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Wednesday 29 April 2020

शिक्षक का ख़त

....सर, हमें हमारे बच्चों से कविता नहीं करवानी है हम तो बस यही चाहते हैं वह अपने पैरों के ऊपर खड़े हो जाएं. आप तो उन्हें बस खींचकर पढ़ाइए. कक्षा में टॉप होने चाहिए हमारे बच्चे. जरूरत पड़े तो दो लगाने में भी संकोच न करें, हम कोई उलाहना नहीं देंगे.

‘... माफ कीजिए, आपके बच्चे कविता कर भी नहीं कर पाएंगे.’
‘क्यों सर... ?‘
‘सुनने का समय हो, तो बताता हूं.’
‘कविता करने के लिए एक स्वच्छ और निर्मल ह्रदय चाहिए जबकि आप बच्चों में ऐसा मन विकसित होने ही नहीं देना चाहते. आपको भले ही अटपटा लगे लेकिन आप अपने बच्चों को एक इन्वेस्टमेंट के रूप में देख रहे हैं. अधिकांश मां बाप यही चाहते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर उनका आर्थिक सहयोग करें यानी इन्वेस्टमेंट के बदले उन्हें पूरी रिटर्न मिले. आपने अपना पूरा ध्यान बच्चे के नैसर्गिक विकास की बजाय अर्थ से जोड़ लिया है.

आप की यही सोच बच्चों का बचपन खा रही है. सच पूछो तो आपकी उम्मीद ने बच्चों के चेहरों से हंसी, आंखों से सपने, और मन से विश्वास छीन लिया है. आपके सपनों को पूरा करने के लिए उसे एक ऐसी अंधी दौड़ में धकेल दिया गया है जिसका अंत क्या होगा कोई नहीं जानता. आपके द्वारा अनायास ही किए जा रहे ऐसे व्यवहार से बच्चों में कर्कशता, कठोरता, कुटिलता और छल, छंद के साथ द्वंद की वृत्ति पनप रही है. इस वृत्ति ने बच्चों से कोमलता, मित्रवत व्यवहार और संवेदनशीलता को छिनने का काम किया है. यदि स्पष्ट शब्दों में कहूं तो आपका बच्चा एक उत्पाद बनने की ओर अग्रसर है जिस पर आप येन केन प्रकेरेण तथाकथित सफलता का टैग लगा हुआ देखना चाहते हैं.

खिलखिलाते, मुस्कुराते बच्चे सबको अच्छे लगते हैं लेकिन जरा सोचिए क्या हम अपने बच्चों को खुलकर हंसने का वातावरण दे पा रहे हैं ? क्या हम बच्चों को उनके प्राकृतिक स्वरूप के साथ आगे बढ़ने के अवसर प्रदान कर रहे हैं ? क्या हम बच्चों के मन को टटोलने का प्रयास करते हैं ?

कहने को आप हां भर सकते हैं लेकिन आप भी जानते हैं यथार्थ कोसों दूर है. सच्चाई तो यह है कि आपके पास इतना समय ही नहीं है कि बच्चे से उसके मन की बात कर लें. आपने बच्चों को सिर्फ वे सपने देखने की आजादी दी है जो कभी आपने अपने मन में पाले थे. आप यह भूल जाते हैं कि आपके सपने यदि पूरे न हो सके तो इसमें बच्चे का कुसूर नहीं है. प्राकृतिक रूप से उसे भी सपने देखने और उन्हें पूरे करने के भरपूर अवसर मिलने चाहिए. आपको तो उसका सहयोग करना चाहिए ना कि अपनी सोच और अपने सपने उस पर थोपने चाहिए. कभी खुद को उस बच्चे के स्थान पर रख कर देखेंगे तो आपको शायद एहसास होगा कि बालमन कैसा होता है. लेकिन व्यवसायिक आपाधापी के दौर में आप में ऐसा करने की हिम्मत बची ही नहीं है.

श्रीमान जी, एक शिक्षक का काम यह नहीं होता कि वह अपने विद्यार्थियों को रटंत तोता बना दे और किसी भी ढंग से शैक्षिक परीक्षाओं में 90ः से अधिक अंक लाने की कुटिल कला सिखा दें. यदि आपका बच्चा किसी नौसिखिए के सानिध्य में ये दोनों कलाएं सीख जाता है तो यकीन जानिए कि वह आपके सपने तो पूरे कर देगा लेकिन जिंदगी में सफलता से कोसों दूर हो जभेजिए. परन्तु उत्पाद सरीखे बच्चे बड़े होकर आपकी उम्मीदों पर खरे उतरें, इस उम्मीद को तो त्यागना ही पड़ेगा.ाएगा. सफलता के मायने सिर्फ रुपया पैसा और भौतिक संपदा अर्जित करना नहीं होता बल्कि एक ऐसा जीवन जीना है जो अपनी व्यवहार कुशलता और सादगी से सबके लिए प्रेरणादायी बने. माना कि रुपया पैसा जिंदगी के लिए जरूरी है लेकिन खुशियों के लिए तो मन के भाव स्वतः ही उमड़ते हैं जो किसी रुपए पैसे के मोहताज नहीं होते.

एक शिक्षक का काम शैक्षिक विषयों के साथ अपने विद्यार्थियों को जीवन जीने की कला सिखाना होता है. कदम-कदम पर उसका हौसला बढ़ाना और उसे प्राकृतिक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना शिक्षक का नियमित कार्य होता है. इसमें भी सबसे बड़ा काम उसे अपने विद्यार्थियों को संवेदना से भर देने का होता है जो उन्हें पशुता से मनुष्यता की ओर ले जाता है. इसी संवेदना से कविता जन्मती है जिसे गुनगुनाता तो पूरा संसार हैं लेकिन उसके सृजन का सुख बिरलों को नसीब होता है.

इसलिए माफ कीजिए श्रीमान, आपके बच्चे आपकी व्यवसायिक सोच के रहते कविता नहीं कर पाएंगे. हां उन्हें बेहतर उत्पाद बनाने के लिए स्कूल अवश्य भेजिए !

 -रूंख

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