ की वर्तमान राजनीतिक पर सटीक बैठता है। पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा को पानी पी-पीकर कोसने वाले भाजपाई आज उनके स्वागत के लिए बेताब हुए जा रहे हैं। वैसे उन्हें खुशियां मनाने का हक भी है क्योंकि कालवा के बहाने उन्होंने कांग्रेस को पटखनी दी है, गंगाजल मील को आईना दिखाया है। लेकिन इस घटनाक्रम से जनता के समक्ष भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है। सच्चाई यह है कि अनुशासन, स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम का दंभ भरने वाली भाजपा राजनीतिक स्वार्थों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

बहुत दिन नहीं हुए जब यही ओम कालवा विधायक रामप्रताप कासनिया को पालिका की बैठकों में बोलने तक नहीं दिया करते थे, वरिष्ठ होने के बावजूद उन्हें साइड में एक कुर्सी पर बिठाया करते थे और बहसबाजी में तू-तड़ाक पर उतर आते थे। कासनिया तो अपने वक्तव्य में हमेशा कालवा पर दोषारोपण करते थे कि उसने पूरे शहर की ऐसी-तैसी कर दी है। लेकिन वक्त ऐसा बदला कि आज दोनों गलबहियां डालकर एक दूसरे की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। हकीकत दोनों जानते हैं कि उनके बीच उमड़ता प्रेम सिर्फ जरूरत का सौदा है, और कुछ नहीं। कासनिया जैसे चतुर राजनीतिज्ञ ओम कालवा पर कितना भरोसा करेंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना वे जरूर जानते होंगे कि जो व्यक्ति अपार मान सम्मान देने वाली पार्टी और स्टैंड करने वाले अपने राजनीतिक आकाओं का ही नहीं हो सका वह उनका कैसे हो सकता है !

दरअसल, कालवा हो या कासनिया, राजनीति की बिसात पर सब मोहरे हैं। कौन कब किसको मात देकर कहां जा मिले, कुछ नहीं कहा जा सकता। विश्वास और भरोसे जैसे शब्द सामाजिक जीवन में होते हैं राजनीति तो सर्वप्रथम इन शब्दों का गला घोंटती है। भरोसा टूटने के बाद साधारण आदमी तो आंख मिलाने की हिम्मत नहीं कर सकता जबकि राजनीति तो आंखों की शर्म और लिहाज पहले ही ताक पर रख चुकी होती है।

इस घटनाक्रम का लब्बोलुआब भी यही है कि सूरतगढ़ का भविष्य ताक पर रख दिया गया है। राज्य की कांग्रेस सरकार कैसे बर्दाश्त करेगी कि उनका एक प्यादा दगाबाजी करते हुए राजनीतिक प्रतिद्वंदी से जा मिले। गंगाजल मील, जिन्होंने कालवा को पाल-पोस कर खड़ा किया, चोट खा कर चुप थोड़े ही बैठने वाले हैं ! वे भी अपने दांव चलेंगे। पालिका के ईओ से तो कालवा की पहले ही ठनी हुई है, तिस पर ईओ ठहरा कांग्रेस सरकार का मुलाजिम ! सीवरेज घोटाले का जो मुकदमा अब तक सीआईडी सीबी में ठंडे बस्ते में था अब उस पर कार्यवाही होना भी तय है। 'आज तेरी, तो कल मेरी !' यही राजनीति है।

ऐसी परिस्थितियों में सवाल उठता है कि नगरपालिका में आए डेडलॉक का खामियाजा कौन भुगतेगा ! फुल वाली पार्टी ने आखिर किसे फूल बनाया ? कांग्रेस को, गंगाजल मील को, ओमप्रकाश कालवा को या फिर खुद अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को ! इतना तय है कि दोनों सवालों के बीच सबसे बड़ा फूल जनता ही बनी है। एक पावरलेस चेयरमैन को पाकर भाजपा खुश भले ही हो ले लेकिन शहर की जनता को देने के लिए उनके पास सिवाय थोथे वायदों के कुछ नहीं है।

डॉ. हरिमोहन सारस्वत

Sunday, 26 February 2023

मीलों के आत्ममंथन का वक्त !



