Search This Blog

Monday, 18 January 2021

तुम से तुम तक पहुंचने की तड़फ

 
(एकालाप विधा में रजनी दीप की कृति 'खुसरो बाज़ी प्रेम की...खेलें मैं और तुम' के बहाने...)


हमारे लोक साहित्य में प्रेम का ताना-बाना बड़े सरल शब्दों में बुना गया है. बुल्ले शाह ने तो यहां तक कहा है कि 'बुल्लया दिल नूं की समझावणा, ऐत्थों पुटना ते ओत्थे लावणा'. 'प्रेम गली अति सांकरी...' या फिर 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई...' के भाव भी उसी रीत का निर्वहन करते जान पड़ते हैं जो युगों-युगों से मानवीय संवेदनाओं में अभिव्यक्त होती रही है. प्रेम वह अनुभूति है जिसे महसूस करने के लिए आपको प्रेम में होना पड़ता है. आप नदी में उतरे बिना तैरना नहीं सीख सकते उसी प्रकार प्रेम में पड़े बिना आप उसे परिभाषित नहीं कर सकते.

 दरअसल, प्रेम का विस्तार अनंत और निराकार है जिसे महज स्त्री-पुरुष या भौतिक जगत के दूसरे संबंधों में बांधा ही नहीं जा सकता. समंदर की तरफ भागती नदी हो या थार पर मंडराती बदली, दोनों में जो कशिश है, खिंचाव है वह प्रेम का ही एक अनूठा रूप है. ओशो ने इस विषय की बड़ी सूक्ष्मता से विवेचना की है जहां प्रेम अंततः ध्यान और अध्यात्म का पथगामी बन जाता है.

प्रेम में पाने और खोने की दुनियावी बातें अनेक बार कही चुकी है लेकिन प्रेम में होने को लेकर अभी बहुत कुछ कहा जाना शेष है. रजनी दीप की एकालाप विधा में रची गई कृति 'खुसरो बाज़ी प्रेम की...खेलें मैं और तुम' इसी शेष की भरपाई का प्रयास करती है. प्रेम में होने और उसे ईमानदारी के साथ शब्दों में अभिव्यक्त करने को रजनी दीप का सिर्फ लेखकीय कौशल कहना भर ठीक नहीं होगा. धर्मवीर भारती के शब्दों में कहूं तो उनका यह रचाव पीड़ा के क्षणों में प्रार्थना गुनगुनाने जैसा है. इस कृति का समर्पण भी प्रेम के नाम है जिसने अपने होने को सार्थक किया है. पुस्तक में अपने प्रियतम के इर्द-गिर्द बुने गए एकल संवाद के ताने-बाने इतने सरल और ग्राह्य हैं कि पाठक उनकी संवेदना के साथ बहता चला जाता है. मनोभावों को स्थूल और सूक्ष्म के भेद बिना एक बिंदु के चहुंओर इस ढंग से बांध लेना कि सब कुछ बंधन मुक्त होकर अनावृत्त हो जाए और उसकी सुगंध देर तक आपको महकाती रहे, तो कहना चाहिए कि आप वाकई प्रेम में होने को बांच रहे हैं. 

एकालाप विधा साहित्य की अनूठी विधा है जिसमें आप खुद सवाल खड़े कर उनका उत्तर ढूंढते हैं. हर्ष और विषाद के क्षणों में आंतरिक अभिव्यक्ति जब खुद से संवाद स्थापित कर लेती है तो एकालाप का जन्म होता है. प्रेम जैसे गंभीर विषय पर होने वाले एकालाप को हर निश्छल मन महसूस तो करता है लेकिन उसे अभिव्यक्त नहीं कर पाता. रजनी ने अपनी लेखनी से उन्हें गद्य और कहीं कहीं पद्य का आकार देकर 'बकसुए' में बांधने का सराहनीय प्रयास किया है. इनकी बानगी देखिए-

- सूरज की महबूबा समय की बड़ी पाबंद है !

- मैं जैसे ही तुम्हें देखती हूं...पत्थर से जाने कब...पानी बन तेरी और बहने लगती हूं...

- कैसे पढ़ लेते हो तुम मेरा मन ? ...शायद इसलिए कि अब मेरा कुछ मेरा रहा ही नहीं ! ...यह मन भी अब तुम्हारा हो गया है तो यह तुम्हें सब बता देता होगा !

- मन अपने लिए उदास और परेशान होने के तरीके या कारण खोज ही लेता है और...अगर उसे कारण में मिले तो घड़ भी लेता है.

- जीवन में कभी-कभी ऐसे मौके भी आते हैं जब हम मन से इतना कमजोर महसूस करते हैं कि हमें एक ही बात की बार-बार कंफर्मेशन चाहिए होती है.

