(पधारो म्हारै देस)
सूरतगढ़ ! यानि मैं. बोले तो काॅटनसिटी. आप मुझसे बात करना पसंद करेंगे ? ठीक है. तो पहले परिचय हो जाए. लीजिए, पढ़िए मेरी शान में क्या कशीदे लिखे गए हैं.
संभावनाओं का शहर. जी हां, अगर बीकानेर सम्भाग में किसी भी व्यक्ति सेे सूरतगढ़ के बारे में बात की जाए तो कमोबेश यही जवाब मिलेगा कि ‘सूरतगढ़ के क्या कहने, अकाल में भी वहां के बाजार में सुकाल रहता है भई’. वास्तुशास्त्रियों की मानें तो यह शहर अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के चलते विकास के पथ पर निरन्तर उत्तरोत्तर प्रगति करता रहेगा. हकीकत भी यही है कि सूरतगढ़ अपनी विशिष्टताओं के चलते आज प्रदेश ही नहीं भारतवर्ष के नक्शे पर अपना विशेष स्थान रखता है. यहां के धोरों पर विकसित देशों की सैन्य टुकडि़यों के साथ निरन्तर होते युद्धाभ्यासों ने सूरतगढ़ को विश्व मानचित्र पर ला दिया है
संभावनाओं का शहर. जी हां, अगर बीकानेर सम्भाग में किसी भी व्यक्ति सेे सूरतगढ़ के बारे में बात की जाए तो कमोबेश यही जवाब मिलेगा कि ‘सूरतगढ़ के क्या कहने, अकाल में भी वहां के बाजार में सुकाल रहता है भई’. वास्तुशास्त्रियों की मानें तो यह शहर अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के चलते विकास के पथ पर निरन्तर उत्तरोत्तर प्रगति करता रहेगा. हकीकत भी यही है कि सूरतगढ़ अपनी विशिष्टताओं के चलते आज प्रदेश ही नहीं भारतवर्ष के नक्शे पर अपना विशेष स्थान रखता है. यहां के धोरों पर विकसित देशों की सैन्य टुकडि़यों के साथ निरन्तर होते युद्धाभ्यासों ने सूरतगढ़ को विश्व मानचित्र पर ला दिया है
सूरतगढ़ आंकड़ों और वास्तु की दृष्टि में
सूरतगढ़ 29.19 डिग्री अक्षांश और 73.54 डिग्री देशान्तर पर स्थित है जो समुद्रतल से 171 मीटर की उंचाई पर स्थित है. प्रदेश मुख्यालय से 412 किमी दूर स्थित यह तहसील 2843.22 किमी क्षेत्र में फैली हुई है जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत भाग कृषि योग्य है. यहां की जलवायु अर्द्ध शुष्क है. सूरतगढ़ में ग्रीष्मकाल में अत्यधिक गर्मी और शीत ऋतु में अत्यधिक सर्दी का मौसम रहता है. यहां अधिकतम औसत तापमान 16-48 डिग्री सेन्टीग्रेड तक रहता है जबकि न्युनतम 4-20 डिग्री तक चला जाता है.ग्रीष्मकाल में यहां अप्रेल से सितम्बर तक दक्षिण पश्चिमी हवाएं औसतन 12 किलोमीटर की गति से चलती है. वर्षा का औसत 191 मिलीमीटर प्रतिवर्ष है जो जुलाई से सितम्बर के मध्य में होती है. सुकाल के समय मावठ भी हो जाती है.
