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Wednesday 11 October 2023

मनगत रै भतूळियां बिच्चाळै जागतो ‘भळै भरोसो भोर रो’


(डॉ. गौरीशंकर प्रजापत री पोथी भळै भरोसो भोर रो’ बांचता थकां......)

कोई ओळी कद कविता बणै, इण बाबत कैवण में घणी अबखाई ! परम्परागत अर जूनी कविता रै पेटै तो घणी बातां हो सकै पण गद्य होवती आधुनिक कविता नै तोलण रा बाट जिग्यां अर बगत सारू बदळता रैवै। कठैई तो भासा अर बोली री ठसक सूं कविता रा काण कायदा पूरा होवै तो कठैई रीत रै रायतां सूं पाणी सरीखी बैवती बात कविता रो रूप धर लेवै। आप कैस्यो, भाव रो पछै कांई मोल ? भाव तो मूळ है कविता रो, पण उण नै तो भाव सूं ई कीं बेसी चाइजै। फगत भाव री ओळयां सूं गद्य री घड़त तो हो सकै पण कविता तो अेक लय मांगै, रागात्मक विन्यास चावै। लीकोलीक चालता छंद, दूहा, सोरठा का चौपाई होवै या फेर किणी अलायदै विषय माथै लिख्योड़ी भाव भरी बात, जद तांई उण में अेक मांयली लय नीं है, उण लय सूं जागतो अंतसभेदू चिंतन नीं है, उण नै आपां कविता नीं कैय सकां। भासा कोई होवो, अतुकांत कवितावां में भी आपां नै अेक सांगोपांग लय लाधै जिकी उण नै कविता रो रूप दिरावै। आ लय बा सागी राग है जिकी सांसां रै सगपण में है, कुदरत रै काण कायदां में है, दुःख में, दरद में, हांसी में, रळी में.......आखी जगती माया में है। सबद जद इण राग नै पकड़ै तो गीत जलमै, कविता बणै अर मानखो मिनख बणै। बारूद सामीं, आ कविता अर उण री लय री ताकत ही तो है कै गीत उगेरतो मिनख कदेई गोळी नीं दाग सकै ! 


जिकी कविता भोर रो भरोसो जगावै, आपरी संस्कृति रा अळोप होवता सैनाण सामीं लावै, प्रीत री रीत रो बधेपो करै, बां कवितावां माथै  बंतळ होवणी बित्ती ई जरूरी है जित्ती कोई लिखारै सारू कविता या कहाणी रो रचाव। बात आपरै समकालीन कवियां री होवै तो ओ दायित्व दूणो हो जावै। इणी बात नै बधावता थकां कविता रै पेटै आज बात करणी है डॉ. गौरीशंकर प्रजापत रै नवै कविता संग्रै ‘भळै भरोसो भोर रो’। 


डॉ. प्रजापत मायड़ भासा मानता आन्दोलन में अेक जाण्यो पिछाण्यो नांव है जिको सदांई हरावळ दस्तै मांय उभ्यो लाधै अर सगळां री हूंस बधावै। संसद सूं लेय’र विधानसभा तांई डॉ. प्रजापत राजस्थानी री मानता सारू खेचळ खावै, छेवट कदेई तो पार पडै़ला। ओपती बात आ है कै बै बरसां सूं कॉलेजां में राजस्थानी साहित्य भणा रैया है। बांरां आलेख ठावै पत्र-पत्रिकावां में लगोलग छपता रैवै, राष्ट्रीय अर अंतर्राष्ट्रीय कार्यषालावां में भी बां बीसूं बार साहित्यिक शोधपानां बांच्या है। बां रा कई निबंध संग्रै छप्योड़ा है अर अनुवाद रै पेटै ई  सरावणजोग काम है। 


‘भळै भरोसो भोर रो’ बांरो नवो कविता संग्रै है। इण पोथी रै फ्लैप माथै चावा-ठावा लिखारा मधु आचार्य लिखै, कै मानखो आपरै मांयलै उजास नै भूलतो जा रैयो है अर कविता रो धरम है उण उजास नै बणायां राखणो। गौरीशंकर री अे कवितावां उणी मांयलै उजास कान्नी ले जावै अर जूण रै आछै मारग माथै चालण खातर उणरी हूंस बधावै। हरीश बी. शर्मा पोथी री भूमिका में कैवै, गौरीशंकर री कविता राजस्थानी कविता में बदळाव रा अेनाण है। आं कवितावां रो महताऊ पख इण रो कहण है। लखावै है कै आं कवितावां री पोथी बणन सूं पैली सीझण री अेक लाम्बी आफळ होई है। पोथी बांचा तो ठाह पड़ै, आं कवितावां में कोई खतावळ नीं है, कवि भोत साफगोई सूं आपरी मनगत नै परोसै, कविता रै तम्बूरै रा तार कठैई कसीजै अर कठैई मोळा पड़ै, पण खरी बात आ कै ओ कवि भावां रै भतूळियां नै ढाबणो जाणै, जणाई उण री दीठ अबखायां बिच्चाळै ई भोर रो उजास सोध लेवै। 


