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Tuesday, 16 September 2025

माता सीता की अग्निपरीक्षा का सच - 2 (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)

(गतांक से आगे)

आगे हनुमान् और सीता के बीच बड़ा प्रिय और वात्सल्य से भरा संवाद होता है। फिर हनुमान् कहते हैं कि वे सीता को क्लेश पहुंचानेवाली राक्षसियों को मार डालना चाहते पर सीता उनको कहती हैं कि ये तो अपने स्वामी रावण की आज्ञा के वशीभूत होकर मुझे क्लेश देती थीं, अतः इनका कोई दोष नहीं है। अतः इनको मारना उचित नहीं होगा। मेरे लिए दैव का विधान ही ऐसा था। 

फिर वे कहती हैं - मैं अपने भक्तवत्सल स्वामी (राम) के दर्शन करना चाहती हूं।

साब्रवीद् द्रष्टुमिच्छामि भर्तारं भक्तवत्सलम्।।

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग -113, श्लोक - 49)

हनुमान् बोले कि जैसे शची इन्द्र को देखती है, वैसे ही आप आज चन्द्रमा के समान मुखवाले रामचन्द्र को देखेंगी, जिनके मित्र विद्यमान हैं और शत्रु मारे जा चुके हैं। और वे रामचन्द्र के पास लौट आये। 

उन्होंने राम को बताया कि सीता जी मुझे आत्मीय जन मानती हैं और आंसू भरे नेत्र वाली सीता ने मुझे कहा कि मैं अपने स्वामी के दर्शन करना चाहती हैं। हनुमान् के ऐसा कहने से रामचन्द्र ध्यानस्थ हो गये। उनकी आंखें डबडबा आयीं। वे लम्बी सांस खींचकर भूमि की ओर देखते हुए मेघरंग के विभीषण को बोले।

एवमुक्तो हनुमता रामो धर्मवृतां वर: ।

आगच्छत् सहसा ध्यानमीषद्बाष्पपरिप्लुत: ।।

स दीर्घमभिनि:श्वस्य जगतीमवलोकयन्।

उवाच मेघसंकाशं विभीषणमुपस्थितम्।।

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग - 114, श्लोक 5-6)

राम ने कहा कि तुम सीता को सिर से स्नान कराकर दिव्य अंगराग और दिव्य आभूषणों से विभूषित कर शीघ्र मेरे पास ले आओ।

यहां एक बार पुनः स्पष्ट होता है कि राम सीता के वचन से करुणार्द्र होकर सीता के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं।

इसपर विभीषण शीघ्रता से सीता के पास गये और उनको राम का संदेश सुनाया। उनके ऐसा कहने पर सीता ने विभीषण को कहा कि मैं बिना स्नान किये ही पतिदेव के दर्शन करना चाहती हूं।

एवमुक्ता तु वैदेही प्रत्युवाच विभीषणम्।

अस्नात्वा द्रष्टुमिच्छामि भर्तारं राक्षसेश्वर।।

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग -114, श्लोक -11)

विभीषण कहते हैं कि राम की ही आज्ञा है कि सीता नहा - धोकर दिव्य अङ्गराग और दिव्य आभूषणों से युक्त होकर आएं और आपको ऐसा करना चाहिए।

तस्यास्तद् वचनं श्रुत्वा प्रत्युवाच विभीषण: ।

यथाऽऽह रामो भर्ता ते तत् तथा कर्तुमर्हसि।।

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग- 114, श्लोक -12)

तब सीता ने "बहुत अच्छा" कहा। सिर से स्नान किया और बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण पहनकर वे चलने के लिए तैयार हुईं।

यहां एक प्रश्न उठता है कि राम को सीता पर संदेह होता तो वे सीता को स्नान करके और वस्त्राभूषण से सजकर आने के लिए क्यों कहते । वे तो किसी रूप में सीता पर आरोप लगा सकते थे। यह कामना करना कि मेरी पत्नी स्वच्छ और सुन्दर लगे, विभीषण के माध्यम से इसका आग्रह प्रकट होना, यह अपने आप ही यह बताता है कि राम सीता पर संदेह नहीं करते थे, अपितु उनसे उसी प्रकार प्रेम करते थे, जैसे अन्य साधारण पुरुष करते हैं, जो अपनी पत्नी को स्वच्छ और वस्त्राभूषण से सज्जित देखकर प्रसन्न होते हैं।

यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि वे पहले सीता को कह चुके हैं कि लङ्का का ऐश्वर्य अब विभीषण के अधीन है, इसे तुम अपना घर समझो। इसलिए वे बिना किसी हिचक के कहते हैं कि सीता नहा-धोकर और वस्त्राभूषण से सज्जित होकर आएं।

सीता जब राम को मिलने चलीं तो उनके लिए एक पालकी मंगायी गयी। उसको निशाचर घेरे हुए थे। सीता उस पालकी में बैठकर राम को मिलने चलीं। विभीषण ने रामचन्द्र को कहा कि सीता आ गयी हैं। सीता राक्षसगृह में निवास करके आयी हैं, इससे राम को एक साथ ही रोष, हर्ष और दैन्य प्राप्त हुआ।

तामागतामुपश्रुत्य रक्षोगृहचिरोषिताम् ।

रोषं हर्षं च दैन्यं च राघव: प्राप शत्रुहा।।

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग -114, श्लोक -17)

फिर क्या हुआ, इसे आगे देखेंगे।

(क्रमशः)

- प्रो रजनीरमण झा 

मो नं 9414193564

Friday, 12 September 2025

माता सीता की अग्निपरीक्षा का सच -1 (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)


प्रोफेसर रजनीरमण झा हिंदी और संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान हैं। वैदिक साहित्य का विश्लेषण और उस पर सारगर्भित टीकाएं उनके अध्ययन -लेखन की मूल वृत्ति है । घुमक्कड़ी स्वभाव के लेखक प्रो. झा के पास अपनी एक विशिष्ट लेखन शैली है जो  उन्हें अपने समकालीन रचनाकारों से अलग मुकाम देती है। प्रस्तुत है पाठकों के लिए उनका एक विश्लेषणात्मक क्रमिक आलेख-

प्रो. रजनीरमण झा
माता सीता की अग्निपरीक्षा की कथा आजतक भारतीय जनमानस को मथ रही है। समाज के आधे वर्ग यानी महिलाओं के हृदय को यह कचोटता है कि सीता की अग्निपरीक्षा क्यों हुई । यह प्रश्न इसलिए भी उठता है कि भगवान् राम के प्रति पूर्ण समर्पण के बाद भी उनको ही परीक्षा देनी पड़ी।

हमें अग्निपरीक्षा का सच जानना चाहिए। वह भी वाल्मीकि रामायण की कथा के अनुसार। वह इसलिए क्योंकि राम और सीता के बारे में वह सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ है। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने इसको आख्यान कहा है - *एवमेतत् पुरावृत्तमाख्यानं भद्रमस्तु व:।* आख्यान अर्थात् वह कहानी जिसका एक चरित्र लेखक भी हो, अर्थात् जो कथा उसके सामने या उसके कालखण्ड में ही घटी हो। इसलिए वाल्मीकि रामायण में जो कुछ लिखा गया है, वह सबसे अधिक विश्वसनीय है।

