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Wednesday 28 August 2024

प्रधान, ओ सूरतगढ़ है !


- पालिका बैठक में उघड़े पार्षदों के नये पोत
(आंखों देखी, कानों सुनी)
- डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'


पालिका एजेंडे के आइटम नंबर 07 पर आप खूब पढ़ चुके हैं । बैठक में इससे इतर जो कुछ हुआ, उसे भी जानिए। पालिका के पार्षदों ने एक दूसरे के कुछ नये पोत उघाड़े हैं। बिना किसी भूमिका कुछ तथ्य आपके समक्ष प्रस्तुत है :

- पूर्व पालिकाध्यक्ष परसराम भाटिया ने बैठक में सबके सामने पार्षद राजीव चौहान को कहा, ''भूलग्या, मैं थान्नै अर तााखर नैै तीन-तीन लाख दिया हा, खागे हराम करग्या !''

- पार्षद यास्मीन ने परसराम भाटिया को कहा, ''तुम सबसे बड़े भ्रष्ट हो, मेरे वार्ड में पंप हाउस की जमीन का पट्टा जारी कर दिया।'' इस पर पार्षद वसंत बोहरा ने यास्मीन को कहा, ''थे बोलण नै मरो ! आंगनबाड़ी में 5 लाख खाग्या।''

- पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा ने पार्षद कमला को कहा, ''थे आपगो पट्टो बणायो, फेर छोरै गै नांव गै बणायो, फेर दूसरै छोरै गै नांव गो बणायो, पार्षद होवता थारा पट्टा बण ई कोनी सकै !"

- परसराम भाटिया ने ओम कालवा को कहा, '' बसंत विहार के यूटिलिटी वाले मामले में तुम एक करोड़ रुपए खा गए और पट्टा जारी कर दिया, डूब मरो !"

- आइटम नंबर 7 के समर्थन में बोल रहे पार्षदों ने परसराम भाटिया और धर्मदास सिंधी पर इस मामले में 50 लाख की डील सिरे न चढ़ने के आरोप लगाए। उनका कहना था इसलिए आप ज्यादा कूद रहे हो !

- विधायक डूंगर राम गेदर ने एजेंडे से पहले शहर की सफाई व्यवस्था पर चर्चा करनी चाही लेकिन ओम कालवा ने कहा, ''चर्चा तो एजेंडे के अनुसार ही होगी।'' हालांकि बाद में खुद कालवा बैठक के बीच में ही पत्रकारों को प्लॉट देने का नया प्रस्ताव ले आए, मजे की बात पार्षदों पर मेजें भी थपथपा दी। कालवा की इस चतुराई पर किसी पार्षद की टिप्पणी सुनाई दी 'आप गुरूजी बैंगण खावै, दूसरां नै....!"

- बैठक में यह पता लगाना बड़ा मुश्किल था कि कौन सा पार्षद कांग्रेसी है और कौन सा भाजपा का। पत्रकारों में कानाफूसी हुई, "ये सब सिट्टासेक पार्षद हैं !"

हमेशा की तरह महिला पार्षदों की भूमिका इस बैठक में भी मूकदर्शक की रही। सिवाय इक्का-दुक्का प्रतिक्रिया और आरोप के ये महिलाएं चुपचाप देखती रही।

अब जनता ही तय कर ले कि उसने कैसे-कैसे जनप्रतिनिधि चुने हैं ! सफाई व्यवस्था हो या बरसाती पानी की निकासी का मामला, टूटी सड़कों का मुद्दा हो या पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार, कहीं कोई उम्मीद मत पालिए बस देखते जाइए।

अंत में......ठहाका लगाइए-

प्रधान, ओ सूरतगढ़ है ! 



Saturday 17 August 2024

गिराने की लाख कोशिशों के बीच निरंतर उभर रहे हैं गेदर

- नगरपालिका चुनावों में बना सकते हैं कांग्रेस का बोर्ड 

- भाजपा से लोकसभा सीट छीनने में महत्वपूर्ण भूमिका


कभी-कभी ऐसा होता है जब सारी दुनिया आपको गिराने में लगी होती है, उस वक्त एक अज्ञात शक्ति चुपचाप आकर आपके साथ खड़ी हो जाती है। देखते ही देखते पूरी तस्वीर बदल जाती है, आप और बेहतर ढंग से उभरने लगते हैं। आध्यात्मिक शब्दावली में इसी को 'डिवाइन जस्टिस' कहा जाता है। राजनीति की बात करें तो सूरतगढ़ के विधायक डूंगर राम गेदर 'डिवाइन जस्टिस' का बेहतरीन उदाहरण है।

