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Monday, 15 May 2023

'मंडी गैंग' : सपनों की रिंग रोड का सुहाना सफर


(प्रेमलता के उपन्यास को पढ़ते हुए...)


जब किसी रचना में कथ्य और बिंब सहज होने के साथ परिचित से लगने लगें तो उसमें पाठकीय उत्सुकता जागना स्वाभाविक है। ऐसे कथानक साधारण होने के बावजूद पाठक को बांधने की क्षमता रखते हैं। यूं भी कहा जा सकता है कि साधारण चीजों में ही विशिष्टता छिपी रहती है। बात लेखन की हो तो यह तथ्य और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

प्रेमलता सोनी का नया उपन्यास 'मंडी गैंग' इसी बात की साख भरता है। अपने पहले उपन्यास में ही प्रेमलता जी ने लेखकीय कौशल का परिचय दिया है। उपन्यास की भाषा और शिल्प सरल होने के साथ सुग्राह्य है तथा अनावश्यक जटिलता से बचा गया है। जरूरत के अनुसार 'बोल्ड' शब्द भी काम में लिए गए हैं। उपन्यास का कथानक कहीं भी टूटता नहीं है और मंथर गति से पाठक को साथ बहा ले जाता है।


सब्जी मंडी से शेयरबाजार तक की महत्वाकांक्षी उड़ान भरते इस उपन्यास के किरदारों को बेहद खूबसूरती के साथ गढ़ा गया है। हर पात्र का अपना एक अलग अंदाज है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति है जो किसी दूसरे पर आश्रित नहीं है। कथानक में एक ओर सब्जी मंडी का आंतरिक वातावरण प्रस्तुत किया गया है तो वहीं ब्याज का धंधा करने वाले छोटे फायनेंसर्स की चाल और चरित्र को उभारा गया है। सामाजिक रूप से कमोबेश हर शहर में ऐसे किरदार देखे जा सकते हैं।

उपन्यास का नायक जितेश है जिसकी जिंदगी को रिंग रोड के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस रोड पर उसे मंचन, गीता, इंदिरा, ओमी, इरशाद, रूपेश और पंकज सरीखे किरदार मिलते हैं जिनके साथ कथानक आगे बढ़ता है। पैसा कमाने की लालसा किसे नहीं होती लेकिन उसके लिए जुनून पैदा करना पड़ता है। इस जुनून का एक रास्ता अति महत्वाकांक्षा के रूप में बर्बादी की तरफ भी जाता है। जितेश का किरदार इसका जीवंत उदाहरण है। जितेश की पत्नी बरखा के रूप में लेखिका ने मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों में महिलाओं की स्थिति का बखूबी चित्रण किया है। सब्जी मंडी में मजदूरी करने वाली महिलाओं के चरित्र भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं । उनके जीवन संघर्ष को बेहतर ढंग से उभारा गया है।

इस उपन्यास को पढ़ते समय पाठक अनायास ही जयपुर के माहौल से परिचित हो जाता है। चांदपोल, नाहरी का नाका, गोविंद देव जी मंदिर और आमेर महज शब्द भर नहीं हैं बल्कि एक पूरी सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए हैं। उनके आसपास पसरे हुए यथार्थ और संवेदनाओं को इस उपन्यास के ताने-बाने में बखूबी पिरोया गया है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जयपुर के कलमकार मंच द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास महिला लेखन के क्षेत्र में नई उम्मीद जगाता है। प्रेमलता जी ने इस उपन्यास के माध्यम से अपनी लेखन प्रतिभा परिचय दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए आने वाले दिनों में उनकी कलम से और बेहतर रचाव पढ़ने को मिलेगा।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Saturday, 15 April 2023

मानवीय व्यवहार का बखूबी परीक्षण करती हैं पटियालवी की लघु कथाएं


( दविंदर पटियालवी के नए लघुकथा संग्रह 'उड़ान' के बहाने...)


दविंदर पटियालवी पंजाबी के सुपरिचित लघुकथाकार है। एक समर्पित रचनाकार के तौर पर वे लघु कथा के क्षेत्र में पिछले 30 सालों से काम कर रहे हैं। 'उड़ान' उनका दूसरा लघु कथा संग्रह है। ये कहानियां मूलत: पंजाबी में कही गई हैं, जिनका हिंदी अनुवाद हरदीप सब्बरवाल ने किया है। इससे पूर्व इसी विधा में 'छोटे लोग' शीर्षक से उनका एक और लघु कथा संग्रह प्रकाशित है। उनकी रचनाएं विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं । रेडियो और टीवी पर भी पटयालवी की उपस्थिति रहती है। पंजाबी साहित्य सभा, पटियाला के सक्रिय सदस्य के रूप में 'कलम काफिला' और 'कलम शक्ति' का उन्होंने संपादन किया है । वर्ष 2012 से वे पंजाबी की प्रतिष्ठित लघुकथा पत्रिका 'छिण' का संपादन कर रहे हैं।