तो अब हम उसीके अनुसार माता सीता की अग्निपरीक्षा को समझने का प्रयास करते हैं।

वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में अग्निपरीक्षा की कथा कही गयी है। राम-रावण के युद्ध में रावण मारा जा चुका। विभीषण को लङ्का का राजा बनाया गया। तब राम ने हनुमान् को कहा कि तुम विभीषण की आज्ञा लेकर लङ्का में प्रवेश करो और वैदेही के पास जाकर उनका कुशल पूछो। साथ ही उनको सुग्रीव और लक्ष्मण सहित मेरा कुशल बताओ। यह भी बता देना कि रावण युद्ध में मारा गया। फिर उनकी कुशलता का समाचार लेकर लौट आना।

यह वाल्मीकि की विशेष शैली है कि कुछ बातें वे एक सर्ग में करते हैं और आगे के सर्गों में उसका विस्तार करते हैं। वही आगे भी देखने को मिलता है।

हनुमान् ने विभीषण से आज्ञा मांगी। लङ्का में प्रवेश किया। अशोक वाटिका में पहुंचे, जहां सीता थीं। वे स्नान नहीं करने के कारण कुछ मलिन दिखती थीं। आनन्दशून्य होकर वृक्ष के नीचे राक्षसियों से घिरी बैठी थीं। 

हनुमान् ने उनको प्रणाम किया और विनीतभाव से खड़े हो गये। उनको देखकर देवी सीता प्रसन्न हुईं पर कुछ बोल नहीं सकीं। तब हनुमान् ने रामचन्द्रजी द्वारा कहे गये संदेश को उनको कहना प्रारम्भ किया -

वैदेहि ! रामचन्द्र लक्ष्मण और सुग्रीव के साथ सकुशल हैं। उन्होंने विभीषण, लक्ष्मण और वानरों की सहायता से रावण को युद्ध में मार डाला है। मैं आपको यह प्रिय संवाद सुनाकर प्रसन्न देखना चाहता हूं। आपके पातिव्रत्य धर्म के प्रभाव से ही युद्ध में राम ने यह महान् विजय प्राप्त की है। अब आप चिन्ता छोड़कर स्वस्थ हो जाएं। रावण मारा गया और लङ्का भगवान् श्रीराम के अधीन हो गयी।

*प्रियमाख्याहि ते देवि भूयश्च त्वां सभाजये ।*

*तव प्रभावाद् धर्मज्ञे महान् रामेण संयुगे ।।*

*लब्धोऽयं विजय: सीते स्वस्था भव गतज्वरा ।*

*रावणश्च हत: शत्रुर्लङ्का चैव वशीकृता ।।*

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग 113, श्लोक 9-10) 

आगे हनुमान् एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात कहते हैं -

श्रीराम ने आगे आपको यह संदेश दिया है कि मैंने तुम्हारे (सीता के) उद्धार के लिए जो प्रतिज्ञा की थी, उसके लिए निद्रा त्यागकर अथक प्रयत्न किया और समुद्र में पुल बनाकर उस प्रतिज्ञा को पूरा किया।

*मया ह्यलब्धनिद्रेण धृतेन तव निर्जये ।*

*प्रतिज्ञैषा विनिस्तीर्णा बद्ध्वा सेतुं महोदधौ ।।*

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग - 113, श्लोक - 11)

आगे हनुमान् श्रीराम का संदेश सीता को कहते हैं - अब तुम रावण के घर में स्वयं को समझकर भयभीत मत होना। लङ्का का सारा ऐश्वर्य विभीषण के अधीन है। तुम अपने घर में हो। ऐसा जानकर निश्चिन्त होकर धैर्य धारण करो। वे विभीषण भी हर्ष से भर आपके दर्शन के लिए उत्सुक होकर आ रहे हैं।

*सम्भ्रमश्च न कर्तव्यो वर्तन्त्या रावणालये।*

*विभीषणविधेयं हि लङ्कैश्वर्यमिदं कृतम् ।।*

*तदाश्वसिहि विस्रब्धं स्वगृहे परिवर्तसे।*

*अयं चाभ्येति संहृष्टस्त्वद्दर्शनोत्सुक: ।।*

(वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग -113, श्लोक 12-13)

इन पांच श्लोकों पर गौर किया जाए। पहले तो राम सीता को आश्वस्त करते हैं कि रावण मारा गया। फिर वे इसका बड़ा श्रेय सीता को देते हैं कि रावण वध सीता के पातिव्रत्य के कारण ही संभव हुआ। फिर कहते हैं कि राम ने रावण की कैद से सीता के उद्धार के लिए प्रतिज्ञा की थी और अपनी निद्रा का त्याग करके समुद्र में पुल बनाकर , रावण का वध करके उस प्रतिज्ञा को पूरा किया। फिर आगे सीता को कहते हैं कि तुमको अब डरने की आवश्यकता नहीं, तुम अपने घर में हो और विभीषण यानी लङ्का का वर्तमान राजा स्वयं तुमको देखने आ रहा है।

कितनी चिन्ता है राम को सीता की कि उनका भय तुरन्त प्रभाव से दूर हो जाय। साथ ही यह भी कि यह युद्ध उन्होंने सीता के उद्धार के लिए लड़ा था। और यह भी कि इस युद्ध में राम की विजय का बड़ा कारण सीता का पातिव्रत्य है। यानी राम को सीता के पातिव्रत्य पर पूर्ण विश्वास था।

जो यह कहते हैं कि राम ने सीता को कहा था कि उन्होंने यह युद्ध अपने कुल की प्रतिष्ठा के लिए लड़ा था और सीता पर उनको संदेह था, वे इन श्लोकों से अपरिचित हैं।

इसे पढ़ने और समझने के बाद उनको राम और सीता का आपसी अथाह प्रेम और अग्निपरीक्षा की कूटनीति समझने की आधारभूमि मिलेगी।

फिर क्या हुआ इसे आगे देखेंगे।

(क्रमशः)

- प्रो रजनीरमण झा 

मो नं 9414193564

Monday, 8 September 2025

संगीतज्ञ जमनालाल सूडिया एवं गजल सम्राट जगजीतसिंह सम्मान-2025 का भव्य आयोजन


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संगीत कला संस्थान की ओर से कला, साहित्य और संगीत से जुड़ी 15 हस्तियां हुई सम्मानित

-स्थानीय कलाकारों सहित शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियों ने बांधा समां