यह ईश्वरीय न्याय उन्हें भी समझ आ गया है, शायद इसीलिए वे पूरे मनोयोग से अपना काम कर रहे हैं। हालांकि एक वर्ग विशेष के लोग आज भी उन्हें विधायक मानने से गुरेज करते हैं लेकिन जैसा कि ट्रकों के पीछे लिखा रहता है 'जिसके सिर ऊपर तू स्वामी, सो दुख कैसा पावे'।

गेदर की विधायकी के अब तक के कार्यकाल पर नजर डालें तो पाएंगे कि उन्होंने गंभीरता से काम किया है। विपक्षी विधायक के रूप में उन्होंने विधानसभा में शानदार ढंग से शुरुआत की थी। शपथ ग्रहण के समय ही उन्होंने पुरजोर ढंग से राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग उठा कर अपने तेवर दिखा दिए थे। हाल ही में समाप्त हुए विधानसभा सत्र में क्षेत्रीय जन समस्याओं के साथ-साथ प्रदेश स्तरीय मुद्दों पर भी गेदर ने सरकार से न केवल तीखे सवाल-जवाब किए बल्कि कई बार तो मंत्रियों को भी बैक फुट पर आना पड़ा। विधानसभा में पूरी तैयारी के साथ अपनी बात रखना यह दिखाता है की गेदर का 'होमवर्क' कैसा है। उनकी कार्यशली जातिगत राजनीति के आरोपी को नकारती है जब वे जनता के हर वर्ग के साथ खड़े नजर आते हैं। याद कीजिए, जब कुछ दिन पूर्व गेदर ने जन भावनाओं के साथ जुड़कर सिटी पुलिस थानाधिकारी की कार्य शैली के खिलाफ न सिर्फ धरने पर बैठने की बात कही, बल्कि उस मुद्दे को विधानसभा में भी उठा दिया। उनके कड़े रुख का परिणाम ही रहा कि सीआई को लाइन हाजिर कर दिया गया। इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्ववर्ती विधायक की तरह उनके मुंह से कभी यह नहीं सुना गया, 'आपणी तो चालै कोनी या फिर अपनी तो सरकार ही नहीं है !'

श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस को जिताने में भी गेदर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस जीत से न सिर्फ देश-प्रदेश के राजनीतिक समीकरण बदले हैं बल्कि गेदर का कद भी बढ़ा है। इसी के चलते चर्चा चल रही है कि नगर पालिका चुनाव में भी कांग्रेस अपना बोर्ड बनाने में कामयाब होगी।

गेदर को गिराने की कितनी कोशिशें हुई, इसकी पड़ताल के लिए थोड़ा पीछे लौटते हैं । कांग्रेसी दिग्गजों के बीच गेदर को पार्टी का टिकट मिलना कोई आसान बात नहीं थी। शांत और धीर स्वभाव के गेदर को यह कहकर बड़े हल्के में लिया जाता था कि वे सिर्फ दलित वर्ग की राजनीति करते हैं। फिर बसपा से आमजन की दूरी भी किसी से छिपी नहीं थी । लेकिन बसपा से कांग्रेस में आए गेदर की निष्ठा और समर्पण को अशोक गहलोत ने भली-भांति पहचान लिया था, जब गेदर ने प्रदेश में कांग्रेस के लिए जनसंपर्क अभियान में तन, मन, धन से काम किया था । इसी के चलते उन्हें प्रदेश माटी कला बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। विधानसभा चुनाव से पहले ही उनकी मांग पर बीरमाना में सरकारी कॉलेज और सहायक अभियंता विद्युत का कार्यालय खुलने की घोषणा हो गई थी। उस वक्त भी गेदर पर एक जाति और क्षेत्र विशेष के लिए काम करने के बेतुके आरोप लगे थे। जन सामान्य भी दिग्गजों के समक्ष गेदर को टिकट मिलने की बात को संशय से देखता था। बसपा के कुछ पुराने कार्यकर्ता तो गेदर को दगाबाज बताया करते थे। उनका दावा था कि उसे टिकट भले ही मिले दलितों के वोट नहीं मिलने वाले। लेकिन तमाम दावों और संदेहों से परे डूंगर राम ने न सिर्फ़ टिकट हासिल की बल्कि रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे। हर जाति और वर्ग से उन्हें भरपूर समर्थन मिला। उनके विरोधियों की तमाम चालें और कयास धरे के धरे रह गए।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद डूंगर राम गेदर राजनीति में एक लंबी पारी खेलने के लिए तैयार हैं। यदि इसी कार्यशैली से वे मैदान में डटे रहते हैं तो उन्हें जनता का आशीर्वाद भी मिलता रहेगा।

