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Thursday 16 April 2020

बड़ा स्कूल, बड़ी-बड़ी बातें !



पगडंडियों के दिन (6) - रूंख भायला

हाई स्कूल के दिन भुलाए नहीं भूलते. जिन लोगों ने हाई स्कूल में नियमित विद्यार्थी के रूप में कक्षाएं लगाई हैं, उनके जेहन में आनंद और अनुभव का दरिया निरंतर बहता है. मस्ती भरे माहौल में यह वह दौर होता है जब आदमी में सीखने की प्रक्रिया और ललक सर्वाधिक होती है.

किशोरावस्था की आनंददायक स्मृतियों में डुबकी लगाना खजाना पाने से कम कहां ! 
तो आज एक बार फिर, मैं पाठक मित्रों को यादों के बहते दरिया में डूबोने के लिए ले चलता हूं.

'हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए शीघ्र सारे 'गुरुजनों...सॉरी दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए..'

हाई स्कूल में प्रार्थना बोलने का जिम्मा हमारे ऊपर था. मैं, राधेश्याम सोनी, छोटेलाल राही, संजय गुप्ता और जसपाल उर्फ 'पाला' में से कोई तीन छात्र स्टेज पर होते तथा सामने लगभग 800-900 विद्यार्थियों की फौज खड़ी रहती. प्रार्थना स्थल पर कई दोस्त मजाकिया अंदाज में प्रार्थना में प्रयुक्त शब्द 'दुर्गुणों' की जगह 'गुरुजनों' का प्रयोग करते थे जिसकी गूंज सिर्फ़ स्कूल के सदाबहार पीटीआई मिराजुद्दीन जी सुन सकते थे. सुनने के बावजूद उसे अनसुना कर देना उनकी खासियत थी.

80 के दशक में हनुमानगढ़ जंक्शन के इस एकमात्र गवर्नमेंट बॉयज सेकेंडरी स्कूल, जो 'बड़ा स्कूल' और 'हाई स्कूल' के नाम से प्रसिद्ध था, में शहर के लगभग 75% विद्यार्थी पढ़ते थे. यहां मक्कासर, जंडांवाली और सतीपुरा आदि गांवों से भी विद्यार्थी आते थे जिनमें से कईयों की कद काठी गुरूजनों के समान ही थी. छठी कक्षा से प्रारंभ होने वाले इस हाई स्कूल में कला विज्ञान और वाणिज्य के तीनों संकाय थे. शहर की लड़कियां बाजार में स्थित राजकीय बालिका सेकेंडरी स्कूल तथा नेहरू स्मृति स्कूल में पढ़ा करती थी. नेहरू स्कूल सह शिक्षा का था लेकिन उसके बावजूद दुर्गा कॉलोनी स्थित व्यापारी वर्ग के ज्यादातर लड़के बड़े स्कूल में ही आते थे. सीधा सा कारण था बड़े स्कूल जैसी मस्ती और कहां !

हमारी पढ़ाई के दौरान बड़े स्कूल में श्री भंवरू खां जी हेड मास्टर थे. जब वह प्रार्थना स्थल पर होते तो सबकी घिग्गी बंधी रहती. विद्यालय स्टाफ भी अलर्ट रहता. मिराजुद्दीनजी प्रार्थना शुरू होने से पहले ड्रम बजाते और पुरजोर आवाज में आदेश देते- 'लेट कमर्स अलग लाइन'. विदाउट ड्रेस भी बाहर आ जाएं.' सफेद शर्ट और खाकी पेंट जिस दिन भूल जाते, नानी याद आना स्वाभाविक था. प्रार्थना खत्म होते ही हेड मास्टर साहब की आवाज गूंजती- 'भूरा....'
और विद्यालय का सबसे खतरनाक आदमी तुरंत उत्तर देता- 'जी साहब !'
चफरासी भूराराम हेडमास्टर साहब का खास आदमी था और सारी खबरें रखता था. वह हेड मास्टर साहब के सांकेतिक आदेशानुसार तुरंत उन्हें छड़ी थमा देता. हेड मास्टर साहब की फिर आवाज गूंजती- 'लेट कमर्स और विदाउट ड्रेस वाले सारे मुर्गे बन जाओ'.
मुर्गा बनने के बाद कमबख्त दुनिया उल्टी दिखने लगती थी. कुछ अनुभवी मुर्गों के लिए तो यह हंसी खेल था लेकिन कभी-कभी मुझ जैसे नए मुर्गे फंस जाते तब जान गले में आ जाती. 
'हरपाल जी, डूडी जी, प्रसाद शुरू करो.'
...और एक तरफ से हेड मास्टर साहब खुद शुरू हो जाते. सबको कमोबेश दो-दो फदीड़ का प्रसाद मिलता जिसकी मिठास लगभग पहले पीरियड तक चलती. 