( कालवा दलबदल के बहाने)

जिस आदमी को आप सहारा देकर खड़ा करते हैं, उसे चलना सिखाते हैं, भागदौड़ के बीच प्रतिद्वंद्वियों को पटकना सिखाते हैं, एक दिन वही आदमी आप द्वारा सिखाए गए दांव पेच इस्तेमाल करते हुए आपको ही पटक देता है तो सोचिए आप कैसा महसूस करेंगे ? यदि बात राजनीति की हो तो यह दर्द और गहरा हो जाता है।

सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी की धूरी कहे जाने वाले मील परिवार के साथ कमोबेश ऐसा ही कुछ हुआ है। पूर्व विधायक गंगाजल मील द्वारा आशीर्वाद प्राप्त नगर पालिका चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा ने उन्हें धोबी पछाड़ दांव लगाकर ऐसी ही पटखनी दी है। 'गाय तो गई, सागै गल़ावंडो ई लेयगी' की तर्ज पर कालवा अपने चहते पार्षदों को भी भाजपा में ले गए। नगर पालिका मंडल में कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत एक झटके से अल्पमत में बदल गया, और विडंबना देखिए, अविश्वास प्रस्ताव की गेंद कांग्रेस के पाले में आ गई है। परिस्थितियां भी ऐसी बनी हैं कि कांग्रेस का कुछ भी बंटता दिखाई नहीं देता। मीलों के प्रभाव से यदि राज्य सरकार कुछ हस्तक्षेप करेगी तो कालवा को न्यायालय से राहत मिलना तय है।


कालवा का भाजपा में पदार्पण कोई बड़ी बात नहीं है, राजनीतिक गलियारों में ऐसा होता आया है। लेकिन कालवा ने मील परिवार पर जो गंभीर आरोप लगाए हैं वे उन्हें बड़ा राजनीतिक नुकसान दे सकते हैं। कालवा के अनुसार पूर्व विधायक गंगाजल मील परिवारवाद की राजनीति कर रहे थे और उन पर गलत कामों के लिए दबाव डाल रहे थे, ऐसे में कांग्रेस को अलविदा कहने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। जनमानस में सवाल उठना स्वाभाविक है कि मीलों द्वारा आखिर कौनसे गैर कानूनी काम करवाने का दबाव डाला जा रहा था ?

गौरतलब है कि गंगाजल मील और हनुमान मील के रूप में मील लगातार दो चुनाव हार चुके हैं, तीसरा चुनाव सिर पर है। ऐसी स्थिति में अपना राजनीतिक कद बनाए रखने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि मील अपना आत्म मंथन करें। यदि 2023 के चुनाव में वह जीत का स्वाद चखना चाहते हैं तो उन्हें अपनी कमजोरियों और गलतियों से सबक सीखना होगा अन्यथा क्षेत्र की राजनीति उन्हें खारिज कर देगी।

ताजा मामले का ही उदाहरण ले लें। पिछले दो वर्ष से मीडिया लगातार ओमप्रकाश कालवा की भ्रष्ट कार्यशैली को उजागर कर रहा था। खबरनवीसों ने बहुत पहले ही चेता दिया था कि यह आदमी आप की जड़ों में मट्ठा डालने का काम कर रहा है लेकिन उसके बावजूद मील कानों में तेल डाले बैठे रहे, गंगाजल मील खुद कालवा को कांग्रेस का समर्पित कार्यकर्ता और सच्चा सिपाही बताते रहे मगर मौका मिलते ही कालवा अपना रंग दिखा गए। दरबारी सलाहकारों से घिरा मील परिवार भांप ही नहीं पाया कि उनके चहते ही उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं। नगरपालिका की लचर कार्यशैली को वे कभी नियंत्रित ही नहीं कर पाए फिर मामला चाहे अवैध कब्जों का हो या कर्मचारियों के तबादले का, व्यापारियों से विवाद का हो या मीडिया कर्मियों से उलझने का। कालवा अपनी मनमानी करता रहा, मीलों के दरबारी सलाहकारों को मैनेज कर उन्हें गुमराह करता रहा। हकीकत यह है कि चिलम चाटूकारों के जमावड़े से मील जमीनी हकीकत देख ही नहीं पाए। सच्चाई यही है कि दूसरों का चश्मा हमेशा भ्रम पैदा करता है।

