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Friday, 11 December 2020

शहर में नरभक्षी की दस्तक !


- हाईवे पर हर घड़ी मंडरा रही मौत
- सैकड़ों जिंदगियां लापरवाही की भेंट
- अखरती जनप्रतिनिधियों की चुप्पी


(कॉटनसिटी लाइव). सुनने में शायद अजीब लगे लेकिन शहर में दबे पांव एक नरभक्षी की एंट्री हुई है जिसकी वजह से आमजन की जिंदगी सांसत में आ गई है. मजे की बात है कि यह नरभक्षी बेखौफ हो कर अपना काम करने में व्यस्त है. आप कहेंगे 'क्या मजाक है !'

यदि यकीन न हो तो इंदिरा सर्किल से गवर्नमेंट कॉलेज तक दुपहिया या टैम्पो पर सफर कर के देख लीजिए. जी हां, हाईवे निर्माण ठेकों की नरभक्षी कंपनी 'एमबीएल' ने धान मंडी की पश्चिम दिशा में वर्षों से लटक रहे ओवरब्रिज बनाने का काम शुरू किया है. इस कंपनी की घोर लापरवाही के चलते बीकानेर हाईवे पर सैकड़ों बेगुनाहों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. हाईवे निर्माण में सारे सुरक्षा मानक ताक पर रखने वाली इस कंपनी की वजह से पिछले 4 सालों में अनेक सड़क दुर्घटनाएं हुई है. अपने स्वार्थों के लिए आमजन की जिंदगी को खतरे में डालने से यह कंपनी कभी नहीं चूकी. यही कारण है कि 'एमबीएल' को नरभक्षी कंपनी कहा जाने लगा है.


शहर में पसरा हुआ खतरा



इन दिनों हाईवे पर ऑवरब्रिज निर्माण का काम चल रहा है. इस निर्माण को शुरू करने से पहले ठेकेदार द्वारा हाईवे के दाएं और बाएं सर्विसलेन का निर्माण किया जाना था. लेकिन एमबीएल कंपनी द्वारा हाईवे की उत्तरी दिशा वाली आधी अधूरी सर्विस लेन बनाकर ही उस पर पूरा ट्रैफिक शिफ्ट कर दिया गया और ब्रिज का काम चालू कर दिया गया. नतीजा यह हुआ कि इस व्यस्ततम हाईवे से गुजरने वाला जम्मू कश्मीर, हिमाचल और पंजाब सहित सीमांत अंचल का सारा ट्रैफिक इंदिरा सर्किल और उप कारागृह के बीच महज 6 मीटर चौड़ी सड़क पर डाल दिया गया है. इस ट्रैफिक में भी ओवरलोडेड ट्रोले, साइलो, पराली की झाल भरे ट्रकों और ट्रैक्टर ट्रॉलियों की भरमार रहती है. जिनके कारण सर्विस लेन पर चल रहा पूरा ट्रैफिक अस्त व्यस्त हो जाता है. सर्विस लेन के एक तरफ 5 फुट गहरा नाला है तो धान मंडी से सटी दीवार की तरफ 5 फुट की ढलान है. सर्विस लेन से जब दो बड़े वाहन ऑवरटेक करते हैं तो साइड में चल रहे दुपहिया वाहन चालकों या टैम्पो का भगवान ही मालिक होता है क्योंकि लेन के दोनों तरफ किसी तरह के सुरक्षा मानक नहीं हैं. इस कंपनी के कारिंदे बिना किसी भय के निर्माण में घरेलू गैस सिलेंडरों का उपयोग करते हैं जिस पर कोई सवाल नहीं उठाता. कुल मिला कर इंदिरा सर्किल से उप कारागृह तक का पूरा हाईवे अत्यंत खतरनाक बना हुआ है. 

