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Tuesday 28 April 2020

फेसबुकिया सब्जी मंडी में चलिए ना !

फेसबुक एक सब्जी मंडी है जहां कभी-कभी आलू-प्याज भी डेढ़ सौ रुपए किलो बिक जाते हैं और कभी सेव संतरे धरे रह जाते हैं. इस बाजार का नियम है सब्जी हो या फल, बड़ी जल्दी बासी हो जाते है. बासी सब्जी और सड़े हुए फल खाना कौन पसंद करता है भला !

चैबीसों घंटे खुली रहने वाली इस फेसबुकिया सब्जी मंडी में आवारा पशुओं का होना भी स्वाभाविक है जो सब्जी और फलों की टोकरियों के साथ बाजार की गंदगी में मुंह मारते नजर आते हैं. इनमें गाय, गोधे, कुत्ते, बिल्लों के साथ गधे और खच्चर भी शामिल है. इनसे दुकानदार और ग्राहक दोनों परेशान रहते हैं. इस बाजार में कोई म्युनिसिपालिटी इन आवारा पशुओं को नहीं पकड़ सकती, उन्हें झेलना ही बाजार की मजबूरी है. 


इस मण्डी की एक और खासियत है. जब आम, संतरा, केला, किन्नू या फिर गोभी और मटर का सीजन होता है तो यहां चारों और एक जैसी चीजें दिखाई देती हैं. केले बिक रहे हैं तो सिर्फ केले ही केले, बैंगन आए हैं तो सिर्फ बैंगन ही बैंगन. 


इस बाजार में घूमते हुए शर्मा जी की मुलाकात वर्मा जी से हो जाती है तो अरोड़ा आंटी बाजार में ही मिसेज जैन से अपने सुख-दुख बांट लेती है. सिद्धार्थ और राहुल जैसे नौजवान भी अक्सर सब्जियों के थैले लिए दिख जाते हैं परंतु ये युवा चेहरे सब्जी मंडी में आई रिंकी और पिंकी द्वारा खरीदी जा रही चीजों की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं, भले ही वो बेमौसम की ककड़ियां खरीद रही हों. मां ने सिद्धार्थ से भले ही भिण्डियां मंगवाई हो लेकिन वो बाबू तो ककड़ियों को बेहतर बताने के लिए कमर कस चुके हैं. कसे भी क्यों ना, आखिर रिंकिया की पसंद का सवाल है !


यहां कुछ लोग रोज मण्डी जाते हैं तो कई महीनों तक दिखाई ही नहीं देते. कुछ ऐसे भी है जो बाजार की भीड़भाड़ के कारण दूर से ही हाथ हिला कर बड़ी जल्दी निकलने की कोशिश करते हैं तो कई पकड़ कर ही बैठ जाते हैं, लाख छुड़ाने पर भी हाथ नहीं छोड़ते. 

कई रेहडी वाले इस बाजार की व्यवस्था बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते और शाम ढलने से पहले चिल्ला-चिल्लाकर अपना माल बेच ही जाते हैं. कई चतुर खिलाड़ी साधुवाली के किन्नुओं को नागपुर के संतरे बताकर बेच देते हैं तो कई अपने आमों को मलिहाबादी साबित करने के लिए ग्राहकों से झगड़ा कर बैठते हैं. 

कभी-कभी लड़ाई इस कदर बढ़ जाती है कि बरसों पुराना ग्राहक एक झटके में संबंध तोड़ लेता है और उसकी दुकान पर कभी न चढ़ने की कसम खा लेता है. इस बाजार के कुछ दुकानदार डंडी मार कर तोलने से नहीं चूकते तो कई ग्राहक सब्जी के साथ धनिया और मिर्च मुफ्त उठाना अपना अधिकार समझते हैं. 


कुल मिलाकर इस सब्जी मंडी के नजारे देखने लायक हैं. आप और मैं चाहें तो अपना चेहरा भी इस मंडी में घूम रहे मनुष्य और पशुओं के किरदारों में ढूंढ सकते हैं. कोशिश कीजिए ना !

 -रूंख


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