कुम्भ राशि वाले सूरतगढ़ शहर के कारक ग्रह शनि महाराज है जो न्यायप्रिय व अनुशासनशील होने के साथ शनै-शनै गतिमान रहते हैं. वास्तुशास्त्रियों का मानना है कि सूरतगढ़ पर वास्तु देव की पूरी कृपा है जिसका कारण यहां की भौगोलिक स्थिति और शहर की बसावट है. पूर्वी-दक्षिणी आग्नेय कोण में स्थित थर्मल के बॉयलर में जबसे अग्नि प्रज्ज्वलित हुई है तब से यहां विकास ने गति पकड़ी है. इसी तरह उत्तर-पूर्व में स्थित घग्घर का पानी जहां धन के आगमन का मार्ग प्रशस्त करता है वहीं दक्षिण-पश्चिम में स्थित बड़े-बडे़ धोरोंं की स्थिरता नैऋत्य कोण को मजबूती प्रदान करती है. शहर की उत्तर दिशा में पानी की ढाब के खत्म होने और धरातल अपेक्षाकृत नीचा होने के कारण यहां की अचल सम्पतियों के मूल्य में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है.
सूरतगढ़ का इतिहास
ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि 1799 ई. में भटनेर विजय के बाद बीकानेर रियासत के महाराजा सूरतसिंह जब घग्गर के लुप्त हुए प्रवाह से गुजरते हुए सोढ़ल की ढाब पर पहुंचे तो उनकी पैनी नजरों ने इस भू-भाग की संभावनाओं को सदियों पहले भांप लिया था और महाजन के दीवान को यहां स्थित अपनी सैन्य टुकड़ी हेतु गढ़ी स्थापित करने का हुक्म दिया था. हालांकि 9वीं-10वीं शताब्दी में सोढ़ावटी के नाम से प्रसिद्ध यह इलाका कई बार बसा और उजड़ा लेकिन 1805 में सूरतसिंह द्वारा गढ़ की स्थापना के बाद से निरन्तर अपनी संभावनाओं को साकार करते हुए आज घड़ी राजस्थान की सबसे अहम तहसील के रूप में सूरतगढ़ अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ है. सदियों से विद्यमान विकास की इन्हीं संभावनाओं के चलते राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में नये जिले बनाने हेतु गठित की गई कमेटियों की सूची में सूरतगढ़ का नाम हमेशा से शामिल रहता आया है.
कालीबंगां, रंगमहल और बड़ोपळ में पसरे पड़े हड़प्पाकालीन अवशेष आज भी इस भू-भाग के गौरवमयी एवं समृद्ध इतिहास का बखान करते हैं. माना जाता है कि यह क्षेत्र महाभारतकाल में काम्यक वन का क्षेत्र था जिसमें उत्तम ऋषि का आश्रम था. पवित्र सरस्वती और दृषद्वति (हाकडा़) नदियों का प्रवाह स्थल होने के कारण यह क्षेत्र अत्यन्त सुरम्य और विकसित माना जाता था. कदाचित इसीलिए पाण्डव अपने वनवास के दौरान यहां स्थित काम्यक वन में रहे थे. कालान्तर में प्राकृतिक उथल-पुथल के चलते सरस्वती नदी लुप्त हो गई और यह इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो कर एकबार फिर से उजाड़ सा हो गया. लेकिन यहां की धरा में जीजिविषा इतनी प्रबल थी कि उसने ढाब का पानी समाप्त नहीं होने दिया. ढाब के इसी पानी में महाराजा सूरतसिंह ने संभावनाओं की लहरें उठती देख कर यहां गढ़ बनाने का मानस बनाया था.
हालांकि मूल रूप से इस गढ़ की स्थापना का उद्देश्य इलाके में लूटमार करने वाले भाटी और जोइया राजपूतों पर नियन्त्रण रखना था लेकिन बाद में यह बीकानेर रियासत का महत्वपूर्ण सैन्य अड्डा बन गया. गढ़ के निर्माण में प्रयुक्त ईंटों को बड़ोपळ व रंगमहल के अवशेषों से लाकर लगाया गया था. इस गढ़ में बीकानेर महाराजा के आदेश पर पुलिस थाना व तहसील स्थापित की गई. महाराजा रतनसिंह और सरदारसिंह के काल में सूरतगढ़ को अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण राज्य की विशेष तहसील का दर्जा दिया गया. महाराजा डूंगरसिंह ने अपने कार्यकाल में बीकानेर रियासत को प्रशासनिक सुविधा के लिए बीकानेर, सुजानगढ़, रैनी (तारानगर) और सूरतगढ़ नाम से चार निजामतों में बांट दिया. इन निजामतों में एक-एक नाजिम नियुक्त किया गया था जिसे फौजदारी, दीवानी और माल के सीमित अधिकार थे. सूरतगढ़ के प्रथम निजाम लालजीमल एक योग्य, चतुर व अच्छे प्रशासक थे. निजामत में सरिश्तेदार, अहलमद, मुहाफिज, दफ्तर, गुमास्ता, सवार, सिपाही व चपरासी रखे जाते थे. सूरतगढ़ निजामत में हनुमानगढ़, मिर्जेवाला, अनूपगढ़ व सूरतगढ़ तहसीलें शामिल थी.
