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Monday, 18 January 2021
तुम से तुम तक पहुंचने की तड़फ
Saturday, 16 January 2021
सलाइयों वाले स्वेटरों की सुगंध
(80 के दशक में उत्तरी भारत के किसी गुमनाम कस्बे की छोटी सी गली में बिखरी यादों की खुशबू, जहां बड़े दिल वाले लोग रहा करते थे...)
Friday, 1 January 2021
जनमत सर्वेक्षण में कासनिया का कार्यकाल रहा बेहद खराब
कासनिया के दो वर्षीय कार्यकाल का आॅनलाइन आॅपिनियन पोल
पोल के अनुसार 18.1 प्रतिशत लोगों ने उनके कार्यकाल को बेहतर बताया है और 13.1 प्रतिशत औसत बता रहे हैं. इस पोल में 47 प्रतिशत से अधिक लोगों ने बेहद खराब का विकल्प चुना है. हालांकि जनमत के अनुसार विधायक का कार्यकाल ठीक नहीं रहा है लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि वे सरकार के विपक्षी दल भाजपा के विधायक हैं और उनके कार्यकाल का एक साल कोरोना ने हड़प लिया है. जनता अपनी राय व्यक्त करती है तो उससे सबक लेने की जरूरत होती है. कासनिया के पास अभी भी पर्याप्त समय है जिसमें वे जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतर सकते हैं. शहरी निकाय में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्हें मुखरता से बोलना होगा और इलाके की जनता के बीच पहुंचकर उनके सुख-दुःख मे साथ खड़ा होना ही होगा. आज भी शहरी क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अतिक्रमण की समस्याएं जस की तस है. देहात में प्रदेश सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है. राज्य सरकार के बजट में भी इलाके के लिए कोई विशेष आवंटन नजर नहीं आता. विद्युत बिलों के बढ़ते बोझ तले दबा आमजन सत्ता और विपक्ष दोनों को कोस रहा है.
जनमत की राय है कि सिर्फ विपक्षी दल का विधायक होने की कह देने से काम नहीं चलने वाला. विधायक तो विधायक होता है.
चेयरमैन कालवा के कार्यकाल पर जनमत सर्वेक्षण
अपने एक वर्ष के कार्यकाल को बेमिसाल बता रहे हैं !
आप क्या कहते हैं ?
कैसा है चेयरमैन का कार्यकाल, इस पर आज ही वोट करें.
इस पोस्ट के अंत में पोल बाॅक्स है, अपनी पसंद का विकल्प चुनें.
पोल 15 जनवरी 2021 की मध्यरात्रि तक खुला है.
ओमप्रकाश कालवा-एक परिचय
पालिकाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने ‘केटल फ्री सिटी’ बनाने की घोषणा की और शहरी विकास में गति लाने के लिए भरसक प्रयास करने की वचनबद्धता दोहराई. कोरोना संकटकाल में वे अपनी प्रतिबद्धताएं कितनी पूरी कर पाए हैं, यह जनता से छिपा हुआ नहीं है. समस्याएं जस की तस होने और बोर्ड में उठा-पटक की भरपूर संभावनाओं के बावजूद कालवा के पास पर्याप्त समय है जिसमें वे चाहें तो विकासदूत के रूप में अपनी अलग पहचान बना सकते हैं.
ओपिनियन पोल यानी जनता की राय
चेयरमैन के रूप में ओमप्रकाश कालवा का एक वर्षीय कार्यकाल कैसा रहा है, इसे लेकर ‘काॅटनसिटीलाइव’ एक ओपिनियन पाॅल आयोजित कर रहा है. आॅनलाइन आयोजित हो रहे इस पोल में मतदाता को उनके कार्यकाल के लिए ‘बेहतर, औसत, खराब और बेहद खराब’ विकल्प दिये गए हैं जिनमें से एक को चुनकर वोट करना है. इस सर्वेक्षण का परिणाम मकर सक्रंाति से अगले दिन, 15 जनवरी 2021 घोषित किया जाएगा.
कैसे भाग लें ?