कम शब्दों में सार्थक अभिव्यक्ति लेखक को विशिष्ट पहचान देती है। लोक में कहा भी जाता है कि 'बात रा तो दो ई टप्पा होवै...।' लघु कथा इसी दृष्टि से उपजी एक साहित्यिक विधा है जिसमें लेखक किसी एक संदर्भ को पकड़ कर पाठक की संवेदना तक पहुंचना चाहता है। जीवन की आपाधापी में पल- प्रतिपल हम अनेक ऐसी बातों, घटनाओं, और तथ्यों से गुजरते हैं जो घड़ी भर के लिए हमारी संवेदना को छूती है, हमें विचलित करती है। अगले ही पल जीवन आगे बढ़ जाता है लेकिन इन घटनाओं और तथ्यों में छिपी किसी एक बिंदू को अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से पकड़कर कलमबद्ध करना ही लघुकथा का आधार है। आज के दौर में लघु कथाएं आधुनिक साहित्य की पसंदीदा विधा बन चुकी हैं।

पाकिस्तान के लघु कथाकार और वरिष्ठ पत्रकार मुब्बशिर जैदी इस विधा को व्यक्ति की तात्कालिक संवेदना से जोड़ने की बात कहते हैं जो दिलो दिमाग पर देर तक छाई रहती है । उनके अनुसार यूरोप में तो पचपन शब्दों की लघुकथाओं के प्रयोग बेहद सफल रहे हैं और इस विधा में बेहतर सृजन हुआ है।

एक उपन्यास में घटनाओं और तथ्यों की श्रंखला का विस्तार रहता है जबकि कहानी विधा इस विस्तार को सीमित दायरे में बांधती है। लघुकथा तो इस सीमित दायरे को भी छोटा बनाकर देखने में यकीन रखती है। इस विधा की खूबी यह है कि एक समय में व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति और संवेदनाएं किसी एक खास बिंदु अथवा घटना पर केंद्रित कर पाने में सफल होता है।

दविंदर पटियालवी
'उड़ान' संग्रह की लघु कथाओं की बात करें तो इसमें कुल 51 लघु कथाएं सम्मिलित हैं। इन कथाओं को पढ़ते हुए पाठक का अनायास ही लेखकीय दृष्टि से परिचय हो जाता है जो सरल, संयमित और समर्पित है। इसी दृष्टिकोण के चलते ये लघुकथाएं भौतिक यथार्थ को अभिव्यक्त कर पाने में सफल हुई हैं। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, एलिंग भेद और माननीय व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को लेकर रची गई इन कथाओं से पाठक स्वत: ही जुड़ता चला जाता है। बानगी के तौर पर उनकी लघुकथा 'फर्क' को देखिए -

देश के प्रसिद्ध नेताजी हेलीकॉप्टर उड़ान के वक्त अचानक खराब हुए मौसम की वजह से लापता हो गए। प्रदेश की पुलिस फौज और सारा प्रशासनिक अमला हेलीकॉप्टर की तलाश में जी जान से जुट गया ।चारों और इस बात को लेकर हाहाकार मच गई ।

इतने में खबर आई कि पास ही उफनती नदी की चपेट में 2 गांव डूब चुके हैं। शाम हो चुकी थी, लिहाजा प्रशासन ने अगले दिन सुबह कार्यवाही करने का आदेश दिया और खुद रात के अंधेरे में पीड़ितों को मौत के मुंह में छोड़कर गायब हो गया।

इसी प्रकार खिलौने, हिसाब-किताब, सबक, कंस, आदर, प्रश्न, एक नई शुरुआत और अपशकुन लघु कथाएं पाठक के समक्ष बेहतर बिंब खड़ा करती हैं। लघु कथा 'पछतावा' में माननीय व्यवहार को बेहद शानदार ढंग से प्रस्तुत किया गया है तो वहीं 'उड़ान' शीर्षक की कथा एक पिता की अपनी बेटी के प्रति दोघाचिंती से रूबरू करवाती है।

चूंकि पटियालवी खुद लंबे समय से लघु कथाओं का संपादन करते रहे हैं, इसलिए वे साहित्यिक बारीकियों को बखूबी जानते हैं। उनका यह लेखकीय अनुभव इस संग्रह में झलकता है। सुकून देने वाली बात यह है कि इस संग्रह के माध्यम से हिंदी का पाठक पंजाब की लघुकथाओं से परिचित हो रहा है। अनुवादक हरदीप सब्बरवाल भी इस मायने में बधाई के पात्र हैं।

बोधी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'उड़ान' लघु कथा संग्रह अपनी विशिष्ट पहचान बनाएगा, यही कामना है उम्मीद की जानी चाहिए, आने वाले दिनों में दविंदर पटियालवी और बेहतर रचाव से साहित्य संसार को समृद्ध करेंगे।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Monday, 10 April 2023

बीड़ी जलई ले जिगर से पिया, जिगर में बड़ी आग है !