- जब एक दिन/ सूरज की हांडी में/ मैंने पकाई थी/ मीठी सेवइयां... और चुपचाप/ तुम्हारे सिरहाने रख, सांकल लगा/ आ गई थी वापिस...जुगनू से कभी हंसते /कभी बुझती/मिटा लेती थी/अपने भीतर के अंधेरे को...

- अपनेपन की हद में भेजी गई तुम्हारी एक बिंदी भी मेरे लिए सूरज बन जाती है...पर तुम्हारी बेरुखी में कहे गए ग्रंथ...मेरे कानों तक भी नहीं पहुंचते...

रजनी के रचाव को पढ़ते हुए पंजाबी विरसे का एक लोकगीत स्मृतियों में उभरता है जिसे पंजाब की सुर कोकिला सुरेंद्र कौर ने बड़ी शिद्दत के साथ गाया है-

हर वेल्ले चन्ना मेरा
तेरे वल्ल मुंह ऐं
बुलयां चे नां तेरा 
अखियां चे तूं ऐं
जदों हसदी, भुलेखा मैंनू पैंदा वे 
हासयां चे तू हसदा
एहना अखियां चे 
पांवां कींवे कजला वे
अखियां चे तू वसदा...

प्रियतम को आंखों का काजल बना कर सपने संजोना भले ही नई बात न हो लेकिन उसे अंतस में शीतल शब्दों की नदी के रूप में प्रवाहित करना रजनी दीप की संवेदना और सामर्थ्य को इंगित करता है. यहां काजल सिर्फ काजल भर नहीं रहता बल्कि शून्य में विलीन होने बाद भी उस तुम तक पहुंचने का माध्यम बन जाता है जिसे इस कृति में प्रियतम माना गया है. सही मायने में 'तुम' से 'तुम' तक पहुंचने की तड़फ ही इस एकालाप का सार है जो प्रेम में होने की सही परिभाषा है.

रजनी दीप की एकालाप विधा में रची गई 112 पृष्ठों की इस पुस्तक को बोधी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. पुस्तक का कवर और साज सज्जा भी अपने नाम के अनुरूप आकर्षक है. अपने अनूठे कथ्य और शिल्प के कारण इस कृति में पाठकीय संतुष्टि की भरपूर संभावनाएं विद्यमान है.

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
94140-90492

Saturday, 16 January 2021

सलाइयों वाले स्वेटरों की सुगंध


(80 के दशक में उत्तरी भारत के किसी गुमनाम कस्बे की छोटी सी गली में बिखरी यादों की खुशबू, जहां बड़े दिल वाले लोग रहा करते थे...)

' बब्बू गी मां, टोनी की स्वेटर मांय कित्ता घर घालूं ?'

'70 बहुत होंगे. खुल्ले-खुल्ले डालना.' बड़े सलीके और तेजी से सलाइयां चला रही सक्सेना आंटी ने अपना चश्मा ठीक करते हुए मां की ओर देखा.

दिसंबर के सर्द मौसम की दुपहरी में मोहल्ले की कुछ औरतें मूंज की दो चारपाइयों और सूत के पीढ़ों पर बैठी स्वेटर बुनते हुए बातों का आनंद ले रही थी. बतरस के आगे स्वर्ग के सातों सुख भी फीके जान पड़ते हैं. सूचना क्रांति के इस दौर में मनुष्य से यह बतरस सुख छिन सा गया है तभी तो वह बार-बार यादों के समंदर में गोता लगाने को आतुर होता है. 

'कम तो कोनी रैसी ?' मां ने पूछा.

'ओहदे वास्ते बोत है, किड्डाक तां हैगा !' गोडों में ऊन की लच्छी का घेरा डाले गोले बना रही गेजो मासी बोली. 

...और मां ने सहेलियों के विश्वास से आश्वस्त होकर सलाइयों में अपने बेटे के लिए 'घर' डालने शुरू कर दिए.

घर चाहे स्वेटर के हों या ईंट-पत्थर के, बड़ी शिद्दत के साथ बनाए जाते हैं. सलाइयों में डाला गया घर जहां स्वेटर का आधार बनता है तो सीमेंट गारे से बनने वाला घर परिवार का. इस प्रक्रिया में यदि जरा भी चूक रह जाए तो स्वेटर और परिवार दोनों असहज लगने लगते हैं. शायद इसी वजह से दूसरी औरतों की तरह मां और दीदी भी सलाइयों में घर डालने वक्त बड़ा एहतियात बरतते. हाथों से स्वेटर बुने जाने के दौर में अक्सर अनुभवी महिलाओं से सलाइयों में घर डलवाए जाते ताकि आधार मजबूत और सुंदर बन सके. 

