-सारंग और कच्छावा के समर्पित प्रयासों से बना गीतों का महत्वपूर्ण संकलन
शब्दों की आंतरिक लय जब अनायास ही किसी कवि के होंठों पर थिरकने लगती है तब गीत का जन्म होता है, और जब गीत जन्म लेता है तो मानवीय संवेदना अपने श्रेष्ठतम रूप में अभिव्यक्त होती है. संसार की हर भाषा में गीत रचे और गाए जाते रहे हैं. गीतों को साहित्यिक परंपरा का श्रृंगार कहा जा सकता है जो कंठों से कंठों तक की भावभरी यात्रा करते हैं. इस यात्रा में गीत सामाजिक संवेदनाओं और सांस्कृतिक विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने का महत्वपूर्ण काम करते हैं. इसीलिए कहा जाता है, गीतों में जीवन संगीत धड़कता है.
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डॉ. दिनेश कुमार जांगिड़ 'सारंग' |
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डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा |
आधुनिक राजस्थानी भाषा के लोकप्रिय गीतों का संकलन कर ऐसा ही एक ठोस प्रयास किया है डॉ. दिनेश कुमार जांगिड़ 'सारंग' और डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने. नवचेतना संस्थान, जयपुर की ओर से 'सारंग' और कच्छावा के संयुक्त संपादन में एक महत्वपूर्ण पुस्तक 'राजस्थानी गीत गंगा' प्रकाशित हुई है. शब्द साधक और बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ.सारंग भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्यरत है तो वहीं सुजानगढ़ के साहित्य मनीषी और विधिवेत्ता डॉ. कच्छावा राजस्थानी साहित्य सृजन में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं. इन संपादक द्वय ने राजस्थानी गीतों की एक अनूठी और उपयोगी संचयन कल्पना को मूर्त रूप देकर महताऊ काम किया है.
इस संकलन में राजस्थानी भाषा के 25 प्रमुख गीतकारों के चुनिंदा प्रतिनिधि गीत हैं जिनकी खुशबू प्रदेश में ही नहीं अपितु देश-विदेश में बसे राजस्थानियों के दिलों तक महकती है. संकलन की खास बात यह है कि गीतों के साथ गीतकारों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है. पुस्तक में मारवाड़ी, मेवाड़ी, हाड़ौती, ढूंढ़ाड़ी और शेखावाटी के गीतों का समान रूप से संचयन होना यह दर्शाता है कि संपादक द्वय ने अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया है. एक ऐसे दौर में, जब राजनीति प्रेरित कुछ स्वार्थी लोग 'कुण सी राजस्थानी' का सवाल उठाते हैं तो उसका जवाब इस पुस्तक में संकलित राजस्थान के हर अंचल के गीतों में खोजा जा सकता है. भाषायी एकरूपता की दिशा में भी संपादकों द्वारा सराहनीय काम किया गया है.
पुस्तक में बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार रहे पंडित इंद्र दाधीच और भरत व्यास की जानकारी राजस्थानी पाठकों के लिए संग्रहणीय बन पड़ी है. भरत व्यास का लोकप्रिय संवाद गीत 'थान्नै काजल़ियो बणाल्यूं...' आधुनिक राजस्थानी के प्रणय गीतों में खासा लोकप्रिय रहा है. वहीं कन्हैयालाल सेठिया का 'धरती धोरां री...', मेघराज मुकुल का 'सैनाणी', गजानन वर्मा का 'सुण दिखणादी बादल़ी', रघुराज सिंह हाडा का 'कतना मांडूं गीत', कानदान 'कल्पित' का 'सीखड़ली'", मोहम्मद सदीक भाटी का 'बाबा थारी बकरी बिदाम खावै रे' और कल्याण सिंह राजावत का बागां बिचै बेलड़ी' गीत भी इस संकलन को प्रभावी बनाते हैं.
पुस्तक में राजस्थानी के अन्य लोकप्रिय गीतकारों मोहन मंडेला, माधव दरक, भंवर जी भंवर, कालूराम प्रजापति, ताऊ शेखावाटी, प्रेम जी प्रेम, इकराम राजस्थानी, दुर्गादानसिंह गौड़, भागीरथ सिंह भाग्य और मुकुट मणिराज के बेहद खूबसूरत गीतों को भी संजोया गया है. इनमें से अधिकांश गीत कवि सम्मेलनों, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अक्सर सुने जाते रहे हैं.
संकलन के हर गीत में व्यक्त भाव का संक्षिप्त हिंदी वर्णन भी गीत के अंत में दिया गया है ताकि पढ़ने वाले को भावार्थ समझने में आसानी रहे. पुस्तक की भूमिका राजस्थानी के समर्थ रचनाकार सत्यदेव संवितेंद्र द्वारा लिखी गई है. पुस्तक की छपाई और साज सज्जा भी आकर्षक बन पड़ी है.
सार रूप से यह कहा जा सकता है कि लोकप्रिय राजस्थानी गीतों का एक ही संकलन में उपलब्ध होना 'राजस्थानी गीत गंगा' की विशेषता कही जा सकती है. डॉ. सारंग और डॉ. कच्छावा ने जिस समर्पण भाव और मेहनत के साथ यह संकलन तैयार किया है उससे उम्मीद तो यह भी बंधती है कि राजस्थानी के नए गीतकारों का संकलन भी यथाशीघ्र प्रकाश में आएगा.
- डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
आपका हार्दिक आभार
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