'किसी को भूख से नहीं मरने दें'
बहुत शिकायतें कर ली, बहुत उलाहने दे लिए, सरकारों के साथ सिस्टम को ताने देने व छींटाकशी में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है हमने. लेकिन संकट की इस घड़ी में आइए, कुछ काम की बात कर लें ताकि आपकी और हमारी, यह बदरंग होती दुनिया बची रह सके. यदि जिंदा रहे तो हम एक-दूसरे से नजरें मिला सकें.
कोरोना लहर के दूसरे संकट काल में सरकारों ने शहरों और गांवों में लॉकडाउन कर दिया है. इसके चलते अफरा-तफरी से भरा जीवन मानो ठहर सा गया है. आप सिर्फ इतना करें कि तमाम शिकायतों और उलझनों के बीच थोड़ी देर के लिए अपने आसपास के चेहरों को याद करें, उन्हें तलाशें. हो सकता है उनमें से कई लोग दो वक्त की रोटी के संकट से जूझ रहे हों. इन चेहरों में आपके जाने-पहचाने प्लंबर, बिजली के मिस्त्री, कुकर/गैस ठीक करने वाले, आपका घर बनाने वाले दिहाड़ी-मजदूर, टेंपो-रिक्शा चालक, मोची, गोलगप्पे वाले, फेरीवाले या फिर कोई जरूरतमंद विद्यार्थी हो सकते हैं. यहां तक कि आपका पड़ोसी या कोई दोस्त भी हो सकता है जिसे आपकी जरूरत हो लेकिन शर्म के कारण वो आपसे कह ही नहीं पा रहा हो.
शेख सादी ने सदियों पहले कहा था- '...इससे पहले कि लोग तुम्हें मुर्दा कहें नेकी कर जाओ.'
बस, पूरी ईमानदारी के साथ आप अपने दोस्तों और ऐसे करीबी लोगों से बात करना शुरू करें. जरूरतें हमेशा रुपए-पैसे की ही नहीं होती बल्कि कभी-कभी आटा, सब्जी, दूध और रोजमर्रा के काम आने वाली साधारण चीजें भी इस संकट में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है. यदि हम संकट के दौर में अपनी चीजों को बांटना सीख लें तो बुरा वक्त भी निकल सकता है. यदि आप वास्तव में चाहते हैं कि यह दुनिया बनी रहे तो आप अपने करीबियों को भरोसा दिलाएं कि मेरे पास अगर दो रोटी है तो.मैं उसे आपके साथ बांटने के लिए तैयार हूं. पिछले लॉकडाउन के वक्त बहुत सी समाजसेवी संस्थाएं और स्थानीय प्रशासन अपने-अपने ढंग से लोगों की मदद कर रहे थे लेकिन इस बार कड़े नियमों के चलते ऐसा कुछ सहयोग अभी तक नजर नहीं आता. सोशियल डिस्टेंसिंग और लोक डाउन के नियमों की पालना करते हुए आप ऐसी पहल कीजिए. यकीन जानिए लोग आपका अनुसरण करने लगेंगे. कारवां ऐसे ही तो बनता है. वैश्विक संकट से जूझने का इतिहास ऐसे प्रयासों से ही तो लिखा जाने वाला है.
एक छोटे से उदाहरण से शायद आप बेहतर समझ पाएं. आइए, हम प्रण लेते हैं कि अपने आसपास किसी को भूखा नहीं रहने देंगे. भूख से किसी को मरने नहीं देंगे. राजस्थान में इंदिरा रसोई का संचालन हो रहा है जहां केवल मात्र ₹8 का भुगतान कर भरपेट भोजन किया जा सकता है. संकट काल में ऐसी इंदिरा रसोई किसी अन्नपूर्णा से कम नहीं. यहां से भोजन के पैकेट की व्यवस्था की जा सकती है. इस पुनीत काम में राज्य सरकार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. स्थानीय निकाय के सहयोग से हम इस व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त कर सकते हैं ताकि हमारे आसपास किसी भी व्यक्ति को भूखा नहीं रहना पड़े. यहां तक कि इस भोजन का न्यूनतम शुल्क जो कि ₹8 है, उसकी व्यवस्था भी जन सहयोग या फिर प्रशासन द्वारा की जा सकती है.
यकीन जानिए, आप के ऐसे प्रयास भले ही रामसेतु की गिलहरी सरीखे हों लेकिन जीवन संघर्ष के इस दौर में किसी ऑक्सीजन से कम नहीं.
तो आइए, काम शुरू करें. और हां, ऐसी मदद का अहसान कभी भूल कर भी न जताएं अन्यथा आपका सारा करा-धरा गुड़ गोबर हो जाएगा जो मैं कतई नहीं चाहता.
-रूंख
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