(नंद भारद्वाज री अन्नाराम सुदामा साहित माथै सम्पादित ‘पोथी सिरजण साख रा सौ बरस’ बांचता थकां......)
धिन-धिन अे धोरां री धरती राजस्थानी मावड़ी
वीर धीर विद्वान बणाया खुवा खीचड़ो राबड़ी।
हिंदी सिनेमा जगत रै चावै गीतकार स्व. भरत व्यास रो ओ दूहो मरूधर रै मानवी री खिमता रो बखाण करै। लगोलग पड़तै अकाळ बिच्चाळै जियाजूण री अबखायां सूं बांथेड़ा करतो मरूधर रो मानवी आपरी मैणत अर खिमता सूं धर री सोभा बधावण रा अगणित कारज करया है। कदास इणी कारण कानदान ‘कल्पित’ सिरखै लोककवियां बां मिनखां नै आभै रा थाम्बा कैय’र बिड़दायो है जिकां रै पड़्यां आभो ई हेठै आय पड़ै।
राजस्थानी साहित में इणी ढाळै रै अेक मानवी अन्नाराम सुदामा रो नांव आवै जिकां रै सिरजण रो जस सात समदरां पार जा पूग्यो है। आधुनिक राजस्थानी भासा अर साहित्य रै किणी पख री बात होवै तो सुदामा री चरचा बिना पूरी नीं हो सकै जिकां आपरी निरवाळी रळियावणी भासा, बुणगट अर कथ्य रै पाण राजस्थानी साहित्य में अळघो मुकाम बणायो। आपरी कैबत अर ओखाणां लियां बांरी घड़त सैं सूं न्यारी, संवेदना रा सुर इत्ता ऊंडा, कै सीधा पाठकां रै काळजै उतरै। कहाणी होवै चायै उपन्यास, कविता होवै का पछै निबंध, सुदामा रै रचाव में गंवई सादगी अर सरलता तो लाधै ई, धरती री सोरम अर मानवीय मूल्यां नै परोटती बांरी रचनावां री पठनीयता गजब है। जातरा संस्मरण तो अेक’र सरू करयां पछै पाठक छोड़ ई नीं सकै। सांची बात तो आ, कै सुदामा आपरै रचाव सूं राजस्थानी साहित्य रै भंडार नै जिकी सिमरधी अर ऊंचाई दी है, उणी हेमाणी नै अंवेरता थकां घणकरा कूंतारा अर पारखी बान्नै राजस्थानी रो प्रेमचंद मानै।
राजस्थानी रै इणी प्रेमचंद यानी अन्नाराम सुदामा री जलमशती-2023 रै मौकै अेक घणी अमोलक पोथी आई है ‘सिरजण साख रा सौ बरस’। आ अेक संचयन पोथी है जिणमें राजस्थानी रा सिरैनांव रचनाकार अन्नाराम सुदामा री साहित्य जातरा री विवेचना है, विद्वजनां रा आलोचनात्मक आलेख है अर रचनावां री बानगी है। इण पोथी रो सम्पादन चावा-ठावा कवि, कथाकार अर समालोचक नंद भाऱद्वाज करयो है। भारद्वाज आपरी भूमिका पेटै लिखै कै किणी समर्थ सिरजणहार रौ शताब्दी बरस उणरै सिरजण-अवदान नै चितारण, अंवेर-परख करण अर बांनै आदरमाण देवणै रो सगळां सूं ओपतो सुअवसर मानीजै। म्हूं जाणूं कै हर औलाद पर आपरै मायत रो अेक करजो होवैे जिण सूं उऋण होवण री खेचळ सगळा ई आपरै डोळ सारू करै। नंद भारद्वाज री आ खेचळ ई उणी करजै नै उतारण री अेक सबळी सोच है जठै बै मायत सरीखै आपरै आगीवाण रचनाकार रो रचाव, उण रचाव माथै आलोचनात्मक दीठ अर सिरजण रा निरवाळा पख अेक संचयन में सामीं लावै। सुदामा सूं मिली सीख नै आगै बधावण री बात ई इण पोथी रो सार है।