 सूरतगढ़, 08 सितम्बर। संगीत कला संस्थान, सूरतगढ़ और काव्याज बैंड, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को कला और संगीत के क्षेत्र में प्रतिष्ठित ‘‘संगीतज्ञ जमनालाल सूडिया एवं जगजीतसिंह सम्मान-2025’’ का भव्य आयोजन हुआ। हर्ष काॅन्वेंट स्कूल के सभागार में आयोजित इस राज्य स्तरीय कार्यक्रम में  कला, संगीत और साहित्य के क्षेत्र की 15 हस्तियों का सम्मान किया गया। इस अवसर पर जयपुर, श्रीगंगानगर और चूरू से पधारे संगीत महारथियों ने शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियों से कार्यक्रम में समां बांध दिया।


शहर के प्रतिष्ठित और गणमान्य नागरिकों की उपस्थित में आयोजित इस कार्यक्रम में पूर्व पालिकाध्यक्ष आरती शर्मा मुख्य अतिथि तथा एडवोकेट भागीरथ कड़वासरा, जिला लोकपाल अनिल धानुका, श्रीमती आशा शर्मा, बनवारीलाल छिम्पा विषिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। दीप प्रज्ज्वलन के साथ प्रारम्भ हुए इस सम्मान समारोह में जयपुर के डाॅ, हनुमान सहाय, डाॅ. गरिमा कुमावत, शेर मोहम्मद, गोपालसिंह खिची, मधु नायक व रामानंद, श्रीगंगानगर के डाॅ. राजकुमार शर्मा, डाॅ. अंजू बोरड़, पन्नालाल कत्थक, जगदीश प्रसाद नायक, अनुराग कत्थक, सूरतगढ़ के सुशील जेटली व डाॅ, हरिमोहन सारस्वत तथा पल्लू से रजिराम पंवार और संगीता को अभिनन्दनपत्र और शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। 


कार्यक्रम में काव्याज बैंड, जयपुर के संस्थापक कैलाश सूडिया ने गिटार पर शानदार प्रस्तुति देकर सबका मन मोह लिया। इसके अलावा डाॅ. आर्यविंद बेनिवाल, डाॅ. जगजीत सिंह, अनुराग कत्थक, डाॅ. राजकुमार शर्मा और चंचल शर्मा की प्रस्तुतियों को भरपूर सराहना मिली। संस्थान के विद्यार्थियों की प्रस्तुती भी सराहनीय रही। इस अवसर पर पन्नालाल कत्थक ने संगीतज्ञ जमनालाल सूडिया के व्यक्तित्व और संगीत साधना पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में संगीत कला संस्थान के संस्थापक ईश्वरलाल सूडिया ने उपस्थितजनों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संगीत साधना उन्हें विरासत में मिली है जिसे भावी पीढी को निष्ठा के साथ सौंपना ही उनके जीवन का लक्ष्य है। मुख्य अतिथि आरती शर्मा ने सम्मान समारोह के आयोजन को शहर के लिए प्रतिष्ठासूचक बताते हुए संगीत कला संस्थान के प्रयासों की सराहना की। 


इस अवसर पर भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष रजनी मोदी, एडवोकेट रामप्रताप तिवाड़ी, एडवोकेट शिशपाल सारस्वत, पिताम्बरदत्त शर्मा,  देवेन्द्र आर्य,  सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन मधु नायक, टीवी एंकर जयपुर व यशपाल शर्मा, सूरतगढ़ ने किया। संस्था के एडवोकेट ओमप्रकाश पारीक, एडवोकेट आनंद शर्मा,  खुशालसिंह और घनश्याम शर्मा ने आयोजन को सफल बनाने में विशेष भूमिका निभाई।

Sunday, 7 September 2025

धपाऊ गाळ काडो, पण प्रेम अर हरख री !


(हेत री हथाई)

राजी राखै रामजी ! ‘हेत री हथाई’ में आज आपां बात करस्यां गाळां री....!, हैं........! हैं क्यांरी, जे ताबै लागसी तो काड’र ई देखस्यां ! आ के जची ? भई, जद आखै देस में अबार सड़क सूं संसद तंई, खबरिया चैनल्स अर सोसियल मीडिया पर लोग गाळो-गाळ हो रैया है, ओछी राजनीति रै इण कोझियै बगत में देस रै परधान नै मा री गाळ काड रैया है तो पछै बात तो करणी ई पड़सी, नीं पछै हथाई में सार ई के ! 


कांई होवै ‘गाळ’ अर क्यूं लागै है दोरी ? साची बूझो तो गाळ लोक चेतना रो अेक महताऊ तत है, देस दुनिया री हर भासा में गाळ लाधै, घर सूं गवाड़, खेत सूं खळा, बजार सूं मंडी, चौफेर तका लेवो, गाळां रा अणूता भंडार भर या है। गाळ कैबतां में लाधै, ओखाणां में लाधै, बातां में लाधै, हथाई में लाधै, गाळ बिना दुनिया रो कोई सबदकोस कोई, बोली, कोई भासा पूरी नीं होवै। जद आपणै लोक में गाळ है तो पछै इण बाबत बात करतां क्यारो संको ! क्यां री रीस !! गाळां रो तो अेक अनूठो सगपण है मिनख रै ब्यौहार सूं। हंकारणो चाहीजै, गाळां आपणी संस्कृति रो अेक महताऊ पख है जिण पर भोत कम बात होवै, पण आज आपां करस्यां। 


गाळ रा दो रंग है, अेक अंतस में भरीजी रीस सूं निपजै अर दूजी हांसी मजाक, छेड़छाड़ सूं जलमै। आपणै लोक में दोनूं रंगां में रंगीजी धपाऊ गाळां है जिकी मूंडै आवताई आपरा रंग दिखा देवै। पैलड़ै रंग में बै गाळां है जिकी राड़ करावै, गदीड़ घलावै, सिर फुड़ावै, जिकी मिनख मरावै, घमसाण करा देवै। दूजोड़ी बै है, जिकी लोकगीतां में गाइजै, जिण सूं सग्गा परसंग्यां रिझाइजै, हंसा-हसां’र बक्खी दुखाइजै, जिकी अपणायत अर हेत में बधेपो करै। है दोनूं गाळ ई, पण अेक मरावै, दूजी हरखावै।   


दुनिया भांत-भंतीली है तो बठै गाळयां ई न्यारी-न्यारी ! दुनिया री हर भासा अर बोली में गाळां रो ठरको अलायदो। आपां मा बैन री गाळ नै मोटी मानां, तो दागिस्तान में सैं सूं मोटी गाळ है, ‘जा थारा टाबर मा बोली भूल जावै !’ अंग्रेजी में तो ‘गैट लोस्ट’/गो टू हैल/फक ऑफ/शिट/बुलशिट आद गाळां मूंडै में आवता ई जूत बाज जावै। आपणी भासा में कहीजै, रांड सूं बत्ती गाळ कोनी, बा काड्यां पछै लारै फेर बचै ई के....। रांगड़ नै तो रैकारै री ई गाळ घणी, घमसाण मचा देवै बो। 