(मीडिया के आइने में चेहरा देख बौखलाए विधायक के नाम चिट्ठी)


शुक्रिया कासनिया जी !

आपने प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष राजेंद्र पटावरी को पढ़ा तो सही, पढ़कर तिलमिलाना तो स्वाभाविक है। इतनी खरी-खरी सुनने के बाद, वजूद और जमीर रखने वाले हर आदमी को कीड़ियां सी चढ़नी चाहिए, आपको चढ़ी, भाई राजेंद्र का लिखना सार्थक हुआ।

आपकी उम्र और राजनीतिक अनुभव का सम्मान अवश्य होना चाहिए, यही हमारे संस्कार हैं। लेकिन विधायक के रूप में आपके इस कार्यकाल की कमियां सबको अखरती हैं। सच्चाई यह है कि विपक्षी विधायक के तौर पर आप खरे उतर ही नहीं पाए। जिले के लिए चल रहे संघर्ष में एक विधायक यदि पत्थर मारकर लाठीचार्ज करवाने की बात करे तो उसे नौसिखिया बयान ही कहा जाएगा। यदि वाकई आप में कुछ करने का माद्दा होता तो 19 जिलों की घोषणा के वक्त विधानसभा में ही सत्ता के मुंह पर अपना त्यागपत्र दे मारते और जनता के बीच संघर्ष की हूंकार भरते। कम से कम सूरतगढ़ की आवाज बुलंद होती और इलाके की जनता आपको सर आंखों पर बिठा लेती। लेकिन आप जाने किस अज्ञात भय के चलते निर्णय ले ही नहीं पाए। दूसरों के वक्तव्य को आप छींट पाड़ने की उपमा देते हैं, खुद आप लट्ठा भी नहीं पाड़ पाए, लट्ठ ही पाड़ लेते !


इसी मंच से कुछ रोज पहले आपने कहा था कि आपको कांग्रेस में शामिल होने की शर्त पर सूरतगढ़ को जिला बनाने का न्योता दिया गया था। यदि यह वाकई सच है तो आपने सूरतगढ़ का वो नुकसान कर दिया, जो सदियों तक याद रखा जाएगा। आज लोग निजी स्वार्थों के लिए पार्टियां बदल रहे हैं लेकिन आप इलाके के लिए ऐसा अनूठा त्याग करते तो नया इतिहास लिखा जाता। अफसोस, आपने पार्टी हितों के लिए अपने विधानसभा क्षेत्र की अनदेखी करते हुए एक बेहतरीन मौका गंवा दिया।

यदि आप प्रेस की आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकते तो आपको विधायकी त्याग कर कपड़े की दुकान खोल लेनी चाहिए या नरमा बीज लेना चाहिए। जिस जनता ने आपको सिर माथे पर बिठाकर विधानसभा में भेजा है उसे आप बेवकूफ बनाने की कोशिश करेंगे तब सुनना तो पड़ेगा ! समझना भी पड़ेगा कि -

तुमसे पहले जो शख्स यहां तख्तानशीं था
उसे भी अपने खुदा होने का इतना ही यकीं था.

एक बात और, मौके के विधायक आप हैं न कि राजेंद्र भादू, अशोक नागपाल, या गंगाजल मील। कहा तो आपको ही जाएगा क्योंकि आपका दायित्व इन सबसे कहीं बड़ा है। अपने कद को मजबूत करने के लिए कुछ ठोस निर्णय लेने की सोचिए।

संघर्ष के इस दौर में होना तो यह चाहिए था कि आप सबसे बड़े जनप्रतिनिधि होने के नाते आंदोलन का नेतृत्व करते, उसे सही दिशा प्रदान करते लेकिन आप अपना वोट बैंक को बचाने की जुगत में लगे रहे जबकि सच्चाई यह है कि आपका वोट बैंक कब खिसक गया आपको पता ही नहीं चला। खुद आपकी पार्टी में इतने गुट बन गए कि आप गिनती नहीं कर सकते।