पगडंडियों के उस जमाने में सर्दियां शुरू होते ही बाजारों में ऊन की लच्छियों और गोलों से दुकानें सज जाती. इतनी सारी ऊन और इतने सुंदर रंग कि मत पूछो ! महिलाएं अपनी पसंद के रंग और क्वालिटी की ऊन खरीदने के बाद उसे पूरे मोहल्ले में दिखाती. लच्छी वाली ऊन गोलों से सस्ती होती. यह ऊन ओंस या ग्राम में तोल कर बेची जाती थी जिसका औसत भाव 15 से ₹20 प्रति 100 ग्राम तक होता था. लुधियाना उन दिनों भी देश में ऊन का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था. इस ऊन के साथ-साथ सलाइयां, जिन पर स्वेटर के बहाने सपने बुने जाते थे, भी महत्वपूर्ण होती थी. एल्यूमीनियम की बनी विभिन्न मोटाई की सलाइयां अपने नंबर से बिका करती थी. पोनी कंपनी अपनी सलाइयों के लिए प्रसिद्ध थी.

सलाइयों में ऊन से डाले गए फंदानुमा दो घरों के जोड़े को 'जोटा' कहते हैं. सलाइयों पर डले इन्हीं घरों से स्वेटर बुनने की शुरुआत होती है. परंपरागत स्वेटर के शुरू में 3 से 4 इंच का बॉर्डर बुना जाता था उसके बाद डिजाइन शुरू होता था. स्वेटर के अगले हिस्से में डिजाइन होता था और पिछले भाग में अक्सर साधारण बुनाई की जाती थी. अगर जर्सी बुनी जा रही हो तो उसके बाजू अलग से बुने जाते थे. इन बुने गए हिस्सों को ऊन से ही सिला जाता था. 

स्वेटरों के डिजाइन में प्रतिस्पर्धा का मत पूछिए. बेहतर डिजाइन की उम्मीद में जाने कस्बे की कितनी गलियां और मोहल्ले लांघती हुई महिलाएं अनजान घरों तक पहुंच जाती. हमेशा की तरह रचनात्मक सोच रखने वाली औरतें स्वेटरों के नए-नए डिजाइन बुनती. मजे की बात देखिए कि ये गुणी महिलाएं बिना किसी पेटेंट या नाज नखरे के अपना डिजाइन आगंतुक महिला को सिखा देती. उस दौर में उनके लिए इतनी खुशी ही पर्याप्त थी कि कोई उनके पास सीखने के लिए आया है. पंजाबी परिवारों की महिलाएं नए डिजाइन तैयार करने में निपुण मानी जाती थी. उन दिनों जालीदार पत्तियां, बेल-बूटे, घुमावदार फंदे, दो रंगी पट्टियां, मोटी मक्खी वाले डिजाइन बेहद चलन में थे. मुझे याद है नए डिजाइन की स्वेटर पहने गली-मोहल्ले से गुजरने वाले स्कूली बच्चों को अक्सर महिलाएं रोक लेती और उनका डिजाइन समझने की कोशिश करती. मेरे जैसे बड़ाईखोर बच्चे गर्व से उन्हें बताते की यह स्वेटर मेरी मां या फिर दीदी ने बुना है. बच्चे ही नहीं बल्कि पापा और चाचा भी नया स्वेटर पहनने के बाद इतराए घूमते थे. मफलर पहनने के बाद तो वे खुद को अभिनेता राजकुमार से कम कहां समझते थे. हाथ से बुना कॉलर वाला कार्डिगन पहनने वाली लड़कियों के अंदाज़ तो क्या ही कहने !

लेकिन अफसोस, आज के मशीनी दौर में सलाइयां, ऊन और स्वेटर बुनने वाली महिलाएं जाने कहां गायब हो गई हैं. हाथ के बुने स्वेटर पहनने वाले लोग भी कहां रहे ! अब तो स्वेटर की ऊन, डिजाइन और क्वालिटी सहित सब कुछ मशीन और तकनीक पर आधारित हो चुका है जिसमें मनमाफिक रंग और आकर्षक डिजाइन तो उपलब्ध हो सकते हैं लेकिन सलाई के साथ शिद्दत से बुने गए स्वेटरों सी सुगंध उनमें चाह कर भी आ नहीं सकती. शायद इसीलिए उस खुशबू और गर्माहट को तलाशता हुआ मन अक्सर अतीत के द्वार खटखटाता है. वाकई स्मृतियों की सीपियां जाने कितना कुछ सहेज कर रखती है.

- डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Friday, 1 January 2021

जनमत सर्वेक्षण में कासनिया का कार्यकाल रहा बेहद खराब

 सत्ता के विरोध और कोराना ने गिराई कासनिया की छवि


काॅटनसिटी लाइव द्वारा सूरतगढ़ के विधायक रामप्रताप कासनिया के दो वर्षीय कार्यकाल का आॅनलाइन आॅपिनियन पोल करवाया गया था जिसका परिणाम आ चुका है. इस पोल में जो मत प्राप्त हुए हैं उनका पाई चार्ट पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है. 

 

 कासनिया के दो वर्षीय कार्यकाल का आॅनलाइन आॅपिनियन पोल


पोल के अनुसार 18.1 प्रतिशत लोगों ने उनके कार्यकाल को बेहतर बताया है और 13.1 प्रतिशत औसत बता रहे हैं. इस पोल में 47 प्रतिशत से अधिक लोगों ने बेहद खराब का विकल्प चुना है. हालांकि जनमत के अनुसार विधायक का कार्यकाल ठीक नहीं रहा है लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि वे सरकार के विपक्षी दल भाजपा के विधायक हैं और उनके कार्यकाल का एक साल कोरोना ने हड़प लिया है. जनता अपनी राय व्यक्त करती है तो उससे सबक लेने की जरूरत होती है. कासनिया के पास अभी भी पर्याप्त समय है जिसमें वे जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतर सकते हैं. शहरी निकाय में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्हें मुखरता से बोलना होगा और इलाके की जनता के बीच पहुंचकर उनके सुख-दुःख मे साथ खड़ा होना ही होगा. आज भी शहरी क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अतिक्रमण की समस्याएं जस की तस है. देहात में प्रदेश सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है. राज्य सरकार के बजट में भी इलाके के लिए कोई विशेष आवंटन नजर नहीं आता. विद्युत बिलों के बढ़ते बोझ तले दबा आमजन सत्ता और विपक्ष दोनों को कोस रहा है. 

जनमत की राय है कि सिर्फ विपक्षी दल का विधायक होने की कह देने से काम नहीं चलने वाला. विधायक तो विधायक होता है.


चेयरमैन कालवा के कार्यकाल पर जनमत सर्वेक्षण

 पालिका चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा 

अपने एक वर्ष के कार्यकाल को बेमिसाल बता रहे हैं !
 

आप क्या कहते हैं ?

कैसा है चेयरमैन का कार्यकाल, इस पर आज ही वोट करें.
इस पोस्ट के अंत में पोल बाॅक्स है, अपनी पसंद का विकल्प चुनें.
पोल 15 जनवरी 2021 की मध्यरात्रि तक खुला है.


ओमप्रकाश कालवा-एक परिचय


मास्टर ओमप्रकाश कालवा को कांग्रेस का एक निष्ठावान कार्यकर्ता माना जाता है. इसी कर्तव्यनिष्ठा का परिणाम है कि उन्हें 2019 के पालिका चुनावों में विजयी रही कांग्रेस पार्टी की ओर से पालिकाध्यक्ष पद हेतु चुना गया. पूर्व में पुरानी आबादी स्कूल में शिक्षक के पद पर सेवाएं दे चुके कालवा अब व्यापारी बन चुके हैं और दो-दो पेट्रोल पम्पों का संचालन कर रहे हैं. 2009 में भी वे पालिकाध्यक्ष पद के मजबूत दावेदार थे और पार्टी द्वारा उनकी टिकट भी लगभग फाइनल कर दी गई थी. लेकिन ऐन वक्त पर उन्हें अगूंठा दिखाकर टिकट किसी दूसरे को थमा दी गई. इस अपमान के बावजूद वे पार्टी के साथ बने रहे जिसका अंततोगत्वा उन्हें फायदा ही मिला.

पालिकाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने ‘केटल फ्री सिटी’ बनाने की घोषणा की और शहरी विकास में गति लाने के लिए भरसक प्रयास करने की वचनबद्धता दोहराई. कोरोना संकटकाल में वे अपनी प्रतिबद्धताएं कितनी पूरी कर पाए हैं, यह जनता से छिपा हुआ नहीं है. समस्याएं जस की तस होने और बोर्ड में उठा-पटक की भरपूर संभावनाओं के बावजूद कालवा के पास पर्याप्त समय है जिसमें वे चाहें तो विकासदूत के रूप में अपनी अलग पहचान बना सकते हैं.

