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Saturday 12 November 2022

बड़भागण है गोमती !

( श्याम जांगिड़ रै नूवै उपन्यास गोमती भाभी रै मिस...)


'जिकी लुगाई सुहागण जावै बा बड़भागण कुहावै' इण कैबत सूं परखां तो गोमती भाभी सांचाणी बड़भागी निसरी, पण बा ई सागी गोमती जद आपरो चूड़ो जीवतै धणी सामीं भांगै तो लखावै कै उण सूं निरभागी कुण ! भाग-निरभाग रै इस्यै ई सवालां री पड़ताळ सूं निसरी है गोमती भाभी री गाथा, जिण नै उपन्यास विधा में साम्ही लाया है हिंदी अर राजस्थानी रा चावा-ठावा लिखारा श्याम जांगिड़.

ओ नूवो उपन्यास 'गोमती भाभी' समाजू अबखायां अर धणी री दगाबाजी सूं जूझती तिरिया जूण री गाथा है. लाम्बी कहाणी सूं सरू होई इण उपन्यास री जातरा गोमती भाभी री दोरी सी जियाजूण रा पान्ना फरोळती आगै बधै. आं पान्नां में लुगाई री अंतस पीड अर उण पीड नै पीवण रो होसलो दोनूं लाधै. तिरिया जात रै दुख दरद नै लेय'र भोत सो रचाव होयोड़ो है. इण रचाव मांय घणकरै लिखारां री दीठ लुगाई री मनगत सूं बेस्सी उण रै डील रै ओळै-दोळै फिरती रैयी है. गिणती रा लिखारा लाधै जिका तिरिया रै तन सूं आगै बध'र उण रै मन, उण री अंतस तास नै आपरै सबदां री घड़त देवै. जांगिड़ इण उपन्यास में अबखायां सूं जूझती गोमती री मनगत भोत सांतरै ढंग सूं परोटै.

प्रकास इण उपन्यास रो सूत्रधार है जिको गोमती रै धणी सुधीर रो भायलो है. उण नै जद सुधीर रै दूजै ब्याव रो ठाह लागै, तद गोमती अर उण रै टाबरां बाबत अळोच सरू व्है. इणी घरळ-मरळ में तिरतो-डूबतो प्रकास तिरिया मनगत री पड़ताल करतां थकां आगै बधै अर गोमती री आखी जियाजूण पाठकां सामीं लावै. गोमती रो किरदार पाठकां रो अंतस भिजोवण में कामयाब है. इण उपन्यास रो कथ अर बुणगट जांगिड़ री साहित साधना री साख भरै.

भासा रै पेटै बात करां तो जांगिड़ इण कथ में औकारांत रो प्रयोग करै जिण पर लिखारां रा भांत-भांत रा बिचार है. पण कदास भासाई एकरूपता सारू बै 'ओ' री ठौड़ 'औ' बरतै. जांगीड रो रचाव घणा छळ-छंद नीं जाणै, वो तो ठेठ लोक रै अंदाज में आपरी बात पाठकां साम्ही राख दै जिकै री मठोठ जादा कारगर होवै. वां री भासा में सेखावाटी बोली री ठसक साव निगै आवै, जिण में अपणायत रा बोल ई बटीड़ दांई पड़ै. पाठक उण प्रीत री पीड नै केई ताळ पम्पोळ बोकरै.

इण पोथी सूं पैली आयो जांगिड़ रो उपन्यास 'नौरंगजी री अमर कहाणी' ई खासो चरचा में रैयो है. वांरो कहाणी संग्रै 'एक सती री आखरी परकरमा' अर व्यंग्य संग्रै 'म्हारो अध्यक्षता कांड' नै ई ठावो मान मिल्यो है. आलोचना रै पेटै ई जांगिड़ रा आलेख घणा सराइज्या है.

'गोमती भाभी' उपन्यास राजस्थानी साहित में आपरी निरवाळी पिछाण बणासी, ओ म्हारो निजू विसवास है. साहित में इण बधेपै सारू श्याजी नै घणा-घणा रंग.
-रूंख

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