पोथी री भूमिका में नंद भारद्वाज सुदामजी रै सिरजण रै न्यारै-न्यारै पख री बात करै। सुदामा री कविता रै पेटै बै लिखै कै सुदामा री पिछाण अर चरचा भलांई कथाकार रै रूप में रैयी होवै पण कविता सूं बांरो मनचींतो लगाव सदांई गाढो रैयो। भारद्वाज री इण बात री साख सुदामा रा च्यारूं कविता संग्रै ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’, ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’, ’ओळभो जड़ आंधै नै’ अर ’ऊंट रै मिस: कीं थारी म्हारी’ भरै। सुदामा री कविता ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ तो आज भी साहित रसिक लोग घणै चाव सूं पढै अर सुणा बो’करै। इण पोथी में सम्पादक भारद्वाज सुदामा री कहाणियां, उपन्यासां अर दूजी विधावां माथै बात करी है। सुदामा री रचनावां रा सबळा पख पाठकां सामीं राख्या है। इण रै साथै ई बां सुदामा-साहित्य पर राजस्थानी रै इग्यारा चावै-ठावै कूंतारां रा कीं जूनां, अर कीं नवा आलेख ई इण संचयन में राख्या है जिण सूं ओ संकलन घणो महताऊ बण्यो है। आं आलेखां नै बांचां तो ठाह पड़ै, कै सुदामा रो मुकाम आपरै समकालीन लिखारां सूं निरवाळो क्यूं है। आं आलेखां में सुदामा री कहाणी, सातूं उपन्यासां अर निबंधां माथै सांतरी आलोचनात्मक विवेचना होई है। खुद सम्पादक सुदामा रै जगचावै जातरा संस्मरण ‘दूर दिसावर’ माथै ‘फौड़ां सूं फायदौ’ नांव रो आलेख लिख्यो है। लगै-टगै सै कूंतारा अेक सुर में सुदामा नै राजस्थानी साहित्य रो मोटो थाम्बो मानै, कदास आ पिछाण ई सुदामा री सैं सूं ठावी ओळखाण है।संचयन रै सरूपोत में सुदामाजी रै मोभी बेटै डाॅ. मेघराज शर्मा री बात ई छप्योड़ी है, जिण में बै सुदामाजी रै व्यक्तित्व बाबत पाठकां नै रूबरू करावै। संचयन रै पैलड़ै आलेख में डाॅ. नीरज दैया सुदामाजी री कहाणियां मुजब लिखै कै सुदामा रै राजस्थानी कथा साहित्य रा केई पख है। ग्रामीण जनजीवन सूं जुड़ी बांरी कहाणियां मांय सामाजिक सरोकार, जीवण मूल्य, संस्कार अर मिनखपणै री जगमगाट जाणै बगत नै दीठ दे रैयी है। बै प्रगतिषील अर जूनी मानसिकता रा अेकठ कहाणीकार है। डाॅ. आईदानसिंह भाटी सुदामाजी नै राजस्थानी उपन्यास रो ‘इकथंभियौ-म्हल’ बतावै। ‘समाजू बदळाव रा सजग चितेरा अन्नाराम सुदामा’ सिरेनांव सूं लिख्योड़ै आलेख में भाटी लिखै कै सुदामा जी रै उपन्यासां रै कथानकां री नींव में स्त्री है। बां रै सिरजण में स्त्री री मानसिकता रा सबळा अर दूबळा दोवूं रूप मांडिज्या है। इण रै साथै ई सुदामा दलित समाज री दसा अर उत्थान री बात नै भोत सांवठै ढंग सूं पाठकां सामीं राखै। इण रचाव में सुदामा री भासा शैली री बात करां तो बा समकालीन ग्रामीण राजस्थानी भाषा है जिणमें लोक प्रचलित अरबी-फारसी, पंजाबी अर संस्कृत रा तत्सम सबदां रो ई प्रयोग मिलै पण उण नै समझणै में कोई अबखाई नीं होवै।
डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित रो कैवणो है कै राजस्थानी उपन्यास विधा नै सुदामाजी जिकी ऊंचाइयां दिराई, आमजन में राजस्थानी उपन्यास री जिकी पिछाण कायम करी बा लोक रै चित्त में ‘आंधी अर आस्था’ का ‘मेवै रा रूंख’ रै रूप में आज लग उणीज भांत मंडियोड़ी है। इण उजळी ओळखाण दिरावण सारू ई राजस्थानी उपन्यासकारां में सुदामा रो नांव सैं सूं सिरै है। गजेसिंह आपरै आलेख में सुदामाजी रै सातूं राजस्थानी उपन्यासां री पड़ताल करै अर बांरी लेखन शैली सूं सीख लेवण री बात बतावै। डाॅ. गजादान चारण रै मुजब सुदामा रै रचाव री नायिकावां नारी जूण री अबखायां सूं आंख मिलावती, पग-पग माथै ऊभै अवरोधां नै ठोकरां सूं उडावती, लायकी सामीं लुळती अर नालायकी माथै कटकती संघर्ष री लाम्बी सड़की नापै पण ईमान अर अस्मत माथै आंच नीं आवण देवै।
डाॅ. पुरूषोत्तम आसोपा सुदामा नै धरती री आस्था रो कथाकार मानै। बां रै मुजब धरती सूं छेड़ै नीं बां रो कोई कथाछेत्र है अर नीं किणी भांत रै जीवण री आचार संहिता। बां रै रचाव में नीं तो धोरां रो अणूतो सिणगार दिखै नीं किणी कामण गोरड़ी री बांकी छवियां, नीं तो प्रेमकथा रा सबड़का, नीं जोधारां रा कळा करतब। बस सो कीं धरती रै ओळै-दोळै घूमै। आसोपा अेक और ठावी बात बतावै, कै सुदामा फगत कड़वै जथारथ रा ई चितेरा लेखक कोनी, बांरै मांय आदर्स री भावना ई कूट-कूट नै भरियोड़ी है। इण दीठ सूं बांरी चेतना जूनी पीढ़ी रा मूल्यां नै घणो मान देवै। सुदामा रै उपन्यास ‘मेवै रै रूंख’ नै माधोसिंह इंदा समाजू बदळाव री करूण कथा बतावै। बां रै मुजब ओ उपन्यास अेक गांव री कथा रो सांचो दस्तावेज है जिणमें करसां री करूण दसा रा चितराम सामीं आवै।
पोथी में सामल आलेखां में डाॅ. गीता सामौर रो ‘मैकती काया, मुळमती धरती’ उपन्यास माथै लिखिज्योड़ो आलेख ई सरावण जोग है। सुदामा रै इणी उपन्यास में डाॅ. गौरीशंकर प्रजापत नै लोकजीवन रा न्यारा-न्यारा तत्व लाधै। बांरै आलेख मुजब इण में बैम, सक, हेत-समानता, भाईचारो, धरमेला, तंतर-मंतर, अंधविस्वास, कुंठावां, विकार, सुगन-अपसुगन आदि लोकतत्वां रा लूंठा दरसण होवै। श्याम जांगीड़ आपरै आलेख में सुदामा रै उपन्यास ‘आंधी अर आस्था’ री विवेचना करी है अर इण रचाव नै काळ सूं कळीजतै मानखै री गाथा बतायो है। बै लिखै कै इण उपन्यास री सगळां सूं लूंठी खासियत इणरी रळियावणी भासा है जिण में माटी री सोरम निगै आवै। डाॅ. अरूणा व्यास रै मुजब सुदामा रो रचाव लोक जीवन रो जीवतो जागतो चितराम है। बै आपरै साहित्य में समाजू रीत-कायदां नै बांरी व्यापकता में बरततां थकां उणसूं उपजण वाळै लखाव नै आपरै पाठकां तांई पुगावण रो काम करै।
