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Sunday 28 April 2024

कुछ शब्द भीतर तक डराते हैं !

 

दोस्त कहते हैं, मैं शब्द का आदमी हूं. हां, थोड़ा बहुत लिख पढ़ लेता हूं, शायद इसी वजह से वे मुझे शब्द का साधक मान बैठते हैं. शब्द भी कहीं सधते हैं भला ! मन तो कदास सध भी जाए, शब्द का सधना तो संसार साधना हुआ. संसार तो बड़े-बड़े ऋषियों, मुनियों से नहीं सधा, तो अपनी औक़ात ही क्या !
सच कहूं तो शब्दों से निकटता के बावजूद कुछ शब्द बहुत डराते हैं, आदमी भीतर तक सिहर जाता है. 'एक्यूट' भी ऐसा ही एक शब्द है जिसकी उपस्थिति की संभावना मात्र से मेरे होठों पर प्रार्थनाएं आकर बैठ जाती हैं. अनसुनी प्रार्थनाओं के बीच भय के सायों से घिरा मैं खुद को बड़ा असहाय महसूस करता हूं, मेरे पास पत्थरों की तरह अपलक ताकने के अलावा कोई चारा नहीं होता...... !

(अधखुले पन्नों के बीच...)
दिनांक 25 मई 2022

जी, नमस्कार.....

नमस्कार !

मैं राकेश बोल रहा हूं, बसंत जी ने आपका नंबर दिया है...

हां कहिए सर, क्या हुकुम है मेरे लिए...

जी, दरअसल बात यह है कि मेरे मौसाजी की तबीयत खराब है. उनकी ब्लड रिपोर्ट आई है जिसमें कैंसर डिटेक्ट हुआ है. सच पूछिए पूरा परिवार घबराया हुआ है.

ओह ! पर घबराइए नहीं, अब तो कैंसर का इलाज उपलब्ध है.

सर, आप मार्गदर्शन कीजिए ना. डॉक्टर्स की एडवाइज समझ ही नहीं आ रही है. बसंत जी ने कहा है कि आप इस बीमारी में बेहतर सलाह दे सकते हैं.

?????...............

हैलो......हैलो......सर, सुन पा रहे हैं ना ?

.....ओ.... हां,........ आप ऐसा करें उनकी रिपोर्ट मुझे व्हाट्सएप कर दें, उसके बाद हम आगे का लाइनअप देखते हैं.

ठीक है, आप रिपोर्ट भेजिए....

थोड़ी देर बाद व्हाट्सएप पर उसी नंबर से एक पीडीएफ पहुंचती है.

उसे खोलने से पहले मैं मन ही मन प्रार्थना करता हूं. पता नहीं क्यों...

लेकिन कभी-कभी प्रार्थनाएं सिर्फ करने के लिए होती हैं, सुने जाने के लिए नहीं....

महेश शर्मा..... उम्र 55 वर्ष....... बोन मैरो स्टडी रिपोर्ट....... मेरी नजरें तेजी से इंप्रेशन को ढूंढती है और कुछ क्षणों में ही सारी तलाश खत्म हो जाती है...... निस्तेज..... निढाल..... अंतहीन निराशा..... 'एक्यूट मायोलॉयड ल्यूकेमिया'

एक लंबी सांस छोड़कर आंखें बंद कर लेता हूं......

स्क्रीन पर फिर वही नंबर चमकता हैं........ कभी-कभी रिंगटोन कितनी डरावनी हो जाती है !

सर, आपने रिपोर्ट देखी ?

ओ हां, राहुल जी, मैंने रिपोर्ट देख ली है......

तो सर........

ठीक नहीं है.

डॉक्टर्स भी यही कह रहे हैं. सर, मौसा जी का पूरा परिवार उन्हीं पर आश्रित है. उनकी आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है. अब क्या करना ठीक रहेगा ?

देखें, इन परिस्थितियों में सबसे बड़ी बात है पेशेंट का होसला बनाए रखना. हमारे शरीर में बहुत से पावरफुल हार्मोन हमारी पॉजिटिविटी पर निर्भर करते हैं. उन्हें बार-बार एक वाक्य की तरफ मोड़ें, 'कोई बात नहीं.' वैसे क्या मौसा जी को पता है ?

पता नहीं सर. मैं हॉस्पिटल जा कर आपकी बात करवाता हूं.

जरूर, मेरी बात करवाएं....!

ख्याल बड़ी तेजी से दौड़ते हैं. चेहरे उभरते हैं, भाप बनकर उड़ते रहते हैं. उड़ते-उड़ते जाने कब बादलों में बदल जाते हैं. गरजते बादल.... बरसते बादल....आंख से......मन से........ बिजली कड़कड़ाती है और फिर ....... तूफानी बारिश के बाद का मंजर.... कितना कुछ बह जाता है....... बिखर जाता है...... कांच के किरचों से झांकते डरावने अक्स मेरा वजूद लील जाते हैं.... सब कुछ शून्य में विलीन हो जाता है.
-रूंख

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