(डाॅ. कृष्णकुमार ‘आशु रै व्यंग्य उपन्यास ‘ब्याधि उच्छब’ नै बांचता थकां...)
व्यंग्य कैवणो अर परोटणो सोरो काम कोनी, तीखी दांती सी धार भेळै बाढणै री चतराई राखणी पड़ै। थोड़ा सा ऊक-चूक होया, धार देवण री ठौड़ लेवणी पड़ै ! ओ फगत हांसी ठट्ठो कोनी, बात कैवण रो बेजोड़ ढंग है जिको खासा जगचावो है। आपणै लोक में तो पग-पग छेड़ै इण बाबत निरवाळा रंग लाधै। कुण ई कैयो, थारै ढुंगां में खेजड़ो उगग्यो, ऊथळो मिल्यो-आछी बात, छियां बैठस्यां ! दूजै बूझ्यो, कियां हो ? जवाब मिल्यो, कियां होवणो हो ! धणियाणी बोली, रोटी जीमस्यो के ? धणी बोल्यो-थूं जीमण री बात करै, म्हूं रंधास्यूं बैंगण री सब्जी ! थे ही बतावो, कोई कांई करल्यै। सांची बात तो आ कै बात नै व्यंग्य री धार लागतां ई आकासां चढज्यै पण संकट ओ है कै बात करणिया लोग रैया ई कित्ताक ! आज घड़ी इण सूं मोटी ब्याधि किसी ?
फेर ब्याधि तो ब्याधि होवै जिण में सौ टंटा अर दोय सौ टंटेर, घणी छेड़ो तो बधती ई जावै। बा ब्याधि उच्छब कद गिणीजै ! हां, जे निजरां कठैई डाॅ. कृष्णकुमार ‘आशु’ सिरखै व्यंग्यकार री होवै तो उण ब्याधि नै उच्छब बणतां कांई जेज लागै। बो आपरी ऊंडी दीठ सूं ब्याधि रा इतरा रंग सणै सैनाण सोध लेवै कै उच्छब री रंगत लाग्यां ई सरै। डाॅ. आशु कन्नै व्यंग्य रै साथै अेक सूझवान पत्रकार री दीठ ई है जिकी आपरै ओळै-दोळै री सैंग बातां नै निरवाळै सिगै सूं बिचारै। इणी दीठ सूं डाॅ. आशु समाजू अबखायां बिच्चाळै मिनखपणै नै जीवतो राखणै री खेचळ करता, कोरोना री जगत ब्याधि नै उच्छब रो नांव देय’र व्यंग्य उपन्यास सामीं लाया है। कोरोना सूं कुण अणजाण, मिनखां री छोड़ो, सणै जिनावरां सगळा रै गळै में आयोड़ी ! लखायो जाणै ‘पैनेडेमिक’, ‘लाॅकडाऊन’ अर ‘क्वरंटिन’ नांव रै तीन सबदां सामीं सबदकोसां रा सै सबद पांगळा होग्या। पण बीं अबखी बेळा में ई डाॅ. आशु रै मांयलो पत्रकार आपरी व्यंग्य दीठ सूं भांत-भांत रा चितराम मांड मेल्या जिकां रै पाण ‘ब्याधि उच्छब’ पाठकां रै सामीं आयो है।
पोथी री भूमिका लिखतां थकां चावा-ठावा लिखारा डाॅ. मंगत बादळ इण नै राजस्थानी रो पैलो व्यंग्य उपन्यास बतायो है। आ ओपती बात है क्यूंकै मायड़ भासा में फुटकर व्यंग्य रचनावां तो खासा लाधै, पोथ्यां ई ठीक-ठाक छप्योड़ी है पण उपन्यास में व्यंग्य री ओ नवो पांवडो है।
डाॅ. आशु रो ओ रचाव कोरोना ब्याधि रै दिनां री पड़ताल करतो आगै बधै। बै कोरोना नै शोले फिल्म रै खलनायक ‘गब्बर’ सूं जोड़’र देखै। उपन्यास में 13 पाठ राखिज्या है। गोकळचंद नांव रो पत्रकार इण व्यंग्य उपन्यास रो नायक तो नीं, सूत्रधार कैयो जा सकै। बो महामारी नै देखै, उण रा रंग देखै, लोगां रा ढंग देखै अर सरकारू अेलकारां रै हिवड़ै बाजता चंग देखै। मौत रै मंडाण बिच्चाळै ई मिनख आपरी कुजात बतायां बिना नीं रैवै, इण बात नै परोटणै री खेचळ है ओ ब्याधि उच्छब !
