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Wednesday 8 February 2023

जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है !

(हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर के बहाने)


कुदरत ने दुनिया की हर शह के प्रारंभ और अंत का वक्त मुकर्रर कर रखा है. इसी कड़ी में राजकीय पशु चिकित्सालय, सूरतगढ़ में पिछले 14 वर्षों से निरंतर चल रहे 'हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर' के समापन का वक्त भी आ गया है. पशुपालन विभाग की इस जमीन पर अब न्यायालय परिसर का निर्माण होगा, जिसके लिए भू अंतरण की कार्यवाही पूरी हो चुकी है. इसी परिसर में संचालित मत्स्य विभाग और आयुर्वेदिक चिकित्सालय पहले ही अंतरित किये जा चुके हैं. अंतिम रूप से इस गोवंश शिविर को जाना है. यहां के पशुओं को दूसरी गौशाला में भेजे जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. नई कोंपलों के लिए पुराने पीले पत्तों का झरना जरूरी है, यही नियति है, जिसका स्वागत होना चाहिए. विदाई वक्त आज मन भारी है. आपसे इस शिविर के आरम्भ और यहां संचालित हुई गतिविधियों को साझा करता हूं. 



नवंबर 2008 का समय रहा होगा जब राजकीय पशु चिकित्सालय में 'हाईलाइन निराश्रित गोवंश शिविर' प्रारंभ हुआ था. उस दिन सर्द कोहरे के मौसम में, रात्रि साढे़ ग्यारह के करीब सिटी पुलिस स्टेशन और गुरुद्वारे के बीच लगभग 200-250 गौवंश, जिनमें ज्यादातर कमजोर गोधे और छोटे बछड़े थे, जाने कौन लोग छोड़ गए थे. भारी धुंध में सड़क पर जाम लगा था, तत्कालीन एसडीएम राहुल गुप्ता, जो ताजा-ताजा आईएएस बने थे, मैंने.उन्हें फोन कर मौके पर बुलवाया. किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाजा अस्थाई व्यवस्था के लिए एक बार इन निराश्रित पशुओं को हमने प्रशासन और पुलिस के सहयोग से राजकीय पशु चिकित्सालय की टूटी-फूटी बिल्डिंग में बने दो बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया. चुनावी मौसम था, लिहाजा सुबह चारे-पानी की व्यवस्था में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. 



हाईलाइन की पूरी टीम ने प्रशासन के सहयोग से इस शिविर को चलाने का जिम्मा उठाया. जब किसी पुनीत कार्य की शुरुआत होती है तो हाथ स्वत: ही जुड़ते चले जाते हैं. दैनिक हाईलाइन ने इस गोवंश शिविर में सहयोग की अपील प्रकाशित करनी प्रारम्भ की तो कारवां बनता गया. शहर के प्रबुद्ध लोगों ने अपने स्वजनों के जन्मदिन, पुण्यतिथि और मांगलिक अवसरों पर सहयोग की निरंतरता बनाए रखी, जिसके चलते निराश्रित पशुओं के लिए बेहतर व्यवस्था बन पाई. बीकानेर रोड पर गुरुद्वारे के सामने लगे शेड के नीचे प्रतिवर्ष सर्दी के मौसम में इन बेजुबान पशुओं के लिए गरमा-गरम दलिये की सेवा भी जारी रहती थी जिसमें सभी प्रबुद्ध जनों का सहयोग मिलता था. यहां तक कि जैतसर विजयनगर, अनूपगढ़ और घड़साना के पाठकों का सहयोग भी इस शिविर को मिलता रहा. इसी शिविर से हमने सूरतगढ़ में पर्यावरण संरक्षण के लिए 'रूंख भायला' अभियान की शुरुआत की थी, जो आज वृक्ष मित्रों के प्रयासों में दूर-दूर तक जा पहुंचा है।


कोरोनाकाल में इस शिविर को भी संकट का सामना करना पड़ा, लेकिन ईश्वर की कृपा से पशुओं के चारे पानी की व्यवस्था में कमी नहीं आई. इसीलिए लगता है कि शिविर में सहयोग करने वाले सभी जागरूक लोगों के लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है.



यदि कुछ चेहरों का जिक्र न किया जाए तो बात अधूरी होगी. इस शिविर के संचालन में सबसे महती भूमिका जिस व्यक्ति की रही वह है आंचल प्रन्यास की अध्यक्ष श्रीमती आशा शर्मा, जिन्होंने अपनी व्यस्तता के बावजूद न सिर्फ नियमित सेवा दी बल्कि बेहतर व्यवस्था बनाने के हर संभव प्रयास किए. सर्द मौसम में प्रातः 6 बजे उठकर पशुओं के लिए दलिया तैयार करवाना
, हरे चारे की व्यवस्था करना, कोरोना संकट काल में प्रत्येक अमावस्या पर सहयोगियों के साथ चौक पर खड़े होकर आर्थिक सहयोग एकत्रित करना, बीमार पशुओं की देखरेख करना, पानी के टैंकरों की व्यवस्था करना आदि छोटे-मोटे बहुत से काम ऐसे हैं, जिनमें सेवा भाव के साथ निरंतरता बनी रहना अत्यंत कठिन है लेकिन आशा जी ने इस दायित्व को बखूबी निभाया. यही कारण है कि उन्हें इस सेवा के लिए हमेशा भरपूर सराहना मिली और प्रशासन द्वारा भी समय-समय पर सम्मानित किया जाता रहा है. इसी कड़ी में स्वर्गीय विजय शर्मा, स्वर्गीय पवन सोनी, श्री रमेश चंद्र माथुर, श्री विजय मुद्गल, आयुर्वेद चिकित्सालय के श्री गोविंद सिंह, डॉ. एम एस राठौड़, दिलीप स्वामी उर्फ बबलू व संचालन सेवा दल के जगदीश नायक, असगर अली और जुम्मे खान का उल्लेख भी जरूरी है जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दी. इस शिविर में पशु चिकित्सालय के स्टॉफ और सिटी पुलिस थाने का सहयोग भी निरंतर मिलता रहा है. हाल ही में ट्रांसफर हुए थानाधिकारी रामकुमार लेघा तो नित्य प्रति इस शिविर में सेवा देते रहे हैं. जाने कितने ऐसे चेहरे हैं जो मुझे याद नहीं, लेकिन उनकी निस्वार्थ सेवा के बिना यह सब संभव नहीं था. आज घड़ी उन सबका आभार इस बात के साथ कि-

देहों शिवा बर मोहे ईहे, 

शुभ करमन ते कबभुं न टरूं

न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं..

O Supreme Lord! May I never deviate from straight path. May I never fear enemies. Make me winner every time I enter the battlefield. 

-Guru Gobind Singh Ji


डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'




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