मीडिया ने अपना काम कैसा किया है, उसे किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। आज भी इस देश की जनता आप नेताओं से कहीं अधिक, खबरनवीसों की बात पर यकीन करती है। आपने राजेंद्र पटावरी को गोदी मीडिया मानने की भूल कर दी है, जो ना काबिले बर्दाश्त है।

खुद सक्षम होने के बावजूद आप आयोजन समिति का मुंह ताकते हैं। उनसे बचकाना सवाल पूछते हैं, 'कितने आदमी, कितने दिन लाने हैं।' आप खुद तय क्यों नहीं करते ? संघर्षशील लोगों को जयपुर ले जाकर सरकार से सीधे मुद्दे की बात क्यों नहीं करते ? याद रखिए, जयपुर का विधायक निवास आपका नहीं, इस इलाके की जनता का है, यदि वहां 10 दिन रुकना भी पड़े, तो कहां दिक्कत है ! अमराराम जैसे संघर्षशील विधायकों से सीख लीजिए जिन्हें उनके इलाके के लोग आंखों का तारा बनाकर रखते हैं। सूरतगढ़ जिला बनाओ के संघर्ष में लगे मुट्ठी भर लोगों का मार्गदर्शन तो ठीक ढंग से कर दीजिए।

अगर कुछ ज्यादा कह दिया है तो दिल पर ना लें। जिस दिन आप वाकई जिम्मेदार जनप्रतिनिधि होने का दायित्व निभाएंगे, यही प्रेस आप के सम्मान में खड़ी होगी। प्रेस का मुंह खुलवाने की बजाय यथार्थ के धरातल पर काम करना शुरू कीजिए। सूरतगढ़ जिला बनेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना जान लें-

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध.

सादर
डॉ. हरिमोहन सारस्वत
अध्यक्ष,
प्रेस क्लब, सूरतगढ़

Saturday, 1 April 2023

जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है !


(सूरतगढ़ जिला बनाओ संघर्ष)

कल अपेक्स मीटिंग हॉल में जिला बनाओ संघर्ष समिति की स्टेयरिंग कमेटी की बैठक में प्रेस क्लब की ओर से सूरतगढ़ के सभी नेताओं को मर्यादित ढंग से समझाने की कोशिश की थी. उस चेतना का असर यह हुआ कि शाम होते होते आंदोलन का स्वरूप बदल गया. कुछ युवा और जुझारू लोग पुराने हाउसिंग बोर्ड की टंकी पर जा चढ़े और सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग का नारा बुलंद किया.


प्रशासन और पुलिस इस घटनाक्रम से एक बार तो सकते में आ गए. आनन-फानन में फायर ब्रिगेड की गाड़ी, एंबुलेंस, नागरिक सुरक्षा के सेवा कर्मी, पुलिस जाब्ता सभी चुस्त-दुरुस्त होकर घटनास्थल पर पहुंच गए. टंकी पर छात्र नेता रामू छिंपा, टिब्बा क्षेत्र के जुझारू नौजवान राकेश बिश्नोई, शक्ति सिंह भाटी, सुमित चौधरी अशोक कड़वासरा, अजय सारण, कमल रेगर 100 फुट ऊंची टंकी पर चढे नारे बुलंद कर रहे थे. इन युवाओं के इस कदम ने आंदोलन को एक नया रूप दिया है.

देखते ही देखते वार्ड नंबर 25-26 सूरतगढ़ जिला बनाओ आंदोलन का एक नया केंद्र बन गया जहां भीड़ जुटने लगी. वार्ड के लोगों ने आंदोलनकारियों के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था की. रात को इंद्र भगवान ने भी अपने रंग दिखाए, तेज बारिश के साथ सर्द हवाएं भी चली लेकिन नौजवानों ने सूरतगढ़ को जिला बनाने के आंदोलन में गर्मी ला दी है.

इस आंदोलन में अब 4 केंद्र बन चुके हैं. बीकानेर पीबीएम अस्पताल में पूजा छाबड़ा लगातार आमरण अनशन पर है. सूरतगढ़ के ट्रॉमा सेंटर में जुझारू उमेश मुद्गल की भूख हड़ताल दसवे दिन पहुंच गई है. प्रताप चौक पर संघर्षशील नेता बलराम वर्मा ने कमाल संभाल रखी है. चौथा और मजबूत केंद्र नौजवानों ने बना दिया है. युवाओं की इच्छा शक्ति को देखते हुए लगता है कि आंदोलन का यह केंद्र आने वाले दिनों में और मजबूत होगा.

