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Monday 7 June 2021

घर बैठे काले पानी की सजा !

(पर्यावरण)
- कोरोना से अधिक घातक है इंदिरा गांधी नहर में बहता काले पानी का कैंसर

- सोई हुई सरकारों में मूकदर्शक बने हैं जनप्रतिनिधि

- पानी का जहरीला दंश झेलने को मजबूर है प्रदेश की जनता


थार की जीवनदायिनी कही जाने वाली इंदिरा गांधी नहर का नाम बदलकर अब 'इंदिरा गांधी कैंसर वितरण परियोजना' कर दिया जाना चाहिए. बीकानेर संभाग में निरंतर बढ़ रहे कैंसर मामलों के पीड़ित परिवारों का दर्द तो कमोबेश यही स्थिति बयां करता है. इस नहर का पानी, जिसे पश्चिमी राजस्थान के हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, चूरू, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर जिलों के लगभग दो करोड़ लोगों द्वारा पेयजल के रूप में काम लिया जाता है, पिछले कुछ वर्षों में खतरनाक ढंग से प्रदूषित हो रहा है, जिसका नतीजा है कि नहर के बहाव क्षेत्र में कैंसर से होने वाली मौतें बढ़ रही है. हर बार नहरबंदी के बाद इस प्रदूषण को लेकर इलाके के जागरूक लोग और विपक्षी नेतागण आवाज उठाते हैं लेकिन सरकारों द्वारा कभी भी स्थाई समाधान के प्रयास नहीं होते.

दरअसल, इंदिरा गांधी नहर में पानी का प्रदूषण एक ऐसा गंभीर मुद्दा है जिसे प्रदेश की कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने हमेशा बड़े हल्के में लिया है. यहां तक की इलाके के जनप्रतिनिधि भी इस मुद्दे पर सिवाय बयानबाजी के कुछ खास नहीं कर पाए हैं. इसी लापरवाही का नतीजा है कि पूरा बीकानेर संभाग कैंसर के रोगियों का हॉटस्पॉट बनता जा रहा है. यहां तक कि बठिंडा बीकानेर तक से चलने वाली पैसेंजर कैंसर ट्रेन के रूप में प्रसिद्ध हो गई है.

1956 में पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में फैले दस बड़े जिलों में सिंचाई के साथ पेयजल की आपूर्ति के लिए इंदिरा गांधी नहर परियोजना बनाई गई थी जिसे मरू गंगा भी कहा गया. इस नहर को पूर्व में राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था जो एशिया की सबसे बड़ी सिंचाई एवं पेयजल परियोजना थी. 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इस नहर का नामकरण उनके नाम पर कर दिया गया. इस नहर को थार के रेगिस्तान में अमृतदायिनी के रूप में माना गया था लेकिन विडंबना देखिए कि लापरवाह लोकतांत्रिक व्यवस्था के चलते आज यह नहर प्रदेश के लोगों में धीमा जहर बांटने का काम कर रही है.

फैक्ट फाइल

पंजाब में हरिके बैराज सतलुज व ब्यास नदी के संगम पर है जहां से इंदिरा गांधी नहर का उद्गम होता है. यहां से दो नहरें सरहिन्द फ़ीडर (फ़िरोज़पुर फ़ीडर) व राजस्थान फ़ीडर निकलती है. यही राजस्थान फीडर इंदिरा गांधी कैनाल परियोजना की मुख्य नहर है. तथ्य यह है कि हरिके बैराज से पहले पूर्व की तरफ काला संघिया, चिटी बेई व बूढ़ा नाला बहते हैं. काला संघिया , जालंधर शहर ,फगवाड़ा, कपूरथला, नकोदर, जमशेर आदि शहरों का सीवरेज व चमड़े उद्योग सहित अनेक औद्योगिक उद्यमों का गंदा पानी चीटी बेई से होता हुआ सतलुज में गिरता हैं. माछीवाड़ा की तरफ से राजगढ़, कुम कलां,नीलो ,रख आदि गंदे पानी के नालों का पानी भी बूढ़ा नाला में होते हुए सतलुज में गिरता है. इतना ही नहीं, चीटी बेई व बूढा नाला के जरिये लुधियाना, जालंधर, कपूरथला, नकोदर,फगवाड़ा, माछीवाड़ा आदि जिलों के गांवों व 35 नगरपालिकाओं के सीवरेज व करीब 2500 फैक्टरियों का विषैला पानी सतलुज नदी से होता हुआ इंदिरा गांधी नहर में गिरता है. पंजाब प्रदूषण बोर्ड की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार सतलुज नदी के पानी मे जिंक, निकल,क्रोमियम, शीशा ,लौह, तांबा की मात्रा अधिक है और यह पीने योग्य नहीं है.