सूरतगढ़ की विकासगाथा
ब्रिटिशकाल में ही 1902 में यहां एंग्लोवरने कूलर प्राइमरी स्कूल, 1908 में पोस्ट ऑफिस और 1917 में नगरपालिका की स्थापना हो चुकी थी. 1927 में गंग नहर आने के बाद गंगानगर को जिला बना सूरतगढ़ निजामत को उसके अधीन कर दिया गया. उसके बाद से प्रगति के नित नये सोपान चढ़ रहे सूरतगढ़ की वास्तविक विकास यात्रा आरम्भ हुई. 1959 में पंचायती राज व्यवस्था आरम्भ होने के साथ ही यहां सूरतगढ़ पंचायत समिति आरम्भ हुई. संचार के क्षेत्र में यहां 1965-66 में टेलिफोन सेवा आरम्भ हुई तथा सन् 2004 में बीएसएनएल की मोबाइल फोन सुविधा शुरू हुई.
सूरतगढ़ में परिवहन के साधन
यातायात के साधनों की बात करें तो 1889 में बीकानेर-दुलमेरां तक छोटी लाइन बनी और 1902 में बीकानेर भठिण्डा लाइन को चालू किया गया. सूरतगढ़ इस रेल लाइन का एक महत्वपूर्ण स्टेशन बना. इसके बाद कैनाल लूप लाइन और अनूपगढ़ लाइन से जुड़ने के बाद इसे जंक्शन का दर्जा दिया गया. स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद बीकानेर-बठिण्डा लाइन को ब्रोडगेज में बदल दिया गया जिसका नतीजा यह हुआ कि आज अहमदाबाद-जम्मू, जोधपुर-कालका, अवध आसाम, श्रीगंगानगर त्रिरूचरापल्ली जैसी लम्बी दूरी की रेलगाडि़यां सूरतगढ़ से गुजरती हैै. श्रीगंगानगर सूरतगढ़ मार्ग पर छोटी लाइन के आमान परिवर्तन होने के बाद इस मार्ग पर ब्रोडगेज सेवा का यातायात और बढ़ा है. सड़क परिवहन की बात करें तो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 15, जिसे अब एनएच 62 कर दिया गया है, भी सूरतगढ़ से गुजरता है. इस राजमार्ग की खासियत यह है कि भगवानसर के बाद लगभग 52 किमी यह राजमार्ग बिना किसी मोड़ के बिल्कुल सीधा श्रीगंगानगर की तरफ बढ़ता है. सूरतगढ़ से श्रीगंगानगर 70 किमी और बीकानेर 175 किमी की दूरी पर स्थित है. हनुमानगढ़- सूरतगढ़ के बीच 50 किमी को फोरलेन में तब्दील कर दिया गया है. बीकानेर संभाग में बनने वाला यह पहला फोरलेन राज्य राजमार्ग है. सूरतगढ़ से जम्मू, अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, दिल्ली, उदयपुर, जयपुर, कोटा, अजमेर, जोधपुर, बीकानेर के लिये बेहतरीन बस सेवाओं के साथ-साथ रेल सुविधा भी उपलब्ध है.