 

ओपिनियन पोल यानी जनता की राय
 

चेयरमैन के रूप में ओमप्रकाश कालवा का एक वर्षीय कार्यकाल कैसा रहा है, इसे लेकर ‘काॅटनसिटीलाइव’ एक ओपिनियन पाॅल आयोजित कर रहा है. आॅनलाइन आयोजित हो रहे इस पोल में मतदाता को उनके कार्यकाल के लिए ‘बेहतर, औसत, खराब और बेहद खराब’ विकल्प दिये गए हैं जिनमें से एक को चुनकर वोट करना है.  इस सर्वेक्षण का परिणाम मकर सक्रंाति से अगले दिन, 15 जनवरी 2021 घोषित किया जाएगा.

 
कैसे भाग लें ?

इस सर्वेक्षण में कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता है और वोट कर सकता है. ओपिनियन पोल में दर्शाए गए चार विकल्पों में से आप अपनी पसंद का विकल्प चुनकर उसे टिक करें और वोट का बटन दबाएं. वोट करने के बाद आपको एक ओटेा जेनेरेटेड मैसेज दिखाई देगा जिसका अर्थ है आपका वोट हो गया है. 15 जनवरी 2021 की मध्यरात्रि तक  खुले इस सर्वेक्षण में एक व्यक्ति एक ही बार वोट कर सकता है. एक से अधिक बार वोट करने के प्रयास पर आपका वोट निरस्त हो जाएगा और काउंटिग में शामिल नहीं होगा.

 
इस पोल बाॅक्स पर अपना वोट करें.


नगरपालिका सूरतगढ़ के चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा के एक वर्ष का कार्यकाल कैसा रहा है ?
बेहतर
औसत
खराब
बेहद खराब
Disclaimer

यह सर्वेक्षण मीडिया की जागरूकता और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर आधारित है जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है. ‘काॅटनसिटी लाइव’ की सर्वेक्षण नीति किसी की व्यक्ति की सामाजिक, राजनीतिक और मानसिक क्षति कारित करने अथवा गरिमा घटाने जैसे कुत्सित प्रयासों का हमेशा विरोध करती है. जनता में लोकतां़ित्रक जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह सर्वेक्षण किया जा रहा है जो पूरी तरह से सूचना तकनीक पर आधारित है जिसमें किसी प्रकार की कांट-छांट नहीं की गई है. जनमत में प्राप्त परिणामों के सम्बन्ध में ‘काॅटनसिटी लाइव’ का कोई दायित्व नहीं है. इस सर्वेक्षण के नियमों-कायदों में परिवर्तन करने का विशेषाधिकार ‘काॅटनसिटी लाइव’ के पास सुरक्षित है. 
 

Thursday, 31 December 2020

नववर्ष की मंगलकामनाएं

 


नववर्ष 2021 'कॉटनसिटी लाइव' के सभी पाठकों के जीवन में अपार खुशियां लाए और आप सफलता के नये सोपान चढ़ें. देश और दुनिया में शांति-सद्भाव कायम रहे, इसी कामना के साथ आपको 'कॉटनसिटी लाइव' की तरफ से ढेरों शुभकामनाएं.


नव वर्ष में हम प्रयास करेंगे कि और बेहतर विश्लेषणात्मक समाचार, आलेख व रचनात्मक सामग्री आपके लिए प्रस्तुत करें. आपका सहयोग और मंगलकामनाएं बनाए रखिए.


डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
अध्यक्ष, प्रेस क्लब, सूरतगढ़
www.cottoncitylive.com

Wednesday, 23 December 2020

विधायक कासिनया के कार्यकाल पर जनमत सर्वेक्षण

 
कैसा है आपके विधायक का कार्यकाल, आज ही वोट करें.

इस पोस्ट के अंत में पोल बाॅक्स है, अपनी पसंद का विकल्प चुनें.

  पोल 31 दिसम्बर 2020 की मध्यरात्रि तक खुला है.

 

 विधायक रामप्रताप कासनिया-एक परिचय

 

सूरतगढ़ के विधायक रामप्रताप कासनिया अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर चुके हैं. राजस्थान की भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके कासनिया कुशल राजनीतिज्ञ माने जाते है. ठेठ देहाती अंदाज और अपनी स्पष्टवादिता के चलते क्षेत्र की राजनीति में उनकी विशिष्ट पहचान है. पूर्व में वे पीलीबंगां विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे लेकिन 2008 में परिसीमन के बाद उन्होंने सूरतगढ़ का रूख किया. 2008 में उन्होंने भाजपा की टिकट पर सूरतगढ़ से भाग्य आजमाया लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा.  2013 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. 2018 में वे न सिर्फ टिकट पाने में कामयाब हुए बल्कि भाजपा के विरूद्ध बने असंतोष के माहौल के बावजूद जीतने में कामयाब हुए. हालांकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और कासनिया को  विपक्ष में बैठना पड़ा लेकिन विधायक तो विधायक होता है.