अेक जूनो आलेख बुलाकी शर्मा रो ई सामल करीज्यो है जिण मांय बां सुदामा रो इंटरव्यू लेवता थकां री बंतळ लिखी है। अेक सवाल रै पड़ुत्तर में सुदामा जी कैवै, ‘म्हानै लिखणै में रस आवै, लिखतो रैवूं। लोगां सूं मिल’र खुद नै अेक्सपोज करणो म्हानै कोनी आवै।’ बांरी आ साफगोई बान्नै समकालीन रचनाकारां सूं अळघो मुकाम दिरावै। इणी बंतळ में सुदामा आलोचना रै पेटै कैवै, ‘आलोचना भासा, भाव अर कथ्य री दीठ सूं होवणी चाइजै पण राजस्थानी में ओ पख कमजोर है।
पोथी रै दूजै खंड में सुदामाजी री टाळवीं रचनावां रो संचयन है जिणमें बानगी रै तौर पर कविता, कहाणी, उपन्यास, जातरा संस्मरण भेळै निबंध ई सामल करीज्या है। इण खंड रै सरूपोत में सुदामा रै दूजै कविता संग्रै ‘व्यथा कथा अर दूजी कवितावां’ री दोय रचनावां ‘आंधी लालसा’ अर ‘अेक उदास संज्ञा’ पढण नै मिलै। बांरी काव्य पोथी ‘ऊंट रै मिस थारी: म्हारी सगळां री’ सूं ई दो अंस सामल करीज्या है। अठै कैवणो चाइजै कै कवितावां रै पेटै सम्पादक रै चयन री आपरी दीठ है। इणी भांत कहाणी खंड में सुदामा री चावी-ठावी कहाणी आंधै नै आंख्यां तो है ई, उण रै साथै ’सुलतान: नेकी रो सम्राट’ अर ’अखंडजोत’ ई सामल होई है। अे कहाण्यां सुदामाजी रै कथा साहित्य री प्रतिनिधि रचनावां कैयी जा सकै। उपन्यासां री बात करां तो ‘मैकती काया, मुळकती धरती’, ‘मेवै रा रूंख’ अर ‘घर-संसार’ रा अंस सामल करीज्या है। लोकचावै जातरा संस्मरण ‘दूर-दिसावर’ रो ई अेक भाग इण संचयन में पढण नै मिलै। सुदामाजी री निबंध पोथी ‘मनवा थारी आदत नै’ रा दो निबंध भी है जिण सूं ओ संचयन अेक समग्र रै नेड़ै-तेड़ै जा पूग्यो है।
संचयन में रचनावां रो चयन घणो अबखो काम होवै, सम्पादक कुणसी रचना लेवै अर कुणसी छोड़ै ! अर जे काम ई सुदामाजी सिरखै सिरजक री साहित्य जातरा रो होवै तो पछै हाथ घालै ई कुण ! साहित्य री लगैटगै सगळी विधावां में लिखणियै सुदामाजी री रचनांवां सूं संचयन सारू छंटाई करणी घणी दोरी, पण नंद भारद्वाज इण काम नै आपरी ऊंडी अर पारखी दीठ सूं पार घाल्यो है। बांरी खेचळ रो सार ओ है कै सुदामाजी री जलमशती रै मौकै राजस्थानी रै पाठकां अर शोधार्थियां सारू अेक महताऊ दस्तावेजी पोथी सामीं आई है जिण में सुदामा-साहित्य रै लगटगै सगळै पखां नै परोटिज्यो है। लखदाद है नंदजी नै, बांरी खेचळ नै !
