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सीमांत क्षेत्र का भूमि आंदोलन-1970 (1)

 

संगरिया भादरा गोलीकांड ने झुका दी थी सुखाड़िया सरकार 

(07 जनवरी 1970)

'धांय...., धांय...'

डीएसपी डालचंद की सर्विस रिवाल्वर से 2 गोलियां चली और रेलवे लाइन की तरफ दौड़ रहा खाट जालू, शाहपीनी का नौजवान देवेंद्र सिंह वहीं ढेर हो गया. पुलिस की बहादुरी देखिए कि एक हंसते-खेलते विद्यार्थी की पीठ में गोली मारने से नहीं चूकी. जयपुर गोलीकांड में प्रमुख भूमिका निभाने वाले इस डीएसपी ने वहीं खड़े एक और शख्स पर गोली दागी. सादी वर्दी में पुलिस ज्यादती का शिकार हुआ यह व्यक्ति हरियाणा पुलिस का सिपाही रामपहर था जो मौके पर ही मारा गया. उसके गिरते ही डायर बना डालचंद तितर-बितर होती भीड़ के पीछे भागा और अपने रिवाल्वर से रतनपुरा के एक अन्य पंजाबी नौजवान रूड़ सिंह को अपना निशाना बनाया. कॉलेज जाने को तैयार रूड़़सिंह की लाश की शिनाख्त ही बड़ी देर से हो सकी थी.

संगरिया कचहरी परिसर में 07 जनवरी 1970 को दोपहर 1:00 बजे करीब हुई गोलियों की इस बौछार ने वहां जमा भीड़ को इधर-उधर भागने के लिए मजबूर कर दिया. अफरा-तफरी और भय के माहौल में एक तरफ डीएसपी डालचंद दनादन गोलियां दाग रहा था तो वहीं पुलिस जाब्ता मौके पर उपस्थित भीड़ पर लाठियां भांज रहा था. थानेदार गिरधारी सिंह ने धान मंडी की दुकान से निकलते हुए नाथवाना के चौधरी केसरा राम सियाग को गोली से उड़ा दिया. केसराराम का जवान पुत्र जब अपने पिता की लाश को उठाने के लिए आगे बढ़ा तो गिरधारी सिंह ने उसके भी पैर में गोली मारी. पुलिस की क्रूरता के सामने एक असहाय पुत्र निढाल होकर अपने पिता की लाश पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया. पुलिस जाब्ते में शामिल एक अन्य थानेदार सुमेर सिंह ने तो क्रूरता की हदें लांघते हुए तह बाजारी की दुकान के पीछे छिपे हुए चंदू राम नायक को टारगेट पर लेकर गोली मारी. गोली लगने के बाद घबराए चंदू राम ने जब सिर उठाया तो सुमेर सिंह ने अपने बूंट की ठोकर के साथ उसके सीने पर एक गोली और दाग दी. देखते ही देखते संगरिया कचहरी परिसर के समीप हुए इस गोलीकांड में 5 निर्दोष लोगों की लाशें बिछ गई और बीसियों लोग घायल हुए. घटना के बाद पूरे कस्बे में मौत का सन्नाटा छा गया और दो दिनों तक घरों में चूल्हे नहीं जले.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद श्रीगंगानगर जिले में पुलिस की बर्बरता का यह अनूठा मामला था. राजस्थान नहर के आसपास की जमीनों के आवंटन को लेकर सुलग रहे भूमि आंदोलन की लपटें प्रदेश भर में फैल चुकी थी. सरकार इन बेशकीमती जमीनों को नीलामी के जरिए बेचकर अपना खजाना भरना चाहती थी वहीं आंदोलनकारी भूमिहीन, निम्न वर्ग और लंबे समय से कब्जा काश्त कर रहे किसानों को ये जमीनें आवंटित करने की मांग कर रहे थे. श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ सीमांत क्षेत्र में स्थित इन जमीनों की नीलामी के लिए राज्य सरकार दो बार प्रयास कर चुकी थी. रायसिंहनगर और अनूपगढ़ में होने वाली भूमि नीलामी सिरे नहीं चढ़ पाने के कारण सुखाड़िया सरकार आक्रोश में थी जिसकी परिणति इस गोलीकांड के रूप में हुई.

जिस वक्त संगरिया में गोलियां चल रही थी ठीक उसी वक्त लगभग 80 किलोमीटर दूर भादरा में भी पुलिस अपनी बर्बरता दिखाने पर तुली थी. हिसार-भादरा रोड पर स्थित तहसील परिसर के आसपास जमा भीड़ को भगाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज के साथ गोलियां दागनी शुरू की. गोलियों की गूंज से अबोध किशोरों की चीत्कारें गूंज उठी. देखने वालों का कहना है कि पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गोलियां नहीं चलाई थी बल्कि भूखे भेड़िए की तरह पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे छात्रों का पीछा किया और जहां जी चाहा अंधाधुंध तरीके से गोलियां बरसाई. हरियाणा बस स्टैंड का कार्यालय इस बात का प्रमाण है.