इस सर्वेक्षण में कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता है और वोट कर सकता है. ओपिनियन पोल में दर्शाए गए चार विकल्पों में से आप अपनी पसंद का विकल्प चुनकर उसे टिक करें और वोट का बटन दबाएं. वोट करने के बाद आपको एक ओटेा जेनेरेटेड मैसेज दिखाई देगा जिसका अर्थ है आपका वोट हो गया है. 15 जनवरी 2021 की मध्यरात्रि तक खुले इस सर्वेक्षण में एक व्यक्ति एक ही बार वोट कर सकता है. एक से अधिक बार वोट करने के प्रयास पर आपका वोट निरस्त हो जाएगा और काउंटिग में शामिल नहीं होगा.
इस पोल बाॅक्स पर अपना वोट करें.
यह सर्वेक्षण मीडिया की जागरूकता और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर आधारित है जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है. ‘काॅटनसिटी लाइव’ की सर्वेक्षण नीति किसी की व्यक्ति की सामाजिक, राजनीतिक और मानसिक क्षति कारित करने अथवा गरिमा घटाने जैसे कुत्सित प्रयासों का हमेशा विरोध करती है. जनता में लोकतां़ित्रक जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह सर्वेक्षण किया जा रहा है जो पूरी तरह से सूचना तकनीक पर आधारित है जिसमें किसी प्रकार की कांट-छांट नहीं की गई है. जनमत में प्राप्त परिणामों के सम्बन्ध में ‘काॅटनसिटी लाइव’ का कोई दायित्व नहीं है. इस सर्वेक्षण के नियमों-कायदों में परिवर्तन करने का विशेषाधिकार ‘काॅटनसिटी लाइव’ के पास सुरक्षित है.
Thursday, 31 December 2020
नववर्ष की मंगलकामनाएं
नववर्ष 2021 'कॉटनसिटी लाइव' के सभी पाठकों के जीवन में अपार खुशियां लाए और आप सफलता के नये सोपान चढ़ें. देश और दुनिया में शांति-सद्भाव कायम रहे, इसी कामना के साथ आपको 'कॉटनसिटी लाइव' की तरफ से ढेरों शुभकामनाएं.
नव वर्ष में हम प्रयास करेंगे कि और बेहतर विश्लेषणात्मक समाचार, आलेख व रचनात्मक सामग्री आपके लिए प्रस्तुत करें. आपका सहयोग और मंगलकामनाएं बनाए रखिए.
डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
अध्यक्ष, प्रेस क्लब, सूरतगढ़
www.cottoncitylive.com
Wednesday, 23 December 2020
विधायक कासिनया के कार्यकाल पर जनमत सर्वेक्षण
कैसा है आपके विधायक का कार्यकाल, आज ही वोट करें.
इस पोस्ट के अंत में पोल बाॅक्स है, अपनी पसंद का विकल्प चुनें.
पोल 31 दिसम्बर 2020 की मध्यरात्रि तक खुला है.
विधायक रामप्रताप कासनिया-एक परिचय
सूरतगढ़ के विधायक रामप्रताप कासनिया अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर चुके हैं. राजस्थान की भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके कासनिया कुशल राजनीतिज्ञ माने जाते है. ठेठ देहाती अंदाज और अपनी स्पष्टवादिता के चलते क्षेत्र की राजनीति में उनकी विशिष्ट पहचान है. पूर्व में वे पीलीबंगां विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे लेकिन 2008 में परिसीमन के बाद उन्होंने सूरतगढ़ का रूख किया. 2008 में उन्होंने भाजपा की टिकट पर सूरतगढ़ से भाग्य आजमाया लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. 2013 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. 2018 में वे न सिर्फ टिकट पाने में कामयाब हुए बल्कि भाजपा के विरूद्ध बने असंतोष के माहौल के बावजूद जीतने में कामयाब हुए. हालांकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और कासनिया को विपक्ष में बैठना पड़ा लेकिन विधायक तो विधायक होता है.
ओपिनियन पोल यानी जनता की राय
कैसे भाग लें ?
इस पोल बाॅक्स पर अपना वोट करें.