इन आधार भूत सुविधाओं के साथ सूरतगढ़ की संभावनाओं को साकार करने में कुछ विशिष्ट परियोजनाओं का हाथ रहा है जिनमें इन्दिरागांधी नहर का नाम प्रमुखता से लिया जाना चाहिए. इस परियोजना ने इलाके की काया ही पलट दी है. पेयजल के साथ-साथ बारानी खेतों में सिंचाई हेतु जल उपलब्ध होने से गांवों को तेजी से विकास हुआ है. इलाके में सावणी और हाड़ी की अच्छी फसलों के चलते कृषकों के साथ-साथ व्यापारी वर्ग को भी सम्बल मिला है.
राष्ट्रीय बीज निगम के फार्म
इसी तरह 15 अगस्त 1956 को सोवियत संघ के सहयोग से स्थापित हुए केन्द्रीय-राज्य कृषि फार्म ने सूरतगढ़ के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लगभग 12000 हैक्टेयर कृषि भूमि पर स्थापित इस फार्म में उन्नत किस्म के बीज उत्पादित किये जाते हैं. इस फार्म की सफलता को देखते हुए 1964 में जैतसर में 5394 हैक्टेयर में भी रूस मैत्री के प्रतीक रूप में फार्म की स्थापना की गई. यह फार्म भारत में ही नहीं अपितु एशिया में अपनी तरह का पहला और अनूठा कृषि फार्म है. सूरतगढ़ के फार्म में तो पशुओं की अच्छी नस्ल तैयार करने हेतु केन्द्रीय पशु नस्ल सुधार केन्द्र भी स्थापित किया गया है जहां कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा उच्च गुणवत्ता के दुधारू पशुओं की सैंकड़ों नस्लें तैयार की जाती हैं. फार्म में पशुओं को गुणवत्तापूर्ण चारा उपलब्ध करवाने के लिए चारा उत्पादन केन्द भी फार्म में अलग से स्थापित है. इन कृषि फार्मों को राष्ट्रीय बीज निगम के अधीन कर दिया गया है.
सूरतगढ़ सुपर पावर थर्मल स्टेशन
प्रदेश को विद्युत उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से स्थापित राजस्थान की अति महत्वाकांक्षी परियोजना सूरतगढ़ सुपर थर्मल पावर स्टेशन तहसील के दक्षिणी-पूर्वी भाग में लगभग 27 किमी दूर प्रभातनगर में स्थित है. कोयले द्वारा संचालित इस विद्युत गृह में 1500 मेगावाट की 6 इकाईयां स्थापित हैं. इसके अतिरिक्त 660-660 मेगावाट की दो सुपर क्रिटिकल इकाईयां भी स्थापित की गई हैं जिससे यह विद्युत गृह एशिया की सबसे बड़ी विद्युत परियोजना बनने की ओर अग्रसर हैै. यह परियोजना भी सूरतगढ़ की संभावनाओं में और चमक पैदा कर रही है.
सूरतगढ़ एयरफोर्स स्टेशन व आर्मी कैंट
सामरिक दृष्टि से पाकिस्तान की सीमा के नजदीक महत्वपूर्ण शहर होने के कारण सूूरतगढ़ में भारतीय वायुसेना और थल सेना की छावनी भी स्थापित हैं. इसी इलाके में थलसेना की महाजन फील्ड फायरिंग रेन्ज और बिरधवाल आयुध डिपो सैन्य गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र हैं. इन छावनियों व रेन्ज में रहने वाले सैनिकों तथा उनके परिवारों का शहर में आवागमन बने रहने से बाजार में रौनक छाई रहती है. इन्ही संभावनाओं के चलते आज सूरतगढ़ में उपभोक्ता वस्तुओं का लगभग हर ब्राण्ड बाजार में उपलब्ध है जिनमें से कईयों के तो विशाल शोरूम भी खुल चुके हैं.