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Monday 17 June 2024

एपेक्स विमैंस क्लब ने लगाई शरबत की छबील


- निर्जला एकादशी के पहले दिन जन सेवा का कार्यक्रम आयोजित

सूरतगढ़, 17 जून । निर्जला एकादशी के पहले दिन अपेक्स विमेंस क्लब द्वारा मीठे शरबत की छबील लगाई गई। राजकीय चिकित्सालय के सामने आयोजित इस कार्यक्रम में क्लब के सदस्यों द्वारा राहगीरों को रूहअफजा और दूध मिश्रित मीठा शरबत पिलाया गया। बस स्टैंड से बाजार की तरफ आ रहे सैकड़ो राहगीरों ने तपती धूप के बीच इस छबील पर ठंडा शरबत पीकर प्यास बुझाई । इस अवसर पर अपेक्स क्लब के सदस्यों के अलावा शहर के गणमान्य नागरिक भी उपस्थित हुए । 


जन सेवा के इस प्रकल्प में विमैंस क्लब की अध्यक्ष डॉ. पूनम गगनेजा, सचिव आशा शर्मा, कोषाध्यक्ष साक्षी छाबड़ा, सदस्य सुनीता मनचंदा, सुनीता भठेजा, नीरज कामरा, कविता अग्रवाल, सुनीता गोयल ने अपनी सेवाएं दी।

Sunday 16 June 2024

बाइस्कोप पर आँख गढ़ाकर दुनिया को देखने और जानने की कोशिश

 गुलेरी की गलियों से गुज़रते हुए...

अतुल कनक राजस्थानी और हिंदी साहित्य में एक सुपरिचित नाम है । उनके सामयिक आलेख और साहित्यिक रचनाएं समाचार पत्रों में निरंतर पढ़ने को मिलते हैं। बतौर समीक्षक उनकी टीप रचनाकर्म के उन अनछुए पक्षों को उजागर करती है जो लेखकों के दायित्व को बढ़ाने का काम करते हैं। इसका सीधा सा कारण है कि वे एक प्रतिबद्ध पाठक हैं। उन्होंने मेरे संस्मरणों की पोथी 'गुलेरी की गलियों से गुजरते हुए' पर अपनी बात कही है। यार-भायले भी इस सारगर्भित समीक्षा को पढे़ंगे तो अग्रज अतुल जी की तथ्यों पर पकड़ और गहन साहित्यिक दृष्टि से परिचित हो सकेंगे...।


डाॅ हरिमोहन सारस्वत 'रूंख' राजस्थान के एक चर्चित और प्रतिष्ठित रचनाकार हैं। 'गुलेरी की गलियों से गुज़रते हुए' उनके संस्मरणों का संग्रह है। 1970 के दशक में जिये हुए बचपन के ये चित्र उन पाठकों को भी स्मृतियों के उस स्पंदन की दुनिया में ले जाते है जिन्होंने बाइस्कोप पर आँख गढ़ाकर दुनिया को देखने और जानने की कोशिश की है। तब आज की तरह दुनिया मोबाइल में सिमटकर नहीं आई थी। लेकिन उस दुनिया में जितना प्रेम, जितना उत्साह और जितना अपनत्व था- वह आज दुर्लभ हो गया है। "क्या आप पड़ौसी से कभी सब्जी माँगकर लाए हैं" शीर्षक वाला संस्मरण इस दर्द को रेखांकित करता है। लेखक बताता है कि आज से करीब चालीस साल पहले एक ही मौहल्ले के लोगों में इतना अपनापन होता था कि बच्चे अपने घर में बनी सब्जी पसंद नहीं आने पर बेहिचक पड़ोस के किसी घर से अपनी पसंद की सब्जी माँगकर ले आते थे। अब जबकि बच्चे अपने पड़ौसी की छत तक पर जाने में असहज महसूस करते हों, यह सब्जी माँग कर लाने वाला रिश्ता अटपटा सा लग सकता है। लेकिन जिन लोगों ने उस सुख को जिया है, इसका आनंद वो ही महसूस कर सकते हैं। लेखक कहता है - सिर्फ सब्जियों का आदान प्रदान ही नहीं था, बल्कि छोटे मोटे दुख सुख भी लोग आपस में बाँट लिया करते थे। अब पड़ौसी और हमारे घर की दीवारें बहुत ऊँची हो चुकी हैं। हमने इन दीवारों में अपनी अपणायत और हेत को जिन्दा चिनवा दिया है।आज हमारे पास घर तो आलीशान और पक्के हैं लेकिन हमारे दिल बहुत छोटे हो गए हैं। ..आइए , अपने पड़ौसी के घर जाना शुरू करें।" (पृ 26, 27)

