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Friday, 12 September 2025

माता सीता की अग्निपरीक्षा का सच -1 (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)


प्रोफेसर रजनीरमण झा हिंदी और संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान हैं। वैदिक साहित्य का विश्लेषण और उस पर सारगर्भित टीकाएं उनके अध्ययन -लेखन की मूल वृत्ति है । घुमक्कड़ी स्वभाव के लेखक प्रो. झा के पास अपनी एक विशिष्ट लेखन शैली है जो  उन्हें अपने समकालीन रचनाकारों से अलग मुकाम देती है। प्रस्तुत है पाठकों के लिए उनका एक विश्लेषणात्मक क्रमिक आलेख-

प्रो. रजनीरमण झा
माता सीता की अग्निपरीक्षा की कथा आजतक भारतीय जनमानस को मथ रही है। समाज के आधे वर्ग यानी महिलाओं के हृदय को यह कचोटता है कि सीता की अग्निपरीक्षा क्यों हुई । यह प्रश्न इसलिए भी उठता है कि भगवान् राम के प्रति पूर्ण समर्पण के बाद भी उनको ही परीक्षा देनी पड़ी।

हमें अग्निपरीक्षा का सच जानना चाहिए। वह भी वाल्मीकि रामायण की कथा के अनुसार। वह इसलिए क्योंकि राम और सीता के बारे में वह सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ है। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने इसको आख्यान कहा है - *एवमेतत् पुरावृत्तमाख्यानं भद्रमस्तु व:।* आख्यान अर्थात् वह कहानी जिसका एक चरित्र लेखक भी हो, अर्थात् जो कथा उसके सामने या उसके कालखण्ड में ही घटी हो। इसलिए वाल्मीकि रामायण में जो कुछ लिखा गया है, वह सबसे अधिक विश्वसनीय है।

तो अब हम उसीके अनुसार माता सीता की अग्निपरीक्षा को समझने का प्रयास करते हैं।

वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में अग्निपरीक्षा की कथा कही गयी है। राम-रावण के युद्ध में रावण मारा जा चुका। विभीषण को लङ्का का राजा बनाया गया। तब राम ने हनुमान् को कहा कि तुम विभीषण की आज्ञा लेकर लङ्का में प्रवेश करो और वैदेही के पास जाकर उनका कुशल पूछो। साथ ही उनको सुग्रीव और लक्ष्मण सहित मेरा कुशल बताओ। यह भी बता देना कि रावण युद्ध में मारा गया। फिर उनकी कुशलता का समाचार लेकर लौट आना।

यह वाल्मीकि की विशेष शैली है कि कुछ बातें वे एक सर्ग में करते हैं और आगे के सर्गों में उसका विस्तार करते हैं। वही आगे भी देखने को मिलता है।

हनुमान् ने विभीषण से आज्ञा मांगी। लङ्का में प्रवेश किया। अशोक वाटिका में पहुंचे, जहां सीता थीं। वे स्नान नहीं करने के कारण कुछ मलिन दिखती थीं। आनन्दशून्य होकर वृक्ष के नीचे राक्षसियों से घिरी बैठी थीं। 

हनुमान् ने उनको प्रणाम किया और विनीतभाव से खड़े हो गये। उनको देखकर देवी सीता प्रसन्न हुईं पर कुछ बोल नहीं सकीं। तब हनुमान् ने रामचन्द्रजी द्वारा कहे गये संदेश को उनको कहना प्रारम्भ किया -

वैदेहि ! रामचन्द्र लक्ष्मण और सुग्रीव के साथ सकुशल हैं। उन्होंने विभीषण, लक्ष्मण और वानरों की सहायता से रावण को युद्ध में मार डाला है। मैं आपको यह प्रिय संवाद सुनाकर प्रसन्न देखना चाहता हूं। आपके पातिव्रत्य धर्म के प्रभाव से ही युद्ध में राम ने यह महान् विजय प्राप्त की है। अब आप चिन्ता छोड़कर स्वस्थ हो जाएं। रावण मारा गया और लङ्का भगवान् श्रीराम के अधीन हो गयी।