देखना यह है कि सूरतगढ़ में विधायक बनने का सपना देख रहे दूसरे नेता और अन्य जनप्रतिनिधि इस आंदोलन में अपनी कैसी भागीदारी निभाते हैं. इस यज्ञ में सभी जागरूक लोगों को अपना योगदान देने की जरूरत है. चुनावी साल में कांग्रेस सरकार जन भावनाओं को कितना महत्व देती है उनका यह निर्णय आगामी सरकार बनाने में होगा. अशोक गहलोत लोकप्रिय और जन नेता के रूप में जाने जाते हैं, उन्हें सूरतगढ़ के मामले में संवेदनशील होकर निर्णय लेना चाहिए. 

Thursday, 30 March 2023

उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है !


(जिला बनाओ अभियान का संघर्ष )

आज का घटनाक्रम कुछ यूं चला कि रात्रि लगभग 3:00 बजे 8 दिन से 'सूरतगढ़ जिला बनाओ' अभियान के अंतर्गत आमरण अनशन कर रहे उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ को पुलिस ने उठा लिया. संवेदनहीन प्रशासन ने उन्हें जिला चिकित्सालय, श्रीगंगानगर रैफर कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली. इन योद्धाओं को गाड़ी में बिठाकर भगवान भरोसे छोड़ दिया गया. यहां तक कि उनकी देखरेख के लिए कोई पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. जिला चिकित्सालय में वे दोनों अव्यवस्था के मारे अकेले बैठे रहे. नर्सिंग स्टाफ ने उनकी सुध तक नहीं ली और थक हार कर वे रोडवेज बस में बैठकर आठ बजे सूरतगढ़ लौट आए.



घटना की जानकारी मिलते ही शहर के संघर्षशील लोग, विधायक पूर्व विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि धरना स्थल पर पहुंचे और प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया. जिला कलेक्टर से लेकर एसडीएम, तहसीलदार और पुलिस प्रशासन सबको इस घोर लापरवाही के लिए लताड़ा गया. गुस्साए साथियों ने प्रताप चौक पर जैसे ही जाम लगाया अधिकारी और पुलिस सभी दौड़े आए और अपनी गलती स्वीकारने लगे. जनाक्रोश को देखकर मौके पर उपस्थित उपखंड अधिकारी ने माफी मांगते हुए दोषी तहसीलदार और कर्मचारियों की लापरवाही के खिलाफ विभागीय जांच का भरोसा दिलाया और भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना होने की बात कही.

परिणाम यह रहा कि पुलिस ने दोनों आंदोलनकारियों को पूरी जिम्मेदारी के साथ अब सूरतगढ़ ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवा दिया है जहां इलाज के साथ-साथ उनका अनशन भी जारी है. सूरतगढ़ जिला बनेगा या नहीं, मुझे नहीं पता, लेकिन इतना तय है कि उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है. अन्याय और संवेदनहीन प्रशासन को चेताने के लिए संभावनाओं के शहर में योद्धाओं की कमी नहीं है. इस संघर्ष में खड़े हर व्यक्ति को सादर प्रणाम, जिसने अपना योगदान दिया, और लगातार दे रहे हैं. अब आमरण अनशन की डोर जुझारू नेता बलराम वर्मा ने संभाली है अपनी घोषणा के मुताबिक उन्होंने आज से भूख हड़ताल शुरू की है. पूजा छाबड़ा द्वारा जगाई गई इस अलख में उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ सहित चार लोग आमरण अनशन पर हैं और धरना स्थल पर क्रमिक अनशन भी जारी है. देखें आगे क्या होता है !

Wednesday, 29 March 2023

राइट टू हेल्थ कानून पर आक्रोशित है डॉक्टर्स, सरकार करे पुनर्विचार


राजस्थान में चिकित्सक और सरकार राइट टू हेल्थ बिल को लेकर आमने-सामने हैं. डॉक्टरों की हड़ताल से आम आदमी की परेशानी बढ़ती ही जा रही है लेकिन चुनावी साल के मद्देनजर सरकार सुनने को ही तैयार नहीं है. इस बिल में अनेक ऐसे प्रावधान हैं जिनकी पालना हो पाना संभव ही नहीं है. इन प्रावधानों के चलते चिकित्सा व्यवस्था में विवाद और लड़ाई झगड़े बढ़ने तय हैं. एक ओर जहां सरकार के मंत्री चिकित्सकों को कसाई बता रहे हैं वहीं दूसरी और आरटीएच के नाम पर जनता को बेवकूफ बना कर वाहवाही लूट रहे हैं.


आईएमए की सूरतगढ़ शाखा ने कल इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी भावनाएं और परेशानियां लोगों के सामने रखी. वरिष्ठ चिकित्सकों ने इस कानून को लेकर अनेक शंकाएं व्यक्त की और सरकार से यह कानून वापस लेने की मांग की. आइए, इस बिल और विवाद को समझने की कोशिश करते हैं.

