‘दुनियादारी औगुणगारी, ज्यांनै भेद मत दीजै अे
हेली म्हारी निरभय रैहीजै अे....!’
राजी राखै रामजी ! आज बात कबीर री, कबीर जातरा री। ‘के बात ! आज तो सत्संग में जाय’र आयोड़ा दीसो।’ सत्संग तो भई मन रो होवै, जावण री दरकार ई कठै ! पण बात तो थारी सांची, कालै काळू जावणो होयो, काळू.....बो ई हथाईगारां रो गांम, लूणकरणसर तैसील में...। बठै कबीर जातरा आयोड़ी, ‘राजस्थान कबीर जातरा’ उण सत्संग भेळै खूब हथाई होयी। सोचूं, आज इणी सत्संग रै मिस ‘हेत री हथाई’ नै आगै बधावां।
कुण है ओ कबीर अर कांई है कबीर जातरा ? इण रो उथळो देवूं, उण सूं पैली जाणनो जरूरी, कै भोळी स्याणी अर गैली गूंगी बातां बिच्चाळै आपां नै घड़ी दो घड़ी उण परम तत रो चेतो करणो चाहिजै, जिण सूं आ जगती चालै, जिण री ध्यावना नै आपां सत्संग कैवां। न्यारै-न्यारै धरमां में उण परमात्मा नै आपरै हिसाब सूं अरथाइज्यो है, कठैई भगवान है तो कठैई अल्ला, कठैई जीसस है तो कठैई वाहेगुरू। उण री ध्यावना रा मारग ई घणाई, कठैई मुरतपूजा है तो कठैई दूजा पंपाळ...। कबीर परम तत री साधना रै इणी मारग रो अेक जातरी है, पण उण री बातां सैं सूं न्यारी, जाबक ई अलायदी, बो आपरी सबद बाणी में इसी सीधीसट सरकावै, कान खूस’र हाथ में आ जावै ! देखो दिखाण-
कबीरा आप ठगाइये ओर न ठगिये कोय
आप ठगे सुख होत है और ठगे दुख होय
जोगी गोरख-गोरख करै, हिंद राम नै उखराई
मुसलमान कहे इक खुदाई, कबीरा को स्वामी घट-घट रहियो समाई।
कबीर रै बगत देस में निरगुण अर सगुण भक्ति भाव रा दो मत चालता। कबीर निरगुण धारा रा कवि गिणीजै, रामानंद बां रा गुरू हा। कबीर किणी इस्कूल में नीं गया पण बां री साखी, सबद, रमैनी अर बाणी आज जगतपोसाळां में भणाइजै, पीएचडी अर दूजा सोध ई होवै कबीर पर। मजै री बात कबीर आपरी जियाजूण में कोई पोथी नीं छपाई, बै आपरै कंठां सूं लोक रै कठां नै सबद बाणी सूंपता रैया, जिकी इत्ती जगचावी होई, कै आज लोक री हेमाणी गिणीजै। कबीरपंथी लोग आं सबद रो संग्रै जिण नै बै ‘बीजक’ कैवै, आपरै साथै राखै। कबीर रा दूहा आखी दुनिया में गाइजै। गुरू री महिमा रो बखाण जिण ढंग सूं कबीर करै, उण सूं बां रा तेवर ठाह पड़ै-
गुरू गोविंद दोऊं खड़्या काके लागूं पाय
बलिहारी गुरू आपकी गोविंद दियो बताय
कबीर रै जलम बाबत भोत सी बातां है। लोक में जिकी बात चलै, उण रै मुजब 1398 सूं 1440 इस्वी रै बिच्चाळै कासी रै नेड़ै-तेड़ै कबीर रो जलम होयो। कहिजै, अेक विधवा बामणी रै पेट सूं कबीर जलम्या, पण समाजू भौ रै कारणै बण नान्है सै टाबर नै जलमते ई तज दियो। लहरतारा नांव री नाडी री पाळ पर अेक बेजगारै (जुलाहा) नीरू अर उण री जोड़ायत नीमा नै बो टाबरियो लाध्यो जिण नै बां पाळ्यो पोख्यो। कबीर री जोड़ायत रो नांव लोई बताइजै, जिण सूं दो टाबर कमाल अर कमाली होया। लोई नै सबद सुणावता थकां कबीर अेक सबद कैयो है-
‘कहे कबीर सुनहू रे लोई, हरि बिन राखनहार नै कोई’
पन्द्रवैं सइकै में जद फारसी अर संस्कृत भासावां लिखणै अर बांचण में चालती उण बगत कबीर लोक भासा में आपरी बात कैयी जिकी जगचावी बणी। बां री कविता री भासा में हिंदी, खड़ी बोली, पंजाबी, भोजपुरी, उर्दू, फारसी अर राजस्थानी रो मेळ लाधै। लोक री भासा होवण सूं ई कबीर जनता रै चित्त चढ्या। दूहो कैवण में कबीर नै खासा महारत ही, बां रा भजन ई खासा चावा होया है। दो लैणा री बात में कबीर जियाजूण री सीख भोत सांतरै ढंग सूं देवै। बां रै दूहां री बानगी देखो-
तूं तूं करता तूं भया, मुझ में रही न हूं
वारी फेरी बलि गई, जित देखां तित तूं
सांच बरोबर तप नहीं झूठ बराबर पाप
जाके हिरदै सांच है ताकै हिरदै आप
कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाऊं
गळै राम की जेवड़ी, जित खैंचै तित जाऊं
काबा फिर कासी भया, राम भया रहीम
मोठ चून मैदा भया, बैठ कबीरा जीम
माटी कहै कुम्हार से, तू क्यूं रौंदे मोय
इक दिन ऐसा आवेगा, मैं रौंदूगी तोय
लोग अेसे बावरे, पाहन पूजन जाई
घर की चाकिया काहे न पूजे, जेही का पीसा खाई
मूरतपूजा रै विरोध में कबीर रा सुर घणा तीखा, बै भळै कैवै-
पाहन पूजै हरि मिलै, तो मैं पूजूं पहार
या तो ये चाकी भली, पीस खाय संसार
यूपी में मगहर नांव री जिग्यां है, जठै कबीर नै सौ बरस पूग्या। मगहर में आज ई कबीर उच्छब मनाइजै। कबीर बाबत भोत कीं कैयो जा सकै, बां री सबद साधना निरवाळी दीठ राखै जठै गुरू री महिमा अर परमतत रो बखाण है। कबीर बिना किणी छळछंद अर पंपाळ रै जियाजूण रो सांच कैय देवै, ‘चदरिया झीणी रे झीणी, राम नाम रसभीनी/चादर ओढ संका मत करियो, दो दिन तुमको दिनी....।’ बात लाम्बी हो जासी, फेर कदेई सही!