सिर फुड़ावणी आं गाळां री बात करां तो बाळपणै में टाबर दूजी सैंग बातां साथै गाळ रा संस्कार ई सीखै। घर, गळी, गवाड़ में लोगां नै गाळ काडते देख उण रै कौतक जागै अर बो ई बां सबदां नै बरतणै री खेचळ करै, मतलब तो कद जाणै बो ! आ न्यारी बात, कै इण गाळ अभ्यास रा सबद जे कदेई मा का बापू रै कानां में पड़ जावै तो गदीड़ घलतां देर ई नीं लागै। कुटाई रो ओ अणचाइजतो परसाद मिल्यां ई टाबर नै ठाह पड़ै, कै ओ सबद भोत माड़ो है, बेटै कुटा दियो, पछै कीं सावचेती राखे बो..।


चेतो करो दिखाण, बाळपणै में सैं सूं चावी गाळ ही, ‘साळा कुत्ता !’ अब कोई बूझै, ‘साळा तो सांपां नै ई प्यारा होवै’ पछै उण नै गाळ में क्यूं बरतीजै ? थे कैय सको, घर में ‘साळा, भींत में आळा’ इण रिस्तै री सावळ ओळखाण करावै, सो कोई हरज कोनी ! पण म्हूं बूझूं, बापड़ो कुतियो, झोळी-बायरो जीव, उण कांई बिगाड़्यो है आपरो, क्यूं डंडीज्यो बो...? कुतियै री ठौड़ जे इण गाळ में मिनकी ले लेवता तो ई बात ओपती, कै बा छागटी मौको लागतांई चोरी सूं दूध मळाई चट कर जावै। पण नंई, आपां तो ‘खावै सूर कुटीजै पाडा’ री परम्परा रा हां, आपां नै कुण रोकै ! बाळपणै में इसी घणी छोटी-मोटी गाळां सुणता-बरतता आपां आगै बधां। गाळ री कुबाण बातां में आप मतई कद आय जावै, ठाह ई नीं पड़ै। म्हानै चेतै आवै, इस्कूल रै दिनां इण कुबाण नै छुडावण सारू म्है भायला ‘‘गाळी मुक्का’’ खेल्या करता। नियम ओ हो कै बंतळ करती बेळा जे मूंडै सूं कोई गाळ निसरै तो भायला दे गदीड़ पर गदीड़...। कूट खावणै रै डर सूं बोलती बेळा सावचेत रैवणो पड़तो। अेक सरदार भायलो बलजीत, जिण नै आ कुबाण कीं जादा ई पड़गी, लाई भोत कुटीजतो। डूक पड़ते ही मूंडै सूं आप मतैई गाळ निसरती, 'ओ भैण....!' अर भळै डुक त्यार !


गाळ रै दूजै रंगां री बात करां तो बठै हरख अर आनंद निपजै। कहीजै, ‘गावतां रा सीठणा अर लड़तां री गाळां’। ब्याव-एढै रै मौकै सग्गै-परसंग्यां नै गाळ गावण री जूनी परम्परा है आपणै। लोक में अेक बात लाधै, जद स्वयंवर रै पछै भगवान राम, सीता माता नै गाजै-बाजै साथै ल्यावण पूग्या तो बठै सीताजी रै पी’र पख सूं बान्नै झीणी-झीणी गाळां गाइजी, अर हरख मनाइज्यो। गाळां सूं हरखीजणै री आ परम्परा अजेस ई लगोलग चाल रैयी है। आओ, आं गाळां रा रंग देखां, जिकां नै सुण-सुण थाळी जीमता जवांई भाई, सग्गा परसंगी रूसणै री ठौड़ पाट-पाट हांसै अर हरख मनावै। ल्यो अेक राजस्थानी बानगी बांचो दिखाण- 


जवांई रै भाया सारू-


मांज्या धोया थाळ परूस दिया भात जी/आओ आओ फलाणारामजी, 

थे भाणै घालो हाथ जी

बाप थारो साटियो, मां बिणजारी जी/भुवा थारी भगतण मोडियां रै लारी जी....

चारूं भाई चोरटा, भैन उदाळ जी/काकी थारी कुतड़ी मुत्तै चूल्है मांय जी...

मांज्या धोया थाळ परूस दिया भात जी...


सग्गा नै गाइजै-


जीम्या जाय भई जीम्या जाय/मूंछ्यां चावळ लियां जाय/म्हारा चावळ म्हानै देवो/मूंछ्या आगै ढेहरा देवो/ 

जीम्या जाय भई जीम्या जाय/ढुंगां गादी लियां जाय/म्हारी गादी म्हानै देवो/ढूंगा हेठै ढेहरा देवो...


अक्खड़ हरियाणवी रा रंग ई बांचल्या। बै तो सग्गै नै लुगायां बिच्चाळै बिठा’र इस्या-इस्या सिठणा गावै जाणै सुण ई बो करै-


मैं तन्नै समधी बरज रही, ज्वार मत बीजै...... 

गंडासे पै समधी तै रेती लगवा ल्यो रै समधी तै....

समधी पै पाणी भरा ल्यो रै समधी पै/फोडैगा टोकणी, मारूंगी फूकणी, तोड़ूगी कूणी...


पंजाबी सीठणा में तो और ई खुल्ला बोलै। चावा-ठावा पंजाबी लोक गायक कुलदीपसिंग अर बांरी जोड़ायत बीबी जगमोहन कौर रो गीत ‘पूदना’ (पुदीना) सुणो, गाळां सुणनै में आनंद नीं आवै तो म्हानै कैय देया। 


सचीमुची पूदने नाळ मूं ठरया/ नीं तू खसम तेरहवां करयां/तेरा इक दो नाळ नीं सरया/नीं साडा बड़ा करारा पुदना....

सचीमुची पूदना मरे हरियाई/नीं तेरी भैण ने कर लया नाई/सारे पींड से मची दुहाई/ नीं साडा बड़ा करारा पुदना....

सचीमुची पुदना मेरा कुम्ळाया/तेरी मा की चन्न चढाया/छड्ड तेरा प्यौ ते कर लया ताया/ नीं साडा बड़ा करारा पुदना....

सचीमुची पूदना तेरी खुराक/नीं तू जमके चार जवाक/हजे वी करदी व्या दी झाक/साडा बापु नीं लैंदा साख/ नीं साडा बड़ा करारा पुदना....