राइट टू हेल्थ (RTH) बिल में प्रावधान है कि कोई भी हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इलाज के लिए मना नहीं कर सकता है। इमरजेंसी में आए मरीज का सबसे पहले इलाज करना होगा। ये बिल कानून बनने के बाद बिना किसी तरह का पैसा डिपॉजिट किए ही मरीज को पूरा इलाज मिल सकेगा। एक्ट के बाद डॉक्टर या प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज को भर्ती करने या उसका इलाज करने से मना नहीं कर सकेंगे। ये कानून सरकारी के साथ ही निजी अस्पतालों और हेल्थ केयर सेंटर पर भी लागू होगा।

'इमरजेंसी' परिभाषित में होना सबसे बड़ा विवाद

सबसे बड़ा विवाद 'इमरजेंसी' शब्द को लेकर है। डॉक्टर्स की चिंता है कि इमरजेंसी को परिभाषित नहीं किया गया है। इमरजेंसी के नाम पर कोई भी मरीज या उसका परिजन किसी भी प्राइवेट हॉस्पिटल में आकर मुफ्त इलाज की मांग कर सकता है। इससे मरीज, उनके परिजनों से अस्पतालों के स्टाफ और डॉक्टर्स के बीच विवाद बढ़ेंगे। पुलिस एफआईआर, कोर्ट-कचहरी मुकदमेबाजी और सरकारी कार्रवाई में डॉक्टर्स और अस्पताल उलझ कर रह जाएंगे।

ये हैं बिल के प्रावधान

- हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इमरजेंसी में फ्री इलाज उपलब्ध करवाएंगे।

- मरीज या उसके परिजनों से कोई फीस नहीं ली जाएगी।

- इलाज के बाद ही मरीज या उसके परिजनों से फीस ली जा सकती है।

- अगर मरीज या परिजन फीस देने में असमर्थ रहते हैं, तो बकाया फीस और चार्जेज़ सरकार चुकाएगी।

- मरीज को किसी दूसरे अस्पताल में भी शिफ्ट किया जा सकता है।

- इलाज करने से इनकार किया, तो अस्पताल पर जुर्माना लगेगा

- मरीज का इलाज करने से इनकार करने पर पहली बार में 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा, दूसरी बार मना करने पर जुर्माना 25 हजार रुपये वसूला जाएगा। 

चिकित्सकों का पक्ष जानना भी जरूरी

कानून वापस नहीं होने तक आंदोलन और विरोध प्रदर्शन पर डॉक्टर्स अड़े हैं। चिकित्सकों का आरोप है कि यह बिल लागू होने पर प्राइवेट अस्पतालों में भी सरकारी अस्पतालों जैसी अव्यवस्थाएं और भीड़ बढ़ जाएगी। निजी अस्पतालों के कामकाज और उपचार में सरकार का सीधे दखल बढ़ जाएगा।

डॉक्टर्स का आरोप है कि इमरजेंसी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। कोई भी मरीज या उसका परिजन इमरजेंसी की बात कहकर किसी भी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंच जाएगा। फ्री इलाज करने की बात करेगा।

इससे अस्पताल, डॉक्टर्स और मरीज के परिजनों में झगड़े और टकराव बढ़ेंगे। कोर्ट-कचहरी और मुकदमेबाजी आम हो जाएगी। इसलिए बिल को वापस लिया जाए।

RTH लागू होने पर हर मरीज के इलाज की गारंटी डॉक्टर की हो जाएगी। कोई गंभीर मरीज अस्पताल पहुंचा और अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, तो स्वाभाविक रूप से मरीज को बड़े या संबंधित स्पेशलाइजेशन वाले अस्पताल में रेफर करना पड़ेगा।रेफर के दौरान बड़े अस्पताल पहुंचने से पहले अगर मरीज की मौत हो गई, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा और उसकी गारंटी कौन लेगा ?

सार यह है कि बंद एसी कमरों में बैठकर ब्यूरोक्रेट्स द्वारा बनाया गया यह कानून राहत देने की बजाय परेशानियां खड़ा करता दिखाई दे रहा है. यदि सरकार वाकई राइट टू हेल्थ के प्रति गंभीर है तो उसे देश के प्रधानमंत्री की तरह एक कदम आगे बढ़कर इस कानून को वापस लेना चाहिए. अशोक गहलोत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लाई गई चिरंजीवी योजना एक बेहतरीन योजना है, उसकी खामियां दूर कर बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था बनाई जा सकती है. 

