- उतरने लगा है गहलोत का जादू
- बिजली बिलों का बोझ और बेरोजगारी की मार
- प्रदेश की राजनीति में नई करवट के आसार
प्रदेश में कांग्रेस सरकार को दो साल पूरे हो चुके हैं. इस अवसर पर 18 दिसंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दर्जनभर परियोजनाओं का शिलान्यास/लोकार्पण करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनवाई हैं. एक ऐसे वक्त में, जब प्रदेश की राजनीति करवट बदलने के आसार दिखा रही हो तब यथार्थ के धरातल पर आंतरिक कलह और कोरोना के बीच कांग्रेस सरकार के कार्यकाल की पड़ताल करना जरूरी है.
2018 में जब मोदी लहर चरम पर थी, उस वक्त राजस्थान की राजनीति में प्रदेश भाजपा की आंतरिक गुटबाजी के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जनाक्रोश का अच्छा खासा वातावरण तैयार हो गया था. इसी का परिणाम था कि दिसंबर 2018 में सम्पन्न हुए 15वीं विधानसभा के मुद्दाविहीन चुनावों में कांग्रेस ने सामान्य बहुमत से बाजी मार ली. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत के नेतृत्व में पांच साल बाद फिर कांग्रेस की सरकार बनी जिसमें युवा नेता पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
उम्मीद की जा रही थी कि गहलोत के अनुभव और पायलट के युवा जोश का यह संगम प्रदेश के विकास में नए आयाम स्थापित करेगा लेकिन नतीजे ठीक इसके उलट हुए. सत्ता में स्थापित होने के बावजूद मई 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई. इन चुनावों में गहलोत ने पुत्र मोह में फंस कर वैभव को जोधपुर से टिकट दिलाई जहां हुई हार से उनकी और पार्टी दोनों की फजीहत हुई. गहलोत यहीं नहीं रुके बल्कि पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के लिए उसे आरसीए का अध्यक्ष भी बना दिया गया. इसका खामियाजा गाहे-बगाहे उन्हें भुगतना ही होगा.
उपलब्धियों की बात करें तो बीते दो वर्ष सरकार के लिए उथल-पुथल भरे रहे हैं. कोरोना संकट और आंतरिक कलह से जूझ रही गहलोत सरकार लगभग दो महीनों तक तो खुद को बचाने की जुगत में लगी रही. पायलट की बगावत के चलते मुख्यमंत्री अपने गुट के विधायकों की बाड़ाबंदी किए पांचसितारा होटलों में बैठे रहे. आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंसी खुद सरकार का भविष्य अधर झूल में हो गया तो जनता की सुध लेता ही कौन ! जैसे तैसे इस सियासी ड्रामे का अंत हुआ और एक बार फिर गहलोत कुर्सी बचाने में कामयाब हुए. लेकिन इतना तय है कि प्रदेश राजनीति से गहलोत का जादू उतरने लगा है. इसका परिणाम यह है कि निकट भविष्य में यहां राजनीतिक करवट बदलने के आसार दिख रहे हैं
यह भी सच है कि इन्हीं 2 वर्षों के कार्यकाल में प्रदेश में पंचायती राज और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए आठ माह की आचार संहिता भी लगी रही जिससे सरकार को अपनी नाकामी छुपाने का एक और अवसर मिल गया. रही सही कसर कोरोना ने निकाल दी जिससे सरकार का कामकाज प्रभावित हुआ. संकट के इस दौर में केंद्र से मिलने वाली मदद में भी कमी आई जिसके चलते अनेक योजनाओं को सरकार चाहकर भी अमलीजामा नहीं पहना सकी है.
2 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर बोलते हुए गहलोत ने कहा कि भाजपाइयों ने धनबल और बाहुबल से उनकी सरकार को गिराने के बहुत से प्रयास किए हैं लेकिन विधायकों की एकजुटता और जनता के आशीर्वाद से हमारी सरकार पांच साल पूरे करेगी. उन्होंने कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की बात भी कही है. उनकी मानें तो सरकार दो साल में अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों में से आधे से ज्यादा वादे पूरे कर चुकी है. सरकार का दावा है कि उसने 501 वादों में से 252 पूरे कर दिए हैं जबकि 173 घोषणाओं पर काम जारी है. किसानों की लगभग 8000 करोड़ रूपये की ऋण माफी का वे बड़े गर्व से बखान करते हैं.