लोकराज री भ्रष्ट व्यवस्था रा पोत उघाड़तो ओ उपन्यास उण बगत रो अेक महताऊ दस्तावेज बण्यो है। महामारी में जठै अेकै कान्नी लोग सांस लेवण सारू ताफड़ा तोड़ रैया है तो दूजै खान्नी इण ब्याधि नै उच्छब दांई मनावणियां रा भोत सा चैरा सामीं आवै। आपरी गळफांस काढणै सारू अेक महाभ्रष्ट कलेक्टर रातोरात दूजै प्रांत सूं आयोड़ै भोळै-ढाळै मिनखां नै दूजै जिलै री सींव में डांगरां दांई तगड़ देवै। अेक बाणियै रो परिवार सगळै गळी-मोहल्लै नै करोना री पुरसादी बांट देवै तो पांच हजार रिपिड़ा देय’र बस में सफर करणियो बिस्यो ई अेक दूजो चैरो कोरोना रो कैरियर बणै अर सगळै बास नै ल्याड़ देवै।
इण उपन्यास में डाॅ. आशु गोकळचंद नांव रै किरदार साथै पूरो न्याव करयो है जिको डाक्टरां सूं लेय’र खुद आपरी बिरादरी री सांगोपांग खबर लेवतो जाबक ई नीं संकै। आज घड़ी उण सिरखा पत्रकार अणबसी सूं सै छळ-छंद देखै अर बांरा पोत उघाड़नै री जबरी खेचळ करै पण सत्ता रा चींचड़ बान्नै जाबक ई नीं धारै। आशु रो गोकळचंद ई पूरै उपन्यास में घणाई ताफड़ा तोड़ै पण कलेक्टर सूं लगाय’र सत्ता रा दलाल उण री पार ई नीं पड़न देवै।
इण उपन्यास रो सूत्रधार सोसल मीडिया रै खतरां सूं सावचेत रैवण री सीख ई देवै जो कोई लेवै तो ! उणरी दीठ में व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी तो चालती फिरती धारा तीन सौ दो है जिकी चावै जणाई किणी नै भी अंदर करवा सकै। लाॅकडाऊन री आछी-माड़ी बातां रै मिस इण उपन्यास रो कथानक पीड नै परोटता थकां मिनखपणै रा पोत उघाडै़ अर हळंवै-हळंवै आगै बधै। छेवट म्हे तो चाल्या म्हारै गांम... री तर्ज माथै आपरी बात पूरी करै।
‘डाॅ. आशु’ इण पोथी रो समर्पण महामाया रै नांव सूं करयो है ज्यांरै पुन परताप सूं ब्याधि अर पोथी दोनूं बापरी। इण उपन्यास री बुणगट सांतरी है अर भासा ई सरावण जोग है। अठै इण बात रो जिकरो करणो जरूरी है कै डाॅ. आशु री मायड़ भासा पंजाबी है पण बै बाळपणै सूं ई राजस्थानी माहौल में पाळ्या पोखिज्या, जिण सूं बान्नै राजस्थानी लिखणै बाबत कोई अबखाई नीं। आ गुमेज री बात है। इंडिया नेटबुक्स सूं छप्योड़ी इण पोथी री छपाई अर छिब सरावणजोग है। पोथी रो मोल ई फगत 200 रिपिया राखिज्यो है जिको समैं देखतां कीं घणो कोनी। बात रा टका लागै ई पछै !
-डाॅ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’
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