सचीमुची पूदना मसालेदार/तेरी भुवा कित्ता कुम्हार/तड़के गधे नूं थापी मार/तेरी बेबे कढदी धार नीं साडा बड़ा करारा पुदना..../


यूपी बिहार में समधी नै इण भांत गाळां गाइजै-


आज हमारी समधन बिके है, कोई ले लो/अठन्नी नहीं है तो चवन्नी में ले लो

समधी जी की जोरू का घाघरा/धोबी धोवै रे छिनाल हाय दैया

समधी जी तो बैठे-बैठे मूंछां ताव लगाते है/सुबह सवेरे चाय बनाकर समधन को पिलाते हैं


मारवाड़ में होळी री फागणिया गीत, जिका सग्गा-सग्गी नै गाइजै, जे आप सुणलो तो कानां रा कीड़ा झड़ जावै। पण के मजाल आं भूंडी गाळां सूं कोई सगो सगी रूस्या होवै। साची बात तो आ कै गाळां अपणायत अर प्रीत प्यार में बधेपो करै, अे माड़ी कियां हो सकै ! ‘मा री गाळ, घी री नाळ’ आपणी ही तो बात है।


आज री हथाई रो सार ओ है, गाळां धपाऊ काडो, पण प्रेम अर हरख री। जे रीसां बळता काडस्यो तो गदीड़ का फदीड़ त्यार है। चेतै राखणो, काळजै लाग्योड़ा बोल आदमी कदेई नीं भुला सकै, इण सारू बस पूगतां किणी नै माड़ो नीं बोलणो, किरोध  री अगन मे बळती गाळ नीं काढणी। हां, जे कणाई भूलचूक सूं कोई माड़ी बात मूंडै सूं नीसर ई जावै तो स्याणप इणी में कै माफी मांगणै में लारै नीं सिरकणो, पग पकड़लो भलंई, देर नीं करणी ! बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बसो....।

     -रूंख भायला

Saturday, 16 August 2025

तीज तिंवारां बावड़ी...!


पुन्न बडेरां  रा  आछा, बरकत है बां  री रीतां  में

तिंवार बणाया इस्या इस्या गाया जावै जका गीतां में


राजी राखै रामजी ! आज बात आपणै तिंवारां री। जूनी कैबत है, ‘वार बड़ा का तिंवार !’ आपणै लोक में तिंवार सदांई मोटा मानीजै। मायतां री मानां तो मंगळ नै सवार नीं कराणी, नख नीं काटणा, बुध नै छोरी, अर थावर नै बीनणी ब्हीर नीं करणी, बिस्पत नै गाभा नीं धोणा, अदीत नै तुळछां पाणी नीं घाळणो पण जेे उण दिन तिंवार होवै तो सब नै छूट है। राग रंग, हांसी खुसी, पैरणो ओढणो, मेळा मगरिया, मीठै री मनवारां...... सो ई कीं तो लाधै तिंवारा में। साची बात तो आ, तिंवार आपणी जियाजूण में रंगत ल्यावै, जणाई तो आपां सै उडीकां तिंवारां नै।


हेत री हथाई में आपां लोक री अेक बात सूं आगै बधां, ‘तीज तिंवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर’। जूनी कैबत है आ, सावण री तीज जिण नै ‘हरियल तीज’ का पछै ‘छोटी तीज’ कहिजै, बठै सूं मरूधर में तिंवारां री सरूआत होवै, उण पछै सीरण सी बंध जावै। रखपुन्यु, सातूड़ी तीज, गोगा नम्यूं, रामदेवजी रो मेळो, जन्मास्टमी, दसे’रो, करवा चौथ, दियाळी, भाईदूज, रामरमी तंई सीरण टूटै ई कोनी। होळी रै पछै जद छोर्यां माटी री गौरमाता नै नदी नाडै  तिरा देवै तो उण रै पछै चार मईनां तंई कोई तीज तिंवार नीं आवै। कैवण रो भाव गौर माता रै डूबतां ई तिंवारा री सीरण टूट जावै। कम्पीटिसन रै पढेसर् यां नै चेतै दिराय दूं, कै अे सै बातां आरएएस री मुख्य परीक्षा में भी पूछेड़ी है, भळै पूछतां आरपीएससी नै कुण रोकै !


तो आगै बधां, रखपुन्यू रै तीन दिनां पछै आवती तीज रो तिंवार घणो चावो ठावो। मारवाड़ में आ तीज सैं सूं बड़ी गिणीजै, इण नै सातूड़ी तीज, कजळी तीज अर बूढी तीज ई कहीजै। इण मौकै भूंदेड़ी कणक, चिणा अर चावळां सूं सातू बणाइजै। जिकी छोरी रो रिस्तो होयोड़ो होवै, इण तीज पर सासरला उण रै सारू ‘सुनारो’ भेजै जिणमें टूमटाकी सूं लेय’र बणाव सिणगार रो सो सामान होवै। छोरी रै पीहरला ई उण रै सासरै सातू री बटड़्यां, फळीहार अर तीवळ तागो भेजै, कंवर साब सारू चावळ रै सातू रो सिणगार्योड़ो बारो न्यारो पुगाइजै। बास गवाड़ री लुगायां इण दिन निराहर रैय’र बरत करै। घरै लकड़ी रै पाटै पर पाणी री तळाई मांडै, खूब बणाव सिणगार करै, सिंझ्या तीज री कहाणी सुणै, तळाई रै पाणी में आपरा गैणा गांठी, सातू, फळ आद नै निरखै, रात नै चांद देख’र बरत खोलै। अमर सुहाग री कामना रो ओ उच्छब घणां लाडां कोडां मनाइजै। 


गोगै जी रै मेळै री कांई बात ! उत्तर भारत रो सैं सूं मोटो मेळो गोगामेड़ी में ई तो लागै जठै राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेष, उत्तरप्रदेष, उत्तराखंड तंई रा लाखूं जातरू आवै। गोगै नम्यू रै दिन आपणै देहाती घरां में ‘थेऊ’ राखीजै। थेऊ.....भूलग्या ! अरे भई, उण दिन घर रै दुधारू पसुवां रो दूध जमावै कोनी, बेचै कोनी, फगत घरां में बांटीजै का पछै उण री खीर बणाइजै, आ आस्था री बात है। सेई रा चास्कू गोगै नै मीठी सेई सारू उडीकबो करै। गांवां में तो अजेई आटै री सेई बणावणै रो खासा चलन है, अबै लुगायां घड़ै पर सेई बटणी छोड दी, मसीन आवण सूं बां रै ई कीं सोरपाई होगी। कैर रै कंटीलै ढे’रां पर  सूकती सेइयां सूं आवतै जावतै नै ठाह लाग जावै, गोगो आवण आळो है। गुड़ खांड रळा’र बणी अे सेइयां मैदै री ‘मैगी’ अर ‘नूडल्स’ नै कड़खै बिठाणै। नम्यू रै दिन लुगायां माटी रा गोगोजी अर केसरो कंवर बणाय’र बान्नै पळिंडै में राखै अर धोक देवै। गा रै गोबर सूं देई थानां में गोगैजी अर केसरैजी रा घुड़ला मांडिजै। बांरै सेई, खीर अर चिटकी रो भोग लगाइजै। रखपुन्यू री राखड़्यां गोगै जी रै ई चढाइजै। ‘हे गोगा पीर, थारी डोरड़्यां जेवड़्यां नै सांवटे राख्या, टाबरियां पर मैर कर् या। सांप सळीकै सूं बचावण री कामना ई तो करां गोगैजी महाराज सूं।