पानी जब सिर से गुजरता दिखाई दिया तब हेतराम मील कुछ प्रयास करते दिखे, लेकिन कालवा की घाघ राजनीति के चलते वे भी नाकाम रहे। दरबारियों की कानाफूसी के बीच हनुमान मील चाह कर भी नगर पालिका में चल रही अव्यवस्था का मुखरता से विरोध नहीं कर पाए, जिसका समग्र परिणाम हुआ कि शहरी राजनीति में मील परिवार की किरकिरी हुई है। जाते-जाते कालवा ने गंभीर आरोप लगाकर फजीहत का पूरा ठीकरा मीलों के सिर फोड़ दिया है।

देखना यह है कि गंगाजल मील और उनका परिवार इस दगाबाजी से हुए राजनीतिक नुकसान की भरपाई कैसे करता है। इसके लिए उन्हें गंभीरता से आत्म चिंतन करना होगा। अभी भी उनके हाथ में कुछ पत्ते ऐसे हैं जिन्हें यदि सोच समझकर फेंका जाए तो बाजी पलट सकती है। वक्त हार की कगार पर खड़े सभी सूरमाओं को एक मौका अवश्य देता है।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Friday, 24 February 2023

कांग्रेस के सिपाही कालवा के पोत चौड़े, दलबदल कर वार्ड 26 की जनता से की सबसे बड़ी गद्दारी

खुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही और कर्मठ कार्यकर्ता बताने वाले ओमप्रकाश कालवा के पोत चौड़े आ गए हैं। पालिका में चल रहे संक्रमण काल के दौरान उन्होंने दल बदल कर साबित कर दिया है कि वह स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। पूर्व विधायक गंगाजल मील को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे कालवा का यह कदम स्थानीय राजनीति में क्या गुल खिलाता है यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इस निर्णय से नगरपालिका मंडल में उथल-पुथल और पार्षदों की खरीद-फरोख्त बढ़ना तय है।


भाजपा का दामन थामने वाले कालवा ने कांग्रेस के साथ गद्दारी की है या नहीं, यह तो वही जानें, लेकिन इतना तय है की वार्ड 26 की जनता के साथ उन्होंने गद्दारी की है। कालवा द्वारा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने से वार्ड की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है। पार्षद से चेयरमैन तक का सफर कालवा ने इसी वार्ड के लोगों के वोटों के बूते तय किया था।

गौरतलब है कि यह वार्ड नगर पालिका चुनाव में सामान्य सीट का वार्ड था। लाइनपार सूर्य नगरी से आकर इस मोहल्ले में नये बसे कालवा ने लोगों के समक्ष गुहार लगाई कि यदि वार्ड के लोग उसे मौका दें तो जीतने के बाद उसे चेयरमैन बनाया जा सकता है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वह वार्ड के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। चापलूसी भरी बातें और पूर्व में शिक्षक होने के चलते वार्डवासियों ने न सिर्फ उन पर भरोसा किया बल्कि अनुसूचित जाति होने के बावजूद सामान्य वार्ड से ओमप्रकाश कालवा को कांग्रेस की टिकट पर भारी मतों से जिताया था।

आज वार्ड के लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हुए कालवा ने वार्ड की जनता के साथ गद्दारी की है । जिस जनता ने कांग्रेस के नाम पर कालवा को वोट दिये और चेयरमैन बनाया, उनसे बिना किसी चर्चा के दल बदल कर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे अपने वार्डवासियों के ही नहीं हुए तो शहर के हितैषी कैसे हो सकते हैं ! भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कालवा ने अपना असली रंग दिखाते हुए गंगाजल मील की पीठ में छुरा भोंकने का काम किया है। वही गंगाजल मील, जो यह कहते नहीं अघाते थे कि हमने कांग्रेस के एक सच्चे सिपाही को पालिकाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया है, एक ईमानदार शिक्षक को शहर का मुखिया बनाया है, खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

बहरहाल, राजनीतिक स्वार्थों के चलते इस कदर जनभावनाओं की अनदेखी करने की सजा कालवा को मिलना तय है। भाजपा जैसी पार्टी में जहां पहले ही एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है, में जाकर अपना मुकाम बनाना या फिर सांसद और विधायकी के सपने देखना मुसद्दीलाल की कल्पनाएं मात्र हैं।

Monday, 20 February 2023

लंबी लकीर खींची है मधु आचार्य ने !


(साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के कार्यकाल की समीक्षा)


साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल का कार्यकाल मार्च 2023 को समाप्त हो रहा है। इस पंचवर्षीय कार्यकाल की अवधि में दो वर्ष तो कोरोना की भेंट चढ़ गए लेकिन उसके बावजूद मंडल के समन्वयक मधु आचार्य साहित्य संपादन, लेखन और प्रोत्साहन की गतिविधियों को लेकर एक लंबी लकीर खींचने में कामयाब रहे हैं।

चूंकि मधु आचार्य पत्रकारिता के क्षेत्र से हैं और उनके पास हिंदी के शीर्ष समाचारपत्र दैनिक भास्कर के संपादन का लम्बा अनुभव है, लिहाजा उनके कमान संभालने से यह तो लगभग तय ही था कि साहित्य अकादमी में राजस्थानी परामर्श मंडल को तुलनात्मक दृष्टि से बेहतरीन नेतृत्व मिलेगा, लेकिन कोरोना संकट के चलते किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि उनके कार्यकाल के दौरान सृजन, लेखन, अनुवाद और संपादन सहित साहित्य के अनछुए विषयों पर महत्वपूर्ण काम होगा।

आचार्य के इस कार्यकाल में साहित्य अकादमी की गतिविधियों ने राजस्थानी साहित्य के सृजन और विकास में एक अनूठा मुकाम बनाया है। परामर्श मंडल द्वारा अकादमी के देश भर में आयोजित कार्यक्रमों में विविधता और निरंतरता बनी रही है। कोरोना काल में जहां विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर लगातार ऑनलाइन सेमिनार्स आयोजित हुए वहीं आजादी के 'अमृत महोत्सव' के दौरान राजस्थानी साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर विमर्श और सृजन के समानांतर आयोजन हुए। खास बात यह रही कि इन आयोजनों में अनेक नए और युवा रचनाकारों को सृजन के अवसर मिले हैं। महिला लेखन को प्रोत्साहन दिया जाना भी मंडल की नई पहल कहा जा सकता है।

इस कार्यकाल की उपलब्धियां देखें तो ''राजस्थानी में गांधी' विषय पर पहली बार 'सिंपोजियम' आयोजित हुआ जिसका सकारात्मक परिणाम यह रहा कि राजस्थानी में महात्मा गांधी पर एक बेहतरीन पुस्तक प्रकाश में आई। आचार्य द्वारा संपादित यह पोथी शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार
कहानी विधा पर आलोचना के महत्वपूर्ण शोधपत्रों की संपादित पुस्तक 'राजस्थानी कहाणी' (परंपरा री दीठ अर आधुनिकता री ओल़खाण) भी महत्वपूर्ण है।

आचार्य के प्रयासों से अकादमी द्वारा 'इक्कीसवीं सइकै री राजस्थानी कहाणी' (कहानी संग्रह), 'इक्कीसवीं सइकै री राजस्थानी कविता', 'रेत सागै हेत', (कविता संग्रह), 'राजस्थानी बाल काव्य', 'राजस्थानी बाल कथा साहित्य' रेवतदान चारण की कविताओं का संचयन' और 'कन्हैयालाल सेठिया की कविताओं का संचयन' जैसी संग्रहणीय पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है।

अनुवाद की बात करें तो आचार्य के कार्यकाल में साहित्य अकादमी की 24 भाषाओं में सबसे अधिक काम राजस्थानी में हुआ है। उनके नेतृत्व में पंजाबी विश्वविद्यालय, अमृतसर में महत्वपूर्ण अनुवाद कार्यशाला का आयोजन संभव हो पाया जिसके फलस्वरुप पंजाबी से राजस्थानी और राजस्थानी से पंजाबी अनुवाद के दो महत्वपूर्ण कहानी संग्रह तैयार हुए हैं। इसके अतिरिक्त अनेक नए युवा अनुवादकों द्वारा विभिन्न भाषाओं की अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का राजस्थानी अनुवाद संभव हो सका है।

