(स्वागत की फूल मालाओं के बहाने)
अनजाने होठों पे
क्यों पहचाने गीत हैं
कल तक जो बेगाने थे
जन्मों के मीत हैं
क्या होगा कौन से पल में
कोई जाने ना ....
लगभग 55 वर्ष पूर्व लिखा गया इंदीवर का यह गीत सूरतगढ़ की वर्तमान राजनीतिक पर सटीक बैठता है। पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा को पानी पी-पीकर कोसने वाले भाजपाई आज उनके स्वागत के लिए बेताब हुए जा रहे हैं। वैसे उन्हें खुशियां मनाने का हक भी है क्योंकि कालवा के बहाने उन्होंने कांग्रेस को पटखनी दी है, गंगाजल मील को आईना दिखाया है। लेकिन इस घटनाक्रम से जनता के समक्ष भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है। सच्चाई यह है कि अनुशासन, स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम का दंभ भरने वाली भाजपा राजनीतिक स्वार्थों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
बहुत दिन नहीं हुए जब यही ओम कालवा विधायक रामप्रताप कासनिया को पालिका की बैठकों में बोलने तक नहीं दिया करते थे, वरिष्ठ होने के बावजूद उन्हें साइड में एक कुर्सी पर बिठाया करते थे और बहसबाजी में तू-तड़ाक पर उतर आते थे। कासनिया तो अपने वक्तव्य में हमेशा कालवा पर दोषारोपण करते थे कि उसने पूरे शहर की ऐसी-तैसी कर दी है। लेकिन वक्त ऐसा बदला कि आज दोनों गलबहियां डालकर एक दूसरे की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। हकीकत दोनों जानते हैं कि उनके बीच उमड़ता प्रेम सिर्फ जरूरत का सौदा है, और कुछ नहीं। कासनिया जैसे चतुर राजनीतिज्ञ ओम कालवा पर कितना भरोसा करेंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना वे जरूर जानते होंगे कि जो व्यक्ति अपार मान सम्मान देने वाली पार्टी और स्टैंड करने वाले अपने राजनीतिक आकाओं का ही नहीं हो सका वह उनका कैसे हो सकता है !
दरअसल, कालवा हो या कासनिया, राजनीति की बिसात पर सब मोहरे हैं। कौन कब किसको मात देकर कहां जा मिले, कुछ नहीं कहा जा सकता। विश्वास और भरोसे जैसे शब्द सामाजिक जीवन में होते हैं राजनीति तो सर्वप्रथम इन शब्दों का गला घोंटती है। भरोसा टूटने के बाद साधारण आदमी तो आंख मिलाने की हिम्मत नहीं कर सकता जबकि राजनीति तो आंखों की शर्म और लिहाज पहले ही ताक पर रख चुकी होती है।
इस घटनाक्रम का लब्बोलुआब भी यही है कि सूरतगढ़ का भविष्य ताक पर रख दिया गया है। राज्य की कांग्रेस सरकार कैसे बर्दाश्त करेगी कि उनका एक प्यादा दगाबाजी करते हुए राजनीतिक प्रतिद्वंदी से जा मिले। गंगाजल मील, जिन्होंने कालवा को पाल-पोस कर खड़ा किया, चोट खा कर चुप थोड़े ही बैठने वाले हैं ! वे भी अपने दांव चलेंगे। पालिका के ईओ से तो कालवा की पहले ही ठनी हुई है, तिस पर ईओ ठहरा कांग्रेस सरकार का मुलाजिम ! सीवरेज घोटाले का जो मुकदमा अब तक सीआईडी सीबी में ठंडे बस्ते में था अब उस पर कार्यवाही होना भी तय है। 'आज तेरी, तो कल मेरी !' यही राजनीति है।
ऐसी परिस्थितियों में सवाल उठता है कि नगरपालिका में आए डेडलॉक का खामियाजा कौन भुगतेगा ! फुल वाली पार्टी ने आखिर किसे फूल बनाया ? कांग्रेस को, गंगाजल मील को, ओमप्रकाश कालवा को या फिर खुद अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को ! इतना तय है कि दोनों सवालों के बीच सबसे बड़ा फूल जनता ही बनी है। एक पावरलेस चेयरमैन को पाकर भाजपा खुश भले ही हो ले लेकिन शहर की जनता को देने के लिए उनके पास सिवाय थोथे वायदों के कुछ नहीं है।
डॉ. हरिमोहन सारस्वत
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