गौरतलब है कि भादरा तहसील परिसर में उस दिन भादरा हाई स्कूल के विद्यार्थी अपनी छोटी-मोटी समस्याओं को लेकर प्रदर्शन करने आए थे लेकिन पुलिस में उन्हें आगे निकलने ही नहीं दिया. इस पर कुछ छात्रों ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक प्रताप सिंह की तानाशाही के विरुद्ध नारे लगाए. किसान सत्याग्रह आंदोलन के चलते जिले भर की पुलिस में झुंझलाहट तो थी ही, जिसके चलते बिना किसी चेतावनी के उन्होंने लाठियां भांजते हुए गोलियां चलानी शुरू कर दी.

इस गोलीकांड में भादरा हाई स्कूल में पढ़ने वाले नवीं कक्षा के छात्र सुभाष को गोली लगी और अगले दिन उसकी मौत हो गई. छठी कक्षा के 13 वर्षीय एक अन्य विद्यार्थी बिहारी के सिर में भी गोली मारी गई जिसे इलाज के लिए दिल्ली ले जाया जा रहा था लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. इस गोलीकांड में लोहिया कॉलेज का एक पूर्व छात्र काशीराम, जो कि लाखनसर का निवासी था भी गंभीर रूप से घायल हुआ जिसकी बाद में अस्पताल में मृत्यु हो गई. भादरा गोलीकांड में घायल होने वाले अधिकांश छात्र 20 वर्ष से कम आयु के थे. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उस दिन भादरा बस स्टैंड विद्यार्थियों के खून से भर गया था. उपलब्ध साक्ष्यों और तत्कालीन समाचारों के अनुसार पुलिस ने सुल्तान सिंह सुनार, आशाराम सिकलीगर के घर में घुसकर भी गोलियां चलाई थी. गूगनराम सुनार के घर पर तो गोली चलने से आग भी लग गई थी.

भादरा गोलीकांड की पृष्ठभूमि में पुलिस सूत्र बताते हैं कि 6 जनवरी यानी घटना से 1 दिन पहले, छात्रों ने अपनी मांगों को लेकर तहसील पर प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में कई छात्रों को गिरफ्तार किया गया. पुलिस को आशंका थी कि अगले दिन गांव निनाण और बड़ी छानी से भारी संख्या में लोग प्रदर्शन के लिए आ सकते हैं. 7 जनवरी यानी गोलीकांड वाले दिन तहसील परिसर में सुबह 10:00 बजे लगभग 400 छात्र जमा हो गए थे. पुलिस ने उन्हें वहीं रोकने की कोशिश की मगर छात्र जोर जबरदस्ती से आगे बढ़ते रहे. इस पर पुलिस ने आंसू गैस का प्रयोग भी किया लेकिन उस दिन हवा विपरीत दिशा में थी. नतीजा यह हुआ कि पुलिस स्वयं आंसू गैस की चपेट में आ गई. प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया. बताया जाता है कि पथराव में 43 पुलिस कर्मचारी घायल हुए. अंततः गुस्साई पुलिस ने बिना किसी सूचना के लाठीचार्ज शुरू कर दिया और 56 राउंड गोलियां चलाई. कस्बे में हुए इस तांडव से हर कोई स्तब्ध रह गया. इसी बीच संगरिया गोलीकांड के समाचार जब लोगों तक पहुंचे तो जनाक्रोश और ज्यादा भड़क गया.

वस्तुतः संगरिया और भादरा गोलीकांड उन दिनों गंगानगर जिले के ग्रामीण दौरे पर निकले सुखाड़िया सरकार के चार मंत्री बृज प्रकाश गोयल, मुल्क राज मनफूल सिंह और गुरदीप सिंह के प्रति उपजे हुए जनाक्रोश का परिणाम था. यह आक्रोश राजस्थान नहर के भूमि आवंटन मामले में जन भावनाओं की निरंतर अनदेखी के कारण सरकार के विरुद्ध पनपा था जिसे जमीन से जुड़े नेताओं और विपक्ष ने बखूबी एक जन आंदोलन के रूप में खड़ा कर दिया था. कहा जाता है कि संगरिया में शहीद हुए लोगों के दाह संस्कार पर जयपुर से भैरो सिंह भी पहुंचे थे और उन्होंने बड़ा मार्मिक भाषण दिया था. उन्होंने अपने भाषण में जनता से 15 मिनट राज सौंपने की अपील की थी जिसमें उन्होंने तुरंत राज्य सरकार की भूमि नीलामी योजना को सिरे से खारिज करने का वचन दिया था.

1970 के भूमि आंदोलन पर पूरा इतिहास लिखा जा सकता है जिसने तत्कालीन कांग्रेस सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया. इसी आंदोलन का सार्थक परिणाम है कि आज राजस्थान नहर से सिंचित सोना उगलने वाली जमीनें प्रदेश के हजारों भूमिहीन और निम्न वर्ग के बाशिंदों के स्वामित्व में भी है. जनता को उसका हक दिलाने वाले इस भूमि आंदोलन पर भाई गंगासागर, महिपाल सारस्वत और एडवोकेट नवरंग चौधरी लगातार लिख रहे हैं. उन्हें हार्दिक बधाई और साधुवाद. आंदोलन के कुछ अनछुए पहलू पर लेखन जारी है. प्रतीक्षा कीजिए !

( जानकारी का स्रोत - तत्कालीन समाचार पत्रों की रिपोर्ट, प्रत्यक्षदर्शियों के वक्तव्य, आंदोलन के संबंध में लिखे गए लेख और पुलिस रिपोर्ट)
-रूंख

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