कई बार
कीड़ियां भी
पोंछती रही हैं
मेरे आंसू.
चुप कराया है मुझे
बहुत बार
उन्होंने
देकर
अपना बलिदान.
छुटपन में
चलते-चलते गिर पड़ना
बिना किसी चोट के
बुक्का फाड़कर रोना
और मां का यह कहना
अरे, वो देखो कीड़ी मर गई !
मेरा बालमन
हतप्रभ हो
मरी हुई कीड़ी की देह तलाशता
भूल जाता
कि मुझे रोना भी है
मामूली से दर्द को
ढोना भी है.
मगर मरी हुई कीड़ी
मुझे कभी नहीं मिली
मिला तो सिर्फ
संवेदना का सबक.
उसी संवेदना के साथ
मैं जिंदा हूं
उन कीड़ियों की मौत पर
आज तक शर्मिंदा हूं !
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