इण रै पछै आवतै रामसा पीर रै मेळै रो कैवणो ई के ! रूणीचै रा धणिया, अजमाल जी रा कंवरा, माता मैणादे रा लाल, राणी नेतल रा भरतार, म्हारो हेलो सुणो नीं रामापीर...। सड़कां पर बाजता डीजे, जिग्यां-जिग्यां लागता भंडारा, भंडारां में जीमता जातरू, नाचता, गावता, मोद मनावता रामदेवरै पूगै। हिंदू मिंयै री बधती बातां रै इण अबखै दौर में आपां सै ठम’र सोचां यार, गोगोजी, रामदेवजी पीरां दांई पूजीजै, देवता दांई धोकिजै, कोई जात-पांत रो भेद ई नीं, मेघवाळ सूं लेय’र बामण बाणिया, हिंदू, मियां, सरदार तकात......तो पछै बां रो धरम किस्यो...! म्हूं जाणूं, आपां गोगैजी रामदेवजी रै धरम नै ई मन सूं अंगेजल्यां तो ई राड मिट जावै।


तीज सूं सरू होई तिंवारां री आ सीरण ठमै ई कोनी। किरसन भगवान री जलमास्टमी रा आनंद कुण नीं लेवै। रामलीला अर दसे’रै रा रंग चौफेर चावा ठावा। दियाळी रा पछै लारै दिन ई कित्ता’क। तिंवारां री सिरमौर है दियाळी, उण दिन तो आखो देस ई जगमगा उठै। रामरमी रा सैंस्कार फेर और कठै लाधै ! तिंवारां री रंगत ई है जिण रै पाण मिनखा जियाजूण में प्रेम प्यार अर उजळा रंग सांचरै, रूसेड़ा भाई बेल्यां नै ई तिंवार रै मौकै मनाइजै।  फिल्मी दुनिया रा चावा ठावा राजस्थानी गीतकार भरत व्यास रो अेक दूहो चेतै आवै-


पुन्न बडेरां  रा  आछा, बरकत है बां  री रीतां  में

तिंवार बणाया इस्या इस्या गाया जावै जका गीतां में


आज री हथाई रो सार ओ है, कै तिंवारां रै मिस रास रंग, हांसी खुसी आपरी जियाजूण में बणी रैवै। बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो....।

     -रूंख भायला

Monday, 4 August 2025

कोई सीध पीवै तो दीजो ओळमो !


(भूंडी कॉमेडी करणियै ‘रीलवीरां’ नै अंतस रा ओळमा)


राजी राखै रामजी ! आज बात सोसल मीडिया पर चालती रीलां री, रील बणावणियै ‘रीलवीरां’ री। दुनिया रै कूणै कचूणां तंई जा पूगी फेसबुकिया संस्कृति में सै रातूं रात हिट होवणा चावै। बणावो रील, अर चढाद्यो ! पइसो लागै नै टक्को, आवै ना भावूं कक्को। जे पिलगी, तो सेलिब्रिटी बणग्या ! के आदमी के लुगाई, सै रै अबार अेक गूंग चढ रैयी है...। सोसल मीडिया रै समदर में माछल्यां दांई तिरती डूबती आछी अर माड़ी दोनूं रीलां लाधै। आछी रील जठै मिनख नै कीं सीख दिरावै, च्यार बात सिखावै तो माड़ी कई ताळ उणरी चेतना नै डाफाचूक सो कर देवै। कॉमेडी री रीलां रो कैवणो ई कांई ! कदेई हांसी आवै कदेई रोवणो, पण रील तो रील है।


आज ‘हेत री हथाई’ में बंतळ करस्यां राजस्थानी में बणती कॉमेडी रीलां अर बां रै रीलवीरां री। चेतै आयो कै उतराधै सींवाड़ै रै फेफाणै गांम में अेक चावा कथाकार होया है करणीदान बारहठ, बां लिख्यो -


‘जिंदगी में जित्ती स्याणप री दरकार होवै उण सूं थोड़ी भोत कमती सही, गैली गूंगी बातां भी आपरी निरवाळी ठौड़ राखै।’


बातड़ी साची है, हांसी मजाक अर गैली गूंगी बातां नीं होवै तो जियाजूण जाबक ई नीरस हो जावै। हांसणो भोत जरूरी है, कैबत है ‘हांस्यां हरि मिलै’ पण हांसणै अर मजाक में भी अेक अडेखण होवै, अेक पड़दो होया करै जिण सूं बात रो सत अर तत बण्यो रैवै। कीं काण कायदा तो होवै ई है हांसी अर मजाक रा, नीं पछै बा तो ग्यास गिणीजै, बाढो भलंई !


आप कैयस्यो, हांसी में क्यां रा काण कायदा ! मैं बूझूं, आपां बैन स्वासणी सूं हांसी मजाक करती बेळा सावचेती क्यूं राखां ? आपरै बापूजी सूं कित्तोक मखौल करां ? सीख देवणियै गुरूजी सूं आपां कद मजाक करां ? साची बात आ कै आपणा सैंस्कार है, रिस्तै में जे कोई मोटो लागतो होवै, तो उण सूं मखौल नीं करीजै, पगाणै बैठ’र उण रो माण करीजै। रिस्तां रा काण कायदा मरूधर मानवी सूं बेस्सी कुण जाणै ! आपां बेटी रै घर रो पाणी तक नीं पीवां, जंवाई नै माथै रो मोड़ मानां। बीनणी नै ई जी कारो देय’र बुलावण रा सैंस्कार है अठै। रामजी रै इण देस में गुरू रो रिस्तो मायतां सूं ई पैली अर देवर भौजाई रो रिस्तो मा बेटै बरोबर कथीज्यो है। साळा तो सांपां नै ई प्यारा होवै, इसी कैबतां आपणीं संस्कृति में ई लाधै।


पण सोसल मीडिया रै समदर में थोड़ा ठम’र सोचां दिखाण, राजस्थानी रा घणकरा रीलवीर तो अबार फेसबुकिया मंडी में मरजादा रै आं रिस्तां नै गाजर मूळी दांई तुलावण लाग रैया है, जियां आपणी संस्कृति नै बिडरूप करणै रो सो ठेको आं ई लियोड़ो होवै। मा बेटी होवै, भलंई सासु बीनणी, काको होवै भांवू बाबो, दादै दादी नै ई को बक्स्या नीं आं गैलसप्पां,  सगळां नै रीलां में लब्बड़धक्कै लेय’र रेल बणा दी बापड़ां री। भुवा फूंफां रै लारै तो इस्या लाग्या जाणै अे दोनूं जीव गाडी में आयोड़ा होवै। भुवा बापड़ी सदांई हांती री धिराणी गिणीजी, उण रै बिना थारै झुगला टोपी ई कुण लावतो ! पण भुवा नै तो घर री विलेन बणा दियो आं रीलवीरां...!


