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Friday 4 June 2021

कोरोना संकट में विश्वविद्यालय परीक्षाएं-तथ्य एवं सुझाव

(समसामयिक)

कोरोना संकट ने पिछले 18 माह में समूची दुनिया के मानव जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है. हमारी शिक्षण व्यवस्था भी इस महामारी से अछूती नहीं रही है. विद्यार्थी और शिक्षक दोनों मानसिक तनाव में हैं कि आखिर शिक्षण व्यवस्था का क्या होने वाला है. निश्चित रूप से परिस्थितियां विकट हैं लेकिन इसके बावजूद संतोष की बात यह है कि शिक्षकों ने हार नहीं मानी है. कोरोना से जूझते हुए वे अध्ययन और अध्यापन से लेकर परीक्षाओं के आयोजन तक में नवप्रयोग करने की ओर अग्रसर हुए हैं. कोविड-19 के संक्रमणकाल में सरकार को विद्यार्थियों को बिना परीक्षा लिए ही क्रमोन्नत करने जैसे निर्णय भी लेने पड़े हैं परन्तु साथ ही साथ सूचना तकनीक आधारित आॅनलाइन स्टडी में भी खूब वृद्धि हुई है. इन सामयिक परिवर्तनों को सकारात्मक ढंग से लिया जाना चाहिए.

विश्वविद्यालयों की परीक्षा व्यवस्थाएं-तथ्य एवं सुझाव

* विश्वविद्यालय परीक्षाएं करवाई जाएं अथवा नहीं, महामारी के काल में यह गंभीर मुद्दा है. पिछले वर्ष उच्च शिक्षण व्यवस्था में विद्यार्थियों को बिना परीक्षा लिए क्रमोन्नत करने का जो प्रयोग किया गया था वह तात्कालिक समय की मांग थी लेकिन उसे निरंतर जारी रखना किसी भी दृष्टि से उचित प्रतीत नहीं होता. विद्यार्थी जीवन में परीक्षाएं सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हंै. यदि उन्हें इसके अवसर नहीं मिले तो उनका मानसिक विकास प्रभावित होता है. प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए तो यह स्थिति अत्यंत घातक है. बार-बार बिना परीक्षा के क्रमोन्नति के निर्णय देश की भावी पीढ़ी के मानसिक स्तर को गिरा देते हैं जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दौर में किसी भी राष्ट्र की प्रगति और विकास को बुरी तरह प्रभावित करता है. इसलिए कोरोना संकट के बावजूद विश्वविद्यालयों के प्रबंधन को पूरे मनोयोग के साथ वार्षिक परीक्षाएं अवश्य आयोजित करनी चाहिए.


* कोरोना महामारी का समाधान अल्पकाल में होता दिखाई नहीं देता. ऐसी स्थिति में हमें भी जापान की तर्ज पर अपनी परीक्षा प्रणाली को  ’सिस्टम विद कोरोना’ के अनुरूप ढालने की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए. विश्वविद्यालयों को कोरोना संकट में न्यूनतम पांच वर्ष के लिए नवप्रयोगवादी परीक्षा योजना बनाने की आवश्यकता है.


* चूंकि सूचना तकनीक और इंटरनेट के युग में ऑनलाइन एक्जाम का मुद्दा उठ रहा है लेकिन प्रदेश में विद्यमान संसाधनों और जानकारी के अभाव में इस व्यवस्था को हम आज घड़ी लागू करने की स्थिति में नहीं है. अधिकांश विद्यार्थी ग्रामीण क्षेत्र से हैं जहां ऑनलाइन परीक्षा हेतु वांछित भौतिक सुविधाएं उपलब्ध ही नहीं है. लिहाजा वर्तमान में ऑफलाइन परीक्षा व्यवस्था पर ही हमें अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

* कोरोना संकट में ‘सोशियल डिस्टेंसिंग’ अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसलिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय परीक्षा केन्द्रों पर विद्यार्थियों की भीड़ को नियंत्रित करने की दिशा में सारवान कदम उठाएं. नये परीक्षा केन्द्रों के आवेदनों को प्राथमिकता और उदारवादी दृष्टिकोण के साथ निस्तारित किया जाए ताकि अन्य केन्द्रों का भार कम हो सके. जिन केन्द्रों पर भारी भीड़ होती है उनके विद्यार्थी भार को कमभार वाले अन्य निकटवर्ती केन्द्रों पर वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर अंतरित किया जाना चाहिए.


* ‘सोशियल डिस्टेंसिंग’ के मद्देनजर यह आवश्यक है कि परीक्षा समय सारणी बनाते समय विशेष सावधानी बरती जाए. ऐसे विषय, जिनमें विद्यार्थियों की संख्या अधिक है, उनके लिए दिन तय करते समय विशेष कार्य योजना बनाई जाए.


* कोविड नियमावली की पालना के लिए परीक्षा केन्द्रों द्वारा समस्त वांछित व्यवस्थाएं की गई हैं, इसका पूर्व परीक्षण विश्वविद्यालय के उड़नदस्ते द्वारा करवा लिया जाना चाहिए. केन्द्राधीक्षकों की इस सम्बन्ध में परीक्षा से पूर्व वर्चुअल मीटिंग ली जानी चाहिए जिसमें मुद्दे की गंभीरता और उनकी जवाबदेही पर विमर्श होना चाहिए.


