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Wednesday 29 March 2023

राइट टू हेल्थ कानून पर आक्रोशित है डॉक्टर्स, सरकार करे पुनर्विचार


राजस्थान में चिकित्सक और सरकार राइट टू हेल्थ बिल को लेकर आमने-सामने हैं. डॉक्टरों की हड़ताल से आम आदमी की परेशानी बढ़ती ही जा रही है लेकिन चुनावी साल के मद्देनजर सरकार सुनने को ही तैयार नहीं है. इस बिल में अनेक ऐसे प्रावधान हैं जिनकी पालना हो पाना संभव ही नहीं है. इन प्रावधानों के चलते चिकित्सा व्यवस्था में विवाद और लड़ाई झगड़े बढ़ने तय हैं. एक ओर जहां सरकार के मंत्री चिकित्सकों को कसाई बता रहे हैं वहीं दूसरी और आरटीएच के नाम पर जनता को बेवकूफ बना कर वाहवाही लूट रहे हैं.


आईएमए की सूरतगढ़ शाखा ने कल इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी भावनाएं और परेशानियां लोगों के सामने रखी. वरिष्ठ चिकित्सकों ने इस कानून को लेकर अनेक शंकाएं व्यक्त की और सरकार से यह कानून वापस लेने की मांग की. आइए, इस बिल और विवाद को समझने की कोशिश करते हैं.

राइट टू हेल्थ (RTH) बिल में प्रावधान है कि कोई भी हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इलाज के लिए मना नहीं कर सकता है। इमरजेंसी में आए मरीज का सबसे पहले इलाज करना होगा। ये बिल कानून बनने के बाद बिना किसी तरह का पैसा डिपॉजिट किए ही मरीज को पूरा इलाज मिल सकेगा। एक्ट के बाद डॉक्टर या प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज को भर्ती करने या उसका इलाज करने से मना नहीं कर सकेंगे। ये कानून सरकारी के साथ ही निजी अस्पतालों और हेल्थ केयर सेंटर पर भी लागू होगा।

'इमरजेंसी' परिभाषित में होना सबसे बड़ा विवाद

सबसे बड़ा विवाद 'इमरजेंसी' शब्द को लेकर है। डॉक्टर्स की चिंता है कि इमरजेंसी को परिभाषित नहीं किया गया है। इमरजेंसी के नाम पर कोई भी मरीज या उसका परिजन किसी भी प्राइवेट हॉस्पिटल में आकर मुफ्त इलाज की मांग कर सकता है। इससे मरीज, उनके परिजनों से अस्पतालों के स्टाफ और डॉक्टर्स के बीच विवाद बढ़ेंगे। पुलिस एफआईआर, कोर्ट-कचहरी मुकदमेबाजी और सरकारी कार्रवाई में डॉक्टर्स और अस्पताल उलझ कर रह जाएंगे।

ये हैं बिल के प्रावधान

- हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इमरजेंसी में फ्री इलाज उपलब्ध करवाएंगे।

- मरीज या उसके परिजनों से कोई फीस नहीं ली जाएगी।

- इलाज के बाद ही मरीज या उसके परिजनों से फीस ली जा सकती है।

- अगर मरीज या परिजन फीस देने में असमर्थ रहते हैं, तो बकाया फीस और चार्जेज़ सरकार चुकाएगी।

- मरीज को किसी दूसरे अस्पताल में भी शिफ्ट किया जा सकता है।

- इलाज करने से इनकार किया, तो अस्पताल पर जुर्माना लगेगा

- मरीज का इलाज करने से इनकार करने पर पहली बार में 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा, दूसरी बार मना करने पर जुर्माना 25 हजार रुपये वसूला जाएगा। 

चिकित्सकों का पक्ष जानना भी जरूरी

कानून वापस नहीं होने तक आंदोलन और विरोध प्रदर्शन पर डॉक्टर्स अड़े हैं। चिकित्सकों का आरोप है कि यह बिल लागू होने पर प्राइवेट अस्पतालों में भी सरकारी अस्पतालों जैसी अव्यवस्थाएं और भीड़ बढ़ जाएगी। निजी अस्पतालों के कामकाज और उपचार में सरकार का सीधे दखल बढ़ जाएगा।

डॉक्टर्स का आरोप है कि इमरजेंसी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। कोई भी मरीज या उसका परिजन इमरजेंसी की बात कहकर किसी भी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंच जाएगा। फ्री इलाज करने की बात करेगा।

इससे अस्पताल, डॉक्टर्स और मरीज के परिजनों में झगड़े और टकराव बढ़ेंगे। कोर्ट-कचहरी और मुकदमेबाजी आम हो जाएगी। इसलिए बिल को वापस लिया जाए।

RTH लागू होने पर हर मरीज के इलाज की गारंटी डॉक्टर की हो जाएगी। कोई गंभीर मरीज अस्पताल पहुंचा और अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, तो स्वाभाविक रूप से मरीज को बड़े या संबंधित स्पेशलाइजेशन वाले अस्पताल में रेफर करना पड़ेगा।रेफर के दौरान बड़े अस्पताल पहुंचने से पहले अगर मरीज की मौत हो गई, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा और उसकी गारंटी कौन लेगा ?

सार यह है कि बंद एसी कमरों में बैठकर ब्यूरोक्रेट्स द्वारा बनाया गया यह कानून राहत देने की बजाय परेशानियां खड़ा करता दिखाई दे रहा है. यदि सरकार वाकई राइट टू हेल्थ के प्रति गंभीर है तो उसे देश के प्रधानमंत्री की तरह एक कदम आगे बढ़कर इस कानून को वापस लेना चाहिए. अशोक गहलोत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए लाई गई चिरंजीवी योजना एक बेहतरीन योजना है, उसकी खामियां दूर कर बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था बनाई जा सकती है. 

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