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Monday, 26 September 2022

मायतां री सीख अंगेजतै टाबरां री मनगत है 'डोंट वरी पापा'


( हरिचरण अहरवाल रै राजस्थानी उपन्यास रै मिस...)


'डोंट वरी पापा' हाड़ौती में मायड़ भासा री अलख जगावता हरिचरण अहरवाल रो नूवों राजस्थानी उपन्यास है. इण उपन्यास सूं पैली अहरवाल रा दो कविता संग्रै 'बेटी' अर 'बावळी' छप्योड़ा है. 'वै बी कांई दिन छा' नांव सूं वांरो राजस्थानी संस्मरण संग्रै ई खूब सराइज्यो है.

इण उपन्यास री बात करां तो हो सकै, पाठकां नै राजस्थानी पोथी रो अंग्रेजी नांव अपरोगो लागतो होवै, पण म्हारो ओ मानणो है, हर सबद एक जातरू होवै. इण जातरा में वै देस, काल अर किणी भासा री हद में नीं बंधै. एक भासा सूं दूजी भासा में बै कद मांखर जा पूगै, ठाह ई नीं लागै. सबद री आ जातरा भासावां नै सबळी करै अर मिनखपणै में बधतै आंतरै नै घटावै.
पछै सगळी चिंता मेटणिया 'डोंट वरी' सबद आपांनै अपरोगा नीं लागणा चाइजै.

हरिचरण अहरवाल
राजस्थानी भासा रै इण उपन्यास में हाड़ौती बोली रो सखरो आनंद लियो जाय सकै. भलंई साहित्यिक दीठ सूं कूंतारां नै 'डोंट वरी पापा' एक लाम्बी कहाणी लखावै पण इण पोथी में औपन्यासिक विधा रा सै सैनाण लाधै. इण उपन्यास रो कथ्य भलंई साधारण दिसै पण भासा अर बुणगट  री दीठ सूं आ कठैई कमतर कोनी. हळंवै-हळंवै आगै बधतै टाबरां री बात अर मायतां री चिंता नै अहरवाल भोत सांतरै ढंग सूं पाठकां साम्ही राखै.

'डोंट वरी पापा' समाजू संस्कार अर सीख रो उपन्यास है जिण में टाबर आपरै मायतां सूं मिली सीख नै अंगेजता थकां आगै बधै. उपन्यास रा पात्र सुनील अर पलक इस्या ई टाबर है जिका आपरी मैनत रै पाण मा-बापू री आंख्यां में हरख रो पाणी ल्यावण में कामयाब होवै. दूजां रो भलो करणो अर अबखायां बिच्चाळै ई आपरी डांडी नीं छोडणी, जैड़ी सीख लियोड़ा टाबर ई 'डोंट वरी पापा' कैवण रो होसलो राखै.

जगचावा साहितकार प्रेमचंद एक ठौड़ कैयो है, 'मा नै आपरो बेटो सदांई दूबळो लखावै अर बाप नै गळत रस्तै बैंवतो. आ बां री ममता है, कीं गळत बात कोनी.' 

सोळा आना साची है आ बात ! मायत सदांई टाबरां री चिंता में दूबळा रैवै, वान्नै लागै कै म्हारा टाबर जियाजूण री अबखायां सूं किंकर पार घालसी. मायतां री इण दीठ में घड़ी-घड़ी पावसतो हेज है जिको वान्नै आखी जूण अळोच सारू मजबूर करै. पण इणी घरळ-मरळ में टाबर कद मांखर मोटा हो जावै अर मायतां नै 'डोंट वरी पापा' कैय'र धीजो बंधावै, ठाह ई नीं लागै. उण बगत हरख री बिरखा सूं मायत रो अंतस कित्तो भरीजै, कैयो नीं जा सकै.

कविता अर कहाणी सूं घणो अबखो काम है उपन्यास लिखणो, पण थ्यावस री बात आ है कै राजस्थानी में दूजी विधावां भेळै आं दिनां उपन्यास विधा पर ई लगोलग काम हो रैयो है. अहरवाल जी री सरावणजोग खेचळ ईं काम नै आगै बधायो है, वान्नै घणा-घणा रंग. जीएस पब्लिशर्स एंड डिसटीब्यूटर्स नई दिल्ली सूं छप्योड़ी इण पोथी री छपाई अर साज सज्जा ई ओपती है. आस राखणी चाइजै, आ पोथी राजस्थानी रै साहित में बधेपो करसी.

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'


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