Search This Blog

चार आखर


बडेरां री बात मान
मिनखा जूण संवारण सारू
किसनियै भण्या 
फगत चार आखर.
‘क’ सूं कबूतर
‘ख’ सूं खरगोष
‘ग’ सूं गधो 
 ‘ङ’ खाली.

चार आखरां री जोत
किसनियै रै अन्तस घट 
इण ढाळै उतरी
कै ‘ज्ञ’ ज्ञानी पढयां बिना ई 
बो हुग्यो ब्रहमज्ञानी !

पण आज घड़ी 
बो ब्रहमज्ञानी  
आफळां सूं डरतो
‘कबूतर’ दांई आंख्यां मिंचै. 
जी लुकोंवतो फिरै 
‘खरगोसियै’ री दांई. 
‘गधियै’ ज्यंू ढोवै 
जिया जूण नै आखै दिन.
 पण तोई सिन्झ्या ढळै
बिंरो पेट
‘ङ’ ज्यूं खाली हुवै. 

छेवट किसी भणाई
करी म्हारै किसनियै ?





No comments:

Post a Comment

आलेख पर आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है. यदि आलेख पसंद आया हो तो शेयर अवश्य करें ताकि और बेहतर प्रयास किए जा सकेंं.

देश, काल और समाज की चिंताओं का नवबोध कराती कहानियां

  (पुस्तक समीक्षा) राजस्थानी भाषा के आधुनिक कथाकारों में मदन गोपाल लढ़ा एक भरोसे का नाम है। मानवीय संबंधों में पसरी संवेदनाओं को लेकर वे अपने...

Popular Posts