विद्यालय के सबसे मस्त शिक्षकों में मदन लाल जी पुरोहित थे जो चूंठिए का प्रसाद देते थे. उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव तो आज की श्रद्धा के साथ कायम है. अन्य गुरुजनों रामनारायण जी, उग्रसेन जी, जसवंत सिंह जी, हरपाल सिंह जी, डूडी जी, भूषण लाल जी, श्यामसुंदर जी बवेजा और नए आए स्वयंप्रकाश जी के पढ़ाने का अंदाज भी निराला था. हिंदी पढ़ाने वाले राम नारायण जी जब मूड में होते तो आधी छुट्टी बाद बच्चों को कहते -

'लाडी, आनंद सिनेमा में धर्मेंद्र गी फिल्म लागेड़ी है. देख आओ, पढ़ तो फेर ई लेया.' 
ऐसा कहकर एक बच्चे को बैग समेत कमरे के दरवाजे पर भेजते. परंतु उस बच्चे के गेट पर पहुंचने से पहले ही आवाज लगाते 
'अरे रुक, एक नै सागै और लेज्या, टैम भोत खराब है. फिर कहते- एक'र रुक. मैं देखूं गैलरी में भूरो तो कोनी.'

उस समय हाईस्कूल के चारदीवारी नहीं थी. रामनारायण जी एक-एक कर पूरी क्लास को खाली करवाने की कला जानते थे. मन होने पर कभी-कभी कहते-
'आज भई, पढस्यां.'

पीटीआई मिराजुद्दीन जी बड़े रसिया आदमी थे. एक लंबे समय तक उन्होंने 15 अगस्त और 26 जनवरी के सरकारी आयोजनों में पीटीआई और संचालक की भूमिका निभाई थी. उन दिनों पूरे हनुमानगढ़ में राष्ट्रीय दिवस पर एक ही आयोजन होता था जो अक्सर राजकीय बालिका विद्यालय में हुआ करता था. शहर के हर विद्यालय के विद्यार्थी इस अवसर पर पीटी, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लेते थे. ऐसे कार्यक्रम ऐसे कार्यक्रमों के लिए मिराजुद्दीन जी स्कूल की टीम को हारमोनियम पर गीत संगीत की तैयारी करवाते थे. इस आयोजन में स्टेज पर अक्सर एक लड़के को बीच में खड़ा कर दिया जाता और दोनों तरफ चार-चार लड़कों को खड़ा कर दिया जाता. हमें गाने के मुताबिक एक्शन करने होते. एक्शन मैं गलती होने पर मिराजुद्दीन जी सबको 'नालायकों' कहकर बहुत चिल्लाते. गाने में प्लेबैक सिंगिंग का काम छोटेलाल राही, राधेश्याम सोनी व जसपाल का होता. उन्हीं दिनों मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म 'प्यार झुकता नहीं' आई थी जिसके हिट गीतों की तर्ज पर छोटे लाल के भाई वेद राही ने कुछ देशभक्ति गीत लिखकर दिए थे. उनमें से एक गीत 'चाहे लाख तूफान आए, चाहे जान भी अब जाए, देश पे होंगे कुर्बान ..' हमनें स्वतंत्रता दिवस पर चिल्ड्रन स्कूल, हनुमानगढ़ टाउन में प्रस्तुत कर प्रथम पुरस्कार जीता था. उस दिन हमारे साथ-साथ मिराजुद्दीन जी बहुत खुश हुए थे. इसका कारण था कि प्राइवेट स्कूलों की प्रतिस्पर्धा के बीच में हमने अपने हाईस्कूल की धाक जमाई थी.
आज जब बच्चों को पीली बसों और टैक्सियों में स्कूल जाते देखता हूं तो मुझे हाई स्कूल का कैंपस याद आता है जहां अधिकतर बच्चे पैदल या कुछ एक साइकिलों पर आया करते थे. अब तो कुछ स्कूल्स में कैंटीन भी खुल गई है लेकिन हाई स्कूल में तो आधी छुट्टी के समय रेहड़ी वाले की मोठ चाट या गुड़ की पापड़ी सबसे बढ़िया स्नैक्स हुआ करते थे.

ऐसी यादों को संजोने वाला हनुमानगढ़ का 'हाई स्कूल' आज आईटी सेंटर और सीनियर सेकेंडरी स्कूल बन चुका है. इस स्कूल के चारों और विशालकाय चारदीवारी भी बन गई है जहां बड़े-बड़े पेड़ झूमते हुए नजर आते हैं. मैं जब भी वहां से गुजरता हूं स्वत: ही मेरा सिर इस अनूठे शिक्षा मंदिर की ओर झुक जाता है.




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