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अनूठी कहाणियां रौ संग्रै — ‘पांख्यां लिख्या ओळमां’
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आज तो यह आलम है कोरोना के डर से रिश्तेदार अपने रिश्तेदार को पी घर में आने नहीं देता सब्जी तो दूर की बात है ऐसे ही एक बार मेरे पड़ोसी मेरे घर आए और मेरी बेटी से पूछने लगे कि बेटा क्या तुम मुझे जानती हो तब मैंने कहा भाई साहब कैसे पहचाने गी अपने लोगों का पड़ोसी जैसा कोई व्यवहार ही नहीं है मैं तो कभी हम एक दूसरे से प्याज मांगते हैं नहीं कभी एक कटोरी सब्जी का लेना देना हुआ तो बच्चे कैसे पहचानेंगे आप लोगों को
ReplyDeleteबहुत अच्छा और सही लिखा है सर आपने। पुरानी बात अब कहां आ सकती है लेकिन मैं सोचता हूं अगर इंसान सामने वाले को इंसान ही समझ ले तब भी बहुत बात सुलझ सकती है। अगर मां-बाप आज अपने बच्चों को केवल एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करें तो वह किसी भी परिस्थिति में डोल नहीं सकते लेकिन दुख की बात यह है कि पैसा कमाना ही प्राथमिकता बन गई है जिसके एवज में इंसानियत की धज्जियां उड़ रही हैं।
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