नरभक्षी की दास्तान



लगभग 5 वर्ष पूर्व  इस कंपनी को बीकानेर से सूरतगढ़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 62 के निर्माण का ठेका दिया गया था. हाईवे अथॉरिटी द्वारा देश में नेशनल हाईवे निर्माण के कड़े सुरक्षा मानक तय हैं. इन मानकों में निर्माण के दौरान पर्याप्त संकेतकों की व्यवस्था, रेडियम पटि्टयां, खतरे के चिन्ह, गति सीमा निर्धारक, स्पीड ब्रेकर, सड़क के दोनों साइड सोल्डरिंग आदि शामिल है जिनकी निर्माण से पूर्व व्यवस्था करनी जरूरी है. लेकिन इस कंपनी द्वारा हमेशा सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई जिन का नतीजा यह हुआ कि हाईवे पर हादसों की संख्या बढ़ती गई. पिछले 5 सालों के दुर्घटना आंकड़ों को देखें तो इस हाईवे पर बड़ी संख्या में मौतें हुई है. प्रशासनिक मिलीभगत के चलते आज तक इस कंपनी के खिलाफ कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हुई न ही किसी ने हाईवे के हादसों में हताहत हुए लोगों के परिजनों का दर्द समझने की कोशिश की. हर हादसे को वाहन चालकों की लापरवाही और नियति जानकर स्वीकार कर लिया गया जबकि नियमानुसार इस कंपनी के सभी निदेशकों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए, यानी लापरवाही से दुर्घटना कारित करने के प्रथम दृष्टया मुकदमे दर्ज होने चाहिए थे.


पुलिस इन मामलों में सिर्फ दुर्घटनाकारित मर्ग दर्ज करती रही. किसी भी जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी ने यह जहमत उठाने की कोशिश ही नहीं की कि इन दुर्घटनाओं के पीछे एमबीएल की घोर लापरवाही का हाथ है. यदि यह कंपनी अपने दायित्वों की पूर्ति करती तो दुर्घटनाओं को अवश्य कम किया जा सकता था. एमबीएल इसी खतरनाक चुप्पी का फायदा उठाती रही और उसकी लापरवाही मासूम जिंदगियों को लीलती रही.
 

कोई बोलता क्यों नहीं ?


मान लिया कि प्रशासन इस मामले में मिलीभगत के चलते लंबी तान कर सोया है लेकिन सवाल यह उठता है कि इस गंभीर मामले पर संभावनाओं के शहर से कोई बोलता क्यों नहीं ! जबकि सूरतगढ़ में पांच-पांच विधायक बसते हैं और लगभग इतने ही लोग विधायक बनने के लिए मुंह धो कर बैठे हैं. इनके अलावा पालिका चेयरमैन और 47 पार्षदों सहित शहर में पंचायती राज के भी अनेक जनप्रतिनिधियों का निवास है लेकिन इन सबको जाने कैसा डर सताता है कि आमजन को खतरे में डालने वाली इस नरभक्षी कंपनी के आगे वे मुंह ही नहीं खोल पाते. हाइवे से सटे हुए वार्डों के पार्षदों की जिम्मेदारी तो और ज्यादा है क्योंकि इन वार्डों के लोगों का हाईवे से ज्यादा वास्ता पड़ता है. जहां हर घड़ी मौत मंडराती है. मंगलवार और शनिवार को तो खेजड़ी मार्ग पर जाने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ से खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है. जनप्रतिनिधियों की यह चुप्पी जाने किस हादसे का इंतजार कर रही है.
 
कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि जब ऐसी अंधेरगर्दी का आलम हो तो अपनी सुरक्षा अपने हाथ है. इस हाईवे से गुजरने से पहले दस बार सोच लें और  हाईवे पार करते समय पूरी सावधानी बरतें. प्रशासन और हमारे माननीय  तो हादसे के बाद मोर्चरी रूम के बाहर संवेदनाएं प्रगट करने का दायित्व संभाले हुए है और यही उनके हाथ में है.  

- डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

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