 

ओपिनियन पोल यानी जनता की राय

 
एक विधायक के रूप में रामप्रताप कासनिया का वर्तमान कार्यकाल कैसा रहा है, इसे लेकर ‘काॅटनसिटीलाइव’ एक ओपिनियन पाॅल आयोजित कर रहा है. आॅनलाइन आयोजित हो रहे इस पोल में मतदाता को उनके कार्यकाल के लिए ‘बेहतर, औसत, खराब और बेहद खराब’ विकल्प दिये गए हैं जिनमें से एक को चुनकर वोट करना है.  इस सर्वेक्षण का परिणाम नववर्ष के दिन घोषित किया जाएगा.

 

कैसे भाग लें ?


इस सर्वेक्षण में कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता है और वोट कर सकता है. ओपिनियन पोल में दर्शाए गए चार विकल्पों में से आप अपनी पसंद का विकल्प चुनकर उसे टिक करें और वोट का बटन दबाएं. वोट करने के बाद आपको एक ओटेा जेनेरेटेड मैसेज दिखाई देगा जिसका अर्थ है आपका वोट हो गया है. 31 दिसम्बर 2020 की मध्यरात्रि तक  खुले इस सर्वेक्षण में एक व्यक्ति एक ही बार वोट कर सकता है. एक से अधिक बार वोट करने के प्रयास पर आपका वोट निरस्त हो जाएगा और काउंटिग में शामिल नहीं होगा.
 

इस पोल बाॅक्स पर अपना वोट करें.

 

सूरतगढ़ के विधायक रामप्रताप कासनिया का दो वर्ष का कार्यकाल कैसा रहा है ?
बेहतर
औसत
खराब
बेहद खराब
Disclaimer
यह सर्वेक्षण मीडिया की जागरूकता और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर आधारित है जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है. ‘काॅटनसिटी लाइव’ की सर्वेक्षण नीति किसी की व्यक्ति की सामाजिक, राजनीतिक और मानसिक क्षति कारित करने अथवा गरिमा घटाने जैसे कुत्सित प्रयासों का हमेशा विरोध करती है. जनता में लोकतां़ित्रक जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह सर्वेक्षण किया जा रहा है जो पूरी तरह से सूचना तकनीक पर आधारित है जिसमें किसी प्रकार की कांट-छांट नहीं की गई है. जनमत में प्राप्त परिणामों के सम्बन्ध में ‘काॅटनसिटी लाइव’ का कोई दायित्व नहीं है. इस सर्वेक्षण के नियमों-कायदों में परिवर्तन करने का विशेषाधिकार ‘काॅटनसिटी लाइव’ के पास सुरक्षित है. 
 
 
 

Sunday, 20 December 2020

सिटी हंड्रेड ने हाट बाजार में किया श्रमदान

 


- शराबियों का अड्डे बने हाट बाजार में चला स्वच्छता अभियान

- वार्ड विकास कमेटी के प्रयासों से उत्साहित हैं वार्डवासी


- सिटी हंड्रेड आयोजित करेगी देशभक्ति गीतों का कार्यक्रम


सिटी हंड्रेड वार्ड विकास समिति ने रविवार को वार्ड 42 में स्थित हाट बाजार में श्रमदान किया. संगठन के सदस्यों द्वारा हाट बाजार में उगी हुई कंटीली झाड़ियों को काटा गया, टूटी हुई दीवारों को ठीक किया गया और परिसर में एकत्रित कचरे, शराब की खाली बोतलें व कूड़े करकट को हटाया गया. सिटी हंड्रेड के जागरूकता अभियान के इस काम में वार्डवासियों का भी भरपूर सहयोग रहा. 

वार्ड के बीच में स्थित यह हाट बाजार बरसों पहले केंद्र सरकार की विकास योजना के अंतर्गत बनाया गया था जो किसी काम न आ सका. देखरेख के अभाव में यह परिसर पूरी तरह उपेक्षित पड़ा था. यहां से मिले ढेरों शराब के पव्वे इस बात की गवाही देते हैं कि यह परिसर शराबियों और असामाजिक तत्वों का अड्डा बना हुआ था. टीम सिटी हंड्रेड द्वारा 'हमारा वार्ड, हमारे मुद्दे' के तहत इस परिसर में स्वच्छता अभियान चलाए जाने से वार्ड के लोग उत्साहित हैं. सिटी हंड्रेड वार्ड विकास समिति की आगामी योजना के तहत इस परिसर में पौधारोपण किया जाएगा और इसे एक सार्वजनिक पार्क के रूप में विकसित किया जाएगा.