अनशनकारी उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ के साथ पुलिस और प्रशासन का घोर दुर्व्यवहार


उमेश मुद्गल

विष्णु तरड़

(
सूरतगढ़ जिला बनाओ अभियान )

राजस्थान सरकार सूरतगढ़ जिला बनाओ आंदोलन के प्रति कितनी गंभीर और संवेदनशील है, इसका अंदाजा पुलिस प्रशासन की कार्यशैली से लगाया जा सकता है. रात्रि 3:00 बजे 7 दिन से आमरण अनशन पर बैठे उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ को पुलिस ने उठाकर श्रीगंगानगर चिकित्सालय रेफर करवा दिया। वहां किसी भी प्रकार की व्यवस्था ना होने के कारण वे दोनों अकेले चिकित्सालय में बैठे रहे जहां किसी ने उनकी सुध नहीं ली. यहां तक कि उनकी देखरेख के लिए कोई पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. ऐसी परिस्थिति में थक हार कर संघर्ष के दोनों योद्धा बस में बैठकर सूरतगढ़ लौट रहे हैं.

क्या पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि आमरण अनशन पर बैठे संघर्षशील युवाओं की गंभीरता से देखरेख करते ? खुदा ना खाश्ता आठ दिनों से भूखे बैठे इन नौजवानों को कुछ हो जाता तो किसकी जवाबदेही होती ? जिला बनाओ आयोजन समिति की कार्यशैली भी सवालों के कटघरे में है. रात्रि जब इन दोनों को पुलिस गंगानगर रेफर कर रही थी तब समिति का कोई सदस्य वहां उपस्थित नहीं था. ना ही किसी ने इन दोनों योद्धाओं के साथ श्रीगंगानगर जाना मुनासिब समझा. कम से कम अब आयोजन समिति को इस गंभीर मामले पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए और नई रणनीति बनानी चाहिए. 

सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार मधु आचार्य आशावादी को


राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के विविध पुरस्कारों-सम्मानों की घोषणा


# बावजी चतर सिंह अनुवाद पुरस्कार राजूराम बिजारणियां को 


इक्कीस एकेडमी फॉर ऐक्सीलेंस  की छात्रा कल्पना रंगा को मनुज देपावत पुरस्कार 

बीकानेर, 29 मार्च। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने वर्ष 2022-23 के लिए अकादमी के विविध पुरस्कारों तथा सम्मानों की घोषणा की है। अकादमी कार्यसमिति की बुधवार को होटल ढोला मारू सभागार में आयोजित बैठक में छंगाणी ने विभिन्न पुरस्कारों के निर्णायकों की संस्तुतियों के आधार पर पुरस्कार निर्णयों की जानकारी दी।
          अकादमी अध्यक्ष ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए 71,000 रुपए का सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार (पद्य) बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी को उनकी पुस्तक ‘पीड़ आडी पाळ बाध’ पर, 51,000 रुपए का गणेशीलाल व्यास उस्ताद पद्य पुरस्कार बारां के मूल निवासी व ठाणे के निवासी ओम नागर को उनकी पुस्तक ‘बापू : एक कवि की चितार’ पर, 51,000 रुपए का शिवचंद भरतिया गद्य पुरस्कार बीकानेर के कमल रंगा को उनकी पुस्तक ‘आलोचना रै आभै सोळह कलावां’ पर व 51,000 रुपए का मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार अलवर के डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी को उनकी पुस्तक ‘भरखमा’ पर दिया जाएगा। 
          अकादमी सचिव शरद केवलिया ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए 31,000 रुपए का बावजी चतर सिंह अनुवाद पुरस्कार लूणकरणसर के राजूराम बिजारणियां को उनकी पुस्तक ‘झोकड़ी खावतो बगत’ पर, 31,000 रुपए का सांवर दइया पैली पोथी पुरस्कार भीलवाड़ा के मोहन पुरी को उनकी पुस्तक ‘अचपळी बातां’ पर, 31,000 रुपए का जवाहरलाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार रायसिंहनगर
किरण बादल

