(पांख्यां लिख्या ओळमा की समीक्षा) राजस्थानी और हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर सिंह जी राठौड़ का कला और संस्कृति से गहरा नाता है। लेखक होने के साथ-साथ वे एक कुशल चित्रकार और प्रतिबद्ध समीक्षक भी हैं। शेखावाटी की ठसक और जोधपुर की मिठास को एक साथ संजोने वाले राठौड़ साहब पिछले कई दिनों से स्वास्थ्य लाभ पर थे। उन्होंने 'पांख्यां लिख्या ओळमा' की कहानियों पर सारगर्भित टिप्पणी की है। लखदाद राठौड़ साहब, आपका आशीर्वाद सिर माथे ! आप मित्र लोग भी उनकी समीक्षा को बांचिए-
कहानीकार - डा. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'पुस्तक - पांख्यां लिख्या ओळमा [राजस्थानी ]
पिछले साल छपा यह कहानी संग्रह नौ कहानियों को 80 पेज में समेटे हुए है। राजस्थानी भाषा की मान्यता के जुझारु सिपाही डा.सारस्वत मूल रूप से कवि हैं लेकिन उन्होंने राजस्थानी भाषा में बहुत सुंदर कहानियां भी लिखी हैं।
इस संग्रह की टाइटल कहानी '' पांख्यां लिख्या ओळमा '' मानवीय भावना से ओतप्रोत है। खाड़ी देश में कमाने गए व्यक्ति को उस समय की मजबूरी के हिसाब से उसकी पत्नी अनेक बार में रिकार्ड किए गए मनोभावों की कैसेट किसी के साथ भेजती है।वह कस्बे से निकलते ही बस में रह जाती है। लेखक को कैसेट मिलती है। पेंतीस बरस बीत गए। इस बीच कथा नायक की पत्नी की मृत्यु हो जाती है।लेखक द्वारा फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर सूचना भेजने से कथा नायक आकर कैसेट प्राप्त करता है। मृत पत्नी की आवाज पैंतीस बरस बाद कैसेट से सुनकर भावुक हो जाता है।कहानी का अंत सुखांत परिस्थिति उत्पन्न कर मानवीय कोमलतम भावों को बड़ी मार्मिकता से उजागर करता है।
इसी प्रकार पहली कहानी, '' संकै री सींव '' में प्राचीन परंपरा से बंधे छोटे से गांव की मानसिकता का अंकन सुंदर ढंग से किया है।गांव में परिवार नियोजन के सुरक्षा कवच की फैक्ट्री लगने की बात पर बवाल मचता है। गांव की औरतों को फैक्ट्री में काम मिलने व आर्थिक विकास की बात समझाने पर भी सहमति न होना फिर नाटकीय ढंग से महिला सरपंच द्वारा आगे आकर स्वीकृति देना, मजबूत कदम साबित होता है। गांव की मानसिकता, महिला सशक्तिकरण, विकास की दौड़, देश की योजना में सहयोगी बनना आदि कई मुद्दे सामने आते हैं।
' प्रीत रो परचो ' कहानी में आज की प्रमुख समस्या पेपर लीक को बड़े सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया है। इसमें एक नवयुवक और नवयुवती के बीच पनपने वाले प्यार के कोमल तंतुओं को बहुत कोमलता, शालीनता से उजागर किया है।सारी यातनाएं झेलने के पश्चात उनका प्रेम विवाह नवयुवती के साहसिक कदम से आकार लेता है। संग्रह की सभी कहानियों को डा. सारस्वत ने राजस्थानी जन जीवन की गरिमा को बनाए रखते हुए पूरी संजीदगी, सावधानी से प्रस्तुत किया है।आज के कथानकों को बहुत खूबसूरती से आगे बढा कर मन को छूनेवाली कहानियां लिखी हैं।ये सभी कहानियां अपने आस-पास की लगती हैं।पात्रों का शानदार चयन, सटीक संवाद, सुंदर शैली और भाषा का लालित्य मन मोह लेता है। हनुमान गढ, श्री गंगानगर जिलों की भाषा का प्रभाव , कहावतों-मुहावरों के नगीने राजस्थानी भाषा के एक अनूठे तेवर को प्रस्तुत करते हैं। उस क्षेत्र की माटी की खुशबू सर्वत्र फैली हुई हे।
राजस्थान के सभी क्षेत्रों के पाठक इन कहानियों की भाषायी सरलता, शब्दों के चयन के कारण इनके मर्म तक आसानी से पहुंच सकते हैं। किसी भी कृति की पठनीयता उसे पाठकों के आकर्षण का केन्द्र बिंदु बनाती है। यह कथा संग्रह एक बार पढ़ना प्रारंभ करने पर पूरा पढे बिना हाथ से छूट नहीं सकेगी।
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