दरअसल, अपनेपन के खो जाने का दर्द और सर्वे भवन्तु सुखिनः की चेतना को बचाने का मोह ही इस किताब के प्रणयन का प्रस्थान बिन्दु है। रचनाकार ने राजस्थानी के रूंख शब्द को अपना उपनाम चुना है, जिसका अर्थ होता है पेड़। रूंख से मोहब्बत की कहानी भी इस पुस्तक में है। बचपन में रचनाकार के दोस्त के घर वाली कालोनी में एक शहतूत का पेड़ था, जो बच्चों को बहुत प्यारा था। शहतूत के पेड़ को लेकर लिखे गए तीन किस्से किताब में हैं।"जड़ें उखड़ने का दर्द एक दरख्त से बेहतर भला कौन समझ सकता है?" (पृ 10) / "स्त्री जात का अंतस भीगे बिना नहीं रहता, तिस पर मैं तो मीठे बेर देने वाली बोरटी ठहरी" (पृ 12)/ "कहीं वह दर्द के समंदर में डूबा प्रेम की प्रार्थना न बुदबुदा रहा हो" (पृ 34)/"हम एक दूसरे के हौंसले में जिंदा रहते हैं (पृ 48)/ "सिक्कों का ज़माना भी क्या ज़माना था। सब खनकते थे। यहाँ तक कि जिसकी जेब में पड़े होते वह भी बाकायदा खनक रहा होता" (पृ 52) /"उंगलियों को मुंह में दबाकर सीटी बजाने की कला सबके पास नहीं थी। इसे सीखने के लिए हम जैसे नौसिखिए उस ज़माने के महारथी गुरुओं के चरण में बैठते थे" (पृ 74) जैसे प्रसंग बताते हैं कि रचनाकार ने उस दौर के छोटे छोटे सुखों या अहसासों को कितनी संवेदना के साथ स्मृतियों की माला में पिरोया है।

लेखक राजस्थानी भाषा के समकाल के महनीय रचनाकार हैं और पंजाब से सटे हिस्से के नागरिक होने के कारण उनकी भाषा में पंजाबियत भी बहुत ठसके से उतर आती है। भाषाओं का यह संगम अभिव्यक्ति के तीर्थ की ताकत बन जाता है।

यह किताब मुझे कुछ समय पहले मिल गई थी। लेकिन पता नहीं कैसे पुस्तकों के ढेर के नीचे दब गई। अचानक हाथ लगी तो पढ़ना शुरु किया और फिर पूरी पढ़े बिना नहीं छोड़ सका।शायद इसीलिए मान्यता है कि सुखों के शगुन सँभाल पाने का सुख भी कई बार हमारी सामर्थ्य से फिसलकर संयोगों की गोदी में जा बैठता है।विलंब से ही सही डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख' जी को बधाई
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गुलेरी की गलियों से गुज़रते हुए/ संस्मरण/ डाॅ हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'/ बोधि प्रकाशन, जयपुर/ 2023/ पृ 100/ मूल्य 200/_
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Sunday 5 May 2024

अनूठी कहाणियां रौ संग्रै — ‘पांख्यां लिख्या ओळमां’

 

(समीक्षा-प्रेमलता सोनी)

"हथाई रै गोळी कुण ठोकी ?"

"चैटिंग !"

"ओ हो, वा अठै कद पूगी ?"...

‘गरागाप’ कहाणी सूं ही लेखक आपरो मकसद पाठकां रै सांम्‍ही राख दियो। सबदां रा इसा बाण चलाया है कहाणीकार, कै सीधा जाय'र पाठकां रै दिमाग में धंस जावै। आ कहाणी पढ्या पाछै हिवड़ो याद करण लाग जासी कै कद भायलां-भायली सागै हथाई होयी। सगळी खोज-खबर बातां-चीतां तो फेसबुक अर व्हाट्सएप ग्रुप में ही होयी। लेखक परभातियै सुपनै सूं सगळां नै चेतावै "सबदां री बैकुंठी त्यार है !‘’ 

नौ कहाणियां रै इण झूमकै में सगळी कहाणियां मांय लेखक रै कैवण रो ढंग इस्यो सांतरो कै कहाणी कठैई सुस्त कोनी पड़ै। कहाणी रो अनूठो विषय अर सागै ही किरदार इसा लागै जाणै घणी जाण-पि‍छांण हुवै। कहाणी पढ़तां थकां लागै जाणै कहाणी रा किरदार आंख्यां सांम्‍ही आय'र खड़ा हो जावै अर हाथ पकड़ियां ठिरड़'र ले जावै आप नै कहाणी रै मांय !

