राजस्थान सरकार सूरतगढ़ जिला बनाओ आंदोलन के प्रति कितनी गंभीर और संवेदनशील है, इसका अंदाजा पुलिस प्रशासन की कार्यशैली से लगाया जा सकता है. रात्रि 3:00 बजे 7 दिन से आमरण अनशन पर बैठे उमेश मुद्गल और विष्णु तरड़ को पुलिस ने उठाकर श्रीगंगानगर चिकित्सालय रेफर करवा दिया। वहां किसी भी प्रकार की व्यवस्था ना होने के कारण वे दोनों अकेले चिकित्सालय में बैठे रहे जहां किसी ने उनकी सुध नहीं ली. यहां तक कि उनकी देखरेख के लिए कोई पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. ऐसी परिस्थिति में थक हार कर संघर्ष के दोनों योद्धा बस में बैठकर सूरतगढ़ लौट रहे हैं.
क्या पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि आमरण अनशन पर बैठे संघर्षशील युवाओं की गंभीरता से देखरेख करते ? खुदा ना खाश्ता आठ दिनों से भूखे बैठे इन नौजवानों को कुछ हो जाता तो किसकी जवाबदेही होती ? जिला बनाओ आयोजन समिति की कार्यशैली भी सवालों के कटघरे में है. रात्रि जब इन दोनों को पुलिस गंगानगर रेफर कर रही थी तब समिति का कोई सदस्य वहां उपस्थित नहीं था. ना ही किसी ने इन दोनों योद्धाओं के साथ श्रीगंगानगर जाना मुनासिब समझा. कम से कम अब आयोजन समिति को इस गंभीर मामले पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए और नई रणनीति बनानी चाहिए.
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