पण अबै सुदामाजी री सीख नै आगै बधावां। बांरै मुजब हर पोथी अर रचनाकर्म रै आलोचनात्मक पख माथै बात करणी जरूरी है, इण सूं साहित संसार रो बिगसाव होवै। इण पोथी में सैं सूं मोटी बात जिकी अखरै, बा आ कै सुदामा साहित रै सबळै पख रै पेटै खूब लिखिज्यो है पण आलोचना रै पेटै भोत कमती बात होई है जद कै सुदामाजी सदांई कैवता, ‘सरायोड़ी खीचड़ी दांतां रै लागै’। सांची बात तो आ कै जिका आलोचनात्मक आलेख पोथी में सामल होया है बां में सूं घणकरा बरसां पुराणा है अर कई ठौड़ छप्योड़ा है। जद किणी रचनाकार रै सिरजण साख रै सौ बरसां री बात करां तो नवा आलेख सामीं आवणा चाइजै, क्यूंकै बगत रै साथै सन्दर्भ बदळ जाया करै। जूनै आलेखां में सम्पादन रै बगत सामयिक बदळाव री दरकार ही जिकी नीं हो सकी। सम्पादक आं आलेखां नै, हुवै ज्यूं ई पुरस दिया है जद कै आं री निरख-परख कर’र सामयिक सुधार होवण सूं पोथी री छिब और घणी निखरती।
पोथी री भूमिका में नंद भारद्वाज लिखै, सुदामाजी रो कविता सूं मनचींतो लगाव सदांई गाढो रैयो पण संचयन में सुदामाजी रै सैं सूं सबळै कविता संग्रै ’ओळभो जड़ आंधै नै’ माथै कोई टीप कोनी, कोई आलेख कोनी, न ही संचयन में इण कविता संग्रै री कोई बानगी है जद कै इण संग्रै री कवितावां बांचां तो ठाह पड़ै कै इण कवि कन्नै अेक न्यारी वैश्विक दीठ है जिण रै पाण बो बारीक सी बात सूं सरू होय’र काव्य संवेदना नै आकासां लग लेय जावै। लिखारा तो पग-पग छेड़ै लाधै पण आ निरवाळी दीठ भोत कमती निगै आवै। इण संग्रै री कविता ‘पाती उग्रवादी री मा री’ अर ‘विस्व सुंदरी रै मिस’ वैश्विक कविता सूं कठैई कमती कोनी। अे कवितावां सुदामाजी नै विस्व स्तरीय कवियां री पांत में खड़्या करै। संचयन में इण माथै चरचा होवण सूं सुदामा रै कवित्व रो अलायदो पख पाठकां रै सामीं आवतो।
सुदामा रै रचाव रो अेक भोत सबळो पख बां री बगत-बेगत लिखियोड़ी भूमिकावां है जिण में साहित अर सिरजक पेटै बांरी निरवाळी सोच सामीं आवै। वैश्विक साहित में कई पोथ्यां री भूमिकावां ई इत्ती चावी-ठावी होई है बै किताब नै ई कड़खै बिठावै। सुदामाजी रै सम्पादन में शिक्षा विभाग कानी सूं छप्योड़ी पोथी ‘कोरणी कलम री’ री भूमिका ई इण बात री साख भरै। इण भूमिका में सुदामाजी फगत नवै लिखारां नै कथ्य, बुणगट अर विषयां रै चयन री सीख ई नीं देवै बल्कि भासा रै मानक स्वरूप पेटै ई भोत ऊंडी बात बतावै। राजस्थानी साहित्य में लिखिजी भूमिकावां में आ सैं सूं सिरै भूमिका मानी जा सकै। नंद भारद्वाज ‘कोरणी कलम री’ रो प्रकासन बरस 1997 बतावै जद कै आ पोथी 1982 री है। सुदामाजी री लिख्योड़ी इणी तरां री निरवाळी भूमिकावां पिरोळ में कुत्ती ब्याई होवै, त्रिभुवन को सुख लागत फीको अर दूजी पोथ्यां में लाधै जिकी आपोआप में अेक मुकम्मल रचना कैयी जा सकै। सुदामा साहित रै मांय इण भूमिका पख माथै ई चरचा होवती तो पोथी री सोभा सवाई होवती।
पण सम्पादक अर सम्पादन री भी अेक सींव होया करै। उण री अबखायां नै कुण जाणै, कदै-कदै सो कीं जाणता, मानता अर चावता थकां ई मनचींती नीं हो सकै, ओ दोस तो बिधना रै पेटै ई खतावणो पड़ै नीं पछै बात आगै कियां बधै ! कैवणो चाइजै कै ‘सिरजण साख रा सौ बरस’ पोथी नंद भारद्वाज रो अेक अमोलक संचयन है जिको सुदामा रै साहित संसार में नवा पान्ना जोड़या है। नंदजी नै इण सारू घणा-घणा रंग ! इण पोथी रै छेकड़ में सुदामाजी रै साहित्य अर बान्नै मिलिया मान-सम्मान री अेक विगत ई छप्योड़ी है जिकी घणी महताऊ है। सूर्य प्रकासन मंदिर, बीकानेर सूं छपी इण पोथी रो आवरण अर छपाई सरावणजोग है।
-डाॅ.हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’