बेटी रा बापो, फूंफै नै तो बक्सता, समठणी में इण सागी फूंफै नै धरम जायो पूत कैय'र बतळायो हो थारै दादै। जिण दिन बो थारै घरां ढुक्यो, कित्ता कित्ता छेछुवा कर् यि होसी थारै घरआळां ! पण भोळा  भाई आज सागी रिस्तै री मरजादा भूलग्या। जीजै साळी री थोड़ी घणी मजाक तो होवै ई है, पण थारी रीलां में तो सासुवां ई जवायां अर फूंफैजी रै लारै पड़गी .....। आं रीलां रै चक्कर में चेतै ई नीं रैयो, कै आपणां टाबर तो रील देखसी बिस्योई ब्यौहार करसी रिस्तां साथै। सोचो दिखाण, काण कायदां री ठौड़ थे के सीखा रैया हो आपणै टाबरां नै ! कित्ता भूंडा लागसी जद थारा टाबर घर आयोड़ै थारै बनेई नै कैयसी, ''ओ फूंफा ! टिकज्या, घणी हैनतैन ना कर...राफ खिंडा द् यूंला !''


अेक दूजै री जातां बखाणता अे रीलवीर दारू नै सोमरस दांई मान बैठ्या है, बान्नै लखावै कै जद तंई रील में ठेकै अर दारू री बात नीं आवै, कस बैठै ई कोनी। स्याणो, कस बैठै कियां, रील में तो थे टिल्ला खावतां बगो अर भावै थान्नै परणेत ! कोई गैलो ई टोरसी थारै लारै आपरी डीकरी, उण रा भाग तो फूट्या ई जाणो ! भूंडा अर दोगला अरथावूू संवाद करतै आं रीलवीरां नै फॉलोवर्स  रै सिवाय कीं दीसै ई नीं, भोळपणै में अे आपणी संस्कृति, परम्परा, काण कायदा अर आपोआप रो कित्तो कित्तो नुकसान कर रैया है, बान्नै ठाह ई कोनी। 


अेक बात और, भाजानाठी में गबळ-गबळ बोलतां जे कदेई ऊकचूक होगी तो गळ में आई जाण्या...! जकां रै आई है, बांन्नै बकार’र देखल्यो भलंई.., बात 'सर धड़ से जुदा' तंई जा पूगी ही।


आं रीलवीरां में छोरा तो छोरा, छोरियां ई घाट को घालै नीं ! सावण री सिंझ्यां में जियां लोटियै रै चौफेर बरसाती फिड़कला भुंवै, आं सागी हाल कर राख्यो है। कोई दारू रै ठेकै सूं बोतल लावती दीसै तो कोई  भूंडा सैण कर कर रिझावणो चावै। आंख्यां रा टमरका करती कई  अधनागी बायल्यां तो खुद नै सेरणी न्यारी बतावै ! जद कै बै जाणै, पब्लिक आन्नै लूंकड़ी जित्तो ई नीं गिणै। पण आन्नै तो रील पर भीड़ दीसणी चाइजै, फॉलोवर्स चाइजै। बाई सा ! आपरा डोळ दिखास्यो जणा लोगड़ा तो मजा लेई सी, क्यूं पोत देवो आपरा, आपरै मायतां रां...!


आज री हथाई में इस्यै सगळै रीलवीरां नै रूंख भायलै रो ओ अंतस ओळमो है, कीं तो चेतो यार ! थे कैस्यो, हांसी मजाक सुहावै कोनी भाईजी थान्नै। तो सुणो, हांसण सारू गूंगपणो नीं, बात चाइजै, लारै सूं 'लाफिंग ट्रेक' दियां हांसी कद आवै। हांसण सारू आपणै कन्नै ‘अभनै रा किस्सा’ है, मनोहर शर्मा री ‘हंसोकड़ लोक कथावां’ है, सुदामा जी रो जातरा वृतांत है, बिज्जी री ‘बातां री फुलवारी’ है, दूजै कान्नी थां भायलां री कॉमेडी ! दोनां नै ताकड़ी तोलो दिखाण, मतैई ठाह लाग जासी। रील बणावणियै  सगळा भोळा स्याणां नै आ बात चेतै राखणी चाइजै कै आपणी संस्कृति अर सैंस्कारां री जड़ां भोत ऊंडी है, उण री अेक मरजादा है। आज घड़ी आखी दुनिया में आपणो जीमण, पैराव, बोलीचाली अर काण कायदा सराइजैै, जिण सूं राजस्थानियां नै निरवाळी पिछाण मिलै। सेठिया जी रो अेक सांतरो दूहो है-


थे मुरधर रा बाजस्यो बसो कठैई जाय

सैनाणी कोनी छिपै बिरथा करो उपाय


मोहन आलोक ई लिख्यो है -


भासा गई अर गया भेस ई बाकी रैयगी सांस

घूमरी री गै’री घमरोळो बणगी डिस्को डांस

पिछवा चाली पून इसी सैनाण बदळग्या

धर साधू रो भेस ध्यानिया गांम नै छलग्या


बात रो सार ओ है, आपां  सगळां ई आंख, कान भेळै डावी हथाळी मोबाइल रै अडाणै मेल दी है, थोड़ा'क दिनां में अंतस चेतना ई खत्म होई जाणो। फेरूं ई चेतावूं कै जिण देस अर संस्कृति रै मांय आपणां पेट पळै, आपां री पीढ्यां पोखीजै उण नै बिडरूप करणै रो कोई काम नीं करणो। हांसण हंसाण सारू  खूब रीलां सिरजो, पण बणावती बेळा आपरी जिम्मेदारी ना भूलो !


बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो....।

     -रूंख भायला






Saturday, 12 July 2025

राजस्थानी मुहालणी

हथाई में आज बात करस्यां राजस्थानी मुहालणी री। इण नै केई जिग्यां मुहारणी भी कहीजै। घर रा बूढा बडेरा आपनै कई मुहालणी बता सकै। कांई है आ मुहालणी अर क्यूं महताउ है ? 

जूनै बगत में इस्कूलां में टाबरां नै बिलाठी अर कक्को, जिण नै हिंदी में स्वर अर व्यंजन कैवै, रो ग्यान करावतां थकां हरेक आखर री मुहालणी रटाइजती। मुहालणी उण आखर रो वाक्यां में प्रयोग हो जिको टाबरां रै चेतै रैवतो। वाक्यां रो ओ प्रयोग भोत सरल अर मजेदार होवतो जिणसूं टाबर अेक मनचींती लैण सूं उण आखर नै सावळ पिछाण लेवता। गरूजी मुहालणी बोलता अर टाबर बांरै लार-लारै उण नै बोलता अर रटता। समची वर्णमाळा इण ढाळै टाबरां नै भोत सोरफाई सूं याद हो जावती। इण भणाई नै ‘गुणी’ केवता। लिखणै सूं पैली उण नै याद करणो भणाई रो पैलो नेम हो। पण माडी बात देखो, आज री भणाई में आखर ग्यान री आ सांतरी तजबीज है ई कोनी। हिंदी में तो आज तंई इस्यो काम नीं हो सक्यो।

