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Thursday 18 June 2020

सामाजिक अंतर्द्वंद्व के खिलाफ जारी है जंग !

सामाजिक अंतर्द्वंद के खिलाफ जारी है जंग !

(रेडियो नाटक कृति) --दीनदयाल शर्मा
समीक्षा-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

नाटक साहित्य की एक अनूठी विधा है जिसमें संवाद शैली के साथ श्रव्य और दृश्य दोनों विद्यमान रहते हैं. इस विधा की लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि दर्शक बड़ी जल्दी खुद को नाटक के पात्रों से जुड़ा हुआ महसूस करता है. जहां तक रेडियो नाटकों की बात है, यह रंगमंच से थोड़ा भिन्न है. इस विधा में नाटक के प्रस्तोता को केवल श्रव्य माध्यम से दृश्य रचने पड़ते हैं. नाटककार के समक्ष यह चुनौती होती है कि वह श्रवण माध्यम से ही दर्शकों के समक्ष पूरा दृश्य प्रस्तुत करे. शायद यही कारण है कि अतिरिक्त ऊर्जा और गहन चिंतन की मांग रखने वाली इस साहित्यिक विधा पर अपेक्षाकृत कम रचनाकारों ने काम किया है.

बाल साहित्य के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले वरिष्ठ रचनाकार दीनदयाल शर्मा लंबे समय से रेडियो नाटक विधा पर गंभीरता से काम कर रहे हैं. 2017 में प्रकाशित उनकी रेडियो नाटक कृति 'जंग जारी है' में शामिल सभी नाटक उनकी साहित्यिक पकड़ और समर्पित रचनाकर्म की साख भरते हैं. इस पुस्तक में सम्मिलित नाटकों में दृश्य और श्रव्य तत्वों को बेहद शानदार ढंग से गूंथा गया है. इसी खूबी के चलते इन नाटकों का आकाशवाणी से मंचन भी हो चुका है जिसे श्रोताओं की भरपूर सराहना मिली है.

दीनदयाल शर्मा द्वारा लिखे गए इन रेडियो नाटकों में मानवीय संबंधों का बड़ी सूक्ष्मता से विवेचन किया गया है. संकलन का प्रत्येक नाटक मानवीय स्वभाव और वैचारिक भिन्नता को प्रगट करता हुआ आगे बढ़ता है. रिश्तों की बारीकियों को शब्दों में पिरोना कठिन कार्य है. संवाद शैली में तो यह कठिनता और बढ़ जाती है क्योंकि पाठक, दर्शक और श्रोता नाटक के संवादों में वास्तविक जिंदगी को तलाशने लगते हैं. संकलन का पहला नाटक 'घर की रोशनी' समाज में लड़कियों के प्रति विभेदकारी मानसिकता को उजागर करता है. इस नाटक में नाटककार बड़े ही रोचक ढंग से संवादों को बढ़ाते हुए ऐसी सामाजिक मानसिकता को बदलने में कामयाब हो जाता है.

इसी प्रकार समाज में बुजुर्गों की दशा को चित्रित करता नाटक 'रिश्तों का मोल' लिखा गया है जहां आधुनिकता में रंगे हुए बेटे बहू अपने जन्मदाताओं के साथ बुरा बर्ताव करते हैं. इस नाटक में रामदेई नामक सास का पात्र हमारे आसपास बखूबी देखा जा सकता है. एक रेडियो नाटककार की सफलता यही है कि श्रोताओं को उसके पात्र काल्पनिक न लगें.

'पगली' इस संकलन का सुप्रसिद्ध नाटक है जिसके रेडियो मंचन को बेहद सराहा गया है. इस नाटक में स्त्री की दुर्दशा का बखूबी चित्रण किया गया है. सौतेली मां के दुर्व्यवहार से एक अच्छी भली लड़की अंततः पागलपन का शिकार हो जाती है. अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ एक छोटी बच्ची का विवाह कितना भयावह परिणाम देता है, यह इस नाटक से उजागर होता है. पाठक हो या श्रोता, इस नाटक के साथ बहते चले जाते हैं. दीनदयाल शर्मा की खूबी है कि वह आसपास के सामाजिक परिदृश्य को अपने संवादों में पूरी गंभीरता से उभारते हैं. 'अंधेरे की तस्वीर' नाटक में उनके द्वारा एचआईवी एड्स के खतरे को प्रस्तुत किया गया है. अत्यंत संवेदनशील विषय पर लिखा गया यह यह नाटक पाठकों पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ता है.

समग्र रूप से यह कहा जा सकता है कि बोधि प्रकाशन से प्रकाशित रेडियो नाटक कृति 'जंग जारी है' समकालीन साहित्यिक रचनाओं में विशिष्ट शैली के कारण अलग मुकाम रखती है. कविता और कहानी के दौर में दीनदयाल शर्मा अपने रेडियो नाटकों से श्रोताओं को बांधने में सफल हुए हैं. यह सफलता उनके रचनाकर्म के दायित्व को और बढ़ा देती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि पाठकों को और बेहतर कसावट के साथ नए रेडियो नाटक पढ़ने और सुनने को मिलेंगे.

1 comment:

  1. आपका बहुत-बहुत आभार प्रिय हरिमोहन जी।

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