स्वच्छता अभियान के बाद हॉट बाजार में ही सिटी हंड्रेड की बैठक संपन्न हुई. बैठक में नए सदस्यों का परिचय करवाया गया और आगामी रविवार की बैठक वार्ड 42 के दूसरे हिस्से सैनी मोहल्ले में करना तय किया गया. गणतंत्र दिवस पर हाट बाजार में देशभक्ति गीतों का कार्यक्रम आयोजित कराने का प्रस्ताव भी पारित किया गया. 

गौरतलब है कि 'सिटी-100' संगठन द्वारा शहर के स्थाई विकास और प्रशासनिक सुधार के दृष्टिगत आमजन को जागरूक करने की मुहिम चलाई गई है. प्रत्येक व्यक्ति, जो सूरतगढ़ शहर में स्थायी विकास और प्रशासनिक व राजनीतिक व्यवस्था में सुधार चाहता है, वह बिना किसी जाति धर्म लिंग अथवा आर्थिक भेदभाव के संगठन से जुड़ सकता है. यह संगठन सभी राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर सिर्फ शहरी विकास के उद्देश्य से गठित किया गया है.




Friday, 18 December 2020

कलह और कोरोना के बीच कांग्रेस सरकार के 2 साल पूरे

 

- उतरने लगा है गहलोत का जादू

 

- बिजली बिलों का बोझ और बेरोजगारी की मार

 

- प्रदेश की राजनीति में नई करवट के आसार


प्रदेश में कांग्रेस सरकार को दो साल पूरे हो चुके हैं. इस अवसर पर 18 दिसंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दर्जनभर परियोजनाओं का शिलान्यास/लोकार्पण करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनवाई हैं. एक ऐसे वक्त में, जब प्रदेश की राजनीति करवट बदलने के आसार दिखा रही हो तब यथार्थ के धरातल पर आंतरिक कलह और कोरोना के बीच कांग्रेस सरकार के कार्यकाल की पड़ताल करना जरूरी है.

नहीं हो सका अनुभव और युवा जोश का संगम


2018 में जब मोदी लहर चरम पर थी, उस वक्त राजस्थान की राजनीति में प्रदेश भाजपा की आंतरिक गुटबाजी के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जनाक्रोश का अच्छा खासा वातावरण तैयार हो गया था. इसी का परिणाम था कि दिसंबर 2018 में सम्पन्न हुए 15वीं विधानसभा के मुद्दाविहीन चुनावों में कांग्रेस ने सामान्य बहुमत से बाजी मार ली. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत के नेतृत्व में पांच साल बाद फिर कांग्रेस की सरकार बनी जिसमें युवा नेता पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.

उम्मीद की जा रही थी कि गहलोत के अनुभव और पायलट के युवा जोश का यह संगम प्रदेश के विकास में नए आयाम स्थापित करेगा लेकिन नतीजे ठीक इसके उलट हुए. सत्ता में स्थापित होने के बावजूद मई 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई. इन चुनावों में गहलोत ने पुत्र मोह में फंस कर वैभव को जोधपुर से टिकट दिलाई जहां हुई हार से उनकी और पार्टी दोनों की फजीहत हुई. गहलोत यहीं नहीं रुके बल्कि पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के लिए उसे आरसीए का अध्यक्ष भी बना दिया गया. इसका खामियाजा गाहे-बगाहे उन्हें भुगतना ही होगा.

उपलब्धियों की बात करें तो बीते दो वर्ष सरकार के लिए उथल-पुथल भरे रहे हैं. कोरोना संकट और आंतरिक कलह से जूझ रही गहलोत सरकार लगभग दो महीनों तक तो खुद को बचाने की जुगत में लगी रही. पायलट की बगावत के चलते मुख्यमंत्री अपने गुट के विधायकों की बाड़ाबंदी किए पांचसितारा होटलों में बैठे रहे. आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंसी खुद सरकार का भविष्य अधर झूल में हो गया तो जनता की सुध लेता ही कौन ! जैसे तैसे इस सियासी ड्रामे का अंत हुआ और एक बार फिर गहलोत कुर्सी बचाने में कामयाब हुए. लेकिन इतना तय है कि प्रदेश राजनीति से गहलोत का जादू उतरने लगा है. इसका परिणाम यह है कि निकट भविष्य में यहां राजनीतिक करवट बदलने के आसार दिख रहे हैं

कोरोना और आचार संहिता से प्रभावित हुआ कामकाज


यह भी सच है कि इन्हीं 2 वर्षों के कार्यकाल में प्रदेश में पंचायती राज और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए आठ माह की आचार संहिता भी लगी रही जिससे सरकार को अपनी नाकामी छुपाने का एक और अवसर मिल गया. रही सही कसर कोरोना ने निकाल दी जिससे सरकार का कामकाज प्रभावित हुआ. संकट के इस दौर में केंद्र से मिलने वाली मदद में भी कमी आई जिसके चलते अनेक योजनाओं को सरकार चाहकर भी अमलीजामा नहीं पहना सकी है.