सरकार के दावों से इतर यथार्थ के धरातल पर प्रदेश की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और लचर कार्यशैली के चलते आज भी आम आदमी सरकार को कोसता नजर आता है. आए दिन उजागर हो रहे एसीबी के मामले इस बात की साख भरते हैं कि प्रदेश में भ्रष्टाचार किस कदर पांव जमाए हुए है. कोरोना संकट काल में सरकार द्वारा विद्युत बिलों में की गई 20% की बढ़ोतरी एक बड़ा मुद्दा है जिसने आम आदमी को बुरी तरह से प्रभावित किया है. वस्तुत: से यह बिजली कंपनियों की नाकामियों का बोझ है जो जनता पर डाल दिया गया है. सरकार का स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों से दोबारा टोल वसूली शुरू करने का निर्णय किसी भी ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता. प्रदेश का युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहा है सरकार ने अपने घोषणा पत्र में जिस बेरोजगारी भत्ते की बात की थी उसे मजाक बनाकर रख दिया गया है. सरकारी भर्तियों का आलम यह है कि आरपीएससी सालों से अटके हुए परिणाम तक जारी नहीं कर पा रही है. आरएएस 2018 का मामला ही ले लीजिए जिसके मुख्य परीक्षा परिणाम को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. मुख्यमंत्री गहलोत ने दावा किया है कि 25 अप्रैल को रीट की परीक्षा आयोजित की जाएगी लेकिन यह परीक्षा अभ्यर्थियों के जी का जंजाल बनी हुई है. सही मायनों में प्रदेश का युवा मानसिक तनाव और कुंठा में जी रहा है. सरकारी नौकरियों के अलावा उसके लिए अन्य विकल्प तलाशने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए हैं. कोरोना संकट के चलते प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था आज तक शुरू नहीं हो पाई है. इसके चलते लाखों शिक्षक और स्कूल परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.
नए कृषि कानूनों की खामियों को लेकर देशव्यापी किसान आंदोलन चल रहा है. प्रदेश सरकार चाहे तो किसानों के हितों की रक्षा के लिए इसमें भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अरविंद केजरीवाल और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकारें पूरे जोश से किसानों के साथ खड़ी है लेकिन राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान से लेकर स्थानीय स्तर तक पार्टी के कारिंदे सिर्फ फोटो खिंचवाने और विज्ञप्तियां जारी करने तक ही सीमित हैं. कांग्रेस के विधायकों और जनप्रतिनिधियों में भी इस आंदोलन को लेकर कोई विशेष हलचल दिखाई नहीं देती.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि कागजी जमा खर्च के भरोसे कांग्रेस कब तक जिंदा रहेगी. पंचायती और स्थानीय निकाय चुनावों में सरकार की कार्यशैली के परिणाम आने शुरू हो गए हैं जहां भाजपा पुन: अपना जनाधार खड़ा करने लगी है. पायलट की बगावत के सुर भले ही चुप दिखाई देते हों लेकिन अंदर खाते वे सुलग रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
कुल मिलाकर कहना चाहिए कि 2 साल के कार्यकाल में प्रदेश सरकार भले ही खासा कुछ नहीं कर पाई हो लेकिन भविष्य उनके हाथ में है. यदि सरकार चाहे तो प्रदेश की तकदीर बदल सकती है अन्यथा समय आने पर जनता तो उन्हें बदल ही देगी !
नहीं हो सका अनुभव और युवा जोश का संगम
2018 में जब मोदी लहर चरम पर थी, उस वक्त राजस्थान की राजनीति में प्रदेश भाजपा की आंतरिक गुटबाजी के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जनाक्रोश का अच्छा खासा वातावरण तैयार हो गया था. इसी का परिणाम था कि दिसंबर 2018 में सम्पन्न हुए 15वीं विधानसभा के मुद्दाविहीन चुनावों में कांग्रेस ने सामान्य बहुमत से बाजी मार ली. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत के नेतृत्व में पांच साल बाद फिर कांग्रेस की सरकार बनी जिसमें युवा नेता पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
उम्मीद की जा रही थी कि गहलोत के अनुभव और पायलट के युवा जोश का यह संगम प्रदेश के विकास में नए आयाम स्थापित करेगा लेकिन नतीजे ठीक इसके उलट हुए. सत्ता में स्थापित होने के बावजूद मई 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई. इन चुनावों में गहलोत ने पुत्र मोह में फंस कर वैभव को जोधपुर से टिकट दिलाई जहां हुई हार से उनकी और पार्टी दोनों की फजीहत हुई. गहलोत यहीं नहीं रुके बल्कि पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के लिए उसे आरसीए का अध्यक्ष भी बना दिया गया. इसका खामियाजा गाहे-बगाहे उन्हें भुगतना ही होगा.
उपलब्धियों की बात करें तो बीते दो वर्ष सरकार के लिए उथल-पुथल भरे रहे हैं. कोरोना संकट और आंतरिक कलह से जूझ रही गहलोत सरकार लगभग दो महीनों तक तो खुद को बचाने की जुगत में लगी रही. पायलट की बगावत के चलते मुख्यमंत्री अपने गुट के विधायकों की बाड़ाबंदी किए पांचसितारा होटलों में बैठे रहे. आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंसी खुद सरकार का भविष्य अधर झूल में हो गया तो जनता की सुध लेता ही कौन ! जैसे तैसे इस सियासी ड्रामे का अंत हुआ और एक बार फिर गहलोत कुर्सी बचाने में कामयाब हुए. लेकिन इतना तय है कि प्रदेश राजनीति से गहलोत का जादू उतरने लगा है. इसका परिणाम यह है कि निकट भविष्य में यहां राजनीतिक करवट बदलने के आसार दिख रहे हैं
कोरोना और आचार संहिता से प्रभावित हुआ कामकाज
यह भी सच है कि इन्हीं 2 वर्षों के कार्यकाल में प्रदेश में पंचायती राज और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए आठ माह की आचार संहिता भी लगी रही जिससे सरकार को अपनी नाकामी छुपाने का एक और अवसर मिल गया. रही सही कसर कोरोना ने निकाल दी जिससे सरकार का कामकाज प्रभावित हुआ. संकट के इस दौर में केंद्र से मिलने वाली मदद में भी कमी आई जिसके चलते अनेक योजनाओं को सरकार चाहकर भी अमलीजामा नहीं पहना सकी है.