अकादमी द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों पर यदि चर्चा ना हो तो बात पूरी नहीं हो सकती। साहित्यकारों के एक धड़े द्वारा हमेशा इनकी आलोचना की जाती रही है। अकादमी पुरस्कारों के अपने मानदंड होते हैं लेकिन इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि पूर्व में दिए गए पुरस्कारों की तुलना में मंडल द्वारा तुलनात्मक रूप से काफी हद तक पारदर्शिता बरती गई है। निर्णयन प्रक्रिया में राजस्थान भर के साहित्यकारों को सहभागी बनाया जाना इस बात का द्योतक है कि मंडल ने बेहतर करने का प्रयास किया।

समाहार स्वरूप यह कहा जा सकता है कि आचार्य की यह खेचल़ नयी टीम के लिए प्रेरणादायी होने के साथ-साथ चुनौती का काम भी करेगी। इसे लांघने के लिए नई कार्यकारिणी को भरपूर ऊर्जा के साथ बेहतर प्रदर्शन करना होगा।

- डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Wednesday, 8 February 2023

जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है !

(हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर के बहाने)


कुदरत ने दुनिया की हर शह के प्रारंभ और अंत का वक्त मुकर्रर कर रखा है. इसी कड़ी में राजकीय पशु चिकित्सालय, सूरतगढ़ में पिछले 14 वर्षों से निरंतर चल रहे 'हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर' के समापन का वक्त भी आ गया है. पशुपालन विभाग की इस जमीन पर अब न्यायालय परिसर का निर्माण होगा, जिसके लिए भू अंतरण की कार्यवाही पूरी हो चुकी है. इसी परिसर में संचालित मत्स्य विभाग और आयुर्वेदिक चिकित्सालय पहले ही अंतरित किये जा चुके हैं. अंतिम रूप से इस गोवंश शिविर को जाना है. यहां के पशुओं को दूसरी गौशाला में भेजे जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. नई कोंपलों के लिए पुराने पीले पत्तों का झरना जरूरी है, यही नियति है, जिसका स्वागत होना चाहिए. विदाई वक्त आज मन भारी है. आपसे इस शिविर के आरम्भ और यहां संचालित हुई गतिविधियों को साझा करता हूं. 



नवंबर 2008 का समय रहा होगा जब राजकीय पशु चिकित्सालय में 'हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर' प्रारंभ हुआ था. उस दिन सर्द कोहरे के मौसम में, रात्रि साढे़ ग्यारह के करीब सिटी पुलिस स्टेशन और गुरुद्वारे के बीच लगभग 200-250 गौवंश, जिनमें ज्यादातर कमजोर गोधे और छोटे बछड़े थे, जाने कौन लोग छोड़ गए थे. भारी धुंध में सड़क पर जाम लगा था, तत्कालीन एसडीएम राहुल गुप्ता, जो ताजा-ताजा आईएएस बने थे, मैंने.उन्हें फोन कर मौके पर बुलवाया. किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाजा अस्थाई व्यवस्था के लिए एक बार इन निराश्रित पशुओं को हमने प्रशासन और पुलिस के सहयोग से राजकीय पशु चिकित्सालय की टूटी-फूटी बिल्डिंग में बने दो बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया. चुनावी मौसम था, लिहाजा सुबह चारे-पानी की व्यवस्था में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. 