काॅटनसिटी चैनल आकाशवाणी सूरतगढ़
1982 में स्थापित सूरतगढ़ आकाशवाणी, जिसे आज कॉटन सिटी चैनल के नाम से जाना जाता है, राजस्थान का सबसेे बड़ा प्रसारण केन्द्र है. 300 किलोवाट क्षमता के इस केन्द्र के कार्यक्रम एशिया भर में सुने और सराहे जाते हैं. औद्योगिक विकास की दृष्टि से सूरतगढ़ का ईंट उद्योग प्रदेश भर र्में इंटों की आपूर्ति करता हैं. यहां बनने वाली ईंटें गुणवत्तापूर्ण होने के साथ-साथ तुलनात्मक रूप सस्ती हैं जिसके चलते उनकी निरन्तर मांग बनी रहती है.सूरतगढ़ के उदयपुर गांव में बांगड़ ग्रुप का नव स्थापित श्री सिमेन्ट कारखाना भी स्थानीय विकास में अपनी भूमिका निभा रहा है. 25 हजार मी. टन की क्षमता वाले इस कारखाने में थर्मल की राख कच्चे माल के तौर पर उपयोग में आती है. हाल ही में श्री सिमेंट द्वारा इस प्लांट की क्षमता वृद्धि हेतु नई यूनिट भी स्थापित की गई है. इस इकाई की सफलता को देखते हुए संभावना है कि निकट भविष्य में यहां और भी कई औद्योगिक इकाईयां स्थापित होंगी जो इलाके के विकास में अहम भूमिका निभाएंगी.
इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में यहां स्थापित एपेक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल ने सूरतगढ़ और आस-पास के रोगियों के लिए संजीवनी का काम किया है. इसके अलावा सूरतगढ़ में अनेक निजी चिकित्सालय है जहां कुशल विशेषज्ञ डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. राजकीय चिकित्सालय और ट्रॉमा सेंटर में भी बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है.
सूरतगढ़ में कोचिंग की सुविधाएं
आज सूरतगढ़ को प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु सर्वोत्तम केन्द्र माना जाता है. यहां से निकलने वाले प्रशासनिक अधिकारियों और अन्य परीक्षाओं में सफल अभ्यर्थियों की फौज ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया है. इस सफलता के मूल में समर्पित व्यक्तित्व प्रवीण भाटिया की कड़ी मेहनत है जिसने सबसे सस्ती दरों पर कोचिंग करवाने की मुहिम एक गुरूकुल के रूप में चलाई. इसका परिणाम यह है कि आज यहां प्रदेश भर से आए हुए हजारों विद्यार्थी कोचिंग कर रहे हैं. इन विद्यार्थियों के आगमन से शहर की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव आया है. रोजगार के नये-नये रास्ते खुले हैं. इस संभावना को देखते हुए यहां नये-नये कोचिंग संस्थान खुल रहे हैं.
वर्तमान में यहां बैंकिंग, डिफेंस, यूपीएसी और आरपीएससी के लिए शानदार कोचिंग सुविधाएं उपलब्ध हैं. अनेक विषय विशेषज्ञों की उपस्थिति सूरतगढ़ की कोचिंग को प्रभवी बनाती है. इसके अलावा शहर में पीजी कॉलेज, बी.एड.कॉलेज, कृषि महाविद्यालय, एसटीसी कॉलेज, आईटीआई आदि खुलने से शिक्षा का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ है.
शिक्षा के क्षेत्र में हुए अभूतपूर्व सरकारी प्रयास के रूप में यहां स्थित जवाहर नवोदय स्कूल और स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल भी सफलता की नई इबारतें गढ़ रहे हैं. सीबीएसई से संबद्ध निजी क्षेत्र के कुछ विद्यालयों ने भी राष्ट्रीय स्तर पर भी अपना परचम लहराया है.
सोढ़ल नगरी में विकास की जो संभावनाएं कभी महाराजा सूरतसिंह ने देखी थी, यह शहर उससे भी कहीं अधिक बढ़कर अपने पंख फैलाने को आतुर है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले दिनों में सूरतगढ़ उत्तरोत्तर प्रगति कर विकास की नई कहानी लिखने वाला है.
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