"संकै री सींव" अेक छोटै सै गांव री कहाणी, जठै त्यारी चाल रही ही कंडोम फैक्ट्री री, इत्तौ घणो हुवै गांव में चरचा तांई। अेक कहाणी, पण अंत दो गांव रै बिगसाव सागै लुगाई जात रा बदळियोड़ा तेवर। 

'पांख्यां लिख्या ओळमां' कहाणी में लेखक दो जमानां नै अेक सागै राख'र अेक अनूठो प्रेम दरसावै। तीस-पैंतीस बरस पुराणों संदेस ऑडियो कैसट में रिकॉर्ड हुयोड़ो फेसबुक अर इंस्टाग्राम सूं होय'र धणी तंई पूग्‍यो। 

Premlata Soni
'प्रीत रो परचो' कहाणी री लिछमां जाणै खुद आपरी कहाणी सुणा रही हुवै। पेपरलीक रै मुद्दे सागै अेक सोहणी प्रेम कहाणी, इसो प्रयोग कोई सबदो रो सिरजणहार ही कर सकै। "निरभागण" इण संग्रै री सैं सूं मार्मिक कहाणी है, जिण में लेखक चेतावै के आज रै बखत में माईतां रै दियोड़े नांव सूं ज्यादा जरूरी है कागद-पांनां में दरज नांव। चुणावां रो बखत अर दिहाड़ी मजूरां पर लिख्योड़ी, व्यंग्य रा छींटा मारती कहाणी है "बात बैठी कोनी!" 

‘मा कूड़ बोलै!’ कहाणी सूं लेखक मां ने ओळमों देवै, आपरै बखत री बातां बतावती मां सगळां नै साव कूड़ बोलती दीसै। मां री बातां भेजै नै कठै जचै ? पाठक इण कहाणी सूं खुद नै जुड़तौ मैसूस करै ।

"कुमांणस" कहाणी अेक मिस्त्री रो दरद बतावै के किंयां चूनै-ईंट-भाठै रो काम करातां थकां धणी रो काळजो भाठै सरीखो होय जावै।

रोडवेज बस मांय उपराथळी सवारियां, थापा-मुक्की..झींटम-झींटा..गाळियां रा गुचळकां सागै हरेक बात री खाल उतारतो लेखक, जाणै कहाणी नीं कविता रौ करतब दिखावतो हुवै। लेखक सबदां रा जोरदार चबड़का मारतो बोलै, "जावण द्यो ,के पड़्यो है !" 

हरिमोहन सारस्‍वत 'रूंख' रो औ अेक न्‍यारी भांत रौ जबरो कहाणी संग्रै है, जिण री कहाणियां राजस्‍थानी पाठकां में तो कोतुहळ जगावै ई, हिन्‍दी अर दूजी भारतीय भासावां में ई राजस्‍थानी कहाणी री साख नै बधावै। आ बात पण लागै के जे 'पांख्यां लिख्या ओळमां', री अै कहाणियां हिन्‍दी अर दूजी केई भासावां में अनुवाद रै जरियै बडै पाठक वरग तांई पूगै तो निस्‍चै ई कहाणी रा पाठकां नै राजस्‍थानी कहाणी री मिठास अर अनूठैपण री आछी पिछांण हो सकै। 

-प्रेमलता सोनी 

( समीक्षक हिंदी और राजस्थानी की नवोदित उपन्यासकार और बेहतरी कथाकार हैं)


* पांख्‍यां लिख्‍या ओळमां (कहाणी संग्रह) – डाॅ हरिमोहन सारस्‍वत 

* सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर संस्‍करण 2023, पृष्‍ठ --- 80

* मूल्‍य --- ₹250

Sunday 28 April 2024

कुछ शब्द भीतर तक डराते हैं !