Sunday, 20 December 2020
सिटी हंड्रेड ने हाट बाजार में किया श्रमदान
- शराबियों का अड्डे बने हाट बाजार में चला स्वच्छता अभियान
- वार्ड विकास कमेटी के प्रयासों से उत्साहित हैं वार्डवासी
- सिटी हंड्रेड आयोजित करेगी देशभक्ति गीतों का कार्यक्रम
Friday, 18 December 2020
कलह और कोरोना के बीच कांग्रेस सरकार के 2 साल पूरे
- उतरने लगा है गहलोत का जादू
- बिजली बिलों का बोझ और बेरोजगारी की मार
- प्रदेश की राजनीति में नई करवट के आसार
नहीं हो सका अनुभव और युवा जोश का संगम
2018 में जब मोदी लहर चरम पर थी, उस वक्त राजस्थान की राजनीति में प्रदेश भाजपा की आंतरिक गुटबाजी के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जनाक्रोश का अच्छा खासा वातावरण तैयार हो गया था. इसी का परिणाम था कि दिसंबर 2018 में सम्पन्न हुए 15वीं विधानसभा के मुद्दाविहीन चुनावों में कांग्रेस ने सामान्य बहुमत से बाजी मार ली. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत के नेतृत्व में पांच साल बाद फिर कांग्रेस की सरकार बनी जिसमें युवा नेता पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
उम्मीद की जा रही थी कि गहलोत के अनुभव और पायलट के युवा जोश का यह संगम प्रदेश के विकास में नए आयाम स्थापित करेगा लेकिन नतीजे ठीक इसके उलट हुए. सत्ता में स्थापित होने के बावजूद मई 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई. इन चुनावों में गहलोत ने पुत्र मोह में फंस कर वैभव को जोधपुर से टिकट दिलाई जहां हुई हार से उनकी और पार्टी दोनों की फजीहत हुई. गहलोत यहीं नहीं रुके बल्कि पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के लिए उसे आरसीए का अध्यक्ष भी बना दिया गया. इसका खामियाजा गाहे-बगाहे उन्हें भुगतना ही होगा.
उपलब्धियों की बात करें तो बीते दो वर्ष सरकार के लिए उथल-पुथल भरे रहे हैं. कोरोना संकट और आंतरिक कलह से जूझ रही गहलोत सरकार लगभग दो महीनों तक तो खुद को बचाने की जुगत में लगी रही. पायलट की बगावत के चलते मुख्यमंत्री अपने गुट के विधायकों की बाड़ाबंदी किए पांचसितारा होटलों में बैठे रहे. आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंसी खुद सरकार का भविष्य अधर झूल में हो गया तो जनता की सुध लेता ही कौन ! जैसे तैसे इस सियासी ड्रामे का अंत हुआ और एक बार फिर गहलोत कुर्सी बचाने में कामयाब हुए. लेकिन इतना तय है कि प्रदेश राजनीति से गहलोत का जादू उतरने लगा है. इसका परिणाम यह है कि निकट भविष्य में यहां राजनीतिक करवट बदलने के आसार दिख रहे हैं
कोरोना और आचार संहिता से प्रभावित हुआ कामकाज
यह भी सच है कि इन्हीं 2 वर्षों के कार्यकाल में प्रदेश में पंचायती राज और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए आठ माह की आचार संहिता भी लगी रही जिससे सरकार को अपनी नाकामी छुपाने का एक और अवसर मिल गया. रही सही कसर कोरोना ने निकाल दी जिससे सरकार का कामकाज प्रभावित हुआ. संकट के इस दौर में केंद्र से मिलने वाली मदद में भी कमी आई जिसके चलते अनेक योजनाओं को सरकार चाहकर भी अमलीजामा नहीं पहना सकी है.