* लगभग सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में स्नातक एवं स्नातकोत्तर सत्र 2020-21 का अध्ययन कार्य लगभग समाप्त हो चुका है. विधि और शिक्षण प्रशिक्षण की बात छोड़ दें तो इन पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं के आयोजन में पंचवर्षीय परीक्षा योजना बनाते समय निम्न नवप्रयोगों पर विचार किया जा सकता है:-


1. प्रत्येक विषय में विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित सिलेबस का 30 प्रतिशत पाठ्यक्रम महाविद्यालय स्तर पर आयोजित होने वाली अर्द्धवार्षिक परीक्षा योजना तथा शेष 70 प्रतिशत पाठ्यक्रम मुख्य परीक्षा हेतु आरक्षित होना चाहिए. इन दोनो परीक्षाओं में प्राप्तांकों के आधार पर विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम घोषित होना चाहिए. इससे परीक्षा आयोजन का विकेन्द्रीकरण तो होगा ही साथ ही विद्यार्थी पर मुख्य परीक्षा का तनाव भी घटेगा. 


2. महाविद्यालय स्तर पर ली जाने वाली अर्द्धवार्षिक परीक्षा योजना पर गंभीरता से काम होना चाहिए. इस योजना में मौखिक एवं लिखित दोनो प्रकार की परीक्षाओं को समावेश हो तो बेहतर है. दोनो परीक्षाओं का अंक भार 10: 20 के अनुपात में बांटा जा सकता है. महाविद्यालयों को इन परीक्षाओं के वास्तविक रिकार्ड संधारण हेतु पाबंद किया जाना चाहिए. यदि इस रिकार्ड में दोनों परीक्षाओं की विडियोग्राफी शामिल की जाए तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. विश्वविद्यालय द्वारा मुख्य परीक्षा के आयोजन से पूर्व यह रिकार्ड मांगा जाना चाहिए जिसकी पुष्टि ‘लीगल अंडरटेकिंग’ के रूप में महाविद्यालय के प्राचार्य से करवाई जानी चाहिए.


3. कोरोनाकाल में विद्यार्थियों का लेखन कौशल लगभग छूट सा गया है, इसके लिए जरूरी है कि  अर्द्धवार्षिक परीक्षा योजना में उनसे हर विषय पर वांछित प्रश्नोत्तर की लेखन फाइल तैयार करवाई जाए और उसका विधिवत मूल्यांकन हो. आॅनलाइन शिक्षण प्रणाली में भी यह व्यवस्था अपनाई जा सकती है जहां विद्यार्थी अपनी फाइल तैयार कर पीडीएफ के रूप में प्रेषित कर सकता है. हालांकि हमारे पास एसाइनमेंट सिस्टम विद्यमान है लेकिन वह केवल सैद्धांतिक होकर रह गया है. आवश्यकता इस बात की है कि उसकी कमियों को दूर किया जाए और उसके गंभीर मूल्यांकन की व्यवस्था बनाई जाए. अर्द्धवार्षिक परीक्षा के अंक कुल प्राप्तांको में जुड़ने का नियम विद्यार्थी को अपेक्षाकृत अधिक अनुशासित और नियमित बनाने में भी योगदान करेगा.


4. मुख्य परीक्षाकाल की तीन घंटे की अवधि को घटाकर डेढ़ घंटा किया जाना जरूरी है. यह इसलिए जरूरी है कि हमारे प्रदेश में परीक्षाओं का आयोजन मई, जून और जुलाई महीनों में होता है जब जानलेवा गर्मी पड़ती है और तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है. कोरोना संकट में सबकी इम्यूनिटी प्रभावित हुई है लिहाजा विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के दृष्टिगत यह कदम उठाया जाना बेहद जरूरी है.


5. कोरोना संकट काल में पाठ्यक्रम का 70 प्रतिशत भाग, जो मुख्य परीक्षा के लिए आरक्षित किया गया है, उसके प्रश्नपत्रों में केवल वस्तुनिष्ठ और अति लघुत्तरात्मक प्रश्नों का ही समावेश होना चाहिए. इसके साथ-साथ विद्यार्थियों को प्रश्नपत्र के सभी प्रश्न करने की बजाय एक निर्धारित प्रतिशत तक हल करने की सुविधा दी जानी चाहिए जो निश्चित रूप से उनका तनाव कम करेगी.


सरकार द्वारा संकट की इस घड़ी में मानवीय जीवन से जुड़ी अत्यावश्यक सेवाओं को सुचारू रूप से जारी रखने का प्रयास किया जा रहा है. विद्यार्थी जीवन में परीक्षा भी अत्यावश्यक सेवा के समान है. इसलिए उच्च शिक्षा से जुड़े समस्त कुलपतियों, प्राचार्यों, शिक्षकवृन्दों और गैर शैक्षणिक स्टाॅफ का सामूहिक दायित्व है कि वे कोरोनाकाल में विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयी परीक्षाओं का सफल आयोजन करवाएं और अपनी श्रेष्ठता का सिद्ध करें.


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