2 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर बोलते हुए गहलोत ने कहा कि भाजपाइयों ने धनबल और बाहुबल से उनकी सरकार को गिराने के बहुत से प्रयास किए हैं लेकिन विधायकों की एकजुटता और जनता के आशीर्वाद से हमारी सरकार पांच साल पूरे करेगी. उन्होंने कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की बात भी कही है. उनकी मानें तो सरकार दो साल में अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों में से आधे से ज्यादा वादे पूरे कर चुकी है. सरकार का दावा है कि उसने 501 वादों में से 252 पूरे कर दिए हैं जबकि 173 घोषणाओं पर काम जारी है. किसानों की लगभग 8000 करोड़ रूपये की ऋण माफी का वे बड़े गर्व से बखान करते हैं.
यथार्थ का धरातल
सरकार के दावों से इतर यथार्थ के धरातल पर प्रदेश की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और लचर कार्यशैली के चलते आज भी आम आदमी सरकार को कोसता नजर आता है. आए दिन उजागर हो रहे एसीबी के मामले इस बात की साख भरते हैं कि प्रदेश में भ्रष्टाचार किस कदर पांव जमाए हुए है. कोरोना संकट काल में सरकार द्वारा विद्युत बिलों में की गई 20% की बढ़ोतरी एक बड़ा मुद्दा है जिसने आम आदमी को बुरी तरह से प्रभावित किया है. वस्तुत: से यह बिजली कंपनियों की नाकामियों का बोझ है जो जनता पर डाल दिया गया है. सरकार का स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों से दोबारा टोल वसूली शुरू करने का निर्णय किसी भी ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता. प्रदेश का युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहा है सरकार ने अपने घोषणा पत्र में जिस बेरोजगारी भत्ते की बात की थी उसे मजाक बनाकर रख दिया गया है. सरकारी भर्तियों का आलम यह है कि आरपीएससी सालों से अटके हुए परिणाम तक जारी नहीं कर पा रही है. आरएएस 2018 का मामला ही ले लीजिए जिसके मुख्य परीक्षा परिणाम को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. मुख्यमंत्री गहलोत ने दावा किया है कि 25 अप्रैल को रीट की परीक्षा आयोजित की जाएगी लेकिन यह परीक्षा अभ्यर्थियों के जी का जंजाल बनी हुई है. सही मायनों में प्रदेश का युवा मानसिक तनाव और कुंठा में जी रहा है. सरकारी नौकरियों के अलावा उसके लिए अन्य विकल्प तलाशने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए हैं. कोरोना संकट के चलते प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था आज तक शुरू नहीं हो पाई है. इसके चलते लाखों शिक्षक और स्कूल परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.
नए कृषि कानूनों की खामियों को लेकर देशव्यापी किसान आंदोलन चल रहा है. प्रदेश सरकार चाहे तो किसानों के हितों की रक्षा के लिए इसमें भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अरविंद केजरीवाल और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकारें पूरे जोश से किसानों के साथ खड़ी है लेकिन राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान से लेकर स्थानीय स्तर तक पार्टी के कारिंदे सिर्फ फोटो खिंचवाने और विज्ञप्तियां जारी करने तक ही सीमित हैं. कांग्रेस के विधायकों और जनप्रतिनिधियों में भी इस आंदोलन को लेकर कोई विशेष हलचल दिखाई नहीं देती.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि कागजी जमा खर्च के भरोसे कांग्रेस कब तक जिंदा रहेगी. पंचायती और स्थानीय निकाय चुनावों में सरकार की कार्यशैली के परिणाम आने शुरू हो गए हैं जहां भाजपा पुन: अपना जनाधार खड़ा करने लगी है. पायलट की बगावत के सुर भले ही चुप दिखाई देते हों लेकिन अंदर खाते वे सुलग रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
कुल मिलाकर कहना चाहिए कि 2 साल के कार्यकाल में प्रदेश सरकार भले ही खासा कुछ नहीं कर पाई हो लेकिन भविष्य उनके हाथ में है. यदि सरकार चाहे तो प्रदेश की तकदीर बदल सकती है अन्यथा समय आने पर जनता तो उन्हें बदल ही देगी !
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