- नगरपालिका चुनावों में बना सकते हैं कांग्रेस का बोर्ड
- भाजपा से लोकसभा सीट छीनने में महत्वपूर्ण भूमिका
कभी-कभी ऐसा होता है जब सारी दुनिया आपको गिराने में लगी होती है, उस वक्त एक अज्ञात शक्ति चुपचाप आकर आपके साथ खड़ी हो जाती है। देखते ही देखते पूरी तस्वीर बदल जाती है, आप और बेहतर ढंग से उभरने लगते हैं। आध्यात्मिक शब्दावली में इसी को 'डिवाइन जस्टिस' कहा जाता है। राजनीति की बात करें तो सूरतगढ़ के विधायक डूंगर राम गेदर 'डिवाइन जस्टिस' का बेहतरीन उदाहरण है।
यह ईश्वरीय न्याय उन्हें भी समझ आ गया है, शायद इसीलिए वे पूरे मनोयोग से अपना काम कर रहे हैं। हालांकि एक वर्ग विशेष के लोग आज भी उन्हें विधायक मानने से गुरेज करते हैं लेकिन जैसा कि ट्रकों के पीछे लिखा रहता है 'जिसके सिर ऊपर तू स्वामी, सो दुख कैसा पावे'।
गेदर की विधायकी के अब तक के कार्यकाल पर नजर डालें तो पाएंगे कि उन्होंने गंभीरता से काम किया है। विपक्षी विधायक के रूप में उन्होंने विधानसभा में शानदार ढंग से शुरुआत की थी। शपथ ग्रहण के समय ही उन्होंने पुरजोर ढंग से राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग उठा कर अपने तेवर दिखा दिए थे। हाल ही में समाप्त हुए विधानसभा सत्र में क्षेत्रीय जन समस्याओं के साथ-साथ प्रदेश स्तरीय मुद्दों पर भी गेदर ने सरकार से न केवल तीखे सवाल-जवाब किए बल्कि कई बार तो मंत्रियों को भी बैक फुट पर आना पड़ा। विधानसभा में पूरी तैयारी के साथ अपनी बात रखना यह दिखाता है की गेदर का 'होमवर्क' कैसा है। उनकी कार्यशली जातिगत राजनीति के आरोपी को नकारती है जब वे जनता के हर वर्ग के साथ खड़े नजर आते हैं। याद कीजिए, जब कुछ दिन पूर्व गेदर ने जन भावनाओं के साथ जुड़कर सिटी पुलिस थानाधिकारी की कार्य शैली के खिलाफ न सिर्फ धरने पर बैठने की बात कही, बल्कि उस मुद्दे को विधानसभा में भी उठा दिया। उनके कड़े रुख का परिणाम ही रहा कि सीआई को लाइन हाजिर कर दिया गया। इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्ववर्ती विधायक की तरह उनके मुंह से कभी यह नहीं सुना गया, 'आपणी तो चालै कोनी या फिर अपनी तो सरकार ही नहीं है !'
श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस को जिताने में भी गेदर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस जीत से न सिर्फ देश-प्रदेश के राजनीतिक समीकरण बदले हैं बल्कि गेदर का कद भी बढ़ा है। इसी के चलते चर्चा चल रही है कि नगर पालिका चुनाव में भी कांग्रेस अपना बोर्ड बनाने में कामयाब होगी।
गेदर को गिराने की कितनी कोशिशें हुई, इसकी पड़ताल के लिए थोड़ा पीछे लौटते हैं । कांग्रेसी दिग्गजों के बीच गेदर को पार्टी का टिकट मिलना कोई आसान बात नहीं थी। शांत और धीर स्वभाव के गेदर को यह कहकर बड़े हल्के में लिया जाता था कि वे सिर्फ दलित वर्ग की राजनीति करते हैं। फिर बसपा से आमजन की दूरी भी किसी से छिपी नहीं थी । लेकिन बसपा से कांग्रेस में आए गेदर की निष्ठा और समर्पण को अशोक गहलोत ने भली-भांति पहचान लिया था, जब गेदर ने प्रदेश में कांग्रेस के लिए जनसंपर्क अभियान में तन, मन, धन से काम किया था । इसी के चलते उन्हें प्रदेश माटी कला बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। विधानसभा चुनाव से पहले ही उनकी मांग पर बीरमाना में सरकारी कॉलेज और सहायक अभियंता विद्युत का कार्यालय खुलने की घोषणा हो गई थी। उस वक्त भी गेदर पर एक जाति और क्षेत्र विशेष के लिए काम करने के बेतुके आरोप लगे थे। जन सामान्य भी दिग्गजों के समक्ष गेदर को टिकट मिलने की बात को संशय से देखता था। बसपा के कुछ पुराने कार्यकर्ता तो गेदर को दगाबाज बताया करते थे। उनका दावा था कि उसे टिकट भले ही मिले दलितों के वोट नहीं मिलने वाले। लेकिन तमाम दावों और संदेहों से परे डूंगर राम ने न सिर्फ़ टिकट हासिल की बल्कि रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे। हर जाति और वर्ग से उन्हें भरपूर समर्थन मिला। उनके विरोधियों की तमाम चालें और कयास धरे के धरे रह गए।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद डूंगर राम गेदर राजनीति में एक लंबी पारी खेलने के लिए तैयार हैं। यदि इसी कार्यशैली से वे मैदान में डटे रहते हैं तो उन्हें जनता का आशीर्वाद भी मिलता रहेगा।
-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
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