विशेषज्ञों के मुताबिक इस पानी से कैंसर, काला पीलिया, अतिसार, हैजा, पेचिश, मोतीझरा, अंधापन,कुष्टरोग, चर्म व आंतों के रोगों की सर्वाधिक आशंका बनी रहती है. इसके उपयोग से विकलांगता ,मंदबुद्धि,जैसी घातक बीमारियां हो रही हैं. 

समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट शंकर सोनी बताते हैं कि 2009 में पर्यावरण चिंतक संत बलवीर सिंह सींचेवाल ने राजस्थान का दौरा किया था. उन्होंने पंजाब से आ रहे प्रदूषित पानी पर आवाज उठाई. हनुमानगढ़ की जागरुक संस्था "सावधान" की तरफ से मई 2009 में लोक अदालत, हनुमानगढ़ में राजस्थान व पंजाब सरकार के विरुद्ध याचिका प्रस्तुत की गई. लोक अदालत द्वारा दिनांक दिसम्बर 2011 को राजस्थान सरकार के विरूद्ध आदेश पारित किया गया कि वह इंदिरा गांधी नहर के लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना करे और प्रदूषित जल को स्वच्छ करने के बाद इशनहर में डाले.

लेकिन अफसोस की बात है कि तत्कालीन प्रदेश सरकार सरकार ने अपना दायित्व निभाने की बजाय हाई कोर्ट में रिट संख्या 1291 /2012 पेश कर दी. हाईकोर्ट ने लोक अदालत के आदेश पर से जारी कर दिया जो आज तक लागू है. जब तक इस रिट संख्या 1291 /2012 का निस्तारण नहीं होता समूचे पश्चिम राजस्थान के लगभग दो करोड़ लोग इसी जहरीले पानी को पीने के लिए मजबूर है.

सुलगते सवाल

आखिर कब तक यह घातक खेल जारी रहेगा ? सवाल यह उठते हैं कि -

1. हमारे जल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सिंचाई विभागों के आला अधिकारी इस मुद्दे पर गंभीरता क्यों नहीं दिखाते ? 

2. सरकार द्वारा जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए अत्यंत कड़े कानून बनाए गए हैं तो फिर उन कानूनों की पालना क्यों नहीं होती ? 

3. ऐसे अधिकारी, जो इस नहर में औद्योगिक प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण के वार्षिक प्रमाण पत्र जारी करते हैं, उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं होती ? 

4. पंजाब के जिन शहरों से इस नहर में प्रदूषण युक्त खतरनाक पानी डाला जाता है, उनके स्थानीय प्रशासन और दायी अधिकारियों के खिलाफ सरकारें अपराधिक मुकदमे क्यों दर्ज नहीं करवाती ?

5. राजस्थान में प्रवेश के बाद इस नहर में कुछ लोगों द्वारा सेम नाले का गंदा पानी छोड़ा जाता है. प्रशासन द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा क्यों नहीं दर्ज करवाए जाते ?

6. पेयजल के रूप में दिए जाने वाले पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार गंभीरता क्यों नहीं दिखाती ?

जल प्रदूषण का खतरनाक स्तर


हकीकत तो यह है कि नहरबंदी के बाद जब इंदिरा गांधी नहर में पानी छोड़ा जाता है, उस वक्त का मंजर यदि कोई व्यक्ति अपनी आंखों से देख ले तो वह जिंदगी भर इस नहर का पानी पीना छोड़ दे. लेकिन मजबूरी यह है कि पूरे पश्चिमी राजस्थान के पास पेयजल की आपूर्ति के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं है. पंजाब से डाले जा रहे प्रदूषित पानी की बात तो छोड़िए खुद अपने घर में खाली पड़ी इंदिरा गांधी नहर कूड़े-कचरे से भरी मिलती है. कहीं-कहीं तो सीवरेज पानी के साथ मृत पशुओं का जमावड़ा भी देखने को मिलता है. इस बार तो बीरधवाल आर्मी डिपो के बीसियों पुराने बम भी इस नहर में दबे मिले हैं. पानी आने के साथ ही इस नहर को यह सारी गंदगी बहा ले जानी पड़ती है जो अंततः किसी ना किसी शहर अथवा गांव या फिर किसी ढाणी में बने पेयजल संग्रहण में पहुंचती है. इस जल का उपयोग करने वाला परिवार दरअसल पानी नहीं बल्कि अनजाने में कैंसर का प्रसाद ग्रहण करता है. उसे पता ही नहीं होता कि नहर के पानी ने उसके परिवार में मौत बनकर दस्तक दी है.


इस बार भी नहर बंदी के बाद यह प्रदूषित पानी एक बार फिर इलाके के जागरूक लोगों के दिलों में आग लगा रहा है. जनाक्रोश कितना उभरता है यह अलग बात है लेकिन देखना यह है कि क्या इस आग की लपटें सत्ता में बैठे धौळपोसिए नेताओं के कुरतों तक पहुंचती है या नहीं ! 

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

दैनिक सीमांत रक्षक 9 जून 2021


दैनिक करंट न्यूज़, दिल्ली 9 जून 2021


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