मुझे लगता है मैं महाकुंभ न सही, कुंभ स्नान तो कर ही आया हूं। 'बीकानेर थियेटर फेस्टिवल' में भाग लेने की अनुभूति किसी भागवत कथा के श्रवण समान ही सुखदायी रही, मन संवेदना और भावनाओं के सागर में डुबकियां लगता रहा। मेरे जैसे ढोल के लिए तो यह कुंभ स्नान ही हुआ ना !
दरअसल, 'बीकानेर थिएटर फेस्टिवल' रंगमंच, साहित्य और कला का समुच्चय भर नहीं है बल्कि यह दुनियाभर की सांस्कृतिक विरासत, नाट्य शास्त्र की परंपराओं और कलाओं को समसामयिक संदर्भों में बांचने का अद्भुत आयोजन है। यह फेस्टिवल पिछले 9 सालों से प्रतिवर्ष आयोजित हो रहा है। इस बार 8 मार्च को शुरू हुए पांच दिवसीय उत्सव में 20 से अधिक नाटकों का मंचन हुआ, नुक्कड़ नाटक खेले गए, नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला और रंग संवाद आयोजित किये गए । इन नाटकों का मंचन बीकानेर के टाउन हॉल, रविंद्र रंगमंच, और टीएन ऑडिटोरियम में हुआ। मेट्रोपोलिटन शहरों में होने वाली नाटक प्रस्तुतियों में अक्सर दर्शकों का अकाल रहता है, वहीं एशिया के सबसे बड़े गांव कहे जाने वाले बीकानेर में सभी हॉल दर्शकों से खचाखच भरे रहे।
इस फेस्टिवल में देश भर के नाट्य मंडलों ने अपनी शानदार प्रस्तुतियां दी। इन प्रस्तुतियों में लखनऊ ग्रुप के नाटक 'भगवद्ज्जुकीयम', जोरहाट असम की प्रस्तुति 'द रिलेशन', राष्ट्रीय कला मंदिर श्रीगंगानगर का नाटक 'ये लोग ये चूहे' और मुंबई ग्रुप का 'गोल्डन बाजार' अभिनय और कल की दृष्टि से बेहद शानदार रहे। दिल्ली ग्रुप के नुक्कड़ नाटक भी अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे। वरिष्ठ रंग कर्मी और साहित्यिकार मधु आचार्य मानते हैं कि नाटक का प्रस्तुतीकरण ऋषि कर्म है। उनकी बात से सहमत हुआ जा सकता है क्योंकि नाटक में साहित्य, संगीत, नृत्य, वेशभूषा, चित्रकला, वास्तु शास्त्र सहित नवरस विद्यमान रहते हैं। इन सब विधाओं का सामूहिक निर्वहन अत्यंत दुष्कर है, इसके लिए पूर्ण समर्पण, निष्ठा और अनुशासन आवश्यक तत्व हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की नाटक में रिटेक जैसा कुछ भी नहीं होता। अच्छा हो या बुरा, जो भी घटित होना है, दर्शकों के सामने होना है। शायद यही कारण है कि रंगमंच को समस्त कलाओं में सर्वोपरि माना जाता है।
बीकानेर के इस उत्सव में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए विद्वजनों और समर्पित कलाकारों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। नए विचार और गहन चिंतन भरे संवाद दिल दिमाग में अब भी गूंज रहे हैं। सच कहूं तो शब्द और कला के कुशल चितरे भायले हरीश बी. शर्मा के स्नेहिल निमंत्रण से यह कुंभ यात्रा अनूठी बन पड़ी है। कला संगम की इस यात्रा में श्री राजूराम बिजारणिया और श्रीमती आशा शर्मा सहयात्री बने, उन्होंने भी इस उत्सव का भरपूर आनंद लिया। हम सबकी तरफ से बीकानेर थिएटर फेस्टिवल के आयोजकों को अलेखूं बधाइयां और उत्तरोत्तर प्रगति की मंगल कामनाएं।
थियेटर संग पुस्तक दीर्घा : हरीश बी शर्मा का नवाचार
बीकानेर थियेटर फेस्टिवल में बिखरे रंगों के बीच हरीश बी. शर्मा द्वारा किया गया पुस्तकीय नवाचार एक सराहनीय कदम है । गायत्री प्रकाशन और पारायण फाउंडेशन की इस पुस्तक-दीर्घा योजना में लोगों का खासा उत्साह रहा। हंसा गेस्ट हाउस में इस बार दीर्घा के साथ किताबें बैठकर पढ़ने के लिए भी इंतजाम किए गए ताकि पाठक यहां बैठकर भी अपनी पसंद की किताबें पढ़ सकें। इस योजना के तहत देशभर के लेखकों की पुस्तकें समान भाव से रखी जाती है ताकि पाठक को प्रकाशक के बैरियर और मनोपोली का नुकसान नहीं हो। दीर्घा में प्रदर्शित पुस्तकें अगर किसी पाठक को खरीदनी हो तो वो संबंधित लेखक या प्रकाशक से संपर्क कर सकता है। लेखक और पाठक के बीच सेतु के रूप में यह कार्य पूरी तरह से अव्यवसायिक है जिसका एकमात्र उद्देश्य पुस्तकों के प्रति पाठकों में संवेदना जागृत करना है जिससे वे किताब पढ़ने के मार्ग पर पुन: लौट सकें।
-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
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