पण कीं बात कबीर जातरा उच्छब री तो कर लेवां, नीं पछै थे कैवता ई देर नीं लगावो, ‘बेटो, गोळ-गोळ बात करै, जातरा बाबत तो बतावै ई कोनी !’ राजस्थान कबीर जातरा’ लोकरंग रो अेक न्यारो निरवाळो उच्छब है जिण में आखै देस सूं भगती अर सूफी संतां री बाणी गावणिया लोकगायक, संगीतकार अर लिखारा गांम-गांम घूम’र अेक जाजम पर कबीर बाणी अर गीत-राग सूं रंग लगावै। इण जातरा री सरूआत 2012 में लोकायन संस्थान, बीकानेर कान्नी सूं करीजी, जिण नै समचै भारत में लोक संगीत उच्छब री पिछाण मिली। इण जातरा में कबीर, मीरा, बुल्लेशाह, फरीद, शाह लतीफ भेळै दूजा लोक भजन अर बाणी गाइजै। कबीर बाणी रा चावा-ठावा गायक पदमश्री काळूराम बामणिया, प्रहलादसिंह टिपणिया, शबनम, विरमानी, महेशाराम, रमाकुमारी आद भोत सा नांव है जिका इण जातरा में रंग लगा देवै।
पांच दिनां री आ जातरा अबकाळै 1 अक्टूबर 2025 रै दिन बीकानेर सूं सरू होई, जिकी थळी रै काळासर, छत्तरगढ़ अर काळू गांम में रंग लगावती कतरियासर में जाय’र पूरी होयी। काळू में काळका माता रो मोटो मिंदर है, जिण री खासा मानता है, उणी रै सामीं चौगान में लोकरंग रो ओ उच्छब मांडीज्यो। सिंझ्या आठ बजे सरू होयै इण उच्छब में देस दुनिया रै कबीर जातरूवां भेळै गांम ई नीं, आखै बीकानेर सूं लोगबाग आयोड़ा। भोत सांतरै अर कलात्मक ढंग सूं जचायोड़ै स्टेज माथै बाजतै साउंड रो कैवणो ई कांई ! रंग-बिरंगी चिलकती लाइटां अर मद्धम संगीत बिच्चाळै कबीर बाणी सूं रंग सो लागग्यो। आभै छाई चांदणी रात में चावा-ठावा गायक वेदांत भारद्वाज रो गीत ‘हम परेदसी पंछी बाबा, आणी देस रा नांही..’, रमाकुमारी रो ‘थारो राम हिड़दै मांय, बाहर क्यूं भटकै...’ महेशाराम रो ’कियां भेजां कूंकूं पतरी...’ काळूराम बामणिया रो ‘कद आओजी द्वारका रा वासी...’ केलम दरिया ‘पिया की सुरत देख मग्न भई...’ अर कबीर कैफै, मुम्बई रो ‘घट-घट में बिराजै....’ री प्रस्तुत्यां खासा सराइजी। देर रात तंई चाली इण सत्संग में मन इस्यो रम्यो कै बगत रो ठाह ई नीं लाग्यो। मन मोवणी बातां में बगत कद देखीजै ! साची बूझो तो इण ढाळै री जातरा आपणी संस्कृति अर लोकरंगां नै पीढी दर पीढी आगै बधावण रो काम करै। लखदाद है भई !
आज रै शहरी माहौल में जठै कानफोड़ू संगीत री संस्कृति फळाप रैयी है, बठै कबीर जातरा रै सत्संग नै सुणनो अेक न्यारो अनुभव है, मौको लागै तो आपनै ई सुणनो चाइजै, यू टयूब माथै आप इण उच्छब रा विडियो ई देख सको। बात तो आ भी है, आगलै बरस कबीर जातरा जापान जावैली, जाइजै तो जाय’र आया दिखाण !
आज री हथाई रो सार ओ है, कै सूंसाट करतै जियाजूण में बगत काड’र आपां नै घड़ी दो घड़ी सत्संग में जावणो चाइजै, कांई ठाह आपणी हेली कीं निरमळ ई होवै तो....! बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बसो....।
-रूंख भायला
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