2 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर बोलते हुए गहलोत ने कहा कि भाजपाइयों ने धनबल और बाहुबल से उनकी सरकार को गिराने के बहुत से प्रयास किए हैं लेकिन विधायकों की एकजुटता और जनता के आशीर्वाद से हमारी सरकार पांच साल पूरे करेगी. उन्होंने कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की बात भी कही है. उनकी मानें तो सरकार दो साल में अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों में से आधे से ज्यादा वादे पूरे कर चुकी है. सरकार का दावा है कि उसने 501 वादों में से 252 पूरे कर दिए हैं जबकि 173 घोषणाओं पर काम जारी है. किसानों की लगभग 8000 करोड़ रूपये की ऋण माफी का वे बड़े गर्व से बखान करते हैं.

यथार्थ का धरातल


सरकार के दावों से इतर यथार्थ के धरातल पर प्रदेश की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और लचर कार्यशैली के चलते आज भी आम आदमी सरकार को कोसता नजर आता है. आए दिन उजागर हो रहे एसीबी के मामले इस बात की साख भरते हैं कि प्रदेश में भ्रष्टाचार किस कदर पांव जमाए हुए है. कोरोना संकट काल में सरकार द्वारा विद्युत बिलों में की गई 20% की बढ़ोतरी एक बड़ा मुद्दा है जिसने आम आदमी को बुरी तरह से प्रभावित किया है. वस्तुत: से यह बिजली कंपनियों की नाकामियों का बोझ है जो जनता पर डाल दिया गया है. सरकार का स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों से दोबारा टोल वसूली शुरू करने का निर्णय किसी भी ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता. प्रदेश का युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहा है सरकार ने अपने घोषणा पत्र में जिस बेरोजगारी भत्ते की बात की थी उसे मजाक बनाकर रख दिया गया है. सरकारी भर्तियों का आलम यह है कि आरपीएससी सालों से अटके हुए परिणाम तक जारी नहीं कर पा रही है. आरएएस 2018 का मामला ही ले लीजिए जिसके मुख्य परीक्षा परिणाम को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. मुख्यमंत्री गहलोत ने दावा किया है कि 25 अप्रैल को रीट की परीक्षा आयोजित की जाएगी लेकिन यह परीक्षा अभ्यर्थियों के जी का जंजाल बनी हुई है. सही मायनों में प्रदेश का युवा मानसिक तनाव और कुंठा में जी रहा है. सरकारी नौकरियों के अलावा उसके लिए अन्य विकल्प तलाशने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए हैं. कोरोना संकट के चलते प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था आज तक शुरू नहीं हो पाई है. इसके चलते लाखों शिक्षक और स्कूल परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.

नए कृषि कानूनों की खामियों को लेकर देशव्यापी किसान आंदोलन चल रहा है. प्रदेश सरकार चाहे तो किसानों के हितों की रक्षा के लिए इसमें भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अरविंद केजरीवाल और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकारें पूरे जोश से किसानों के साथ खड़ी है लेकिन राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान से लेकर स्थानीय स्तर तक पार्टी के कारिंदे सिर्फ फोटो खिंचवाने और विज्ञप्तियां जारी करने तक ही सीमित हैं. कांग्रेस के विधायकों और जनप्रतिनिधियों में भी इस आंदोलन को लेकर कोई विशेष हलचल दिखाई नहीं देती.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि कागजी जमा खर्च के भरोसे कांग्रेस कब तक जिंदा रहेगी. पंचायती और स्थानीय निकाय चुनावों में सरकार की कार्यशैली के परिणाम आने शुरू हो गए हैं जहां भाजपा पुन: अपना जनाधार खड़ा करने लगी है. पायलट की बगावत के सुर भले ही चुप दिखाई देते हों लेकिन अंदर खाते वे सुलग रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

कुल मिलाकर कहना चाहिए कि 2 साल के कार्यकाल में प्रदेश सरकार भले ही खासा कुछ नहीं कर पाई हो लेकिन भविष्य उनके हाथ में है. यदि सरकार चाहे तो प्रदेश की तकदीर बदल सकती है अन्यथा समय आने पर जनता तो उन्हें बदल ही देगी !

माता सीता की अग्निपरीक्षा का सच -1 (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)

प्रोफेसर रजनीरमण झा हिंदी और संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान हैं। वैदिक साहित्य का विश्लेषण और उस पर सारगर्भित टीकाएं उनके अध्ययन -लेखन की...

Popular Posts