*प्रियमाख्याहि ते देवि भूयश्च त्वां सभाजये ।*

*तव प्रभावाद् धर्मज्ञे महान् रामेण संयुगे ।।*

*लब्धोऽयं विजय: सीते स्वस्था भव गतज्वरा ।*

*रावणश्च हत: शत्रुर्लङ्का चैव वशीकृता ।।*

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग 113, श्लोक 9-10) 

आगे हनुमान् एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात कहते हैं -

श्रीराम ने आगे आपको यह संदेश दिया है कि मैंने तुम्हारे (सीता के) उद्धार के लिए जो प्रतिज्ञा की थी, उसके लिए निद्रा त्यागकर अथक प्रयत्न किया और समुद्र में पुल बनाकर उस प्रतिज्ञा को पूरा किया।

*मया ह्यलब्धनिद्रेण धृतेन तव निर्जये ।*

*प्रतिज्ञैषा विनिस्तीर्णा बद्ध्वा सेतुं महोदधौ ।।*

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग - 113, श्लोक - 11)

आगे हनुमान् श्रीराम का संदेश सीता को कहते हैं - अब तुम रावण के घर में स्वयं को समझकर भयभीत मत होना। लङ्का का सारा ऐश्वर्य विभीषण के अधीन है। तुम अपने घर में हो। ऐसा जानकर निश्चिन्त होकर धैर्य धारण करो। वे विभीषण भी हर्ष से भर आपके दर्शन के लिए उत्सुक होकर आ रहे हैं।

*सम्भ्रमश्च न कर्तव्यो वर्तन्त्या रावणालये।*

*विभीषणविधेयं हि लङ्कैश्वर्यमिदं कृतम् ।।*

*तदाश्वसिहि विस्रब्धं स्वगृहे परिवर्तसे।*

*अयं चाभ्येति संहृष्टस्त्वद्दर्शनोत्सुक: ।।*

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग -113, श्लोक 12-13)

इन पांच श्लोकों पर गौर किया जाए। पहले तो राम सीता को आश्वस्त करते हैं कि रावण मारा गया। फिर वे इसका बड़ा श्रेय सीता को देते हैं कि रावण वध सीता के पातिव्रत्य के कारण ही संभव हुआ। फिर कहते हैं कि राम ने रावण की कैद से सीता के उद्धार के लिए प्रतिज्ञा की थी और अपनी निद्रा का त्याग करके समुद्र में पुल बनाकर , रावण का वध करके उस प्रतिज्ञा को पूरा किया। फिर आगे सीता को कहते हैं कि तुमको अब डरने की आवश्यकता नहीं, तुम अपने घर में हो और विभीषण यानी लङ्का का वर्तमान राजा स्वयं तुमको देखने आ रहा है।

कितनी चिन्ता है राम को सीता की कि उनका भय तुरन्त प्रभाव से दूर हो जाय। साथ ही यह भी कि यह युद्ध उन्होंने सीता के उद्धार के लिए लड़ा था। और यह भी कि इस युद्ध में राम की विजय का बड़ा कारण सीता का पातिव्रत्य है। यानी राम को सीता के पातिव्रत्य पर पूर्ण विश्वास था।

जो यह कहते हैं कि राम ने सीता को कहा था कि उन्होंने यह युद्ध अपने कुल की प्रतिष्ठा के लिए लड़ा था और सीता पर उनको संदेह था, वे इन श्लोकों से अपरिचित हैं।

इसे पढ़ने और समझने के बाद उनको राम और सीता का आपसी अथाह प्रेम और अग्निपरीक्षा की कूटनीति समझने की आधारभूमि मिलेगी।

फिर क्या हुआ इसे आगे देखेंगे।

(क्रमशः)

- प्रो रजनीरमण झा 

मो नं 9414193564

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