हाईलाइन की पूरी टीम ने प्रशासन के सहयोग से इस शिविर को चलाने का जिम्मा उठाया. जब किसी पुनीत कार्य की शुरुआत होती है तो हाथ स्वत: ही जुड़ते चले जाते हैं. दैनिक हाईलाइन ने इस गोवंश शिविर में सहयोग की अपील प्रकाशित करनी प्रारम्भ की तो कारवां बनता गया. शहर के प्रबुद्ध लोगों ने अपने स्वजनों के जन्मदिन, पुण्यतिथि और मांगलिक अवसरों पर सहयोग की निरंतरता बनाए रखी, जिसके चलते निराश्रित पशुओं के लिए बेहतर व्यवस्था बन पाई. बीकानेर रोड पर गुरुद्वारे के सामने लगे शेड के नीचे प्रतिवर्ष सर्दी के मौसम में इन बेजुबान पशुओं के लिए गरमा-गरम दलिये की सेवा भी जारी रहती थी जिसमें सभी प्रबुद्ध जनों का सहयोग मिलता था. यहां तक कि जैतसर विजयनगर, अनूपगढ़ और घड़साना के पाठकों का सहयोग भी इस शिविर को मिलता रहा. इसी शिविर से हमने सूरतगढ़ में पर्यावरण संरक्षण के लिए 'रूंख भायला' अभियान की शुरुआत की थी, जो आज वृक्ष मित्रों के प्रयासों में दूर-दूर तक जा पहुंचा है।


कोरोनाकाल में इस शिविर को भी संकट का सामना करना पड़ा, लेकिन ईश्वर की कृपा से पशुओं के चारे पानी की व्यवस्था में कमी नहीं आई. इसीलिए लगता है कि शिविर में सहयोग करने वाले सभी जागरूक लोगों के लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है.



यदि कुछ चेहरों का जिक्र न किया जाए तो बात अधूरी होगी. इस शिविर के संचालन में सबसे महती भूमिका जिस व्यक्ति की रही वह है आंचल प्रन्यास की अध्यक्ष श्रीमती आशा शर्मा, जिन्होंने अपनी व्यस्तता के बावजूद न सिर्फ नियमित सेवा दी बल्कि बेहतर व्यवस्था बनाने के हर संभव प्रयास किए. सर्द मौसम में प्रातः 6 बजे उठकर पशुओं के लिए दलिया तैयार करवाना
, हरे चारे की व्यवस्था करना, कोरोना संकट काल में प्रत्येक अमावस्या पर सहयोगियों के साथ चौक पर खड़े होकर आर्थिक सहयोग एकत्रित करना, बीमार पशुओं की देखरेख करना, पानी के टैंकरों की व्यवस्था करना आदि छोटे-मोटे बहुत से काम ऐसे हैं, जिनमें सेवा भाव के साथ निरंतरता बनी रहना अत्यंत कठिन है लेकिन आशा जी ने इस दायित्व को बखूबी निभाया. यही कारण है कि उन्हें इस सेवा के लिए हमेशा भरपूर सराहना मिली और प्रशासन द्वारा भी समय-समय पर सम्मानित किया जाता रहा है. इसी कड़ी में स्वर्गीय विजय शर्मा, स्वर्गीय पवन सोनी, श्री रमेश चंद्र माथुर, श्री विजय मुद्गल, आयुर्वेद चिकित्सालय के श्री गोविंद सिंह, डॉ. एम एस राठौड़, दिलीप स्वामी उर्फ बबलू व संचालन सेवा दल के जगदीश नायक, असगर अली और जुम्मे खान का उल्लेख भी जरूरी है जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दी. इस शिविर में पशु चिकित्सालय के स्टॉफ और सिटी पुलिस थाने का सहयोग भी निरंतर मिलता रहा है. हाल ही में ट्रांसफर हुए थानाधिकारी रामकुमार लेघा तो नित्य प्रति इस शिविर में सेवा देते रहे हैं. जाने कितने ऐसे चेहरे हैं जो मुझे याद नहीं, लेकिन उनकी निस्वार्थ सेवा के बिना यह सब संभव नहीं था. आज घड़ी उन सबका आभार इस बात के साथ कि-

देहों शिवा बर मोहे ईहे, 

शुभ करमन ते कबभुं न टरूं

न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं..

O Supreme Lord! May I never deviate from straight path. May I never fear enemies. Make me winner every time I enter the battlefield. 

-Guru Gobind Singh Ji


डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'




भाषायी लालित्य लिए मन को छूनेवाली कहानियां

- मनोहर सिंह राठौड़ ( पांख्यां लिख्या ओळमा की समीक्षा ) राजस्थानी और हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर सिंह जी राठौड़ का कला और संस्कृति ...

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