मुहालणी रा उदाहरण देखो-


अ-आ = आईड़ा-आइडा दो भाइडा

ए = एको एकलो

ओ= ओ बैठो ओठियो

औ = दो-दो मात औरणियों


२- कक्किये री मुहाळणीं / मुहारणीं

========================


क = कक्कियो कोड रो

ख् यानी क किसो ? क कोड़ आल़ो/ कोड़ में लागे जाको ! ,

ख = खख्खो खाजूलो

ग=गग्गा गोरी गाय

घ=घघ्घा घाट पिलाने जाय

च= चिड़े चिडी री चूंच

छ =छछिया पिचिया पोटला

ज =जजजा जेर बाणियों

झ=झझ्झा झाड की लाकडी

ट=टट्टिया टट्टिया दो पोड़ी

ठ=ठठिया ठाकर गांठडी

ड= डडडा कूकर पूंछडी

ढ = ढढढा ढेर बाणियों

ण = राणो ताणे तेल / राणों ताणे तीन लाकडी ख् हिंदी में तो श्ण श् खाली है ,

त=तत्तो तत्तूतियो कान को

थ = थथ्थियो थावर

द= ददियो दीवटो

ध= धध्धो धाणक छोडयां जाए

न= आगे नन्नो भाज्यां जाए

प = पप्पा पटकी पाटकी

फ = फफ्फो फालिंगो

ब= बब्बा बेंगण बाड़ी रा / बब्बा बाड़ी बैंगणियाँ

भ = भभ्भा भाभजी भटारको / भभ्भा मूंछ कटारकी

म= मम्मा ले कसारकी

य = यय्या यय्या पाटलो

र = र रा रो रींकलो

ल = लल्ला लल्ला लापसी

व= वव्वा वैंगण वासदे

श =शाश्शी सौलंकी

ष= षषषो खांडको

ह = ह हा हा हिन्दोली / ह हा हां बोल़ो

ः = अड़े तड़े दो बिन्दोली


हथाई सूं चैटिंग


(लोक री आर्ट ऑफ लिविंग)

रूंख भायला चौक. चौक माथै पाटो. पाटै पर हथाई. छड़छड़ीली सी चैटिंग आ ढुकी. इण बतरस रो आनंद पाठकां सारू-

चैटिंग: ‘कियां हो ?’

हथाई: ‘कियां होवणो हो’

चैटिंग: ‘म्हंू तो बूझ्यो ई है।’

हथाई: ‘तो म्हूं उथळो दियो ई है‘

चैटिंग: ‘कदे तो सावळ बोल्या करो !’

हथाई: ‘थूं ई कदे सावळ बूझ्या कर’

चैटिंग: ‘हालचाल बूझणो कांई कावळ है के ?’

हथाई: ‘सो क्यूं जाणता थकां बूझणै में कांई स्याणप’

चैटिंग: ‘चलो छोड़ो, लीव इट, कांई चल्लै ?’

हथाई: ‘गोडा नै छोड सो कीं चल्लैै’

चैटिंग: ‘ऊं हूं........म्हारो मतलब है, अबार आप कांई कर रैया हो ?’

हथाई: ‘ग्यास बाढां’

चैटिंग: ‘म्है ग्वार तो सुण्यो है, आ ‘ग्यास’ कांई होवै?’

हथाई: ‘इत्ती ताळ सूं थूं जिकी म्हां साथै बाढै’

चैटिंग: ‘पण बाढण सारू तो चक्कू का तलवार चाइजै, बै कठै ?’

हथाई: ‘मूंडै में लपलपावै’

चैटिंग: ‘नां ओ, लाई जीभ रो कांई दोस ?’ 

हथाई: ‘जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विस होय, 

       कागा किण रो धन हरै, कोयल किण नै देय’

चैटिंग: ‘आ जबरी ठरकाई है थे !’

हथाई: ‘ठरकाइजै तो मांचै री ईस का पछै पागो, बात तो सरकाइजै है’

चैटिंग: ‘कीं दो-चार और सरकावो नीं’ 

हथाई: ‘रैवण दे, सरकायां थारै चौसरा चाल जासी’

चैटिंग: ‘ओ हो, म्हूं बियां सरकावण री बात नीं करी।’

हथाई: ‘पण म्हूं तो बियां ई करी’

चैटिंग: ‘थे रिसाणा बेगा हो जावो’

हथाई: ‘थूं घोचो करै ई क्यूं’

चैटिंग: ‘म्हूं तो बात कर रैयी हूं’

हथाई: ‘बात स्यार थूं जाणै ई कोनी’

चैटिंग: ‘बात पछै और किसी’क होवै ?’

हथाई: ‘बात में तत होवणो चाइजै, सार होवणो चाइजै’

चैटिंग: ‘बो कियां आवै ?’

हथाई: ‘पटीड़ खायां’

चैटिंग: ‘थे सदांई कूटीजणै कुटाणै री बात क्यूं करो ?’

हथाई: ‘मिनख अर अदरक कुटीज्यां ई झरै’

चैटिंग: ‘तो पछै कूट खाणी सरू करां’

हथाई: ‘करो, कुण पालै है !’

चैटिंग: ‘म्हारी बातां में तत तो आ जिसी के ?’

हथाई: ‘थारो तो आयोड़ो ई पड़्यो है’

चैटिंग: ‘बो कियां ?’

हथाई: ‘थूं फगत कूड़ अर धूड़ रो ब्योपार करै’

चैटिंग: ‘कांई मतलब ? म्हूं कूड़ बोलूं ?’

हथाई: ‘थारै हियै नै बूझ....थूं बोलै कठैई लाधै कठैई, कैवै की,ं करै कीं’

चैटिंग: ‘इयां थोड़ो घणो तो कैवणो ई पड़ै’

हथाई: ‘कोई अड़ी है के’

चैटिंग: ‘समचो सांच बोल्यां लोग रिसाणा हो जावै’

हथाई: ‘पछै थारो नांव ‘लपोसियो’ राख लै’

चैटिंग: ‘हं...हं...आ म्हानै गाळ है’

हथाई: ‘अं....है....थारी दाळ में बाळ है’

चैटिंग: ‘थे सावळ बताओ, बात में वजन कियां ल्यावां’

हथाई: ‘बात गोडां को घड़ीजै नीं, मोढां ढोवणी पड़ै’

चैटिंग: ‘ढो लेस्यां, कदास पार पड़ै ई तो....!’

हथाई: ‘पैली कूड़ छोड़नो पड़सी’

चैटिंग: ‘बो कोनी छूटै’

हथाई: ‘पछै अड़ी कांई है, बगाओ जित्ती बगाइजै’

चैटिंग: ‘लोगां लपेटणी बंद करदी’

हथाई: ‘लटाई भरीजगी व्हैला, दूजा सोधो, कमी कठै’

चैटिंग: ‘सोधण ई तो आयी....’

हथाई: ‘झोटै आळै घरै लस्सी कोनी लाधै लाडी’

चैटिंग: ‘हीं...हीं...माड़ी होयी आ तो....’

हथाई: ‘हथाई सामीं तो पोत उघड़्यां ई सरै’। 

-रूंख भायला


माता सीता की अग्निपरीक्षा का सच - 2 (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)

(गतांक से आगे) आगे हनुमान् और सीता के बीच बड़ा प्रिय और वात्सल्य से भरा संवाद होता है। फिर हनुमान् कहते हैं कि वे सीता को क्लेश पहुंचानेवाली...

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