इण संग्रै में तीन खंड है। पैलो खंड ‘जूण’ नांव सूं है जिणमें छोटी-मोटी 33 कवितावां है। अे कवितावां मिनखा जियाजूण री अंवेर करती आगै बधै। प्रेम रा न्यारा-निरवाळा रूप ही आं कवितावां रो मूळ है। पैली कविता ‘हेत रा आखर’ में कवि आपरै हियै री पोथी में दब्योड़ै भावां नै सामीं लावण री बात करै। प्रीत री ओळूं रै मिस बो आपरी मनगत नै सबदां रै पाण परोटै। ‘खरी नदी, खारो समदर’ इणी मनगत नै दरसावती सांतरी कविता है। प्रेम में खुद नै गमाय देवणो ई नदी नै खरी बणा देवै, अर भावना रो भख लेवणियै नै खारो समदर। पसरती सोरम, सिराणै-पगाणै, अटूट बंधन, प्रेम रो पागी आदि कवितावां भी प्रीत रै ओळै-दौळै रो रचाव है। आं कवितावां री भासा सरस है अर बुणगट ई ओपती, कीं नवा प्रयोग करण री खेचळ ई कवि करी है। जद गीतकार गुलजार ‘सुरीली अखियां’ री उपमा ले सकै तो गौरीषंकर प्रजापत री ‘इमीं भरी आंख्यां’ मांखर पसरती प्रीत ई सराणी चाइजै। 


‘म्हारी मा’ नांव री रचना में कवि भोत सांतरै अर सरल ढंग संू मा रो नेह बखाण्योे है। अनपढ़ होवता थकां ई मा टाबर रै हियै रा अेकोअेक हरफ पढ़ जाणै, गाळभेळ भलंई उण नै नीं आवती होवै पण आपरै टाबरां सारू बा आखै जगत सूं झगड़ सकै। ‘ओळावां री पोथी’ कविता मांय कवि उडीकती मनगत में उठ्यै सवालां रो ऊथलो चावै। आछो-माड़ो सिरैनांव री कविता में कवि मिनखपणै नै सामीं राखतो कैवै-


थारी निजरां में/म्हैं माड़ो हूं/पण म्हानै माड़ो बतायां/थूं आछो साबित नीं होवै/जियां थारी भूंडाई करतां/म्हारी भलाई सिद्ध नीं होवै..।


दूजो खंड ‘जथारथ’ नांव सूं है जिण में डॉ. प्रजापत री दीठ रो पकाव सामीं आवै। पैली कविता ‘सीख’ में थ्यावस री बात है तो ‘आतमा रो मोल’ में कवि धिरजाई सूं बूझै, कांई ओळमां, तानां अर गुणां रो बखाण ई फगत आतमा रो मोल होवै ? दरपण सिरैनांव सूं इण खंड में सात कवितावां है।  दुनियावी मायाजाळ सूं आखतै होयोड़ै कवि रो चैरो खुद सूं सवाल करै-


अबै दरपण में/देखण री/अर देखता रैवण री/ हंूस नीं रैयी/स्यात अबै बच्यो ई कोनी/बो बच्यो खुच्यो हेत/खुद सूं ई !


इण खंड में कई कवितावां रा बिम्ब कुदरत रै रंगां सूं ई आकार लेवै। आं कवितावां पेटै शंकरसिंह राजपुरोहित लिखै, गौरीषंकर प्रजापत प्रकृति रा ई चितेरा कवि है। इण चितेर मांय प्रकृति रो मानवीकरण करण मांय ई बै बिम्ब अर प्रतीकां री रचना इण भांत करै पाठकां रै मन मांय कविता रा चितराम मतैई मंडाण लेवै। फळसै उभी सांझ इस्यै चितराम री ही अेक कविता है।


संग्रै रो तीजो खंड ‘जीवण-सार’ नांव सूं है। इण खंड में 28 कवितावां है। हेत सिरैनांव सूं पांच चितराम है जिकां री बुणगट सांतरी है। बानगी देखो-


हेत रंग नीं/पाणी नीं/उजाळो नीं/ताप नीं/ बिरखा नीं/फगत मैसूस करण सारू/होवै हेत।


बिडरूप होवती संस्कृति में कवि अपणायत सोधणो चावै पण उण नै कोई सैनाण नीं लाधै, पछै बो आपरी पीड़ कविता में उतारै। रचाव देखो-


अठै नीं है मा जाया बीरा/ना ई है कड़ाई रा सीरा/अठै तो मिलै बर्गर नै चाउमीन/हर पळ बदळै अठै रिस्तां रा सीन/म्है दो म्हारै अेक/ रैया तीन रा तीन! 


सांची बात तो आ है कै आं कवितावां रो कवि हांसणो तो चावै पण दुनियावी अबखायां अर रंग-ढंग देख उण रै मूंडै हांसी री ठौड़ चिंतावां री लकीरां पसरी रैवै। बो कैवणो तो भोत कीं चावै पण बगत अर दुनियादारी उण रा होठ सीड़ देवै। ‘हियै हेत री गांठ’ कविता इण बात री साख भरै। जठै बो आपरी मनगत रै पानां में अणूतो, अथाग हेत बतावै, जिण रै अेक गांठ लाग्योड़ी है। आ गांठ भोत मायावी है, दुनियावी है, छळगारी है। कवि बार-बार बूझै, इण जिनगाणी में इत्तरी गांठां क्यूं है, जेकर कोई इण गांठां नै खोलै तो मतैई मिनखपणै रो उजास पसर जासी अर सो कीं सैंचन्नण हो जावैलो। कदास, इण गांठ रै खुलणै सूं ई भोर रो भरोसो जागै।


सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर सूं छप्योड़ी इण पोथी री छपाई अर छिब ओपती है पण मोल 300 रिपिया होवण सूं आम पाठक बेगो सोक नीं जुड़ सकै। प्रकाशक नै ई बाबत थोड़ो सजग होवणो चाइजै। इण पोथी नै बांच्यां पछै साररूप सूं कैयो जा सकै कै अे कवितावां राजस्थानी री आधुनिक कविता रो अेक पड़बिम्ब है जिणरो भविष्य उजळो दीसै। उम्मीद राखां, डॉ. गौरीशंकर प्रजापत री काव्य जातरा रा और सांतरा, घणी ऊंडी दीठ रा रचाव पाठकां सामीं आसी। 


डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’



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