 

दोस्त कहते हैं, मैं शब्द का आदमी हूं. हां, थोड़ा बहुत लिख पढ़ लेता हूं, शायद इसी वजह से वे मुझे शब्द का साधक मान बैठते हैं. शब्द भी कहीं सधते हैं भला ! मन तो कदास सध भी जाए, शब्द का सधना तो संसार साधना हुआ. संसार तो बड़े-बड़े ऋषियों, मुनियों से नहीं सधा, तो अपनी औक़ात ही क्या !
सच कहूं तो शब्दों से निकटता के बावजूद कुछ शब्द बहुत डराते हैं, आदमी भीतर तक सिहर जाता है. 'एक्यूट' भी ऐसा ही एक शब्द है जिसकी उपस्थिति की संभावना मात्र से मेरे होठों पर प्रार्थनाएं आकर बैठ जाती हैं. अनसुनी प्रार्थनाओं के बीच भय के सायों से घिरा मैं खुद को बड़ा असहाय महसूस करता हूं, मेरे पास पत्थरों की तरह अपलक ताकने के अलावा कोई चारा नहीं होता...... !

(अधखुले पन्नों के बीच...)
दिनांक 25 मई 2022

जी, नमस्कार.....

नमस्कार !

मैं राकेश बोल रहा हूं, बसंत जी ने आपका नंबर दिया है...

हां कहिए सर, क्या हुकुम है मेरे लिए...

जी, दरअसल बात यह है कि मेरे मौसाजी की तबीयत खराब है. उनकी ब्लड रिपोर्ट आई है जिसमें कैंसर डिटेक्ट हुआ है. सच पूछिए पूरा परिवार घबराया हुआ है.

ओह ! पर घबराइए नहीं, अब तो कैंसर का इलाज उपलब्ध है.

सर, आप मार्गदर्शन कीजिए ना. डॉक्टर्स की एडवाइज समझ ही नहीं आ रही है. बसंत जी ने कहा है कि आप इस बीमारी में बेहतर सलाह दे सकते हैं.

?????...............

हैलो......हैलो......सर, सुन पा रहे हैं ना ?

.....ओ.... हां,........ आप ऐसा करें उनकी रिपोर्ट मुझे व्हाट्सएप कर दें, उसके बाद हम आगे का लाइनअप देखते हैं.

ठीक है, आप रिपोर्ट भेजिए....

थोड़ी देर बाद व्हाट्सएप पर उसी नंबर से एक पीडीएफ पहुंचती है.

उसे खोलने से पहले मैं मन ही मन प्रार्थना करता हूं. पता नहीं क्यों...

लेकिन कभी-कभी प्रार्थनाएं सिर्फ करने के लिए होती हैं, सुने जाने के लिए नहीं....

महेश शर्मा..... उम्र 55 वर्ष....... बोन मैरो स्टडी रिपोर्ट....... मेरी नजरें तेजी से इंप्रेशन को ढूंढती है और कुछ क्षणों में ही सारी तलाश खत्म हो जाती है...... निस्तेज..... निढाल..... अंतहीन निराशा..... 'एक्यूट मायोलॉयड ल्यूकेमिया'

एक लंबी सांस छोड़कर आंखें बंद कर लेता हूं......

स्क्रीन पर फिर वही नंबर चमकता हैं........ कभी-कभी रिंगटोन कितनी डरावनी हो जाती है !

सर, आपने रिपोर्ट देखी ?

ओ हां, राहुल जी, मैंने रिपोर्ट देख ली है......

तो सर........

ठीक नहीं है.

डॉक्टर्स भी यही कह रहे हैं. सर, मौसा जी का पूरा परिवार उन्हीं पर आश्रित है. उनकी आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है. अब क्या करना ठीक रहेगा ?

देखें, इन परिस्थितियों में सबसे बड़ी बात है पेशेंट का होसला बनाए रखना. हमारे शरीर में बहुत से पावरफुल हार्मोन हमारी पॉजिटिविटी पर निर्भर करते हैं. उन्हें बार-बार एक वाक्य की तरफ मोड़ें, 'कोई बात नहीं.' वैसे क्या मौसा जी को पता है ?

पता नहीं सर. मैं हॉस्पिटल जा कर आपकी बात करवाता हूं.

जरूर, मेरी बात करवाएं....!

ख्याल बड़ी तेजी से दौड़ते हैं. चेहरे उभरते हैं, भाप बनकर उड़ते रहते हैं. उड़ते-उड़ते जाने कब बादलों में बदल जाते हैं. गरजते बादल.... बरसते बादल....आंख से......मन से........ बिजली कड़कड़ाती है और फिर ....... तूफानी बारिश के बाद का मंजर.... कितना कुछ बह जाता है....... बिखर जाता है...... कांच के किरचों से झांकते डरावने अक्स मेरा वजूद लील जाते हैं.... सब कुछ शून्य में विलीन हो जाता है.
-रूंख

Saturday 27 April 2024

कॉलर खड़े किए हाथों में घड़ियों वाले दिन !