की किरण बादळ को उनकी पुस्तक ‘टाबरां री दुनियां’ पर, 31,000 रुपए का प्रेमजी प्रेम राजस्थानी युवा लेखन पुरस्कार लूणकरणसर के देवीलाल महिया को उनकी पुस्तक ‘अंतस रो ओळमो’ पर, 31,000 रुपए का राजस्थानी महिला लेखन पुरस्कार बीकानेर की डॉ. कृष्णा आचार्य को उनकी पुस्तक ‘नाहर सिरखी नारियां’ पर तथा 31,000 रुपए का रावत सारस्वत राजस्थानी साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार ‘राजस्थली’ पत्रिका श्रीडूंगरगढ़ (सम्पादक- श्याम महर्षि) को दिया जाएगा। 
         केवलिया ने बताया कि वर्ष 2022-23 के लिए भतमाल जोशी महाविद्यालय पुरस्कार के तहत प्रथम स्थान प्राप्त राजकीय डूंगर महाविद्यालय बीकानेर के छात्र योगेश व्यास को उनकी कहानी ‘गैरी नींद’ पर 11,000 रुपए का व द्वितीय स्थान प्राप्त जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्र व फालना निवासी अभिमन्यु सिंह इंदा को उनके व्यंग्य ‘थांरो-म्हारो भविष्य’ के लिए 7,100 रुपए का पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इसी प्रकार मनुज देपावत पुरस्कार के तहत प्रथम स्थान प्राप्त राजकीय सार्दुल उच्च माध्यमिक विद्यालय बीकानेर के छात्र अरमान नदीम को उनकी लघुकथा ‘खोखो नीं हटसी’ पर 7,100 रुपए का व द्वितीय स्थान प्राप्त इक्कीस एकेडमी फॉर ऐक्सीलेंस गोपल्याण की छात्रा व महाजन निवासी कल्पना रंगा को उनकी कहानी ‘कंवळै मन री डूंगी पीड़़’ पर 5,100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।
सम्मान- अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने बताया कि 51,000 रुपए का राजस्थानी भाषा सम्मान अजमेर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. चन्द्रप्रकाश देवल को, 51,000 रुपए का राजस्थानी साहित्य सम्मान जोधपुर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अर्जुन देव चारण को, 51,000 रुपए का राजस्थानी संस्कृति सम्मान बीकानेर के ब्रजरतन जोशी को व 51,000 रुपए का राजस्थानी प्रवासी साहित्यकार सम्मान मुंबई के रामबक्स को प्रदान किया जाएगा।
        अकादमी का 31,000 रुपए प्रत्येक का आगीवाण सम्मान प्रदेश के 14 वरिष्ठ साहित्यकारों को प्रदान किया जाएगा। इनमें नंदकिशोर शर्मा (जैसलमेर), मेहरचंद धामू (परलीका, हनुमानगढ़), चांदकौर जोशी (जोधपुर), दीनदयाल ओझा (जैसलमेर), सोहनदान चारण (जोधपुर), भोगीलाल पाटीदार (डूंगरपुर), भंवरलाल भ्रमर (बीकानेर), गौरीशंकर भावुक (तालछापर, सुजानगढ़), पुरुषोत्तम पल्लव (उदयपुर), श्याम जांगिड़ (चिड़ावा, झुंझुनूं), गोपाल व्यास (बीकानेर), मुकट मणिराज (कोटा), बिशन मतवाला (बीकानेर), उपेन्द्र अणु (ऋषभदेव, उदयपुर) शामिल हैं। 
        छंगाणी ने बताया कि विविध पुरस्कारों के निर्णायकों में अर्जुनदेव चारण, मंगत बादळ, ब्रजरतन जोशी, अब्दुल समद राही, डॉ. नवजोत भनोत, डॉ. लक्ष्मीकान्त व्यास, मधु आचार्य, उपेन्द्र अणु, शंकरसिंह राजपुरोहित, उम्मेद गोठवाल, हाकम अली, संजय पुरोहित, कमल रंगा, गीता सामोर, सुचित्रा कश्यप, हरीश बी शर्मा, मनीषा डागा, विश्वामित्र दाधीच, माधव हाड़ा, सीमा भाटी, रामबक्ष जाट, पूर्ण शर्मा ’पूर्ण’, डॉ. भंवर भादाणी, धीरेन्द्र आचार्य, आशीष पुरोहित, निर्मल रांकावत, उमाकान्त गुप्त, रमेश पुरी, ऋतु शर्मा, जयश्री सेठिया, किरण बादल, कौशल्या नाई शामिल थे। छंगाणी ने बताया कि चिकित्सकीय सहायता के तहत साहित्यकार गोरधन सिंह शेखावत (सीकर) व देवकर्ण सिंह (उदयपुर) को 11,000 रुपए की चिकित्सकीय सहायता राशि दी जाएगी।

बैठक में अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. भरत ओळा, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र जोशी, सदस्य डॉ. घनश्यामनाथ कच्छावा, डॉ. मीनाक्षी बोराणा, अम्बिका दत्त, दिनेश पंचाल, डॉ. सुखदेव राव, डॉ. शारदा कृष्ण, डॉ. कृष्ण कुमार आशु, डॉ. सुरेश सालवी, देवकरण जोशी व सचिव शरद केवलिया उपस्थित थे।

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