2 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर बोलते हुए गहलोत ने कहा कि भाजपाइयों ने धनबल और बाहुबल से उनकी सरकार को गिराने के बहुत से प्रयास किए हैं लेकिन विधायकों की एकजुटता और जनता के आशीर्वाद से हमारी सरकार पांच साल पूरे करेगी. उन्होंने कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की बात भी कही है. उनकी मानें तो सरकार दो साल में अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों में से आधे से ज्यादा वादे पूरे कर चुकी है. सरकार का दावा है कि उसने 501 वादों में से 252 पूरे कर दिए हैं जबकि 173 घोषणाओं पर काम जारी है. किसानों की लगभग 8000 करोड़ रूपये की ऋण माफी का वे बड़े गर्व से बखान करते हैं.
यथार्थ का धरातल
सरकार के दावों से इतर यथार्थ के धरातल पर प्रदेश की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और लचर कार्यशैली के चलते आज भी आम आदमी सरकार को कोसता नजर आता है. आए दिन उजागर हो रहे एसीबी के मामले इस बात की साख भरते हैं कि प्रदेश में भ्रष्टाचार किस कदर पांव जमाए हुए है. कोरोना संकट काल में सरकार द्वारा विद्युत बिलों में की गई 20% की बढ़ोतरी एक बड़ा मुद्दा है जिसने आम आदमी को बुरी तरह से प्रभावित किया है. वस्तुत: से यह बिजली कंपनियों की नाकामियों का बोझ है जो जनता पर डाल दिया गया है. सरकार का स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों से दोबारा टोल वसूली शुरू करने का निर्णय किसी भी ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता. प्रदेश का युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहा है सरकार ने अपने घोषणा पत्र में जिस बेरोजगारी भत्ते की बात की थी उसे मजाक बनाकर रख दिया गया है. सरकारी भर्तियों का आलम यह है कि आरपीएससी सालों से अटके हुए परिणाम तक जारी नहीं कर पा रही है. आरएएस 2018 का मामला ही ले लीजिए जिसके मुख्य परीक्षा परिणाम को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. मुख्यमंत्री गहलोत ने दावा किया है कि 25 अप्रैल को रीट की परीक्षा आयोजित की जाएगी लेकिन यह परीक्षा अभ्यर्थियों के जी का जंजाल बनी हुई है. सही मायनों में प्रदेश का युवा मानसिक तनाव और कुंठा में जी रहा है. सरकारी नौकरियों के अलावा उसके लिए अन्य विकल्प तलाशने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए हैं. कोरोना संकट के चलते प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था आज तक शुरू नहीं हो पाई है. इसके चलते लाखों शिक्षक और स्कूल परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.
नए कृषि कानूनों की खामियों को लेकर देशव्यापी किसान आंदोलन चल रहा है. प्रदेश सरकार चाहे तो किसानों के हितों की रक्षा के लिए इसमें भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अरविंद केजरीवाल और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकारें पूरे जोश से किसानों के साथ खड़ी है लेकिन राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान से लेकर स्थानीय स्तर तक पार्टी के कारिंदे सिर्फ फोटो खिंचवाने और विज्ञप्तियां जारी करने तक ही सीमित हैं. कांग्रेस के विधायकों और जनप्रतिनिधियों में भी इस आंदोलन को लेकर कोई विशेष हलचल दिखाई नहीं देती.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि कागजी जमा खर्च के भरोसे कांग्रेस कब तक जिंदा रहेगी. पंचायती और स्थानीय निकाय चुनावों में सरकार की कार्यशैली के परिणाम आने शुरू हो गए हैं जहां भाजपा पुन: अपना जनाधार खड़ा करने लगी है. पायलट की बगावत के सुर भले ही चुप दिखाई देते हों लेकिन अंदर खाते वे सुलग रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
कुल मिलाकर कहना चाहिए कि 2 साल के कार्यकाल में प्रदेश सरकार भले ही खासा कुछ नहीं कर पाई हो लेकिन भविष्य उनके हाथ में है. यदि सरकार चाहे तो प्रदेश की तकदीर बदल सकती है अन्यथा समय आने पर जनता तो उन्हें बदल ही देगी !
माता सीता की अग्निपरीक्षा का सच -1 (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)
प्रोफेसर रजनीरमण झा हिंदी और संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान हैं। वैदिक साहित्य का विश्लेषण और उस पर सारगर्भित टीकाएं उनके अध्ययन -लेखन की...

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