 

आज लगभग बीस बरस बाद एक बार फिर हाथ घड़ी पहनी है ! सोचा, इस घड़ी के बहाने ही सही, पगडंडियों के दिनों की कुछ यादों को संजोया जाए।

दरअसल, कुछ रोज पहले अचानक एक ख्याल उमड़ा था, क्यों ना ब्लैक स्ट्रेप वाली हाथ घड़ी पहनी जाए ! ख्याल तो ख्याल था, जिस गति से आया था उससे दुगुनी चाल में लौट गया। दो-तीन दिन से तबियत कुछ नासाज़ थी। घर पर थर्मामीटर तलाशा तो पता चला उसकी बैटरी डाउन है। बैटरी चेंज करवाने के लिए जनसंघर्ष के साथी राजवीर भाजी की दुकान पर पहुंचा। वहां घड़ियों को देख एक बार फिर पुराने ख्याल ने दस्तक दी।

बस भाई राजवीर ने तुरंत अपनी पसंद की हाथ घड़ी पहना दी। स्मार्ट वॉच के जमाने में एचएमटी की सुइयों वाली घड़ी ! सच पूछिए तो स्मार्ट वॉच मुझे कभी पसंद ही नहीं आयी। मेरा दिल तो हमेशा टिक-टिक करने वाली सुइयों वाली घड़ी पर ही रीझता है। फिर एचएमटी से तो स्वदेशी वाली फीलिंग भी आनी है !

1982-83 का वक्त रहा होगा। उन दिनों हाथ घड़ी का बड़ा क्रेज हुआ करता था। अपने-अपने रुतबे के हिसाब से लोग घड़ी पहना करते थे। मैं हनुमानगढ़ के रेलवे स्टेशन पर स्थित सरकारी स्कूल में सातवीं जमात का विद्यार्थी था। स्कूल में कुछ बच्चे घड़ियां पहन कर आते थे, उन्हें देखकर मेरा भी मन घड़ी पहनने को ललचाया करता। उन्हीं दिनों पापाजी एचएमटी की नई घड़ी ले आए थे, सो उनकी सफेद डायल वाली पुरानी वेस्टर्न वॉच मेरी लालसा और अकड़ की तुष्टि करने के लिए पर्याप्त थी। संयोगवश मेरे जिगरी दोस्त संजय गुप्ता के पास भी अपने दादाजी से मिली वैसे ही घड़ी थी। हम दोनों उन एंटीक घड़ियों को पहनकर बेवजह इतराया करते थे। उस घड़ी में नियमित रूप से चाबी भरनी पड़ती थी। काले स्ट्रेप में गोल डायल मेरी नन्ही कलाई पर क्या खूब फबता था ! उन दिनों जब राह चलता कोई समय पूछता तो एक अनूठी अनुभूति का एहसास होता। वह घड़ी भले ही पूरा दिन टिक-टिक करती थी लेकिन बकौल मां के, उन दिनों मेरे पैर घर में टिकते ही नहीं थे। अन्नाराम 'सुदामा' के शब्दों में कहूं तो गधा पच्चीसी उम्र थी वह !

फिर 1986 में मैट्रिक परीक्षा में जब स्कूल टॉप किया तो वादे के मुताबिक पापाजी ने गुरुद्वारा गली स्थित प्रहलाद जी मोदी की दुकान से गोल्डन कलर की एचएमटी 'जयंत' घड़ी दिलवाई थी। उसमें सुनहरी चैन लगी थी। जाने कितने दिन तक मैं उस नयी घड़ी के नशे में झूमता फिरा था। भटनेर फोर्ट स्कूल से नेहरू मेमोरियल कॉलेज तक के सफ़र में मेरे पास वही घड़ी थी। यादों भरा बेहद शानदार वक्त बिताने वाली उस घड़ी के साथ मैंने सफलता के कई आयाम छुए थे।

उसके बाद तीसरी घड़ी सौगात के रूप में ससुराल से मिली। विवाहोत्सव में समठणी के वक्त टाइटन की खूबसूरत सुनहरी घड़ी पहनाई गई जिसमें बैटरी लगी थी। यानी चाबी भरने का झंझट ही नहीं ! उसे पहनते ही जीवन बड़ी तेजी से दौड़ने लगा था। जाने कितने दिनों तक उसे पहना होगा याद ही नहीं ! हां, इतना जरूर याद है कि 2003 के आसपास हनुमानगढ़ में मोबाइल फोन आने के बाद से घड़ी की जरूरत ही महसूस नहीं हुई। 

आज एक बार फिर जब हाथ में घड़ी पहनी है तो गुजरे वक्त का शुक्रिया अदा करने को जी चाहता है ! प्रमोद तिवारी की कविता की कुछ पंक्तियां याद आती है-

याद बहुत आते हैं गुड्डे-गुड़ियों वाले दिन 

दस पैसे में दो चूरण की पूड़ियों वाले दिन 

बात-बात पर छूट रही फुलझडियों वाले दिन

कॉलर खड़े किए हाथों में घड़ियों वाले दिन....!

-रूंख

Monday 22 April 2024

सावधान ! पुलिस के नाम पर ब्लैकमेल करने का नया गोरखधंधा

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 पुलिस अधिकारियों की डीपी लगे व्हाट्सएप नम्बरों से आती है कॉल


- साइबर क्राइम मामलों पर पुलिस और गृह मंत्रालय की बेबसी

'हैलो'
कौन ?
'हैलो, एसएचओ सदर विजय शर्मा बोल रहा हूं. मेरी बात राकेश अरोड़ा से हो रही है ?'
'जी, बोल रहा हूं !'
'सुनो अरोड़ाजी, तुम्हारा लड़का सोनू इस वक्त पुलिस कस्टडी में है. रेप का चार्ज है. चार लड़कों के साथ पकड़ा गया है. ऐसे ही संस्कार दिए तुमने ?
'क्या, क्या ?'
'क्या क्या मत कर. तुरंत पुलिस स्टेशन पहुंच !'
'सर, सर ! आप कौन बोल रहे हैं ?
'साले, एक बार में समझ नहीं आता, सदर पुलिस स्टेशन से बोल रहे हैं. तुम्हारे लड़के को उल्टा लटका कर वो सजा देंगे कि सात पीढियां याद रखेंगी.....'

जरा सोचिए, इस तरह की कॉल्स यदि आपके पास आए तो आपकी मनोदशा कैसी हो जाएगी. यकीनन एक बारगी तो आप घबरा ही जाएंगे और कॉल करने वाले फर्जी अधिकारी से ही मदद की गुहार लगाने लगेंगे. फेक कॉल करने वाला आपको अपने जाल में फंसा पाकर पैसे की डिमांड करेगा. आप अपनी इज्जत प्रतिष्ठा को बचाने के लिए पैसे भी देंगे और मामला रफा-दफा करने के लिए के लिए गिड़गिड़ाएंगे. लेकिन जब वास्तविकता का पता चलेगा तो आपके चूना लग चुका होगा.

ऐसी ही एक कॉल प्रेस क्लब सूरतगढ़ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन सारस्वत के पास सोमवार सुबह आई जिसमें कॉलर ने खुद को सदर पुलिस स्टेशन, दिल्ली का अधिकारी बताया. पाकिस्तान आईसीडी नंबर (9234410648330) से की जा रही इस कॉल के जरिए उन्हें

ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई और पैसों की डिमांड की गई. चूंकि बात एक पत्रकार से हो रही थी इसलिए अपराधियों की दाल ज्यादा गली नहीं, लिहाजा फोन काट दिया गया. सिटी पुलिस सूरतगढ़ को इस संबंध में परिवाद देखकर तथ्यों से अवगत करवाया गया है.

पिछले कुछ दिनों से साइबर क्राइम के अपराधियों ने ठगी करने के नये ढंग निकाले हैं. इस तरीके में वे आम जन की भावनाओं से खिलवाड़ करते हुए उन्हें डराने का प्रयास करते हैं. ये अपराधी विशेष रूप से उन लोगों को शिकार बनाते हैं जिनके बच्चे घर से बाहर पढ़ रहे हैं। यह कॉल ज्यादातर पाकिस्तान के मोबाइल नंबर से आती है जिन्हें पहचान पाना बड़ा कठिन रहता है.

गंभीर बात यह है कि इन कॉल नंबर्स पर व्हाट्सएप डीपी में भारत के पुलिस अधिकारियों के चेहरे लगे रहते हैं. एसपी और आईजी स्तर के अधिकारियों के फोटोज इस्तेमाल कर डर का धंधा फैलाया जा रहा है. पुलिस और गृह मंत्रालय को सुरक्षा और निजता से जुड़े ऐसे मामलों पर गंभीरता से कार्यवाही करने की जरूरत है.

यदि आपके पास भी इस तरह की कोई कॉल आए तो सावधान रहें घबराएं नहीं बल्कि स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना दें.

प्रधान, ओ सूरतगढ़ है !

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